अपने ही आँसू से आँख भिगो….
प्यासे होंठों से जब कोई झील न बोली
हमने अपने ही आँसू से आँख भिगो ली !!
भोर नहीं काला सपना था पलकों के दरवाज़े पर
हमने यों ही डर के मारे आँख न खोली !!
दिल के अंदर ज़ख्म बहुत हैं इनका भी उपचार करो
जिसने हम पर तीर चलाए मारो गोली !!
हम पर कोई वार न करना हैं कहार हम शब्द नहीं
अपने ही कंधों पर है कविता की डोली !!
यह मत पूछो हमको क्या-क्या दुनिया ने त्यौहार दिए
मिली हमें अंधी दीवाली गूँगी होली !!
सुबह सवेरे जिन हाथों को मेहनत के घर भेजा था
वही शाम को लेकर लौटे खाली झोली !!
कृति- सुमित महाराज झाँसी