जिंदगी तब ही अच्छी थी यार

जिन्दगी तब ही अच्छी थी,

जब सबसे बड़ा डर होता कि साढ़े नौ की पिक्चर के बीच में लाईट न चली जाए,
कपाला शक्तिमान को हरा ना दे,
टैंक वाले वीडियो गेम का सेल जल्दी ख़त्म न हो जाए,
जिन्दगी तब ही अच्छी थी जब खुशियाँ आमचूर के पैकेट और दो कंचों में सिमट जाती थी।

डर लगता कि कल भूगोल के पीरियड के पहले बारहवाँ अध्याय पूरा न हो पाया तो,
डर लगता कि सचिन आज फिर 99 पर आउट हो गया तो,
डर लगता कि वो सारी कॉपियाँ जिनमें नही मिले हैं ढ़ंग के नम्बर
उनमें दस्तखत कराते वक़्त बिफर पड़े पापा तो?

अब लगता है कि पिक्चर न देख पाए तो क्या,
चिमनी से बनी परछाई में जोड़कर अंगूठे से ऊँगली,
हिरण की आँख बनाना उससे कहीं बेहतर था,
बेहतर था बड़ा न सही आमचूर के पैकेट से छोटा ईनाम निकलना।
डेड लाइन्स के बीच घिसटती जिन्दगी में खाने की छुट्टी में भूगोल की कॉपी पूरा करना कितना आसान लगता है।
जिन्दगी तब ही अच्छी थी,जब जिन्दगी से मतलब न था।

लेखक आशीष पेशे से इंजिनियर है व विचारधारा से गांधीवादी भी है सरनेम बदलता है इसलिए कन्फ्यूज्ड रहते है

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अगर मेट्रो झाँसी में चलन लगे तो एनाउंस कैसे हुएये।

अगर मेट्रो झाँसी में चलन लगे तो एनाउंस कैसे हुएये।

जा झाँसी मेट्रो आय।
जा में अपन सबको स्वागत है

आगे को स्टेशन इलाईट है।
किवाड़ डेरे हाथ पे खुल्हें।
जौंन खों वंदना को बर्गर खाने होये,या फिर बनारसी पानखाने होए सो इतैइ उतर जइयो।

ऐ के बाद मेट्रो सदर में रुकहै।
नारायण की चाट के लाने इतैइ उतरियो।

किवाड़ों से चिपकियो ने,नई तो धप्प से गिर परहों।

गुटका और बीड़ी की तो सोचियों भी ने,नई तो पाँच सौ पै बुझ हो।

आगे के दो डिब्बा लुगाइयों के लाने आएं।
उन डिब्बाओं में कौनौ मोड़ा पकड़ो गओ तो अच्छी पीठ पूजहे।

धक्का मुक्की नइ दैयो डुकरा-दुकारियो को पहले जगह दैयो।
ईमानदारी से टिकट लैके चलवे को काम आएं।बी

जादा चतराई करी तो कैमरा लग रए है।
पकड़ गए तो जेल की चक्की पीस हों।

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रियल कम वर्चुअल… एंड कमीने आल्सो… दोस्त टाइप जंतु – चैतन्य अंजली

कुछ दोस्त ऐसे होते हैं जो फेसबुक पर मिलते हैं,उनसे दोस्ती होती है, फिर दोस्ती परवान चढ़ती है और फिर एक दिन देवदूत लगने वाले ये दोस्त यथार्थ के धरातल पर उतरते हैं, उस दिन आपको पता चलता है की ये शब्द और तस्वीरों के अलावा भी एक और व्यक्तित्व रखते हैं और सेम टू सेम आपके जैसा फ्रेम वाला चश्मा लगाते हैं । कई बार घातक तो कई बार इतने प्यारे निकलते हैं कि दोंनो ही सूरतों में आपकी जिंदगी बदल जाती है, पर आज हम इनकी बात नही करेंगे। कुछ दोस्त ऐसे होते हैं जिन्हें आप सालो से जाने हैं, ये आपके सहपाठी या रिश्तेदार भी हो सकते हैं, यों तो ये बड़े ही निरीह जीव होते हैं इनकी समस्त सामर्थ्य आपकी मम्मी के कानो पर निर्भर करती है वो कितने कच्चे या पक्के कानों की हैं, पर असल जिन्दगी को अगर छोड़ दें तो फेसबुक पर ये आपको बिलकुल भी नुकसान नही पहुचाते, मगर हम इनकी भी बात नही करेंगे।

आज हम तीसरी केटेगरी की बात करेंगे… ये वो होते है जो आपको शादी – बड्डे पार्टी या मीटिंग में मिलते हैं | ये प्रायः आपके खास दोस्तों के खास दोस्त या फिर बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड होते हैं। ये अलग ही केटेगरी होती है जनाब! इन्हें सारी दुनिया छोडकर सिर्फ आप पसंद आ जाते हैं, अगर विपरीत लिंगी हुए तो आप कुछ और ज्यादा पसंद आते हैं… इवन मोर दैन हिज गर्लफ्रेंड समटाईम्स !!!! ये सबसे घातक प्राणी हैं, प्लस पॉइंट बस ये है की ये आपकी पर्सनल, सोशल, वर्चुअल , प्रोफेशनल लाइफ में आपका कुछ नही उखाड़ सकते मगर फिर भी ये आपको जिस मात्रा में त्रास देते हैं, उसकी तीनों लोकों में कोई सुनवाई नही है । एक तो ये लोग जब आपको रिक्वेस्ट भेजते हैं तो अपनी प्रोफाइल पिक में भी खुद की फोटो लगाकर नही रखते। ऊपर से जो बचा-खुचा है उसे भी यूं हाईड करके रखते हैं जैसे उनके फोटो / जानकारी नही कारुं का खजाना हो । हद तो तब हो जाती है जब वो ये चाहते हैं हम अपनी दिव्य दृष्टि उन्हें पहचान लें, भले ही वो हमसे मौसी की ननद की शादी में छः साल पहले मिले थे और हम साथ साथ गोलगप्पे की टेबल के आगे लाइन में खड़े थे। चलो यहाँ तक तो फिर भी ठीक है, अब इंसान इंसान से ही तो उम्मीद करेगा न! पर इतने सब के बावजूद वो ये भी इच्छा व्यक्त करते हैं हम उनकी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने के साथ साथ उनकी वाल पर आकर धन्यवाद लिख जाएँ…. अनुनय कुछ इन शब्दों में किया जाता है ” यार तू लिख देगी तो इम्प्रेसन बन जायेगा अपना ” । उनके अनुसार हमे व्यक्त करना है ऐसे जैसे उनके हमें ऐड करने से हम असीम गर्व की अनुभूति कर रहे हों, और भियो तुम्हे कौन समझाए… अपन आजतक अपना इम्प्रैशन तो बना नही पाए तुम्हरा कैसे बन जाएगा ??? और एक बार कहीं उनके एक शब्द के प्रति असम्म्मान व्यक्त करने की हिम्मत कर दी मैंने तो उलाहने तो कुछ यों मिले जैसे मैंने उनकी बेटी को अपनी बहू बनाने से इनकार कर दिया हो, और उसकी करेंट सास उसे दहेज़ के लिए प्रताड़ित करती हो, जिसकी एकमात्र जवाबदेह मैं होऊं |

खैर, अब जब ये फ्रेंडलिस्ट में आ ही गये तो गाहे बगाहे हमें आकर हमारी नासमझी और लापरवाही के लिए हमे आवश्यकतानुसार प्रताड़ना देते रहते हैं । सबसे ह्रदय विदारक होती है इनकी डेडलाइन.. और डेडलाइन की हेडलाइन होती है ” यार शाम तक में गुल्लू का पेज प्रमोट कर दे” या “मैने तुझे क्योंटी प्रपात वाली फोटो में टैग किया था तूने अब तक लाइक नहीं किया ” और तो और सबसे दुखदायी उदगार होते हैं ” दो घंटे पहले टैग की हुई पोस्ट तेरी टाइमलाइन पर नही दिख रही है, अब तक तो आ जानी चाहिये” …… हद्द है यार, घन्टे आध घंटे की देरी तो मेरा बॉस भी माफ़ कर देता है , पर साहब इनको चैन नही है ऊपर से हमारी टाइम लाइन पर क्या हो उस पर भी इनका नियंत्रण!!! “यार ये रूही कित्ती क्यूट है मैं डीपी में लगाऊं क्या ?” कहते हुए कभी भी धमक पड़ेंगे …. और घंटे भर कैसी है , क्या कर रही पूछने के बाद … तेरी पोस्ट पर बीस मिनट में सौ लाइक कैसे आ जाते हैं मुझे तो सात के लाले हैं … और फिर किसी भी प्रकार से आपको ये सिद्ध करना जरुरी हो जाता है की लाइक्स ज्यादा आने का किस्मत अच्छी होने से कोई सम्बन्ध नही है । खबरदार कंटेंट के बारे में कोई सलाह न दें! वरना सीधे आपका शाब्दिक चीरहरण कर लिया जायगा कुछ इन शब्दों में “हाँ !हाँ !तू तो बड़ी राइटरनी हो गयी है न, हम तो जाहिल हैं । अब कोई कैसे ये कह दे कि अबे भूतिए!!! जाहिल तुझसे सात श्रेणी ऊपर का जीव है |

रही सही कसर उनका पिक्चर या घूमने चलने का इनविटेशन निकाल देता है… अरे सुन यार वो सारथी बोल रहा था खजराना चलने को… चलती है क्या? या पल्लवी का फोन आया था चोरल का प्रोग्राम बनाते हैं !!! घर से परमिशन न मिलने की बात कहकर आप इनसे पल्ला झाड सकते हैं | पर क्या करियेगा अगर फिल्म देखने बुला लिया… और वो भी वह फिल्म जिसका पहला पोस्टर देखते ही आपने कहा था इसे जरुर देखूंगी ! भले ही आप अपनी नन्ही सी भांजी वही फिल्म दिखाने का वादा कर चुके हों पर नहीं उनके साथ जाना आपका परम कर्तव्य है… नन्ही रिद्धि का दिल आप तोड़ सकते हैं पर इन कमबख्तों का नही, और सबसे विभत्स वो मौका होता है जब ये अचानक अपना प्लान कैंसिल करते हैं क्यूंकि वो सब इकट्ठे नही हो पा रहे जिन सबों को ये एक साथ पीवीआर ले जाना चाहते थे । जूतों से मारने का दिल करता है उस वक़्त क्यूंकि इधर हम अपने गाजियाबाद वाले तथाकथित बॉयफ्रेंड को भी कह चुके होते हैं कि “जानू तुम बुधवार को जा रहे हो न, हम भी उसी दिन जायेंगे, साथ साथ न सही पर फिर भी साथ ही मूवी देख सकेंगे। मगर नहीं पिछले चार दिन से भेजे की दही करने के बाद वो अचानक गायब हैं….और फिलहाल… हमारा मूड ख़राब है, भयंकर जुकाम है, पिक्चर कैंसिल है, गाजियाबाद वाला बीमार हो गया है और रिद्धि उदास है… और अब ये तितली की प्रोफाइल पिक वाली रिक्वेस्ट किसकी आई बे ?

–चैतन्य अंजलि

देशी बेब्स(जीन्स विथ देशी लंहगा) – सोनू शर्मा “भानु”

आज आपको कूल दियुड्स की नारी प्रजाति हॉट बेब्स से मिलाते है।(ये उतनी ही हॉट होती है जितने की कूल दियुड्स कूल )

ये वो लड़कियां होती है जो छोटे शहर ,कसबे या गाँव से बड़े शहर में पदार्पण करती है और खुद को हॉट दिखाने के चक्कर में अपनी फजीयत करा लेती है।

इन्हें पूरी तरह से शहरी भाषा आती तो है नही लेकिन खुद को ऐसा दिखाएगी जैसे इनके बाप दादा अंग्रेजों के ज़माने में यहाँ आये हो……और फिर बात करते हुए ऐसा लाफ्टर देती है अगले बन्दे को कि वो चाहे मर ही जाये।

उदाहरणार्थ-
मुझसे अगर इनका पैर दब जाये बस या मेट्रो में गलती से तो ये बोलती है…” excuse me मिस्टर आपने मेरा ‘गोडा’ ‘कुचर’ दिया ”

हद्द तो तब हो गई जब एक हाई फाई सी दिखने वाली लड़की मेट्रो में मुह बनाये थी मेने पूंछा क्या हुआ???? बोलती है-“एक्चुअली न मेरे ‘नुकटे’ में पेन हो रहा है ।

ड्रेसिंग सेन्स की तो बात ही न करो……
ये इनकी पहचान दूर से करा देता है।

उदाहरणार्थ
1-“जीन्स विथ देशी लंहगा”(ये तो कम्पलसरी है गुरु)
2-मोबाइल रखने के लिए एक बटुआ आडा करके अलग से टांगा होगा(अरे देवी जीन्स में इतनी जेव क्या किराये पे देने के लिए लगी है)
3-अगर विद्यालय जाएगी तो एक बड़ा सा बोरानुमा झोला बगल में टांग के जाएगी। (ऐसे लगता है कि बस कोई परिवार का सदस्य निकलेगा इससे या फिर किसी का अपहरण करने के लिए लायी है ये)

इनमे आपस में बॉयफ्रेंड बनाने की प्रतिश्पर्धा चलती रहती है कि कौन कितने ज्यादा बना पाता है और देखा जाये तो बॉयफ्रेंड बनाना इनके लिए स्टेट्स सिम्बल होता है और फिर दियुड्स इसका भरपूर फायदा लेते है और बाद में इन लडकियो को ज्ञात होता है कि साला अपना तो चूतिया कट गया।

attitude की बात ही मत करो। वो तो कूट कूट के ऐसे भरा रहता है जैसे भरत के अन्दर भाईचारा भरा था।

वहां जाकर इनका attitude भी चेंज हो जाता है इनका लेकिन फिर ये न गाँव की रहती और न शहर की बस त्रिशंकु की तरह लटकती रहती और बिना मतलब में कपिल शर्मा जैसों को लाफ्टर देकर उन्हें हिट करा देती है और फेस्बुकियो को पोस्ट के लिए कच्चा माल उपलब्ध करा जाती है।

बात करते है इनकी सोच और हरकतों पे।

वैसे तो ये देशी बेब्स दिन भर घर में झाड़ू पौंछा और बर्तन की घिसाई करती रहेंगी (हाँ कभी कभी उपले भी बनाती है गोबर के) और सारा काम करने के बाद फेसबुक पर स्टेटस डालेगी “ओह वैरी टायर्ड ….होल डे हैंग आउट विथ फ्रेंड्स “।
लेकिन पोल तो तब खुलती है जब पड़ोस का लड़का उसी स्टेटस पे कमेंट करता है कि “काये पिंकी दिन भर तो गोबर डार रही थी घर से उठाकर ….हैंग आउट कब कर लिए ” (वो बात अलग है कि उस बन्दे का कमेंट डिलीट कर दिया जायेगा और बन्दा हमेशा को ब्लाक ) साला आज तक ये फंडा समझ ही नही आया।

साला एक बात इन देशी हॉट बेब्स की आज तक समझ नही आई मुझे कि ये पैदा ही सूतिया होती है या फिर कोई डिप्लोमा टाइप कोर्स करती है सूतियापे का????

अब देख लो बॉयफ्रेंड से बात करेंगी और बॉयफ्रेंड ने अगर गलती से बता दिया कि वो खाना खा रहा है तो bc शुरू इनका सूतियापा……”बाबू मुझे भी खिलाओ”…..अब bc बाबू के कोनसे बाप ने फोन से खाना भेजने की स्पीड पोस्ट सुविधा खोली है???
लेकिन नही इसी बात पे bc झगड़ा कर लेगी और 2 दिन तक बात बंद……और bc लड़का उस वक़्त को कोस रहा होता है जब उसने इसे प्रपोस किआ होता है

अजीब बात है टेलीफोन का अविष्कार तो एक आदमी ने किआ था पर ये काम इन देशी हॉट बेब्स टाइप लड़कियो के ही आता है और ये इसका मिसयूज़ कैसे करती है उसकी एक “करुण झांकी”देखो-

हद तो तब हो जाती है जब रात में 3 बजे ये बॉयफ्रेंड को फोन करती है और बोलती है की इन्होंने गन्दा सपना देखा है और थोडा रोने के “ड्रामे” के साथ बताएंगी डर लग रहा है।

अब “मजबूरी में” लड़के को पूंछना होता है क्या हुआ बेबी क्या सपना देख लिआ????(वैसे ये पूंछ के लड़के ने आ बैल मुझे मार वाली कहावत चरितार्थ कर ली होती है जो उसे बाद में पता चलता है)

अब ये बताएंगी कि “बाबू मेने देखा कि पड़ोस के राजू ने मुझे किडनैप कर लिआ और मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की”

अब लड़का इसे मजाक में लेके पूंछता है कि बेबी तुमने मारा नही उसे??? अब लड़की गुस्सा होगी तो लड़का कह देगा बेबी ये एक सपना ही तो था।

अब यहीं से इनका सूतियापा अपने असली रौद्र रूप में आता है और शुरू हो जायेगी ” अच्छा अगर ये असली में भी मेरे साथ होगा तब भी तुम्हे कोई फर्क नही पड़ने वाला….कोई मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा और तुम इस बात को लेके इतने कूल हो(अब साला ये चाहती क्या है कि लड़का जाके राजू को मारे क्योकि उसने सपने में उसने लड़के की gf को छेड़ा????)

जैसे हरी अनंत हरी कथा अनंता है वैसे ही हॉट बेब्स की कथा भी अनंत है……तो आज के लिए इतना ही…….

मिसकॉल का इतिहास और उत्पत्ति – आशीष मिश्र

मिसकॉल है क्या ?

फोन पर कुछ सेकण्ड बजकर आपके फोन छूने से पहले ही कट जाने वाले कॉल को मिसकॉल कहते हैं।

मिसकॉल की उत्पत्ति कैसे हुई?

इसकी उत्पत्ति को लेकर अनुसंधानकर्ताओं और इतिहासकारों में काफी मतभेद हैं,कुछ लोग इसे किसी कंजूस के दिमाग की उपज बताते हैं तो कुछ लोगों के अनुसार बीसवीं सदी के आखिरी वर्षों में कैलिफोर्निया के किसी उपवन में एक व्यापारी के हाथ से फोन छूटकर गिरकर आधे में कट जाने के कारण इसकी उत्पत्ति हुई। भारतीय इतिहासकारों की माने तो सिन्धुघाटी सभ्यता से जुड़ी खुदाई के दौरान लोथल में उन्हें मर्तबान में बंद एक कबूतर के अस्थिपंजर के साथ कोरा ताम्रपत्र मिला है,जिसे पहला मिसकॉल माना जा सकता है ।

मिसकॉल कितने प्रकार के होते हैं?

कई बार कॉल सिर्फ इसलिए मिस्ड हो जाती है क्योंकि आप अपने मोबाइल फोन के समीप उपस्थित नहीं होते,ऐसे में पूरे समय बजकर छूटने वाली कॉल को ‘स्वाभाविक मिसकॉल’ कहते हैं।
कई बार ऑफिस,मीटिंग,कार या गर्लफ्रेण्ड की निगरानी में होने के कारण आप चाहते हुए भी फोन नहीं उठा पाते इसे ‘परिस्थितिजन्य मिसकॉल’ कहते हैं।
लेकिन अक्सर योजनाबद्ध तरीके से सेकण्ड के लघुतम अंतराल का ध्यान और अनुमान लगाकर उठाने के पहले काटे गए कॉल को ‘इरादतन मिसकॉल’ कहते हैं।

मिसकॉल करता कौन है?

मिसकॉल कोई भी कर सकता है,आपकी गर्लफ्रेण्ड,पडोसी,रिश्तेदार,मिर्जापुर वाली बुआ का बेटा,ऑफिस का सहकर्मी,मकानमालिक कोई भी,किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता,हो सकता है आप जिस पर सबसे ज्यादा विश्वास करते हों वो भी आपके साथ विश्वासघात कर जाए और आपको मिसकॉल कर दे।

कोई मिसकॉल करता ही क्यों है?

कई कारण है,कुछ लोग देश और समाज को काफी कुछ देना चाहते हैं पर सिर्फ मिसकॉल दे पाते हैं,कुछ लोग मजबूरी में मिसकॉल करते हैं क्योंकि उनके फोन में बैलेंस ही इतना बचता है कि वो बस मिसकॉल कर पाते हैं। कुछ लोग मोबाइल में बैलेंस डलवाकर सामने वाले को फोन करना पैसे की बर्बादी मानते हैं तो कुछ लोग कंजूसी के चलते मिसकॉल करते हैं । कई बार मिसकॉल लोगों के मूड के हिसाब से आते हैं,अगर फोन पर की जाने वाली बात से आपका भला होने वाला है तो आपको मिसकॉल किया जाता है वर्ना कॉल। कुछ लोग हिचकिचाहट की वजह से मिसकॉल करते हैं,कि कहीं आप व्यस्त हों और फोन की वजह से आपका जरुरी काम न छूट जाए,मिसकॉल देख आप समय मिलने पर कॉल कर लेंगे ।
कुछ लोग मितव्ययी होते हैं पर कंजूस नहीं इसलिए वो मिसकॉल करके पहले आपको सतर्क करते हैं जब आप अपने सारे काम छोड़कर फोन तक आते हैं वो कॉल कर देते हैं,कुछ लोग हीनभावना से दबे होते हैं,उन्हें लगता है कि अगर वो आपको अपने खर्चे पर कॉल करेंगे तो ये आपका अपमान होगा ।
और सबसे अंत में वो मिसकॉल जो अधिकारपूर्वक की जाती हैं,ऐसी कॉल अक्सर बीवियों और गर्लफ्रेण्ड की ओर से आती हैं,ऐसी कॉल आने पर उसके मिस होने से पहले कट कर वापिस लगाना होता है ।

मिसकॉल का साहित्य में क्या योगदान रहा है?

मिसकॉल किताबों और मोबाइल की कॉललॉग से निकल म्यूजिक गैलरी तक पहुँच गया है,भोजपुरी गानों की अमृतवर्षा के बीच आप ‘मिसकॉल मार रही हो चुम्बन की अभिलाषी हो,का हो?’ भावार्थ वाले गीत सुन सकते हैं,हालांकि बिहार पुलिस के नए नियम के बाद कि महिलाओं को मिसकॉल करने पर जेल भी हो सकती है इसके निहितार्थ बदल गए हैं।
बॉलीवुड में भी इसे हाथों-हाथ स्वीकार किया गया है, यहाँ तक कि परम पूजनीय ‘भाई’ सलमान खान ने खुद बेल्ट हिला-हिलाकर संकेत किया है ‘बालिकाएं पटाएंगे हम मिसकॉल से,तेरे चित्र को हृदय से मित्र चस्पा कर लेंगे फेविकॉल से ’।

मिसकॉल से निज़ात कैसे पाएं?

मिसकॉल लाइलाज़ है,बचाव ही उपचार है। मिसकॉल से बचने जाएंगे तो कई जरुरी कॉल्स छूट जाएंगी,अपना दिल बड़ा कीजिये और जेब ढ़ीली,रोज सुबह योग कीजिये एकाग्रता बढाइये,यू-ट्यूब पर जोंटी रोड्स और कैफ के कैचेज देखकर अपना रिएक्शन टाइम बढाइये,कॉल्स को मिस होने के पहले ही उठाइए,और अगर सफल न हो सके और आपका कोई काम न अटक रहा हो तो कॉल करने की बजाय खुद ही मिसकॉल करना शुरू कर दीजिये

-आशीष मिश्रा (कटाक्ष)

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मोहल्ले की छत पर लड़कियां नही दिखतीं… – आशीष मिश्र

आजकल लड़का रिलेशनशिप में है या नही उसके मोबाइल पर पैटर्न लॉक देखकर जाना जा सकता है,लेकिन कुछ साल पहले ऐसा नही था रिलेशनशिप विरलों का होता था और मोबाइल टाटा-बिडलों का। लेकिन तब भी लड़कों का चक्कर चल रहा है या नही ये पता करना कठिन काम न था लड़के की नजर अगर खिड़की पर टिकी होती तो कमिटेड और छत पर जमी हो तो सिंगल।

फ़ूड प्रोसेसिंग का जमाना न था छत पर घर भर की औरतें अचार-पापड़-बड़ियाँ बनाती दिखतीं,लेकिन असल रंगत लड़कियों से रहती,नहाकर बाल सुखाती लड़कियाँ,कपड़े सुखाती लड़कियां,कभी-कभी रस्सी कूदती लड़कियां,छुपाकर सरस सलिल और सुमन सौरभ पढ़ती लड़कियां,सहेली भी आती तो उसे छत पर लेकर भागती लड़कियां।
सहेलियों से सारी लगाईं-बुझाई और छुपाई हुई बातें छत पर ही होती।

इधर की छत पर अगर इन्ट्रेस्ट भी जगता तो छत पर एक गमला रख पानी डालने के बहाने आतीं,हर शाम छत पर गुजरती और बहाना ये कि सामने के मैदान पर खेलते छोटे भाई पर नजर रखनी है,बेचारे लड़कों का भी मन लगा रहता,अस्सी रूपए वाला वीडियोगेम भी लाते तो छत पर चमकाते,उधारी का वाकमैन सारा मोहल्ला देख डालता,पाँच दिन का टेस्ट मैच छत पर रेडियो रख सुन डालते,सामने से जब ध्यान देना कम हो जाता तो उछल-उछलकर इनस्विंगर डालने का उपक्रम करते,लड़के ऑपटिमिस्टिक होते थे सोचते कि ग्लेन मैक्ग्राथ सी इस अदा पर लड़कियां मर मिटेंगी,रात सपनों में उनके रनअप को याद कर आहेँ भरेंगी।

वक़्त गुजरा और छत पर सिर्फ डिश कनेक्शन की छतरियों का साम्राज्य हो गया,छत पर गमले नही दिखते,बालकनी में शिफ्ट हो गए,गौरैया नही दिखती और कौए नही दिखते,छठे-छ्मासे घरवालों की जासूसी से बचती लड़कियां भी दिख जाएं तो कान में ब्लूटूथ लगा होता है और हवा में बातें करती हैं,सहेलियों को अब छत पर नही लातीं,whatsapp पर जो बतिया लेती हैं,आप उनकी नजरों के गिरने पर मर-मिट भी नही सकते,नजरें मोबाइल स्क्रीन से हटती ही नही हैं और आप इन्तजार करते रह जाते हैं कि कब फिर वो इक नजर डाले और आप अगली नजर के इन्तजार में चाँद निकलते तक मच्छरों से पैर नुचवाते खड़े रहे

-आशीष मिश्रा (कटाक्ष)

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हम 90 के दशक में पैदा हुए ठलुए है जनाब

हम 90 के दशक में पैदा हुवे हैं ज़नाब…हमने दुनिया को बदलते हुवे देखकर दुनियादारी सीखा है.. और सिर्फ़
सीखा ही नहीं बल्कि जिया है उसको।

हम जब पैदा हो रहे थे तब देश में मंदिरों और मस्जिदों की लङाई चल रही थी… तेल के चक्कर में अमेरिका खाङियों का तेल पेर रहा था।

हमने बैटरी से ब्लैक एंड वाइट टीवी चलाकर जय श्री कृष्णा ॐ नमः शिवाय जय हनुमान जय गंगा मैया रामायण महाभारत देखि है और आप कहते हो आजकल की जनरेशन को धर्मं संस्कारों में रूचि नहीं है

प्राइमरी में जब हमारी पीठ पर हमसे ज्यादा भारी बस्ता टांग दिया जाता था खुद का बोझ उठाना तो हमने तब ही सीख लिया था

जूनियर हाई स्कूल तक आते आते ये दुनिया भारत में
“गठबंधन धर्म” निभाती पहली गैर-कांग्रेसी सरकार को कार्यकाल पूरा करते देख रही थी.. और संयुक्त राष्ट्र हिंदी में पहला अभिभाषण सुन रहा था … मज़हबी लड़ाइयाँ और उनकी भेंट चढ़ती स्त्रियाँ हमने देखी.. हमे आप इतना ही बता दीजिये मज़हबो की लड़ाइयो की भेंट स्त्रिया क्यों चढ़ी

बीएसएनएल के डिब्बे की ट्रिंग ट्रिंग से लेकर पैनासोनिक और मोटोरोला का वो “वायरलेस” नोकिया का “बहुउद्देशीय फ़ोन” रिलायंस की “प्रेमी प्रेमिका निशुल्क संवाद योजना” और फिर जावा सिम्बियन विंडोज के बाद एंड्राइड और ios,,, बीएसएनएल सिम लेने के लिए दो दो महीने इंतजार करते थे हम
और अब “दिन भर फ़ोन में घुसा रहता है इ फ़ोन को तो तोड़ के फेंक देना चाहिए” जैसे डायलोग जैसे हर माँ के कॉपीराईट हो गये है….
आप भूले तो नहीं हमने ही अन्ना बाबा और दामिनी आन्दोलन खड़ा किया था … हमारी ही जनरेशन के इन 18-20 साल के लोंडो ने मजाक मजाक में भारत के इतिहास में पहली बार किसी पार्टी को बहुमत दिला दिया.. और वर्षो से चली आ रही माँ बेटे बहु की परम्परा को झटके में रसातल में पहुंचा दिया

हम चिट्ठियों से लेकर sms फेसबुक और whatsapp तक आ गये है फिर भी हमारी जनरेशन को सामाजिक नहीं माना

देखा हमने… आतंकियों के आगे घुटने टेकती सरकारों को
देखा हमने …तमाम ए.राजाओं और कलमाडियों को विशेषण और गाली बनते
देखा हमने… किशोर कुमार को तबाह करता हनी सिंह
देखा हमने… केजरीवाल की नौटंकी
देखा हमने…मोदियापा बीमारी
देखा हमने… बिकते पत्रकार और उनको पङती हमारी विशुद्ध गालियाँ
देखा हमने… सीमा पे सैनिको के कटते सर
देखा हमने… भूख से और मिड डे मील खाकर मरते बच्चे
देखा हमने… पेड़ पे लटकी लाशों को
देखा हमने.. हर रोज़ लुटती किसी की आबरू
देखा हमने… आरक्षण की जंजीरों में जकड़ा छात्र
देखा हमने… आत्महत्या करता किसान और छुआछूत का दंश झेलता इंसान

और आप हैं कि बोल दिए हमारी जेनरेशने सठियाई हुई है हमने अभी कुछ देखा ही क्या है
तो आप ही बताओ सदियो से सब कुछ देखने के बाद आपने कौन से झंडे गाड़ दिए..
बाक़ी…फ़िर से कहे देता हूँ…हमने सिर्फ़ देखा ही नहीं बल्कि जिया है इन तमाम चीज़ों को। अब जेनरेशन गैप का रोना रोते हुवे ये फ़िकरा न कसिएगा.. 26 इंच कमर वाले ये आजकल के लौंडे…

दिन भर कैंडी क्रश की रिक्वेस्ट भेजने वाले कुछ अपवादों को एक चश्मे से देखकर पूरी जनरेशन पर ठीकरा मत फोडिये जनाब ——by @UC Browser

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ठलुआ शायरी

जबरजस्त फाडू:
.
Arj kiya Hai —->
.
1) महबूबा के प्यार में
मर गया पीटर ,
हीरो हौंडा स्प्लेंडर
80km/ प्रति लीटर
.
2) न जान न पहचान ,
तू मेरा मेहमान ,
एंड द अवार्ड गोज
टूA.R.Rehman.
.
3) किसीको ना थी ,
मेरे प्यार की खबर ,
डायग्राम गलत
हो गया , रबर दे रबर
.
4) तेरी अदाओ पे मैं
वारी वारी। ..
डायल १३९ फॉर रेलवे
Enqury.
.
5) अपने गमो को बस
दिल में दबा लो
नया गोदरेज पाउडर
हेयर डाई ,बस
काटो घोलो और
लगा लो
.
6) यूँ खामोश रह कर
तडपाओगी कब तक ?
कैमरामैन प्रफ्फुल के
साथ
दीपकचौरसिया , आज
तक !
.
7) महंगाई के इस दौर
में करना पड़ता है
अपने खर्चे पर
काबू ,
एक चुटकी सिन्दूर
की कीमत
तुमक्या जानो रमेश
बाबु ?
.
8) मैं हूँ येहाँ , तू है
वहां …
LIFEBOY है जहाँ ,
तंदुरुस्ती है वहां !
.
9) ब्लड डोनेट करने से
पहले
हमेशा उसका Group
जांचना …
बसंती इन कुत्तो के
सामने कभी मत
नाचना !
.
10) नाच मेरी बुलबुल
नाच , तुझे
पैसा मिलेगा !
हम CID से है , कोई
अपनी जगह से
नहीं हिलेगा !
.
11) खुनी ने
दिखाया बुढ़िया को चाक़ू ,
अरे क्या हुआ आनंदी के
बापू ?
.
12) कितनी बोरिंग
मूवी है आमिर
की तलाश …
दया वोह देखो , एक
और लाश !😂👍

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जानिये “देशी डिश” बाटी की महिमा

बाटी खाने के नियम:-
(1) बाटी जीन्स पेन्ट पहन कर नही खानी चाहिए
। बैठने में तकलीफ होती है,बाटी कम भाती है।
(2) बाटी खाते वक्त मोबाइल का स्विच ऑफ
रखे। बात करने से पेट में हवा जाती हैं ।जिससे एक
बाटी कम खाई जाती हैं ।
(4)बाटी खाते वक्त सुई गिरने जितनी भी आवाज
नही आनी चाहिए। खाते वक्त कोई
बच्चा आवाज करे तो उसे भी लप्पड़ मेल
देनी चाहिए बगैर रहम करे।
(6) बाटी खाते वकत पंखा पास में
होना चाहिए।
(7) बाटी खाते वक्त घी की बाल्टी फुल
होनी चाहिएl जितना घी जाएगा बाटी के
साथ, उतनी तरावट रहेगी और कुम्भकर्ण के जैसे नींद
आएगी एक दम टेंशन फ्री।
(8)बाटी खाने के बाद कमाना जरूरी नही है।
(9) बाटी खाने के बाद मिथुन
चक्रवर्ती की पिक्चर नही देखनी चाहिए उससे
माथा खराब रहता हैं ,खोपड़ी घनचक्कर
हो जाती है।

बाटी की महिमा:-
सोमवार हो या रविवार रोज खाओ
बाटी दाल।
जिस दिन घर पे बाटी बनती हैं उस दिन घर में
खुशी का माहौल रहता हैं। बच्चे
भी सभी काम पे लग जाते हैं कोई कांदा काटने
लग जाता हैं कोई चटनी घाेटता हैं । कोई
कड़ी पत्ता लेने चला जाता हैं ।
कोई अपने आप को दाल बनाने का उस्ताद
जता कर दाल की वाट लगाता है।
बाटी खाने के बाद दाल बाटी और लड्डू
की तारीफ़ करने से पुण्य मिलता है और अनेकानेक
जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं।
कहीं कहीं तो बाटी की धूप भी लगाते हैं। पांच
पकवान की तरह मानते हैं। बाटी खाने के बाद
आदमी को ऐसा लगता हैं की मेरे उपर कोई
कर्जा नही हैं ।
बामण गुरु के अनुसार बाटी खाने का दिन
रविवार सही हैं।
लगातार सात दिन तक बाटी खाने से
गंगा जी के घाट पर हज़ार बामणाे का लंगर कराने
और सौ गायो का दान करने बराबर पुन्य लगता हैं

“पिज़ा बर्गर छोड़ो, देसी खाना खाओ

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शोले के डायलाग संस्कृत में सुनिए !

१…….बसंती इन कुत्तोंके सामने मत नाचना
.
|| हे बसन्ति एतेषां श्वानानाम् पुरत: मा नृत्य||
.
.
२…….अरे ओ सांबा, कितना इनाम रखे हैं सरकार हम पर?
.
||हे साम्बा, सर्वकारेण कति पारितोषिकानि अस्माकं कृते उद्घोषितानि?
.
.
३…….चल धन्नो आज तेरी बसंती की इज्जत का सवाल है
.
||धन्नो, (चलतु वा) धावतु अद्य तव बसन्त्य: लज्जाया: प्रश्न: अस्ति |
.
४…….जो डर गया समझो मर गया
.
|| य भीत:भवेत् स:मृत:एव मन्य ||
.
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५…….आधे इधर जाओ, आधे उधर जाओ और बाकी हमारे पीछे आओ
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|| केचन पुरुषा:अत्र गच्छन्तु केचन पुरुषा: तत्र गच्छन्तु शेषा:पुरुषा:मया सह आगच्छतु||
.
.
६……सरदार, मैने आपका नमक खाया है
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||हे प्रधानपुरुष: मया तव लवणम् खाद्यते ||
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७…….अब गोली खा.
.
||अधुना गोलीम् खाद ||
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८…….सुअर के बच्चो…
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||हे सुकराणां अपत्यानि…..||
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९…….तेरा क्या होगा कालिया…|
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हे कालिया तव किं भवेत् ?
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१०……ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर
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॥ ठाकुर, यच्छतु मह्यं तव करौ ||
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११……हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर है|
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||अहं आंग्लपुरुषाणाम् समयस्य कारानिरीक्षक: अस्ति ||
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१२….. तुम्हारा नाम क्या है बसंती?
.
||बसन्ति किं तव नामधेयम् ?
.
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१३……होली कब है, कब है होली..?
.
||कदा होलिकोस्तव: कदा होलिकोस्तव:?…..

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