मेरा भारत

एक पिता अपने बेटे को भारत की गरीबी दिखाने के लिये एक गाँव मेँ ले गया.

ग्राम भ्रमण के बाद पिता ने गरीबोँ के बारे मेँ पूँछा —

बेटा बोला : हमारे पास एक कुत्ता है और ग्रामीणोँ के पास चार – चार. हमारे पास छोटा सा स्वीमिँग पूल है और उनके पास लम्बी नदी.

हमारे पास बल्ब ट्रयूबलाईट है और उनके पास सितारे.

हमारे पास जमीन का एक छोटा सा टूकड़ा है और उनके पास बड़ा.

हम खुद अपना काम नहीँ कर पाते, हमारे पास काम करने के लिये नौकर हैँ और वो अपना काम भी करते है, दूसरोँ का भी.

हम अन्न खाते हैँ और वो उगाते हैँ.

हमारे पास सुरक्षा के लिये मकान है और उनके पास मित्र.

पिता निरुत्तर था.

तब बेटा बोला :”हम कितने गरीब हैँ, ये दिखाने के लिये धन्यवाद पापा”

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जापानी-हमारा सोना पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है.

अमेरिकन- हमारे हीरे पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है.

चीनी (Chinese)-हमारा ­ खाना पूरी दुनिया मे प्रसिद्ध है.

तुम्हारे भारत मे क्या है?

भारतीय-हमारे पास सोना तो नही है, पर सोने जैसा दिल है,

हमारे पास हीरे तो नही है, पर हीरे जैसी Unity है,

हमारे पास खाना तो नही, पर एक महीने तक अनशन करके देश के लिए जान देने वाले लोग है.

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एक लड़के को सेल्समेन के इंटरव्यू में इसलिए बाहर कर दिया गया क्योंकि उसे अंग्रेजी नहीं आती थी। लड़के को अपने आप पर पूरा भरोसा था । उसने मैनेजर से कहा कि आपको अंग्रेजी से क्या मतलब ? यदि मैं अंग्रेजी वालों से ज्यादाबिक्री न करके दिखा दूं तो मुझे तनख्वाह मत दीजिएगा।
मैनेजर को उस लड़के बात जम गई। उसे नौकरी पर रख लिया गया। फिर क्या था, अगले दिन से ही दुकान की बिक्री पहले से ज्यादा बढ़ गई। एक ही सप्ताह के अंदर लड़के ने तीन गुना ज्यादा माल बेचकर दिखाया। स्टोर के मालिक को जब पता चला कि एक नए सेल्समेन की वजह से बिक्री इतनी ज्यादा बढ़ गई है तो वह खुद को रोक न सका । फौरन उस लड़के से मिलने के लिए स्टोर पर पहुंचा। लड़का उस वक्त एक ग्राहक को मछली पकड़ने का कांटा बेच रहा था। मालिक थोड़ी दूर पर खड़ा होकर देखने लगा। लड़के ने कांटा बेच दिया। ग्राहक ने कीमत पूछी। लड़के ने कहा – 800 रु. । यह कहकर लड़के ने ग्राहक के जूतों की ओर देखा और
बोला – सर, इतने मंहगे जूते पहनकर मछली पकड़ने जाएंगे क्या ? खराब हो जाएंगे। एक काम कीजिए, एक जोड़ी सस्ते जूते और ले लीजिए।
… ग्राहक ने जूते भी खरीद लिए। अब लड़का बोला – तालाब किनारे धूप में बैठना पड़ेगा। एक टोपी भी ले लीजिए। ग्राहक ने टोपी भी खरीद ली। अब
लड़का बोला – मछली पकड़ने में पता नहीं कितना समय लगेगा। कुछ खाने पीने का सामान भी साथ ले जाएंगे तो बेहतर होगा। ग्राहक ने बिस्किट, नमकीन, पानी की बोतलें भी खरीद लीं।
अब लड़का बोला – मछली पकड़ लेंगे तो घर कैसे लाएंगे। एक बॉस्केट भी खरीद लीजिए। ग्राहक ने वह भी खरीद ली। कुल 2500 रु. का सामान लेकर ग्राहक चलता बना। मालिक यह नजारा देखकर बहुत खुश हुआ ।
उसने लड़के को बुलाया और कहा – तुम तो कमाल के आदमी हो यार ! जो आदमी केवल मछली पकड़ने का कांटा खरीदने आया था उसे इतना सारा सामान बेच दिया ?
लड़का बोला – कांटा खरीदने ? अरे वह आदमी तो केयर फ्री सेनिटरी पैक खरीदने आया था । मैंने उससे कहा अब चार दिन तू घर में बैठा बैठा क्या करेगा । जा के मछली पकड़ ..

एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है

एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था, एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी.
उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा.
दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उसने पानी का एक गिलास पान…ी माँगा.
लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया.
” कितने पैसे दूं?” लड़के ने पूछा.
” पैसे किस बात के?” लड़की ने जवाव में कहा.” माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए.”
” तो फिर मैं आपको दिल से धन्यबाद देता हूँ.”
जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकी थी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था.

सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी. लोकल डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया. विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्वे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी. वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा.

उसकी मेहनत और लगन रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी. डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया. उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया.
लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगी. फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पेन से लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखा था,” एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है.” नीचे डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे.

ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू टपक पड़े उसने ऊपर कि ओर दोनों हाथ उठा कर कहा,” हे भगवान! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है.”

प्यार बाँटिये नफरत कहाँ तक ढ़ो पायेंगे

एक लड़का और लड़की शादी के पहले आपस में बहुत प्यार करते थे।
थोड़ी नोक झोक उनमें होती रहती थी।
फिर प्यार से मान जाते थे वे। शादी के बाद तो उनमें हर छोटी- मोटी बात को लेकर नोक- झोक होती थी।
कई कई दिन तक उनमें बातचीत बन्द रहती थी
आज दोनो की सालगिरह थी।लेकिन लड़की ने जानबूझ कर नहीं बताया।
वो देखना चाहती थी की उसके पति को याद है की नहीं।
पर आज पति सुबह ही उठा और नहा धो कर जल्दी ही बाहर चला गया।
बिवी रुआँसी हो गई थोड़ी देर बाद दरवाजे पर घण्टी बजी,वो दरवाजा खोली देखा पति गुलदस्ते और उपहारो के साथ
एनिवर्सरि सरप्राईज लाया था।
उसने उपहार लेकर पति को गले से लगा लिया फिर पति घर के अन्दर चला गया
तभी बिवी के मोबाईल पे पुलिस वाले का कॉल आया की,
उसके पति की लाश मिलि है। उसके पति का एक्सिडेंट हो चूका है
वो सोचने लगी की उसका पति अभी तो गिफ्ट देकर अन्दर ही गया है
फिर उसे वो बात याद आ गई जो उसने सुना था की मरने के बाद अन्तिम इच्छा पूरी करने के लिये इंसान की आत्मा एक बार आती है।
वो दहाड़ मार के रोते हुये कमरे में गई। सच में उसका पति वहाँ पर नहीँ था
वो रोने लगी उसे अपने किये गये सारे नोक झोंक याद आने लगे वो चिल्लाने लगी प्लीज कमबैक,प्लीज कमबैक। मैं कभी नहीं लड़ुँगी
तभी बाथरूम से उसका पति निकला और रोने का कारण पूछा
बिवी उसके सीने से लिपट गई और रोने लगी फिर सारी बात बताई
तब पति ने बताया की आज सुबह उसका पर्स चोरी हो गया था

ऐसे ही जिन्दगी में कई अहम रिश्ते और दोस्ती होते है, जिनका महत्व हमें तब समझ आता है।जब वो नहीं होते।
प्यार बाँटिये नफरत कहाँ तक ढ़ो पायेंगे
रिश्तो की अहमियत को समझिये

5 वचन

एक व्यक्ति बहुत ही परेसान रहता था उसके पास कोई काम नही था उस के घर में रोज लड़ाई झगड़े होते थे क्यों की वो कोइ काम नही करता था ।एक दिन उस की पत्नी ने उससे कहा की तुम कोई काम धंधा क्यों नही करते घर खर्च कैसे चलेगा तो उसने कहा की हमे कोई काम देता नही और धंधा करने के लिए हमारे पास कुछ रुपय भीं नही है मै क्या करू तो उसकी पत्नी के पास कुछ रुपय पड़े थे तो उसने कहा की ये 50 रुपय लेकर जाओ कुछ छोटा सा काम सुरु करो वह निकला काम की तलाश में पर इतने काम रुपय में कोई ढंग काम नही मिला तो उस ने सोचा कीकाम नही मिला तो घर नही जायेगे शाम हो गई पर काम नही मिला। एक जगह संत के बचनबिक रहे थे उसने सोचा इस 50 था जो बात सब मिल कर कहे उसे मान लेनी चाहिए तो उस ने सोचा ये बात तो सच है ।फिर उसने 10 रुपय का एक बचन और खरीदा जिसमे लिखा था की स्त्रियों को पूरा सच नही बताना चाहिए ।उस ने कहा की ये बात भी सच है क्यों की स्त्रियों के मन में कोई बात पचती नही है वे हर बात को एक दूसरे से शेयर जरुर करती है तो चाहे करनेवाली हो या न हो इससे कभी कभी मुशीबत में भी फस जाती है ।फिर उस ने 10 रुपय का एक बचन और खरीदा जिसमे लिखा था की आपने राज्य के राजा से कभी भी झूठ नही बोलना चाहिए क्यों वो हमारा पालन हार है उस ने खा ये भी सही है फिर उसने 1010रूपये में दो बचन औरखरीद लिए जिसमे एक बचन था किसी की बुरे न देखो अगर दिख जाये तो उसे अँधेरे में देखि हुई बस्तु की तरह भूलजाओ और आखिरी बचन की कितना भी जरूरी काम हो रस्ते में अगर खी भी सत्संग या भगवत चर्चा हो रही हो तो उसमें दो मिनट जरुर बैठना चाहिए । अब उस के सारे रुपय खत्म हो गये उस ने सोचा की हम घर तो जा नही सकते इस लिए जंगल में चल दिया उधर जंगल कुछ आदमी हत्या करकेलाश को ठिकाने लगाने की सोंच रहे थे जैसे ही इस व्यक्ती को देख और आदमी उसके पीछे पड़ गये खा इस लाश को ठिकाने लगाओ नही तो तुम्हे मार देगे इस समय उसे पहला बचन याद आया की अगर सब मिल करकोई काम कहे तो उसे कर देना चाहिए तो उसने गड्ढा खोद कर उसे गाड़ने की तैयारी करने लगा जैसे ही उसने लाश की गड्ढे में डालने के लिए उठाया उस के कमर में धन की पोटली भी थी उसने उस को खोला और लाश को द्बदिया जब वापिस आया तो वे सब जा चुके थे तो वो घर लौटा उस ने अपनी पत्नी को उस के दिए हुए पैसों के साथ औरसोने चाँदी सिक्के दिए तो उसने पूछा की ये सिक्केकहा से आये तो उसे दूसरा बचन याद आया की स्र्तियों से कभी भी पूरा सच नही बोलना चाहिए तो तो उस ने कहा की हम बहुत परेसान थे शामतक कोई काम नही मिला तो हमने एक पहाड़ से सर टकराया की मै मर जाऊं तो जयसे हीसर टकराया तो उसमे सिक्के गिरने लगे और मै ले आया ये बात उस की पत्नी ने आपनी पड़ोसन को बता दिया तो उस की पत्नी भी आप ने अति के पीछे पड़ गयी की तुम भी वैसा करो तुम्हे भी धन मिले गा परोसी भी गया पर पर उस के साथ वैसा कुछनही हुआ तो उस ने राजा से सिकायत क्र दी तो उसने तीसरा बचन लगा कर राजाको सारी सच्चाई बता दी राजा ने सच्चाई जान कर उसेका विस्वास किया और उसे नौकरी पर रख लिया उसे रात की चौकीदारीनौकरी दी एक बार राजा कही बाहर गया चौकी दार रात की पहरेदारी कर रहा था उसने रात में रानी को किसी दुसरे व्यक्ति के साथ देखा तो उसे चौथा बचन याद आया तो उसने उसके उपर अपना साल दाल दिया तो रानी चौक गयी तो रानीने सोचा की हम पहरे दार को मरवा देते है क्योकि ये राजा को सब बात बता देगा तो राजा हमे दंड देगे और महल से निकल देगे । फिर एक जल्लाद के पास जाकर कहा की हम कल आप के पास दो आदमी भेजेगे तुमपहले आदमी का सर काट कर दुसरे वाले को दे देना जल्लाद ने कहा ठीक है फिर रानी ने पहरेदार से खा की तुम हमारा काम दो । महल के बाहर नदी के किनारे एकआड़ मी मिलेगा वो तुम्हे कुछ देगा उसे लाना ।पहरेदार ने कहा की ठीक है । फिर उसने पीछे से आपने भाई को भेजा की जल्लाद के पास जाकर उसका सर ले आये ।दुसरे दिन पहरेदार निकला नदी किनारे पहुचने वलता की कुछ दूर पहले वहाँ भगवत चर्चा (सत्संग )हो रही थी तो उसे पाँचवा बचन याद आया तो वो थोड़ी देर के लिया वहाँ रुक गया वहाँ उसे आनन्द आनेलगा तो देर हो गई इतने रानी का भाई पहले पहुँच चूका था उसने जयसे ही रानीका परिचय दिया की रानी ने भेजा है जल्लाद ने पहला आदमी समझकर उसका सर काट लिया इधर देर होजाने के कारण पहरेदार देर से पहुँचा तो जयसे ही रानी का परिचय दिया जल्लाद ने दूसरा आदमी समझकर उसे ने ढकी हुई थाली उसे पकड़ा दी रानी इंतजार कर रही थी कितनी जल्दी उसका भी सर लेके आये रानी ने दूर से देखा की पहरेदार के थाली देखि तो वो चीख पड़ी और रोने लगी तब तक राजा आ गये तो रानी ने दुःख के कारण आपनी गलती सुविकार कर ली राजा ने देखा की ये बहुत ही विस्वास पात्र व्यक्ति है जिसमे राज्य और राजा के प्रति इमांदारी है तो ये हमारे राज्य का राजमंत्री बनने योग्य है तो उसे मंत्री का पद दे दिया ।

असाधारण सोच

एक बार कक्षा छठी में चार बालकों को परीक्षा मे समान अंक मिले, अब प्रश्न खडा हुआ कि किसे प्रथम रैंक दिया जाये । स्कूल प्रबन्धन ने तय किया कि प्राचार्य चारों से एक सवाल पूछेंगे, जो बच्चा उसका सबसे सटीक जवाब देगा उसे प्रथम घोषित किया जायेगा । चारों बच्चे हाजिर हुए, प्राचार्य ने सवाल पूछा – दुनिया में सबसे तेज क्या होता है ? पहले बच्चे ने कहा, मुझे लगता है – “विचार” सबसे तेज होता है, क्योंकि दिमाग में कोई भी विचार तेजी से आता है, इससे तेज कोई नहीं । प्राचार्य ने कहा – ठीक है, बिलकुल सही जवाब है । दूसरे बच्चे ने कहा, मुझे लगता है – “पलक झपकना” सबसे तेज होता है, हमें पता भी नहीं चलता और पलकें झपक जाती हैं और अक्सर कहा जाता है, “पलक झपकते” कार्य हो गया । प्राचार्य बोले – बहुत खूब, बच्चे दिमाग लगा रहे हैं । तीसरे बच्चे ने कहा – “बिजली”, क्योंकि मेरे यहाँ गैरेज, जो कि सौ फ़ुट दूर है, में जब बत्ती जलानी होती है, हम घर में एक बटन दबाते हैं, और तत्काल वहाँ रोशनी हो जाती है,तो मुझे लगता है बिजली सबसे तेज होती है…अब बारी आई चौथे बच्चे की । सभी लोग ध्यान से सुन रहे थे, क्योंकि लगभग सभी “तेज” बातों का उल्लेख तीनो बच्चे पहले ही कर चुके थे । चौथे बच्चे ने कहा – सबसे तेज होता है “डायरिया”… सभी चौंके… प्राचार्य ने कहा – साबित करो कैसे ? बच्चा बोला, कल मुझे डायरिया हो गया था, रात के दो बजे की बात है, जब तक कि मैं कुछ “विचार” कर पाता, या “पलक झपकाता” या कि “बिजली” का स्विच दबाता, डायरिया अपना “काम” कर चुका था ।
कहने की जरूरत नहीं कि इस असाधारण सोच वाले बालक को ही प्रथम घोषित किया गया ।

झूठी शान कभी कभी जानलेवा भी होती है…

एक जंगल में पहाड की चोटी पर एक किला बना था। किले के एक कोने के साथ बाहर की ओर एक ऊंचा विशाल देवदार का पेड था। किले में उस राज्य की सेना की एक टुकडी तैनात थी। देवदार के पेड पर एक उल्लू रहता था। वह भोजन की तलाश में नीचे घाटी में फैले ढलवां चरागाहों में आता। चरागाहों की लम्बी घासों व झाडियों में कई छोटे-मोटे जीव व कीट-पतंगे मिलते, जिन्हें उल्लू भोजन बनाता। निकट ही एक बडी झील थी, जिसमें हंसो का निवास था। उल्लू पेड पर बैठा झील को निहारा करता। उसे हंसों का तैरना व उडना मंत्रमुग्ध करता। वह सोचा करता कि कितना शानदार पक्षी हैं हंस। एकदम दूध-सा सफेद, गुलगुला शरीर, सुराहीदार गर्दन, सुंदर मुख व तेजस्वी आंखे। उसकी बडी इच्छा होती किसी हंस से उसकी दोस्ती हो जाए। एक दिन उल्लू पानी पीने के बहाने झील के किनारे उगी एक झाडी पर उतरा। निकट ही एक बहुत शालीन व सौम्य हंस पानी में तैर रहा था। हंस तैरता हुआ झाडी के निकट आया। उल्लू ने बात करने का बहाना ढूंढा “हंस जी, आपकी आज्ञा हो तो पानी पी लूं। बडी प्यास लगी हैं।”हंस ने चौंककर उसे देखा और बोला “मित्र! पानी प्रकॄति द्वारा सबको दिया गया वरदान हैं। एस पर किसी एक का अधिकार नहीं।”उल्लू ने पानी पीया। फिर सिर हिलाया जैसे उसे निराशा हुई हो। हंस ने पूछा “मित्र! असंतुष्टनजर आते हो। क्या प्यास नहीं बुझी?”उल्लू ने कहा “हे हंस! पानी की प्यास तो बुझ गई पर आपकी बतो से मुझे ऐसा लगा कि आप नीति व ज्ञान के सागर हैं। मुझमें उसकी प्यास जग गई हैं। वह कैसे बुझेगी?”हंस मुस्कुराया “मित्र, आप कभी भी यहां आ सकते हैं। हम बातें करेंगे। इस प्रकार मैं जो जानता हूं, वह आपका हो जाएगा और मैं भी आपसे कुछ सीखूंगा।”इसके पश्चात हंस व उल्लू रोज मिलने लगे। एक दिन हंस ने उल्लू को बता दिया कि वह वास्तव में हंसों का राजा हंसराज हैं। अपना असली परिचय देने के बाद। हंस अपने मित्र को निमन्त्रण देकर अपने घर ले गया। शाही ठाठ थे। खाने के लिए कमल व नरगिस के फूलों के व्यंजन परोसे गए और जाने क्या-क्या दुर्लभ खाद्य थे, उल्लू को पता ही नहीं लगा। बाद में सौंफ-इलाइची की जगह मोती पेश किए गए। उल्लू दंग रह गया। अब हंसराज उल्लू को महल में ले जाकर खिलाने-पिलाने लगा। रोज दावत उडती। उसे डर लगने लगा कि किसी दिन साधारण उल्लू समझकर हंसराज दोस्ती न तोड ले। इसलिए स्वयं को कंसराज की बराबरी का बनाए रखने के लिए उसने झूठमूठ कह दिया कि वह भी उल्लूओं का राजा उल्लूक राज हैं। झूठ कहने के बाअद उल्लू को लगा कि उसका भी फर्ज बनता हैं कि हंसराज को अपने घर बुलाए। एक दिन उल्लू ने दुर्ग के भीतर होने वाली गतिविधियों को गौर से देखा और उसके दिमाग में एक युक्ति आई। उसने दुर्ग की बातों को खूब ध्यान से समझा। सैनिकों के कार्यक्रम नोट किए। फिर वह चला हंस के पास। जब वह झील पर पहुंचा, तब हंसराज कुछ हंसनियों के साथ जल में तैर रहा था। उल्लू को देखते ही हंस बोला “मित्र, आप इस समय?”उल्लू ने उत्तर दिया “हां मित्र! मैं आपको आज अपना घर दिखाने व अपना मेहमान बनाने के लिए ले जाने आया हूं। मैं कई बार आपका मेहमान बना हूं। मुझे भी सेवा का मौका दो।”हंस ने टालना चाहा “मित्र, इतनी जल्दी क्या हैं? फिर कभी चलेंगे।”उल्लू ने कहा “आज तो आपको लिए बिना नहीं जाऊंगा।”हंसराज को उल्लू के साथ जाना ही पडा। पहाड की चोटी पर बने किले की ओर इशारा कर उल्लू उडते-उडते बोला “वह मेरा किला हैं।” हंस बडा प्रभावित हुआ। वे दोनों जब उल्लू के आवास वाले पेड पर उतरे तो किले के सैनिकों की परेड शुरु होने वाली थी। दो सैनिक बुर्ज पर बिगुल बजाने लगे। उल्लू दुर्ग के सैनिकों के रिज के कार्यक्रम को याद कर चुका था इसलिए ठीक समय पर हंसराज को ले आया था।उल्लू बोला “देखो मित्र, आपके स्वागत में मेरे सैनिक बिगुल बजा रहे हैं। उसके बाद मेरी सेना परेड और सलामी देकर आपको सम्मानित करेगी।”नित्य की तरह परेड हुई और झंडे को सलामी दी गयी। हंस समझा सचमुच उसी के लिए यह सब हो रहा हैं। अतः हंस ने गदगद होकर कहा “धन्य हो मित्र। आप तो एक शूरवीर राजा की भांति ही राज कर रहे हो।”उल्लू ने हंसराज पर रौब डाला “मैंने अपने सैनिकों को आदेश दिया हैं कि जब तक मेरे परम मित्र राजा हंसराज मेरे अतिथि हैं, तब तक इसी प्रकार रोज बिगुल बजे व सैनिकों की परेड निकले।”उल्लू को पता था कि सैनिकों का यह रोज का काम हैं। दैनिक नियम हैं। हंस को उल्लू ने फल, अखरोट व बनफशा के फूल खिलाए। उनको वह पहले ही जमा कर चुका था। भोजन का महत्व नहीं रह गया। सैनिकों की परेड का जादू अपना काम कर चुका था। हंसराज के दिल में उल्लू मित्र के लिए बहुत सम्मान पैदा हो चुका था। उधर सैनिक टुकडी को वहां से कूच करने के आदेश मिल चुके थे। दूसरे दिन सैनिक अपना सामान समेटकर जाने लगे तो हंस ने कहा “मित्र, देखो आपके सैनिक आपकी आज्ञा लिए बिना कहीं जा रहे हैं। उल्लू हडबडाकर बोला ” किसी ने उन्हें गलत आदेश दिया होगा। मैं अभी रोकता हूं उन्हें।” ऐसा कह वह ‘हूं हूं’ करने लगा। सैनिकों ने उल्लू का घुघुआना सुना व अपशकुन समझकर जाना स्थगित कर दिया। दूसरे दिन फिर वही हुआ। सैनिक जाने लगे तो उल्लू घुघुआया। सैनिकों के नायक ने क्रोधित होकर सैनिकों को मनहूस उल्लू को तीर मारने का आदेश दिया। एक सैनिक ने तीर छोडा। तीर उल्लू की बगल में बैठे हंस को लगा। वह तीर खाकर नीचे गिरा व फडफडाकर मर गया। उल्लू उसकी लाश के पास शोकाकुल हो विलाप करने लगा “हाय, मैंने अपनी झूठी शान के चक्कर में अपना परम मित्र खो दिया। धिक्कार हैं मुझे।”उल्लू को आसपास की खबर से बेसुध होकर रोते देखकर एक सियार उस पर झपटा और उसका काम तमाम कर दिया। सीखः झूठी शान बहुत महंगी पडती हैं। कभी भी झूठी शान के चक्कर में मत पडो।

एक डॉक्टर का कर्तव्य

एक लड़के के आपात आपरेशन के लिए एक फोन के बाद डाक्टर जल्दी जल्दीअस्पताल में प्रवेश करते हैं….उन्होंने­ -­तुरंत अपने कपडे बदल कर सर्जिकल गाउन पहना, ऑपरेशनके लिए खुद को तैयार किया और ऑपरेशन थियेटर की तरफ चल पड़े…हॉल में प्रवेश करते ही उनकी नज़र लड़के की माँ पर जाती है…जो उनका इंतज़ार करती जान पड़ती थी और बहुत व्याकुल भी लग रही थी….
डॉक्टर को देखते ही लड़के की माँ एकदम गुस्से से बोली : आपने आने इतनी देर क्यों कर दी..? आपको पता नहीं है कि मेरे बेटे की हालत बहुत गंभीर है..? आपको अपनी जिम्मेदारी का अहसास है की नहीं..??
डॉक्टर मंद मंद मुस्कुराते हुए कहता है : मैं अपनी गलती के लिए आपसे माफ़ी मांगता हूँ…फोन आया तब मैं अस्पताल में नहीं था,जैसे ही खबर मिली मैं तुरंत अस्पताल केलिए निकल पड़ा..रास्ते में ट्रैफिक ज्यादा होने की वजह से थोड़ी देर हो गयी. अब आप निश्चिन्त रहो मैं आ गया हूँ भ
गवान की मर्ज़ी से सब ठीक हो जाएगा..अब आप विलाप करना छोड़ दो..”
इस पर लड़के की माँ और ज्यादा गुस्से से : विलाप करना छोड़ दूं मतलब..? आपके कहने का मतलब क्या है..? मेरे
बच्चे को कुछ हो गया होता तो.? इसकी जगह आपका बच्चा होता तो आप क्या करते..?? डॉक्टर फिर मंद मंद मुस्कुराते हुए : शांत हो जाओ बहन, जीवन और मरण वो तो भगवान के हाथ में है, मैं तो बस एक मनुष्य हूँ, फिर भी मैं मेरे सेजितना अच्चा प्रयास हो सकेगा वो मैं करूँगा..बाकी आपकी दुआ और भगवान की मर्ज़ी..! क्या अब आप मुझे ऑपरेशन थियेटर में जाने देंगीं.?? डॉक्टर ने फिर नर्स को कुछ सलाह दी और ऑपरेशन रूम में चले गए..
कुछ घंटे बाद डॉक्टर प्रफुल्लित मुस्कान लिए ऑपरेशन रूम से बाहर आकर लड़के की माँ से कहते हैं : भगवान का लाख लाख शुक्र है की आपका लड़का सही सलामत है, अब वो जल्दी से ठीक हो जाएगा और आपको ज्यादा जानकारी मेरा साथी डॉक्टरदे देगा..ऐसा कह कर डॉक्टर तुरंत वहां से चल पड़ते हैं..
लड़के की माँ ने तुरंत नर्स से पुछा : ये डॉक्टर साहब को इतनी जल्दी भी क्या थी.? मेरा लड़का होशमें आ जाता तब तक तो रूक जाते तो क्या बिगड़ जाता उनका..? डॉक्टर तोबहुत घमंडी लगते हैं”
ये सुनकर नर्स की आँखों में आंसू आ गए और कहा :”मैडम ! ये वही डॉक्टर हैं जिनका इकलौता लड़का आपके लड़के की अंधाधुंध ड्राइविंग की चपेट में आकर मारा गया है..उनको पता था की आपके लड़के के कारण ही उनके इकलौते लड़के की जान गयी है फिर भी उन्होंने तुम्हारे लड़के की जान बचाई है…और जल्दी वो इसलिए चले गए क्योंकि वे अपने लड़के की अंतिम क्रिया अधूरी छोड़ कर आ गए थे…

मनुष्य को सदा अपनी पिछली पराजय को याद करना चाहिये – चाणक्य नीति

आचार्य सदा कहते थे कि हमारी सबसे बड़ा गुरू हमारी पिचली पराजय होती है । हम अपनी हार को याद कर बेहतर रणनीति का चयन कर सकते हैँ । अत: अपनी पराजय से हताश होने के बजाए उसे अपना प्रेरणा सत्रोत्र बनाना चाहिए ॥

किसी कार्य की शुरुआत का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षण यही होता है

यह कहानी उस राजा की है जो अपने तीन प्रश्नों के उत्तर खोज रहा था।
तो, एक बार एक राजा के मन में आया कि यदि वह इन तीन प्रश्नों के उत्तर खोज लेगा तो उसे कुछ और जानने की आवश्यकता नहीं रह जायेगी.
पहला प्रश्न: किसी भी कार्य को करने का सबसे उपयुक्त समय कौन सा है?

दूसरा प्रश्न: किन व्यक्तियों के साथ कार्य करना सर्वोचित है?

तीसरा प्रश्न: वह कौन सा कार्य है जो हर समय किया जाना चाहिए?

राजा ने यह घोषणा करवाई कि जो भी व्यक्ति उपरोक्त प्रश्नों के सही उत्तर देगा उसे बड़ा पुरस्कार दिया जाएगा. यह सुनकर बहुत से लोग राजमहल गए और सभी ने अलग-अलग उत्तर दिए. पहले प्रश्न के उत्तर में एक व्यक्ति ने कहा कि राजा को एक समय तालिका बनाना चाहिए और उसमें हर कार्य के लिए एक निश्चित समय नियत कर देना चाहिए तभी हर काम अपने सही समय पर हो पायेगा. दूसरे व्यक्ति ने राजा से कहा कि सभी कार्यों को करने का अग्रिम निर्णय कर लेना उचित नहीं होगा और राजा को चाहिए कि वह मनविलास के सभी कार्यों को तिलांजलि देकर हर कार्य को व्यवस्थित रूप से करने की ओर अपना पूरा ध्यान लगाये.
किसी और ने कहा कि राजा के लिए यह असंभव है कि वह हर कार्य को दूरदर्शिता पूर्वक कर सके. इसलिए राजा को विज्ञजनों की एक समिति का निर्माण करना चाहिए जो हर विषय को परखने के बाद राजा को यह बताये कि उसे कब क्या करना है. फिर किसी और ने यह कहा कि कुछ मामलों में त्वरित निर्णय लेने पड़ते हैं और परामर्श के लिए समय नहीं होता लेकिन ज्योतिषियों और भविष्यवक्ताओं की सहायता से राजा यदि चाहे तो किसी भी घटना का पूर्वानुमान लगा सकता है.
दूसरे प्रश्न के उत्तर के लिए भी कोई सहमति नहीं बनी. एक व्यक्ति ने कहा कि राजा को प्रशासकों में अपना पूरा विश्वास रखना चाहिए. दूसरे ने राजा से पुरोहितों और संन्यासियों में आस्था रखने के लिए कहा. किसी और ने कहा कि चिकित्सकों पर सदैव ही भरोसा रखना चाहिए तो किसी ने योद्धाओं पर विश्वास करने के लिए कहा.
तीसरे प्रश्न के जवाब में भी विविध उत्तर मिले. किसी ने कहा कि विज्ञान का अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण है तो किसी ने धर्मग्रंथों के पारायण को सर्वश्रेष्ठ कहा. किसी और ने कहा कि सैनिक कौशल में निपुणता होना ही सबसे ज़रूरी है.
राजा को इन उत्तरों में से कोई भी ठीक नहीं लगा इसलिए किसी को भी पुरस्कार नहीं दिया गया. कुछ दिन तक चिंतन-मनन करने के बाद राजा ने एक महात्मा के दर्शन का निश्चय किया. वह महात्मा एक पर्वत के ऊपर बनी कुटिया में रहते थे और सभी उन्हें परमज्ञानी मानते थे.
राजा को यह पता चला कि महात्मा पर्वत से नीचे कभी नहीं आते और राजसी व्यक्तियों से नहीं मिलते थे. इसलिए राजा ने साधारण किसान का वेश धारण किया और अपने सेवक से कहा कि वह पर्वत की तलहटी पर लौटने का इंतज़ार करे. फिर राजा महात्मा की कुटिया की ओर चल दिया.

महात्मा की कुटिया तक पहुँचने पर राजा ने देखा कि वे अपनी कुटिया के सामने बने छोटे से बगीचे में फावड़े से खुदाई कर रहे थे. महात्मा ने राजा को देखकर सर हिलाया और खुदाई करते रहे. बगीचे में काम करना उनके लिए वाकई कुछ कठिन था, वे वृद्ध हो चले थे. हांफते हुए वे जमीन पर फावड़ा चला रहे थे.

राजा महात्मा तक पहुंचा और बोला, “मैं आपसे तीन प्रश्नों का उत्तर जानना चाहता हूँ.

पहला: किसी भी कार्य को करने का सबसे अच्छा समय क्या है?

दूसरा: किन व्यक्तियों के साथ कार्य करना सर्वोचित है?

तीसरा: वह कौन सा कार्य है जो हर समय किया जाना चाहिए?

महात्मा ने राजा की बात ध्यान से सुनी और उसके कंधे को थपथपाया और खुदाई करते रहे. राजा ने कहा, “आप थक गए होंगे. लाइए, मैं आपका हाथ बंटा देता हूँ.” महात्मा ने धन्यवाद देकर राजा को फावड़ा दे दिया और एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए बैठ गए.

दो क्यारियाँ खोदने के बाद राजा महात्मा की ओर मुड़ा और उसने फिर से वे तीनों प्रश्न दोहराए. महात्मा ने राजा के प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया और उठते हुए कहा, “अब तुम थोड़ी देर आराम करो और मैं बगीचे में काम करूंगा.” लेकिन राजा ने खुदाई करना जारी रखा. एक घंटा बीत गया, फिर दो घंटे. शाम हो गयी. राजा ने फावड़ा रख दिया और महात्मा से कहा, “मैं यहाँ आपसे तीन प्रश्नों के उत्तर पूछने आया था पर आपने मुझे कुछ नहीं बताया. कृपया मेरी सहायता करें ताकि मैं समय से अपने घर जा सकूं.”

महात्मा ने राजा से कहा, “क्या तुम्हें किसी के दौड़ने की आवाज़ सुनाई दे रही है?”. राजा ने आवाज़ की दिशा में सर घुमाया. दोनों ने पेड़ों के झुरमुट से एक आदमी को उनकी ओर भागते आते देखा. वह अपने पेट में लगे घाव को अपने हाथ से दबाये हुए था. घाव से बहुत खून बह रहा था. वह दोनों के पास आकर धरती पर गिर गया और अचेत हो गया. राजा और महात्मा ने देखा कि उसके पेट में किसी शस्त्र से गहरा वार किया गया था.राजा ने फ़ौरन उसके घाव को साफ़ किया और अपने वस्त्र को फाड़कर उसके घाव पर बाँधा ताकि खून बहना बंद हो जाए. कपड़े का वह टुकड़ा जल्द ही खून से पूरी तरह तर हो गया तो राजा ने उसके ऊपर दूसरा कपडा बाँधा और ऐसा तब तक किया जब तक खून बहना रुक नहीं गया.

कुछ समय बाद घायल व्यक्ति को होश आया और उसने पानी माँगा. राजा कुटिया तक दौड़कर गया और उसके लिए पानी लाया. सूरज अस्त हो चुका था और वातावरण में ठंडक आने लगी. राजा और महात्मा ने घायल व्यक्ति को उठाया और कुटिया के अन्दर बिस्तर पर लिटा दिया. वह आँखें बंद करके चुपचाप लेटा रहा. राजा भी पहाड़ चढ़ने और बगीचे में काम करने के बाद थक चला था. वह कुटिया के द्वार पर बैठ गया और उसे नींद आ गयी. सुबह जब उसकी आँख खुली तब सूर्योदय हो चला था और पर्वत पर दिव्य आलोक फैला हुआ था.

एक पल को वह भूल ही गया कि वह कहाँ है और वहां क्यों आया था. उसने कुटिया के भीतर बिस्तर पर दृष्टि डाली. घायल व्यक्ति अपने चारों ओर विस्मय से देख रहा था. जब उसने राजा को देखा तो बहुत महीन स्वर में बुदबुदाते हुए कहा, “मुझे क्षमा कर दीजिये”.

“लेकिन तुमने क्या किया है और मुझसे क्षमा क्यों मांग रहे हो”, राजा ने उससे पूछा.

“आप मुझे नहीं जानते पर मैं आपको जानता हूँ. मैंने आपका वध करने की प्रतिज्ञा ली थी क्योंकि पिछले युद्ध में आपने मेरे राज्य पर हमला करके मेरे बंधु-बांधवों को मार डाला और मेरी संपत्ति हथिया ली. जब मुझे पता चला कि आप इस पर्वत पर महात्मा से मिलने के लिए अकेले आ रहे हैं तो मैंने आपकी हत्या करने की योजना बनाई. मैं छुपकर आपके लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था पर आपके सेवक ने मुझे देख लिया. वह मुझे पहचान गया और उसने मुझपर प्रहार किया. मैं अपने बचाव के लिए भागता हुआ यहाँ आ गया और आपके सामने गिर पड़ा. मैं आपकी हत्या को उद्यत था पर आपने मेरे जीवन की रक्षा की. मैं बहुत शर्मिंदा हूँ. मुझे समझ नहीं आ रहा कि आपके उपकार का मोल कैसे चुकाऊँगा. मैं जीवनपर्यंत आपकी सेवा करूंगा और मेरी संतानें भी सदैव आपके कुल की सेवा करेंगीं. कृपया मुझे क्षमा कर दें”.

राजा यह जानकर बहुत हर्षित हुआ कि प्रकार उसके शत्रु का रूपांतरण हो गया. उसने न केवल उसे क्षमा कर दिया बल्कि उसकी संपत्ति लौटाने का वचन भी दिया और उसकी चिकित्सा के लिए अपने सेवक के मार्फ़त अपने निजी चिकित्सक को बुलावा भेजा. सेवक को निर्देश देने के बाद राजा महात्मा के पास अपने प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पुनः आया. उसने देखा, महात्मा पिछले दिन खोदी गयी क्यारियों में बीज बो रहे थे.

महात्मा ने उठकर राजा से कहा, “आपके प्रश्नों के उत्तर तो पहले ही दिए जा चुके हैं.”

“वह कैसे?”, राजा ने चकित होकर कहा.
“कल यदि आप मेरी वृद्धावस्था का ध्यान करके बगीचे में कार्य करने में मेरी सहायता नहीं करते तो आप वापसी में घात लगाकर बैठे हुए शत्रु का शिकार बन जाते. तब आपको यह खेद होता कि आपको मेरे समीप अधिक समय व्यतीत करना चाहिए था. अतः आपका कल बगीचे में कार्य करने का समय ही सबसे उपयुक्त था.

आप जिस सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति से मिले वह मैं ही था. और आपका सबसे आवश्यक कार्य था मेरी सहायता करना. बाद में जब घायल व्यक्ति यहाँ चला आया तब सबसे महत्वपूर्ण समय वह था जब आपने उसके घाव को भलीप्रकार बांधा. यदि आप ऐसा नहीं करते तो रक्तस्त्राव के कारण उसकी मृत्यु हो जाती. तब आपके और उसके मध्य मेल-मिलाप नहीं हो पाता. अतः उस क्षण वह व्यक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण था और उसकी सेवा-सुश्रुषा करना सबसे आवश्यक कार्य था.”
“स्मरण रहे, केवल एक ही समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और वह समय यही है, इस क्षण में है. इसी क्षण की सत्ता है, इसी का प्रभुत्व है. सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वही है जो आपके समीप है, आपके समक्ष है, क्योंकि हम नहीं जानते कि अगले क्षण हम किसी अन्य व्यक्ति से व्यवहार करने के लिए जीवित रहेंगे भी या नहीं. और सबसे आवश्यक कार्य यह है कि आपके समीप आपके समक्ष उपस्थित व्यक्ति के जीवन को सुख-शांतिपूर्ण करने के प्रयास किये जाएँ क्योंकि यही मानवजीवन का उद्देश्य है.”…..

एक कप कॉफ़ी दीवार के लिए

इटली के वेनिस शहर में स्थित एक कॉफी शॉप का दृश्य है। एक व्यक्ति कॉफी शॉप में आता है और वेटर को आवाज देता है। वेटर के आने पर वह ऑर्डर प्लेस करता है- ‘दो कप कॉफी। एक मेरे लिए और एक उस दीवार के लिए।’ जाहिर है, इस तरह का ऑर्डर सुनकर आपका भी ध्यान उस ओर आकर्षित होगा। खैर, वेटर एक कप कॉफी ले आता है। लेकिन उसे दो कप का भुगतान किया जाता है। उस ग्राहक के बाहर निकलते ही वेटर दीवार पर नोटिस बोर्ड टाइप का एक कागज चिपकाता है, जिस पर लिखा होता है- ‘एक कप कॉफी’।

पांच मिनट बाद दो और व्यक्ति कॉफी शॉप में आते हैं और तीन कप कॉफी का ऑर्डर देते हैं। दो कप कॉफी उनके लिए और एक कप दीवार के लिए। उनके समक्ष दो कप कॉफी पेश की जाती है, लेकिन वे तीन कप कॉफी का भुगतान कर वहां से चले जाते हैं। इस बार भी वेटर वही करता है। वह दीवार पर ‘एक कप कॉफी’ का एक और कागज चस्पां करता है।

इटली के खूबसूरत शहर वेनिस में आप इस तरह का नजारा अक्सर देख सकते हैं। वेनिस नहरों द्वारा विभाजित मगर सेतुओं के जरिये आपस में जुड़े ११८ छोटे टापुओं के एक समूह पर बसा खूबसूरत शहर है। वर्ष २०१० में इसकी कुल आबादी तकरीबन २७२,००० आंकी गई और इसकी आतिथ्य संस्कृति का कोई जवाब नहीं है।

बहरहाल, उस कॉफी शॉप में बैठकर ऐसा लगा मानो यह वहां की आम संस्कृति है। हालांकि वहां पहली बार आने वाले शख्स को यह बहुत अनूठा और हैरतनाक लग सकता है। मैं वहां कुछ देर और बैठा रहा। कुछ समय बाद एक और शख्स वहां आया। वह आदमी अपनी वेश-भूषा के हिसाब से कतई उस कॉफी शॉप के स्टैंडर्ड के मुताबिक नहीं लग रहा था। उसके पहनावे व हाव-भाव से गरीबी साफ झलक रही थी। वहां आकर वह एक टेबल पर जाकर बैठ गया और दीवार की ओर इशारा करते हुए वेटर से बोला- ‘दीवार से एक कप कॉफी’। वेटर ने पूरे अदब के साथ उसे कॉफी पेश की। उसने अपनी कॉफी पी और बगैर कोई भुगतान किए वहां से चला गया।

इसके बाद वेटर ने दीवार से कागज का एक टुकड़ा निकाला और डस्टबिन में फेंक दिया। अब तक आपको पूरा मामला समझ में आ गया होगा। इस शहर के रहवासियों द्वारा जरूरतमंदों के प्रति दर्शाए जाने वाले इस सम्मान को देख मैं अभिभूत हो गया। कॉफी किसी भी सोसायटी के लिए जरूरी नहीं होती और न ही यह हम में से किसी के लिए जिंदगी की जरूरत है। लेकिन इन कड़कड़ाती सर्दियों में गरमागरम कॉफी से गरीबों के शरीर में थोड़ी देर के लिए जरूर गर्माहट आ सकती है। गौरतलब बात यह है कि जब कोई किसी तरह के अनुग्रह का लुत्फ लेता है, तो संभवत: हमें उन लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए, जो उस विशेष अनुग्रह की उतनी ही कद्र करते हैं, जितनी कि हम करते हैं, लेकिन वे इसे वहन नहीं कर सकते।

जरा उस वेटर के किरदार पर गौर फरमाएं, जो देने वालों और लेने वालों के बीच इस आदान-प्रदान की प्रक्रिया में अपने चेहरे पर एक जैसी मुस्कान के साथ पूरी उदारता के साथ अपनी भूमिका निभाता है। इसके बाद उस जरूरतमंद शख्स पर गौर करें। वह अपने आत्मसम्मान से तनिक भी समझौता किए बगैर उस कॉफी शॉप में आता है। उसे मुफ्त एक प्याला कॉफी मांगने की कोई जरूरत नहीं है। बिना यह पूछे या जाने बगैर कि कौन-सा शख्स उसे यह एक कप कॉफी पिला रहा है, वह सिर्फ दीवार की ओर देखता है और अपने लिए ऑर्डर प्लेस करता है। इसके बाद वह अपनी कॉफी पीता है और चला जाता है। अब जरा उस दीवार की भूमिका पर गौर फरमाएं। यह उस शहर के रहवासियों की उदारता और सेवाभाव को प्रतिबिंबित करती है।