चितपावन ब्राह्मणों के नरसंहार की कहानी

Genocide of Chitpawan Brahmins in Pune, 
Terror of Gandhi’s Non-Violence 

 

Targeted & Brutal Genocide of Chitpawan Brahmins in Pune, 
Maharashtra, just after the Assassination of Gandhi.

आज सुबह समाचार चेनलों में देखा 1984 के दंगों की जांच अब SIT से करवाएंगे, वोट बेंक राजनीति के मसाले से समाचारों की दुनिया महक उठी l

परन्तु कभी भी किसी भी सत्ता पक्ष या विपक्ष को आज तक पंजाब में सिक्खों द्वारा 1978 – 1993 तक जो हिन्दुओं का नरसंहार किया गया, उसके बारे में कोई बात नही करता, सोचते सोचते निष्कर्ष निकला कि उसमे भी ब्राह्मणों को ही सबसे अधिक टारगेट किया गया l

यह सब सोच ही रहा था कि एकाएक पुणे शहर में हुए चित्पावन ब्राह्मणों के नरसंहार का स्मरण हुआ,  31 जनवरी – 3 फरवरी 1948 तक पुणे में हुए चित्पावन ब्राहमणों के सामूहिक नरसंहार को आज भारत के 99% लोग संभवत: भुला चुके होंगे, कोई आश्चर्य नही होगा मुझे यदि कोई पुणे का मित्र भी इस बारे में साक्ष्य या प्रमाण मांगने लगे l

सोचने का गंभीर विषय उससे भी बड़ा यह कि उस समय न तो मोबाइल फोन थे, न पेजर, न फैक्स, न इंटरनेट… अर्थात संचार माध्यम इतने दुरुस्त नहीं थे, परन्तु फिर भी नेहरु ने इतना भयंकर रूप से यह नरसंहार करवाया कि आने वाले कई वर्षों तक चित्पावन ब्राह्मणों को घायल करता रहा l

राजनीतिक रूप से भी देखें तो यह कहने में कोई झिझक नही होगी मुझे कि जिस महाराष्ट्र के चित्पावन ब्राह्मण सम्पूर्ण भारत में धर्म तथा राष्ट्र की रक्षा हेतु सजग रहते थे… उन्हें वर्षों तक सत्ता से दूर रखा गया, अब 67 वर्षों बाद कोई प्रथम चित्पावन ब्राह्मण देवेन्द्र फडनवीस के रूप में मनोनीत हुआ है l

हिंदूवादी संगठनों द्वारा मैंने पुणे में कांग्रेसी अहिंसावादी आतंकवादियों के द्वारा चितपावन ब्राह्मणों के नरसंहार का मुद्दा उठाते कभी नही सुना, मैंने सदैव सोचता था कि यह विषय 7 दशक पुराना हो गया है इसलिए नही उठाते होंगे, परन्तु जब जब गाँधी वध का विषय आता है समाचार चेनलों पर तब भी मैंने किसी भी हिंदुत्व का झंडा लेकर घूम रहे किसी भी नेता को इस विषय का संज्ञान लेते हुए नही पाया l

क्या वे हिन्दू… संघ परिवार या बीजेपी के हिंदुत्व की परिभाषा के दायरे में नही आते…
क्योंकि वे हिन्दू महासभाई थे … ?

हिन्दू के नरसंहार वही मान्य होंगे जो मुसलमानों या ईसाईयों द्वारा किये गये होंगे ?

फिर वो भले कांग्रेसी आतंकवादियों द्वारा किये गये हों, या सिख आतंकवादियों द्वारा, उनकी कोई बात नही करता इस देश में l

31 जनवरी 1948 की रात,
पुणे शहर की एक गली,
गली में कई लोग बाहर ही चारपाई डाल कर सो रहे थे …

एक चारपाई पर सो रहे आदमी को कुछ लोग जगाते हैं और … उससे पूछते हैं

कांग्रेसी अहिंसावादी आतंकवादी: नाम क्या है तेरा…
सोते हुए जगाया हुआ व्यक्ति … अमुक नाम बताता है … (चित्पावन ब्राह्मण)

अधखुली और नींद-भरी आँखों से वह व्यक्ति अभी न उन्हें पहचान पाया था, न ही कुछ समझ पाया था… कि उस पर कांग्रेस के अहिंसावादी आतंकवादी मिटटी का तेल छिडक कर चारपाई समेत आग लगा देते हैं l

चित्पावन ब्राहमणों को चुन चुन कर … लक्ष्य बना कर मारा गया l
घर, मकान, दूकान, फेक्ट्री, गोदाम… सब जला दिए गये l

महाराष्ट्र के हजारों-लाखों ब्राह्मण के घर-मकान-दुकाने-स्टाल फूँक दिए गए। हजारों ब्राह्मणों का खून बहाया गया। ब्राह्मण स्त्रियों के साथ दुष्कर्म किये गए, मासूम नन्हें बच्चों को अनाथ करके सडकों पर फेंक दिया गया, साथ ही वृद्ध हो या किशोर, सबका नाम पूछ पूछ कर चित्पावन ब्राह्मणों को चुन चुन कर जीवित ही भस्म किया जा रहा था… ब्राह्मणों की आहूति से सम्पूर्ण पुणे शहर जल रहा था l

31 जनवरी से लेकर 3 फरवरी 1948 तक जो दंगे हुए थे पुणे शहर में उनमें सावरकर के भाई भी घायल हुए थे l

“ब्राह्मणों… यदि जान प्यारी हो, तो गाँव छोड़कर भाग जाओ..” –

31 जनवरी 1948 को ऐसी घोषणाएँ पश्चिम महाराष्ट्र के कई गाँवों में की गई थीं, जो ब्राह्मण परिवार भाग सकते थे, भाग निकले थे, अगले दिन 1 फरवरी 1948 को कांग्रेसियों द्वारा हिंसा-आगज़नी-लूटपाट का ऐसा नग्न नृत्य किया गया कि इंसानियत पानी-पानी हो गई. ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि “हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे” स्वयम एक चित्पावन ब्राह्मण थे l

पेशवा महाराज, वासुदेव बलवंत फडके, सावरकर, तिलक, चाफेकर, गोडसे, आप्टे आदि सब गौरे रंग तथा नीली आँखों वाले चित्पावन ब्राह्मणों की श्रंखला में आते हैं, जिन्होंने धर्म के स्थापना तथा संरक्ष्ण हेतु समय समय पर कोई न कोई आन्दोलन चलाये रखा, फिर चाहे वो मराठा भूमि से संचालित होकर अयोध्या तक अवध, वाराणसी, ग्वालियर, कानपूर आदि तक क्यों न पहुंचा हो ?

पेशवा महाराज के शौर्य तथा कुशल राजनितिक नेतृत्व से से तो सभी परिचित हैं, 1857 की क्रांति के बाद यदि कोई पहली सशस्त्र क्रांति हुई तो वो भी एक चित्पावन ब्राह्मण द्वारा ही की गई, जिसका नेतृत्व किया वासुदेव बलवंत फडके ने… जिन्होंने एक बार तो अंग्रेजों के कबके से छुडा कर सम्पूर्ण पुणे शहर को अपने कब्जे में ही ले लिया था l

उसके बाद लोकमान्य तिलक हैं, महान क्रांतिकारी चाफेकर बन्धुओं की कीर्ति है, फिर सावरकर हैं जिन्हें कि वसुदेव बलवंत फडके का अवतार भी माना जाता है, सावरकर ने भारत में सबसे पहले विदेशी कपड़ों की होली जलाई, लन्दन गये तो वहां विदेशी नौकरी स्वीकार नही की क्योंकि ब्रिटेन के राजा के अधीन शपथ लेना उन्हें स्वीकार नही था, कुछ दिन बाद महान क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा जी से मिले तो उन्हें न जाने 5 मिनट में कौन सा मन्त्र दिया कि ढींगरा जी ने तुरंत कर्जन वायली को गोली मारकर उसके कर्मों का फल दे दिया l

सावरकर के व्यक्तित्व को ब्रिटिश साम्राज्य भांप चुका था, अत: उन्हें गिरफ्तार करके भारत लाया जा रहा था पानी के जहाज़ द्वारा जिसमे से वो मर्सिलेस के समुद्र में कूद गये तथा ब्रिटिश चैनल पार करने वाले पहले भारतीय भी बने, बाद में सावरकर को दो आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई l

यह सब इसलिए था क्यूंकि अंग्रेजों को भय था कि कहीं लोकमान्य तिलक के बाद वीर सावरकर कहीं तिलक के उत्तराधिकारी न बन जाएँ, भारत की स्वतन्त्रता हेतु l इसी लिए शीघ्र ही अंग्रेजों के पिठलग्गु विक्रम गोखले के चेले गांधी को भी गोखले का उत्तराधिकारी बना कर देश की जनता को धोखे में रखने का कार्य आरम्भ किया l दो आजीवन कारावास की सज़ा की पूर्णता के बाद सावरकर ने अखिल भारत हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्षता स्वीकार की तथा हिंदुत्व तथा राष्ट्रवाद की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाया l

उसके बाद हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे जी का शौर्य आता है, गोडसे जी ने दुरात्मा मोहनदास करमचन्द ग़ाज़ी का वध क्यों किया उससे सम्बन्धित समस्त तथ्यों पर मैं पिछले लेख में कर सकता हूँ l
http://lovybhardwaj.blogspot.in/2015/01/unveil-mystery-of-gandhi-vadh-who-is.html

हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल जी गोडसे भी गांधी वध में जेल में रहे, बाहर निकल कर जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने पुरुषार्थ और शालीनता के अनूठे संगम के साथ कहा:
“”गाँधी जब जब पैदा होगा तब तब मारुगा”।
यह शब्द गोपाल गोडसे जी के थे जब जेल से छुट कर आये थे l

तत्कालीन दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक की और से किसी भी दंगापीड़ित को किसी भी प्रकार की सहायता आदि उपलब्ध न करवाई गई… न तन से, न मन से, न ही धन से, बल्कि आरएसएस प्रमुख श्री गोलवलकर ने तो नेहरु तथा पटेल को पत्र लिख कर यह तक कह डाला कि हमारा हिन्दू महासभा से कोई लेना देना नही, तथा सावरकर से भी मात्र वैचारिक सम्बन्ध है, उससे अधिक और कुछ नही l

आरएसएस प्रमुख श्री गोलवलकर ने इससे भी अधिक बढ़-चढ़ कर  अपनी पुस्तक विचार-नवनीत में यहाँ तक लिख दिया कि नाथूराम गोडसे मानसिक विक्षिप्त था l

अभी 25 नवम्बर 2014 को गोडसे फिल्म का MUSIC LAUNCH का कार्यक्रम हुआ था उसमे हिमानी
सावरकर जी भी आई थीं, जो लोग हिमानी सावरकर जी को नही जानते, मैं उन्हें बता दूं कि वह वीर सावरकर जी की पुत्रवधू हैं तथा गोपाल जी गोडसे जी की पुत्री हैं, अर्थात नथुराम गोडसे जी की भतीजी भी हैं l

हिमानी जी ने अपने उद्बोधन में बताया कि उनका जीवन किस प्रकार बीता, विशेषकर बचपन…वह मात्र 10 महीने की थीं जब गोडसे जी, करकरे जी, पाहवा जी आदि ने गांधी वध किया l

उसके बाद पुणे दंगों की त्रासदी ने पूरे परिवार पर चौतरफा प्रहार किया l

स्कूल में बहुत ही मुश्किल से प्रवेश मिला,
प्रवेश मिला तो … आमतौर पर भारत में 5 वर्ष का बच्चा प्रथम कक्षा में बैठता है l

एक 5 वर्ष की बच्ची की सहेलियों के माता-पिता अपनी बच्चियों को कहते थे कि हिमानी गोडसे (सावरकर) से दूर रहना… उसके पिता ने गांधी जी की हत्या की है l

संभवत: इन 2 पंक्तियों का मर्म हम न समझ पाएं… परन्तु बचपन बिना सहपाठियों के भी बीते तो कैसा बचपन रहा होगा… मैं उसका वर्णन किन्ही शब्दों में नही कर सकता, ऐसा असामाजिक, अशोभनीय, अमर्यादित दुर्व्यवहार उस समय के लाखों हिन्दू महासभाईयों के परिवारों तथा संतानों के साथ हुआ l

आस पास के लोग… उन्हें कोई सम्मान नही देते थे, हत्यारे परिवार जैसी संज्ञाओं से सम्बोधित करते थे l

गांधी वध के बाद लगभग 20 वर्ष तक एक ऐसा दौर चला कि लोगों ने हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता को … या हिन्दू महासभा के चित्पावन ब्राह्मणों को नौकरी देना ही बंद कर दिया l उनकी दुकानों से लोगों ने सामान लेना बंद कर दिया l

चित्पावन भूरी आँखों वाले ब्राह्मणों का पुणे में सामूहिक बहिष्कार कर दिया गया था गोडसे जी के परिवार से जुड़े लोगो ने 50 वर्षों तक ये निर्वासन झेला. सारे कार्य ये स्वयं किया करते थे l एक अत्यंत ही तंग गली वाले मोहल्ले में 50 वर्ष गुजारने वाले चितपावन ब्राह्मणों को नमन l


अन्य राज्यों के हिन्दू महासभाईयों के ऊपर भी विपत्तियाँ उत्पन्न की गईं… जो बड़े व्यवसायी थे उनके पास न जाने एक ही वर्ष में और कितने वर्षों तक आयकर के छापे, विक्रय कर के छापे, आदि न जाने क्या क्या डालकर उन्हें प्रताड़ित किया गया l

चुनावों के समय भी जो व्यवसायी, व्यापारी, उद्योगपति आदि यदि हिन्दू महासभा के प्रत्याशियों को चंदा देता था तो अगले दिन वहां पर आयकर विभाग के छापे पड़ जाया करते थे l

गांधी वध पुस्तक छापने वाले दिल्ली के सूर्य भारती प्रकाशन के ऊपर भी न जाने कितनी ही बार… आयकर, विक्रय कर, आदि के छापे मार मार कर उन्हें प्रताड़ित किया गया, ये उनका जीवट है कि वे आज भी गांधी वध का प्रकाशन निर्विरोध कर रहे हैं … वे प्रसन्न हो जाते हैं जब उनके कार्यालय में जाकर कोई उन्हें … “जय हिन्दू राष्ट्र” से सम्बोधित करता है l

हिन्दू महासभाईयों को उनके प्रकाशन की पुस्तकों पर 40% छूट आज भी प्राप्त होती है l

आज भी हिन्दू महासभाईयों के साथ भेदभाव जारी है l

…और आज कई राष्ट्रवादी यह लांछन लगाते नही थकते…
“कि हिन्दू महासभा ने आखिर किया क्या है ?”

कई बार बताने का मन होता है … तो बता देते हैं कि क्या क्या किया है…
साथ ही यह भी बता देते हैं कि आर.एस.एस को जन्म भी दिया है l

परन्तु कभी कभी … परिस्थिति इतनी दुखदायी हो जाती है कि … निशब्द रहना ही श्रेष्ठ लगता है l

विडम्बना है कि … ये वही देश है… जिसमे हिन्दू संगठन … सावरकर की राजनैतिक हत्या में नेहरु के सहभागी भी बनते हैं और हिन्दू राष्ट्रवाद की धार तथा विचारधारा को कमजोर करते हैं l

आप सबसे विनम्र अनुरोध है कि अपने इतिहास को जानें, आवश्यक है कि अपने पूर्वजों के इतिहास को भली भाँती पढें और समझने का प्रयास करें…. तथा उनके द्वारा स्थापित किये गए सिद्धांतों को जीवित रखें l

जिस सनातन संस्कृति को जीवित रखने के लिए और अखंड भारत की सीमाओं की सीमाओं की रक्षा हेतु  हमारे असंख्य पूर्वजों ने अपने शौर्य और पराक्रम से अनेकों बार अपने प्राणों तक की आहुति दी गयी हो, उसे हम किस प्रकार आसानी से भुलाते जा रहे हैं l

सीमाएं उसी राष्ट्र की विकसित और सुरक्षित रहेंगी ….. जो सदैव संघर्षरत रहेंगे l
जो लड़ना ही भूल जाएँ वो न स्वयं सुरक्षित रहेंगे न ही अपने राष्ट्र को सुरक्षित बना पाएंगे l

जय श्री राम कृष्ण परशुराम

साभार-लवी भरद्वाज सावरकर

भारतीय राजनैतिक विचारधारा में सेकुलरिज्म के साइड इफ़ेक्ट

चुनावों के माहौल में सभी वोट-लोलुपों ने ‘सेक्यूलरवाद’ के शब्द के सुर अलापना आरम्भ कर दिया है, जिन सत्ता-पिपासुओं ने भ्रष्टाचार मिटाने का ढिंढोरा पीटकर राजनीती में कदम रखा वो भी अब सलीमशाही-पोपशाही जूतियाँ चाटकर अब भ्रष्टाचार को भूलकर सेक्यूलरवाद के पीछे भाग रहे हैं ।  उनका मानना है कि भारत को लूट-लूट कर कंगाल कर देने के उपरान्त भी यदि भ्रष्टाचारी जीत जाएँ तो कोई बात नही परन्तु हम तो सेक्यूलर हैं… इस हेतु हम किसी साम्प्रदायिक व्यक्ति को नही जीतने देंगे ।

अब यदि आप इनमे से किसी से भी पूछें कि सेक्यूलर का अर्थ क्या है तो सब अपनी अपनी ढपली बजाकर अपना एक विचित्र सा ही राग अलापना आरम्भ कर देंगे ।  इसका एक कारण यह है कि सेक्यूलर शब्द हमारी भाषा का नही अत: उसकी संकल्पना भी हमे स्पष्ट नही हो पाती । Secular शब्द उन्ही लोगों की देन है जिन लोगों ने भारत का नाम INDIA रखा है जिसका अर्थ ‘I Proud to Be an Indian’ कहने वाली प्रजाति भी उचित रूप  में नही जानती ।

यहाँ मैं उल्लेख करना चाहूँगा कि आपके घर में यदि कोई पुरानी Oxford Dictionary उपलब्ध हो तो उसमे देखें Indian का अर्थ आपको ‘चोर, दस्यु, काला’ आदि के रूप में अवश्य मिलेगा … एक अर्थ तो यह भी है कि जिसका  विवाह ईसाई रीति रिवाज़ से नही हुआ हो वह Indian होता है ।  Internet पर उपलब्ध Oxford Dictionary की websites पर अब सब कुछ बदल दिया गया है ।

Secular शब्द हमने अंग्रेजी से पाया, वैसे Secular शब्द का प्रयोग अर्थशास्त्र और खगोल विज्ञान में भी होता है और उन सन्दर्भों में इसके अर्थ भिन्न भिन्न होते हैं,  परन्तु जब धर्म/सम्प्रदाय का सन्दर्भ आता है तो इसका प्रयोग पहली बार  19वीं शताब्दी में यूरोप में किया गया ।  यूरोपीय समाज की एक विशेषता यह रही है कि वहाँ एक समय में एक ही विचार ‘प्रधान’ रहा है… और यह जड़ता वादी विचार प्रधानता 19वीं शताब्दी तक तो हावी ही रही… जबकि हमारी सनातन वैदिक कालीन परम्परा  ‘विचार-स्वातन्त्र्य’ की रही है ।

‘वादे वादे जायते तत्व बोध’ पर हमारा सदैव विश्वास रहा है, इसी हेतु सत्य की खोज हेतु चर्चा, परिचर्चा, वाद-विवाद, शास्त्रार्थ जैसी परम्पराएं प्रचलित हुईं।  इसी का परिणाम था कि हमने कि जिन वेदों को हमारे यहाँ ‘आगम-प्रमाण’ / ‘परम-प्रमाण’ / ‘स्वत: प्रमाण’ माना गया, ‘वेद-वाक्य’ शब्द जिनकी प्रमाणिकता का पर्याय बन गया…उन्हीं वेदों और अनेक वैदिक मान्यताओं का खंडन और आलोचना करने वाले वर्धमान महावीर,गौतम बुद्ध और नानक तक को भी समाज ने सम्मान दिया ।  कुछ लोगों ने तो उन्हें भगवान और भगवान का अवतार तक घोषित कर दिया… निकट भविष्य में और भी कुछ नये अवतारों से साक्षात्कार हो सकता है, एतिहासिक दृष्टि से यह ईसा से लगभग 500 वर्ष से पूर्व की बातें हैं, अभी भी चली आ रही हैं ।

बात करें यूरोप की तो यूरोप में उस समय ‘विचार-स्वातन्त्र्य’ की क्या स्थिति थी ?  उपरोक्त प्रश्न का उत्तर इस तथ्य से स्पष्ट किया जा सकता है कि यूरोप में तब मनुष्य को विवेकशील बनाने के लिए उत्सुक, तर्क पर बल देने वाले, स्वतंत्र विचारों के पोषक और महान दार्शनिक सुकरात को (ईसा पूर्व 469-399) ईशनिंदा करने और युवाओं को पथभ्रष्ट करने का आरोप लगा कर मृत्यु दंड दिया गया… सुकरात पर समलेंगिक होने के भी आरोप लगाये गये ।

अनेक विद्वान यह भी मानते हैं कि ईसा मसीह भी शिक्षा प्राप्त करने हेतु भारत आये थे… भारत में ईसा मसीह को वैदिक धर्म और अन्य वेद विरोधी सम्प्रदायों जैसे बोद्ध, जैन, आजीविक, सर्व-संशयवादी आदि की शिक्षाएं आदि प्राप्त कीं ।  वापिस जाकर ईसा मसीह ने जो भी शिक्षाएं दीं परन्तु उसके अनुयायी तो यूरोप के ही निवासी थे … अत: इसाई पन्थ का प्रसार होने पर वही ‘विचार-प्रधानता’ हावी रही जिससे व्यवहार में कट्टरता और असहनशीलता बनी रही ।  और ईसा मसीह की मृत्यु के लगभग 1700 वर्ष तक भी यह कट्टरता और असहनशीलता इतनी हावी रही कि यदि कोई व्यक्ति चर्च या पैशाचिक ग्रन्थ बाइबल की किसी भी मान्यता के विरुद्ध कुछ कहता था तो उसे कठोर दंड दिया जाता था ।

एक बार पुन: यदि भारत के इतिहास का विश्लेष्ण करें तो जब यहाँ इस्लामिक आक्रमणों और बर्बरता से वैदिक धर्म जूझ रहा था … तब उस समय यूरोप ‘इन्क्विजिशन’ नामक बीमारी से तंग अंधी गलियों में जूझ रहा था ।

‘इन्क्विजिशन’ अर्थात तथाकथित धर्म-परीक्षण की इस बीमारी से यूरोपीय जन मानस इतना प्रभावित था कि कोपरनिकस, व्रुनो और गैलिलियो जैसे वैज्ञानिकों की बली ले ली । जबकि बात केवल इतनी सी ही थी कि चाँद-सूरज, ग्रह-नक्षत्र आदि के बारे में बाईबल में बताई गई बातों से यह विद्वान सहमत नही थे ।  कोपरनिकस को 16वीं शताब्दी में बहुत ही प्रताड़ित और अपमानित किया गया और उसकी मृत्यु के उपरांत उसकी पुस्तकें भी प्रतिबंधित कर दी गईं ।

        व्रुनो नामक वैज्ञानिक को तो 16वीं शताब्दी में रूई में लपेट कर जीवित ही भस्म कर दिया गया । गैलिलियो को 17वीं शताब्दी में नजरबंद ही कर दिया गया ।  आखिर … क्यों ? केवल विचार-प्रधानता की महा-मारी के कारण ।

इन्क्विजिशन की महामारी से ग्रसित जो लोग अपने से भिन्न मत रखने वालों की हत्या के फतवे जारी करते हैं… उन कट्टरपंथियों की तो बात ही अलग है परन्तु आश्चर्य तब होता है जब अन्य लोग भी Secularism की संकल्पना से सहमत होते हैं ।

भारतीय जन मानस की कठिनाई मात्र यही है कि हमने Secularism नामक शब्द को उधार ले लिया और अब इसका ब्याज ढोए जा रहे हैं ।  यही कारण है कि आज भी हमारे यहाँ Secular के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग अर्थ हैं … जैसे शासन के सन्दर्भ में जो आधारभूत शर्त है वो यह है कि धर्म/पन्थ के आधार पर भेदभाव न करना … परन्तु अपने को Secular कहने वाले लोग सबसे पहले उसी पर आघात करते हैं ।

यह तथाकथित Secular (Pseudo-Secular) पहले तो पन्थ के आधार पर बांटते हैं तदुपरांत प्रत्येक पन्थ के लिए अलग-अलग नियम कानून बनाते हैं ।  यही कारण है कि जब भी समान नागरिक संहिता संबंधी कानून को लागू करने की बात उठती है तो उसका सबसे अधिक विरोध वे लोग करते हैं जो अपने आपको ‘Secular’ का महान झंडा-बरदार बताते नही थकते ।

          Secularism की मनमानी परिभाषा का ही यह परिणाम है कि सरकार के व्यवहार में समानता गायब है ।

अधिक दूर न जाकर यदि निकटतम सन्दर्भों का ही विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि धर्म-निरपेक्षता की आड़ में सर्व-धर्म सामान की बात कहने वाला समाज और इसके ठेकेदार स्वयं कई हिस्सों में विभाजित हो गये जब तथाकथित धर्म-निरपेक्षता को पैरों तले रौंदते हुए एक फिल्म आई जिसमे एक ही धर्म विशेष के ऊपर साप्रदायिक हमले और टिप्पणियाँ करके प्रदूषित संदेश दिए गये l कभी भीष्म साहनी द्वारा बनाए गये भारत विभाजन पर एक धारावाहिक ‘तमस’ को प्रतिबंधित किया जाता है, क्या वो धर्म निरपेक्षता पर खतरा थी ?

अभी लगभग 2 वर्ष पूर्व एक फिल्म आई थी ‘विश्वरूपम’ जिस पर एक शांतिदूत समुदाय विशेष ने बहुत छाती पीटी तथा तमिलनाडू राज्य सरकार प्रतिबंधित करने को तैयार हुई, उत्तर प्रदेश में प्रतिबंधित करने का निर्णय लेने की भी बात हुई, इतना ही नही अभिनेता कमल हासन से सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना भी प्रस्तुत करवाई गई l फिर कर्नाटक राज्य ने 2014 में ही एक फिल्म ‘शिवा’ के भी कई सीन काट दिए गये l

उसके बाद पंजाब सरकार ने भी अपना कार्य किया और एक स्वयंभू गुरु और भगवान द्वारा स्वयं को महामानव दिखा कर चमत्कार बनाई गई फिल्म को भी प्रतिबंधित किया गया l

परन्तु एक भी राज्य सरकार ने इस देश में सबसे अधिक जनसंख्या की धार्मिक भावनाओं के प्रति उदासीनता प्रकट करके उनकी धार्मिक भावनाओं का जो राजनितिक एवं संवेधानिक बलात्कार किया उसकी आलोचना तथा उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया सडकों पर कई धार्मिक लोगों द्वारा की गई परन्तु न तो सुप्रीम कोर्ट और न ही कोई प्रदेश कोर्ट और न ही राज्य सरकार भारत देश के 80 करोड़ हिन्दुओं की धार्मिक आस्था के कपड़े तार तार होने से नही बचा पाई l

इस सन्दर्भ में न्यायालय तथा न्यायाधीशों का जो पक्ष रहा और तटस्थता तथा निष्पक्षता का जो उदाहरण सामने आया वह भी चिंता का विषय है और बहुत से प्रश्न खड़े करता है, क्या न्यायलय तथा न्यायाधीश संवेदनहीं हैं ? या वे धर्म-निरपेक्षता के दायरे में केवल बहुसंख्यक वर्ग को ही रखने की भूल कर रहे हैं ?  जो भी हो परन्तु यह पूरा प्रकरण यह शंका उत्पन्न अवश्य करता है कि न्यायालय और न्यायाधीशों की धर्म-निरपेक्षता की शिक्षा-समझ मेल नही खाती परस्पर संविधान और संवेधानिक आदेशों के साथ l

सुप्रीम कोर्ट में आमिर खान की विवादित हिन्दू विरोधी PK फिल्म के पोस्टर के विरोध में जब एक याचिका डाली गई तो मीडिया चेनलों और समाचार पत्रों ने कुछ इस प्रकार प्रकाशित किया “If You Do not like, Do Not Watch”… सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कुछ इस प्रकार दिखाया गया, परन्तु यह पक्ष भी या तो न्यायालय या मीडिया दोनों की और संदेह के प्रश्न खड़े करता है ?

यह किस प्रकार संवेधानिक, तर्कसंगत या व्यवहारिक हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश कहें कि “चोरी हो रही है, आपको पसंद नही है तो मत देखिये”, “हत्या हो रही है आपको पसंद नही है तो मत देखिये”
“बलात्कार हो रहा है आपको पसंद नही है तो मत देखिये”,

… मेरे पास हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की अभी तक कोई छायाप्रति नही है, जिसमे मैं पुख्ता रूप से कह सकूं कि न्यायलय द्वारा ऐसा कहा गया है कि नही, हो सकता है कि यह न्यायाधीशों का In House Comment हो, परन्तु फिर भी क्या यह मीडिया की अपरिपक्वता या बिकाऊ होने के सटीक प्रमाण इसी में प्राप्त हो जाते हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश और टिप्पणी में अंतर को भी स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं कर पाते या करना नही चाहते या ऐसा न करने के लिए निर्देशित किया गया हो ?

भारतीय मीडिया का नकारात्मक पक्ष तो पूरे विश्व में कुख्यात है जहां एक पत्रकार देश के प्रधानमन्त्री को अपमानित करने हेतु विदेश पहुँच कर अपनी महत्वाकांक्षाओं की कुंठा निकालते हुए अपने मालिकों को प्रसन्न करने का हर संभव प्रयास करता है l

भारतीय मीडिया का यदि पिछले 15 वर्षों का अध्ययन करें तो यही निष्कर्ष निकलता है कि भारत में सबसे अधिक सांप्रदायिक मानसिकता इसी क्षेत्र में है, फिर चाहे वो प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रोनिक मीडिया, विभिन्न मुद्दों को जोड़ तोड़ कर भगबान श्री राम, या शिव आदि सनातन धर्म के देवी देवताओं का अपमान करने को सदैव तत्पर रहते हैं ये, जबकि 15 वर्षों पर नकली बाबाओं से अपना चैनल चलाने हेतु यही चैनल उनका प्रचार प्रसार करने में व्यस्त रहे परन्तु अन्य सम्प्रदाय विशेष के विरुद्ध कुछ लेश मात्र भी करने का न ही उनमे सामर्थ्य है और न ही मानसिकता l

मेरे शब्दों की प्रमाणिकता तब अधिक सटीक हो जाती है जब फ़्रांस में पत्रकारों के एक कार्यालय पर दिन दहाड़े आतंकी हमला किया गया और 12 लोगों को मार दिया गया, उसके बाद कुछ लोगों का अपहरण भी होता है, पूरा विश्व देखता है यह सब परन्तु भारत का मीडिया उस सम्प्रदाय विशेष के विरुद्ध छापे गए कार्टूनों में से एक भी कार्टून अपने चैनल पर दिखाने का पुरुषार्थ न दिखा सका, उन्हें या तो मौत का भय था या फिर राष्ट्र-चरित्र बेच कर आयात होने वाली राष्ट्रद्रोही रिश्वत के रुक जाने का l

यहाँ यह उल्लेख करना अत्यंत आवश्यक है कि फिल्में One Way Communication की प्रक्रिया पर चलती हैं, ऐसा नही है कि प्रत्येक सीन के बाद फिल्म को रोका जायेगा और उसका तुलनात्मक विश्लेष्ण हो सके, पूरी फिल्म निरंतर चलती है और उसके सकारात्मक तथा नकारात्मक संदेश समाज को प्रेरित और प्रदूषित करने का कार्य कर जाते हैं l

सर्वधर्म समान कह कर अपनी ही संस्कृति का गला घोंटने के अपराध से उन सज्जनों को ये लेख बचाएगा आप स्वयं पढ़ें और औरों तक यह पहुँचाने की पावन सेवा करें l

समय के साथ अनेक परिवर्तन होते हैं, पोशाकों में बदलाव आया, घरों की रचना, रहन-सहन में बदलाव आया, खानपान के तरीके भी बदले…..परन्तु जीवन मूल्य तथा आदर्श जब तक कायम रहेंगे तब तक संस्कृति भी कायम कहेगी l

यही संस्कृति राष्ट्रीयता का आधार होती है l
राष्ट्रीयता का पोषण यानि संस्कृति का पोषण होता है… इसे ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कहा जाता है l

अंत में यह भी समझ लीजिये कि राष्ट्रवाद की भी बहुत सारी Layers हैं…

केवल राष्ट्रवाद…
हिन्दू राष्ट्रवाद…
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद…
धार्मिक राष्ट्रवाद…
अध्यात्मिक राष्ट्रवाद…
स्वदेशी राष्ट्रवाद आदि…

इन समस्त राष्ट्रवाद के इतिहास तथा विचारधारा को भली भाँती समझ कर तथा इन सभी के अंतर को समझ कर ही इस युद्ध में विजयी हुआ जा सकता है, अन्यथा नही l

सीमाएं उसी राष्ट्र की विकसित और सुरक्षित रहेंगी… जो सदैव संघर्ष संघर्षरत रहेंगे… जो लड़ना ही भूल जाएँ वो न स्वयं सुरक्षित रहेंगे, और न ही अपने राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा ही कर पाएंगे l

साभार-लवी भरद्वाज सावरकर

जब शताब्दियों बाद, इस देश का इतिहास लिखा जाएगा..

शताब्दियों बाद जब इस देश का इतिहास लिखा जाएगा तब इतिहासकारों द्वारा इस देश के उपहासकारो का चर्चा होगा …लिखा जाएगा भारत मुगलों, अंग्रेजों के अलावा इटली का भी गुलाम रहा …सभी सरदार राष्ट्र भक्त और स्वाभिमानी नहीं होते कुछ मनमोहन सिंह जैसे भी होते हैं …नीतिश कुमार बिहार का और कोई अखिलेश उत्तर प्रदेश का आख़िरी मुग़ल शासक था …मुलायम सिंह सत्ता का हसीन सपना देखने वाले आख़िरी मुंगेरी लाल थे … उत्तर प्रदेश की नवाजवादी पार्टी की सरकार ने जेल में बंद आतंकवादीयों की रिहाई की पुरजोर कोशिश की और इस दौरान मानवाधिकार आयोग का यह आरोप था कि उत्तर प्रदेश में 80% गिरफ्तारियाँ गलत की जा रही हैं …दिग्विजय सिंह को अपने मुग़ल होने का मुगालता था और मुगलों का मानना था कि अपनी कौम से दगा करने वाला किसी का सगा नहीं हो सकता …बच्चे निबन्ध लिखेंगे कि आतंकियों के मुकदमें वापस लेने के प्रयास से अखिलेश अल -कायदा को क्या फ़ायदा दे सके . इनकी समाजवादी सरकार में ‘समाज’ सहमा हुआ था और ‘वाद’ बकैती कर रहा था . क़ानून व्यवस्था में आम आदमी आतंकित था और आतंकियों को सरकार जेल से बाहर निकालने की जुगत में थी जैसे जेल आतंकियों के लिए नहीं आतंकितों के लिए बनी हो …कश्मीर भारत का हिस्सा कम मुग़ल सल्तनत अधिक थी …रजिया सुलतान की तरह एक थीं कांसीराम की बहन मायाबती किन्तु रजिया की तरह वह गुण्डों में कभी नहीं फंसी सिवा गेस्ट हाउस काण्ड के …उच्च न्यायालय का जज बनाने की जुगत जिस्मानी भी थी रूहानी भी और कहानी भी . महेश्वरी आढ़त के अलावा अभिषेक मनु सिंघवी के योग शिविर में भी चरित्र का अनुलोम विलोम करना पड़ता था …लश्कर -ऐ -तैयबा की आत्मघाती इशरत जहाँ को मार गिराने वाले पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाया गया था …मंहगाई से त्रस्त हरजिंदर का थप्पड़ खाने के बाद शरद पवार का राजनीतिक पतन शुरू हो गया था …ह्त्या कर रहे नक्सलियों के मानवाधिकार सब पर भारी थे …भारत देश में दूसरे नम्बर के बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यक कहा जाता था …संविधान जातिप्रथा को वर्जित करता था किन्तु जाति के आधार पर आरक्षण दिया जा रहा था … सामाजिक न्याय से प्रेरित भेंसों और गधों ने घुडदौड़ में अपनी आबादी के हिसाब से आरक्षण की माँग की थी …हर नया संसदीय सत्र पुराने घोटाले को भूल कर नए घोटाले पर चर्चा करता था और उस अन्जाम तक न पहुँचने वाली चर्चा पर खूब खर्चा करता था …जिस खेल को विश्व के दस प्रतिशत देश भी नहीं खेलते थे उस क्रिकेट की भारत में लोकप्रियता थी …क्रिकेट और फिल्म से देश के नायक आ रहे थे और यह क्रिकेट और फ़िल्मी नायक दरअसल एक खलनायक दाउद इब्राहिम के गुर्गे थे …देश में कुछ घोटालेबाज चटवाल, कुछ घोषित आतंकी , कुछ दाउद की मुम्बईया फ़िल्मी रखेलें भी पद्म पुरुष्कार पा रही थीं …यों तो इस कालखण्ड देश हत्यारों से आक्रान्त था पर फिर भी कुछ लोग गांधी जी की ह्त्या को जायज ठहरा रहे थे और हत्यारे गौडसे को महिमा मंडित कर रहे थे, तो दूसरे लोग नक्सली हत्यारों को जायज ठहरा रहे थे, तीसरे लोग इस्लामिक आतंकवादीयों के कातिलों के कसीदे पढ़ रहे थे , अपनी सामूहिक हत्याओं से छुब्ध एक समुदाय के लोग स्वर्ण मंदिर में भिण्डरावाले जैसे कातिल को महिमामंडित कर संतों /गुरुओं के समकक्ष रख रहे थे कुल मिला कर पूरे राष्ट्र में कातिलों के पक्ष में क़त्ल हो रहे लोग लामबंद हो रहे थे …हिन्दुओं के छह हजार मंदिर तोड़ने का कोई चर्चा नहीं था पर इससे उकताए लोगों ने जब एक बाबरी मस्जिद तोड़ दी तो अंतरराष्ट्रीय श्यापा था …हिन्दूओं में लोग अपनी बेटी का नाम ‘रति’ रखते थे और मुसलमानों में ‘सूफियान’ जैसे नाम बहुत प्रचलित थे पर इस्लाम के लिए बहुत कुछ करने वाले नाम ‘औरंगजेब’ का प्रचलन ही ख़त्म हो चुका था …कोई अपनी औलाद का नाम ‘औरंगजेब’ नहीं रखता था …राष्ट्र में एक महाराष्ट्र भी था जहां जहाँ देश के अन्य प्रान्तों के लोग उतने ही असुरक्षित थे जितने भारतवासी ऑस्ट्रेलिया में …और …और इतिहास में यह भी शायद इस बार लिखा जाए क़ि इस बार भी इतिहासकार उतने ही वैचारिक बेईमान थे जितने पहले के इतिहासकार …इतिहासकार गुजरे समय की सीवर की सफाई करते रहे हैं उन्होंने गुजरे समय के सूरज की समीक्षा ही कब की है ?”

मोदी सरकार का रिपोर्ट कार्ड

“बेवकूफ वारिसों” से “नौकरों और जौकरों” तक

“अंग्रेजियत” से रंगे “देश और हिन्दुओ” विरोधी नेहरु से लेकर,
70 साल से आज तक :—-

वारिसों में सबसे पहले “गूंगी गुडिया” थोपी गई फिर,

अपने घर के “बेवकूफ वारिसों” से और “नौकरों और जौकरों”
के बूते देश की सत्ता पर काबिज रही — उसी पार्टी के लोग भी,

आज तिलमिलाकर “इस सरकार” पर सवाल खड़े करते है तो :—
बड़ा अजीब लगता है :—

1984 में देश में लागू “प्रजातन्त्र मौखोल” बनाते हुए।
प्रजातन्त्र की कमियों का फायदा उठाते हुए।

एक “देश” और “राजनीति” के बारे में क,ख भी नही जानने वाले को,
जिस आदमी ने –“प्रधानमन्त्री हाउस से दिल्ली एयरपोर्ट”– से अलावा कभी कुछ नही देखा था।
देश के दुसरे भागों की बात ही छोडिये,
उसको तो “दिल्ली” के “मोहल्लों” की जानकारी नही थी।
काफी लोगो को “दिल्ली हुई “आंत्रशोध” की बीमारी के समय की बाते याद होगी,

1– जिस आदमी को -“लालमिर्च और हरीमिर्च”- का फर्क मालुम नही था।

2– राजीव गांधी ने खुद कहा था हम केंद्र से एक रुपया जनता के लिये भेजते है, तो मात्र 15 पैसे ही जनता तक पहुँचते है।

85 पैसे उस का “गिरोह” बीच में ही खा जाता था।

इसलिए 85 पैसे के गबन का सिर्फ नाम तो लिया लेकिन कभी कुछ नही किया।

3– आज के हमारे –पूर्व “प्रधान मंत्री” –“मनमोहनसिंह”–को “राजीव गांधी” ने –“सावर्जनिक सभा”– में –“जौकर” — कह कर बुलाया था।

4– कश्मीर की एक सभा में जब “फारुख अब्दुल्ला” ने “राजीव गाँधी” को “हिन्दू” कहा तो –“राजीव गांधी”– ने तुरंत कहा –“मै हिन्दू नही हूँ”-।

ये “चारों” उसके –“सावर्जनिक बयान”– है।

फिर भी ऐसे व्यक्ति को भी इतने बड़े देश की “बागडोर” सौंप दी गई,

पिछले “दस साल: एक “बेजुबान,गूंगे,बहरे” और एक “गुलाम” को जिसने जिन्दगी में कभी नगर पालिका तक का कोई चुनाव नही लड़ा..उसे “आसाम” का “फर्जी” पता ठिकाना बता कर,सत्ता के पिछले दरवाजे {राज्य सभा से} से दाखिल कर के देश पर थोप दिया।

ये सब इसलिये हो पाया कि :—

पिछले 70 सालों में “ग्रामपंचायत” से लेकर “राष्ट्रपति भवन” तक एक “पार्टी” के नाम पर एक बहुत ही “संघठित गिरोह” काम कर रहा था।

भोलीभाली भारत की जनता जिसे एक राजनीतिक पार्टी — “कोंग्रेस” –मान कर चल रही है।

इस “गिरोह” को हमेशा देश के “नव निर्माण” के लिये “उचित व्यक्ति” को नही बल्कि अपने “गिरोह के सरदार” को चुनना होता था,

वो भी ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जो अपने “विदेशी आकाओं” के इशारे पर काम करता रहे।

इन्ही के कुछ “पिछ्ल्लगु” और कुछ “अज्ञानी” और बाकी इस “गिरोह के सदस्य” आज इस सरकार की “कार्यशैली” पर सवाल खड़े करते देखे जा सकते है।

अब आप भी दागिये सवाल और मांगिये जवाब…

आज तक – ऐसा क्यों नही हुआ -?-
जो आज तक – कभी नही हुआ -?-

तो अब – ऐसा कैसे हो रहा है..

एक कोंग्रेसी सज्जन को…
ये “सरकार” काम नही सिर्फ “नाटक” कर रही है,

इस बात का –उस को — मेरी तरफ से जवाब :—

तो जनाब पहले कुछ बाते —

मेरे बारे में — जान लीजिये…

मै फेसबुकिया लड़का नही हूँ,
मेरी उम्र 60 साल है |
मेरा किसी भी पार्टी से कोई – सम्बन्ध – नही है,
मै किसी भी “संगठन” से जुड़ा हुआ भी नही हूँ,

मै किसी भी “व्यक्ति विशेष” का भक्त भी नही हूँ,

1–आप का कहना है – कोंग्रेस को देश की जनता ने बार बार हटाया,
लेकिन जो दूसरी सरकारे आई उन्होंने क्या सुधार किये…
:– लेकिन जनता ने किसी भी अन्य दल को संवैधानिक सुधार के काबिल,
बहुमत – नही दिया | शायद आप जानते ही होंगे,
किसी भी संवैधानिक सुधार के लिये,
दोनों सदनों में दो \ तिहाई बहुमत की जरूरी होती है…

*** फिर बिना बहुंमत के किसी भी दल की कोई भी सरकार क्या कर पाती-??

2– आज तक जो 70 साल से कोंग्रेस ने नही किया और दरकिनार किया और नजरअंदाज किया वो सब अब हो रहा है…
:– कोंग्रेस ने uno नाम के जिस शत्रु जो 50 साल से अपने ही घर में बिठा रखा था वो पूरी दुनिया में भारत के खिलाफ रिपोर्ट देते थे…
*** ये बात को तो आप भी मानिये —
*** इस सरकार ने – सारी सरकारी सुविधाये बंद करके –
उन्हें देश से बाहर भगाया |
3– कोंग्रेस के पालतू हरामखोरो के नाक में नकेल डाली…
जानिये क्या और कैसे ?–
जो आज तक किसी ने नही किया—
:– रेलवे के एक खण्ड का – “जनरल मैनेजर” जब टूर पर निकला था तो,,
जनरल मैनेजर अपनी १२ बोगी की स्पेशल ट्रेन
“जीएम स्पेशल” लेकर चलते थे साथ में २००
लोगो का स्टॉफ भी होता था ..और रेलवे स्टेशन पर
किसी “महाराजा” की तरह स्वागत होता था ..
ऐसा आज तक चल रहा था —
पूरी ट्रेन “पैसे दो पैसे” में चलती थी क्या –??
अब जनाब को :–दो सौ नही “दो आदमियों” का स्टाफ मिलेगा और आम आदमी के साथ सफर करना होगा ,,
*** कहिये किसी ने किया ऐसा आज तक –??–
4– जजों की नियुक्ति कैसे होती थी– ??–
जजों की नियुक्ति का एक स्पेशल तरीका था,
शायद आप को कोंग्रेसी नेता “सिंघवी” द्वारा “जज नियुक्त: करने का तरीका तो मालुम ही होगा,नही है तो – सीडी बाजार में उपलब्ध हो सकती है,
या सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जज श्रीमान मार्कण्डेय काटजू साहब के उजागर किये गये राज तो मालुम ही होंगे —
:— निजी तौर पर फायदे में फ़ैसला देने वाले जजों को मलाईदार
जगहों पर नौकरी के बाद भी — नियुक्ति दी जाती थी –??–बहुत सबूत पड़े है |
:– जजों की नियुक्ति की 70 साल पुरानी निति और परम्परा को जनहित और देश हित में बदला गया |
*** क्या आज तक किसी ने ऐसा किया –??–
5– मोटर व्हीकल एक्ट क्या था –??–
भयंकर से भयंकर मोटरयान दुर्घटना में – दोषी वाहन चालक और वाहन मालिक को सिर्फ मामूली रकम के मुचलके पर जमानत मिल जाया करती थी – सलमान खान और उस जैसे भी बहुत से – बड़े घरों के लोग ने गाड़ियां शराब पीकर चलाई और पिछले 70 सालों में बहुत से लोगो को मारा भी है — किसी के परिजन की मौत के दुःख का कोई भी व्यक्ति शब्दों में बयान नही कर सकता — लेकिन एक आदमी मरो या चार लोग — होता कुछ नही था — क्यों –??–
:– अब चंद ही दिनों में नया सुधरा हुआ “मोटर व्हीकल एक्ट” आने वाला है |
*** आज तक किसी ने कोई — इस तरह का सुधार किया –??–
6– सबसे बड़ी बात – जिस चीजों को “आज तक” दरकिनार किया गया,
हिन्दुओं के “धर्म ग्रन्थ” और “हिन्दू शब्द” का इस्तेमाल करना और हिन्दुओं पूजा पद्दति और हिन्दुओं के वस्त्र धारण करना और “हिंदी भाषा” बोलना |
आज तक तो सत्ताधारियों को हिन्दू आंतकवाद से खतरा ही नजर आता रहा है इस विषय पर बहुत लोगो के बयान सार्वजनिक तौर पर दिए हुए है — ऐसा क्यों –??–
आज तक हर नेता हिंदी भाषा से बचता आया है और कभी भी कोई भी हिंदी में नही बोला|
:– आज का सत्ताधीश कहता है – मै एक हिन्दू राष्ट्रवादी हूँ और हिन्दुओं का मान बढ़ाते हुए दुसरे राष्ट्र के अध्यक्ष को “धर्म ग्रन्थ” भेंट भी करता है और दुसरे देश में जाकर उन्हें “मातृभाषा हिंदी” में सम्बोधित भी करता है…
*** क्या ऐसा आज तक देखा या सुना –??–
7– 70 सालों में आज तक -तीनों सैनाओं के प्रमुखों से कभी किसी सत्ताधीश ने बात करना भी उचित नही समझा था | क्यों –??–
देश के भीतर और बाहर हमारे देश के शत्रुओं की कोई कमी थी क्या –??–
आज ये बात सार्वजनिक हो चुकी है कि– इतने बड़े और विशाल देश की विशाल फ़ौज के पास – गोला बारूद,, लडाकू जहाज और अन्य साजोसमान मात्र 20 दिन के युद्ध के लायक ही है,,
तो जनाब — भूगोल देखिये –छोटा सा जर्मनी और छोटा सा जापान — 5-5 साल लम्बा “विश्व युद्ध” वो लोग कैसे लड़े थे | आज छोटा सा — कोरिया और ईरान — अमेरिका जेसी विश्व शक्ति को कैसे ललकारते है –क्यों –??– और इजराइल के बारे में आप के क्या ख्याल है —
:– सैना के तीनों अंगो के प्रमुखों से — प्रधानमन्त्री की हर महीने एक निश्चित समय पर सीधी बैठक — सैनाओं का मनोबल बढ़ाया जा रहा है और हर साजोसामान की आपूर्ति को सुनिश्चित किया जा रहा है |
*** ऐसा भी — कभी आज तक – 70 साल में – किसी ने किया है –??–
8– आज तक — भारत की “आजादी” के किये अपने “प्राणों को न्योछावर” करने वाले “क्रांतिकारीयों” को भारत सरकार “शहीद” नही मानती थी और तो और हमारे “देशभक्तों” को “स्कूलों के पाठ्यक्रम” में “आंतकवादी” पढ़ाया जाता था — क्यों –??–
:— महान शहीद “भगत सिंह” के सिक्के इस सरकार के द्वारा जारी हो चुके है,
अभी अभी “नेताजी सुभाषचंद्र बोस” के सहयोगी से देश का प्रधानमन्त्री जापान में “स्पेशल तौर” से मिल के आया है — क्यों –??–
*** ऐसा आज तक किसी ने क्यों नही किया –??–
9– आज तक सारे सरकारी “उच्च अधिकारीयों” की “सरकारी मीटिंगे” “फाईफ स्टार” होटलों में हुआ करती थी जब की देश पर “विदेशी कर्जा” बहुत है और देश “गरीबी और भुखमरी” भी बहुत है –फिर ऐसा करने का क्या “ओचित्य” था –क्यों –??–
:— इस सरकार ने “उच्च अधिकारीयों” की सारी “हेकड़ी” बंद कर के आदेश दिया है कि — अब “सरकारी कार्य” की मीटिंग “सरकारी भवनों” में ही होगी -किसी भी होटल में नही..
*** ऐसा कभी किसी भी सरकार ने नही किया — क्यों –??–
10– कल ही की बात है — एक भूखेनंगे,,महा गरीब,,अप्रजातांत्रिक,,आंतकवाद और अराजकता से “त्रस्त देश” के लोग — हमारे प्रधानमन्त्री को “एक देहाती औरत” की संज्ञा दे रहे थे, क्यों –??–
:— आज पूरी दुनिया के “ठाकुर — या कहे — चौधरी” की छाती पर — आज तक नही हुआ ऐसा आयोजन और जनासमागम होगा — बराक ओसामा {ओबामा} सिर्फ औपचारिक भेंट नही — एक बार नही “स्पेशली” दो बार मिलेगा –क्यों –??–
*** ऐसा — आज तक 70 साल से हमारा “दुश्मन” रहे “अमेरिका” ये बर्ताव क्यों कर रहा है –??–
11– विदेश यात्रा में खर्च होने वाला सारा पैसा “हराम” का होता था क्या –??–
सौ सौ टीवी “पत्रकारों” की टोलियाँ – प्रधानमन्त्री के “विदेशी दौरों” में साथ चिपकी रहती थी– वो “महंगी शराब” और वो “फाईफ स्टार” महंगे “होटलों” में ठहरना वो “मज्जेदार और लज्जिज खाना” — वो “हवाई यात्रायें” — हवा में ही प्रधानमन्त्री के साथ “शराब और खाना” सब कुछ उपलब्ध रहता था — क्यों –??–
:— इस सरकार ने एक ही झटके में सभी “भांड मंडली” को बाहर का रास्ता दिखा दिया,
अब किसी भी “हरामखौर” की कोई जरूरत नही — और — अब हवाई जहाज में — ना शराब ना कबाब –वो सब चीजे उपलब्ध नही होगी — ऐसा “सरकारी आदेश” है —
*** आज तक –किसी ने ऐसा क्यों नही किया –क्यों ??–
12– खेत की जमीन का नाप – एकड़ – के हिसाब से होता है- क्या आप जानते है — जितने जितने “एकड़” में – दिल्ली में — पूर्व मंत्रियों,,पूर्व मुख्यमंत्रियों,,पूर्व राज्यपालों,, पूर्व प्रधानमंत्रियों और पूर्व राष्ट्रपतियों की कोठियां और बंगले बने हुए है–
उतनी जमीन — “आसाम और बिहार और पंजाब” के आम “गरीब किसान” के पास खेती करने लायक भी नही है–सब “माल हराम” का-“अपने बाप” का मान कर – सभी कब्जा किये बैठे है..
:— करीब 30 हरामखोरो के बिजली पानी के कनेक्शन परसों इस सरकार ने काट दिए..
अगर फिर भी कब्जे नही खाली किये तो जुत्ते मार के भी भगाए जायेंगे —
*** आज तक किसी भी सरकार ने ऐसा क्यों नही किया –??–
13— फ़ैक्ट्रियों से गंदा पानी सालों से गंगा माता में डाला जा रहा था..
:—-गंगा को प्रदूषित करने वाले 46 उद्योग बंद किये गए
वाराणसी, सितम्बर 17: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि गंगा में गंदा पानी छोड़ने वाले 46 उद्योगों को बंद कर दिया गया है। जावड़ेकर ने कहा कि इसके अलावा 140 अन्य उद्योगों को नोटिस जारी किया गया है।
http://1nb.in/143278
*** ऐसा आज तक क्यों नही किया गया …
14— रेलवे के सटीक इंतजाम, अब चैन की नींद लें, नहीं छूटेगा आपका स्टेशन…
:—क्या कभी आपके साथ ऐसा भी हुआ कि आपकी आंख ना खुली हो और रेल गंतव्य स्टेशन से आगे निकल गई? http://goo.gl/i6GuBb
*** किसी के पास है जवाब –??–ऐसा आज तक क्यों नही किया गया …
15– अब “फर्स्ट क्लास” में नहीं कर सकेंगे “हवाई सफर” नौकरशाह…
:—अपने खर्चों में केंद्र सरकार ने कटौती करने की तैयारी की है।
इसकी शुरूआत नौकरशाहों के पर कतर के की जा रही है।
पूरी खबर पढ़ने के‌ लिए क्लिक करें—–>http://goo.gl/ilM2B0
**** देश की हालात के विपरीत ऐसा आज तक क्यों चलता रहा-??-
किसी ने इस – नाजायज खर्चे को रोका क्यों नही –??–
16—ट्रेन छूटने पर भी वापस मिल जाएगा पूरा किराया–
:—– रेल या‌त्रियों के लिए खुशखबरी है। यात्री अब कन्फर्म टिकटों का पूरा पैसा ट्रेन छूटने के दो घंटे बाद भी ले सकेंगे। पढ़िए, पूरी खबर——->http://goo.gl/zWL6Au
**** आज तक आधा किराया ही वापिस क्यों मिलता था –??–
ये सुधार आज तक किसी ने क्यों नही किया –??–
17—-9.11.2014 — एक ट्विट पर मदद —
अभी अभी मैंने ट्विट्टर पे देखा भाजपा उत्तर प्रदेश के हैंडल से एक ट्वीट आया कि भाजपा के एक कार्यकर्ता के पिता किसी ट्रेन से मुंबई जा रहे थे और उनकी ट्रेन में ही मृत्यु” हो गयी है और ट्रेन भुसावल पे है कोई “मदद” नहीं मिल रही ये अपील “सदानंद गोड़ा रेल मंत्री” को कि गयी थी कुछ ही…मिनट में “सदानद गौडा जी” कि ट्वीट आ गयी कि भुसावल के रेल “पोलिस इंस्पेक्टर महाजन” से संपर्क कर ले वो आपकी मदद करेंगे और उनका मोबाईल नो भी दिया
इसका मतलब है कि भुसावल स्टेशन पे रेल मंत्रालय से इस मामले में फोन जा चूका है
कभी कोई मनमोहन सरकार में कल्पना कर सकता था कि एक केन्द्रीय मंत्री को एक ट्वीट लिख के बात बताई जा सकती थी ?
***** क्या ऐसा हुआ आज तक कभी –??–
18—- एक फोन से — “श्री लंका” में “फांसी की सजा” पाये 2 मछुआरो की “सजा माफ़” — और उन्हें मिली नई जिन्दगी…. ताजा समाचारों के अनुसार 2 नही 5 भारतीय कैदियों को जीवन दान मिल गया…
:—- http://hindi.oneindia.com/…/sri-lanka-finally-agrees-to…
***** क्या आज तक ऐसा कभी हुआ है –??– और नही हुआ तो क्यों नही हुआ –??–
19— एक और नई खबर :— रेल राज्यमंत्री “मनोज सिन्हा” दिल्ली से अपने शहर गाजीपुर की यात्रा शाही ठाठबाट से रेलवे के “सैलून” में करते थे ..
जैसे ही नरेंद्र मोदी को ये बात पता चली उन्होंने रेलवे को पत्र लिखकर उसका “पूरा खर्च” मंत्री जी के “सेलरी” से वसूल करके का आदेश दिया …
हलांकि इसके पहले रेलमंत्री हमेशा सैलून लेकर ही चलते थे…
“लालू प्रसाद यादव” तो एक “स्पेशल ट्रेन” से चलते थे…
खबर साभार –आउटलुक
***** क्या आज तक ऐसा कभी हुआ है –??– और नही हुआ तो क्यों नही हुआ –??–
20—केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने दिल्ली की 895 अनधिकृत कालोनियों को अधिकृत करने के लिए दिल्ली सरकार से अगले हफ्ते तक प्रस्ताव मांगा है।
मोदी सरकार के इस फैसले से लाखों दिल्ली वासियों को राहत मिलेगी।

***** क्या आज तक ऐसा कभी हुआ है –??– और नही हुआ तो क्यों नही हुआ –??–

21—आज एक बात और जोड़ देता हूँ :—-
मोदी सरकार ऐसी व्यवस्था करना चाहती है जिससे कंपनियों का रजिस्ट्रेशन एक दिन में हो जाए और इसके अलावा व्यापारियों को अन्य सहूलत प्रदान की जाए जिससे व्यापार करना आसान हो जाए। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें….
http://navbharattimes.indiatimes.com/…/article…/45645850.cms
*****—– किसी भी हरामी की औलाद ने — कभी कोई काम सरल नही किया सिर्फ उलझने ही पैदा की –जिन लोगो ने अपनी कपंनीयों का रजिष्ट्रेशन करवाया है वो लोग जानते है कितनी बाधाये कोंग्रेस शासन ने खड़ी कर रखी थी..

आखिर तंग होकर अफसरों को खुश करना ही पड़ता था — ऐसा क्यों था –??–

22— आज फिर एक बात और जोड़ देता हूँ :—-
1 जनवरी 2015 से फार्मा कंपनियों की तरफ से डॉक्टरों को गिफ्ट के तौर पर “मेडिकल सैंपल, पर्सनल गिफ्ट, फ्री हॉलीडे प्लान” आदि नहीं दिए जा सकेंगे।
सरकार से अनुसार यह “कंपनियों का प्रोडक्ट प्रमोशन” करने का गलत तरीका है, जिसे 1 जनवरी से बैन किया जा रहा है।
***** आज तक सिर्फ भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा क्यों दिया गया—कभी इसे “कम करने और रोकने” की कोई कोशिश क्यों नही हुई–??–
23— वाड्रा से 400 बीघा जमीन वापस छीनी सरकार ने..
रॉबर्ट वाड्रा से 400 बीघा जमीन वापस छीन ली गई है। अब क्या करेंगे वाड्रा? जानिए क्या था 400 बीघा जमीन का विवाद?
पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें——> http://goo.gl/3fiKNC

***** किसी के ह्क्ल में हाथ डाल कर कुछ निकालना ये पहली बार ही हुआ है —
24 — मुंबई में 3 माह के अंदर चलेंगी वाटर बसें… on January 2, 2015 3:36

http://hindi.news24online.com/मुंबई-में-3-माह-के-अंदर-चलें/
25 — बहिन की शादी के लिये भी भेजे पत्र पर सुनवाई
http://abpnews.abplive.in/ind/2015/01/04/article468140.ece/letter-to-pm-for-dowry

26 — बिजली बचत के लिये L.A.D

Launched scheme for LED bulb distribution for Delhi & a National Programme for LED-based Home & Street Lighting
.http://nm4.in/1AoIh6R

27 — बेअंत सिंह का हत्यारा थाईलैंड में गिरफ्तार।
आप को हत्यारा याद तो होगा –??–

http://www.outlookindia.com/…/Beant-Singh-Assassin-A…/875883

इति — गिरधारी भार्गव –15.9.2014

केजरीवाल से 20 प्रश्न – संदीप देव

केजरीवाल मेरी पुस्‍तक ‘केजरीवाल: सच्‍चाई या साजिश’ में मौजूद सच्‍चाई को काट दें और मेरे 20 सवालों के जवाब दे दें मैं अपने परिवार के 5 वोट पक्‍के तौर पर उनके ही उम्‍मीदवार को दूंगा… संदीप देव

मैंने दिल्‍लीवासी होने के नाते अरविंद केजरीवाल से पूछे हैं 20 सवाल, जिससे वो भागते रहे हैं। इन सवालों की सच्‍चाई सबूत सहित मैंने अपनी पुस्‍तक ” केजरीवाल: सच्‍चाई या साजिश” में प्रस्‍तुत की है। आज इस पुस्‍तक के आधार पर जी न्‍यूज, इंडिया टीवी आदि ने भी केजरीवाल से यह सवाल पूछा है, लेकिन वो और उनकी टीम भागती नजर आ रही है। किसी पर झूठे आरोप लगाने वाले केजरीवाल का तर्क ही मैं उन्‍हें दे रहा हूं कि यदि मेरे ये सवाल और उसके पक्ष में पेश किए गए सबूत झूठे हैं तो केजरीवाल मुझ पर मुकदमा करें या फिर दिल्‍ली की जनता को गुमराह करना बंद करें.

1.अन्ना के पहले चरण के आंदोलन 5 अप्रैल 2011 से एक दिन पहले 4 अप्रैल 2011 को सोनिया गांधी की किचन कैबिनेट ‘एनसी’ की बैठक में केजरीवाल हिस्सा लेने किस लिए गए थे ?

2.एनएसी की वेबसाइट इस बात का खुलासा करती है कि अन्ना आंदोलन से पूर्व और उसके बाद आयोजित तीन बैठकों में अरविंद केजरीवाल ने इसमें हिस्सा लिया, जबकि इस बारे में आज तक जनता से सबकुछ छुपाया गया?

  1. क्या यह सही नहीं है कि 16 अगस्त 2011 को अन्ना की गिरफ्तारी से अरविंद केजरीवाल बेहद खुश थे? उनके ही साथी आशुतोष ने ‘अन्ना क्रांति‘ पुस्तक के पेज-98 पर इसका खुलासा किया है कि अन्ना की गिरफ़तारी से अरविंद की इच्छा पूरी हो रही थी।
  2. अनशन के नौवें दिन डा त्रेहन ने अन्ना की बिगड़ती सेहत के बाद उन्हें ड्रिप लगा दिया और अन्ना ने इसे लगवा भी लिया था, लेकिन कुछ ही देर में मीडिया में खबर लीक कर दी गई, जिससे आहत अन्ना ने ड्रिप हटवा दिया। आशुतोष की ‘अन्ना क्रांति‘ पुस्तक के पेज संख्या-156 पर अन्ना के ड्रिप लगवाने और मीडिया में खबर फैलाते ही उसे हटाने की चर्चा है! पेज संख्या- 92 पर आशुतोष ने स्पष्ट लिखा है कि ‘‘ अरविंद नजरें बचाकर मैसेज (न्यूज चैनल) भेज रहे थे ! पेज नंबर-88 पर आशुतोष ने लिखा है कि अरविंद-मनीष ने अन्ना के राजघाट पर जाने की सूचना बहुत चतुराई से मीडिया को लीक की थी! तो क्या अन्ना को ग्लूकोज चढ़ाने की सूचना भी मीडिया में उसी चतुराई से केजरीवाल -सिसोदिया ने मीडिया में लीक की थी? ताकि उनका लगा हुआ ड्रिप हटवाया जा सके, जिससे उनकी मौत हो जाए, ताकि देश में क्रांति भड़क सके जिसका आगे चलकर वह राजनीति फायदा उठा सके जैसा कि अन्ना के आंदोलन को राजनीतिक पार्टी में तब्दील कर उन्होंने उठाया?
  3. क्या यह सही नहीं है कि 29 अक्टूबर 2011 को गाजियाबाद के कौशांबी में अरविंद ने एक सामूहिक बैठक कर अन्ना को ब्लैकमेल करने के लिए कुमार विश्वास के मार्फत कोर कमेटी भंग करने का प्रस्ताव मीडिया में भिजवाया, लेकिन जब अन्ना की ओर से कोर कमेटी भंग करने का इशारा मिला तो इसे कुमार विश्वास की निजी राय बता दी गई, जबकि उस बैठक में अन्ना के टीम के लगभग सभी सदस्य थे? क्या यह यह दोहरा चरित्र नहीं है?
  4. क्या सही नहीं है कि 9 जनवरी 2012 को गाजियाबाद में चली 8 घंटे की बैठक में ‘आम आदमी पार्टी‘ के निर्माण की योजना बनी थी, लेकिन जनता को धोखा देने के लिए इसे जुलाई-अगस्त 2012 के अरविंद के अनशन का परिणाम प्रदर्शित किया गया जबकि पार्टी बनाने की योजना अरविंद के अनशन से छह महीने पहले ही बन गई थी?

7.क्या यह सही नहीं है कि बिना एफसीआरए पंजीकरण के केजरीवाल- सिसोदिया ने विदेशी फंड हासिल किया? केजरीवाल-सिसोदिया के एनजीओ ‘कबीर‘ को फोर्ड फाउंडेशन से 2005 में 1 लाख 72 हजार डाॅलर व 2008 में 1 लाख 97 हजार डालर मिला था, जिसकी पुष्टि 31 अगस्त 2011 को ‘बिजनस स्टैंडर्ड‘ में फोर्ड के अधिकारी स्टीवन साॅलनिक के साक्षात्कार से होती है! क्या यह सही नहीं है कि यूपीए सरकार की गृहमंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, ‘कबीर‘ का एफसीआरए का पंजीकरण 2007 में हुआ था जबकि बिना एफसीआरए पंजीकरण के विदेशी फंड मिल ही नहीं सकती है। क्या अपनी इस ईमानदारी के बारे में केजरीवाल कुछ बताएंगे?

8.क्या यह सही नहीं है कि फोर्ड फाउंडेशन की एशिया प्रमुख कविता रामदास के पिता लक्ष्मी रामदास, मां, ललिता रामदास, बहन सागरी रामदास ‘आआपा‘ के नीति निर्धारक समितियों में शामिल हैं?

9.क्या यह सही नहीं है कि केजरीवाल कांग्रेसी नेताओं के साथ गुप्त बैठक के लिए जर्मनी गए थे और उनकी यात्रा की पूरी फंडिंग एक कांग्रेसी नेता आशीष तलवार ने की थी, जिसे बाद में अपनी पार्टी में भी केजरीवाल ने पदाधिकारी बनाया?

10.क्या यह सही नहीं है कि केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने से केवल 7 दिन पहले 21 दिसंबर 2013 को दिल्ली के सबसे बड़े जमीन घोटाले में फंसी जीएमआर कंपनी ने उन्हें ‘पर्सन आॅफ द इयर‘ का अवार्ड दिलवाया था जबकि सीएजी की 17 अगस्त 2012 को संसद में पेश रिपोर्ट के मुताबिक जीएमआर का एयरपोर्ट जमीन घोटाला अब तक देश का सबसे बड़ा जमीन घोटाला है, जिसमें सरकारी खजाने को 1 लाख 63 हजार करोड़ रुपए का चूना लगा है!

11.क्या केजरीवाल ने इसी पुरस्कार के कारण अपने मुख्यमंत्रित्व काल में दिल्ली के जमीन घोटाले की जांच का आदेश नहीं दिया, जबकि उन्होंने दिल्ली के अधिकार क्षेत्र से बाहर आंध्रप्रदेश के केजी बेसिन के गैस घोटाले की जांच का आदेश दे दिया! क्या यह जनता की आंख में धूल झोंकने और दिल्ली के एक भ्रष्टाचारी कंपनी के साथ भ्रष्ट गठजोड़ का मामला नहीं है?

12.क्या यह सही नहीं है कि गाजियाबाद निवासी केजरीवाल ने दिल्ली में अपना फर्जी मतदाता पहचान पत्र बार-बार बनवाया है? 9 जनवरी 2015 को दिल्ली चुनाव आयोग ने विट्ठल भाई पटेल के पता पर पहचान पत्र बनाने की उनकी अर्जी को क्या खारिज नहीं किया है? क्या यह सच नहीं है कि इसके बाद उन्होंने दत्त काॅलोनी के नाम पर फर्जी पहचान पत्र बनवाया है?

13.क्या यह सही नहीं है कि 5 मार्च 2014 को वह गुजरात में नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल का परीक्षण कर रहे थे और ठीक उसी वक्त दिल्ली विधानसभा-40 के एईआरओ के सामने फार्म 8ए भी जमा करा रहे थे? क्या केजरीवाल सुपरमैन हैं कि एक ही समय गुजरात में भी मौजूद रहते हैं और उसी वक्त दिल्ली के चुनाव आयोग में उपस्थित होकर हस्ताक्षर भी कर रहे होते हैं?

14.क्या यह सही नहीं है कि जिस रॉबर्ट वाड्रा के घोटाले पर प्रेस वार्ता को अरविंद ने अपनी ‘आआपा‘ का लांचिंग पैड बनाया था, उसी घोटाले को उजागर करने वाले आईएएस अशोक खेमका की रिपोर्ट को डस्टबीन में डालने वाले युद्धवीर सिंह ख्यालिया को उन्होंने हिसार से लोकसभा का टिकट दिया था?

15.क्या यह सही नहीं है कि केजरीवाल ने उत्तराखंड के खंडूरी सरकार की तरह मजबूत लोकपाल बिल दिल्ली विधानसभा में पेश करने की जगह लोकपाल के नाम पर झूठ बोला और फिर भाग खड़े हुए?

16.क्या यह सही नहीं है कि केजरीवाल ने हर रोज 667 लीटर मुफ्त पानी देने की जो घोषणा की थी, उसमें दिल्ली की केवल 3.5 लाख घर ही कवर होते हैं। क्योंकि इसके लिए पानी के मीटर चालू हालत में होने की शर्त जोड़ी गई थी जो केवल 3.5 लाख घरों में ही लगे हैं।

17.क्या यह सही नहीं है कि केजरीवाल ने जिस अंबानी की कंपनी को गाली दिया, उसी की बिजली कंपनी को 323 करोड़ का सब्सिडी भी दिया?

18.क्या यह सही नहीं है कि केजरीवाल ने सब्सिडी देकर केवल बिजली कंपनी को लाभ पहुंचाया, क्योंकि उनके मुख्यमंत्री पद से हटते ही मार्च से फिर से बिजली का पुराना दाम लागू हो गया, क्योंकि केजरीवाल ने बिजली वितरण के लिए बजट की व्यवस्था करने की जगह कंपनी को सब्सिडी के जरिए फायदा पहुंचाया और गददी छोड़ कर भाग खड़े हुए?

19.क्या यह सही नहीं है कि केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनने से पूर्व सुरक्षा नहीं लेने की बात कही थी और मुख्यमंत्री बनने के बाद न केवल दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर दिनेश कुमार को उनका बॉडिगार्ड नियुक्त किया गया था, बल्कि तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के अनुसार, केजरीवाल को उनके घर पर यूपी सरकार ने जेड श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की थी जबकि उन्हें 24 घंटे 3 सब इंस्पेक्टर, 7 हवलदार, 10 सिपाही की सुरक्षा प्रदान की गई थी?

  1. क्या यह सही नहीं है कि केजरीवाल की पार्टी दिल्ली में एक खास समुदाय के कटटपंथी मतदाताओं को लुभाने के लिए फिर से अलगाववादी ‘खालिस्तान‘ आंदोलन को जिंदा करने की कोशिश में हैं। हाल ही में ‘आआपा‘ के पश्चिमी दिल्ली लोकसभा से उम्मीदवार रह चुके व पूर्व में केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम पर जूता उछालने वाले पत्रकार जरनैल सिंह आखिर लंदन में खालिस्तान आंदोलन की बैठक में क्या करने गए थे?

प्‍लीज दिल्‍लीवासी मतदान करने से पूर्व आप भी केजरीवाल, उनके उम्‍मीदवार व आआपा के समर्थकों से यह सवाल पूछें और यदि वो इसका सही उत्‍तर दें तभी उन्‍हें वोट दें, अन्‍यथा यह मान कर चलें कि यह व्‍यक्ति फर्जी तरीके से और लगातार झूठ बोलकर केवल आपका मत हासिल करना चाहता है। आपको मैं कल से अपनी पुस्‍तक में लगाए गए सबूत भी सोशल मीडिया के जरिए पहुंचाऊंगा ताकि यदि आप स्‍वयं निर्णय कर सकें कि आखिर इस व्‍यक्ति के राजनीति में आने का उददेश्‍य क्‍या है…

लेखक – संदीप देव

25 से अधिक कडवे सच – “आप” और देशद्रोह

ये सही है कि अंध-भक्ति सही नहीं है, फिर चाहे ये अंध-भक्ति नरेन्द्र-मोदी जी की हो, केजरीवाल जी की हो या सोनिया जी की | यदि आप पढ़े-लिखे समाज के एक जिम्मेदार व्यक्ति है, तब सच्चाई को जानने का आपका कर्त्तव्य भी है और अधिकार भी | लेकिन यदि सूचनाओ के रहते कोई सच्चाई से अपनी आँखें मूड ले, तब दोष किसका ?
कहते है कि “सब कुछ गवां के होश में आये तो क्या किया” | इससे पहले आप अपनी नजरो में गिर जाए, आपको अपने आप पर, अपनी जानकारी और कर्मो पर शर्मिंदगी उठानी पड़े, शायद पश्चाताप का समय भी न मिले .. अच्छा है आप सच्चाई को जाने | हम आपके सामने कुछ तत्थ्य रख रख रहे है, इनको मानना या न मानना आपका अधिकार है | 

1. भारतीय आर्मी के दो जवान के सर पाकिस्तानी सैनिको ने काट दिए, लघभग सभी पार्टियों ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई न कोई बयान दिया था | लेकिन  केजरीवाल जी का कहना है कि “पाकिस्तान से जंग नही होनी चाहिए ।” कहीं ये मुस्लिम तुष्टीकरण तो नहीं है ? अपने देश के सैनिको के सम्मान की रक्षा में असमर्थता, कायरता ?
लिंक देखिये –
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Pak-army-act-unpardonable-but-war-is-undesirable-Kejriwal/articleshow/18049289.cms

2. “अफजल गुरु की फांसी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की बदनामी हुई है ।” – मुस्लिम तुष्टीकरण एवं देशद्रोह ?
क्योंकि काफी मुस्लिमों ने अफज़ल की फांसी का विरोध किया था
लिंक देखिये-
http://hindi.yahoo.com/national-10191838-111003850.html

3. “भारतीय आर्मी कश्मीरी लोगो को मारती है |” – मुस्लिम तुष्टीकरण एवं देशद्रोह ?
लिंक देखिये
http://www.greaterkashmir.com/news/2013/Mar/6/army-responsible-for-killing-of-kashmiris-prashant-bhushan-41.asp
इनका कहना है – कश्मीर में मुस्लिम चाहते है कि कश्मीर को भारत से अलग कर दिया जाये इसलिए कश्मीर को अलग कर के भारत का एक टुकड़ा और कर दिया जाए |

4. हिन्दू आतंकवाद आज चरम पर है – मुस्लिम तुष्टीकरण ?
लिंक देखिये-
http://hindi.yahoo.com/national-10191838-111003850.html
क्या आज तक किसी पार्टी ने यह कहा है कि मुस्लिम आतंकवाद आज चरम पर है ?

5. “कश्मीर को भारत से अलग कर दिया जाये” – मुस्लिम तुष्टीकरण एवं देशद्रोह ?
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=QQom1xy8kUM
कश्मीर में मुस्लिम चाहते है कि कश्मीर को भारत से अलग कर दिया जाये |

6. बुखारी ने कहा अन्ना के आन्दोलन* से वन्दे मातरम बंद कर दीजिये क्यूंकि मुस्लिमों में वन्दे मातरम नही बोला जाता है, केजरीवाल ने बंद किया वन्दे मातरम और बाद में इसी बुखारी के पास मिलने भी गये | –  मुस्लिम तुष्टीकरण एवं देशद्रोह ?
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=2wyufhKIyes
क्या ऐसे लोगो का समर्थन लेना जरुरी था केजरीवाल को ?

7. “आप” पार्टी की साईट पर एक खास कॉलम बनाया गया “Muslim Issus” –  मुस्लिम तुष्टीकरण ?
लिंक देखिये-
http://www.aamaadmiparty.org/meettheteam.aspx
क्या हिन्दुओ की कोई समस्या नही होती है, क्या मुस्लिमों की ही आज देश में समस्या हैं ?

8. बुखारी की जामा मस्जिद पर 4 करोड़ का बिजली का बिल कई सालो से बकाया है पर न कांग्रेस कुछ कहती है न हमारे केजरीवाल जी – मुस्लिम तुष्टीकरण ?
लिंक देखिये-
http://www.indianexpress.com/news/jama-masjid-runs-up-rs-4cr-power-bill-spat-over-dues-has-area-in-dark/1007397/
जबकि केजरीवाल बिजली बिल के खिलाफ इतने दिनों से बैठे है जिसे वो अनशन कहते हैं |

9. अकबरुद्दीन ओवैसी ने बयान दिया कि हम 100 करोड़ हिन्दुओ को खत्म कर देंगे और श्री राम को गलियां दी पर केजरीवाल का कोई बयान ओवेसी के खिलाफ नही आया बल्कि उन्होंने सुदर्शन न्यूज़ को ही खबर ना दिखाने की नसीहत दे डाली – मुस्लिम तुष्टीकरण ?
सुनिए रोंगटे खड़े कर देने वाले हिन्दू के खिलाफ इस विडियो को-
https://www.youtube.com/watch?v=BXFFR8NXG1E
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=HiyRCEDjLBs
केजरीवाल भक्त कहते हैं कि सुदर्शन न्यूज़ चैनल को कोई कॉल नही किया गया है तो केजरीवाल ने ओवैसी का कहीं विरोध क्यूँ नही किया है, किसी भी मीडिया में ओवैसी के खिलाफ केजरीवाल का कोई बयान नही आया है |

10. “कांग्रेस के हिन्दू विरोधी बिल का समर्थन” –  मुस्लिम तुष्टीकरण
जानिए इस रोंगटे खड़े कर देने वाले हिन्दू के खिलाफ बिल को-
http://www.youtube.com/watch?v=vK9CkyVXi90
http://www.youtube.com/watch?v=Da1dtkeikew
केजरीवाल की साथी साजिया इल्मी का tweet देखिये
लिंक देखिये-
https://twitter.com/shaziailmi/status/156335195665072129
केजरीवाल भक्त कहते हैं, हम इस बिल का समर्थन नही करते हैं तो फिर आपने अभी तक ऐसे हिन्दू विरोधी बिल के खिलाफ मीडिया में कोई बयान क्यूँ नही दिया है |

11. अरविन्द केजरीवाल की संस्था को फोर्ड फाउंडेशन से पैसे मिले –
लिंक देखिये-
http://www.ibtl.in/news/exclusive/1162/arvind-kejriwal-and-manish-sisodia–has-received-400-000-dollars-from-the-ford-foundation-in-the-last-three-years—arundhati-roy
जिसका पेट विदेशी पालते हों वो देश के बारे में भला सोचेगा कैसे ?

12. जनता के पेसे से केजरीवाल एश कर रहे हैं, देखिये इस बिल को
लिंक देखिये-
http://www.bhaskar.com/article/NAT-india-against-corruption-movement-complete-fund-and-expenditure-details-3836280-PHO.html?seq=4&HT1=%3FBIG-PIC%3D
http://www.bhaskar.com/article/NAT-india-against-corruption-movement-complete-fund-and-expenditure-details-3836280-PHO.html?seq=5&HT1=%3FBIG-PIC%3D

13. अरविन्द केजरीवाल से प्रश्न पूछो और पिटाई खाओ ! इनसे कोई सवाल करे तो समर्थक उसको पीट देते हैं |
लिंक देखिये-
http://www.punjabkesari.in/news/केजरीवाल-से-सवाल-पूछना-पड़ा-मंहगा-114388

14. केजरीवाल पर घोटाले का तथ्य छुपाने का आरोप
लिंक देखिये-
http://www.samaylive.com/nation-news-in-hindi/174062/yp-singh-slam-kejriwal-for-hiding-land-scam.html

15. कांग्रेस ने अपने विरोध को रोकने के लिए और अपने प्रचार के लिए सोशल मीडिया पर 100 करोड का खर्चा किया है पर केजरीवाल टीम ने खुलासा किया कि बीजेपी ने 100 करोड़ का खर्चा किया है |
लिंक देखीये-
http://www.governancenow.com/gov-next/egov/congress-plans-rs-100-crore-social-media-war-chest

16. केजरीवाल की साथी अंजलि दमानिया के घोटाले का पूरा लेखा झोका !
लिंक देखिये-
http://www.dnaindia.com/pune/report_activist-anjali-damania-a-land-shark-too_1746829

17. कुमार विश्वास ‘ब्रह्मा विष्णु महेश’ का मजाक उड़ाते हुए – क्या कभी कुमार ने अलाह या इसाइयत पर ऐसा कुछ बोला है ?
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=CvANmaShh2U

18. जिस दिन केजरीवाल ने गडकरी के खिलाफ खुलासा किया था उसके अगले ही दिन ABP न्यूज़ चैनल उन किसानो के घर गया था और वहां जाकर पता चला कि गडकरी ने उनकी जमीन नही हडपी है और आज भी वो वहां खेती कर रहे हैं |
लिंक देखिये:-
http://www.youtube.com/watch?v=2aYX2Ik5tgk
http://www.youtube.com/watch?v=HtGHcUjJlag
अब समझ आया कि केजरीवाल केवल खुलासे ही क्यूं करते हैं कोर्ट क्यूँ नही जाते हैं क्यूंकि वहां तो इनके खुलासे चलेंगे नही अभी से झूट बोलता है राजनीति में आया तो न जाने क्या क्या करेगा?

19. केजरीवाल टीम का पाकिस्तानी प्रेम – फेसबुक पर लिखते हैं “I love Pak”
लिंक देखिये-
http://www.bhaskar.com/article/TOW-i-love-my-pakista-status-deleted-by-facebook-4178960-NOR.html
कहता है …. ” हमारे पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन ये कैसी अभिव्यक्ति की हम आई लव पाकिस्तान तक नहीं लिख सकते। मैंने यह स्टेट्स सिर्फ इसलिए लिखा था क्योंकि मैं दोनों देशों के बीच बेहतर संबंधों की ख्वाहिश रखता हूं।”
जरा हरामखोरी की हद तो देखो !!! आए दिन हमारे जवानों, देश में आतंवाद जैसी घटनाओं को अंजाम देने में लिप्त पाकिस्तान के साथ ये देश द्रोही बेहतर सम्बन्ध बनाने की ख्वाइश रखते हैं |

20. केजरीवाल को यह चुनौती दी थी की अगर उनकी टीम में हिम्मत है तो वे जंतर मंतर में होने वाले debate में शामिल हों और मेरे तथा अन्य सदस्यों के सवालों का जवाब दें। परन्तु टीम केजरीवाल का कोई भी सदस्य चर्चा में शामिल नहीं हुआ
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=XPJsKzWxbKw&list=UU1tnj_v8Sn-hWERFvqSjBWQ&index=9
सभी पार्टी से सवाल पूछते रहते हैं और इनसे कोई सवाल करे तो भाग जाते हैं |

21. प्रशांत भूसण हिमाचल प्रदेश के जमीन घोलते में फसे हुए हैं |
लिंक देखिये-
http://ibnlive.in.com/news/himachal-pradesh-probe-begins-into-prashant-bhushans-land-deal/376046-3-254.html
खुद की पार्टी में घोटाले हैं और लोगो से सवाल पूछते हैं |

22. प्रशांत भूसण जज को 4 करोड़ की घुस देते हैं |
लिंक देखिये-
http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2011-04-17/india/29427409_1_forensic-experts-corruption-spectrum-scam
खुद की पार्टी में चोर हैं और पार्टी में चोर बता रहे हैं |

23. शांति भूसन का 1.3 करोड़ रुपए की टैक्स चोरी में पकड़े गए और 27 लाख का जुरमाना भरा |
लिंक देखिये-
http://www.ndtv.com/article/india/team-anna-s-shanti-bhushan-found-guilty-of-evading-1-3-crores-of-property-taxes-164319
खुद की पार्टी में चोर हैं और पार्टी में चोर बता रहे हैं |

24. शांति भूसण ने बैंगलोर में धमाके करने वाले आंतकवादी अब्दुल नससे मदनी को बचाया था ? इस आतंकवादी ने कितने ही बेगुनाहों की हत्या कर दी थी? क्या शांति भूसन का मदनी को अपने मित्र के नाते सजा से बचाना सही है?
लिंक देखिये-
http://www.indianexpress.com/news/madani-may-pose-major-threat-if-released-ktaka-govt/783526
खुद देशद्रोही को बचाते हैं |

25. शांति भूसण नॉएडा व इलाहबाद के जमींन घोटाले में फंसे और आरोप सिद्ध भी हो चुके हैं |
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=xRPmTOtFln8
एक चोर पार्टी दूसरी पार्टी में चोर देख रही है |

26. शांति भुसण का आतंकवादी शौकत हुसैन गुरु जिसने 2001 में संसद पर आतंकी हमले किये थे उसको बचाना सही था ?
लिंक देखिये-
http://www.indlawnews.com/Newsdisplay.aspx?5b7510bd-868e-4a1b-ad58-386ec7aeb7fd

28. शांति भूसण का मुंबई में 1993 में हुए बम धमाको में आरोपी आतंकवादियों को बचाना सही था ?
लिंक देखिये-
http://news.google.co.nz/newspapers?id=luIVAAAAIBAJ&sjid=kRMEAAAAIBAJ&pg=2103%2C2936835

29 कश्मीर दंगो, असम दंगो, सिख दंगो, अभी हाल ही मे हुए पश्चिम बंगाल दंगो, बंगलादेश दंगो, रामसेतु मुद्दे पर ये कुछ नहीं कहते | सरकार द्वारा हिन्दू विरोध पर कुछ नही कहते, लेकिन गुजरात दंगो में मुस्लिम पर इतनी चिंता ? ( जबकि नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल चुकी है )
लिंक देखिये-
http://www.youtube.com/watch?v=gnNyH401nQc
अब भी कोई व्यक्ति इस पार्टी के साथ है, तो क्या वो देश-द्रोही, हिन्दू विरोधी और जीता जागता मूर्ख नहीं है ? निर्णय आप स्वं कीजिये | कहीं आपका ध्यान “आप”, केजरीवाल टीम और देशद्रोही गतिविधियों से हटकर, क्रमांक पर तो नहीं है ? यदि ऐसा है, तब मान लीजिये कि आप अपने साथ धोखा कर रहे है .. आपको देश की नहीं, क्रमांक की चिंता अधिक है ||

अरविन्द केजरीवाल : एक योद्धा या एक मोहरा ?

जब किसी कम्पनी के सारे उत्पाद एक-एक करके मार्केट में फ़ेल होने लगते हैं और कम्पनी का मार्केट शेयर गिरने लगता है, तथा उसकी साख खराब होने लगती है, साथ ही जब उसकी प्रतिद्वंद्वी कम्पनी के मार्केट में छा जाने की संभावनाएं मजबूत होने लगती हैं, तब ऐसी स्थिति में वह कम्पनी क्या करती है? अक्सर ऐसी स्थिति में दो-तरफ़ा “मार्केटिंग और मैनेजमेण्ट की रणनीति” के तहत – 1) किसी तीसरी कम्पनी को अधिग्रहीत कर लिया जाता है, और नए नामों से प्रोडक्ट बाज़ार में उतार दिए जाते हैं और 2) इस नई कम्पनी के ज़रिए, यह बताने की कोशिश की जाती है कि, प्रतिद्वंद्वी कम्पनी के उत्पाद भी बेकार हैं।

एक प्रसिद्ध विचारक ने कहा है कि – “…If you could not CONVINCE them, CONFUSE them…” अर्थात यदि तुम सामने वाले को सहमत नहीं कर पाते हो, तो उसे भ्रम में डाल दो… आप सोच रहे होंगे कि Arvind Kejriwal की तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम(?) का इस मार्केटिंग सिद्धांत से क्या सम्बन्ध है? यदि पिछले कुछ माह की घटनाओं और विभिन्न पात्रों के व्यवहार पर निगाह डालें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि अरविन्द केजरीवाल, इसी “नई तीसरी कम्पनी” के रूप में उभरे हैं, जो कि वास्तव में कांग्रेस नामक कम्पनी का ही “बाय-प्रोडक्ट” है। इसे सिद्ध करने के लिए पहले हम घटनाक्रमों के साथ-साथ इतिहास पर भी आते हैं…
      अधिक पीछे न जाते हुए हम सिर्फ़ दो “मोहरों” के इतिहास को देखेंगे… पहला है पंजाब में जरनैल सिंह भिंडराँवाले और दूसरा है महाराष्ट्र में राज ठाकरे (Raj Thakre)…। पाठकों को याद होगा कि जब पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने अपने राजनैतिक अभियान के तहत कांग्रेस के खिलाफ़ अकाली दल को खड़ा किया, और उसकी लोकप्रियता रातोंरात बढ़ी, तब इन्दिरा गाँधी की नींद उड़ना शुरु हो गई थी। कांग्रेस ने (अर्थात इंदिरा गाँधी ने) पंजाब में जरनैल सिंह भिंडरांवाले को समर्थन और मदद देना शुरु किया, ताकि अकाली दल से मुकाबला किया जा सके। इस चाल में कामयाबी भी मिली और अकाली दल दो-फ़ाड़ हो गया, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में भी दरार पड़ गई और धीरे-धीरे भिंडरांवाले सर्वेसर्वा बनकर काबिज हो गए। भिंडराँवाले के कई कार्यों और सम्पर्कों की तरफ़ से जानबूझकर आँख मूंदे रखी गई, परन्तु इसकी आड़ में कांग्रेस को धता बताते हुए खालिस्तान आंदोलन मजबूत हो गया। हालांकि आगे चलकर कांग्रेस को इस “चालबाजी” और घटिया राजनीति का खामियाज़ा इन्दिरा गाँधी की जान देकर चुकाना पड़ा, परन्तु इस लेख का मकसद पंजाब की राजनीति में जाना नहीं है, बल्कि कांग्रेस द्वारा “मोहरे” खड़े करने की पुरानी राजनीति को बेनकाब करना है।
      ठीक भिंडरांवाले की ही तरह महाराष्ट्र के मुम्बई में शिवसेना के दबदबे को तोड़ने के लिए राज ठाकरे की महत्त्वाकांक्षाओं को न सिर्फ़ हवा दी गई, बल्कि उसके कई कृत्यों (दुष्कृत्यों) की तरफ़ से आँख भी मूँदे रखी गई। राज ठाकरे ने कई बार महाराष्ट्र सरकार को चुनौती दी, बिहारियों के साथ सरेआम मारपीट भी की, लेकिन चूंकि राज ठाकरे के उत्थान में कांग्रेस अपना फ़ायदा देख रही थी, इसलिए उसे परवान चढ़ने दिया गया, ताकि वह शिवसेना के मुकाबले खड़ा हो सके और उनके आपसी वोट कटान से कांग्रेस को लाभ मिले…। इस चाल में भी कांग्रेस कामयाब रही, राज ठाकरे की गलतियों और कृत्यों पर परदा डालने के अलावा, मनसे को खड़ा करने के लिए लगने वाला “लॉजिस्टिक सपोर्ट” (आधारभूत सहायता) भी कांग्रेस ने मुहैया करवाई, जिसके बदले में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कम से कम 40 सीटों पर राज ठाकरे ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन को नुकसान पहुँचाया, आगे चलकर नगरीय निकाय चुनावों में भी राज ठाकरे ने विपक्ष को भारी नुकसान पहुँचाया… कांग्रेस यही तो चाहती थी। हालांकि इन दोनों किरदारों में जमीन-आसमान का अन्तर है और केजरीवाल के साथ इनकी तुलना शब्दशः अथवा सैद्धांतिक रूप से नहीं की जा सकती, परन्तु पहले दोनों उदाहरण कांग्रेस द्वारा मोहरे खड़े करके फ़ूट डालने के सफ़ल उदाहरण हैं। अब हम आते हैं केजरीवाल पर…
      क्या कभी किसी ने ऐसा उदाहरण देखा है, कि सरेआम कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए कोई व्यक्ति बिजली के खंभे पर चढ़कर, जबरन किसी की काटी गई बिजली जोड़ दे। वहाँ खड़े होकर मुस्कुराते हुए फ़ोटो खिंचवाए, पत्रकारों को इंटरव्यू दे और आराम से निकल जाए… और इतना सब होने पर भी उस व्यक्ति के खिलाफ़ एक FIR तक दर्ज ना हो? आम परिस्थितियों में ऐसा नहीं हो सकता, लेकिन यदि उस व्यक्ति को परदे के पीछे से कांग्रेस का पूरा समर्थन हासिल हो तब जरूर हो सकता है। Arvind Kejriwal कहते हैं कि दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ना उनका पहला लक्ष्य है, जबकि वास्तव में यह लक्ष्य कांग्रेस का है, कि किसी भी तरह शीला दीक्षित को चौथी बार चुनाव जितवाया जाए, इसलिए यदि केजरीवाल को आगे करने, बढ़ावा देने और उसके खिलाफ़ कोई कड़ी कार्रवाई न करके, दिल्ली विधानसभा की 20-25 सीटों पर भी भाजपा को मिलने वाले वोटों की “काट” खड़ी की जा सके, तो यह कोई बुरा सौदा नहीं है। आँकड़े बताते हैं कि कांग्रेस और भाजपा को मिलने वाले वोटों का प्रतिशत लगभग समान ही होता है, परन्तु सिर्फ़ एक-दो प्रतिशत वोटों से कोई भी पार्टी हार सकती है। शीला दीक्षित हो या कांग्रेस के ढेरों मंत्री, किसी की “मार्केट इमेज” अच्छी नहीं है (बल्कि रसातल में जा चुकी है), ऐसे में यदि केजरीवाल नामक प्रोडक्ट को बाज़ार में स्थापित कर दिया जाए और मार्केट शेयर (यानी वोट प्रतिशत) का सिर्फ़ 2-3 प्रतिशत बँटवारा भी हो जाए, तो कांग्रेस की मदद ही होगी। अर्थात कांग्रेस या किसी अन्य तीसरी शक्ति के “बाय-प्रोडक्ट” अरविन्द केजरीवाल के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव एक प्रकार का “लिटमस टेस्ट” भी है और“टेस्टिंग उपकरण” भी है। यदि “ईमानदारी”(?) का ढोल पीटते हुए राजा हरिश्चन्द्रनुमा इमेज के जरिए कुछ बुद्धिजीवियों, कुछ आदर्शवादी युवाओं और कुछ भोले-भाले लोगों को“भ्रमित” (Confuse) कर लिया तो समझो मैदान मार लिया…। यदि दिल्ली विधानसभा में यह “प्रयोग” सफ़ल रहा तभी इसे 2014 के लोकसभा चुनावों में भी आजमाया जाएगा…
      बहरहाल, बात हो रही थी केजरीवाल की…। वास्तव में दो साल पहले जब से अन्ना आंदोलन आरम्भ हुआ, तभी से यह देखा गया कि उस टीम के क्रियाकलापों में अरविन्द केजरीवाल की किसी से भी नहीं बनी। अक्सर केजरीवाल अपनी मनमानी चलाते रहे और उनके तानाशाही और “पूर्व-अफ़सरशाही” रवैये के कारण अन्ना हजारे, किरण बेदी, जस्टिस हेगड़े समेत एक-एक कर सभी साथी केजरीवाल से अलग होते गए। परन्तु चूंकि केजरीवाल उस “विशिष्ट जमात” से आते हैं जो NGOs के विशाल नेटवर्क के साथ-साथ सेकुलरों और वामपंथियों के जमावड़े से बना हुआ है, तो इन्हें नए-नए मित्र मिलते गए। परन्तु केजरीवाल के साथ दिक्कत यह हो गई, कि जिस “राजा हरिश्चन्द्र” की छवि के सहारे वे कांग्रेस और भाजपा को एक समान बताने अथवा दोनों पार्टियों को एक जैसा भ्रष्ट बताने की कोशिशों में लगे, उनके दागी साथियों के इतिहास और पूर्व-कृत्यों ने इस पर पानी फ़ेर दिया। इनके साथियों के इतिहास को भी हम बाद में संक्षिप्त में देखेंगे, पहले हम केजरीवाल द्वारा की गई “राजनैतिक” चालाकियों और किसी “तीसरी शक्ति”द्वारा संचालित होने वाले उनके “मोहरा-व्यवहार” पर प्रकाश डालेंगे…
      जब केजरीवाल, अन्ना से अलग हुए और उन्होंने राजनैतिक पार्टी बनाने का फ़ैसला किया, उसी दिन से उन्होंने स्वयं को “इस ब्रह्माण्ड का एकमात्र ईमानदार व्यक्ति”बताने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। केजरीवाल के इस तथाकथित आंदोलन के लॉंच होने से पहले देश में दो बड़े-बड़े घोटालों पर चर्चा, बहस और विच्छेदन चल रहे थे, वह थे 2G घोटाला और कोयला घोटाला तथा थोरियम घोटाले की खबरें भी छन-छनकर मीडिया में आना शुरु हो चुकी थीं। लेकिन केजरीवाल ने अपनी आक्रामक छापामार मार्केटिंग तकनीक तथा चैनलों के TRP प्रेम को अपना “हथियार” बनाया। जिस तरह“कौन बनेगा करोड़पति” के अगले एपीसोड का प्रचार किया जाता है, उसी तरह केजरीवाल भी अपने साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में “आज का खुलासा – आज का खुलासा” टाइप का प्रचार करने लगे।
      केजरीवाल ने अपनी मुहिम की पहली बड़ी शुरुआत की, दिल्ली में बिजली दरों के खिलाफ़ आंदोलन करके। उन्होंनें एक दो जगह जाकर कटी हुई बिजली जोड़ने का नाटक किया, मुस्कुराए, फ़ोटो खिंचाए और चल दिए। लेकिन केजरीवाल यह नहीं बता पाए कि जब दिल्ली की जामा मस्जिद पर चार करोड़ से अधिक का बिजली बिल बकाया है तो उसके खिलाफ़ उन्होंने एक शब्द भी क्यों नहीं कहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा-संघ-भगवा से नफ़रत करने के क्रम में जब पिछले अप्रैल में वे बुखारी को मनाने उनके घर पहुँचे थे, तब इनके बीच कोई साँठगाँठ पनप गई? खैर… केजरीवाल का अगला हमला(?) हुआ सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर तथा DLF के आर्थिक कनेक्शनों की संदिग्धता दर्शाने और पोल खोलने से। रॉबर्ट वाड्रा पर उन्होंने “सिर्फ़ 300 करोड़” के घोटाले का आरोप मढ़ा, और यह सिद्ध करने की कोशिश की, कि हरियाणा सरकार, रॉबर्ट वाड्रा, DLF और कांग्रेस सबने आपसी मिलीभगत से दिल्ली-राजस्थान-हरियाणा में जमकर जमीनों की लूट की है, जिससे रॉबर्ट वाड्रा को रातोंरात करोड़ों रुपए का लाभ हुआ है। एक शानदार सनसनी फ़ैलाने के लिए तो केजरीवाल द्वारा रॉबर्ट वाड्रा का नाम लेना बहुत मुफ़ीद साबित हुआ, और मीडिया ने इस हाथोंहाथ लिया… एक सप्ताह तक इस घोटाले पर मगजपच्ची होती रही, चैनलों के डिबेट-रूम गर्मागर्म बहस से सराबोर होते रहे। तत्काल अगले सप्ताह, “बिग-बॉस” (सॉरी… केजरीवाल बॉस) का नया संस्करण मार्केट में आ गया, जिसमें उन्होंने सलमान खुर्शीद पर उनके ट्रस्ट द्वारा विकलांगों के लिए खरीदे जाने वाले उपकरणों में “71 लाख का महाघोटाला”(?), चैनलों पर परोस दिया। अगले दस दिन भी सलमान खुर्शीद की नाटकीय घोषणाओं, केजरीवाल की चुनौतियों, फ़िर सलमान खुर्शीद की “प्रत्युत्तर प्रेस-कॉन्फ़्रेंस” में बीत गया। एपिसोड के इस भाग में, “उत्तेजना”,“देख लूंगा”, “स्याही और खून”, टाइप के अति-नाटकीय ड्रामे पेश किए गए। अर्थात 1 लाख 76 हजार करोड़ के कोयला घोटाले से सारा फ़ोकस पहले 300 करोड़ के घोटाले और फ़िर 71 लाख के घोटाले तक लाकर सीमित कर दिया गया। 
      यहाँ पर मुख्य मुद्दा यह नहीं है कि रॉबर्ट वाड्रा या सलमान खुर्शीद ने घोटाला या भ्रष्टाचार किया या नहीं किया, सवाल यह है कि इस प्रकार के “मीडिया-ट्रायल” औरTRP अंक बटोरू मार्केटिंग नीति से केजरीवाल ने, मुख्य मुद्दों से देश का ध्यान भटका दिया। सुशील शिंदे पहले ही कह चुके हैं कि जब जनता बोफ़ोर्स भूल गई तो बाकी के घोटाले भी भूल जाएगी, तब उनका विश्वास केजरीवाल ड्रामे पर ही था। जैसा कि बेनीप्रसाद वर्मा ने मजाक में कहा कि “सिर्फ़ 71 लाख” से क्या होता है? कोई केन्द्रीय मंत्री “इतने कम”(?) का घोटाला कर ही नहीं सकता, उसी प्रकार रियलिटी सौदों से जुड़ा हुआ कोई मामूली व्यक्ति भी मजाक-मजाक में ही बता सकता है कि वास्तव में रॉबर्ट वाड्रा भी 300 करोड़ जैसा “टुच्चा घोटाला” कर ही नहीं सकते, क्योंकि महानगर में रियलिटी क्षेत्र में बिजनेस करने वाला मझोला बिल्डर भी 300 करोड़ से ऊपर का ही आसामी होता है, फ़िर रॉबर्ट तो ठहरे “राष्ट्रीय दामाद”, विभिन्न अपुष्ट सूत्रों के अनुसार वाड्रा कम से कम 5 से 8 हजार करोड़ के मालिक हैं, लेकिन सिर्फ़ चैनलों पर एक सप्ताह की बहस हुई, चर्चा हुई, कांग्रेस ने कहा कि हम वाड्रा के खिलाफ़ जाँच नहीं करवाएंगे… और मामला खत्म, अगला मामला (यानी सलमान दबंग का) शुरु…।
      इन दोनों मुद्दों पर मिली हुई TRP, प्रसिद्धि, कैमरों-माइक की चमक-दमक औरVIP दर्जे ने अरविन्द केजरीवाल को एक गुब्बारे की तरह हवा में चढ़ा दिया। आम जनता के बीच चैनलों ने उनकी “राजा हरिश्चन्द्र” जैसी पहले से पेश की हुई छवि को, पॉलिश करके और चमकाना आरम्भ किया। इन शुरुआती हमलों के बाद चूंकि उन्हें भाजपा-कांग्रेस को एक समान दर्शाना था, इसलिए जल्दबाजी में उन्होंने नितिन गडकरी पर हमला बोल दिया। दस्तावेजों के अभाव, मुद्दों की अधूरी समझ तथा गडकरी को भ्रष्ट साबित करने की इस जल्दबाजी ने इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस को “फ़्लॉप शो” बनाकर रख दिया। यहाँ तक कि भाजपा के विरोधियों को भी केजरीवाल द्वारा गडकरी के खिलाफ़ पेश किए गए“तथाकथित सबूतों” में भ्रष्टाचार कहाँ हुआ है, यह ढूँढ़ने में खासी मशक्कत करनी पड़ी।परन्तु अव्वल तो केजरीवाल जल्दबाजी में हैं और दूसरे उनका किसी संस्था पर भरोसा भी नहीं है, इसलिए न तो केजरीवाल ने रॉबर्ट वाड्रा, न ही सलमान खुर्शीद और न ही नितिन गडकरी पर कोई FIR दर्ज करवाई, न कोई मुकदमा दायर किया और न ही सरकार से इन सबूतों(?) की किसी प्रकार की जाँच करने की माँग की। क्योंकि केजरीवाल का मकसद था, “सिर्फ़ हंगामा” खड़ा करके सस्ती लोकप्रियता बटोरना, और अपने “गुप्त” आकाओं के इशारे पर कांग्रेस-भाजपा को एक ही कठघरे में खड़ा करना। यहाँ पर भी चालबाजी यह कि जहाँ एक ओर गडकरी तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, वहीं दूसरी ओर रॉबर्ट वाड्रा तो कांग्रेस के सदस्य भी नहीं हैं… क्या केजरीवाल में सोनिया गाँधी के इलाज पर होने वाले खर्च, वायुसेना के विमानों की सवारी के बारे में सवाल पूछने की हिम्मत है? साफ़ बात है कि गडकरी पर हमला बोलकर उन्होंने अपना “छिपा हुआ मकसद” हासिल करने की नाकाम कोशिश की, जबकि राहुल गाँधी या अहमद पटेल को छुआ तक नहीं। ज्ञातव्य है कि प्रियंका गाँधी भी रॉबर्ट की कई कम्पनियों में हाल के दिनों तक एक निदेशक थीं।
      बहरहाल, नितिन गडकरी के खिलाफ़ पेश किए गए “बोदे और बकवास किस्म के सबूतों” के तत्काल बाद जब भाजपा समर्थकों ने  केजरीवाल के “अनन्य सहयोगियों”(?) के खिलाफ़ मोर्चा खोला और कई तथ्य पेश किए तब से केजरीवाल साहब बैकफ़ुट पर आ गए हैं। असल में केजरीवाल द्वारा गढ़ी गई राजा हरिश्चन्द्र की छवि को भुनाने के लिए अंजलि दमानिया और मयंक गाँधी जैसे लोग भी केजरीवाल के साथ जुड़ गए।गडकरी पर आरोप लगाने से पहले अंजली दमानिया को कोई नहीं जानता था, लेकिन जब खोजबीन की गई तो पाया गया कि यह मोहतरमा खुद ही जमीन के विवादास्पद सौदों में शामिल हैं। दमानिया ने कर्जत (मुम्बई) में आदिवासियों की जमीन झूठ बोलकर खरीदी और जब वहाँ बनने वाले बाँध की डूब में आने लगी तो उनकी जमीन के बदले दूसरे आदिवासियों की जमीन ली जाए ऐसा पत्र भी महाराष्ट्र सरकार को लिखा। जब इस अवैध जमीन पर कालोनी बसाने की योजना खटाई में पड़ गई तो मोहतरमा ने चारों ओर हाथ-पैर मारे, लेकिन जमीन नहीं बची… इसकी खुन्नस अंजली दमानिया ने नितिन गडकरी पर उतार दी। अरविन्द की टीम में ऐसे ही दूसरे संदिग्ध व्यक्ति हैं मयंक गाँधी, मुम्बई में इनके बारे में कई सच्चे-झूठे किस्से मशहूर हैं तथा “लोकग्रुप” के नाम से जो हाउसिंग सोसायटी है उसकी कई अनियमितताओं के पुलिंदे महाराष्ट्र सरकार के पास मौजूद हैं, साथ ही इन महोदय पर दूसरे बिल्डरों एवं जमीन मालिकों को कथित रूप से धमकाने के आरोप भी हैं। टीम के तीसरे प्रमुख सदस्य प्रशांत भूषण तो खैर शुरु से ही विवादों में हैं, चाहे वह कश्मीर की स्वायत्तता सम्बन्धी बयान हो, उत्तरप्रदेश में झूठी कीमत बताकर, सस्ती रजिस्ट्री करवाना हो, या हिमाचल प्रदेश में जमीन खरीदने का मामला हो… यह साहब भी “कथित हरिश्चन्द्र टीम” में शामिल होने लायक नहीं हैं…। अब बचे स्वयं श्री अरविन्द केजरीवाल, जिन पर फ़ोर्ड फ़ाउण्डेशन सहित अमेरिका के अन्य संगठनों से लाखों डॉलर चन्दा लेने का आरोप तो है ही, “इंडिया अगेन्स्ट करप्शन” के बैनर तले अन्ना आंदोलन के समय लिए गए पैसों के दुरुपयोग और उनके खुद के NGO, PCRF के लाभ के लिए उपयोग करने के आरोप भी हैं (हालांकि जब इसकी पोल खुल गई थी, तब वे चन्दे में एकत्रित हुए 2 करोड़ रुपए लेकर अन्ना को भेंट करने उनके गाँव पहुँच गए थे)। इन्हीं की टीम के एक पूर्व सदस्य वायपी सिंह ने केजरीवाल पर खुलेआम शरद पवार को बचाने का आरोप लगा डाला, और केजरीवाल सिर्फ़ खिसियाकर रह गए। इनकी वेबसाईट पर जब IAC का हिसाब-किताब देखा जाता है तब उसमें लाखों रुपए का खर्च “वेतन-भत्ते” के मद में डाला गया है, चकरा गए ना!!! जी हाँ, संभवतः वेतन-भत्ते लेकर किया जाने वाला यह अपने-आप में पहला ही “ई-आंदोलन” होगा।
जो कांग्रेस सरकार कानूनन अनुमति लेकर आमसभा और योग करने आए निहत्थे लोगों को रामलीला मैदान से क्रूरतापूर्ण पद्धति अपनाकर आधी रात को मार-मारकर भगा देती है, वही सरकार केजरीवाल को बड़े आराम से बिजली के तार जोड़ने और मुस्कराते हुए फ़ोटो खिंचाने की अनुमति दे देती है। जो सरकार बाबा रामदेव के खिलाफ़ अचानक सैकड़ों मामले दर्ज करवा देती है, वही सरकार केजरीवाल के NGO के खिलाफ़ एक सबूत भी नहीं ढूँढ पाती? जब किसी की गाड़ी चौराहे पर ट्रैफ़िक पुलिस द्वारा पकड़ी जाती है, तब सारे कागज़ात होते हुए भी वह इंस्पेक्टर ऐसा कोई न कोई पेंच उस गाड़ी में निकाल ही देता है कि चालान बन ही जाए, परन्तु जो सरकार हाथ-पाँव धोकर फ़िलहाल बाबा रामदेव के पीछे पड़ी है, उसे अरविन्द केजरीवाल के NGOs के खिलाफ़ एक भी सबूत नहीं मिला? यह कोई हैरत की बात नहीं “अंदरूनी मोहरावादी वोट गणित समझने” की बात है…
कुल मिलाकर, कहने का तात्पर्य यह है कि अरविन्द केजरीवाल सिर्फ़ TRP वाली नौटंकियाँ करने में माहिर हैं, भ्रष्टाचार से लड़ाई करने का न तो उनका कोई इरादा है और न ही इच्छाशक्ति। केजरीवाल को सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिए खड़ा किया गया है ताकि कांग्रेस के घोटालों से ध्यान भटकाया जा सके, भाजपा को भी कांग्रेस के ही समकक्ष खड़ा करते हुए, मतदाताओं में भ्रम पैदा किया जा सके, और इस भ्रम के कारण होने वाले 2-3 प्रतिशत वोटों के इधर-उधर होने पर इसका राजनैतिक फ़ायदा उठाया जा सके।टीवी चैनलों के लिए केजरीवाल एक रियलिटी टीवी शो की तरह हैं, गुजरात चुनाव और आगामी लोकसभा चुनाव से पहले ऐसे कई रियलिटी शो आने वाले हैं। न्यूज़ चैनलों को मुफ्त में काम करने वाला एक गढ़ा गया हीरो टाइप का नेता मिल गया है। यह ऐसा नेता है जो आमिर खान की तरह ही शो करेगाकभी कभी जनता में लेकिन अधिकांशतःटीवी स्टूडियो या प्रेस कॉफ्रेस में ही मिलेगा।
 
      अब अंत में सिर्फ़ एक ही सवाल पर विचार करेंगे तो समझ जाएंगे कि भ्रष्टाचार के मूल मुद्दों को पीछे धकेलने और भाजपा की बढ़त को रोकने के लिए मीडिया और कांग्रेस किस तरह से हाथ में हाथ मिलाकर चल रहे हैं… सवाल है कि पिछले कई सप्ताह से उमा भारती गंगा के प्रदूषण और गंगा नदी को बचाने के लिए एक विशाल यात्रा कर रही हैं, जो बिहार-उत्तरप्रदेश में गंगा किनारे के जिलों में चल रही है… कितने पाठक हैं जिन्होंने उमा भारती की इस यात्रा और गंगा से जुड़े मुद्दों पर मुख्य मीडिया में बड़ा भारी कवरेज देखा हो? केजरीवाल को मिलने वाले कवरेज और उमा भारती को मिलने वाले कवरेज, केजरीवाल और उमा भारती की ईमानदारी, तथा केजरीवाल और उमा भारती की संगठन क्षमता की तुलना कर लीजिए, आपके समक्ष चित्र स्पष्ट हो जाएगा कि वास्तव में केजरीवाल क्या पहुँची हुई चीज़ हैं। यदि आप राजनैतिक गणित का आकलन करने के इच्छुक हैं तब तो आपके लिए यह आसान सा सवाल होगा कि, केजरीवाल की इस कथित मुहिम का लाभ किसे मिलेगा? यदि केजरीवाल को कुछ सीटें मिल जाती हैं तो किसका फ़ायदा होगा? क्या अन्ना के मंच से भारत माता का चित्र हटवाने वालेकेजरीवाल कभी भाजपा के साथ आ सकते हैं? जब हमारा देश गठबंधन सरकारों के दौर में हैं तब केजरीवाल द्वारा 2-3 प्रतिशत वोटों को प्रभावित करने से क्या कांग्रेस के तीसरी बार सत्ता में आने का रास्ता साफ़ नहीं होगा??? अर्थात क्या आप अगले पाँच साल UPA-3 को झेलने के लिए तैयार हैं? यदि नहीं… तो मोहरों से सावधान रहिए… =================
Dialogue India पत्रिका में प्रकाशित… लिंक यह है… 
https://www.dropbox.com/s/37jow5959vs2270/DI-November-Issue-2012-in-Hindi.zip

– Suresh Chiplunkar

“केरल” का तेजी से बढ़ता तालिबानीकरण

जब वामपंथी कहते हैं कि “धर्म एक अफ़ीम की तरह है…” तो उनका मतलब सिर्फ़ हिन्दू धर्म से होता है, मुसलमानों और ईसाईयों के सम्बन्ध में उनका यह बयान कभी नहीं आता। पश्चिम बंगाल के 22 से 24 जिलों में मुस्लिम आबादी को 50% से ऊपर वे पहले ही पहुँचा चुके हैं, अब नम्बर आया है केरल का। यदि भाजपा हिन्दू हित की कोई बात करे तो वह “साम्प्रदायिक” होती है, लेकिन यदि वामपंथी कोयम्बटूर बम विस्फ़ोटों के आरोपी अब्दुल मदनी से चुनाव गठबन्धन करते हैं तो यह “सेकुलरिज़्म” होता है, कांग्रेस यदि केरल में मुस्लिम लीग को आगे बढ़ाये तो भी यह सेकुलरिज़्म ही है, शिवराज पाटिल आर्चबिशपों के सम्मेलन में जाकर आशीर्वाद लें तो भी वह सेकुलरिज़्म ही होता है… “शर्मनिरपेक्ष” शब्द इन्हीं कारनामों की उपज है। भाजपा-संघ-हिन्दुओं और भारतीय संस्कृति को सतत गरियाने वाले ज़रा केरल की तेजी से खतरनाक होती स्थिति पर एक नज़र डाल लें, और बतायें कि आखिर वे भाजपा-संघ को क्यों कोसते हैं?

केरल राज्य की स्थापना सन् 1956 में हुई, उस वक्त हिन्दुओं की जनसंख्या 61% थी। मात्र 50 साल में यह घटकर 55% हो गई है, जबकि दूसरी तरफ़ मुस्लिमों और ईसाईयों की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। हिन्दुओं की नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि दर के पीछे कई प्रकार के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक कारण हैं, लेकिन सच यही है कि केरल का तेजी से तालिबानीकरण/इस्लामीकरण हो रहा है। केरल की राजनैतिक परिस्थितियों का फ़ायदा जितनी चतुराई से इस्लामी शक्तियाँ उठा रही हैं, उतनी ही चालाकी से मिशनरी भी उठा रही है। जनसंख्या के कारण वोटों का सन्तुलन इस प्रकार बन चुका है कि अब कांग्रेस और वामपंथी दोनों को “मेंढक” की तरह “कभी इधर कभी उधर” फ़ुदक-फ़ुदक कर उन्हें मजबूत बना रहे हैं।

केरल के बढ़ते तालिबानीकरण के पीछे एक कारण है “पेट्रो डॉलर” की बरसात, जो कि वैध या अवैध हवाला के जरिये बड़ी मात्रा में प्रवाहित हो रहा है। मिशनरी और मुल्लाओं को मार्क्सवादियों और कांग्रेस का राजनैतिक सहारा तो है ही, हिन्दू जयचन्दों और “सेकुलर बुद्धिजीवियों” का मानसिक सहारा भी है। जैसे कि एक मलयाली युवक जिसका नाम जावेद “था” (धर्म परिवर्तन से पहले उसका नाम प्रणेश नायर था) जब गुजरात के अहमदाबाद में (15 नवम्बर 2004 को) पुलिस एनकाउंटर में मारा गया और यह साबित हो गया कि वह लश्कर के चार आतंकवादियों की टीम में शामिल था जो नरेन्द्र मोदी को मारने आये थे, तब भी केरल के “मानवाधिकारवादियों” (यानी अंग्रेजी बुद्धिजीवियों) ने जावेद(?) को हीरो और शहीद बताने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। लेकिन जब हाल ही में कश्मीर में सुरक्षा बलों के हाथों मारे गये चार युवकों के पास से केरल के मतदाता परिचय पत्र मिले तब इन “सेकुलरिस्टों” के मुँह में दही जम गया।

केरल के तालिबानीकरण का इतिहास तो सन् 1921 के मोप्ला दंगों से ही शुरु हो चुका है, लेकिन “लाल” इतिहासकारों और गठबंधन की शर्मनाक राजनीति करने वाली पार्टियों ने इस सच को दबाकर रखा और इसे “सिर्फ़ एक विद्रोह” कहकर प्रचारित किया।। एनीबेसेण्ट जैसी विदुषी महिला ने अपनी रिपोर्ट (29 नवम्बर 1921) में कहा था – ..The misery is beyond description. Girl wives, pretty and sweet, with eyes half blind with weeping, distraught with terror; women who have seen their husbands hacked to pieces before their eye, in the way “Moplas consider religious”, old women tottering, whose faces become written with anguish and who cry at a gentle touch and a kind look, waking out of a stupor of misery only to weep, men who have lost all, hopeless, crushed, desperate. ….. I have walked among thousands of them in refugee camps, and sometimes heavy eyes would lift as a cloth was laid gently on the bare shoulder, and a faint watery smile of surprise would make the face even more piteous than the stupor.

तथा तत्कालीन कालीकट जिला कांग्रेस कमेटी के सचिव माधवन नायर ने रिपोर्ट में लिखा है – Can you conceive of a more ghastly and inhuman crime than the murder of babies and pregnant women? … A pregnant woman carrying 7 months was cut through the abdomen by a rebel and she was seen lying dead with on the way with the dead child projecting out … Another baby of six months was snatched away from the breast of the mother and cut into two pieces. … Are these rebels human beings or monsters?

जबकि आंबेडकर, जो कि उच्च वर्ग के प्रति कोई खास प्रेम नहीं रखते थे, उन्होंने भी इस तथाकथित “खिलाफ़त” आन्दोलन के नाम पर चल रही मुस्लिम बर्बरता के खिलाफ़ कड़ी आलोचना की थी। अम्बेडकर के अनुसार “इस्लाम और भारतीय राष्ट्रीयता को समरस बनाने के सारे प्रयास विफ़ल हो चुके हैं… भारतीय संस्कृति के लिये इस्लाम “शत्रुतापूर्ण और पराया” है…”, लेकिन फ़िर भी गाँधी ने इस “बर्बर हत्याकाण्ड और जातीय सफ़ाये” की निंदा तो दूर, एक शब्द भी इसके खिलाफ़ नहीं कहा… मुस्लिमों को शह देकर आगे बढ़ाने और हिन्दुओं को सतत मानसिक रूप से दबाने का उनका यह कृत्य आगे भी जारी रहा… जिसके नतीजे हम आज भी भुगत रहे हैं…। तात्पर्य यह 1921 से ही केरल का तालिबानीकरण शुरु हो चुका था…

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हद तो तब हो गई जब फ़रवरी 2005 में CPM (Communal Politicians of Marx) ने वरियमकुन्नाथु कुन्जाअहमद हाजी को एक महान कम्युनिस्ट योद्धा और शहीद का दर्जा दे दिया। उल्लेखनीय है कि ये हाजी साहब 1921 के मलाबार खिलाफ़त आंदोलन में हजारों मासूम हिन्दू औरतों और बच्चों के कत्ल के जिम्मेदार माने जाते हैं, यहाँ तक कि “मुस्लिम लीग” भी इन जैसे “शहीदों”(?) को अपना मानने में हिचकिचाती है, लेकिन “लाल” झण्डे वाले इनसे भी आगे निकले।

अक्सर देखा गया है कि जब भी कोई हिन्दू व्यक्ति धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बन जाता है तो उतना हो-हल्ला नहीं होता, भाजपा-संघ यदि हल्ला करें भी तो उन्हें “साम्प्रदायिक” कहकर दबाने की परम्परा रही है, लेकिन जब कोई मुस्लिम व्यक्ति हिन्दू धर्म स्वीकार कर ले तब देखिये कैसा हंगामा होता है और “वोट बैंक के सौदागर” और दूसरों (यानी हिन्दुओं) को उपदेश देने वाले बुद्धिजीवी कैसे घर में घुसकर छुप जाते हैं। इसके कई उदाहरण हमारे सामने हैं (ताजा मसला चांद-फ़िजा तथा इससे पहले कोलकाता का रिज़वान हत्या प्रकरण, जिसमें मुस्लिम से हिन्दू बनने पर हत्या तक हो गई)। लेकिन इस कथित “शांति का संदेश देने वाले” और “सभ्य” इस्लाम के अनुयायियों ने केरल में 1946 में ही उन्नियन साहब (मुस्लिम से हिन्दू बनने के बाद उसका नाम “रामासिंहम” हो गया था) और उनके परिवार की मलाबार इलाके के मलप्पुरम (बहुचर्चित मलप्पुरम हत्याकाण्ड) में सरेआम हत्या कर दी थी, क्योंकि “रामासिम्हन” (यानी उन्नियन साहब) ने पुनः हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया था। उस समय भी इन तथाकथित प्रगतिशील वामपंथियों ने पुलिस की जाँच को विभिन्न तरीके अपनाकर उलझाने की भरपूर कोशिश की थी ताकि असली मुजरिम बच सकें (EMS के चुनिंदा लेख (Vol.II, pp 356-57) और इनके तत्कालीन नेता थे महान वामपंथी ईएमएस नम्बूदिरिपाद। केरल की ये पार्टियाँ आज 60 साल बाद भी मुस्लिम तुष्टिकरण से बाज नहीं आ रही, बल्कि और बढ़ावा दे रही हैं।

हिन्दू विरोध धीरे-धीरे कम्युनिस्टों का मुख्य एजेण्डा बन गया था, 1968 में इसी नीति के कारण देश में एक “शुद्ध मुस्लिम जिले” मलप्पुरम का जन्म हुआ। आज की तारीख में यह इलाका मुस्लिम आतंकवाद का गढ़ बन चुका है, लेकिन देश में किसी को कोई फ़िक्र नहीं है। केरल सरकार ने मलप्पुरम जिले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की शाखा खोलने के लिये 24 एकड़ की ज़मीन अधिगृहीत की है, जिसे 1000 एकड़ तक बढ़ाने की योजना है, ताकि राज्य में जमात-ए-इस्लामी का “प्रिय” बना जा सके (अब आप सिर धुनते रहिये कि जब पहले से ही जिले में कालीकट विश्वविद्यालय मौजूद है तब उत्तरप्रदेश से हजारों किमी दूर अलीगढ़ मुस्लिम विवि की शाखा खोलने की क्या तुक है, लेकिन भारत में मुस्लिम वोटों के लिये “सेकुलरिज़्म” के नाम पर कुछ भी किया जा सकता है), भले ही केरल की 580 किमी की समुद्री सीमा असुरक्षित हो, लेकिन इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण कामों पर पैसा खर्च किया जा रहा है।

 

1980 में मलप्पुरम में कई सिनेमाघरों में बम विस्फ़ोट हुए, पुलिस ने कुछ नहीं किया, केरल के उत्तरी इलाकों में गत एक दशक में कई विस्फ़ोट हो चुके हैं लेकिन पुलिस कहीं भी हाथ नहीं डाल पा रही। बेपूर बन्दरगाह पर हुए विस्फ़ोट में भी आज तक एक भी आरोपी नहीं पकड़ाया है, ज़ाहिर है कि सत्ताधारी पार्टी ही जब समर्थन में हो तो पुलिस की क्या हिम्मत। लेकिन मलप्पुरम जिले का तालिबानीकरण अब बेहद खतरनाक स्थिति में पहुँच चुका है, हाल ही में 25 जुलाई 2008 के बंगलोर बम विस्फ़ोटों के सिलसिले में कर्नाटक पुलिस ने नौ आरोपियों के खिलाफ़ केस दायर किया है और सभी आरोपी मलप्पुरम जिले के हैं, क्या इसे सिर्फ़ एक संयोग माना जा सकता है? 6 दिसम्बर 1997 को त्रिचूर रेल धमाके हों या 14 फ़रवरी 1998 के कोयम्बटूर धमाके हों, पुलिस के हाथ हमेशा बँधे हुए ही पाये गये हैं।

पाठकों ने गुजरात, अहमदाबाद, कालूपुर-दरियापुर-नरोडा पाटिया, ग्राहम स्टेंस, कंधमाल आदि के नाम सतत सुने होंगे, लेकिन मराड, मलप्पुरम या मोपला का नाम नहीं सुना होगा… यही खासियत है वामपंथी और सेकुलर लेखकों और इतिहासकारों की। मीडिया पर जैसा इनका कब्जा रहा है और अभी भी है, उसमें आप प्रफ़ुल्ल बिडवई, कुलदीप नैयर, अरुंधती रॉय, महेश भट्ट जैसों से कभी भी “जेहाद” के विरोध में कोई लेख नहीं पायेंगे, कभी भी इन जैसे लोगों को कश्मीर के पंडितों के पक्ष में बोलते नहीं सुनेंगे, कभी भी सुरक्षाबलों का मनोबल बढ़ाने वाली बातें ये लोग नहीं करेंगे, क्योंकि ये “सेकुलर” हैं… इन जैसे लोग “अंसल प्लाज़ा” की घटना के बारे में बोलेंगे, ये लोग नरोडा पाटिया के बारे में हल्ला मचायेंगे, ये लोग आपको एक खूंखार अपराधी के मानवाधिकार गिनाते रहेंगे, अफ़ज़ल गुरु की फ़ाँसी रुकवाने का माहौल बनाने के लिये विदेशों के पाँच सितारा दौरे तक कर डालेंगे…। यदि इंटरनेट और ब्लॉग ना होता तो अखबारों और मीडिया में एक छोटी सी खबर ही प्रकाशित हो पाती कि “केरल के मराड में एक हिंसा की घटना में नौ लोगों की मृत्यु हो गई…” बस!!!

अब केरल में क्या हो रहा है… घबराये और डरे हुए हिन्दू लोग मुस्लिम बहुल इलाकों से पलायन कर रहे हैं, मलप्पुरम और मलाबार से कई परिवार सुरक्षित(?) ठिकानों को निकल गये हैं और “दारुल-इस्लाम” बनाने के लिये जगह खाली होती जा रही है। 580 किमी लम्बी समुद्री सीमा के किनारे बसे गाँवों में हिन्दुओं के “जातीय सफ़ाये” की बाकायदा शुरुआत की जा चुकी है। पोन्नानी से बेपूर तक के 65 किमी इलाके में एक भी हिन्दू मछुआरा नहीं मिलता, सब के सब या तो धर्म परिवर्तित कर चुके हैं या इलाका छोड़कर भाग चुके हैं। बहुचर्चित मराड हत्याकाण्ड भी इसी जातीय सफ़ाये का हिस्सा था, जिसमें भीड़ ने आठ मछुआरों को सरेआम मारकर मस्जिद में शरण ले ली थी (देखें)। 10 मार्च 2005 को संघ के कार्यकर्ता अश्विनी की भी दिनदहाड़े हत्या हुई, राजनैतिक दबाव के चलते आज तक पुलिस कोई सुराग नहीं ढूँढ पाई। मलप्पुरम सहित उत्तर केरल के कई इलाकों में दुकानें और व्यावसायिक संस्थान शुक्रवार को बन्द रखे जाते हैं और रमज़ान के महीने में दिन में होटल खोलना मना है। त्रिसूर के माथिलकोम इलाके के संतोष ने इस फ़रमान को नहीं माना और शुक्रवार को दुकान खोली तथा 9 अगस्त 1996 को कट्टरवादियों के हाथों मारा गया, जैसा कि होता आया है इस केस में भी कोई प्रगति नहीं हुई (दीपक धर्मादम, केरलम फ़ीकरारूड स्वान्थमनाडु, pp 59,60)।

पाठकों ने इस प्रकार की घटनाओं के बारे में कभी पढ़ा-सुना या टीवी पर देखा नहीं होगा, सभी घटनायें सच हैं और वीभत्स हैं लेकिन हमारा “राष्ट्रीय मीडिया”(?) जो कि मिशनरी पैसों पर पलता है, हिन्दू-विरोध से ही जिसकी रोटी चलती है, वामपंथियों और कांग्रेसियों का जिस पर एकतरफ़ा कब्जा है, वह कभी इस प्रकार की घटनाओं को महत्व नहीं देता (वह महत्व देता है वरुण गाँधी को, जहाँ उसे हिन्दुत्व को कोसने का मौका मिले)। ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जिनमें हिन्दुओं की हत्या, अपहरण और बलात्कार हुए हैं, लेकिन “सेकुलरिज़्म” के कर्ताधर्ताओं को भाजपा-संघ की बुराई करने से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती। कोट्टायम और एर्नाकुलम जिलों के जागरूक नागरिकों ने जंगलों में चल रहे सिमी के कैम्पों की जानकारी पुलिस को दी, पुलिस आई, कुछ लोगों को पकड़ा और मामूली धारायें लगाकर ज़मानत पर छोड़ दिया। इन्हीं “भटके हुए नौजवानों”(???) में से कुछ देश के विभिन्न हिस्सों में आतंकवादी गतिविधियों में पकड़ाये हैं। हाल ही में मुम्बई की जेलों में अपराधियों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिये दाऊद गैंग का हाथ होने की पुष्टि आर्थर रोड जेल के जेलर ने की थी, यह तकनीक केरल में भी अपनाई जा रही है और नये-पुराने अपराधियों को धर्म परिवर्तित करके मुस्लिम बनाया जा रहा है। जब “सिमी” पर प्रतिबन्ध लग गया तो उसने नाम बदलकर NDF रख लिया, इस प्रकार विभिन्न फ़र्जी नामों से कई NGO चल रहे हैं जिनकी गतिविधियाँ संदिग्ध हैं, लेकिन कोई देखने-सुनने वाला नहीं है (दैनिक मंगलम, कोट्टायम, 9 फ़रवरी 2009)।

जैसा कि पहले उल्लेख किया गया “पेट्रो डॉलर” ने केरल में हिन्दू-मुस्लिम के बीच आर्थिक खाई को बहुत चौड़ा कर दिया है, खाड़ी से आये हुए हवाला धन के कारण यहाँ कई जिलों में 70% से अधिक ज़मीन की रजिस्ट्रियाँ मुसलमानों के नाम हुई हैं और हिन्दू गरीब होते जा रहे हैं। पैसा कमाकर लाना और ज़मीन खरीदना कोई जुर्म नहीं है, लेकिन “घेट्टो” मानसिकता से ग्रस्त होकर एक ही इलाके में खास बस्तियाँ बनाना निश्चित रूप से स्वस्थ मानसिकता नहीं कही जा सकती।यहाँ तक कि ज़मीन के इन सौदों में मध्यस्थ की भूमिका भी “एक खास तरह के लोग” ही निभा रहे हैं और इसके कारण हिन्दुओं और मुसलमानों में आर्थिक समीकरण बहुत गड़बड़ा गये हैं (मलयालम वारिका सम्पादकीय, Vol.VII, No.12, 25 जुलाई 2003)।

सदियों से हिन्दू गाय को माता के रूप में पूजते आये हैं, लेकिन भारत में केरल ही एक राज्य ऐसा है जिसने गौवंश के वध की आधिकारिक अनुशंसा की हुई है। सन् 2002 के केरल सरकार के आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक उस वर्ष पाँच लाख गायों का वध किया गया और 2,49,000 टन का गौमाँस निर्यात किया गया (न्यू इंडियन एक्सप्रेस, कोचीन 13 अगस्त 2003), जबकि असली आँकड़े निश्चित रूप से और भी भयावह होते हैं। भले ही मेडिकल साइंस इसके खतरों के प्रति आगाह कर रहा हो, भले ही हिन्दू धर्माचार्य और हिन्दू नेता इसका विरोध करते रहे हों, लेकिन केरल के किसी भी मुस्लिम नेता ने कभी भी इस गौवध का खुलकर विरोध नहीं किया।

केरल के सांस्कृतिक तालिबानीकरण की शुरुआत तो 1970 में ही हो चुकी थी, जबकि केरल के सरकारी स्कूल के “यूथ फ़ेस्टिवल” में “मोप्ला गीत” (मुस्लिम) और “मर्गमकल्ली” (ईसाई गीत) को एक प्रतियोगिता के तौर पर शामिल किया गया (केरल के 53 साल के इतिहास में 49 साल शिक्षा मंत्री का पद किसी अल्पसंख्यक के पास ही रहा है)। जबकि हिन्दुओं की एक कला “कोलकल्ली” का यूनिफ़ॉर्म बदलकर “हरी लुंगी, बेल्ट और बनियान” कर दिया गया… अन्ततः इस आयोजन से सारे हिन्दू छात्र धीरे-धीरे दूर होते गये। 1960 तक कुल मुस्लिम आबादी की 10% बुजुर्ग महिलायें “परदा” रखती थीं, जबकि आज 31% नौजवान लड़कियाँ परदा /बुरका रखती हैं, सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या मुस्लिम लड़कियों में कट्टरता बढ़ रही है, या कट्टरता उन पर थोपी जा रही है? वजह जो भी हो, लेकिन ऐसा हो रहा है।

6 नवम्बर 1999 को पोप जॉन पॉल ने दिल्ली के एक केथीड्रल में कहा था कि “जिस प्रकार पहली सदी में “क्रास” ने यूरोप की धरती पर कदम जमाये और दूसरी सदी में अमेरिका और अफ़्रीका में मजबूती कायम की, उसी प्रकार तीसरी सदी में हम एशिया में अपनी फ़सल बढ़ायेंगे…”, यह वक्तव्य कोई साधारण वक्तव्य नहीं है… थोड़ा गहराई से इसका अर्थ लगायें तो “नीयत” साफ़ नज़र आ जाती है। साफ़ है कि केरल पर दोतरफ़ा खतरा मंडरा रहा है एक तरफ़ “तालिबानीकरण” का और दूसरी तरफ़ से “मिशनरी” का, ऐसे में हिन्दुओं का दो पाटों के बीच पिसना उनकी नियति बन गई है। तीन साल पहले एक अमेरिकी नागरिक जोसेफ़ कूपर ने किलीमन्नूर में एक ईसाई समारोह में सार्वजनिक रूप से हिन्दू भगवानों का अपमान किया था (उस अमेरिकी ने कहा था कि “हिन्दुओं के भगवान कृष्ण विश्व के पहले एड्स मरीज थे…”), जनता में आक्रोश भी हुआ, लेकिन सरकार ने पता नहीं क्यों मामला रफ़ा-दफ़ा करवा दिया।

कश्मीर लगभग हमारे हाथ से जा चुका है, असम भी जाने की ओर अग्रसर है, अब अगला नम्बर केरल का होगा… हिन्दू जितने विभाजित होते जायेंगे, देशद्रोही ताकतें उतनी ही मजबूत होती जायेंगी… जनता के बीच जागरूकता फ़ैलाने की सख्त जरूरत है… हम उठें, आगे बढ़ें और सबको बतायें… मीडिया के भरोसे ना रहें वह तो उतना ही लिखेगा या दिखायेगा जितने में उसे फ़ायदा हो, क्योंकि ऊपर बताई गई कई घटनाओं में से कोई भी घटना “ब्रेकिंग न्यूज़” बन सकती थी, लेकिन नहीं बनी। “नेहरूवादी सेकुलरिज़्म” की बहुत बड़ी कीमत चुका रहा है यह देश…।नेहरू की “मानस संतानें” यानी “सेकुलर बुद्धिजीवी” नाम के प्राणी भी समझ से बाहर है, क्योंकि इन्हें भारत पर और खासकर हिन्दुओं पर कभी भी कोई खतरा नज़र नहीं आता…। जबकि कुछ बुद्धिजीवी “तटस्थ” रहते हैं, तथा जब स्थिति हाथ से बाहर निकल चुकी होती है तब ये अपनी “वर्चुअल” दुनिया से बाहर निकलते हैं… ऐसे में हिन्दुओं के सामने चुनौतियाँ बहुत मुश्किल हैं… लेकिन फ़िर भी चुप बैठने से काम नहीं चलने वाला… एकता ज़रूरी है… “हिन्दू वोट बैंक” नाम की अवधारणा अस्तित्व में लाना होगा… तभी इस देश के नेता-अफ़सरशाही-नौकरशाही सब तुम्हारी सुनेंगे…

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विशेष नोट – यह लेख त्रिवेन्द्रम निवासी डॉ सीआई इसाक (इतिहास के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर) द्वारा चेन्नै में 8 मार्च 2009 को रामाकृष्णन मेमोरियल व्याख्यानमाला में दिये गये उनके भाषण पर आधारित है।

  • Suresh Chiplunkar

कंधार के शर्मनाक समर्पण के पीछे का सच, और देश का आभिजात्य वर्ग…

जब कभी आतंकवादियों से बातचीत या कोई समझौता होने की बात आती है तो तत्काल एनडीए के कंधे पर “कंधार” की सलीब रख दी जाती है… हालांकि कंधार की घटना और उसके बाद आतंकवादियों को छोड़ने का जो कृत्य एनडीए ने किया था उसे कभी माफ़ किया ही नहीं जा सकता (भाजपा के कट्टर से कट्टर समर्थक भी इस घटना के लिये पार्टी नेतृत्व को दोषी मानते हैं, और ध्यान रखें कि इस प्रकार की भावनाएं कांग्रेसियों में नहीं पाई जाती कि वे अपने नेतृत्व को सरेआम दोषी बतायें, खुद भाजपा वाले कंधार को अमिट कलंक मानते हैं, जबकि कांग्रेसी, सिख विरोधी दंगों और आपातकाल को भी कलंक नहीं मानते…) कहने का मतलब यह कि कंधार प्रकरण में जो भी हुआ शर्मनाक तो था ही, लेकिन इस विकट निर्णय के पीछे की घटनायें हमारे देश के “आभिजात्य वर्ग” का असली चेहरा सामने रखती हैं, (आभिजात्य वर्ग इसलिये कि नौ साल पहले एयरलाइंस में अमूमन आभिजात्य वर्ग के लोग ही सफ़र करते थे, आजकल मध्यमवर्ग की भी उसमें घुसपैठ हो गई है)… आईये देखते हैं कि कंधार प्रकरण के दौरान पर्दे के पीछे क्या-क्या हुआ, जिसके कारण भाजपा के माथे पर एक अमिट कलंक लग गया…। ऐसा नहीं है कि महान भारत के सार्वजनिक अपमान की घटनायें कांग्रेसियों के राज में नहीं हुईं, हजरत बल, चरारे-शरीफ़ प्रकरण हो या महबूबा मुफ़्ती के नकली अपहरण का मामला हो, कोई न कोई कांग्रेसी उसमें अवश्य शामिल रहा है (वीपी सिंह भी कांग्रेसी संस्कृति के ही थे), लेकिन कंधार का अपहरण प्रकरण हमेशा मीडिया में छाया रहता है और ले-देकर समूचा मीडिया, भाजपा-एनडीए के माथे पर ठीकरा फ़ोड़ता रहता है।

जिस वक्त काठमाण्डू-दिल्ली हवाई उड़ान सेवा IC814 का अपहरण हो चुका था, प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी दिल्ली से बाहर अपने तय दौरे पर थे। जब उनका विमान दिल्ली लौट रहा था उस समय विमान के एयरफ़ोर्स के पायलट को अपहरण की सूचना दी गई थी। चूंकि विमान हवा में था इसलिये वाजपेयी को इस घटना के बारे में तुरन्त नहीं बताया गया (जो कि बाद में विवाद का एक कारण बना)। जब शाम 7 बजे प्रधानमंत्री का विमान दिल्ली पहुँचा तब तक IC-814 के अपहरण के 1 घण्टा चालीस मिनट बीत चुके थे। वाजपेयी को हवाई अड्डे पर लेने पहुँचे थे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र, जिन्होंने तत्काल वाजपेयी को एक कोने में ले जाकर सारी स्थिति समझाई। सभी अपहरणकर्ताओं की पहचान स्थापित हो चुकी थी, वे थे इब्राहीम अतहर (निवासी बहावलपुर), शाहिद अख्तर सईद, गुलशन इकबाल (कराची), सनी अहमद काजी (डिफ़ेंस कालोनी, कराची), मिस्त्री जहूर आलम (अख्तर कालोनी, कराची), और शाकिर (सक्खर सिटी)। विमान में उस वक्त 189 यात्री सवार थे।

प्रधानमंत्री निवास पर तत्काल एक उच्च स्तरीय समिति की मीटिंग हुई, जिसमें हालात का जायजा लिया गया, वाजपेयी ने तत्काल अपने निजी स्टाफ़ को अपने जन्मदिन (25 दिसम्बर) के उपलक्ष्य में आयोजित सभी कार्यक्रम निरस्त करने के निर्देश जारी किये। उसी समय सूचना मिली कि हवाई जहाज को लाहौर में उतरने की इजाजत नहीं दी गई है, इसलिये हवाई जहाज पुनः अमृतसर में उतरेगा। अमृतसर में विमान लगभग 45 मिनट खड़ा रहा और अपहर्ता विभिन्न अधिकारियों को उसमें तेल भरने हेतु धमकाते रहे, और अधिकारी “सिर कटे चिकन” की तरह इधर-उधर दौड़ते रहे, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं था कि इस स्थिति से निपटने के लिये क्या करना चाहिये। प्रधानमंत्री कार्यालय से राजा सांसी हवाई अड्डे पर लगातार फ़ोन जा रहे थे कि किसी भी तरह से हवाई जहाज को अमृतसर में रोके रखो…एक समय तो पूर्व सैनिक जसवन्त सिंह ने फ़ोन छीनकर चिल्लाये कि “कोई भारी ट्रक या रोड रोलर को हवाई पट्टी पर ले जाकर खड़ा कर दो…”, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। NSG कमाण्डो को अलर्ट रहने का निर्देश दिया जा चुका था, लेकिन 45 मिनट तक अमृतसर में खड़े होने के बावजूद NSG के कमाण्डो उस तक नहीं पहुँच सके। इसके पीछे दो बातें सामने आईं, पहली कि NSG कमाण्डो को अमृतसर ले जाने के लिये सही समय पर विमान नहीं मिल सका, और दूसरी कि मानेसर से दिल्ली पहुँचने के दौरान NSG कमाण्डो ट्रैफ़िक जाम में फ़ँस गये थे, सचाई किसी को नहीं पता कि आखिर क्या हुआ था।

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अपहर्ता NSG कमाण्डो से भयभीत थे इसलिये उन्होंने पायलट और यात्रियों पर दबाव बनाने के लिये रूपेन कत्याल की हत्या कर दी और लगभग खाली पेट्रोल टैंक सहित हवाई जहाज को लाहौर ले गये। लाहौर में पुनः उन्हें उतरने की अनुमति नहीं दी गई, यहाँ तक कि हवाई पट्टी की लाईटें भी बुझा दी गईं, लेकिन पायलट ने कुशलता और सावधानी से फ़िर भी हवाई जहाज को जबरन लाहौर में उतार दिया। जसवन्त सिंह ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री से बात की कि हवाई जहाज को लाहौर से न उड़ने दिया जाये, लेकिन पाकिस्तानी अधिकारी जानबूझकर मामले से दूरी बनाना चाहते थे, ताकि बाद में वे इससे सम्बन्ध होने से इन्कार कर सकें। वे यह भी नहीं चाहते थे कि लाहौर में NSG के कमाण्डो कोई ऑपरेशन करें, इसलिये उन्होंने तुरन्त हवाई जहाज में पेट्रोल भर दिया और उसे दुबई रवाना कर दिया। दुबई में भी अधिकारियों ने हवाई जहाज को उतरने नहीं दिया। जसवन्त सिंह लगातार फ़ोन पर बने हुए थे, उन्होंने यूएई के अधिकारियों से बातचीत करके अपहर्ताओं से 13 औरतों और 11 बच्चों को विमान से उतारने के लिये राजी कर लिया। रूपेन कत्याल का शव भी साथ में उतार लिया गया, जबकि उनकी नवविवाहिता पत्नी अन्त तक बन्धक रहीं और उन्हें बाद में ही पता चला कि वे विधवा हो चुकी हैं।

25 दिसम्बर की सुबह – विमान कंधार हवाई अड्डे पर उतर चुका है, जहाँ कि एक टूटा-फ़ूटा हवाई अड्डा और पुरानी सी घटिया विमान कंट्रोल प्रणाली है, न पानी है, न ही बिजली है (तालिबान के शासन की एक उपलब्धि)। 25 दिसम्बर की दोपहर से अचानक ही चारों ओर से प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री निवास और कार्यालय के बाहर जमा होने लगे, छाती पीटने लगे, कपड़े फ़ाड़ने लगे, नारे लगाने लगे, प्रधानमंत्री हाय-हाय, हमारे आदमियों को बचाओ… जैसे-जैसे दिन बीतता गया भीड़ और नारे बढ़ते ही गये। अमृतसर, लाहौर और दुबई में निराशा झेलने के बाद सरकार अपनी कोशिशों में लगी थी कि किसी तरह से अपहर्ताओं से पुनः सही सम्पर्क स्थापित हो सके, जबकि 7 रेसकोर्स रोड के बाहर अपहृत परिवारों के सदस्यों के साथ वृन्दा करात सबसे आगे खड़ी थीं। मुफ़्ती प्रकरण का हवाला दे-देकर मीडिया ने पहले दिन से ही आतंकवादियों की मांगें मानकर “जो भी कीमत चुकानी पड़े… बन्धकों को छुड़ाना चाहिये” का राग अलापना शुरु कर दिया था…

मुल्ला उमर और उसके विदेशमंत्री(?) मुत्तवकील से बातचीत शुरु हो चुकी थी और शुरुआत में उन्होंने विभिन्न भारतीय जेलों में बन्द 36 आतंकवादियों को छोड़ने की माँग रखी। मीडिया के दबाव के चलते एक भी वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री अपहृत व्यक्तियों के परिजनों से मिलने को तैयार नहीं था, लेकिन जसवन्त सिंह हिम्मत करके उनसे मिलने गये, तत्काल सभी लोगों ने उन्हें बुरी तरह से घेर लिया और उनके एक वाक्य भी कहने से पहले ही, “हमें हमारे रिश्तेदार वापस चाहिये…”, “आतंकवादियों को क्या चाहिये इससे हमें क्या मतलब…”, “चाहे आप कश्मीर भी उन्हें दे दो, हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता…”, “मेरा बेटा है, मेरी बहू है, मेरा पति है उसमें…” आदि की चिल्लाचोट शुरु कर दी गई, जबकि जसवन्त सिंह उन्हें स्थिति की जानकारी देने गये थे कि हम बातचीत कर रहे हैं। जसवन्त सिंह ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि देशहित में जेल में बन्द आतंकवादियों को छोड़ना ठीक नहीं है, लेकिन भीड़ में से एक व्यक्ति चिल्लाया “भाड़ में जाये देश और देश का हित…”। इसके बाद जसवन्त सिंह मीडिया के लिये शास्त्री भवन में आयोजित प्रेस कांफ़्रेस में आये, लेकिन वहाँ भी नाटकीय ढंग से भीड़ घुस आई, जिसका नेतृत्व संजीव छिब्बर नाम के विख्यात सर्जन कर रहे थे। उनका कहना था कि उनके 6 परिजन हवाई जहाज में हैं, डॉ छिब्बर का कहना था कि हमें तत्काल सभी 36 आतंकवादी छोड़ देना चाहिये। वे चिल्लाये, “जब मुफ़्ती की बेटी के लिये आतंकवादियों को छोड़ा जा सकता है तो हमारे रिश्तेदारों के लिये क्यों नहीं?… उन्हें कश्मीर दे दो, कुछ भी दे दो, लेकिन हमें हमारे रिश्तेदार वापस चाहिये…”।

उसी शाम को प्रधानमंत्री कार्यालय में स्वर्गीय स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा की पत्नी पहुँचीं, उन्होंने अपहृतों के रिश्तेदारों से मुलाकात कर उनसे बात करके बताने की कोशिश की कि क्यों भारत को इन खतरनाक माँगों को नहीं मानना चाहिये और इससे शहीदों का अपमान होगा,लेकिन “समाज के उन इज्जतदार लोगों” ने ताना मारा कि “खुद तो विधवा हो गई है और चाहती है कि हम भी विधवा हो जायें… ये इधर कहाँ से आई?” फ़िर भी आहूजा की पत्नी देश का सम्मान बनाये रखने के लिये खड़ी रहीं। इसी प्रकार एक और वृद्ध दम्पति भी आये जिन्होंने कहा कि हमारे बेटों ने भी भारत के लिये प्राण दिये हैं, कर्नल वीरेन्द्र थापर (जिनके बेटे लेफ़्टीनेंट कर्नल विजयन्त थापर युद्ध में शहीद हुए थे) ने खड़े होकर सभी लोगों से एकजुट होकर आतंकवादियों के खिलाफ़ होने की अपील की, लेकिन सब बेकार… उन बहरे कानों को न कुछ सुनना था, न उन्होंने सुना… (ध्यान रखिये ये वही आभिजात्य वर्ग था, जो मोमबत्ती जलाने और अंग्रेजी स्लोगन लगाये टी-शर्ट पहनने में सबसे आगे रहता है, ये वही धनी-मानी लोग थे जो भारत की व्यवस्था का जमकर शोषण करके भ्रष्टाचार करते हैं, ये वही “पेज-थ्री” वाले लोग थे जो फ़ाइव-स्टार होटलों में बैठकर बोतलबन्द पानी पीकर समाज सुधार के प्रवचन देते हैं), ऐसे लोगों का छातीकूट अभियान जारी रहा और “जिम्मेदार मीडिया(?)” पर उनकी तस्वीरें और इंटरव्यू भी… मीडिया ने दो-चार दिनों में ही जादू के जोर से यह भी जान लिया कि देश की जनता चाहती है कि “कैसे भी हो…” अपहृतों की सुरक्षित रिहाई की जाना चाहिये…

आखिर 28 दिसम्बर को सरकार और आतंकवादियों के बीच “डील फ़ाइनल” हुई, जिसके अनुसार मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद जरगर, और अहमद उमर शेख को छोड़ा जाना तय हुआ। एक बार फ़िर जसवन्त सिंह के कंधों पर यह कड़वी जिम्मेदारी सौंपी गई कि वे साथ जायें ताकि अन्तिम समय पर यदि किसी प्रकार की “गड़बड़ी” हो तो वे उसे संभाल सकें। आखिर नववर्ष की संध्या पर सभी अपहृत सकुशल दिल्ली लौट आये… और भाजपा-एनडीए के सबसे बुरे अनुभव को समेटे और मीडिया द्वारा खलनायक करार दिये गये जसवन्त सिंह भी अपना बुझा हुआ सा मुँह लेकर वापस आये। इस प्रकार भारत ने अपमान का कड़वा घूँट पीकर नई सदी में कदम रखा… (जरा इस घटना की तुलना, रूस में चेचन उग्रवादियों द्वारा एक सिनेमा हॉल में बन्धक बनाये हुए बच्चों और उससे निपटने के तरीके से कीजिये, दो राष्ट्रों के चरित्र में अन्तर साफ़ नज़र आयेगा)।

इस घटना ने हमेशा की तरह सिर्फ़ और सिर्फ़ सवाल खड़े किये (जवाब पाने या माँगने की परम्परा हमारे यहाँ कभी थी ही नहीं)। न ही नौ साल पहले हमने कोई सबक सीखा था, न ही दो महीने पहले हुए मुम्बई हमले के बाद कुछ सीखने को तैयार हैं। एक और कंधार प्रकरण कभी भी आसानी से मंचित किया जा सकता है, और भारत की जनता में इतनी हिम्मत नहीं लगती कि वह आतंकवादियों के खिलाफ़ मजबूती से खड़ी हो सके। हो सकता है कि एक बार आम आदमी (जो पहले ही रोजमर्रा के संघर्षों से मजबूत हो चुका है) कठोर बन जाये, लेकिन “पब संस्कृति”, “रेव-पार्टियाँ” आयोजित करने वाले नौनिहाल इस देश को सिर्फ़ शर्म ही दे सकेंगे। किसी भी प्रकार के युद्ध से पहले ही हम नुकसान का हिसाब लगाने लगते हैं, लाशें गिनने लगते हैं। पाकिस्तान के एक मंत्री ने बिलकुल सही कहा है कि भारत अब एक “बनिया व्यापारी देश” बन गया है वह कभी भी हमसे पूर्ण युद्ध नहीं लड़ सकेगा। डरपोक नेताओं और धन-सम्पत्ति को सीने से चिपकाये हुए अमीरों के इस देश में अपनी कमजोरियाँ स्वीकार करने की ताकत भी नहीं बची है… भ्रष्टाचार या आतंकवाद से लड़ना तो बहुत दूर की बात है…

सन्दर्भ, आँकड़े और घटनायें : कंचन गुप्ता (तत्कालीन प्रधानमंत्री कार्यालय के मीडिया सेल में पदस्थ पत्रकार) के लेख से…

  • Suresh Chiplunkar

CBSE के महंगे स्कूलों में क्यों पढ़ाते हो, मदरसे में भरती करो…

प्रसिद्ध उपन्यास “राग दरबारी” में पं. श्रीलाल शुक्ल कह गये हैं कि भारत की “शिक्षा व्यवस्था” चौराहे पर पड़ी उस कुतिया के समान है, जिसे हर आता-जाता व्यक्ति लात लगाता रहता है। आठवीं तक के बच्चों की परीक्षा न लेकर उन्हें सीधे पास करने का निर्णय लेकर पहले प्राथमिक शिक्षा को जोरदार लात जमाने का काम किया गया है, लेकिन अब यूपीए सरकार ने वोट बैंक की खातिर मुसलमानों और तथाकथित “सेकुलरों” की “चरणवन्दना” करने की होड़ में एक और अल्पसंख्यक (इस शब्द को हमेशा सिर्फ़ और सिर्फ़ मुसलमान ही पढ़ा जाये) समर्थक निर्णय लिया है कि “मदरसा बोर्ड” का सर्टिफ़िकेट CBSE के समतुल्य माना जायेगा… है न एक क्रांतिकारी(?) निर्णय!!!

रिपोर्टों के मुताबिक केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय अब लगभग इस निर्णय पर पहुँच चुका है कि मदरसा बोर्ड के सर्टिफ़िकेट को CBSE के समतुल्य माना जायेगा। वैसे तो यह निर्णय “खच्चर” (क्षमा करें…) सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशों के आधार पर लिया जा रहा है, लेकिन इसमें मुख्य भूमिका “ओबीसी मसीहा” अर्जुनसिंह की है, जो आने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए “मुस्लिम मसीहा” भी बनना चाहते हैं और असल में अन्तुले की काट करना चाहते हैं।

“संवैधानिक रूप से प्रधानमंत्री” मनमोहन सिंह द्वारा अल्पसंख्यकों (पढ़ें मुसलमान) के कल्याण हेतु घोषित 15 सूत्रीय कार्यक्रम के अनुसार मंत्रालय द्वारा एक समिति का गठन किया गया था, जिसने यह “बेजोड़” सिफ़ारिश की थी। मानव संसाधन मंत्रालय के इस निर्णय के बाद लगभग 7000 मदरसे, खासकर उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, झारखण्ड, उड़ीसा, असम और पश्चिम बंगाल (यानी लगभग 250 लोकसभा सीटों पर) में मदरसों में पढ़ने वाले साढ़े तीन लाख विद्यार्थी लाभान्वित होंगे। केन्द्र ने अन्य राज्यों में यह सुविधा भी प्रदान की है कि यदि उस सम्बन्धित राज्य में मदरसा बोर्ड नहीं हो तो छात्र पड़ोसी राज्य में अपना रजिस्ट्रेशन करवाकर इस “सुविधा”(?) का लाभ ले सकता है। “स्वयंभू मुस्लिमप्रेमी” लालू यादव भला कैसे पीछे रहते? उन्होंने भी घोषणा कर डाली है और उसे अमलीजामा भी पहना दिया है कि रेल्वे की परीक्षाओं में मदरसा बोर्ड के प्रमाणपत्र मान्य होंगे, ताकि रेल्वे में अल्पसंख्यकों (पढ़ें मुसलमानों) की संख्या में बढ़ोतरी की जा सके। हाथी के दाँत की तरह दिखाने के लिये इसका मकसद है “अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा(?) में लाना…” (यानी वोट बैंक पक्का करना), ये सवाल पूछना नितांत बेवकूफ़ी है कि“अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा से बाहर किया किसने…”? “क्या किसी ने उनके हाथ-पैर बाँधकर मुख्यधारा से अलग जंगल में रख छोड़ा है?”, क्यों नहीं वे आधुनिक शिक्षा लेकर, खुले विचारों के साथ मुल्लाओं का विरोध करके, “नकली सेकुलरों” को बेनकाब करके कई अन्य समुदायों की तरह खुद ही मुख्यधारा में आते?

इस निर्णय से एक बात स्पष्ट नहीं हो पा रही है कि आखिर केन्द्र सरकार मदरसों का स्तर उठाना चाहती है या CBSE का स्तर गिराना चाहती है? लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि यह उन छात्रों के साथ एक क्रूर मजाक है जो CBSE के कठिन पाठ्यक्रम को पढ़ने और मुश्किल परीक्षा का सामना करने के लिये अपनी रातें काली कर रहे हैं। यदि सरकार को वाकई में मदरसे में पढ़ने वाले मुस्लिमों को मुख्यधारा में लाना ही है तो उन क्षेत्रों में विशेष स्कूल खोले जा सकते हैं जिनमें वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण पढ़ाई करवाई जा सके। लेकिन इस्लाम की धार्मिक शिक्षा देने वाले मदरसों को सीधे CBSE के बराबर घोषित करना तो वाकई एक मजाक ही है। क्या सरकार को यह नहीं मालूम कि उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में चल रहे मदरसों में “किस प्रकार की पढ़ाई” चल रही है? सरकार द्वारा पहले ही “अल्पसंख्यकों” के लिये विभिन्न सबसिडी और योजनायें चलाई जा रही हैं, जो कि अन्ततः बहुसंख्यक छात्रों के पालकों के टैक्स के पैसों पर ही होती हैं और उन्हें ही यह सुविधायें नहीं मिलती हैं। असल में यूपीए सरकार के राज में हिन्दू और उस पर भी गरीब पैदा होना मानो एक गुनाह ही है। कहाँ तो संविधान कहता है कि धार्मिक आधार पर नागरिकों के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिये, लेकिन असल में मुसलमानों को खुश करने में सोनिया सरकार कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहती।

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धार्मिक आधार पर आरक्षण नहीं होगा यह सुप्रीम कोर्ट भले ही कह चुका हो, संविधान में भी लिखा हो, विभिन्न नागरिक संगठन विरोध कर रहे हों, लेकिन आंध्रप्रदेश के ईसाई मुख्यमंत्री “सैमुअल रेड्डी” “क्या कर लोगे?” वाले अंदाज में जबरन 5% मुस्लिम आरक्षण लागू करने पर उतारू हैं, केन्द्र की यूपीए सरकार मदरसों के आधुनिकीकरण हेतु करोड़ों रुपये के अनुदान बाँट रही है, लेकिन मदरसे हैं कि राष्ट्रीय त्योहारों पर तिरंगा फ़हराने तक को राजी नहीं हैं (यहाँ देखें)। मुल्ला और मौलवी जब-तब इस्लामी शिक्षा के आधुनिकीकरण के खिलाफ़ “फ़तवे” जारी करते रहते हैं, लेकिन सरकार से (यानी कि टैक्स देने वाले हम और आप के पैसों से) “अनुदान” वे खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं। केन्द्र सरकार का यह दायित्व है कि वह मदरसों के प्रबन्धन से कहे कि या तो वे सिर्फ़ “धार्मिक”(?) शिक्षा तक ही सीमित रहें और छात्रों को अन्य शिक्षा के लिये बाहर के स्कूलों में नामजद करवाये या फ़िर मदरसे बन्द किये जायें या उन्हें अनुदान नहीं दिया जाये, लेकिन सरकार की ऐसा कहने की हिम्मत ही नहीं है। सरकार चाहती है कि मदरसे देश भर में कुकुरमुत्ते की तरह फ़ैल जायें। जो नकली “सेकुलर”(?) हमेशा सरस्वती शिशु मन्दिरों की शिक्षा प्रणाली पर हमले करते रहते हैं, उन्हें एक बार इन स्कूलों में जाकर देखना चाहिये कि मदरसों में और इनमें क्या “मूल” अन्तर है।

तीन मुस्लिम विश्वविद्यालयों जामिया हमदर्द, जामिया मिलिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने पोस्ट-ग्रेजुएशन में प्रवेश के लिये पहले ही मदरसों के सर्टिफ़िकेट को मान्यता प्रदान की हुई है, अब मानव संसाधन मंत्रालय (इसे पढ़ें अर्जुनसिंह) चाहता है कि देश की बाकी सभी यूनिवर्सिटी इस नियम को लागू करें। फ़िलहाल तो कुछ विश्वविद्यालयों ने इस निर्णय का विरोध किया है, लेकिन जी-हुजूरी और चमचागिरी के इस दौर में कब तक वे अपनी “रीढ़” सीधी रख सकेंगे यह कहना मुश्किल है। विभिन्न सूत्र बताते हैं कि देश भर में वैध-अवैध मदरसों की संख्या दस लाख के आसपास है और सबसे खतरनाक स्थिति पश्चिम बंगाल और बिहार के सीमावर्ती जिलों के गाँवों में है, जहाँ आधुनिक शिक्षा का नामोनिशान तक नहीं है, और इन मदरसों को सऊदी अरब से आर्थिक मदद भी मिलती रहती है।

सच्चर कमेटी की आड़ लेकर यूपीए सरकार पहले ही मुसलमानों को खुश करने हेतु कई कदम उठा चुकी है, जैसे अल्पसंख्यक (यानी मुसलमान) संस्थानों को विशेष आर्थिक मदद, अल्पसंख्यक (यानी वही) छात्रों को सिर्फ़ 3 प्रतिशत ब्याज पर शिक्षा ॠण (हिन्दू बच्चों को शिक्षा ॠण 13% की दर से दिया जाता है), बेरोजगारी भी धर्म देखकर आती है इसलिये हिन्दू युवकों को 15 से 18 प्रतिशत पर व्यापार हेतु ॠण दिया जाता है, जबकि मुस्लिम युवक को “प्रोजेक्ट की कुल लागत” का सिर्फ़ 5 प्रतिशत अपनी जेब से देना होता है, 35 प्रतिशत राशि का ॠण 3% ब्याज दर पर “अल्पसंख्यक कल्याण फ़ायनेंस” करता है बाकी की 60 प्रतिशत राशि सिर्फ़ 2% का ब्याज पर केन्द्र सरकार उपलब्ध करवाती है। IIM, IIT और AIIMS में दाखिला होने पर पूरी फ़ीस सरकार के माथे होती है, प्रशासनिक और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु “उनके” लिये विशेष मुफ़्त कोचिंग क्लासेस चलाई जाती हैं, उन्हें खास स्कॉलरशिप दी जाती है, इस प्रकार की सैकड़ों सुविधायें हिन्दू छात्रों का हक छीनकर दी जा रही हैं, और अब मदरसा बोर्ड के सर्टिफ़िकेट को CBSE के बराबर मानने की कवायद…

क्या सरकार यह चाहती है कि देश की जनता “धर्म परिवर्तन” करके अपने बच्चों को CBSE स्कूलों से निकालकर मदरसे में भरती करवा दे? या श्रीलाल शुक्ल जिस “शिक्षा व्यवस्था नाम की कुतिया” का उल्लेख कर गये हैं उसे “उच्च शिक्षा नाम की कुतिया” भी माना जाये? जिसे मौका मिलते ही जब-तब लतियाया जायेगा…

  • Suresh Chiplunkar