The Chinese visitor and Chanakya.

Once a Chinese visitor came to Pataliputra looking for Chanakya. He could not find him near the King’s palace. He was told go to the outskirts of Pataliputra. Reaching the outskirts of the city, he came to one humble dwelling in a remote place. On knocking the door, he was invited in.  The visitor inquired, “where is the dwelling of Chanakya?” The  person there said, “I am Chankaya, the minister of Chandra gupta”. The visitor then realized the true opulence of Pataliputra.

He is known to have said,  “When the minister stays in a simple dwelling, the subject enjoys good housing, and when the minister lavishes on his stay, then the subject will be bereft of dwelling, and go astray.”

Bhismadeva talks about the character of ministers in Anushashana parva. One of the most important qualities he mentions, is “sauchah.”  Sauchah is not simply being clean externally, it indicates integrity and transparency.
Did any one see the palace of Chhtrapati Shivaji, Rana pratap or Krsnadevaraya? None of the palaces of Kings before the colonial influence are existing,  because they did not have costly palaces. They focused on roads, forts, water and food resources.  The Maharaja’s palaces that we see, are recent ones influenced by external refines of the British rulers of their times. The dominated kings made a great display of luxury, and hence they hardly took part in the freedom struggle.
Too much of luxury makes one very self-centric, and less empathetic towards others.

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के बीच एक दुर्लभ संवाद

स्वामी विवेकानंद     :  मैं समय नहीं निकाल पाता. जीवन आप-धापी से भर गया है.

रामकृष्ण परमहंस   :  गतिविधियां तुम्हें घेरे रखती हैं. लेकिन उत्पादकता आजाद करती है.

स्वामी विवेकानंद     :  आज जीवन इतना जटिल क्यों हो गया है?   
     
रामकृष्ण परमहंस   :  जीवन का विश्लेषण करना बंद कर दो. यह इसे जटिल बना देता है. जीवन को सिर्फ जिओ.

स्वामी विवेकानंद     :  फिर हम हमेशा दुखी क्यों रहते हैं?   
   
रामकृष्ण परमहंस   :  परेशान होना तुम्हारी आदत बन गयी है. इसी वजह से तुम खुश नहीं रह पाते.

स्वामी विवेकानंद     :  अच्छे लोग हमेशा दुःख क्यों पाते हैं?

रामकृष्ण परमहंस   :  हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है. सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है. अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं. इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता.

स्वामी विवेकानंद     :  आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है?

रामकृष्ण परमहंस   :  हां. हर लिहाज से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है. पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है.

स्वामी विवेकानंद     :  समस्याओं से घिरे रहने के कारण, हम जान ही नहीं पाते कि किधर जा रहे हैं…

रामकृष्ण परमहंस   :  अगर तुम अपने बाहर झांकोगे तो जान नहीं पाओगे कि कहां जा रहे हो. अपने भीतर झांको. आखें दृष्टि देती हैं. हृदय राह दिखाता है.

स्वामी विवेकानंद     :  क्या असफलता सही राह पर चलने से ज्यादा कष्टकारी है?

रामकृष्ण परमहंस   :  सफलता वह पैमाना है जो दूसरे लोग तय करते हैं. संतुष्टि का पैमाना तुम खुद तय करते हो.

स्वामी विवेकानंद     :  कठिन समय में कोई अपना उत्साह कैसे बनाए रख सकता है?

रामकृष्ण परमहंस   :  हमेशा इस बात पर ध्यान दो कि तुम अब तक कितना चल पाए, बजाय इसके कि अभी और कितना चलना बाकी है. जो कुछ पाया है, हमेशा उसे गिनो; जो हासिल न हो सका उसे नहीं.

स्वामी विवेकानंद     :  लोगों की कौन सी बात आपको हैरान करती है?

रामकृष्ण परमहंस   :  जब भी वे कष्ट में होते हैं तो पूछते हैं, “मैं ही क्यों?” जब वे खुशियों में डूबे रहते हैं तो कभी नहीं सोचते, “मैं ही क्यों?”

स्वामी विवेकानंद     :  मैं अपने जीवन से सर्वोत्तम कैसे हासिल कर सकता हूँ?

रामकृष्ण परमहंस   :  बिना किसी अफ़सोस के अपने अतीत का सामना करो. पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने वर्तमान को संभालो. निडर होकर अपने भविष्य की तैयारी करो.

स्वामी विवेकानंद     :  एक आखिरी सवाल. कभी-कभी मुझे  लगता है कि मेरी प्रार्थनाएं बेकार जा रही हैं.

रामकृष्ण परमहंस   :  कोई भी प्रार्थना बेकार नहीं जाती. अपनी आस्था बनाए रखो और डर को परे रखो. जीवन एक रहस्य है जिसे तुम्हें खोजना है. यखह कोई समस्या नहीं जिसे तुम्हें सुलझाना है. मेरा विश्वास करो- अगर तुम यह जान जाओ कि जीना कैसे है तो जीवन सचमुच बेहद आश्चर्यजनक है.|

मनोबल

राज़ा सुकीर्ति के पास एक लौहश्रुन्घ नामक हाथी था ..राजा ने कई युद्ध में उसपर चढ़ाई करके विजय पायी थी ..बचपन से ही उसे इस प्रकार से तैयार किया गया था कि युद्ध में शत्रु सैनिको को देखकर वो उनपर इस तरह टूट पड़ता कि देखते ही देखते शत्रु के पाँव उखड जाते …
पर जब वो हाथी बुढा हो गया ..तो वह सिर्फ हाथी शाला की शोभा बन कर रह गया ..अब उसपर ध्यान नहीं देता था …भोजन में भी कमी कर दी गयी ..एक बार वो प्यासा हो गया तो एक तालाब में पानी पिने गया पर वहा कीचड़ में उसका पैर फस गया और धीरे धीरे गर्दन तक कीचड़ में फस गया ..
अब सबको लगा कि ये हाथी तो मर जाएगा .इसे हम बचा ही नहीं पायेंगे ..राज़ा को जब पता चला तो वे बहुत दुखी हो गए ..पूरी कोशिश की गयी पर सफलता ही नहीं मिल रही थी …
आखिर में एक चतुर सैनिक की सलाह से युद्ध का माहौल बनाया गया ..वाद्ययंत्र मंगवाए गए ….नगाड़े बजवाये गए और ऐसा माहौल बनाया गया कि शत्रु सैनिक लौहश्रुन्घ की ओर बढ़ रहे है .और फिर तो लौहश्रुन्घ में एक जोश आ गया ..गले तक कीचड़ में धस जाने के बावजूद वह जोर से चिंघाड़ लगाकर सैनिको की ओर दौड़ने लगा ..बड़ी मुश्किल से उसे संभाला गया ..ये है एक मनोबल बढ़ जाने से मिलने वाली ताकत का कमाल …जिसका मनोबल जाग जाता है वो असहाय और अशक्त होने के बावजूद भी असंभव काम कर जाता है …

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जब चीनी यात्री चाणक्य से मिला

घटना उन दिनों की है जब भारत पर चंद्रगुप्त मौर्य का शासन था और आचार्य चाणक्य यहाँ के महामंत्री थे और चन्द्रगुप्त के गुरु भी थे उन्हीं के बदौलत चन्द्रगुप्त ने भारत की सत्ता हासिल की थी. चाणक्य अपनी योग्यता और कर्तव्यपालन के लिए देश विदेश मे प्रसिद्ध थे उन दिनों एक चीनी यात्री भारत आया यहाँ घूमता फिरता जब वह पाटलीपुत्र पहुंचा तो उसकी इच्छा चाणक्य से मिलने की हुई उनसे मिले बिना उसे अपनी भारत यात्रा अधूरी महसूस हुई. पाटलिपुत्र उन दिनों मौर्य वंश की राजधानी थी. वहीं चाणक्य और सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य भी रहते थे लेकिन उनके रहने का पता उस यात्री को नहीं था लिहाजा पाटलिपुत्र मे सुबह घूमता-फिरता वह गंगा किनारे पहुँचा. यहाँ उसने एक वृद्ध को देखा जो स्नान करके अब अपनी धोती धो रहा था. वह साँवले रंग का साधारण व्यक्ति लग रहा था लेकिन उसके चहरे पर गंभीरता थी उसके लौटने की प्रतीक्षा मे यात्री एक तरफ खड़ा हो गया वृद्ध ने धोती धो कर अपने घड़े मे पनी भरा और वहाँ से चल दिया. जैसे ही यह यात्री के नजदीक पहुंचा यात्री ने आगे
बढ़कर भारतीय शैली मे हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और बोला , “महाशय मैं चीन का निवासी हूँ भारत मे काफी घूमा हूँ यहाँ के महामंत्री आचार्य चाणक्य के दर्शन करना चाहता हूँ. क्या आप मुझे उनसे मिलने का पता बता पाएंगे?” वृद्ध ने यात्री का प्रणाम स्वीकार किया और आशीर्वाद दिया. फिर उस पर एक नज़र डालते हुये बोला, “अतिथि की सहायता करके मुझे प्रसन्नता होगी आप कृपया मेरे साथ चले.” फिर आगे-आगे वह वृद्ध और पीछे-पीछे वह यात्री चल दिये. वह रास्ता नगर की ओर न जा कर जंगल की ओर जा रहा था. यात्री को आशंका हुई की वह वृद्ध उसे किसी गलत स्थान पर तो नहीं ले जा रहा है. फिर भी उस वृद्ध की नाराजकी के डर से कुछ कह नहीं पाया. वृद्ध के चहरे पर गंभीरता और तेज़ था की चीनी यात्री उसके सामने खुद को बहुत छोटा महसूस कर रहा था. उसे इस बात की भली भांति जानकारी थी की भारत मे अतिथियों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है और सम्पूर्ण भारत मे चाणक्य और सम्राट चन्द्रगुप्त का इतना दबदबा था की कोई अपराध करने की हिम्मत नहीं कर सकता था, इसलिए वह अपनी सुरक्षा की प्रति निश्चिंत था. वह यही सोच रहा था की चाणक्य के निवास स्थान मे पहुँचने के लिए ये छोटा मार्ग होगा. वृद्ध लंबे- लंबे डग भरते हुये काफी तेजी से चल रहा था चीनी यात्री को उसके साथ चलने मे काफी दिक्कत हो रही थी. नतीजन वह पिछड़ने लगा. वृद्ध को उस यात्री की परेशानी समझ गयी व धीरे-धीरे चलने लगा. अब चीनी यात्री आराम से उसके साथ चलने लगा. रास्ता भर वे खामोसी से आगे बढ़ते रहे.
थोड़ी देर बाद वृद्ध एक आश्रम से निकट पहुंचा जहां चारों ओर शांति थी तरह- तरह के फूल पत्तियों से से आश्रम घिरा हुआ था. वृद्ध वहाँ पहुंच कर रुका और यात्री को वहीं थोड़ी देर प्रतीक्षा करने के लिए कह कर आश्रम मे चला गया. यात्री सोचने लगा की वह वृद्ध शायद इसी आश्रम मे रहता होगा और अब पानी का घड़ा और भीगे वस्त्र रख कर कहीं आगे चलेगा. कुछ क्षण बाद यात्री से सुना , “महामंत्री चाणक्य अपने अतिथि का स्वागत करते है. पधारिए महाशय ” यात्री ने नज़रे उठाई और देखता रह गया वही वृद्ध आश्रम के द्वार पर खड़ा उसका स्वागत कर रहा था. उसके मुंह से आश्चर्य से निकाल पड़ा “आप?” “हाँ महाशय” वृद्ध बोला “मैं ही महामंत्री चाणक्य हूँ और यही मेरा निवास स्थान है. आप निश्चिंत होकर आश्रम मे पधारे.” यात्री ने आश्रम मे प्रवेश किया लेकिन उसके
मन में याद आशंका बनी रही कि कहीं उसे मूर्ख तो नही बनाया जा रहा है. वह इस बात पर यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि एक महामंत्री इतनी सादगी का जीवन व्यतीत करता है. नदी पर अकेले ही पैदल स्नान के लिए जाना. वहाँ से स्वयं ही अपने वस्त्र धोना, घड़ा भर कर लाना और बस्ती से दूर आश्रम मे रहना, यह सब चाणक्य जैसे
विश्वप्रसिद्ध व्यक्ति कि ही दिनचर्या है. उस ने आश्रम मे इधर उधर देखा. साधारण किस्म का समान था. एक कोने मे उपलों का ढेर लगा हुआ था. वस्त्र सुखाने के लिए बांस टंगा हुआ था. दूसरी तरफ मसाला पीसने के लिए सील बट्टा रखा हुआ था. कहीं कोई राजसी ठाट-बाट नहीं था. चाणक्य ने यात्री को अपनी कुटियाँ मे ले जाकर आदर सहित आसान पर बैठाया और स्वयं उसके सामने दूसरे आसान पर बैठ गए. यात्री के चेहरे पर बिखरे हुए भाव समझते हुये चाणक्य बोले, “महाशय, शायद आप विश्वास नहीं कर पा रहे है कि, इस विशाल राज्य
का महामंत्री मैं ही हूँ तथा यह आश्रम ही महामंत्री का मूल निवास स्थान है. विश्वास कीजिये ये दोनों ही बातें सच है. शायद आप भूल रहे है कि आप भारत मे है जहां कर्तव्यपालन को महत्व दिया जा रहा है, ऊपरी आडंबर को नहीं,
यदि आपको राजशी ठाट-बाट देखना है तो आप सम्राट के निवास स्थान पर पधारे, राज्य का स्वामी और उसका प्रतीक सम्राट होता है, महामंत्री नहीं” चाणक्य कि बाते सुन कर चीनी यात्री को खुद पर बहुत लज्जा आयी कि उसने व्यर्थ ही चाणक्य और उनके निवास स्थान के बारे मे शंका कि. इत्तेफाक से उसे समय वहाँ सम्राट चन्द्रगुप्त अपने कुछ कर्मचारियों के साथ आ गए. उन्होने अपने गुरु के पैर छूये और कहा, “गुरुदेव राजकार्य के संबंध मे आप से कुछ सलाह लेनी थी इसलिए उपस्थित हुआ हूँ. इस पर चाणक्य ने आशीर्वाद देते हुये कहा, “उस संबंध मे हम फिर कभी बात कर लेंगे अभी तो तुम हमारे अतिथि से मिलो, यह चीनी यात्री हैं. इन्हे तुम अपने राजमहल ले जाओ. इनका भली- भांति स्वागत करो और फिर संध्या को भोजन के बाद इन्हे मेरे पास ले आना, तब इनसे बातें
करेंगे”. सम्राट चन्द्रगुप्त आचार्य को प्रणाम करके यात्री को अपने साथ ले कर लौट गए. संध्या को चाणक्य किसी राजकीय विषय पर चिंतन करते हुये कुछ लिखने मे व्यस्त थे. सामने ही दीपक जल रहा था. चीनी यात्री ने
चाणक्य को प्रणाम किया और एक ओर बिछे आसान पर बैठ गया. चाणक्य ने अपनी लेखन सामग्री एक ओर रख
दी और दीपक बुझा कर दूसरा दीपक जला दिया. इस के बाद चीनी यात्री को संबोधित करते हुये बोले, “महाशय, हमारे देश मे आप काफी घूमे-फिरे है. कैसा लगा आप को यह देश?” चीनी यात्री ने नम्रता से बोला, “आचार्य, मैं
इस देश के वातावरण और निवासियों से बहुत प्रभावित हुआ हूँ. लेकिन यहाँ पर मैंने ऐसी अनेक विचित्रताएं भी देखीं हैं जो मेरी समझ से परे है”. “कौन सी विचित्रताएं, मित्र?” चाणक्य ने स्नेह से पूछा. “उदाहरण के लिए सादगी की ही बात कर ली जा सकती है. इतने बड़े राज्य के महामन्त्री का जीवन इतनी सादगी भरा होगा,
इस की तो कल्पना भी हम विदेशी नहीं कर सकते,” कह कर चीनी यात्री ने अपनी बात आगे बढ़ाई, “अभी अभी एक और विचित्रता मैंने देखी है आचार्य, आज्ञा हो तो कहूँ?” “अवश्य कहो मित्र, आपका संकेत कौन सी विचित्रता से की ओर है?” “अभी अभी मैं जब आया तो आप एक दीपक की रोशनी मे काम कर रहे थे. मेरे आने के बाद
उस दीपक को बुझा कर दूसरा दीपक जला दिया. मुझे तो दोनों दीपक एक समान लगे रहे है. फिर एक को बुझा कर दूसरे को जलाने का रहस्य मुझे समझ नहीं आया?” आचार्य चाणक्य मंदमंद मुस्कुरा कर बोले इसमे ना तो कोई रहस्य है और ना विचित्रता. इन 2 दीपको मे से एक राजकोष का तेल है और दूसरे मे मेरे अपने परिश्रम से
खरीदा गया तेल. जब आप यहाँ आए थे तो मैं राजकीय कार्य कर रहा था इसलिए उस समय राजकोष के तेल वाला दीपक जला रहा था. इस समय मैं आपसे व्यक्तिगत बाते कर रहा हूँ इसलिए राजकोष के तेल वाला दीपक जलना उचित और न्यायसंगत नहीं है. लिहाज मैंने वो वाला दीपक बुझा कर अपनी आमनी वाला दीपक जला दिया”.
चाणक्य की बात सुन कर यात्री दंग रह गया और बोला, “धन्य हो आचार्य, भारत की प्रगति और उसके विश्वगुरु बनने का रहस्य अब मुझे समझ मे आ गया है. जब तक यहाँ के लोगो का चरित्र इतना ही उन्नत और महान बना रहेगा, उस देश की तरक्की को संसार की कोई भी शक्ति नहीं रोक सकेगी. इस देश की यात्रा करके और आप जैसे महात्मा से मिल कर मैं खुद को गौरवशाली महसूस कर रहा हूँ

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अपने मन-वचन-कर्म से कभी भी ऐसा कृत्य न करो जिसके लिए तुम्हें सदैव पछताना पड़े…

एक 12-13 साल के लड़के को बहुत क्रोध आता था। उसके पिता ने उसे ढेर सारी कीलें दीं और कहा कि जब भी उसे क्रोध आए वो घर के सामने लगे पेड़ में वह कीलें ठोंक दे।
पहले दिन लड़के ने पेड़ में 30 कीलें ठोंकी। अगले कुछ हफ्तों में उसे अपने क्रोध पर धीरे-धीरे नियंत्रण करना आ गया। अब वह पेड़ में प्रतिदिन इक्का- दुक्का कीलें ही ठोंकता था। उसे यह समझ में आ गया था कि पेड़ में कीलें ठोंकने के बजाय क्रोध पर
नियंत्रण करना आसान था। एक दिन ऐसा भी आया जब उसने पेड़ में एक भी कील नहीं ठोंकी। जब उसने अपने पिता को यह बताया तो पिता ने उससे कहा कि वह सारी कीलों को पेड़ से निकाल दे। लड़के ने बड़ी मेहनत करके जैसे-तैसे पेड़ से सारी कीलें खींचकर निकाल दीं। जब उसने अपने पिता को काम पूरा हो जाने के बारे में बताया तो पिता बेटे
का हाथ थामकर उसे पेड़ के पास लेकर गया। पिता ने पेड़ को देखते हुए बेटे से कहा – “तुमने बहुत अच्छा काम किया, मेरे बेटे, लेकिन पेड़ के तने पर बने सैकडों कीलों के इन निशानों को देखो। अब यह पेड़ इतना खूबसूरत नहीं रहा। हर बार जब तुम क्रोध
किया करते थे तब इसी तरह के निशान दूसरों के मन पर बन जाते थे। अगर तुम किसी के पेट में छुरा घोंपकर बाद में हजारों बार माफी मांग भी लो तब भी घाव का निशान
वहां हमेशा बना रहेगा। अपने मन-वचन-कर्म से कभी भी ऐसा कृत्य न करो जिसके लिए तुम्हें सदैव पछताना पड़े…!!

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चट्टान सी दिखने वाली समस्या एक छोटे से पत्थर के समान दिखने लगेगी

एक किसान था. उसके खेत में एक पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था और कितनी ही बार उससे टकराकर खेती के औजार भी टूट चुके थे.
रोजाना की तरह आज भी वह सुबह-सुबह खेती करने पहुंचा और इस बार वही हुआ, किसान का हल पत्थर से टकराकर टूट गया. किसान क्रोधित हो उठा, और उसने निश्चय किया कि आज जो भी हो जाए वह इस चट्टान को ज़मीन से निकाल कर इस खेत के बाहर फ़ेंक देगा.

वह तुरंत गाँव से ४-५ लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस पत्त्थर के पास पहुंचा और बोल, ” यह देखो ज़मीन से निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुक्सान किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे आज उखाड़कर खेत के बाहर फ़ेंक देना है.” और ऐसा कहते ही वह फावड़े से पत्थर के किनार वार करने लगा, पर यह क्या ! अभी उसने एक-दो बार ही मारा था कि पूरा-का पूरा पत्थर ज़मीन से बाहर निकल आया. साथ खड़े लोग भी अचरज में पड़ गए और उन्ही में से एक ने हँसते हुए पूछा , “क्यों भाई , तुम तो कहते थे कि तुम्हारे खेत के बीच में एक बड़ी सी चट्टान दबी हुई है , पर ये तो एक मामूली सा पत्थर निकला ??”

किसान भी आश्चर्य में पड़ गया सालों से जिसे वह एक भारी-भरकम चट्टान समझ रहा था दरअसल वह बस एक छोटा सा पत्थर था ! उसे पछतावा हुआ कि काश उसने पहले ही इसे निकालने का प्रयास किया होता तो ना उसे इतना नुकसान उठाना पड़ता और ना ही दोस्तों के सामने उसका मज़ाक बनता .

हम भी कई बार ज़िन्दगी में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं को बहुत बड़ा समझ लेते हैं और उनसे निपटने की बजाय तकलीफ उठाते रहते हैं. ज़रुरत इस बातकी है कि हम बिना समय गंवाएं उन मुसीबतों से लडें , और जब हम ऐसा करेंगे तो कुछ ही समय में चट्टान सी दिखने वाली समस्या एक छोटे से पत्थर के समान दिखने लगेगी जिसे हम आसानी से हल पाकर आगे बढ़ सकते हैं.

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जीवन में कभी दूसरो की वजह से कोई कार्य मत छोड़िये

एक मकड़ी थी. उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार
जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब
कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से
रहूंगी . उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और
वहाँ जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर
तैयार हो गया. यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई
कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे
देखकर हँस रही थी.
मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली , ” हँस
क्यो रही हो?”
”हँसू नही तो क्या करू.” , बिल्ली ने जवाब दिया , ”
यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है,
यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे.”
ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिये
बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर
दूसरी जगह तलाश करने लगी. उसने ईधर ऊधर देखा. उसे एक
खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ
देर तक वह जाला बुनती रही , तभी एक चिड़िया आयी और
मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली , ” अरे मकड़ी , तू
भी कितनी बेवकूफ है.”
“क्यो ?”, मकड़ी ने पूछा.
चिड़िया उसे समझाने लगी , ” अरे यहां तो खिड़की से तेज
हवा आती है. यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी.”
मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ और वह
वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब
कहाँ जाला बनायाँ जाये. समय काफी बीत चूका था और अब
उसे भूख भी लगने लगी थी .अब उसे एक
आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे
अपना जाला बुनना शुरू किया. कुछ जाला बुना ही था तभी उसे
एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख
रहा था.
मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो?’
काक्रोच बोला-,” अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये
तो बेकार की आलमारी है. अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद
इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार
चली जायेगी. यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर
समझा .
बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके
अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी. भूख की वजह से
वह परेशान थी. उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले
ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता. पर अब वह कुछ नहीं कर
सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही.
जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने
पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया .
चींटी बोली, ” मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी , तुम बार- बार
अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़
देती . और जो लोग ऐसा करते हैं , उनकी यही हालत होती है.”
और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और
मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही.
दोस्तों , हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है.
हम कोई काम start करते है. शुरू -शुरू मे तो हम उस काम के
लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो के comments की वजह
से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे
ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने
सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के
अलावा कुछ नही बचता.

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बुरा समय आप को मजबूत व्यक्ति बना दे

बहुत समय पहले की बात है , किसी गाँव में एक किसान रहता था . उसके पास बहुत सारे जानवर थे , उन्ही में से
एक गधा भी था . एक दिन वह चरते चरते खेत में बने एक पुराने सूखे हुए कुएं के पास जा पहुचा और अचानक ही उसमे फिसल कर गिर गया . गिरते ही उसने जोर -जोर से चिल्लाना शुरू किया -” ढेंचू-ढेंचू ….ढेंचू-ढेंचू ….”
उसकी आवाज़ सुन कर खेत में काम कर रहे लोग कुएं के पास पहुचे, किसान को भी बुलाया गया .

किसान ने स्थिति का जायजा लिया , उसे गधे पर दया तो आई लेकिन उसने मन में सोचा कि इस बूढ़े गधे को बचाने से कोई लाभ नहीं है और इसमें मेहनत भी बहुत लगेगी और साथ ही कुएं की भी कोई ज़रुरत नहीं है , फिर उसने बाकी लोगों से कहा , “मुझे नहीं लगता कि हम किसी भी तरह इस गधे को बचा सकते हैं अतः आप सभी अपने-अपने काम पर लग जाइए, यहाँ समय गंवाने से कोई लाभ नहीं.”

और ऐसा कह कर वह आगे बढ़ने को ही था की एक मजदूर बोला, ” मालिक , इस गधे ने सालों तक आपकी सेवा की है , इसे इस तरह तड़प-तड़प के मरने देने से अच्छा होगा की हम उसे इसी कुएं में दफना दें .”

किसान ने भी सहमती जताते हुए उसकी हाँ में हाँ मिला दी.

” चलो हम सब मिल कर इस कुएं में मिटटी डालना शुरू करते हैं और गधे को यहीं दफना देते हैं”, किसान बोला.

गधा ये सब सुन रहा था और अब वह और भी डर गया , उसे लगा कि कहाँ उसके मालिक को उसे बचाना चाहिए तो उलटे वो लोग उसे दफनाने की योजना बना रहे हैं . यह सब सुन कर वह भयभीत हो गया , पर उसने हिम्मत नहीं हारी और भगवान् को याद कर वहां से निकलने के बारे में सोचने लगा ….

अभी वह अपने विचारों में खोया ही था कि अचानक उसके ऊपर मिटटी की बारिश होने लगी, गधे ने मन ही मन सोचा कि भले कुछ हो जाए वह अपना प्रयास नहीं छोड़ेगा और

आसानी से हार नहीं मानेगा। और फिर वह पूरी ताकत से उछाल मारने लगा .

किसान ने भी औरों की तरह मिटटी से भरी एक बोरी कुएं में झोंक दी और उसमे झाँकने लगा , उसने देखा की जैसे ही मिटटी गधे के ऊपर पड़ती वो उसे अपने शरीर से झटकता और उछल कर उसके ऊपर चढ़ जाता .जब भी उसपे मिटटी डाली जाती वह यही करता ….झटकता और ऊपर चढ़ जाता …. झटकता और ऊपर चढ़ जाता ….

किसान भी समझ चुका था कि अगर वह यूँ ही मिटटी डलवाता रहा तो गधे की जान बच सकती है .

फिर क्या था वह मिटटी डलवाता गया और देखते-देखते गधा कुएं के मुहाने तक पहुँच गया, और अंत में कूद कर बाहर आ गया.

मित्रों, हमारी ज़िन्दगी भी इसी तरह होती है , हम चाहे जितनी भी सावधानी बरतें कभी न कभी मुसीबत रुपी गड्ढे में गिर ही जाते हैं .पर गिरना प्रमुख नहीं है, प्रमुख है संभलना . बहुत से लोग बिना प्रयास किये ही हार मान लेते हैं , पर जो प्रयास करते हैं भगवान् भी किसी न किसी रूप में उनके लिए मदद भेज देता है। यदि गधा लगातार बचने का प्रयास नहीं करता तो किसान के दिमाग में भी यह बात नहीं आती कि उसे बचाया जा सकता है … इसलिए जब अगली बार आप किसी मुसीबत में पड़ें तो कोशिश करिए कि आप भी उसे झटक कर आगे बढ़ जाएं।.

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“मैं सनकी हूँ पर मूर्ख नहीं.”

जिन्दगी में सीखने कि लिए सदैव तत्पर रहना चाहिये.
एक ट्रक ड्राइवर अपने सामान डिलेवरी करने के लिए मेंटल हॉस्पिटल गया. सामान डिलेवरी के पश्चात वापस लौटते समय उसने देखा कि उसके ट्रक का एक पहिया पंचर हो गया. ड्राइवर ने स्टेपनी निकाल कर पहिया खोला पर गलती से उसके हाथ से पहिये कसने के चारों बोल्ट पास की गहरी नाली में गिर गए जहाँ से निकालना संभव न था. अब ड्राइवर बहुत ही परेशान हो गया कि वापस कैसे जाए.

इतने में पास से मेंटल हॉस्पिटल का एक मरीज गुजरा. उसने ड्राइवर से कि क्या बात है. ड्राइवर ने मरीज को बहुत ही हिकारत से देखते हुए सोच कि यह पागल क्या कर लेगा. फिर भी उसने मरीज को पूरी बात बता दी.

मरीज ने ड्राइवर के ऊपर हँसते हुए कहा कि तुम इतनी छोटी समस्या का समाधान भी नहीं कर सकते हो और इसीलिये तुम ड्राइवर ही हो.

ड्राइवर को एक पागलपन के मरीज से इस प्रकार का संबोधन अच्छा नहीं लगा और उसने मरीज से चेतावनी भरे शब्दों में पूछा कि तुम क्या कर सकते हो?

मरीज ने जवाब दियाकि बहुत ही साधारण बात है. बाकी के तीन पहियों से एक एक बोल्ट निकाल कर पहिया कस लो और फिर नजदीक की ऑटो परत की दुकान के पास जाकर नए बोल्ट खरीद लो.

ड्राइवर इस सुझाव से बहुत ही प्रभावित हुआ और उसने मरीज से पूछा कि तुम इतने बुद्धिमान हो फिर इस हॉस्पिटल में क्यों हो?

मरीज ने जवाब दिया कि, “मैं सनकी हूँ पर मूर्ख नहीं.”

कोई आश्चर्य की बात नहीं कि कुछ लोग ट्रक ड्राइवर की तरह व्यवहार करते हैं, सोचते हैं कि दूसरे लोग मूर्ख हैं. अतः हम सब ज्ञानी और पढ़ें लिखे हैं, पर निरीक्षण करें कि हमारे आस् पास इस प्रकार के सनकी व्यक्ति भी रहते हैं जिनसे ढेर सारे व्यावहारिक जीवन के नुस्खे मिल सकते हैं और जो हमारी बुद्धिमत्ता को ललकारते रहेंगे.

कहानी से सीख : कभी भी यह न सोचे कि आपको सब कुछ आता है और दूसरे लोगों को उनके बाहरी आवरण / दिखावट के आधार पर उनके ज्ञान का अंदाज़ न लगाये.

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कमियां निकलना आसान है जबकि उनको दूर करना मुश्किल

एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था । चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को, जहाँ भी इसमें कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे । जब उसने शाम को तस्वीर देखी उसकी पूरी तस्वीर पर निशानों से ख़राब हो चुकी थी । यह देख वह बहुत दुखी हुआ। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे वह दुःखी बैठा हुआ था । तभी उसका एक मित्र वहाँ से गुजरा उसने उसके दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई । उसने कहा एक काम करो कल दूसरी तस्वीर बनाना और उस मे लिखना कि जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये उसे सही कर दे।
उसने अगले दिन यही किया । शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया । वह संसार की रीति समझ गया। “कमी निकालना,
निंदा करना, बुराई करना आसान, लेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है”.

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