नासिकाग्र दृष्टि मुद्रा योग

नासिकाग्र का अर्थ होता है नाक का आख‍िरी छोर, ऊपरी हिस्सा या अग्रभाग। इस भाग पर बारी-बारी से संतुलन बनाने हुए देखना ही नाकिकाग्र मुद्रा योग कहलाता है। लेकिन यह मुद्रा करने से पहले योग शिक्षक की सलाह जरूर लें, क्योंकि इसके करने से भृकुटी पर जोर पड़ता है।img1140305014_1_1

मुद्रा की विधि- किसी भी आसन में बैठकर नाक के आखिरी सिरे पर नजरे टिका लें। हो सकता है कि पहले आप बाईं आंखों से उसे देख पाएं तब कुछ देर बाद दाईं आंखों से देखें। इस देखने में जरा भी तनाव न हो। सहजता से इसे देखें।

अवधि- इस मुद्रा को इतनी देर तक करना चाहिए कि आंखों पर इसका ज्यादा दबाव नहीं पड़ें फिर धीरे-धीरे इसे करने का समय बढ़ाते जाएं।

इसका लाभ- इससे जहां आंखों की एक्सरसाइज होती है वहीं यह मस्तिष्क के लिए भी लाभदायक है। इससे मन में एकाग्रता बढ़ती है। इस मुद्रा के लगातार अभ्यास करने से मूलाधार चक्र जाग्रत होने लगता है जिससे कुण्डलीनी जागरण में मदद मिलती है। इससे मूलाधार चक्र इसलिए जाग्रत होता है क्योंकि दोनों आंखों के बीच ही स्थित है इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी जो मूलाधार तक गई है।

व्यान मुद्रा योग के लाभ

हमारे शरीर में पांच तरह की वायु रहती है उसमें से एक का नाम है- व्यान। सारे शरीर में संचार करने वाली व्यान वायु से ही शरीर की सब क्रियाएँ होती है। इसी से सारे शरीर में रस पहुँचता है, पसीना बहता है और खून चलता है, आदमी उठता, बैठता और चलता फिरता है और आँखें खोलता तथा बंद करता है। जब यह वायु असंतुलित या खराब होती होती है, तब प्रायः सारे शरीर में एक न एक रोग हो जाता है। यह मुद्रा और भी कई तरीके से की जाती है।img1120419068_1_1

व्यान मुद्रा विधि- हाथ की मध्यमा अंगुली के आगे के भाग को अंगूठे के आगे के भाग से मिलाने और तर्जनी अंगुली को बीच की अंगुली के नाखून से छुआएं बाकी बची सारी अंगुलियां सीधी रहनी चाहिए। इसी को व्यान मुद्रा कहा जाता है।

अवधि- इस मुद्रा को सुबह 15 मिनट और शाम को 15 मिनट तक करना चाहिए।

इसके लाभ- व्यान मुद्रा को करने से पेशाब संबंधी सभी रोग दूर होते हैं। जैसे- पेशाब ज्यादा आना, पेशाब में चीनी आना, पेशाब के साथ घात आना, पेशाब रुक-रुक कर आना आदि रोग समाप्त हो जाते हैं। इसके अलावा इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से मधुमेह, प्रमेह और स्वप्नदोष भी दूर होता है। स्त्रियों के लिए यह मुद्रा सबसे ज्यादा लाभदायक बताई गई है। इस मुद्रा को करने से स्त्रियों के सारे रोग समाप्त हो जाते हैं।

ब्रह्म मुद्रा के लाभ

ब्रह्म मुद्रा आसन : कुछ लोग इसे ब्रह्मा मुद्रा भी कहते हैं, क्योंकि इस आसन में गर्दन को चार दिशा में घुमाया जाता है और ब्रह्माजी के चार मुख थे इसीलिए इसका नाम ब्रह्मा मुद्रा आसन रखा गया। लेकिन असल में यह ब्रह्म मुद्रा आसन है और इसमें सभी दिशाओं में स्थित परमेश्वर को जानकर उसका चिंतन किया जाता है। नमाज पढ़ते वक्त या संध्या वंदन करते वक्त उक्त मुद्रासन को किया जाता रहा है।img1120515086_1_1

कैसे करें : पद्मासन, सिद्धासन या वज्रासन में बैठकर कमर तथा गर्दन को सीधा रखते हुए गर्दन को धीरे-धीरे दायीं ओर ले जाते हैं। कुछ सेकंड दायीं ओर रुकते हैं, उसके बाद गर्दन को धीरे-धीरे बायीं ओर ले जाते हैं। कुछ सेकंड तक बायीं ओर रुककर फिर दायीं ओर ले जाते हैं। फिर वापस आने के बाद गर्दन को ऊपर की ओर ले जाते हैं, उसके बाद नीचे की तरफ ले जाते हैं। फिर गर्दन को क्लाकवाइज और एंटीक्लाकवाइज घुमाएँ। इस तरह यह एक चक्र पूरा हुआ। अपनी सुविधानुसार इसे चार से पाँच चक्रों में कर सकते हैं।

सावधानियां : जिन्हें सर्वाइकल स्पोंडलाइटिस या थाइराइड की समस्या है वे ठोडी को ऊपर की ओर दबाएँ। गर्दन को नीचे की ओर ले जाते समय कंधे न झुकाएँ। कमर, गर्दन और कंधे सीधे रखें। गर्दन या गले में कोई गंभीर रोग हो तो योग चिकित्सक की सलाह से ही यह मुद्राआसन करें।

इस मुद्रा का लाभ : जिन लोगों को सर्वाइकल स्पोंडलाइटिस, थाइराइड ग्लांट्स की शिकायत है उनके लिए यह आसन लाभदायक है। इससे गर्दन की माँसपेशियाँ लचीली तथा मजबूत होती हैं। आध्यात्मिक ‍दृष्टि से भी यह आसन लाभदायक है। आलस्य भी कम होता जाता है तथा बदलते मौसम के सर्दी-जुकाम और खाँसी से छुटकारा भी मिलता है।

योग मुद्रासन : अकाल हरिमुद्रा योग

मुदं आनंदं राति लाति इति मुद्रा’ इस व्युत्पति के अनुसार, आनंद की प्राप्ति जिससे हो, उसे ‘मुद्रा’ कहते हैं। यहां प्रस्तुत है सिर दर्द में लाभदायक अकाल हरिमुद्रा।img1120524043_1_2 (1)

मुद्रा बनाने का तरीका- सावधान मुद्रा में खड़े होकर दोनों होथों को पूरी रह ऊपर की ओर उठा लें। फिर दोनों हाथों की अंगुलियों को खोलकर आकाश की तरफ उठाने से अकाल हरिमुद्रा बन जाती है।

इस मुद्रा का लाभ- अकाल हरिमुद्रा के नियमित अभ्यास से सिर का सुन्न होना, आधे सिर का दर्द, सिर दर्द और सिर से संबंधित सभी रोग समाप्त हो जाते हैं।

हस्त मुद्रा और पांच तत्व

मुद्रा और दूसरे योगासनों के बारे में बताने वाला सबसे पुराना ग्रंथ घेरण्ड संहिता है। हठयोग के इस ग्रंथ को महर्षि घेरण्ड ने लिखा था। घेरंड में 25 और हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है, लेकिन सभी योग के ग्रंथों की मुद्राओं को मिलाकर कुल 50 से 60 हस्त मुद्राएं हैं।img1120807076_1_1

हमारा शरीर पांच तत्व और पंच कोश से नीर्मित है, जो ब्रह्मांड में है वही शरीर में है। शरीर को स्वस्थ बनाए रखने की शक्ति स्वयं शरीर में ही है। इसी रहस्य को जानते हुए भारतीय योग और आयुर्वेद में ऋषियों ने यम, नियम, आसन, प्राणायाम, बंध और मुद्रा के लाभ को लोगों को बताया। इन्हीं में से एक हस्त मुद्रा का बहुत कम लोग ही महत्व जानते होंगे।

यह शरीर पांच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। शरीर में ही पांच कोश है जैसे अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनंदमय कोश। शरीर में इन तत्व के संतुलन या कोशों के स्वस्थ रहने से ही शरीर, मन और आत्मा स्वस्थ ‍रहती है। इनके असंतुलन या अस्वस्थ होने से शरीर और मन में रोगों की उत्पत्ति होती है। इन्हें पुन: संतुलित और स्वस्थ बनाने के लिए हस्त मुद्राओं का सहारा लिया जा सकता है। img1120807076_1_2

अंगुली में पंच तत्व : हाथों की 10 अंगुलियों से विशेष प्रकार की आकृतियां बनाना ही हस्त मुद्रा कही गई है। हाथों की सारी अंगुलियों में पांचों तत्व मौजूद होते हैं जैसे अंगूठे में अग्नि तत्व, तर्जनी अंगुली में वायु तत्व, मध्यमा अंगुली में आकाश तत्व, अनामिका अंगुली में पृथ्वी तत्व और कनिष्का अंगुली में जल तत्व।

अंगुलियों के पांचों वर्ग से अलग-अलग विद्युत धारा बहती है। इसलिए मुद्रा विज्ञान में जब अंगुलियों का रोगानुसार आपसी स्पर्श करते हैं, तब रुकी हुई या असंतुलित विद्युत बहकर शरीर की शक्ति को पुन: जाग देती है और हमारा शरीर निरोग होने लगता है। ये अद्भुत मुद्राएं करते ही यह अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं।

अवधि और सावधानी : दिन में अधिकतम अवधी 20-30 मिनट तक एक मुद्रा को किया जाए। इन मुद्राओं को अगर एक बार करने में परेशानी आए तो 2-3 बार में भी कर सकते हैं। मुद्रा करते समय जो अंगुलियां प्रयोग में नहीं आ रही है उन्हें सीधा करके और हथेली को थोड़ा कसा हुआ रखते हैं। हाथों में कोई गंभीर चोट, अत्यधिक दर्द या रोग हो तो योग चि‍कित्सक की सलाह ली जानी चाहिए।

हस्त मुद्रा के लाभ : मुद्रा संपूर्ण योग का सार स्वरूप है। इसके माध्यम से कुंडलिनी या ऊर्जा के स्रोत को जाग्रत किया जा सकता है। इससे अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्ति संभव है।

सामान्यत: अलग-अलग मुद्राओं से अलग-अलग रोगों में लाभ मिलता है। मन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है। शरीर में कहीं भी यदि ऊर्जा में अवरोध उत्पन्न हो रहा है तो मुद्राओं से वह दूर हो जाता है और शरीर हल्का हो जाता है। जिस हाथ से ये मुद्राएं बनाते हैं, शरीर के उल्टे हिस्से में उनका प्रभाव तुरंत ही नजर आना शुरू हो जाता है।

आंखों के लिए ‘देव ज्योतिमुद्रा योग’

हाथों की 10 अंगुलियों से विशेष प्रकार की आकृतियां बनाना ही हस्त मुद्रा कही गई है। हाथों की सारी अंगुलियों में पांचों तत्व मौजूद होते हैं जैसे अंगूठे में अग्नि तत्व, तर्जनी अंगुली में वायु तत्व, मध्यमा अंगुली में आकाश तत्व, अनामिका अंगुली में पृथ्वी तत्व और कनिष्का अंगुली में जल तत्व।img1120807083_1_1

जो व्यक्ति योगासन और प्राणायाम करने में अक्षम है उसके लिए हस्त मुद्राएं उपयो‍गी साबित हो सकती है बशर्ते की वह इसे नियमित करें। यह प्रस्तुत है नेत्र रोग में लाभदायक ‘देव ज्योति मुद्रा’ का परिचय।

इसला लाभ : देव ज्योतिमुद्रा सभी तरह के नेत्र रोग में लाभदायक सिद्धि हुई है। इस मुद्रा को करने से कम दिखना, आंखों में जाला और सूजन आदि जैसे रोग दूर हो जाते हैं। जिन बच्चों को कम उम्र मे ही चश्मा लग चुका हो वो अगर रोजाना देव ज्योतिमुद्रा का अभ्यास करें तो उनका चश्मा उतर सकता है।

मुद्रा विधि : अपने हाथ की तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगाने से देव ज्योतिमुद्रा बन जाती है। यह कुछ कुछ वायु मुद्रा जैसी है। लगभग 40-60 सेकंड तक आप इसी मुद्रा में रहने का अभ्यास करें। सुबह-शाम चार से 6 बार कर सकते हैं।

पुष्पांजलि योग मुद्रा

जैसा कि इसका नाम है पुष्पांजलि इसी से यह सिद्ध होता है कि यह मुद्रा किस प्रकार की होगी। यह महत्वपूर्ण हस्त योग मुद्रा है। जैसे दुआ में हाथ उठाते हैं या पुष्प अर्पण करते हैं तब यहमुद्रा बनती है।

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मुद्रा की विध : पहले कपोत मुद्रा में आ जाएं अर्थात दोनों हाथों की अंगुलियों और अंगूठे को आपस में मिला मणिबद्ध को भी मिला लें। फिर दोनों हाथों की छोटी अंगुलियों को एक साथ मिलाकर ऐसी आकृति बना लें कि जैसे हम किसी भगवान को फूल चढ़ाते समय बनाते हैं इसे ही पुष्पांजलि मुद्रा कहते हैं।

इसका लाभ : पुष्पांजली मुद्रा के निरंतर अभ्यास से नींद अच्छी तरह से आने लगती है। आत्मविश्वास बढ़ता है।

यौवन के लिए मातंगिनी मुद्रा योग क्रिया

मातंग का अर्थ होता है मेघ। मां दुर्गा का एक रूप है मातंगी। यह दस महाविद्या में से नौवीं विद्या है। मातंग नाम से एक ध्यान होता है, मंत्र होता है और एक हाथी का नाम भी मातंग है। ऋषि वशिष्ठ की पत्नी का एक नाम भी मातंगी है। ऋषि कश्यप की पुत्री का नाम भी मातंगी है जिससे हाथी उत्पन्न हुए थे। मातंगिनी मुद्रा दो प्रकार से होती है- 1.मातंगिनी क्रिया, 2.मातंगी हस्त मुद्रा। यहां प्रस्तुत है- मातंगिनी क्रिया।
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दौहराव/अवधि : इसको बार-बार कर सकते हैं।

मुद्रा करने की विधि : शांत जगह में पानी के अंदर गले तक शरीर को डुबों लें और फिर नाक से पानी को खींचकर उसे मुंह से निकाल लें। फिर मुंह से पानी को खींचकर नाक से बाहर निकाल दें। इस क्रिया को ही मातंगिनी मुद्रा कहते हैं।

इसका लाभ : इस मुद्रा के अभ्यास से आंखों की रोशनी तेज हो जाती है। सिर दर्द में यह मुद्रा अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। इससे नजला-जुकाम आदि के रोग भी दूर हो जाते हैं। इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास से चेहरे पर चमक आ जाती है और बाल भी सफेद नहीं होते हैं। इस मुद्रा के सिद्ध हो जाने पर व्यक्ति में ताकत बढ़ जाती है।

पाचन क्रिया के लिए काकी मुद्रा योग

काक कौए को कहते हैं। कौए की चोंच जैसी मुंह की मुद्रा बना लेने को काकी मुद्रा कहा जाता है।img1121004041_1_1

मुद्रा बनाने की विधि : किसी भी आसन में बैठकर होठों को पतली सी नली के समान मोड़कर कौए की चोंच जैसा बना लें। अब नाक के अग्र भाग को देखते हुए अपना पूरा ध्यान नाक पर टिका दें। इसके बाद मुंह से धीरे-धीरे गहरी श्वास लेकर होठों को बंद कर दें। कुछ देर बाद श्वास को नाक से बाहर निकाल दें। इस तरह से 10 मिनट तक करें।

इस मुद्रा का लाभ : यह मुद्रा जहां शरीर में ठंडक बढ़ाती हैं वहीं यह कई रोगों को दूर करने में लाभदायक है। इस मुद्रा का निरंतर अभ्यास करने से शरीर में अंदर भोजन पचाने की क्रिया तेज हो जाती है। इससे अम्लपित्त का बढ़ना कम हो जाता है।

ऊर्जा चल मुद्रा योग से दूर होगा मोटापा

मोटापा एक समस्या है। इससे पेट, पीठ, कमर और कंधे की समस्या भी बनी रहती है। मोटापे को दूर करने के लिए हम सबसे आसान उपाय बता रहे हैं ऊर्जा चल मुद्रा योग। दरअसल यह अंग संचालन (सूक्ष्म व्यायाम) का हिस्सा हैimg1121011032_1_1

मुद्रा का लाभ : इससे जहां आपकी अंगुलियां मजबूत बनेगी वहीं यह मोटापा कम करने में भी सहायक सिद्ध होगी। इससे सबसे पहले कंधे का दर्द मिटता है फिर यह पेट, पीठ और कमर का दर्द दूर करती है।

सावधानी : शुरुआत 5 मिनट के अभ्यास से कहते हुए प्रतिदिन सुबह और शाम 10 से 15 मिनट तक इसका अभ्यास करें। 20 दिन तक तक के लिए अभ्यास करें और फिर दो-चार दिन छोड़ कर फिर से इसका अभ्यास करने लगें।

ऐसे करें मुद्रा – यह बहुत ही आसान है जाने-अंजाने आपने इसका अभ्यास किया भी होगा। इसके लिए सिर्फ अपने दोनों हाथों की मुटि्ठयों को बंद करना और खोलना है। इस तरह से इस मुद्रा को बार-बार करना है। इस बार बार करने को ही ऊर्जा चल मुद्रा कहते हैं।