शहद खाएं तो इन बातों का रखें ध्यान वरना ये जहर बन जाएगा

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शहद को आयुर्वेद में अमृत माना गया है। रोजाना सही ढंग से शहद लेना सेहत के लिए अच्छा होता है। लेकिन गलत तरीके से शहद का सेवन करने से फायदे की जगह नुकसान भी हो सकता है। इसलिए जब भी शहद का सेवन करें नीचे लिखी बातों को जरूर ध्यान में रखें।

  • चाय, कॉफी में शहद का उपयोग नहीं करना चाहिए। शहद का इनके साथ सेवन जहर के समान काम करता है।
  • अमरूद, गन्ना, अंगूर, खट्टे फलों के साथ शहद अमृत है।
  • इसे आग पर कभी न तपायें।
  • मांस, मछली के साथ शहद का सेवन जहर के समान है।

  • शहद में घी या दूध बराबर मात्रा में हानिकारक है।

  • चीनी के साथ शहद मिलाना अमृत में विष मिलाने के समान है।

  • एक साथ अधिक मात्रा में शहद न लें। ऐसा करना नुकसानदायक होता है। शहद दिन में दो या तीन बार एक चम्मच लें।

तेल, मक्खन में शहद जहर के समान है।

  • शहद खाकर किसी तरह की परेशानी महसूस हो रही हो तो नींबू का सेवन करें।

चाकलेट के दुष्परिणाम

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चाकलेट ह्रदय, मस्तिष्क, मन व बुद्धि पर विपरीत प्रभाव डालता है | इसका सेवन कई घातक बीमारियों का कारण है | इसमें पाये जानेवाले हानिकारक तत्त्व है :
(१) कैफीन : व्यक्ति को चाकलेट खाने के अधीन करता है | इससे चित्त अधिक विचलित होता है | नींद बिगड़ती है | सिरदर्द व आँतों के विकार उत्पन्न होते है | ह्रदय, रक्त-संचरण, ग्रंथियों से संबंधित तकलीफें, तंत्रिका-विकार, अस्थि-भंगुरता (osteoporosis), महिलाओं में प्रसव-संबंधी तकलीफें तथा अन्य रोग होते हैं|
(२) सीसा ( Lead ) : यह एक अत्यंत हानिकारक खनिज है, जो बोद्धिक विकास रोकता है |इससे बुद्धि -गुणांक ( IQ ) कम होता है | ह्रदय की गति में अतिरिक्त वृद्धी होती है |
(३) थियोब्रोमाइन : असामान्य ग्रंथि-वृद्धि, अवसाद, बेचैनी, अनिंद्रा, पाचनतंत्र के रोग और खुजली जैसे कई रोग होते हैं |
(४) वेसोएक्टिव एमाइन्स : मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों को प्रसारित कर सिरदर्द कराते हैं |
(५) सेच्युरेटेड फेट्स व अतिरिक्त शर्करा : कोलेस्ट्राल व ब्लडप्रेशर बढ़ाते हैं | ह्रदय की रक्तवाहिनियों को अवरुद्ध कर ह्रदयरोग उत्पन्न करते हैं | इनसे मोटापा, दाँतों के रोग व कील-मुंहासे होते हैं |
(६) थियोफालीन : पेट की तकलीफें व तंत्रिका-विकार होते हैं |
( ७) टिरपटोंफेन : शुरू में ख़ुशी व स्फूर्ति का एहसास दिलाकर बाद में थकाता है | अत:हानिकारक द्रव्यों से युक्त ऐसे चाकलेट का सेवन करने की अपेक्षा स्वास्थ्य, बुद्धि व बलवर्धक तुलसी-गोलियों का सेवन करें |

इससे आयुष्य नष्ट होती है

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१) जो मनमाना खान पान करते हैं अपनी आयुष्य क्षीण करता है … और संयम से खान पान रखता है तो लंबी आयुष्य हो जाती है |
२) अति अभिमान
३) जो अति बोलना, चलते-चलते बोलना, व्यर्थ बोलता है उसकी बुद्धि और आयुष्य क्षीण हो जाते हैं
४) जो क्रोधी है
५) जो अति खाता है, रात को देरी से खाता है
६) जो ह्रदय में किसी के लिए द्रोह ठान के रखता है, वैर ठान के रखता है वो भी अपनी आयुष्य क्षीण करता है

पर जो मौन रहता है, कम बोलता है , श्वासोश्वास में भगवान का नाम स्मरण करता है वो अपना मन पवित्र करता है, बुद्धि पवित्र करता है और आयुष्य लंबी करता है|

अंग्रेजी दवाइयों से सावधान !

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सावधान ! आप जो जहरीली अंग्रेजी दवाइयाँ खा रहे हैं उनके परिणाम का भी जरा विचार कर लें।

वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने भारत सरकार को 72000 के करीब दवाइयों के नाम लिखकर उन पर प्रतिबन्ध लगाने का अनुरोध किया है। क्यों ? क्योंकि ये जहरीली दवाइयाँ दीर्घ काल तक पेट में जाने के बाद यकृत, गुर्दे और आँतों पर हानिकारक असर करती हैं, जिससे मनुष्य के प्राण तक जा सकते हैं।

कुछ वर्ष पहले न्यायाधीश हाथी साहब की अध्यक्षता में यह जाँच करने के लिए एक कमीशन बनाया गया था कि इस देश में कितनी दवाइयाँ जरूरी हैं और कितनी बिन जरूरी हैं जिन्हें कि विदेशी कम्पनियाँ केवल मुनाफा कमाने के लिए ही बेच रही हैं। फिर उन्होंने सरकार को जो रिपोर्ट दी, उसमें केवल 117 दवाइयाँ ही जरूरी थीं और 8400 दवाइयाँ बिल्कुल बिनजरूरी थीं। उन्हें विदेशी कम्पनियाँ भारत में मुनाफा कमाने के लिए ही बेच रही थीं और अपने ही देश के कुछ डॉक्टर लोभवश इस षडयंत्र में सहयोग कर रहे थे।paracetamol-jpg

पैरासिटामोल नामक दवाई, जिसे लोग बुखार को तुरंत दूर करने के लिए या कम करने के लिए प्रयोग कर रहे हैं, वही दवाई जापान में पोलियो का कारण घोषित करके प्रतिबन्धित कर दी गयी है। उसके बावजूद भी प्रजा का प्रतिनिधित्व करनेवाली सरकार प्रजा का हित न देखते हुए शायद केवल अपना ही हित देख रही है।

सरकार कुछ करे या न करे लेकिन आपको अगर पूर्ण रूप से स्वस्थ रहना है तो आप इन जहरीली दवाइयों का प्रयोग बंद करें और करवायें। भारतीय संस्कृति ने हमें आयुर्वेद के द्वारा जो निर्दोष औषधियों की भेंट की हैं उन्हें अपनाएँ।

साथ ही आपको यह भी ज्ञान होना चाहिए कि शक्ति की दवाइयों के रूप में आपको, प्राणियों का मांस, रक्त, मछली आदि खिलाये जा रहे हैं जिसके कारण आपका मन मलिन, संकल्पशक्ति कम हो जाती है। जिससे साधना में बरकत नहीं आती। इससे आपका जीवन खोखला हो जाता है। एक संशोधनकर्ता ने बताया कि ब्रुफेन नामक दवा जो आप लोग दर्द को शांत करने के लिए खा रहे हैं उसकी केवल 1 मिलीग्राम मात्रा दर्द निवारण के लिए पर्याप्त है, फिर भी आपको 250 मिलीग्राम या इससे दुगनी मात्रा दी जाती है। यह अतिरिक्त मात्रा आपके यकृत और गुर्दे को बहुत हानि पहुँचाती है। साथ में आप साइड इफेक्टस का शिकार होते हैं वह अलग !

घाव भरने के लिए प्रतिजैविक (एन्टीबायोटिक्स) अंग्रेजी दवाइयाँ लेने की कोई जरूरत नहीं है।triphala

किसी भी प्रकार का घाव हुआ हो, टाँके लगवाये हों या न लगवाये हों, शल्यक्रिया (ऑपरेशन) का घव हो, अंदरूनी घाव हो या बाहरी हो, घाव पका हो या न पका हो लेकिन आपको प्रतिजैविक लेकर जठरा, आँतों, यकृत एवं गुर्दों को साइड इफेक्ट द्वारा बिगाड़ने की कोई जरूरत नहीं है वरन् निम्नांकित पद्धति का अनुसरण करें-

घाव को साफ करने के लिए ताजे गोमूत्र का उपयोग करें। बाद में घाव पर हल्दी का लेप करें।

एक से तीन दिन तक उपवास रखें। ध्यान रखें कि उपवास के दौरान केवल उबालकर ठंडा किया हुआ या गुनगुना गर्म पानी ही पीना है, अन्य कोई भी वस्तु खानी-पीनी नहीं है। दूध भी नहीं लेना है।

उपवास के बाद जितने दिन उपवास किया हो उतने दिन केवल मूँग को उबाल कर जो पानी बचता है वही पानी पीना है। मूँग का पानी क्रमशः गाढ़ा कर सकते हैं।

मूँग के पानी के बाद क्रमशः मूँग, खिचड़ी, दाल-चावल, रोटी-सब्जी इस प्रकार सामान्य खुराक पर आ जाना है।

कब्ज जैसा हो तो रोज 1 चम्मच हरड़े का चूर्ण सुबह अथवा रात को पानी के साथ लें। जिनके शरीर की प्रकृति ऐसी हो कि घाव होने पर तुरंत पक जाय, उन्हें त्रिफल गूगल नामक 3-3 गोली दिन में 3 बार पानी के साथ लेनी चाहिए।

सुबह 50 ग्राम गोमूत्र तथा दिन में 2 बार 3-3 ग्राम हल्दी के चूर्ण का सेवन करने से अधिक लाभ होता है। पुराने घाव में चन्द्रप्रभा वटी की 2-2 गोलियाँ दिन में 2 बार लें। जात्यादि तेल अथवा मलहम से व्रणरोपण करें।

रोगों से बचाव

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सिर के रोगः नहाने से पहले हमेशा 5 मिनट तक मस्तक के मध्य तालुवे पर किसी श्रेष्ठ तेल (नारियल, सरसों, तिल्ली, ब्राह्मी, आँवला, भृंगराज) की मालिश करो। इससे स्मरणशक्ति और बुद्धि का विकास होगा। बाल काले, चमकीले और मुलायम होंगे।

विशेषः रात को सोने से पहले कान के पीछे की नाड़ियों, गर्दन के पीछे की नाड़ियों और सिर के पिछले भाग पर हल्के हाथों से तेल की मालिश करने से चिंता, तनाव और मानसिक परेशानी के कारण सिर के पिछले भाग और गर्दन में होने वाला दर्द तथा भारीपन मिटता है।

नेत्रज्योतिः नित्य प्रातः सरसों के तेल से पाँव के तलवों और उँगलियों की मालिश करने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। सबसे पहले पाँव के अँगूठों को तेल से तर करके उनकी मालिश करनी चाहिए। इससे किसी प्रकार का नेत्ररोग नहीं होता और आँखों की रोशनी तेज होती है। साथ ही पैर का खुरदरापन, रूखापन तथा पैर की सूजन शीघ्र दूर होती है। पैर में कोमलता तथा बल आता है।

कान के रोगः सप्ताह में 1 बार भोजन से पूर्व कान में सरसों के हलके सुहाते गरम तेल की 2-4 बूँदें डालकर खाना खायें। इससे कानों में कभी तकलीफ नहीं होगी। कान में तेल डालने से अंदर का मैल बाहर आ जाता है। सप्ताह या 15 दिन में 1 बार ऐसा करने से ऊँचे से सुनना या बहरेपन का भय नहीं रहता एवं दाँत भी मजबूत बनते हैं। कान में कोई भी द्रव्य (औषधि) भोजन से पूर्व डालना चाहिए।

विशेषः 25 ग्राम सरसों के तेल में लहसुन की 2 कलियाँ छीलकर डाल दें। फिर गुनगुना गरम करके छान लें। सप्ताह में यदि 1 बार कान में यह तेल डाल लिया जाय तो श्रवणशक्ति तेज बनती है। कान निरोग बने रहते हैं। इस लहसुन के तेल को थोड़ा गर्म करके कान में डालने से खुश्की भी दूर होती है। छोटा-मोटा घाव भी सूख जाता है।

कान और नाक के छिद्रों में उँगली या तिनका डालने से उनमें घाव होने या संक्रमण पहुँचने का भय रहता है। अतः ऐसा न करें।

नजला-जुकामः रात के समय नित्य सरसों का तेल या गाय के घी को गुनगुना करके 1-2 बूँदें सूँघते रहने से नजला जुकाम कभी नहीं होता। मस्तिष्क अच्छा रहता है।

मुख के रोगः प्रातः कड़वे नीम की 2-4 हरी पत्तियाँ चबाकर उसे थूक देने से दाँत,जीभ व मुँह एकदम साफ और निरोग रहते हैं।

विशेषः नीम की दातुन उचित ढंग से करने वाले के दाँत मजबूत रहते हैं। उनके दाँतों में तो कीड़े ही लगते हैं और न दर्द होता है। मुँह के रोगों से बचाव होता है। जो 12 साल तक नीम की दातुन करता है उसके मुँह से चंदन की खुश्बु आती है।

मुख में कुछ देर सरसों का तेल रखकर कुल्ला करने से जबड़ा बलिष्ठ होता है। आवाज ऊँची और गम्भीर हो जाती है। चेहरा पुष्ट होता है और 6 रसों में से हर एक रस को अनुभव करने की शक्ति बढ़ जाती है। इस क्रिया से कण्ठ नहीं सूखता और न ही होंठ फटते हैं। दाँत भी नहीं टूटते क्योंकि दाँतों की जड़ें मजबूत हो जाती हैं। दाँतों में पीड़ा नहीं होती।

सर्दीजनित तथा गले व श्वसन संस्थान के रोगः जो व्यक्ति नित्य प्रातः खाली पेट तुलसी की 4-5 पत्तियों को चबाकर पानी पी लेता है, वह अनेक रोगों से सुरक्षित रहता है। उसके सामान्य रोग स्वतः ही दूर हो जाते हैं। सर्दी के कारण होने वाली बीमारियों में विशेष रूप से जुकाम, खाँसी, ब्रॉंकइटिस, निमोनिया, इन्फ्लूएंजा, गले, श्वासनली और फेफडों के रोगों में तुलसी का सेवन उपयोगी है।

श्वासरोगः श्वास बदलने की विधि से, दाहिने स्वर के अधिकतम अभ्यास से तथा दाहिने स्वर में ही प्राणायाम के अभ्यास से श्वासरोग नियंत्रित किया जा सकता है।

भस्त्रिका प्राणायाम करने से दमा, क्षय आदि रोग नहीं होते तथा पुराने से पुराना नजला जुकाम भी समाप्त हो जाता है। इस प्राणायाम से नाक व छाती के रोग नहीं होते।

हृदय तथा मस्तिष्क की बीमारियाँ- दक्षिण की ओर पैर करके सोने से हृदय तथा मस्तिष्क की बीमारियाँ पैदा होती हैं। अतः दक्षिण की तरफ पैर करके न सोयें।

विशेषः नित्य प्रातः 4-5 किलोमीटर तक चहलकदमी (Brisk Walk) करने वालों को दिल की बीमारी नहीं होती।

पेट का कैंसरः नित्य भोजन के आधे एक घंटे के बाद लहसुन की 1-2 कली छीलकर चबाया करें। ऐसा करने से पेट का कैंसर नहीं होता। कैंसर भी हो गया तो लगातार 1-2 माह तक नित्य खाना खाने के बाद आवश्यकतानुसार लहसुन की 1-2 कली पीसकर पानी में घोलकर पीने से पेट के कैंसर में लाभ होता है।

तनावमुक्त रहो और कैंसर के बचो। नवीन खोजों के अनुसार कैंसर का प्रमुख कारण मानसिक तनाव है। शरीर के किस भाग में कैंसर होगा यह मानसिक तनाव के स्वरूप पर निर्भर है।

यदि कैंसर से पीड़ित व्यक्ति अनारदाने का सेवन करता रहे तो उसकी आयु 10 वर्ष तक बढ़ सकती है। कैंसर के रोगी को रोटी आदि न खाकर मूँग का ही सेवन करना चाहिए

खाना खूब चबा-चबाकर खाओ। एक ग्रास को 32 बार चबाना चाहिए। भूख से कुछ कम एवं नियत समय पर खाना चाहिए। इससे अपच, अफरा आदि उदररोगों से व्यक्ति बचा रहता है। साथ ही पाचनक्रिया भी ठीक रहती है।

पित्त विकार, बवासीर और पेट के कीड़ेः सप्ताह में एक बार करेले की सब्जी खाने से सब तरह के बुखार, पित्त-विकार, बच्चों के हरे पीले दस्त, बवासीर, पेट के कीड़े एवं मूत्र रोगों से बचाव होता है।

गुर्दे की बीमारीः भोजन करने के बाद मूत्रत्याग करने से गुर्दे, कमर और जिगर के रोग नहीं होते। गठिया आदि अनेक बीमारियों से बचाव होता है।

फोड़े फुंसियाँ और चर्मरोगः चैत्र मास अर्थात् मार्च-अप्रैल में जब नीम की नयी नयी कोंपलें खिलती हैं तब 21 दिन तक प्रतिदिन दातुन कुल्ला करने के बाद ताजी 15 कोंपलें (बच्चों के लिए 7) चबाकर खाने या गोली बनाकर पानी के साथ निगलने या घोंटकर पीने से साल भर फोड़े-फुंसियाँ नहीं निकलतीं।

विशेषः खाली पेट इसका सेवन करके कम से कम 2 घंटे तक कुछ न खायें।

इससे खून की बहुत सारी खराबियाँ, खुजली आदि चर्मरोग, पित्त और कफ के रोग जड़ से नष्ट होते हैं।

इस प्रयोग से मधुमेह की बीमारी से बचाव होता है।

इससे मलेरिया और विषमज्वर की उत्पत्ति की सम्भावना भी कम रहती है।

सावधानीः ध्यान रहे कि नीम की 21 कोंपलों और 7 पत्तियों से ज्यादा एवं लगातार बहुत लम्बे समय तक नहीं खायें वरना यौवन-शक्ति कमजोर होती है व वातविकार बढ़ते हैं। इन दिनों तेल, मिर्च, खटाई एवं तली हुई चीजों का परहेज करें।

हैजाः 1 गिलास पानी में एक नींबू निचोड़कर उसमें 1 चम्मच मिश्री मिलाकर शरबत (शिकंजी) बनायें। इसे प्रातः पीने से हैजे में अत्यंत लाभ होता है। हैजे के लिए यह अत्युत्तम प्रयोग है। यहाँ तक कि प्रारम्भिक अवस्था में इसके 1-2 बार सेवन से ही रोग ठीक हो जाता है।

विशेषः कपूर को साथ रखने से हैजे का असर नहीं होता।

नींबू का शरबत (शिकंजी) पीने से पित्त, वमन, तृषा और दाह में फायदा होता है।

जो व्यक्ति दूध नहीं पचा सकते उन्हें अपनी पाचनशक्ति ठीक करने के लिए कुछ दिन नींबू का शरबत (शिकंजी) पीना चाहिए।

भोजन के साथ नींबू के रस का सेवन करने से खतरनाक और संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है।

टाइफाइड जैसे संक्रामक रोगः 1 चुटकी अर्थात् आधा या एक ग्राम दालचीनी का चूर्ण 2 चम्मच शहद में मिलाकर दिन में 2 बार चाटने से मोतीझिरा (टाइफाइड) जैसे संक्रामक रोग से बचा जा सकता है।

चेचकः नीम की 7 कोंपलों और 7 काली मिर्च इन दोनों का 1 माह तक लगातार प्रातः खाली पेट सेवन किया जाय तो चेचक जैसा भयंकर रोग 1 साल तक नहीं होगा। 15 दिन प्रयोग करने से 6 मास तक चेचक नहीं निकलती। चेचक के दिनों में जो लोग किसी भी प्रकार नीम के पत्तों का सेवन करते हैं, उन्हें चेचक जैसे भयंकर रोग से पीड़ित नहीं होना पड़ता।

गर्भस्थापक और गर्भरक्षा करने वाले अनुभूत प्रयोग गर्भधारण

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पहला प्रयोगः शिवलिंगी के 9-9 बीज दूध या पानी में घोंटकर प्रातःकाल खाली पेट मासिक के पाँचवें दिन से चार दिन तक लेने से लाभ होता है।

दूसरा प्रयोगः अश्वगंधा के काढ़े में घृत पकाकर यह घृत एक तोला मात्रा में ऋतुकाल में स्त्री यदि सेवन करे तो उसे गर्भ रहता है। (एक किलो अश्वगंधा के बोरकूट चूर्ण को 16 लीटर पानी में उबालें। चौथाई भाग अर्थात् 4 लीटर पानी रह जाने पर उसमें 1 किलो घी डालकर उबालें। जब केवल घी बचे तब उसे उतारकर डिब्बे में भर लें। यही घृत पकाना है।)

तीसरा प्रयोगः दूध के साथ पुत्रजीवा की जड़, बीज अथवा पत्तों के एक तोला चूर्ण को लेने से, ब्रह्मचर्य का पालन करने से, तीन महीने तक यह प्रयोग करने से बाँझ को भी संतान प्राप्ति हो सकती है। जिनके बालक जन्मते ही मर जाते हों उनके लिए भी यह एक अकसीर प्रयोग है। पुत्रजीवा के बीजों की माला पहनने से भी लाभ होता है।

गर्भस्थापक

रात को किसी मिट्टी के बर्तन में 25 ग्राम अजवायन, 25 ग्राम मिश्री 25 ग्राम पानी में डुबाकर रखें। सुबह उसे ठण्डाई की नाईं पीसकर पियें।

भोजन में बिना नमक की मूँग की दाल व रोटी खायें। यह प्रयोग मासिक धर्म के पहले दिन से लेकर आठवें दिन तक करना चाहिए।

गर्भरक्षा

प्रथम प्रयोगः जिस स्त्री को बार-बार गर्भपात को जाता हो उसकी कमर में धतूरे की जड़ का चार उँगल का टुकड़ा बाँध दें। इससे गर्भपात नहीं होगा। जब नौ मास पूर्ण हो जाय तब जड़ को खोल दें।

दूसरा प्रयोगः जौ के आटे को एवं मिश्री को समान मात्रा में मिलाकर खाने से बार-बार होने वाला गर्भपात रुकता है।

सुन्दर बालक के लिए

नारियल का पानी पीने से अथवा नौ महीने तक रोज बबूल के 5 से 10 ग्राम पत्ते खाने से गर्भवती स्त्री गौरवर्णीय बालक को जन्म देती है। फिर चाहे माता-पिता श्याम ही क्यों न हों।

गर्भिणी की उलटी

बेल का 5 ग्राम गूदा एवं धनिया का 50 मि.ली. पानी मिलाकर पीने से अथवा कपूरकाचली के 2 ग्राम चूर्ण को 10 मि.ली. गुलाबजल में मिश्रित करके लेने से गर्भिणी की उल्टी शांत होती है।

गर्भिणी के पेट की जलन

10-15 मुनक्के का सेवन करने से अथवा बकरी के 100 से 200 मि.ली. दूध में 10 से 20 ग्राम सोंठ पीसकर लेने से लाभ होता है।

न करने जैसी शारीरिक क्रियाएँ

पूर्व या उत्तर की ओर मुँह करके हजामत बनवानी चाहिए। इससे आयु की वृद्धि होती है। हजामत बनवाकर बिना नहाये रहना आयु की हानि करने वाला है।

(महाभारत, अनुशासन पर्व)

हाथ-पैर के नाखून नियमित रूप से काटते रहो। नख के बढ़े हुए मत रखो।hand-says-stop11

अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को बुधवार व शुक्रवार के अतिरिक्त अन्य दिनों में बाल नहीं कटवाने चाहिए।

सोमवार को बाल कटवाने से शिवभक्ति की हानि होती है। पुत्रवान को इस दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए। मंगलवार को बाल कटाना मृत्यु का कारण भी हो सकता है। बुधवार को बाल, नख काटने-कटवाने से धन की प्राप्ति होती है। गुरुवार को बाल कटवाने से लक्ष्मी और मान की हानि होती है। शुक्रवार लाभ और यश की प्राप्ति कराने वाला है। शनिवार मृत्यु का कारण होता है। रविवार तोसूर्यदेव का दिन है, इस दिन क्षौर कराने से धन,बुद्धि और धर्म की क्षति होती है।

मलिन दर्पण में मुँह न देखें। (महाभारत,अनुशासन पर्व)

सिर पर तेल लगानि के बाद उसी हाथ से दूसरे अंगों का स्पर्श नहीं करना चाहिए।

(महाभारत, अनुशासन पर्व)

पुस्तकें खुली छोड़कर न जायें। उन पर पैर न रखें और उनसे तकिये का काम न लें। धर्मग्रन्थों का विशेष आदर करते हुए स्वयं शुद्ध, पवित्र व स्वच्छ होने पर ही उन्हें स्पर्श करना चाहिए। उँगली मेथूक लगाकर पुस्तकों के पृष्ठ न पलटें।

दूसरे के पहने हुए कपड़े, जूते आदि न पहनें।

(महाभारत, अनुशासन पर्व)

हाथ-पैर से भूमि कुरेदना, तिनके तोड़ना, बार-बार सिर पर हाथ फेरना, बटन टटोलते रहना – ये बुरे स्वभाव के चिह्न हैं। अतः ये सर्वथा त्याज्य हैं।

आसन को पैर से खींचकर या फटे हुए आसन पर न बैठें।

(महाभारत, अनुशासन पर्व)

सत्संग से उठते समय आसन नहीं झटकना चाहिए। ऐसा करने वाला अपने पुण्यों का नाश करता है।

जूठे मुँह पढ़ना-पढ़ाना, शयन करना, मस्तक का स्पर्श करना कदापि उचित नहीं है।

यमराज कहते हैं- ‘जो मनुष्य जूठे मुँह उठकर दौड़ता और स्वाध्याय करता है, मैं उसकी आयु नष्ट कर देता हूँ। उसकी सन्तानों को भी उससे छीन लेता हूँ। जो अनध्याय के समय भी अध्ययन करता है, उसके वैदिक ज्ञान और आयु का नाश हो जाता है।’

(महाभारत, अनुशासन पर्व)

जिसके गोत्र और प्रवर अपने ही समान हों तथा जो नाना के कुल में उत्पन्न हुई हो,जिसके कुल का पता न हो, उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिए।

(महाभारत, अनुशासन पर्व)

अण्डा जहर है

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भारतीय जनता की संस्कृति और स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने का यह एक विराट षडयंत्र है। अंडे के भ्रामक प्रचार से आज से दो-तीन दशक पहले जिन परिवारों को रास्ते पर पड़े अण्डे के खोल के प्रति भी ग्लानि का भाव था, इसके विपरीत उन परिवारों में आज अंडे का इस्तेमाल सामान्य बात हो गयी है।

अंडे अपने अवगुणों से हमारे शरीर के जितने ज़्यादा हानिकारक और विषैले हैं उन्हें प्रचार माध्यमों द्वारा उतना ही अधिक फायदेमंद बताकर इस जहर को आपका भोजन बनानो की साजिश की जा रही है।

अण्डा शाकाहारी नहीं होता लेकिन क्रूर व्यावसायिकता के कारण उसे शाकाहारी सिद्ध किया जा रहा है। मिशिगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पक्के तौर पर साबित कर दिया है कि दुनिया में कोई भी अण्डा चाहे वह सेया गया हो या बिना सेया हुआ हो, निर्जीव नहीं होता। अफलित अण्डे की सतह पर प्राप्त इलैक्ट्रिक एक्टिविटी को पोलीग्राफ पर अंकित कर वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि अफलित अण्डा भी सजीव होता है। अण्डा शाकाहार नहीं, बल्कि मुर्गी का दैनिक (रज) स्राव है।

यह सरासर गलत व झूठ है कि अण्डे में प्रोटीन, खनिज, विटामिन और शरीर के लिए जरूरी सभी एमिनो एसिडस भरपूर हैं और बीमारों के लिए पचने में आसान है।

शरीर की रचना और स्नायुओं के निर्माण के लिए प्रोटीन की जरूरत होती है। उसकी रोजाना आवश्यकता प्रति कि.ग्रा. वजन पर 1 ग्राम होती है यानि 60 किलोग्राम वजन वाले व्यक्ति को प्रतिदिन 60 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है जो 100 ग्राम अण्डे से मात्र 13.3 ग्राम ही मिलता है। इसकी तुलना में प्रति 100 ग्राम सोयाबीन से 43.2 ग्राम, मूँगफली से 31.5 ग्राम, मूँग और उड़द से 24, 24 ग्राम तथा मसूर से 25.1 ग्राम प्रोटीन प्राप्त होता है। शाकाहार में अण्डा व मांसाहार से कहीं अधिक प्रोटीन होते हैं। इस बात को अनेक पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है।

केलिफोर्निया के डियरपार्क में सेंट हेलेना हॉस्पिटल के लाईफ स्टाइल एण्ड न्यूट्रिशन प्रोग्राम के निर्देशक डॉ. जोन ए. मेक्डूगल का दावा है कि शाकाहार में जरूरत से भी ज्यादा प्रोटीन होते हैं।

1972 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के ही डॉ. एफ. स्टेर ने प्रोटीन के बारे में अध्ययन करते हुए प्रतिपादित किया कि शाकाहारी मनुष्यों में से अधिकांश को हर रोज की जरूरत से दुगना प्रोटीन अपने आहार से मिलता है। 200 अण्डे खाने से जितना विटामिन सी मिलता है उतना विटामिन सी एक नारंगी (संतरा) खाने से मिल जाता है। जितना प्रोटीन तथा कैल्शियम अण्डे में हैं उसकी अपेक्षा चने, मूँग, मटर में ज्यादा है।

ब्रिटिश हेल्थ मिनिस्टर मिसेज एडवीना क्यूरी ने चेतावनी दी कि अण्डों से मौत संभावित है क्योंकि अण्डों में सालमोनेला विष होता है जो कि स्वास्थ्य की हानि करता है। अण्डों से हार्ट अटैक की बीमारी होने की चेतावनी नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकन डॉ. ब्राउन व डॉ. गोल्डस्टीन ने दी है क्योंकि अण्डों में कोलेस्ट्राल भी बहुत पाया जाता है.

डॉ. पी.सी. सेन, स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार ने चेतावनी दी है कि अण्डों से कैंसर होता है क्योंकि अण्डों में भोजन तंतु नहीं पाये जाते हैं तथा इनमें डी.डी.टी. विष पाया जाता है।

जानलेवा रोगों की जड़ हैः अण्डा। अण्डे व दूसरे मांसाहारी खुराक में अत्यंत जरूरी रेशातत्त्व (फाईबर्स) जरा भी नहीं होते हैं। जबकि हरी साग, सब्जी, गेहूँ, बाजरा, मकई, जौ,मूँग, चना, मटर, तिल, सोयाबीन, मूँगफली वगैरह में ये काफी मात्रा में होते हैं।

अमेरिका के डॉ. राबर्ट ग्रास की मान्यता के अनुसार अण्डे से टी.बी. और पेचिश की बीमारी भी हो जाती है। इसी तरह डॉ. जे. एम. विनकीन्स कहते हैं कि अण्डे से अल्सर होता है।

मुर्गी के अण्डों का उत्पादन बढ़े इसके लिये उसे जो हार्मोन्स दिये जाते हैं उनमें स्टील बेस्टेरोल नामक दवा महत्त्वपूर्ण है। इस दवावाली मुर्गी के अण्डे खाने से स्त्रियों को स्तन का कैंसर, हाई ब्लडप्रैशर, पीलिया जैसे रोग होने की सम्भावना रहती है। यह दवा पुरूष के पौरूषत्व को एक निश्चित अंश में नष्ट करती है। वैज्ञानिक ग्रास के निष्कर्ष के अनुसार अण्डे से खुजली जैसे त्वचा के लाइलाज रोग और लकवा भी होने की संभावना होती है।

अण्डे के गुण-अवगुण का इतना सारा विवरण पढ़ने के बाद बुद्धिमानों को उचित है कि अनजानों को इस विष के सेवन से बचाने का प्रयत्न करें। उन्हें भ्रामक प्रचार से बचायें। संतुलित शाकाहारी भोजन लेने वाले को अण्डा या अन्य मांसाहारी आहार लेने की कोई जरूरत नहीं है। शाकाहारी भोजन सस्ता, पचने में आसान और आरोग्य की दृष्टि से दोषरहित होता है। कुछ दशक पहले जब भोजन में अण्डे का कोई स्थान नहीं था तब भी हमारे बुजुर्ग तंदरूस्त रहकर लम्बी उम्र तक जीते थे। अतः अण्डे के उत्पादकों और भ्रामक प्रचार की चपेट में न आकर हमें उक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर ही अपनी इस शाकाहारी आहार संस्कृति की रक्षा करनी होगी।

आहार शुद्धौ सत्व शुद्धिः।

1981 में जामा पत्रिका में एक खबर छपी थी। उसमें कहा गया था कि शाकाहारी भोजन 60 से 67 प्रतिशत हृदयरोग को रोक सकता है। उसका कारण यह है कि अण्डे और दूसरे मांसाहारी भोजन में चर्बी ( कोलेस्ट्राल) की मात्रा बहुत ज्यादा होती है।

केलिफोर्निया की डॉ. केथरीन निम्मो ने अपनी पुस्तक हाऊ हेल्दीयर आर एग्ज़ में भी अण्डे के दुष्प्रभाव का वर्णन किया गया है।

वैज्ञानिकों की इन रिपोर्टों से सिद्ध होता है कि अण्डे के द्वारा हम जहर का ही सेवन कर रहे हैं। अतः हमको अपने-आपको स्वस्थ रखने व फैल रही जानलेवा बीमारीयों से बचने के लिए ऐसे आहार से दूर रहने का संकल्प करना चाहिए व दूसरों को भी इससे बचाना चाहिए।

स्वास्थ्य के दुश्मन फास्टफूड

greater noida fast-food

हमारे आयुर्वेद ग्रंथों ने ऐसे शुद्ध, ताजे और सात्त्विक आहार का चुनाव किया है,जिसको खाने से मन पवित्र और बुद्धि सात्त्विक रहे। परंतु दुर्भाग्यवश पश्चिमी ʹकल्चरʹ का अंधानुकरण कर रहे भारतीय समाज का मध्यम तथा उच्चवर्गीय भाग फास्टफूड खाने की अंधी दौड़ में अपने तन मन को विकृत कर रहा है। विद्यार्थी भी इसकी चपेट में आकर अपने स्वास्थ्य के दुश्मन फास्टफूड को मित्र समझ बैठे हैं।

फास्टफूड को आकर्षक, स्वादिष्ट व ज्यादा दिन तक तरोताजा रखने के लिए उनमें तरह तरह के रसायन (केमिकल) मिलाये जाते हैं। उनमें बेन्जोइक एसिड अत्यधिक हानिकारक है, जिसकी 2 ग्राम मात्रा भी एक बंदर या कुत्ते को मार सकती है। मेग्नेशियम क्लोराइड और कैल्शियम साइट्रेट से आँतों में घाव होते हैं, मसूड़ों में घाव हो सकते हैं एवं किडनी क्षतिग्रस्त होती है। सल्फर डायोक्साइड से उदर-विकार होते हैं तथा एरिथ्रोसीन से अन्ननली और पाचनतंत्र को हानि होती है।

फास्टफूड से ई-कोलाई, सल्मोनेल्ला, क्लोब्सिएल्ला आदि जीवाणुओं का संक्रमण होने से न्यूमोनिया, बेहोशी, तेज बुखार, मस्तिष्क ज्वर, दृष्टिदोष, मांसपेशियों के रोग, हृदयाघात आदि बीमारियाँ होती हैं। अतः आँतों की बीमारियाँ व आँतों को कमजोर करने वाली डबल रोटी, बिस्कुट में कृत्रिम फास्टफूडस से बचो। सात्त्विक नाश्ता व आहार करो। हमारे शास्त्रों ने भी कहा हैः ʹजैसा अन्न वैसा मन।ʹ

खतरनाक है सॉफ्टड्रिंक्स

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शीतल पेय (सॉफ्टड्रिंक्स) में पेस्टीसाइडस और एसिड अत्यधिक नुकसानकारक मात्रा में मौजूद हैं। डीडीटी से कैंसर, रोगप्रतिकारक शक्ति का ह्रास और जातीय विकास में विकृति होती है। लींडेन से कैंसर होता है तथा मस्तिष्क और चेता तंत्र (नर्वस सिस्टम) को हानि होती है। मेलेथियोन ज्ञानतंतुओं की हानि करता है और भावी पीढ़ियों को आनुवंशिक विकृतियों का शिकार बनाता है। इनमें कार्बोलिक एसिड होने की वजह से ये खतरनाक हैं, जिनका सेवन नहीं किया जा सकता है। ʹसेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरोनमेंटʹ की निदेशक तथा प्रख्यात पर्यावरणविद् सुनीत नारायण ने बाजार में मौजूद तमाम कम्पनियों के सॉफ्टड्रिंक्स के नमूनों की जाँच करवायी और सारे नमूनों में खतरनाक मात्रा में पेस्टीसाइडस पाये गये, जो उपयोगकर्ता के स्वास्थ्य को गम्भीर नुकसान पहुँचाते हैं। महाराष्ट्र के ʹफूड एंड ड्रग्सʹ विभाग ने अपनी जाँच में पाया था कि ये पेय छात्रों के स्वास्थ्य का सत्यानाश कर रहे हैं। (संदर्भः लोकमत समाचार)