हीनभावना की शिकार है हिन्दी

घर के दरवाजे पर जो लोग ‘बी वेअर ऑफ डॉग’ लिखते हैं उन्हें ‘कुत्तों से सावधान’ लिखने वालों से बेहतर और सभ्य होने का अभिमान होता है। इसकी वजह आर्थिक और सामाजिक दोनों ही हैं। वैश्विक विकास के साथ ही सांस्कृतिक और भाषाई गुलामी भी भारत में पैर पसारने लगी। सड़क से संसद तक अंग्रेजी का बोलबाला है। हिन्दी के साथ अन्याय अंग्रेजी ने नहीं बल्कि गुलामी की मानसिकता ने की है। हम शारीरिक गुलामी से आजाद हुए हैं मानसिक गुलामी से अभी भी हमारा समाज उबरा नहीं है।

हिंदी को राजभाषा का दर्जा जरूर दे दिया गया है, लेकिन जितनी उपेक्षित वह आजादी के समय थी उतनी ही आज भी है। आजादी के तुरंत बाद जब हिंदी में कार की नंबर प्लेट होने के कारण सांसद सेठ दुर्गादास के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई की, तो उन्होंने संविधान सभा में घटना का जिक्र करते हुए आजादी के बाद भी राष्ट्रीय भाषा के इस्तेमाल पर कार्रवाई को शर्मनाक और आश्चर्यजनक बताया था।  आलम यह है कि आज भी यदि आपके कार का नंबर प्लेट अंग्रेजी में नहीं है तो आपको जुर्माना देना पड़ेगा। आपको याद हो तो 1970 में सुप्रीम कोर्ट ने राजनेता राज नारायण की याचिका पर सुनवाई से सिर्फ इसलिए इन्कार कर दिया था, क्योंकि वह हिंदी में बहस करना चाहते थे।

बाद में हिंदी को सरकार की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया, बल्कि सरकार पर इसके प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी भी डाली गई। इसके लिए हर साल पहली से 15 सितंबर तक हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है। अफसोस इस बात पर है कि आज हिन्दी भाषी खुद ही हीनभावना के शिकार हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह हिन्दी भाषा का आर्थिक पिछड़ापन है।

जिस सरकार पर हिन्दी के विकास की जिम्मेदारी थी वह सरकार हर वक्त उदासीन रही। सरकार को कौन कहे जरा अपने न्यायालयों पर नजर दौड़ाएं। उच्चतम न्यायालय अदालती कार्यवाही तो छोड़ो वह उससे इतर होने वाले पत्राचार व सूचनाओं की जानकारी भी हिंदी में देने को तैयार नहीं है। और तो और गृहमंत्रालय के राजभाषा विभाग के अनुरोध के बावजूद सुप्रीम कोर्ट अपने फैसलों (सुप्रीम कोर्ट रिपो‌र्ट्स) का प्रकाशन हिंदी में करने को राजी नहीं है।
अगर दुनिया मानती है कि भारत एक महाशक्ति है तो उसे देश की एक भाषा को मंजूर करना होगा। और फिर, भारत की राजभाषा तो हिंदी है ही। संपर्क भाषा के रूप में भी पूरे भारत में हिंदी के सामने कोई चुनौती नहीं है। अब तो दक्षिण भारत का रवैया भी बदला है और हिंदी को सहृदयता के साथ अपनाया जाने लगा है। एक अनुमान के अनुसार 2050 तक हिन्दी बोलने वालों की संख्या 2 बिलियन पार कर जायेगी । इसके पीछे कई मौलिक कारण हैं । मसलन भारत की जनसंख्या 1.6 बिलियन के पार होगी । इनमे से 95 फीसदी जनसंख्या हिन्दी बोलने वालों की होगी । 50 फीसदी की मौलिक भाषा होगी तथा 45 फीसदी की द्वितीय भाषा होगी । इसी तरह पाकिस्तान तथा बांग्लादेश की कुल जनसंख्या 600 मिलीयन से ज्यादा होगी । इनमे से 5 फीसदी की मौलिक तथा 75 फीसदी की द्वितीय भाषा होगी । इस तरह भारतीय उपमहाद्वीप मे हिंदी – उर्दू  बोलने वालों की संख्या 1.9 बिलियन के आसपास होगी । इसके अलावा फिजी, नेपाल, श्रीलंका, सऊदी अरब, मॉरिशस, सूरीनाम आदि देशों मे अच्छी संख्या मे हिंदी बोलने वाले होंगे । चलिए एक बात की खुशी है कि आर्थिक पिछड़ेपन के बावजूद, हर सकंट से जूझकर हिन्दी हर दिल में अपनी जगह बनाती जा रही है। (यह लेखिका के निजी विचार हैं)

भारतीय संस्कृति पर हमला

विश्व में अनेक संस्कृतियाँ पनपी और मिट गई। आज उनका कहीं नामोंनिशान तक नहीं है, सिर्फ उनकी स्मृति बाकी है, लेकिन भारतीय संस्कृति में है ऐसा कुछ कि वह कुछ नहीं मिटा। उसे मिटाने के बहुत प्रयास हुए और यह सिलसिला आज भी जारी है, पर कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी। भारतीय संस्कृति में आखिर क्या है, जो उसे हमेशा बचाए रखता है, जिसकी वजह से वह हजारों साल से विदेशी हमलावरों से लोहा लेती रही और इन दिनों इन पर जो हमले हो रहे हैं, उसका मुकाबला कर रही है ? आखिर कैसा है वह भारतीय संस्कृति का वह तंत्र, जिसे हमलावार संस्कृतियाँ छिन्न-भिन्न नहीं कर पातीं ? हर बार उन्हें लगता है कि इस बार वे इसे अवश्य पदाक्रांत कर लेंगी, पर हुआ हमेशा उलटा है, वे खुद ही पदाक्रांत होकर भारतीय संस्कृति में विलीन हो गईं, क्यों और कैसे ?

भारतीय संस्कृति पर फिर हमला हो रहा है और इस बार वह हमला बहुस्तरीय है-वह देह के स्तर पर तो है ही, मन के स्तर पर भी है बहुराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा अनेक टी.वी. चैनलों के जरिए जो हमला किया जा रहा है, वह बेहद चतुराई और निर्लज्जता से भरा है, जिससे लड़ने का जो हमारा तंत्र है, इसके आगे स्वतः नतमस्तक हो गया है। प्लासी का युद्ध हम हारे नहीं थे, हमारे सेनापति विदेशियों से मिल गए और बिना लड़े ही हम गुलाम हो गए थे। यही खतरा आज भी हमारे सामने है। उस बार राज्य दे दिया गया था, लेकिन इस बार राज्य के साथ संस्कृति भी दाँव पर लगी हुई है।
भारतीय संस्कृति वस्तुतः आज गहरे संकट में है और यही संकट आज तक के इतिहास का सबसे बड़ा संकट है। इससे पहले भारतीय संस्कृति इस तरह सार्वदेशिक हमलों का शिकार कभी नहीं हुई। हमलावार आते रहे और भाग जाते रहे या फिर यहीं पर रच-पच जाते रहे, पर इस बार वे यहाँ आये नहीं है। इस बार हमारी संस्कृति पर वे हमारे अपनों से ही हमला करवा रहे हैं और हम अर्जुन की तरह विषाद में घिर गए हैं कि इन्हें कैसे मारें। हमारे सामने तो हमारे अपने ही खड़े हैं ऐसे ही कठिन समय के लिए शायद भारतीय मनीषा ने ‘श्रीमद्भगवत् गीता’ जैसे ग्रंथ की रचना की है, जिसके जरिये अर्जुन को धर्म का पालन और संस्कृति की रक्षा करने के लिए सन्नद्ध किया जा सकता है।

“राजीव दिक्षित जी के व्याख्यानों” में हमारे तमाम सामाजिक सवालों के भी जवाब मौजूद हैं ऐसे अनेक दृष्टान्त, जिनसे हम अपने राष्ट्र की महत्ता और महानता से परिचित होते हैं और होते हैं सन्नद्ध, अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए। किसी भी कृति की सबसे बड़ी सफलता यही है कि वह पाठक को अर्जुन की तरह सन्नद्ध करे और अपसंस्कृति के विरूद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करे ताकि हमारी मनीषा का क्षेष्ठतम रूप प्रतिष्ठित हो और वह जन-जन के जीवन को नये उत्साह से भर दे।

भारत विखंडन की कोशिश

महाराष्ट्र में #BeefBan पर त्वरित प्रतिक्रियाओं के विश्लेषण के उपरान्त बोध हो रहा है की अगर एक साथ सम्पूर्ण भारत में गौ हत्या निषेध अधिनियम लागू कर दिया जाता तो क्या गृह युद्ध छिड़ जाता ? केरल कर्नाटक पश्चिम बंगाल तमिलनाडु में लोग सड़को पे आ गए होते .. JNU और AMU के बुद्धिजीवी जंतर मन्तर पर बीफ पार्टी का आयोजन कर “अपने भोजन की स्वतंत्रता के अधिकार” का प्रदर्शन कर रहे होते .. न्यूज़ चैनल्स पर गौ हत्या निषेध से भारत के लोकतंत्र पर खतरा और सांप्रदायिक राजनीति बताया जाता और फिर भारत की अर्थव्यवस्था को भी खतरा बताया जाता.. फिर 50 तरीको से 50 कारण गिनाकर टीवी पर 50 दिन यही दिखाने की कोशिश की जाती की गाये सोसाइटी के लिए भी खतरा है और स्वच्छ समाज में इनका कोई स्थान नही क्योंकि हर जगह गंदगी फैलाती रहती है सड़को पर आवारा गाय बढ़ जाए परिवहन को नुक्सान पहुचेगा … एक अच्छे पत्रकार का प्रथम गुण यही होता है की किसी भी मुद्दे के समर्थन में भी उसके पास उतने ही प्रभावी तर्क होते है जितने उसके विरोध में हों..

अन्य बीजेपी शासित राज्यो में ये कानून पहले से लागू है महाराष्ट्र में हो चूका है झारखण्ड में होने की तैयारी है लेकिन क्या पूरे भारत में लागू हो पाना एक स्वप्न जैसा है ? .. शायद है…!!! क्योंकि ये “मिक्स ब्रीड फसल” जो हमारे भारत में तैयार हो रही है उनको चावल पर बैन लगने से भले फर्क न पड़े लेकिन बीफ पर बैन लगने से उनको लगता है जैसे अब वो भूखो मर जायेगे ..

बीफ पार्टी, किस ऑफ़ लव जैसे आयोजन करने वाली ये पीढी स्वतंत्रता के नाम पर कल को कुत्ते कुतियों की तरह सड़को पर सेक्स करते मिल तो चौंकिएगा नही क्योंकि पार्को से ये शुरुआत हो चुकी है सड़को तक आने पर देर नहीं लगेगी ..

सुब्रयमन्यम स्वामी जी एक वाकया बताते है की जब वो हॉवर्ड में पढ़ाते थे तब एक छात्र आके उनसे पूछा की सर भारत में 800 वर्षो तक इस्लामिक रूल रहा फिर अंग्रेजो का लेकिन आज भी भारत में 80% हिन्दू बचे हुए है ये कैसे संभव हुआ..स्वामी जी गर्व से बोले की हमारे प्रतिरोध से ये संभव हुआ .. हम झूठा गर्व करने के लिए भले ही ये सोच ले की हमने प्रतिरोध किया है लेकिन गहराई से देखेगे तो पता चलेगा की पिछले 60 वर्षो में ही हम पकिस्तान और बांग्लादेश खो चुके है अगर उनकी पापुलेशन जोड़ दी जाए तो जो भारत बनता है उसमे 40% से भी कम हिन्दू रह जायेगे हमने अफगानिस्तान भी खोया और भी बहुत कुछ.. माँ भारती की कोई अंग अगर संक्रमित हो गया तो हमने उसका उपचार करने के बजाय उसे काट कर अलग कर दिया और हम खुश हो गए की हमने माँ भारती को बचा लिया .. हम पहले ही कई अंगो को काट चुके है और शेष जितना भी अंग बचा हुआ है वो भी कई तरह के सक्रमणो का शिकार है.. रोज नई नई धर्मविरोधी विचारधाराएँ उत्पन्न हो रही..

हिंदुत्व जीवन मूल्य ही तो है जिनके कारण आज तक ये प्राचीनतम संस्कृति जीवित है.. गुरुजनो माता पिता की सेवा करना धर्म है गाय हमारी माता है ये नैतिक ज्ञान ही तो धर्म है हमारी संस्कृति में सब रिश्तों की सीमाये निर्धारित है पूर्ण स्वतंत्रता नही है किसी को लेकिन किसी को ये महसूस नही होता की उसे बाध्य किया जा रहा है .. लेकिन ये जो कान्वेंट और jnu  वाली नई पीढ़ी हमारे नियंत्रण से बाहर हो चुकी है या हो जायेगी उसे स्वम को प्रगतिवादी साबित करने के लिए इन मूल्यों की तिलांजलि देकर विरोध करना आवश्यक लगता है.. तो अगर इन विशेष वर्ग के लोगो को, जो किसी फॉर्म में religion वाले कॉलम में तो मजबूरी में हिन्दू पर टिक करते है क्योंकि वहां ह्यूमनिस्ट का आप्शन नही होता लेकिन हिंदुत्व के मूल्यों का विरोध करते है, हिंदुत्व से बाहर करके देखा जाए तो स्थितियां काफी हद तक साफ़ हो जायेगी आप कितने पानी में है

एक तरह मूलनिवासी आंदोलन चल रहा है एक राजपुताना की मांग प्रबल है कही बोडो जनजाति खतरे में है तो कही “चिंकी” अपमानित हो रहे है कही खालिस्तान का नारा बुलंद होता है तो कही फ्री कश्मीर का.. साउथ के लोग नार्थ ईस्ट से बेखबर है नार्थ के साउथ से .. अपने घर में बैठकर हम सोच रहे है हिंदुत्व सुरक्षित है ..

स्वाइन फ्लू का सच

मित्रो जैसा की आप जानते हैं पिछले कुछ दिनो से पूरे देश मे हँगामा हो रहा है swine flu आ गया swine flu आ गया ! swine flu आ गया ! अखबारो मे front page पर खबर है! TV चैनलो पर इसके इलवा दूसरी कोई खबर ही नही है !

लेकिन क्या आप जानते है ??

हमारे देश मे हर दिन कैंसर से ओसतन(avg) 1500 लोग मरते है ! लेकिन कोई खबर नही आती !

दमा , अस्थमा ,ट्यूबर क्लोसिस लगभग 1200 लोग रोज मरते हैं लेकिन कोई खबर नहीं आती !

heart attack से हर दिन 800 से 1000 लोग मरते हैं !
लेकिन कोई खबर नहीं आती !

तो इतनी बड़ी मौत के आंकड़े हैं ! कैंसर ,दमा अस्थमा ,ट्यूबर क्लोसिस,heart attack ! इनके बारे मे मीडिया मे कोई चर्चा नहीं है ! चर्चा सिर्फ एक ही है swine flu,swine flu,swine flu,

इसका एक रहस्य है ! रहस्य ये है कैंसर का वैक्सीन (vaccine) नहीं बनता !वैक्सीन (vaccine का अर्थ आप समझते है ??
जो दवा पहले पिला दी जाती है कि ये ले लो आपको ये बीमारी नहीं होगी !!,
तो कैंसर का वैक्सीन (vaccine) नहीं बनता !दमा का वैक्सीन नहीं बनता ,अस्थमा का वैक्सीन नहीं बनता, ट्यूबर क्लोसिस का वैक्सीन नहीं बनता ! heart attack का वैक्सीन नहीं बनता !

मतलब ये है कि जिन बीमारीयों का कोई वैक्सीन नहीं बनता media उनकी चर्चा नहीं करता ! क्यूंकि कंपनियो को इन बीमारियो से कोई लाभ होने की गुंजाईश नहीं !

लेकिन swine FLU का वैक्सीन बन सकता है ,avian flu का वैक्सीन बन सकता है sars का वैक्सीन बन सकता है ! और थोड़े दिन पहले bird flu आया था ! उसका वैक्सीन बन सकता है !

तो swine है ,avian flu है ,bird flu है ! इन सबके वैक्सीन बन सकते है और बाजार मे बिक सकते हैं ! तो इनमे कंपनियो को भयंकर मुनाफा है ! इस लिए ये सब परयोजित तरीके से media मे दिखाया जाता है !

एक अमेरिकन कंपनी है वे swine flu की दवा बानाती है जिसका नाम है tamiflu ! और जैसा की आप जानते है किसी भी बीमारी की वैक्सीन मे हमेशा बीमारी के virus को ही मृत रूप मे डाला जाता है ! तो ये tamiflu दवा बनाते बनाते virus uncontrolled हुआ ! और उसने swine flu को फैलाना शुरू किया सारी दुनिया मे !

मतलब एक अमेरिकन कंपनी की बदमाशी से एक अमेरिकन कंपनी की गैरजिम्मेदारी से से swine flu का virus सक्रीय हुआ और उसने 30 देशो को अपनी चपेट मे ले लिया ! अब वो 30 देश है tamiflu के ग्राहक हो गए ! अब जिनको swine flu होने की संभावना है या हो गया है डाक्टर उनको एक ही दवा लिख रहे है tamiflu खाओ tamiflu खाओ !

लेकिन जो विद्वान डाक्टर है जो इन कंपनियो के चक्कर मे नहीं फँसते ! वो बता रहे है tami flu कभी मत खाओ ! क्यूकि आपने जब tamiflu खाया ! तो ये जो swine flu का virus है ये structure बदलने मे माहिर है तुरंत नया structure ले सकता है और फिर उसमे रजिसटेन्स आ सकता है और फिर जितना मर्जी tamiflu खाना ठीक ही नहीं होगा !

तो ऐसा आंतक पूरे देश मचा दिया है जिसके दो ही उदेश्य है ज्यादा से ज्यादा tamiflu दवा बेचना ! जो पिछले 10 सालो से कंपनी ने गोदामो मे भरी हुई है ! अब वो गोदाम को toothpaste के गोदाम तो नहीं है जो रोज करे और फेंक दे ! इसके लिए डर ,दहशत ,आंतक पैदा करना पड़ता है ! डर दहशत और आंतक के चक्कर मे मजबूर हो जाता है आदमी मंहगी से महंगी दवा खाने पर और महंगा से मंहगा इलाज करवाने पर !

तो आपसे ये बात कहनी है ये swine flu का virus इसी तरह का एक propaganda है और ये swine flu नहीं media flu है media ने पैदा किया है !


दोस्तो ये कंपनिया कितनी बड़ी हत्यारी और लूट खोर हो सकती हैं आप सोचिए ! सन 1916 से 1919 मे एक बीमारी फैल गई पूरी दुनिया मे उसका नाम था avian flu ! और पूरी दुनिया मे इससे बीमारी से 4 crore लोग प्रभावित हुये ! लेकिन 4 crore मे से सिर्फ 6 हजार लोगो की मौत हुई ! तभी अमेरिका की एक कंपनी मे एक वैक्सीन बना दिया avian flu का ! और वो धडले से बिका पूरी दुनिया मे ! और आपको ये जान कर बहुत दुख होगा वो वैक्सीन लेने के बाद 60 लाख लोग पूरी दुनिया मे मर गए !

बीमारी आने से 6 हजार लोग मरे लेकिन बीमारी का वैक्सीन लेने 60 लाख लोग पूरी दुनिया मे मर गए ! तो आप सोचिए ये वैक्सीन कितने खतरनाक हो सकते हैं ! अभी इसी बात का डर है ऐसे ही swine flu का वैक्सीन आने वाला है ! पता नहीं उससे क्या होगा !! और swine flu के एक वैक्सीन की कीमत कंपनी बोल रही है 3000 रुपए ! आप सोचिए इसके डर अगर भारत मे केवल 10 crore लोगो ने ही वैक्सीन लगा दिया ! तो 30 हजार crore की बिक्री तो कंपनी की केवल भारत मे ही हो गई !

ऐसे ही दोस्तो कुछ साल पहले की बात है आपको याद होगा ! पूरे भारत मे खबर फैल गई hepatitis b आ गया hepatitis b आ गया ! और कितने ही करोड़ लोगो ने इसका वैक्सीन लिया !(आपमे से भी शायद बहुत लोगो ने लिया होगा या अपने बच्चो को पिलाया होगा !) हर जगह इसके कैंप लगाए गए ! डर के कारण पागलो की तरह भीड़ उमड़ी ! थोड़े दिन बाद मुंबई हाईकोर्ट मे इसके खिलाफ मुकदमा हुआ ! तब कोर्ट ने आदेश दिया इसकी जान micro (सूक्षम ) सतर पर करो !!

फिर तब पता चला ये hepatitis b नाम की बीमारी भारत मे होती ही नहीं है ! बीमारी होती है hepatitis A की जिसे आप पीलिया बोलते हैं सामान्य ये बारिश के दिनो मे होती ही है ! पानी मे गंदगी आने से ये होता है !! तो बीमारी होती है hepatitis A की और वैक्सीन दे दिया hepatitis b का ! तो सबको वैक्सीन पिला हजारो करोड़ दो कंपनियो ने लूट लिया !बाद मे अदालत का फैसला आया !
अगर बीमारी ही नहीं है तो वैक्सीन क्यूँ लगाए ! तब आदालत ने आदेश दिया हो hepatitis b का वैक्सीन पिलाएगा ! उसको जेल मे डाल देंगे !!

उसके बाद सभी संस्थाओ ने इसको बंद कर दिया ! और फिर कंपनी ने भी इसका धंधा बंद कर दिया !! अधिकारियों का कहना था सारा माल बिक गया है ! अब तो वैसे भी जरूरत नहीं !

तो दोस्तो इसी तरह का ड्रामा जल्दी swine flu के नाम पर होने वाला है ! कंपनी को आपके स्वास्थ्य से कोई मतलब नहीं उनको बस माल बेचना और पैसा कमाना है ! इस लिए आप जरा संभल कर रहिए ! वैक्सीन के इलावा ये कंपनिया mask भी बेचेंगी ! और ये अफवाह फैलाएंगी !कि इसी mask से control होगा ! और उसकी भी 500 /700 रुपए मे बेच डालेंगी !

और कुछ educated idiots अपना status समझ के पहनेगे ! और अपने बच्चो को पहनाएंगे ! और लोग भी इनको देखा देखी शुरू हो जाएँगे ! और कुछ डर के कारण पहन लेंगे ! तो आप अपनी थोड़ी बुद्धि का प्रयोग करे ! इस तरह की लूट से खुद बचे और देश को बचाये !

कूल डूड के लक्षण

गुलाम (इंडिया) की सोच के Cool Dude लोगों की पहचानया लक्ष्मण इस प्रकार होते है ::1. इनकी प्रोफाइल पिक्चर पर पश्चिमी सभ्यता साफझलकती है।2. कवर फोटो पर किस करते हुए कपल की फोटो होगी जैसेइनकी परंपरा रही हो।3. ये देशहित से जुडी पोस्ट को नज़रअंदाज़ करते हैं क्योंकि येलोग इंडियन है भारतीय नहीं। देश की सोचना इनके बसकी बात नहीं। इन लोगों को ये पता नहीं कि इंडिया आजभी गुलाम है आजादी तो भारतको मिली थी इंडिया को नहीं।4. इनको राजनीति से बहुत नफरत है पर ये नहीं जानतेराजनीति से भगवान राम कृष्ण भी नहीं बच सके।राजनीति पर ही देश का भविष्य टिका होता है। पहले केजमाने में राजा होते थे वो राजनीति थी आज नेता होते है येराजनीति है।5. इन्हें अश्लीलता और बॉलीवुड बहुत पसंद होता है।6. इन्हें हिन्दी और अपनी मातृभाषा बोलने में शर्म आती है।ये लोग Hi, LoL, What’s up, Dude, Thanks या India Is Love,Please Chatting आदि इस तरह से बात करते हुए पाये जाते हैं।7. ये लोग किसी को परेशान करने या यूँ कहे तो धरती पर बोझबनकर पैदा होते है। ये लोग अपनी प्रोफाइल में कुछअच्छी राष्ट्रहित की पोस्ट कभी नहीं कर सकते।इनकी प्रोफाइल केवल मित्र जोड़ने तक ही सिमीत होती हैया कई घटिया अश्लीलता वाला पेज लाईक करने तक इनलोगों को देश व धर्म से कोई लेना देना नहीं… क्योंकि इनलोगों की आत्मा ही मर चुकी होती हे ये लोग केवल लाशबनकर जिंदा रहते हैं।8. ये लोग किसी भी लड़की की प्रोफाइल होगी वहाँ परज्यादा मित्र लिस्ट करेंगे फिर विदेशी डे,मदर डे,फादर डे,कुत्ता डे, सूअर डे ये डे वो डे पर गुलाब के फूल मैसेज करेंगे औरअँग्रेजीमें लिखेगें I LOVE YOU सामने वाली प्रोफाइल में भलेही इन लोगों के बाप के माँ की आयुवाली जनाना हो क्योंकि पैदाइस बिमारी अंग्रेज़ों नेछोड़ दी थी वो इन लोगों में देखने को मिलती है।9. इस तरह के लोग सुबह जय श्री राम नाम से शर्म महसूस करेंगेबल्कि GOOD MORNING कहेंगे शाम को GOOD EVENINGकहेंगे।10. ये लोग विदेशी डे आते है तो ज्यादा ही उत्सुकता सेमनाते हैं लेकिन इन लोगों ने कभी अपने माँ बाप की दिल सेसेवा नहीं की है, ये लोग गौशाला में नहीं जाएँगे। ये लोग 5रूपये गौदान नहीं करेंगे लेकिन रोज डे या कुत्ता डे पर 50 रूपयेके नकली फूल जरूर लेंगे।ऐसे नक्कारा युवाओं से देश क्या उम्मीद कर सकता है, इस सब केपीछे अश्लील फिल्मे औरमीडिया द्वारा परोसी जा रही अश्लीलता जिम्मेदार हैऔर इन लोगों को यही पता नहीं India और Bharat मेंधरती आसमान जैसा अंतर है। हम भारत माता कह सकते हैक्या ये गूलामी सोच वाले India माता कहेंगेतो कैसा लगेगा ?? भारत माता ठीक है या India माता ??और हमारा मकसद होना चाहिए की इस तरह केलोगों को देश के प्रति प्रेरित करे… इन्हीं लोगों को भारतकी पहचान दें… इन्हें संस्कार दे धर्म का ज्ञान दें ताकि येलोग आने वाली पीढ़ियों को बर्बादी की और ना जानेदे…. पश्चिमी सभ्यता मैं कुछ भी नहीं पश्चिम में जाकरतो सूरज भी अस्त हो जाता… उदय हमेशा पूर्व में ही होता है।॥ इंडियन नहीं भारतीय बनो ॥

Download Thalua Club Android App for More Articles https://play.google.com/store/apps/details?id=com.thaluaclub.in

हिन्दू धर्म के त्यौहार आने पर हिन्दुओ की मूर्खता

आजकल एक बड़ा खतरनाक प्रचलन चला है हिन्दुओं में, वह यह कि जैसे ही कोई त्यौहार आने वाला होता है, खुद हिन्दू ही उस त्यौहार को ऐसे पेश करते हैं जैसे वो उनके ऊपर बोझ है :

1) रक्षाबंधन पर मूर्खता :
कुछ हिन्दू ऐसे मैसेज भेजते हैं कि ||कोई भी अनजान चीज को हाथ नहीं लगाये, उसमें राखी हो सकती है !! ||

अरे कूल dude !! तुम्हारे लिए अपनी बहन बोझ बन रही है?? तुम तो राखी का मज़ाक़ बना बैठे हो, तुम क्या अपनी माँ बहन की रक्षा करोगे? राखी एक रक्षा सूत्र है, अगर तुम भूल रहे हो तो याद दिलाऊँ राजस्थान में औरतें अपनी रक्षा के लिए जोहर कर आग में कूद जाती थी।

रानी पद्मिनी के साथ 36000 औरतें जोहर हो गयी थीं। एक महिला की रक्षा मज़ाक लगती है???

2) दशहरा पर मूर्खता :
यह मैसेज आजकल खूब प्रचलन में है कि || रावण सीता जी को उठा ले गया है और राम जी लंका पर चढ़ाई करने जा रहे हैं, उसके लिये बंदरो की आवश्यकता है, जो भी मैसेज पढ़े तुरंत निकल जाये ||

वाह!!! आज सीता अपहरण हिन्दुओं के लिए मज़ाक़ का विषय हो गया है। जोरू का गुलाम बनना गर्व का विषय और राम का सैनिक बनना मज़ाक़ हो रहा है!!!

दूसरा जोक || रावण को कोर्ट ले जाया गया व कहा गया कि गीता पर हाथ रख कसम खाओ तब रावण कहता है सीता पर हाथ रखा उसमें इतना बवाल हो गया, गीता पर रखा तो……||

यह बड़े शर्म की बात है कि अग्नि परीक्षा देने के बाद भी आज हिन्दू सीता माता के चरित्र पर सवाल उठाने को मज़ाक़ समझते हैं। कभी अपनी माता के बारें में ऐसे मज़ाक़ उड़ाया? अगर नहीं तो तुम्हें किसने हक दिया समस्त हिंदुत्व की माता पर हाथ रखने को मज़ाक़ बनाने का ????

एक हमारा मीडिया पहले ही हिन्दू त्यौहारों के पीछे पड़ा है-
होली पर पानी बर्बाद होता है लेकिन ईद पर जानवरों की क़ुरबानी धर्म है!

दिवाली पर पटाके छोड़ना प्रदूषण है पर ईसाई नव वर्ष पर आतिशबाजी जश्न है!

नवरात्री पर 10 बजे के बाद गरबा ध्वनि प्रदूषण हो जाती है, वहीं मोहरम की रात ढोल ताशे कूटना और नववर्ष की रात जानवरों की तरह 12 बजे तक बाजे बजाना धर्म है!!!

करवा चौथ और नाग पंचमी पाखंड है वहीं ईसा का मरकर पुनः लौटना गुड फ्राइडे वैज्ञानिक है!!

हिन्दुओं को यह लगता है कि अपने पर्व का मज़ाक़ बनाना सही है तो इससे बड़ी लानत क्या होगी??

हम राखी और सीता अपहरण पर मज़ाक़ करते हैं, इसके पीछे समाज की मानसिकता बनती है। लोग लड़की की रक्षा से कतराते हैं , क्योंकि राखी को हमने मज़ाक़ बना दिया है,  हमने सीता माता जैसी पवित्र माँ का मज़ाक़ बना दिया है। इससे पता चलता है हम कितने धार्मिक हैं!


हिन्दू धर्म की विडंबना देखिए :-

जन्माष्टमी आयी तो श्री कृष्ण को टपोरी तडीपार और ना जाने क्या-क्या कहा!

गणेश जी आये तो उनका भी मज़ाक़ बनाया!

नवरात्रि आयी तो ये चुटकुला आया “नौ दिन दुर्गा-दुर्गा फिर मुर्गा-मुर्गा…”

विजयादशमी पर श्री राम-माता सीता और रावण पर चुटकुले चले!

अब दिवाली पर भी कुछ आ जायेगा!

कभी सोचा है ओरिजनली कौन ये सब पोस्ट कर रहा है??? ये कभी किसी ने भी जानने की कोशिश नहीं की.. बस अपने मोबाइल पर आया तो बिना सोचे समझे फॉरवर्ड करने की वही भेड़ चाल चालू..!!
इस तरह के मैसेज बनाने वाले जानते हैं कि हम हिन्दू अपने धर्म को लेके सजग नहीं हैं और एडवांस्ड दिखने के चक्कर में कुछ भी फॉरवर्ड कर देंगे. तभी ये ऐसे मैसेज बनाकर सर्कुलेट करते हैं!!

किसी और धर्म के लोगों को उनके धर्म के जोक्स पढ़ते या फॉरवर्ड करते देखा है?? उनको तो छोड़ो, आप भी उनके धर्म के जोक्स फॉरवर्ड करने से पहले 10 बार सोचते हो कि किसको भेजूँ-किसको नहीं?? तो हिन्दू धर्म का मज़ाक़ उड़ाते शर्म नहीं आती..??

मेरा करबद्ध निवेदन है कि अपने हाथों से अपने धर्म का अपमान ना करें..

Download Thalua Club Android App for More Articles https://play.google.com/store/apps/details?id=com.thaluaclub.in

इंडियन और भारतीय के बीच एक चर्चा

यहाँ दो पात्र हैं : एक है भारतीय और एक है इंडियन ! आइए देखते हैं दोनों में क्या बात होती है !

इंडियन : ये शिव रात्रि पर जो तुम इतना दूध चढाते हो शिवलिंग पर, इस से अच्छा तो ये हो कि ये दूध जो बहकर नालियों में बर्बाद हो जाता है, उसकी बजाए गरीबों मे बाँट दिया जाना चाहिए ! तुम्हारे शिव जी से ज्यादा उस दूध की जरुरत देश के गरीब लोगों को है. दूध बर्बाद करने की ये कैसी आस्था है ?

भारतीय : सीता को ही हमेशा अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है, कभी रावण पर प्रश्न चिन्ह क्यूँ नहीं लगाते तुम ?

इंडियन : देखा ! अब अपने दाग दिखने लगे तो दूसरों पर ऊँगली उठा रहे हो ! जब अपने बचाव मे कोई उत्तर नहीं होता, तभी लोग दूसरों को दोष देते हैं. सीधे-सीधे क्यूँ नहीं मान लेते कि ये दूध चढाना और नालियों मे बहा देना एक बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है !

भारतीय : अगर मैं आपको सिद्ध कर दूँ की शिवरात्री पर दूध चढाना बेवकूफी नहीं समझदारी है तो ?

इंडियन : हाँ बताओ कैसे ? अब ये मत कह देना कि फलां वेद मे ऐसा लिखा है इसलिए हम ऐसा ही करेंगे, मुझे वैज्ञानिक तर्क चाहिएं.

भारतीय : ओ अच्छा, तो आप विज्ञान भी जानते हैं ? कितना पढ़े हैं आप ?

इंडियन : जी, मैं ज्यादा तो नहीं लेकिन काफी कुछ जानता हूँ, एम् टेक किया है, नौकरी करता हूँ. और मैं अंध विशवास मे बिलकुल भी विशवास नहीं करता, लेकिन भगवान को मानता हूँ.

भारतीय : आप भगवान को मानते तो हैं लेकिन भगवान के बारे में जानते नहीं कुछ भी. अगर जानते होते, तो ऐसा प्रश्न ही न करते ! आप ये तो जानते ही होंगे कि हम लोग त्रिदेवों को मुख्य रूप से मानते हैं : ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी (ब्रह्मा विष्णु महेश) ?

इंडियन : हाँ बिलकुल मानता हूँ.

भारतीय : अपने भारत मे भगवान के दो रूपों की विशेष पूजा होती है : विष्णु जी की और शिव जी की ! ये शिव जी जो हैं, इनको हम क्या कहते हैं – भोलेनाथ, तो भगवान के एक रूप को हमने भोला कहा है तो दूसरा रूप क्या हुआ ?

इंडियन (हँसते हुए) : चतुर्नाथ !

भारतीय : बिलकुल सही ! देखो, देवताओं के जब प्राण संकट मे आए तो वो भागे विष्णु जी के पास, बोले “भगवान बचाओ ! ये असुर मार देंगे हमें”. तो विष्णु जी बोले अमृत पियो. देवता बोले अमृत कहाँ मिलेगा ? विष्णु जी बोले इसके लिए समुद्र मंथन करो !

तो समुद्र मंथन शुरू हुआ, अब इस समुद्र मंथन में कितनी दिक्कतें आई ये तो तुमको पता ही होगा, मंथन शुरू किया तो अमृत निकलना तो दूर विष निकल आया, और वो भी सामान्य विष नहीं हलाहल विष !
भागे विष्णु जी के पास सब के सब ! बोले बचाओ बचाओ !

तो चतुर्नाथ जी, मतलब विष्णु जी बोले, ये अपना डिपार्टमेंट नहीं है, अपना तो अमृत का डिपार्टमेंट है और भेज दिया भोलेनाथ के पास !
भोलेनाथ के पास गए तो उनसे भक्तों का दुःख देखा नहीं गया, भोले तो वो हैं ही, कलश उठाया और विष पीना शुरू कर दिया !
ये तो धन्यवाद देना चाहिए पार्वती जी का कि वो पास में बैठी थी, उनका गला दबाया तो ज़हर नीचे नहीं गया और नीलकंठ बनके रह गए.

इंडियन : क्यूँ पार्वती जी ने गला क्यूँ दबाया ?

भारतीय : पत्नी हैं ना, पत्नियों को तो अधिकार होता है .. किसी गण की हिम्मत होती क्या जो शिव जी का गला दबाए……अब आगे सुनो
फिर बाद मे अमृत निकला ! अब विष्णु जी को किसी ने invite किया था ????
मोहिनी रूप धारण करके आए और अमृत लेकर चलते बने.

और सुनो –
तुलसी स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है, स्वादिष्ट भी, तो चढाई जाती है
कृष्ण जी को (विष्णु अवतार).

लेकिन बेलपत्र कड़वे होते हैं, तो चढाए जाते हैं भगवान भोलेनाथ को !

हमारे कृष्ण कन्हैया को 56 भोग लगते हैं, कभी नहीं सुना कि 55 या 53 भोग लगे हों, हमेशा 56 भोग !
और हमारे शिव जी को ? राख , धतुरा ये सब चढाते हैं, तो भी भोलेनाथ प्रसन्न !

कोई भी नई चीज़ बनी तो सबसे पहले विष्णु जी को भोग !
दूसरी तरफ शिव रात्रि आने पर हमारी बची हुई गाजरें शिव जी को चढ़ा दी जाती हैं……

अब मुद्दे पर आते हैं……..इन सबका मतलब क्या हुआ ???


विष्णु जी हमारे पालनकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का रक्षण-पोषण होता है वो विष्णु जी को भोग लगाई जाती हैं !


और शिव जी ?


शिव जी संहारकर्ता हैं, इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का नाश होता है, मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिव जी को भोग लगता है !


इंडियन : ओके ओके, समझा !

भारतीय : आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं. श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है. इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ?
ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिएं !

और उस समय पशु क्या खाते हैं ?

इंडियन : क्या ?

भारतीय : सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं. इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है ! इसलिए आयुर्वेद कहता है कि श्रावण के महीने में (जब शिवरात्रि होती है !!) दूध नहीं पीना चाहिए.
इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे !
इस तरह हर जगह शिव रात्रि मनाने से पूरा देश वाइरल की बीमारियों से बच जाता था ! समझे कुछ ?

इंडियन : omgggggg !!!! यार फिर तो हर गाँव हर शहर मे शिव रात्रि मनानी चाहिए, इसको तो राष्ट्रीय पर्व घोषित होना चाहिए !

भारतीय : हम्म….लेकिन ऐसा नहीं होगा भाई कुछ लोग साम्प्रदायिकता देखते हैं, विज्ञान नहीं ! और सुनो. बरसात में भी बहुत सारी चीज़ें होती हैं लेकिन हम उनको दीवाली के बाद अन्नकूट में कृष्ण भोग लगाने के बाद ही खाते थे (क्यूंकि तब वर्षा ऋतू समाप्त हो चुकी होती थी). एलोपैथ कहता है कि गाजर मे विटामिन ए होता है आयरन होता है लेकिन आयुर्वेद कहता है कि शिव रात्रि के बाद गाजर नहीं खाना चाहिए इस ऋतू में खाया गाजर पित्त को बढाता है !
तो बताओ अब तो मानोगे ना कि वो शिव रात्रि पर दूध चढाना समझदारी है ?

इंडियन : बिलकुल भाई, निःसंदेह ! ऋतुओं के खाद्य पदार्थों पर पड़ने वाले प्रभाव को ignore करना तो बेवकूफी होगी.

भारतीय : ज़रा गौर करो, हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है ! ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते !

जिस संस्कृति की कोख से मैंने जन्म लिया है वो सनातन (=eternal) है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें ! ——by @UC Browser

Download Thalua Club Android App for More Articles https://play.google.com/store/apps/details?id=com.thaluaclub.in

हमारा देश भारत है या इंडिया ??

इण्डिया बोलने से पहले विचारे : क्या अर्थ है इण्डिया का ? …… .इण्डियन शब्द को अंग्रजो ने इडियट शब्द से बनाया है, अर्थात जो इडियट (जाहिल गंवार) होता है वो इण्डियन है।

इसीलिए उन्होंने भारत देश में आकर पूर्व दिशा में (कलकत्ता) अपने पहले कॉर्पोरेट दफ्तर (कम्पनी) का नाम “ईस्ट इण्डिया” रखा क्यूंकि वो भारत के लोगों का शोषण करने के लिए आये थे, उन पर राज करने के लिए आये थे।

अंग्रेज़ो को भारत नाम बोलने मे परेशानी होती थी -अंग्रेज़ ‘इंडियन’ उस व्यक्ति को कहते है जो उनके हिसाब से जाहिल माना जाता है, अंग्रेज़ इंडियन उस व्यक्ति को कहते थे जो पाषाण कालीन जीवन जीता है।
Remember the old British notorious signboard ‘Dogs and Indians not allowed.’
वो भारत के लोगों को जाहिल गंवार यानि इडियट मानते थे इसीलिए इडियट शब्द में थोडा परिवर्तन करके उन्होंने यहाँ के लोगों को इण्डियन कहना शुरू किया)। इसीलिए आप देखें विश्व में जहाँ – जहाँ अंग्रजों का राज था वहां पर ‘इण्डियन’ यानि इडियट मिल जायेंगे। “जैसे रेड इण्डियन, ब्लैक इण्डियन, वेस्टइंडीज इत्यादि।”

हर भारतीय के नाम का अर्थ है…. हमारे यहाँ बिना भावार्थ के नाम रखने की असांस्कृतिक परंपरा नहीं है। लेकिन हमारे भारत के नाम का अर्थ है:

भारत : भा = प्रकाश + रत = लीन ( हमेशा प्रकाश, ज्ञान मे लीन )

इतना महान अर्थ से परिपूर्ण देश का नाम है फिर क्यूँ हम ऐसे लोगो के दिये नाम ‘इण्डिया’ का इस्तेमाल करें जिन्होने हमारे देश के शहीदों पर इतने अत्याचार किए ? क्यूँ हम अपने ही देश को गाली दें ? जो भारत को इण्डिया कहते है वे मात्र मैकाले के दिये वचनो का पालन कर रहे हैं।

भारत और इण्डिया मे काफी अंतर है हमारा देश भारत है इंडिया नहीं।

जो भारतीय भाई – बहन मेरी बातों से सहमत हो वो कृपया इस जानकारी को उन पढ़े लिखे काले अंग्रेजों तक जरूर पहुँचायें जो अपने- आपको इडियट (इण्डियन) कहलाने में ज्यादा गर्व महसूस करते हैं। उन्हें समझाए की उन्हें भारतीय कहलाना ज्यादा पसन्द है या इडियट यानि मूर्ख।
वाह रे काले अंग्रेजो….गोरे अंग्रेजों ने अगर तुम्हारी प्रसंशा की होती तो वो समझ में आती थी….पर उनके द्वारा मुर्ख कहे जाने पर भी तुम अपने आपको अगर महान गौरवान्वित महसूस करते हो तो तुम्हारा भगवान ही मालिक है।
वैसे मैकाले का उद्देश्य भी ये ही था। मैकाले तो इस दुनिया से कब का चला गया लेकिन उसके उत्पाद आज भी उत्पादित हो रहे हैं।

भारत विश्वगुरु रहा है उसी ने बहुत पहले यह उदघोष किया –

॥ असतो माँ सदगमय, तमसो माँ ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ॥
अर्थात असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर बढ़ना।

“अंग्रेजो ने भारत को इंडिया नाम दिया”
इस शब्द में वह शक्ति नहीं है, जो भारत के उपरोक्त गुणों को ध्वनित और व्यंजित कर सके, भारत के इंडिया शब्द का प्रयोग स्पष्ट करता है की भले ही अंग्रेजो की गुलामी से हम स्वतंत्र हो गए हैं, पर मानसिक दासता से अभी भी मुक्त नहीं हो सके हैं।

हमें इंडिया और अंग्रेजी, दोनों से ही अपने को मुक्त करना है तथा भारत, भारतीय संस्कृति और अपनी मातृभाषा से जुड़ना है, तभी हम सच्चे अर्थों में भारतीय कहलाने के अधिकारी होंगे।

::: इंडिया बनाम भारत :::

  • इंडिया Competition पर चलता है और भारत Cooperation पर।
  • इंडिया की theory है Survival of the Fittest और भारत की theory है Survival of all including the Weakest.
  • इंडिया में ज्ञान डिग्री से मिलता है और भारत में ज्ञान सेवा से मिलता है।
  • इंडिया में Nuclear Family चलती है और भारत में Joint Family.
  • इंडिया में सिद्धांत है “स्व हिताय स्व सुखाय” और भारत में सिद्धांत है “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय”।
  • इंडिया में “I ” “मैं” पर चलता है और भारत में “हम” पर चलता है।
  • इंडिया मतलब इंडियन शहरों का समूह और भारत मतलब भारतीय गावों का समूह।
  • इंडिया/इंडियन मतलब अंग्रेजी संस्कृति को बढ़ावा देना तथा भारत और भारतीय संस्कृति को भूलना।
  • इंडिया/इंडियन मतलब विलासिता और शक्तिशाली लोग हैं जो भारत और भारतीयों पर राज करें।
  • इंडियन सरकार ने भारतीय लोगों से जाति और धर्म क्यों पूछते हैं क्योंकि वे भारत/भारतीय लोगों पर शासन “फूट डालो और नियम” का पालन करते हैं।
  • इंडियन मतलब साक्षर है और भारतीय मतलब शिक्षाविद् है।
  • इंडियन अपने बच्चों के लिए सेक्स शिक्षा और भारतीय अपने बच्चों के लिए योग शिक्षा मांगते हैं।

भारत नाम हमारे देश में स्वीकार किया जाता है, विभिन्न सरकारी और सामाजिक क्षेत्रों, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्यूँ नहीं ?
जो निम्न उदाहरण से स्पष्ट है: –

  1. हमारा राष्ट्रीय गान:
    जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता ( ना की इंडिया भाग्य विधाता)
  2. हमारा राष्ट्रीय प्रतिज्ञा: पहली पंक्ति है…!!
    “भारत मेरा देश है” (ना की इंडिया मेरा देश है)

  3. सर्वोच्च नागरिक सम्मान, जो हमारे देश में दिया जाता है: “भारत रत्न” है (ना की ‘इंडिया रत्न’)

  4. Indian penal code के लिए शब्द “भारतीय दंड संविधान” प्रयोग किया जाता है।

  5. ‘दूरदर्शन राष्ट्रीय नेटवर्क’ पर दैनिक हिन्दी समाचार में हमेशा शब्द इंडिया के लिए भारत का उपयोग करता है। उदाहरणार्थ: ‘इंडिया और इंग्लैंड” के बीच के क्रिकेट मैच को “भारत और इंग्लैंड” के बीच।

  6. हम कहते हैं “भारत माता की जय” (ना की इंडिया माता की जय)

“Incredible India” का मतलब “अविश्वासी इंडिया” होता है, तभी क्रिकेट के मैदान पर लिखा होता है, जिसे हमारे महान खिलाडी अपने जूते भरे पैरो से रोंदते है और इंडिया की जनता ताली बजाकर खुश होती है और भारत की जनता रोती है ? क्या हम अपने माता पिता का नाम किसी खेल के मैदान या सड़क पर लिख सकते है ?

इंग्लिश सीखो, लिखो, बोलो लेकिन सोचो….

“आंसू टपक रहे हैं, भारत के हर बाग से,
शहीदों की रूहें लिपट के रोती हैं, हर खासो आम से,
अपनों ने बुना था हमें, भारत के नाम से,
फिर भी यहाँ जिंदा है हम, गैरों के दिए हुए नाम इंडिया से”

कैसे पड़ा भारत का नाम ? *********

इस देश का नाम प्रथम तीर्थंकर दार्शनिक राजा भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष पड़ा। महाभारत (आदि पर्व-2-96) का कहना है कि इस देश का नाम भारतवर्ष उस भरत के नाम पर पड़ा जो दुष्यन्त और शकुन्तला का पुत्र कुरूवंशी राजा था। पर इसके अतिरिक्त जिस भी पुराण में भारतवर्ष का विवरण है वहां इसे ऋषभ पुत्र भरत के नाम पर ही पड़ा बताया गया है।

जहाँ “भारत” अपने स्वाभिमान का प्रतीक है वहीँ “India” आज भी अंग्रेजों की गुलामी की निशानी | इसलिए मेरा मानना है कि हमें अपने देश को अपनी संस्कृति से जोड़कर देखना चाहिए क्यूंकि यह महान है |

यह दुखद है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यहाँ अनेक प्रांतों और शहरों के नाम तो बदले, किंतु देश का नाम यथावत विकृत बना हुआ है। समय आ गया है कि जिन लोगों ने ‘त्रिवेन्द्रम’ को तिरुअनंतपुरम्, ‘मद्रास’ को तमिलनाडु, ‘बोंबे’ को मुंबई, ‘कैलकटा’ को कोलकाता या ‘बैंगलोर’ को बंगलूरू, ‘उड़ीसा’ को ओडिसा तथा ‘वेस्ट बंगाल’ को पश्चिमबंग आदि पुनर्नामांकित करना जरूरी समझा – उन सब को मिल-जुल कर अब ‘इंडिया’ शब्द को विस्थापित कर भारतवर्ष कर देना चाहिए। क्योंकि यह वह शब्द है जो हमें पददलित करने और दास बनाने वाली संस्था ने हम पर थोपा था।

क्या सोच रहे है आप ? बचाइए स्वाभिमान का प्रतीक अपने देश का नाम “भारत”

“हमारे देश का नाम हिंदी में भारत है, इंग्लिश में भी ‘BHARAT’ ही होगा ना की INDIA.”

Download Thalua Club Android App for More Articles https://play.google.com/store/apps/details?id=com.thaluaclub.in

GM food पर बीजेपी का दोहरा रवैया

भाजपा ने २०१४ के अपनी चुनावी घोषणापत्र में कहा था के …. “उत्पादन, मिट्टी पर दीर्घकालिक प्रभाव और उपभोगताओं पर पड़ रहे जैविक प्रभाव पर पूर्ण वैज्ञानिक मूल्यांकन के बिना आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) खाद्य पदार्थों की अनुमति नहीं दी जाएगी” (Manifesto2014 page – 28) !!!!

अब सरकार बनने के बाद वोही भाजपा विदेशी कंपनियों को यह कहकर पूंजी निवेश के लिए बुला रही है के “जीएम सब्जियों के मुख्य उत्पादक देश बनने के लिए भारतके पास अच्छा संभावना है”! पहले अनुमति न देने की बात और बाद में जीएम सब्जी उगाने के लिए विदेशी कंपनियों को रेड कारपेट बिछाकर बुलाने की बात ….. यह दोगलापन, धोखेबाजी, फरेबी नही तो और क्या है ? विश्व के एक से बढकर एक वैज्ञानिक जीएम फसलों का मानव शरीर, परियावरण, प्राकृतिक संतुलन पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर आवाज़ बुलंद कर रहे है, अपने शोध के जरिये प्रमाण सहित लोगोंको इस जहरीले फसल के बारे में सचेत कर रहे है, वोही हमारे नेता अपने अदुरदार्शिता का परिचय देते हुए ऐसे खतरनाक ज़हर का देश में उत्पादन विदेशी हाथों को सोंप रहें है|

जीएम फसलों के बीज बेचनेवाली दानव विदेशी कंपनिया अपने बीजों को टर्मिनेशन तकनीक के जरिये ऐसा बना देती है जिससे दूसरी पीढ़ी के बीज बांज हो जाती है उससे कोई पौधा नही उगता, किसानो को दोबारा उन्ही कंपनियों से बीज खरीदना पढता है, और इसीका साहारा लेके विदेशी कंपनिया मनचाहा तरीके से दाम बढ़ाके हमारे किसानो को लूटती है, जिससे खेती का खर्चा बढ़ता है, किसान ऋण लेने में मजबूर होते जाते है और उनके आत्महत्या की संभावना बढ़ती है (आजतक जीएम फसलो के जादा उत्पादन का वादा सही नही हुआ)|

सिर्फ इतना ही नही सरकार ने इस क्षेत्र में विदेशी कंपनियों को लूटने का मौका देने के लिए 100% FDI के साथ अपना पूरा बाज़ार खोल दिया है| विदेशी पूँजी पाने के चक्कर उन विदेशी कंपनीयाँ को बुला रहे है जो किसी आतंकवादी समूह से भी ज्यादा खतरनाक है ।

मेक इन इंडिया बेवसाईट पर ये जानकारी दे रखी है, इस कंपनीयों को ला रहे है या फिर आ चुके है ।
Limagrain (France)
Endo Pharmaceuticals (USA)
Mylan Inc. (USA)
Sanofi Aventis (France)
Abbot Laboratories (USA)
Fresenius (Singapore)
Hospira (USA)

Limagrain moves GM tests to the US due French ban (फ्रांस में बैन लगने के बाद ये अमेरिका में GM पर टेस्ट करेगी )
http://www.gmwatch.eu/latest-listing/47-2008/5955-limagrain-pulls-all-gm-testing-out-of-france-2822008

Endo Pharmaceuticals भी GM के काम में लगी है।
http://toxsci.oxfordjournals.org/content/77/2/188.full.pdf

“Sanofi Aventis” : Among its current funders are Abbott Laboratories, Astra Zeneca, BASF, Bayer, CropLife International, FSA, Nature, Novartis, Syngenta, and Sanofi Aventis — most of whom are actively involved in the promotion of GM technologies, crops and foods
From – http://gmwatch.org/index.php/news/archive/2013/14965-uk-taxpayers-subsidise-science-media-centre-to-tune-of-370k-per-year

एक तरफ जहाँ मेक इन इंडिया की बेवसाईट पर ये लिखा है की ३०% आबादी को हम २०२० तक शहर में डाल देंगे वही दूसरी और GM फूड के वजह से लाखों लोगो पहले ही अपनी जान दे चुके है और उन लाशों पर भारत में GM फूड की फसले उगेंगी । जब गाँव खाली हो जायेंगे तब विदेशी लोग वहाँ उन जमीनों पर GM फूड उगायेंगी।

एक खतरा और भी है ….. अब विदेशी कंपनिया अपने दवाओं के परिक्षण के लिए भारत के लोगोंको गिनीपिग की तरह उपयोग करेंगे ‘क्लिनिकल ट्रायल’ के नाम पर!
link : http://www.makeinindia.gov.in/sector/biotechnology/

–Kunal Arya

Download Thalua Club Android App for More Articles https://play.google.com/store/apps/details?id=com.thaluaclub.in

►► मैं हूँ उत्तर प्रदेश ►►

नमस्ते दोस्तों, कैसे हैं आप ? संभवत: बहुत बीजी ही होंगे लेकिन चाहूँगा 5-10 मिनट का समय निकाल कर मेरी बात भी सुन लीजिये ।
मैं हूँ उत्तर प्रदेश । नाम तो सुना ही होगा ना ? जी हाँ मैं भारत का सबसे बड़ा राज्य हूँ । मेरी बात ही निराली हैं, एक तरफ यहाँ गंगा जैसी पावन व निर्मल नदी बहती हैं तो दूसरी तरफ यहाँ कुम्भ मेला व माघ मेला जैसे आकर्षक समारोह का भी आयोजन होता हैं । एक तरफ मुझे ताजमहल जैसे विश्व प्रसिद्ध अजूबे के पास होने का गुमान हैं तो दूसरी ओर गंगा-आरती व हिंदी के उद्गम स्थल का भी श्रेय मिलने पर आभार हैं । जहां मेरे क्षेत्र से तुलसी, कबीर, सूरदास व हरिवंश राय जैसे कवी निकले वहीं कत्थक नृत्य, फिरोजपुर की चूड़ियां व वाराणसी की साड़ियाँ भी निकल कर देश भर में प्रचलित हुई । अपनी कितनी विशेषताएं बतलाऊ आपको ? बस इतना समझ लीजिये एक शब्द में मैं उत्तर प्रदेश भारत की पहचान हूँ ।
कभी आजादी की लड़ाई में सबसे ज्यादा क्रांतिकारी देने वाला, कभी स्वतंत्रता संग्राम का गढ़ माना जाने वाला व कभी वीरों की भूमि कहलाये जाने वाला मैं उत्तर प्रदेश आज तिल-तिल मरने को मजबूर हूँ । पूरे देश में मेरी थू-थू हो रही हैं । मुझपर कटाक्ष किये जा रहे, व्यंग्य कसे जा रहे व तानों के बाण से रोज़ मेरा सीना छलनी भी किया जा रहा । मैं बेबस बेचारा बस अपमान का घूँट पीकर चुप रहने को मजबूर हूँ । आखिर क्यूँ ? आइये वजह तलाशे …………….
आज एक दिन भी ऐसा ना होता जब मेरी छाती अपने ही बेटों के खून से लाल ना होती हो । रोज़ मेरे बेटे आपस में ही लड़ते, कभी धर्म-जातिवाद तो कभी प्रांत के नाम पर । वो तो लड़ कर मर जाते और खून का दाग मेरे माथे पर लग जाता । आज मेरे ही बेटे सिर्फ पांच-पांच सौ रुपैय के लिए एक दुसरे का खून बहा डालते । 21वीं सदी में होने के बावजूद आज मेरी घर की बहू-बेटियों को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता हैं , इससे ज्यादा शर्म की बात ये हैं कि मेरे दूर के पडोसी झारखण्ड जैसे पिछड़े राज्य में भी आदिवासियों के लिए शौचालय की सुविधा हैं लेकिन मेरे घर की महिलाओं के लिए नहीं । कभी क्रांतिकारियों का गढ़ रहा मैं उत्तर प्रदेश आज गुंडाराज व आतंकवाद के लिए मशहूर हो चूका हूँ । अपनी अच्छाइयां बताने जाऊ तो पूरा दिन गुजर जाए लेकिन एक कड़वा सच ये भी हैं कि अपनी बुराइयां बताने जाऊ तो भी पूरी रात गुजर जाए ।
इतनी भयानक लूट तो असुरों ने भी ना मचाई होगी जितनी आज मेरी ही अपनी औलादें धर्म जाती के नाम पर मचाती । दहेज़ प्रथा का तो जैसे मैं गढ़ सा बन गया हूँ । बलात्कार, एसिड-अटैक, क़त्ल जैसे तीर रोज़ मेरे सीने में चुभते हैं । पर कभी कभी सोचता हूँ मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ हो रहा ? मेरा ये सवाल जायज़ हैं क्यूंकि ………………
● दिल्ली की सत्ता का अधिकारी मैं यानी उत्तर प्रदेश ही तय करता हूँ ।
● भारत को अब तक सबसे ज्यादा पीएम मैंने यानी उत्तर प्रदेश ने ही दिए हैं ।
● मोदी हो या अटल, राजीव हो या जवाहर लाल नेहरु, शाश्त्री जी हो या चन्द्रशेखर…सब मेरे छाती पर पैर रखकर ही पीएम की कुर्सी की उंचाई को छू पाए हैं ।
फिर मेरे साथ इतना भेदभाव क्यूँ हो रहा ? क्यूँ मेरे बच्चों को समाजवादी, दलितवादी, मनुवादी, राष्ट्रवादी, सेकुलर, कम्युनल, अगड़ा हिन्दू, पिछड़ा हिन्दू में बांटा जा रहा हैं ? क्यूँ मुझे भी एक वोटबैंक की तरह यूज किया जा रहा हैं ? देश को इतने पीएम देने के बावजूद क्यूँ मेरे सीने में हत्याओं के दाग लगे हैं, क्यूँ मेरे बच्चों के घरों में बिजली व शौचालय तक नहीं, इतना विशाल ओद्योगिक राज्य होने के बावजूद क्यूँ मेरे बच्चों को बाहर जाकर काम माँगना पड़ता ? क्यूँ सिर्फ अपनी राजनैतिक लालसा पूरी करने के लिए मेरा विभाजन किया जाता ? क्यूँ मेरे गाँवों में पीने को साफ़ पानी नहीं ? क्यूँ …….आखिर क्यूँ ?
कभी कभी सोचता हु मेरे बच्चे भी मुर्ख ही बन कर रह गए हैं, कभी ऐसे नेता को बिठाते जो लैपटॉप तो देता पर मेरी बेटियों को सुरक्षा नहीं, कभी ऐसी महिला नेत्री को बिठाते जो मूर्तियाँ तो बनवाती पर शौचालय नहीं तो कभी ऐसे नेता को भी बिठा देती जो सिर्फ वोट के लिए मंदिर-मस्जिद विवाद खड़ा करके सत्ता के गलियारों में जा बैठता । सिर्फ सत्ता का सुख पाने के लिए जिसे तिल-तिल मारा जा रहा वो अभागा बाप हूँ मैं । कहने को सबसे ज्यादा कल-कारखाने मेरी झोली में हैं, सबसे उम्दा शिल्पकार व बुनकर मेरी पलकों में हैं, सबसे उम्दा कवी-अभिनेता-संगीतकार मेरी हथेलियों में हैं लेकिन जिस तरह एक स्वार्थी बेटा बुढापे में बाप को दवा सिर्फ जायदाद की लालच के वास्ते देता उसी तरह आज सभी नेता मेरी बातें सिर्फ वोट पाने के लिए ही करते फिर मुझे अपने हाल पर छोड़ डालते वरना देश को 9 पीएम देने वाला राज्य व्यंग्य व कटाक्ष का केंद्र बने ऐसा हो ही नहीं सकता ।
खैर, जब अपने बेटे ही जाति-धर्म-सम्प्रदाय में उलझे पड़े हो भले ही नन्हा बालक स्कुल जाने के बजाय भीख मांगे, भले ही बेटियाँ नाम रोशन करने के बजाए दहेज़ की आग में जिन्दा जलाई जा रही हो, भले ही युवा श्रेष्ट्र भारत का निर्माण करने के बजाए दुसरे राज्य में जाकर काम कर रहे हो तो इन नेताओं को भी क्यूँ दोष दिया जाए ।
बस इतना ही कह सकता हु मेरे लाडलो, मैं उत्तर प्रदेश भारत के कोष का एक अनमोल खजाना हूँ । कभी मेरी तह में आकर देखो मुझसे बेहतर छाँव कोई ना दे पायेगा । अगर तनिक भी हो सके तो उखाड़ फेंकना सत्ता के उन लालची भेड़ियों को जो तुम्हारा इस्तेमाल करके तुम्हारी ही छाती पर मूंग दल रहे हैं । मैं तो बस एक पिता हूँ, मेरे बच्चे कितना भी रास्ता भटक जाए साथ नहीं छोड़ सकता हाँ वक़्त बेवक्त सलाह जरुर देता रहूँगा । ओ मेरे बेटो, तुम्हारा ये लाचार-मजबूर बाप उत्तर प्रदेश तुमसे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता हैं …….” बचा लो मुझे, बख्श दो मुझे……..बचा लो मुझे वरना मैं तबाह हो जाऊंगा, और मुझे बचाना आपका फर्ज भी हैं क्यूंकि ” मैं हूँ उत्तर प्रदेश ”
—- श्रीकान्त चौहान