सिर का दर्द

सिर का दर्द

• सिर पर शुद्ध शहद का लेप करना चाहिए। कुछ ही समय में सिर का दर्द खत्म हो जायेगा।
• आधा चम्मच शहद और एक चम्मच देशी घी मिलाकर सिर पर लगाना चाहिए। घी तथा शहद के सूखने के बाद दोबारा लेप करना चाहिए।
• यदि पित्त के कारण सिर में दर्द हो तो दोनों कनपटियों पर शहद लगायें। साथ ही थोड़ा शहद भी चाटना चाहिए।
• सर्दी, गर्मी या पाचन क्रिया की खराबी के कारण सिर में दर्द हो तो नींबू के रस में शहद को मिलाकर माथे पर लेप करना चाहिए।
• कागज के टुकड़ों पर शहद और चूना को मिलाकर माथे के जिस भाग में दर्द हो उस भाग पर रख देने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।

स्त्रियों के प्रदर रोग के लिए

🐚सुपारी पाक🐚

400 ग्राम चिकनी सुपारी,कूटकर कपड़छान करें।फिर इसे 2½ किलो गाय के दूध में पकाकर मावा बनायें जब मावा जम जाये तो ½ किलो गाय का घी डालकर भून लें । इसके बाद नीचे लिखी दवा कूट छानकर मिला दें ।
★ चिरोंजी 25 ग्राम
★ नारियल गोला 25 ग्राम
★ जायफल 5 ग्राम
★ जावित्री 5 ग्राम
★ लौंग 5 ग्राम
★ नागकेसर 5 ग्राम
★ तेजपात 5 ग्राम
★ छोटी इलाइची 5 ग्राम
★ वंशलोचन 5 ग्राम
मिलाकर पाक सिद्ध करें । सेवन मात्रा 25 ग्राम ।स्त्रियों के प्रदर रोग की उत्तम दवा है।

कई बीमारियों के लिए छोटा सा प्रयोग

🐚कई बीमारियों का एक साथ छोटा सा प्रयोग 🐚

  • तुलसी की 21 से 35 पत्तियाँ स्वच्छ खरल या सिलबट्टे (जिस पर मसाला न पीसा गया हो) पर चटनी की भांति पीस लें और 10 से 30 ग्राम मीठी दही में मिलाकर नित्य प्रातः खाली पेट तीन मास तक खायें।
  • ध्यान रहे दही खट्टा न हो और यदि दही माफिक न आये तो एक-दो चम्मच शहद मिलाकर लें।
  • छोटे बच्चों को आधा ग्राम दवा शहद में मिलाकर दें। दूध के साथ भुलकर भी न दें। औषधि प्रातः खाली पेट लें। आधा एक घंटे पश्चात नाश्ता ले सकते हैं। दवा दिनभर में एक बार ही लें
  • कैंसर जैसे असह्य दर्द और कष्टप्रद रोगो में २-३ बार भी ले सकते हैं।
  • इसके तीन महीने तक सेवन करने से खांसी, सर्दी, ताजा जुकाम या जुकाम की प्रवृत्ति, जन्मजात जुकाम, श्वास रोग, स्मरण शक्ति का अभाव, पुराना से पुराना सिरदर्द, नेत्र-पीड़ा, उच्च अथवा निम्न रक्तचाप, ह्रदय रोग, शरीर का मोटापा, अम्लता, पेचिश, मन्दाग्नि, कब्ज, गैस, गुर्दे का ठीक से काम न करना, गुर्दे की पथरी तथा अन्य बीमारियां, गठिया का दर्द, वृद्धावस्था की कमजोरी, विटामिन ए और सी की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग, सफेद दाग, कुष्ठ तथा चर्म रोग, शरीर की झुर्रियां, पुरानी बिवाइयां, महिलाओं की बहुत सारी बीमारियां, बुखार, खसरा आदि रोग दूर होते हैं।यह प्रयोग कैंसर में भी बहुत लाभप्रद है।

रतौंधी होने पर करें ये देशी इलाज

१- तुलसी के पत्तों का स्वरस दिन में 3 बार आंखों में डालने से रतोंधी में लाभ होता है.
२- केवल शहद लगाते रहने से रतोंधी मिट जाती है.
३- केले के पत्तों का रस नेत्रों में लगाने से रतोंधी मिट जाती है.

स्मरणशक्ति बढ़ाने और बुध्दि तेज करने के उपाय

उपाय-
साधारणतया मस्तिष्क का केवल 3 से 7 प्रतिशत
भाग ही सक्रिय हो पाता है। शेष भाग सुप्त
रहता है, जिसमें अनंत ज्ञान छिपा रहता है।
ऐसी विलक्षण शक्ति को जाग्रत करने के कुछ
उपाय यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
– दोनों कानों के नीचे के भाग को अंगूठे और
अंगुलियों से दबाकर नीचे की ओर खीचें। पूरे कान
को ऊपर से नीचे करते हुए मरोड़ें। सुबह 4-5
मिनट और दिन में जब भी समय मिले, कान के
नीचे के भाग को खींचे।
– सिर व गर्दन के पीछे बीच में
मेडुला नाड़ी होती है। इस पर अंगुली से 3-4 मिनट
मालिश करें। इससे एकाग्रता बढ़ती है और
पढ़ा हुआ याद रहता है।
– ज्ञान मुद्रा- प्रात: उठकर पद्यासन
या सुखासन में बैठकर हाथों की तर्जनी अंगुली के
अग्र भाग को अंगूठे से मिलाकर रखने से ज्ञान
मुद्रा बनती है। शेष अंगुलियां सहज रूप से
सीधी रखें, आंखें बंद, कमर व रीढ़ सीधी, यह
अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्रा है।
इसका हितकारी प्रभाव समस्त वायुमंडल और
मस्तिष्क पर पड़ता है। ज्ञानमुद्रा पूरे
स्नायुमंडल को सशक्त बनाती है। विशेषकर
मानसिक तनाव से होने वाले दुष्प्रभावों को दूर
कर मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं को सबल
बनाती है।
– ज्ञानमुद्रा के निरंतर अभ्यास से मस्तिष्क
की सभी विकृतियां और रोग दूर होते हैं। जैसे
पागलपन, उन्माद, विक्षिप्तता, चिड़चिड़ापन,
अस्थिरता, अनिश्चितता क्रोध, आलस्य घबराहट,
अनमनापन, व्याकुलता, भय आदि। मन शांत
हो जाता है। और चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है।
ज्ञानमुद्रा विद्यार्थियों के लिए वरदान है। इसके
अभ्यास से स्मरण शक्ति और बुध्दि तेज होती है।
– अकारण अंगुलियों को चटकाना,
पंजा लड़ाना और अंगुलियों को अनुचित रूप से
चलाना आदि आदतें मस्तिष्क और स्नायुमंडल पर
बुरा प्रभाव डालती हैं। इससे प्राणशक्ति का ह्रास
होता है और स्मरण शक्ति कमजोर होती हैं। अत:
इनसे बचना चाहिए।
– आज्ञाचक्र ललाट पर दोनों भौंहों के मध्य
स्थित होता है। इसका संबंध ब्रह्म शरीर से
होता है। जिस व्यक्ति का आज्ञाचक्र जाग
जाता है, वही विशुध्द ब्रह्मचारी हो सकता है। और
उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं रहता।
आज्ञाचक्र पर ध्यान केन्द्रित करने से
आज्ञाचक्र जाग्रत होता है। सफेद रंग
की ऊर्जा यहां से निकलती है। अत: सफेद रंग के
ध्यान से आज्ञाचक्र के जागरण में
सहायता मिलती है।
– पढ़ाई करने से पहले या कोई भी ज्ञान अर्जन ,
ज्ञान दान का कार्य करने से पहले गणेश जी और
सरस्वती जी का स्मत्रण कर उन्हें प्रणाम करे।
– देशी गाय के शुध्द घी में एक बादाम कुचलकर
डाल दें और उसे गरम करके ठंडा कर लें।
तत्पश्चात् छानकर रखें। रात को सोते समय यह
घी दो-दो बूंद दोनों नासिका के छिद्रों में थोड़
गुनगुना करके डालें। यही घी नाभि पर डालकर 4-5
बार घड़ी की दिशा में और 4-5 बार
घड़ी की विपरीत दिशा में घुमाएं, फिर उस पर गीले
कपड़े की पट्टी और फिर सूखे कपड़े की पट्टी रखें।
ऐसा करीब 10-15 मिनट करें।
– इसी तरह बादाम रोगन तेल का उपयोग कर
सकते है।
– दक्षिण दिशा में सिर रखकर सोएं। सोते वक्त
दोनों पैरों के तलवों में अपने हाथ से घी से मालिश
करें। इससे नींद अच्छी आती है, मस्तिष्क में
शांति, प्रसन्नता और सक्रियता आती है। मनोबल
बढ़ता है।
– चार-पांच बादाम की गिरी पीसकर गाय के दूध
और मिश्री में मिलाकर पीने से मानसिक
शक्ति बढ़ती है।
– आयुर्वेद के अनुसार ब्राह्मी, शंखपुष्पी, वच,
असगंध, जटामांसी, तुलसी समान मात्रा में लेकर
चूर्ण का प्रयोग नित्य प्रतिदिन दूध के साथ करने
पर मानसिक शक्ति, स्मरण शक्ति में
वृध्दि होती है।
– उत्तर दिशा में मुंह करके पिरामिड
की आकृति की टोपी पहनकर पढ़ाई करने से
पढ़ा हुआ बहुत शीघ्र याद होता है। टोपी, कागज,
गत्ता या मोटे कपड़े की बनाई जा सकती है।
– देशी गाय का शुध्द घी, दूध, दही, गोमूत्र, गोबर
का रस समान मात्रा में लेकर गरम करें। घी शेष
रहने पर उतार कर ठंडा करके छानकर रख लें। यह
घी ‘पंचगव्य घृत’ कहलाता है।
रात को सोते समय और प्रात: देशी गाय के दूध में
2-2 चम्मच पिघला हुआ पंचगव्य घृत, मिश्री,
केशर, इलायची, हल्दी, जायफल, मिलाकर पिएं।
इससे बल, बुध्दि, साहस, पराक्रम, उमंग और
उत्साह बढ़ता है। हर काम को पूरी शक्ति से करने
का मन होता है और मनोवांछित
फलों की प्राप्ति होती है।
– रात्रि को सोते समय अपने दिन भर के किए हुए
कार्यों पर चिंतन-मनन करना,
उनकी समीक्षा करना, गलतियों के प्रति खेद
व्यक्त करना और उन्हें पुन: न दोहराने
का संकल्प लेना चाहिए। प्रात: सो कर जागते
समय ईश्वर को नया जन्म देने हेतु धन्यवाद
देना चाहिए और पूरा दिन अच्छे कार्यों में व्यतीत
करने का संकल्प लेकर पूरे दिन की योजना बनाकर
बिस्तर छोड़ना चाहिए।

एलोवेरा जेल

एलोवेरा जेल
लाभ : यह त्वचा को मुलायम व कोमल बनाकर उसमें निखार लाता हैं तथा अल्ट्रावाँयलेट किरणों के प्रदुषण व त्वचा-उत्तेजकोण आदि से होनेवाले हानिकारक प्रभाव से सुरक्षा प्रदान करता हैं | इसके उपयोग से किल-मुँहासे, काले दाग-धब्बे, निशान, दरारें व झुरियों से रक्षा होती हैं | यह रुखी और तैलीय त्वचा – दोनों के लिए उपयोगी हैं |

  त्वचा को पानी से धोने के बाद हलके हाथों से लगायें |

स्वास्थ्य से सूत्र

स्वास्थ्य के सूत्र जिन नियमों को अपनाकर व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी पाए उनकी जानकारी व वैज्ञानिक विवेचन नीचे दिया जा रहा है। अच्छा तैराक वह होता है जिसे नदी के  सभी भंवरों की जानकारी होती है न कि वह जो भंवर में फंस जाए। यह संसार भी एक भवसागर है जिसमें अनेक भंवर होते हैं। यदि एक बार व्यक्ति भंवर में फंस जाए तो निकलने में काफी कठिनाई होती है, प्राण जाने का भय भी रहता है। इसी प्रकार यदि व्यक्ति किसी गम्भीर रोग के चंगुल में फंस जाए तो बहुत दर्द सहना पड़ता है व प्राण जाने का खतरा भी मंडराता रहता है। इसीलिए समझदारी इसी में है कि हम यथा सम्भव स्वास्थ्य के स्वर्णिम सूत्रों का विस्तृत अध्ययन व पालन करने का प्रयास अवश्य करें। स्वास्थ्य के सूत्रों को पाठकों को अपनी प्रकृति के अनुसार ग्रहण करना चाहिए। स्वस्थ व्यक्ति के लिए सूत्र अलग हैं व रोगी के लिए अलग। उदाहरण के लिए शीतल जल में स्नान से बहुत लाभ होता है परन्तु यदि ज्व पीड़ित व्यक्ति ठण्डे जल से नहा ले तो हानि भी हो सकती है। इसी प्रकार घी खाने से व्यक्ति हष्ट-पुष्ट बनता है परन्तु जिसका हाजमा कमजोर है वह यदि घी खा ले तो पेट दर्द अथवा दस्त से पीड़ित हो सकता है। अतः पाठकों से विनम्र निवेदन है कि विवेक का प्रयोग करते हुए अथवा किसी उत्तम वैद्य के परामर्श से साथ ही सूत्रों का लाभ उठायें। ये सूत्र निम्नलिखित हैं। 1. भूख व भोजन अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह आवश्यक है कि उचित भूख लगने पर ही भोजन किया जाए। ऐसा क्यों करें? कारण यह है कि जो भोजन हम करते हैं उसका परिपाक आमाशय में होता है। यदि भूख ठीक न हो तो आमाशय के द्वारा भोजन ठीक से नहीं पकता अथवा पचता। इस कारण भोजन से जो रस उत्पन्न होते हैं वो दूषित रहते हैं। ये रस व्यक्ति में रोग उत्पन्न करते हैं व स्वास्थ्य खराब करते हैं। इस समस्या को आयुर्वेद में आमवात कहा जाता है। किसी ने सत्य ही कहा है- ”आम कर दे काम तमाम“ यह आमवात ही सन्धिवात का मूल कारण होता है। परन्तु आज विडम्बना यह है कि व्यक्ति को खुलकर भूख लगना ही भूख लगना ही बंद हो गया है प्राकृतिक भूख व्यक्ति को लग नहीं पा रही है। बस दो या तीन समय भोजन सामने देख व्यक्ति भोजन कर डालता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति भूख से कम खाए। भोजन पेट की भूख से तीन चौथाई करें। एक चौथाई पेट खाली रखें। जब पेट भरने लगे अथवा डकार आ जाए तो भोजन करना बन्द कर दें। ठूस-ठूस कर खाने से शरीर भारी हो जाता है। भूख से अधिक खाने पर पाचन तन्त्र पर एक दबाव बनता है। पेट, आमाशय, आँतें मिलकर पाचन तन्त्र बनता है, इसमें फूलने सिकुड़ने की क्रिया होती रहती है, और उलट पुलट के जिए जगह की गुंजाईश रखे जाने की आवश्यकता पड़ती है। इस सारे विभाग में ठूॅंस-ठूॅंस कर भरा जाए और कसी हुई स्थिति में रखा जाए, तो स्वभावतः पाचन में बाधा पड़ेगी, अवयवों पर अनावश्यक दबाव-खिंचाव रहने से उनकी कार्यक्षमता में घटोतरी होती जाएगी। उन अंगों से पाचन के निमित्त जो रासायनिक स्त्राव होते हैं, उनकी मात्रा न्यून रहेगी और सदा हल्की-भारी कब्ज बनी रहेगी। आहार के सम्बन्ध में यह विशेष उल्लेखनीय है कि सच्ची एवं परिपक्व भूख लगने पर ही खाना खाएं। रुस के स्वास्थ्य विशेषज्ञ ब्लाडीमार कोरेचोवस्को का मत है – भूख से जितना अधिक खाते हैं, समझना चाहिए कि उतना ही विष खाते हैं। बच्चों के लिए भोजन में कोई नियम नहीं रखने चाहिए। जब इच्छा हो खाएं। युवाओं को पौष्टिक भोजन नियमानुसार करना चाहिए व प्रौढ़ भोजन सन्तुलित करें। अपवाद – बहुत से व्यक्ति डायबिटिज व अन्य घातक रोगों के चंगुल में फंस कर बहुत कमजोर हो गए हैं। ऐसे लोगों को यह सुझाव दिया जाता है कि हर दो तीन घण्टें में कुछ न कुछ खाते रहें अन्यथा बहुत दुर्बलता अथवा अम्लता बनने लगेगी। 2. भोजन का समय दो समय भोजन काना अच्छा होता है। भोजन करने का सबसे अच्छा समय प्रातः 8 से 10 बजे व सांय 5 से 7 बजे के बीच है। यदि कोई भारी खाद्य पदार्थ लेना है तो प्रातः भोजन में ही लें, क्योंकि पाचन क्षमता सूर्य से प्रभावित होती है। 12 बजे के आस-पास पाचन क्षमता सर्वाधिक होती है, अतः 10 बजे तक किया गया भोजन बहुत अच्छे से पच जाता है। अन्न वाले खाद्य पदार्थ दो बार से अधिक न लें। परन्तु आवश्यकतानुसार तीन बार भी भोजन किया जा सकता है। सांयकाल भोजन हल्का करें। भोजन का पाचन सूर्य पर निर्भर करता है। सूर्य की ऊष्मा से नाभिचक्र अधिक सक्रिय होता है। भोजन पचाने में लगी अग्नि को जठराग्नि कहा जाता है जिसका नियंत्रण नाभि चक्र से होता है। जिनका नाभि चक्र सुस्त हो जाता है, कितना भी चूर्ण चटनी खा लें भोजन ठीक से नहीं पच पाता। गायत्री का देवता सविता ;सूर्यद्ध है अतः नाभि चक्र को मजबूती के लिए गायत्री मंत्र का आधा घण्टा जप अवश्य करें। दो ठोस आहारों के बीच 6 घण्टें का अन्तर रखें। 3 घण्टें से पहले ठोस आहार न लें। अन्यथा अपच होगा जैसे हाण्डी में यदि कोई दाल पकाने के लिए रखी जाए उसके थोड़ी देर बाद दूसरी दाल डाल दी जाए तो यह सब कच्चा पक्का हो जाएगा। बार-बार खाने से भी यह स्थिति उत्पन्न होती है। भोजन के पश्चात् 6 घण्टें से अधिक भूखे न रहें। इससे भी अम्लता इत्यादि बढ़ने का खतरा रहता है। 3. भोजन की प्रकृति रोटी के लिए मोटा प्रयोग करें यह आँतोंमें नहीं चिपकेगा । मैदा अथवा बारीक आटा आँतों में चिपक कर सड़ता है जिससे आँतों में संक्रमण ; इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। साबूत दालें भिगोकर अंकुरित करके खाएं । भोजन को जरूरत से ज्यादा पकाएं नहीं। भोजन के विषय में कहा जाता है – हितभुक, ऋतभुक,मितभुक। हितभुक का अर्थ है वह भोजन करें तो हितकारी हो। जैसे दूध के साथ मूली व दही के साथ खीर लेना अहितकारी है परन्तु केले के साथ छोटी इलाइची एवं चावल के साथ नारियल की गिरी लाभप्रद है ऋतभुक का अर्थ है भोजन ऋतु के अनुकूल हो उदाहरण के लिए ग्रीष्म ऋतु में आटे में गेहूॅं के साथ जौ पिसवाना लाभप्रद रहता है क्योंकि जौ की प्रकृति शीतल होती है परन्तु वर्षा ऋतु में गेहूॅं के साथ चना पिसवाना आवश्यक है वर्षा ऋतु में वात कुपित होता है जिसको रोकने के लिए चना बहुत लाभप्रद रहता है। अन्यथा व्यक्ति कमर दर्द व अन्य पीड़ाओं से ग्रस्त हो सकता है। अन्तिम मितभुक का अर्थ है भूख से कम भोजन करें। पेट को ठूॅंस-ठूॅंस कर न भरें। 4. भोजन के समय की स्थिति भोजन से पूर्व अपनी मानसिक स्थिति शान्त कर लें। भोजन शान्त मन से चबा-चबा कर व स्वाद ले-लेकर करें। यदि भोजन में रस आए तो वह शरीर को लगता है अन्यथा खाया-पीया व बेकार निकल गया तथा पचने में मेहनत और खराब हो गई। भोजन करते हुए किसी भी प्रकार के तनाव, आवेश, भय, चिन्ता के विचारों से ग्रस्त न हों। भोजन ईश्वर का प्रसाद मानकर प्रसन्न मन से करें। भोजन को खूब चबा-चबा कर खाना चाहिए। विद्वभोन के समय ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीनता का भाव, विद्वेष रखने से खाया हुआ अन्न भली-भाँति नहीं पचता है, जिससे रस रक्तादि की उत्पत्ति भी ठीक प्रकार शुरू से नहीं होती है। अतः सुखपूर्वक बैठकर प्रसन्नता से धीरे-धीरे खूब चबा-चबा कर भोजन करना चाहिए। भोजन के समय कोई अन्य काम जैसे पुस्तक पढ़ना, टीवी देखना न करें। भोजन को सही से चबाने पर उसमें पाचक रसों का समावेश उपयुक्त मात्रा में होता है। यदि जल्दी जल्दी में भोजन को पेट की भट्टी में झोंक दिया जाए तो इसका परिणाम अपच, दस्त तथा गैस उत्पति के रूपमें अनुभव किया जा सकता है। जो लोग अप्रसन्न मन से भोजन करते हैं उनके शरीर में कीटोन्स ;विषाक्त तत्वद्ध बढ़ने लगते हैं। अतः जो भी भोजन ग्रहण करें प्रसन्न मन से भगवान् को धन्यवाद देना न भूलें। 5. दिन में भोजन के पश्चात् थोड़ी देर विश्राम एवं सांयकाल लगभग 100-200 कदम अवश्य चलें। 6. भोजन के पश्चात् एक घण्टे तक जल न पीएँ। यदि आवश्यकता लगे तो भोजन के बीच अल्पमात्रा में पानी पीएँ, क्योंकि अधिक जल पीने से पाचक रस मन्द हो जाते हैं। 7. सप्ताह में एक दिन इच्छानुसार स्वादिष्ट भोजन कर सकते हैं। पाँच दिन सामान्य भोजन करें व एक दिन व्रत अवश्य करें। सामान्य भोजन में मिर्च मसालों का प्रयोग कम से कम करें। 8. घी का सेवन वही करें जो शारीरिक कार्य अधिक करते हैं। मानसिक कार्य करने वाले घी का सेवन अल्प मात्रा में ही करें। पित्त प्रकृति वालों के लिए घी का प्रयोग लाभप्रद होता है। 9. दूध या पेय पदार्थों को जल्दी-जल्दी नहीं गटकना चाहिए। धीरे-धीरे चूस-चूस कर पीना चाहिए। पेय पदार्थों का तापक्रम न तो अधिक गर्म हो न ही अधिक शीतल। 10. घी में तले हुए आलू, चिप्स आदि का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। तलने के स्थान पर भाप द्वारा पकाना कहीं अधिक गुणकारी व सुपाच्य होता है। 11. क्या खाया? कितना खाया? यह महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि कितना पचाया यह महत्वपूर्ण है। 12. भोजन जीवन का साधन मात्र है। शुर सात्विक व स्वच्छ भोजन से ही जीवन अच्छा हो सकता है। 13. इतना मत खाओ कि तुम्हारा शरीर आलसी हो जाए। 14. दिनान्ते च पिवेद् दुग्धं निशान्ते च जलं पिबेत्। भोजनान्ते पिवेत् तक्रं वैद्यस्य किं प्रयोजनम्। यदि रात्रि को शयन से पूर्व दुग्ध, प्रातःकाल उठकर जल ;उषापानद्ध और भोजन के बाद तक मट्ठादि पिएँ तो जीवन में वैद्य की आवश्यकता ही क्यों पड़े? 15. दीर्घ आयु के लिए भोजन का क्षारीय होना आवश्यक है। क्षार व अम्ल का अनुपात 3:1 होनी चाहिए। जो लोग अम्लीय भोजन करते हैं उसमें उनको रक्त-विकार अधिक तंग करते हैं। कुछ शोधों के निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि भोजन में क्षार तत्व बढ़ाकर हृदय की धमनियों के इसवबांहम भी खोलें जा सकते हैं। भोजन में अम्लीय पदार्थों की मात्रा कम रखें। स्वस्थ रहने के लिए रक्त की क्षारीयता 80 प्रतिशत तथा अम्लता 20 प्रतिशत होनी चाहिए। यह सन्तुलन बना रहता है, तब तक रोगों का भय नहीं रहता है। आज की पश्चिम जीवनशैली को अपनाकर हमारे देश में अस्पताल और डाॅक्टर दोनों बढ़ने पर तथा नई-नई दवाओं का आविष्कार होने पर भी रोग और रोगी दोनों ही घटने का नाम नहीं ले रहे हैं। आवश्यकता है क्षारीयता प्रदान करने वाले खाद्यों का उत्पादन भी बढ़ाया जाए और जीवनशैली में भी लाया जाए। रक्त को क्षारीयता प्रदान करने वाले खाद्यों में चोकर युक्त आटे की रोटी, अंकुरित अनाज, मूली, गाजर, टमाटर, पत्तागोभी, हरा धनिया, मेथी, पालक, बथुआ, चने इत्यादि शाक-सब्जी, सलाद तथा सभी ताजे पके हुए मीठे फल लेने चाहिए। सभी फल एवं हरी सब्जियों का प्रयोग करें। अंकुरित मूॅंग, अंकुरित चना, अंकुरित सोयाबीन इत्यादि का भरपूर प्रयोग करें। मैदा, बेसन, बिना छिलके की दालें एवं सफेद चीनी, सफेद नमक, तेल, शराब, चाय, काॅफी, कोल्ड-ड्रिंक्स जैसे बोतलबंद पेय, बिस्कुट, ब्रैड , आचार, चाट, कचैड़ी, समौसा, नमकीन एवं पराठें, पूड़ी आदि खून में अम्लता बढ़ाकर रोग पैदा करते हैं अतः स्वास्थ्य रक्षा के लिए अपने दैनिक भोजन में अधिकाधिक फल तथा हरी सब्जियों को स्थान देना चाहिए। 16. तीन सफेद विषों का प्रयोग कम से कम करें – सफेद नमक, सफेद चीनी व सफेद मैदा। 17. फल सब्जियों में विटामिन  पर्याप्त मात्रा में होते हैं। इनका प्रयोग लाभप्रद रहता है। 18. कभी-कभी बादाम व अखरोट का भिगोकर सेवन करते रहें। इससे जोड़ों की ग्रीस अर्थात् ताकत बनी रहती है जो अखरोट में होता है जो सेहत के लिए जरुरी है। 19. जितना सम्भव हो जीवित आहार लें। अधिक तला भुना पदार्थ व जंक फूड मृत आहारों की श्रेणी में आते हैं। 20. गेहूॅं, चावल थोड़ा पुराना प्रयोग करें। 21. घर में फ्रिज में कम से कम सामान रखने का प्रयास करें। पुराना बारीक आटा व सब्जी का प्रयोग जोड़ों के दर्द को आमन्त्रित करता है। 22. भोजन के उपरान्त वज्रासन में बैठना बहुत लाभकारी होता है। भोजन करने के पश्चात् एक दम न सोए न दिन में, न रात में।दिन में भोजन के पश्चात् थोड़ी देर विश्राम व सांयकाल लगभग 100-200 कदम अवश्य चलें। 23. भोजन के पश्चात् दाई साॅंस चलाना अच्छा होता है। इससे जठाराग्नि तीव्र होती है व पाचन में मदद मिलती है। 24. पानी सदा बैठकर धीरे-धीरे पिऐं, एकदम न गटकें। जल पर्याप्त मात्रा में पियें । सामान्य परिस्थितियों में जल इतना पीयें कि 24 घण्टें में 6 बार मूत्र त्याग हो जाए। मूत्र त्याग करते समय अपने दांत बीच कर रखें। नियमित दिनचर्याः अधिकांश व्यक्ति अपनी जीवन-शैली को अस्त-व्यस्त रखते हैं इस कारण रोगों की चपेट में आने लगते हैं। रोगी होने पर एलोपैथी अथवा अन्य चिकित्सकों से इलाज कराते हैं, परन्तु जीवन-चर्या को ठीक करने की ओर ध्यान नहीं देते। इस कारण रोग जिद्दी ;बीतवदपबद्ध होने लग जाते हैं। जब रोग घातक स्थिति तक पहुॅंच जाता है तभी आँख खुलती है व रोग के निवारण के लिए बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। यदि हम पहले से ही सचेत रहकर अपनी जीवनचर्या पर नियन्त्रण रखें तो हम ऋषियों के अनुसार ‘जीवेम शरदः शतम्’ अर्थात् 100 वर्ष तक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। इसके लिए हमें निम्न सूत्रों को जीवन में अपनाना होगा। 25. प्रातःकाल सूर्योदय से दो घण्टा पूर्व अवश्य उठें। ऋषियों ने इसे ब्रह्ममुहूर्त की संज्ञा दी है। इस समय की वायु में जीवनी शक्ति सर्वाधिक होती है। वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि पेड़-पौधों की वृद्धि इस समय व संधिकाल ;दिन-रात के मिलने का समयद्ध में सबसे अधिक होती है। 26. प्रातः उठने के पश्चात् ऊषा पान , जलपानद्ध करें। यह जल ताजा पी सकते हैं। यदि रात को ताम्र पात्र में जल भरकर रख दें वह पीना अधिक लाभप्रद है। ताम्र पात्र को विद्युत रोधी लकड़ी, रबड़, प्लास्टिक के ऊपर रखें इससे पानी में ऊर्जा निहित हो जाती है। यदि सीधा जमीन या स्लैब आदि पर रख दें तो यह ऊर्जा जमीन में चली जाती है। शीत ऋतु में जल को हल्का गर्म करके पीयें व ग्रीष्म ऋतु में सादा ;अधिक ठण्डा न होद्ध लें। जल की मात्रा इच्छानुसार लें। जितना पीना आपको अच्छा लगे- आधा किलो, एक किलो, सवा किलो उतना पी लें। जोर-जबरदस्ती न करें। कई बार अधिक पानी-पीने के चक्कर में हृदय की धड़कन बढ़ती है या पेट में दर्द आदि महसूस देता है, अतः जितना बर्दाश्त हो उतना ही पानी पिया जाए। 27. जल पीकर थोड़ा टहलने के पश्चात् शौच के लिए जाएँ। मल-मूत्र त्यागते समय दाँत थोड़ा भींचकर रखे व मुँह बंद रखें। मल-मूत्र त्याग बैठकर ही करना उचित होता है। 28. मंजन जलपान करने से पहले भी कर सकते हैं व शौच जाने के बाद भी। ब्रश से ऊपर-नीचे करके मंजन करें। सीधा-सीधा न करें। यदि अंगुली का प्रयोग करना हो तो पहली अंगुली तर्जनी का प्रयोग न करें। अनामिका  अंगुली का प्रयोग करें, क्योंकि तर्जनी अंगुली से कभी-कभी ;मनः स्थिति के अनुसारद्ध हानिकारक तरंगें निकलती हैं जो दाँतों, मसूड़ों के लिए हानिकारक हो सकती है। कभी-कभी नीम की मुलायम दातुन का प्रयोग अवश्य करें। इससे दाँतों के कीटाणु मर जाते हैं यदि नीम की दातुन से थोड़ा-बहुत रक्त भी आए तो चिन्ता न करें। धीरे-धीरे करके ठीक हो जाएगा। कुछ देर नीम की दातुन करते हुए रस चूसते रहें उसके पश्चात् थोड़ा-सा रस पी लें। यह पेट के कीटाणु मार देता है। यदि पायरिया के कारण दाँतों से रक्त अधिक आए तो बबूल की दातुन का प्रयोग करें वह काफी नरम व दाँतों को मजबूती प्रदान करने वाली होती है। मंजन दोनों समय करना अच्छा रहता है- प्रातःकाल व रात्रि सोने से पूर्व। परन्तु दोनों समय ब्रश न करें। एक समय ब्रश व एक समय अंगुलि से मंजन करें। अधिक ब्रश करने से दाँत व मसूढ़े कमजोर होने का भय बना रहता है। मंजन करने के पश्चात् दो अंगुलि जीभ पर रगड़कर जीभ व हलक साफ करें। हल्की उल्टी का अनुभव होने से गन्दा पानी आँख, नाक, गले से निकल आता है। इससे टान्सिलस की शिकायत नहीं होती। 29. स्नान ताजे जल से करें, गर्म जल से नहीं। ताजे जल का अर्थ है जल का तापक्रम शरीर के तापक्रम से कम रहना चाहिए। छोटे बच्चों 5 वर्ष से कम उम्र के  लिए अधिक ठण्डा जल नहीं लेना चाहिए। शरद ऋतु में भी जल का तापक्रम शरीर के तापक्रम से कम ही होना चाहिए, परन्तु बच्चों, वृध्दों व रोगियों को गुनगुने जल से स्नान करना चाहिए। स्नान सूर्योदय से पूर्व अवश्य कर लेना चाहिए। रात्रि में पाचन तन्त्र को क्रियाशील रहने से शरीर में एक प्रकार की ऊष्मा  बनती है जो शीतल जल में स्नान करने से शांत हो जाती है, परन्तु यदि सूर्योदय से पूर्व स्नान नहीं किया गया तो सूर्य की किरणों के प्रभाव से यह ऊष्मा और बढ़ जाती है तथा सबसे अधिक हानि पाचन तन्त्र को ही पहुँचाती है। 30. स्नान के पश्चात् भ्रमण ;तेज चाल सेद्ध, योगासन, प्राणायाम, ध्यान, पूजा का क्रम बनाना चाहिए। इसके लिए प्रतिदिन आधा से एक घण्टा समय अवश्य निकालना चाहिए। बच्चों को भी मंदिर में हाथ जोड़ने, चालीसा आदि पढ़ने का अभ्यास अवश्य कराना चाहिए। शारीरिक श्रम व व्यायाम 31. स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन इतना श्रम अवश्य करें कि उसके शरीर से पसीना निकलता रहे। इससे खून की सफाई हो जाती है। जो व्यक्ति पर्याप्त मेहनत नहीं करता उसको व्यायाम, योगासन अथवा प्रातः सांय तीन चार कि.मी. पैदल चलना चाहिए। 32. हमारा सम्पूर्ण शरीर माॅंसपेशियों का बना है। माॅंसपेशियों की ताकत बनाए रखने के लिए उचित शारीरिक श्रम अथवा व्यायाम अनिवार्य है। 33. चीन के लोग स्वस्थ व ताकतवर होते हैं क्योंकि वो साइकिलों का प्रयोग खूब करते हैं। पहले महिलायें घर का कार्य स्वयं करती थी इससे बहुत स्वस्थ रहती थी, परन्तु आज के मशीनी युग ने हमारी माता-बहनों का स्वास्थ्य चौपट कर दिया है। यह हमारे सामने प्रत्यक्ष है कि बगाडियो व पहाड़ी महिलाओं को प्रसव में बहुत कम कष्ट होता है। उनके यहाँ आराम से घर पर ही बच्चे पैदा हो जाते हैं क्योंकि वो मेहनत बहुत करती हैं। 34. शारीरिक श्रम व्यक्ति अपनी सामर्थ्य के अनुसार करें। यदि रोगी व दुर्बल व्यक्ति अधिक मेहनत कर लेगा तो उसे लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है। इस स्थिति में पैदल चलना बहुत लाभप्रद रहता है। 35. समाज में कुछ अच्छी परिपाटियाॅं अवश्य चलें। जैसे प्रातः अथवा सांय पूरा परिवार मिलकर स्वयं लघु वाटिका चलाए कुछ फल, फूल, सब्जियाॅं उगाए। इससे परिवार को अच्छी सब्जियाॅं मिलेंगी व शारीरिक श्रम भी होगा। 36. इन्द्रिय संयम – इस नियम के अन्तर्गत जीभ व जननेन्द्रिय का संयम आता है। जिह्वा संयम के लिए सप्ताह में एक दिन अस्वाद व्रत अर्थात् बिना नमक मिर्च मसालों का अस्वाद भोजन करें। जननेन्द्रिय संयम के लिए अश्लील वातावरण से बचने का प्रयास करें। गलत वातावरण बड़े-बड़े जितेन्द्रिय का भी पतन कर देता है। विवाहित व्यक्ति भी गृहस्थ जीवन में मर्यादानुसार ही सम्भोग करें। 25 से 35 वर्ष तक के गृहस्थ हफ्ते, दो हफ्ते में एक बार, 35 से 45 वर्ष की आयु तक के गृहस्थ तीन चार सप्ताह में एक बार व इससे ऊपर दो चार माह में एक बार ही मिलें। महिलाओं के ऋतुकाल में यह वर्जित है क्योंकि इस समय प्रकृति अनुकूल नहीं होती। 37. आहार, निद्रा व ब्रह्मचर्य इन तीनों बातों से स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। आहार में मांस, अण्डा, शराब, मिर्च-मसाले व अधिक नमक से बचना चाहिए। निद्रा छः से आठ घण्टे के बीच लेनी चाहिए व अश्लील चिन्तन से बचना ही ब्रह्मचर्य है। 38. जीवन आवेश रहित होना चाहिए। ईष्र्या-द्वेष, बात-बात पर उत्तेजित होने का स्वभाव जीवनी शक्ति को भारी क्षति पहुँचाता है। 39. रात्रि को सोते समय मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए। लम्बे समय तक मच्छरनाशक रसायनों के उपयोग से मनुष्य को सर्दी-जुकाम, पेट में ऐंठन और आँखों में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। ये लक्षण और विड्डतियाँ पायरेथ्राइडस नामक ड्डत्रिम कीटनाशक के कारण होती हैं जो कीटों के तंत्रिका तन्त्र पर हमला करता है। सेफ्टी वाच समूह ‘सी.यू.टी.एस.’ ने अपने नए प्रकाशन ‘इज इट रियली सेफ’ में बताया है कि ये रसायन मानव शरीर के लिए बहुत-ही विषैले और हानिकारक होते हैं। 40. भोजन बनाते समय साबुत दालों का प्रयोग करना चाहिए। छिलका उतरी दालों का प्रयोग बहुत कम करना चाहिए। आटा चोकर सहित मोटा प्रयोग में लाना चाहिए। बारीक आटा व मैदा कम से कम अथवा कभी-कभी ही प्रयोग करना चाहिए। दाल, सब्जियों को बहुत अधिक नहीं पकाना चाहिए। आधा पका भोजन ही पाचन व पौष्टिकता की दृष्टि से सर्वोत्तम है। 41. व्यस्त रहें, मस्त रहें के सूत्र का पालन करना चाहिए। व्यस्त दिनचर्या प्रसन्नतापूर्ण ढंग से जीनी चाहिए। 42. प्रातः उठते ही दिनभर की गतिविधियों की रूपरेखा बना लेनी चाहिए व रात्रि को सोते समय दिन भर की गतिविधियों का विश्लेषण करना चाहिए। यदि कभी कोई गलती प्रतीत होती हो, तो भविष्य में उस त्रुटि को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए। 43. शयन के लिए बिस्तर पर मोटे बाजारू गद्दों का प्रयोग न करें, हल्के रूई के गद्दों का प्रयोग करें। घर में अथवा आस-पास नीम चढ़ी गिलोय उगाकर रखें व हफ्ते पन्द्रह दिन एक-दो बार प्रातःकाल उबालकर पीते रहें। गिलोय से शरीर स्वस्थ व निरोग रहता है। लीवर सुचारू रूप् से काम करता है। 44. शीत ऋतु में दो तीन माह आंवले का उपयोग करें। यह बहुत ही उच्च कोटि का स्वास्थ्यवर्धक रसायन है। 45. प्रातःकाल सूर्योदय के समय सविता देवता को प्रणाम कर उत्तम स्वास्थ्य की कामना करें व गायत्री मन्त्र पढ़ें। इससे सूर्य स्नान होता है। नस नाडियों के रोग जैसे सर्वाइकल आदि नहीं होते। 46. वस्त्र सदा ढीलें पहने। नाड़े वाले कुर्ते-पजामे सर्वोतम वेश हैं। कसी जीन्स आदि बहुत घातक होती हैं। 47. जब भी मिठाई खाए, कुल्ला अवश्य करें। 48. घर में तुलसी उगाकर रखें इससे सात्विक ऊर्जा में वृद्धि होती है तथा वास्तु दोष दूर होते हैं। समय-समय पर तुलसी का सेवन करते रहें। 49. मोबाईल पर लम्बी बातें न करें। यह दिमाग में टयूमर व अन्य व्याधियाॅं उत्पन्न कर सकता है। 50. देसी गाय के दूध घी का सेवन करें। देसी गौ का सान्निधय भी बहुत लाभप्रद रहता है। 51. दस-पन्द्रह दिन में एक बार घर में यज्ञ अवश्य करें। अथवा प्रतिदिन घी का दीपक जलाये। 52. ध्यान रहे लम्बे समय तक वासना, ईर्ष्या , द्वेष, घृणा, भय, क्रोध के विचार मन में न रहें अन्यथा ये आपका स्नायु तन्त्र क्षमता उद्ध विकृत कर सकते हैं। यह बड़ा ही दर्दनाक होता है न व्यक्ति जीने लायक होता है न मरने लायक। 53. धन ईमानदारी से कमाने का प्रयास करें। सदा सन्मार्ग पर चलने का अभ्यास करें। इससे आत्मबल बढ़ता है। 54. सदा सकारात्मक सोच रखे। यदि आपने किसी का बुरा नहीं सोचते तो आपके साथ बुरा कैसे हो सकता है। यदि आपसे गलतियाॅं हुई हैं तो उनका प्रायश्चित करें। इससे उनका दण्ड बहुत कम हो जाता है। जैसे डाकू वाल्मिकी ने लोगों को लूटा तो सन्त हो जाने पर बेसहारों को सहारा देने वाला आश्रम बनाया। 55. रोग का उपचार नहीं कारण खोजिए। रोगों का इलाज औषधालय में नहीं भोजनालय में देखिए। 56. यदि किसी को बार-बार जुकाम होता है तो नाक में रात्रि में सोने से पहले दो बूॅंद शुद्ध सरसों का तेल अथवा गाय का घी डालें। इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है। दिमाग तेज होता है व नजला जुकाम आदि विकारों से राहत मिलती है। 57. रात्रि में सोने से पहले पैरों के तलवों पर सरसों के तेल की हल्की मालिश करने से नस नाड़ियां मजबूत होती है व नींद अच्छी आती है। 58. यदि किसी के हृदय की धड़कन बढ़ती है तो यह हृदय की माॅंसपेशियों की कमजोरी दर्शाता है इसके लिए 10 पत्ते पीपल के लेकर दोनों तरफ से थोड़ा-थोड़ा कैंची से काटकर दो गिलास पानी में उबाल लें। जब पानी एक गिलास बचे तो उसको हल्के नाश्ते के बाद 10-10 मिनट के उपरान्त तीन बार पियें। इससे हृदय की माॅंसपेशियाॅं मजबूत होती हैं व धड़कन में राहत मिलती है। यह प्रयोग 10-15 दिन तक कर सकते हैं। 59. घर में प्रतिदिन घी का दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है व परिवार के सदस्यों का तेज बढ़ता है। जिन लोगों को भूत-प्रेत, टोने-टोटकों का भय हो वो कभी-कभी 24 घण्टें अखण्ड दीप जलाएं।

बीमारियों की वजह बन सकता है मोटापा

दुनियाभर में लगभग 2 अरब 10 करोड़ लोग मोटापे के शिकार हैं, जो चिंता का विषय है। मोटापे के प्रकोप और खतरे को देखते हुए 15 से 19 अक्तूबर तक विश्व मोटापा जागरूकता सप्ताह मनाया जाता है। ऐसे में इस समस्या के बारे में जानना बेहत जरूरी है। जानकारी दे रही हैं शमीम खान
मोटापा एक मेडिकल कंडीशन है, जिसमें शरीर पर वसा की परतें इतनी मात्रा में जम जाती हैं कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाती हैं। आज दुनिया की कम-से-कम 20 प्रतिशत आबादी मोटापे से ग्रस्त है। मोटापे को बीमारी नहीं माना जाता, लेकिन माना जाता है कि यह 53 बीमारियों की वजह बन सकता है। इसकी वजह से डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हार्ट फेलियर, अस्थमा, कोलेस्ट्रॉल, अत्यधिक पसीना आना, जोड़ों में दर्द, बांझपन आदि का खतरा बढ़ जाता है। खान-पान की गलत आदतें, जीवनशैली में बदलाव और शारीरिक सक्रियता की कमी के कारण यह समस्या लगातार गंभीर हो रही है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत में स्कूल जाने वाले 20 प्रतिशत बच्चे ओवरवेट हैं।
मोटापे के कारण
तनाव
तनाव के कारण शरीर में कई हार्मोन्स का स्तर बढ़ जाता है, जिनमें एड्रीनलीन और कार्टिसोल प्रमुख हैं। इससे शरीर की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है और पाचन तंत्र गड़बड़ा जाता है, जिससे मोटापा बढ़ता है।
गर्भावस्था
गर्भावस्था के दौरान बच्चे के विकास के कारण महिलाओं का भार बढ़ जाता है। बच्चे के जन्म के बाद भी कई महिलाओं को भार कम करना मुश्किल लगता है और वे मोटापे की शिकार हो जाती हैं।
हार्मोन असंतुलन
हार्मोन असंतुलन पुरुषों और महिलाओं में मोटापे का एक और प्रमुख कारण है, लेकिन यह महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है, क्योंकि उनमें हार्मोन असंतुलन अधिक होता है। तनाव, अनिद्रा, गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन और मेनोपॉज के कारण महिलाओं में हार्मोन्स के स्तर में तेजी से बदलाव आता है, जिस कारण पेट के आसपास चर्बी बढ़ जाती है।
बीमारियां
कई बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, कैंसर, हाइपर थारॉइडिज्म और शरीर में कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर भी मोटापे का कारण होते हैं।
दवाओं के दुष्प्रभाव
कुछ दवाएं जैसे गर्भनिरोधक गोलियां, स्टेरॉयड हार्मोन, डायबिटीज, अवसाद और ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने वाली दवाओं के कारण भी भार बढ़ जाता है।
अनिद्रा
अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि नींद की कमी मोटापे को बढ़ा देती है। जो लोग सामान्य से कम सोते हैं, वे अधिक कैलोरी और कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन खाने को प्राथमिकता देते हैं, जो मोटापा बढ़ने का एक कारण बन जाता है।
शारीरिक सक्रियता की कमी
गैजेट्स के बढ़ते चलन ने शारीरिक सक्रियता में अत्यधिक कमी ला दी है। लोग ऑफिस और घरों में पूरा दिन कम्प्यूटर या टीवी के सामने बिताते हैं, सीढियां चढ़ने के बजाय लिफ्ट का उपयोग करते हैं, पैदल चलने या साइकिल चलाने के बजाय गाडियों में सफर करते हैं, आउटडोर गेम खेलने के बजाय वीडियो गेम खेलना या टीवी देखना पसंद करते हैं। यह मोटापा बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण है।
उम्र बढ़ना
उम्र बढ़ने का मोटापे से सीधा संबंध है। उम्र बढ़ने के साथ मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं, जिससे उनकी कैलोरी जलाने की क्षमता प्रभावित होती है। यह समस्या उन लोगों में और बढ़ जाती है, जो शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होते।
आनुवंशिक कारण
मोटापा बढ़ाने में आनुवंशिक कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता मोटे हैं, जिनकी मेटाबॉलिज्म की दर धीमी है या जिनको डायबिटीज है, उनके मोटापे की चपेट में आने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।
कैसे घटाएं बढ़ा हुआ वजन
खाली पेट कतई न रहें। हर तीन या साढ़े तीन घंटे में भोजन करें। अनाज अधिक मात्रा में खाएं। कोशिश करें कि ओट, बाजरा, गेहूं आपकी खुराक में शामिल हों।
हरी सब्जियां जैसे पालक, मेथी और सरसों खूब खाएं। जितनी बार भोजन करें, उतनी बार आपकी थाली में एक ऐसा पकवान जरूर हो, जिसमें प्रोटीन पाया जाता हो।
पेट और कमर की चर्बी को कम करने के लिए पवनमुक्तासन, जानुशिरासन, पश्चिमोतानासन, मण्डूकासन, उष्ट्रासन,धनुरासन, भुजंगासन, उतानपादासन, नौकासन तथा शशांकासन करें।
घरेलू नुस्खे
रोज सुबह एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद मिला कर पिएं।
एक गिलास पानी में अदरक के कुछ टुकड़े डाल कर उबाल लें, इस पानी को निथार लें। इसमें दो चम्मच नीबू का रस डाल कर पी लें। यह भूख कम करता है।
एक कप गरम पानी में तीन चम्मच नीबू का रस, 0.25 चम्मच काली मिर्च और एक चम्मच शहद मिला कर दिन में एक बार तीन महीने तक पिएं।
ग्रीन टी भी वजन कम करने के लिए बहुत अच्छी है।
मोटापे के दुष्प्रभाव
ऐसे लोगों को चलने, सांस लेने और बैठने में परेशानी होती है।
शरीर में वसा की मात्रा अधिक होने पर सोडियम इकट्ठा हो जाता है। इससे रक्त का दबाव बढ़ जाता है। यह दिल के लिए काफी नुकसानदेह होता है।
मोटापा टाइप टू डायबिटीज की मुख्य वजह है। वसा की मात्रा अधिक होने पर शरीर इंसुलिन के प्रति रेजिस्टेंट हो जाता है।
ब्रेन स्ट्रोक और कार्डिएक अरेस्ट की आशंका बढ़ जाती है।
शरीर के मध्य भाग में अतिरिक्त भार होना पेल्विस को आगे की ओर खींचता है और कमर के निचले हिस्से पर दबाव डालता है। इस अतिरिक्ति भार को संभालने के लिए कमर आगे की ओर झुक जाती है।
वजन अधिक बढ़ने से रीढ़ की हड्डी के छोटे-छोटे जोड़ों में टूट-फूट जल्दी होती है और डिस्क भी जल्दी खराब हो जाती है।
क्या है उपचार
वजन घटाने का सबसे कारगर तरीका खान-पान को नियंत्रित रखना और नियमित रूप से व्यायाम करना है, लेकिन जिन लोगों के लिए यह उपाय कारगर नहीं होते या जो अत्यधिक मोटे हैं, उनके लिए मोटापा कम करने के लिए कई उपचार भी हैं।
वेरी लो कैलोरी डाइट (वीएलसीडी)
इसमें एक दिन में 1,000 से भी कम कैलोरी का सेवन किया जाता है। इससे भार तो तेजी से कम होता है, लेकिन यह हर किसी के लिए उपयुक्त और सुरक्षित नहीं है। इसलिए किसी डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
टमीटक (एब्डोमिनोप्लास्टी)
इसकी सलाह उन्हीं लोगों को दी जाती है, जिनका स्वास्थ्य अच्छा होता है। यह उन लोगों के लिए कारगर है, जिनके पेट पर अत्यधिक मात्रा में वसा जमी है या वजन कम करने के कारण पेट की त्वचा ढीली पड़ गई है। सर्जरी के द्वारा अतिरिक्त वसा, त्वचा, मांसपेशियां, ऊतकों को निकाल दिया जाता है।
गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी
वेट-लॉस सर्जरियों को सामूहिक रूप से बैरियाटिक सर्जरी कहते हैं। इसमें से गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी सबसे अधिक प्रचलित है, क्योंकि इसमें दूसरी सर्जरियों की तुलना में जटिलताएं कम होती हैं। यह दो प्रकार से की जाती है। एक तो आपके भोजन की मात्रा को नियंत्रित करके, दूसरा जो भोजन आप खाते हैं, उसमें से पोषक तत्वों का अवशोषण कम करके या दोनों के द्वारा।
लिपोसक्शन
इसमें त्वचा में एक छोटा-सा कट लगा कर एक पतली और छोटी सी टय़ूब को डाला जाता है। डॉंक्टर इस टय़ूब को त्वचा के अंदर शरीर के उन भागों में घुमाते हैं, जहां वसा का जमाव अधिक है। आधुनिक तकनीकों ने लिपोसक्शन को पहले से अधिक सुरक्षित, आसान और कम पीड़ादायक बना दिया है।
वजन नियंत्रित कैसे रखें
नाश्ता नहीं करना मोटापे का एक प्रमुख कारण है। नाश्ता न करने से वजन को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल होता है।
ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर का एक निश्चित समय बना लें। इससे शरीर इस रूटीन को फॉलो करने लगेगा।
सुबह उठने के बाद ज्यादा देर तक भूखे न रहें और रात को सोने से दो घंटा पहले खाना खा लें।
सब्जियां और फल खाएं। इससे आपका पेट भी भरा हुआ लगेगा और खाने में कैलोरी भी कम आएगी।
मेगा मील की बजाय मिनी मील खाएं। हर तीन-चार घंटे में कुछ खाते रहें। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि उन लोगों में वसा का जमाव ज्यादा होता है, जो कम बार में अधिक भोजन खाते हैं।
फाइबर मेटाबॉलिज्म को दुरुस्त रखता है, भूख को कम करता है। भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ा दें।
व्यायाम-योग से मोटापे को काबू में रखा जा सकता है। इससे पाचन दुरुस्त रहता है, वसा कम होती है।
ऐसी चीजें जिनमें स्टार्च हो जैसे आलू, मटर या कॉर्न का सेवन कम करें। एक दिन में लगभग छह सौ ग्राम हरी सब्जियां खाने की कोशिश करें।
दिन के पहले हिस्से में ही फल खाएं। ज्यादा मिठास वाले फलों से परहेज करें।

फेंफड़ा मजबूत तो दिमाग तेज

फेंफड़े हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग हैं, जिन्हें अंग्रेजी में (Lung) कहते हैं। इसके खराब होने से अस्थमा, टीबी, दमा या फेंफड़े से संबंधित अन्य कोई भी गंभीर रोग हो सकता है।img1121004041_1_1

फेंफड़ों के स्वस्थ्य रहने से जहां संपूर्ण शरीर स्वस्थ्य रहता है वहीं यह दिमाग को भी सेहतमंद बनाए रखता है। एक शोध से पता चला है कि फेंफड़ों का स्वास्थ्य का असर दिमाग पर पड़ता है। फेंफड़ों में भरपूर शुद्ध हवा से दिमाग में ऑक्सिजन की पूर्ति होती रहती है।

कैसे होता है फेंफड़ा खराब : फेंफड़े मुख्यत: धूम्रपान, तम्बाकू और वायु प्रदूषण के अलावा फंगस, ठंडी हवा, भोजन में कुछ पदार्थ, ठंडे पेय, धुएँ, मानसिक तनाव, इत्र और रजोनिवृत्ति जैसे अनेक कारणों से फेंफड़ा रोग ग्रस्त हो सकता है। व्यक्ति की नाक, गला, त्वचा आदि पर इसका परिणाम एलर्जी कहलाता है।

कैसे बनाएं फेंफड़े को स्वस्थ : फेंफड़ों को स्वस्थ्य और मजबूत बनाए रखने के लिए अनुलोम-विलोम का अभ्यास करने के ‍बाद कपालभाति, भस्त्रिका और कुम्भक प्राणायाम करने चाहिए। इसके बाद त्रिबंधासन का अभ्यास करें। त्रिबंधासन में तीनों बंध (उड्डीयान, जालंधर और मूलबंध) को एक साथ लगाकर अभ्यास किया जाता है। बस इतना पर्याप्त है।

एक्ट्रा एफर्ट : इसके बाद यदि आप करना चाहें तो ब्रह्ममुद्रा 10 बार, कन्धसंचालन 10 बार (सीधे-उल्टे), मार्जगसन 10 बार, शशकासन 2 बार (10 श्वास-प्रश्वास के लिए), वक्रासन 10 श्वास के लिए, भुजंगासन 3 बार (10 श्वास के लिए), धनुरासन 2 बार (10 श्वास-प्रश्वास के लिए), पाश्चात्य प्राणायाम (10 बार गहरी श्वास के साथ), उत्तानपादासन 2 बार, 10 सामान्य श्वास के लिए, शवासन 5 मिनट, नाड़ीसांधन प्राणायाम 10-10 बार एक स्वर से, कपालभाति 50 बार, भस्त्रिका कुम्भक 10 बार, जल्दी-जल्दी श्वास-प्रश्वास के बाद कुम्भक यथाशक्ति 3 बार दोहराना था।

सावधानी- सभी प्राणायाम, बंध या आसन का अभ्यास स्वच्छ व हवायुक्त स्थान पर करना चाहिए। पेट, फेंफड़े, गुदा और गले में किसी भी प्रकार का गंभीर रोग हो तो चिकित्सक की सलाह लें।

इसके लाभ- फेंफड़े के अलावा इससे गले, गुदा, पेशाब और पेट संबंधी रोग भी दूर होते हैं। इसके अभ्यास से दमा, अति अमल्ता, अर्जीण, कब्ज, अपच आदि रोग दूर होते हैं। इससे चेहरे की चमक बढ़ती है। अल्सर कोलाईटिस रोग ठीक होता है और फेफड़े की दूषित वायु निकलने से हृदय की कार्यक्षमता भी बढ़ती है।

इस तरह ली गई साँसें घटाएँगी तनाव..

साँस लेना जिंदा रहने की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जब हम उत्तेजित होते हैं तब साँसें बहुत तेज गति से चलने लगती हैं और शांत अवस्था में इनकी गति धीमी हो जाती है। इसको इस तरह भी कहा जा सकता है कि यदि प्रयत्नपूर्वक धीमी गति से साँस लेंगे तो तनाव शिथिल होगा।img1111223203_1_1

प्राणायाम और की सभी प्रक्रियाएँ तनाव शैथिल्य के कारगर उपाय समझे जाते हैं। यदि आप दाहिने ओर के नथुने को बंद कर बाईं तरफ के नथुनों से साँस लेते हैं तो तनाव दूर होता है, इसी के उलट दाहिने नथुने से साँस लेने पर तत्काल ऊर्जा हासिल होती है। हम अपनी सामान्य जिंदगी में फेफड़ों का पूरी क्षमता से कभी इस्तेमाल ही नहीं करते।

इसके लिए अलग से किए गए अभ्यास से यह फायदा होगा कि धीरे-धीरे यह आदत में शामिल हो जाएगा। बुरी आदतों को दूर करने में भी प्राणायाम की क्रियाएँ सहयोग कर सकती हैं। बुरी आदतों के पैटर्न को हमेशा के लिए तोड़ने में साँसों का महत्वपूर्ण स्थान है। मस्तिष्क में गहरे तक जम चुकी आदतों को केवल योगाभ्यास से ही दूर किया जा सकता है।

लंबी और गहरी साँस…
फेफड़ों से पूरी क्षमता का काम लेना हो तो उसे ऑक्सीजन से भरना जरूरी है। इसके लिए लंबी और गहरी साँस ही मुफीद होगी। स्वास और प्रच्छवास दोनों लंबे और धीमी गति से पूर्ण किए जाने चाहिए। आमतौर पर ऐसा सिर्फ नाक से साँस लेने पर ही किया जा सकता है। मुँह से साँस लेकर भी इसकी गति को धीमे किया जा सकता है लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे।

कैसे करें…
*पद्मासन अथवा सुखासन में रीढ़ की हड्डी बिलकुल सीधी रखते हुए बैठें।
*दाहिने नथुने को सीधे हाथ के अँगूठे से बंद कर लें। शेष अँगुलियों को आकाश की ओर रखें।
*बाएँ नथुने से फेफड़ों में साँस भरकर अंदर रोक लें। इस नथुने को अंगुलियों की मदद से बंद कर लें। धीरे-धीरे साँस दाहिने नथुने से बाहर निकाल दें।
*अब दाएँ नथुने से साँस अंदर की ओर भरें। अँगूठे की मदद से इसे बंद कर लें और थोड़ी देर रुककर बाएँ नथुने से बाहर निकाल दें। ऐसा 5 से 10 मिनट तक नियमित रूप से करें।

फायदा…
*शरीर में ऑक्सीजन का बहाव बढ़ेगा। इससे शरीर के प्रत्येग अंग में नई ऊर्जा का संचार होगा और रोगविहीन शरीर हासिल होगा। मन की उद्विग्नता शांत होगी।
*फेफड़ों में पहले से जमा विषैले पदार्थ बाहर निकलेंगे।
*एंडोर्फिन का उत्पादन बढ़ेगा जिससे अवसाद दूर होगा।
*फेफड़ों को अतिरिक्त फुलाने से एकाग्रता, धैर्य, लचीलापन तथा प्रतिरोध शक्ति बढ़ेगी। इससे पिट्यूटरी ग्रंथि का स्राव बढ़ेगा जिससे अंतर्दृष्टि भी बढ़ेगी।
*इससे रीढ़ की हड्डी के स्राव का बहाव मस्तिष्क की ओर बढ़ेगा जिससे संपूर्ण शरीर की ऊर्जा में भी वृद्धि होगी।
*आभामंडल बढ़ेगा और असुरक्षा की भावना खत्म होगी साथ ही भय भी जाता रहेगा।
*रक्त शुद्धि होगी।
*नकारात्मक भावनाओं पर नियंत्रण हो सकेगा और जिससे बुरी आदतों पर लगाम लगेगी। पुराना ढर्रा भी टूट सकेगा।

संतुलन बढ़ेगा….
*मस्तिष्क के दोनों हिस्सों का संतुलन बढ़ेगा।
*प्रभावशीलता और शांति में इजाफा होगा।
*मानसिक स्थिति में बदलाव होगा।
*किसी प्रेजेंटेशन अथवा महत्वपूर्ण मीटिंग जिसमें आपके नर्वस होने के अवसर अधिक हों उसमें जाने से पहले ये यौगिक क्रियाएँ अवश्य करें। इससे आपको नर्वसनेस पर काबू पाने में मदद मिलेगी। आपकी घबराहट शांत रहेगी और आप किसी प्रश्न का उत्तर बिना उत्तेजित हुए दे सकेंगे।
*जीवन में लगातार तनावग्रस्त रहते हों तो प्रतिदिन इन यौगिक क्रियाओं से आपको बहुत फायदा होगा।