शतावरी

🐚शतावरी 🐚

” शतावरी हिमतिक्ता स्वादीगुर्वीरसायनीसुस्निग्ध शुक्रलाबल्यास्तन्य मेदोs ग्निपुष्टिदा ..!!
चक्षु स्यागत पित्रास्य, गुल्मातिसारशोथजित…उदधृत किया है ..तो शतावरी एक बुद्धिवर्धक, अग्निवर्धक, शुक्र दौर्बल्य को दूर करनेवाली स्तन्यजनक औषधि है …!!
शतावरी एक झाड़ीनुमा लता के बारे में बताते है , जिसमें फूल मंजरियों में एक से दो इंच लम्बे एक या गुच्छे में लगे होते हैं और फल मटर के समान पकने पर लाल रंग के होते हैं..नाम है “शतावरी” ..I
★आपने विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों में इसके प्रयोग को अवश्य ही जाना होगा ..अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं, इसके प्रयोग को ..!
★आयुर्वेद के आचार्यों के अनुसार , शतावर पुराने से पुराने रोगी के शरीर को रोगों से लड़ने क़ी क्षमता प्रदान करता है …I
★ इसे शुक्रजनन, शीतल, मधुर एवं दिव्य रसायन भी माना गया है I महर्षि चरक ने भी शतावर को बल्य और वयः स्थापक ( चिर यौवन को बरकार रखने वाला) माना है.I
★ आधुनिक शोध भी शतावरी क़ी जड़ को हृदय रोगों में प्रभावी मान चुके हैं I अब हम आपको शतावरी के कुछ आयुर्वेदिक योग क़ी जानकारी देंगे , ..जिनका औषधीय प्रयोग चिकित्सक के निर्देशन में करना अत्यंत लाभकारी होगा …!
★यदि आप नींद न आने क़ी समस्या से परेशान हैं तो बस शतावरी क़ी जड़ को खीर के रूप में पका लें और थोड़ा गाय का घी डालें , इससे आप तनाव से मुक्त होकर अच्छी नींद ले पायेंगे ..!
★ शतावरी क़ी ताज़ी जड़ को यव (जौ) कूट करें, इसका स्वरस निकालें और इसमें बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर पका लें, हो गया मालिश का तेल तैयार …इसे माइग्रेन जैसे सिरदर्द में लगायें और लाभ देखें I
★यदि रोगी खांसते-खांसते परेशान हो तो शतावरीचूर्ण – 1.5 ग्राम ,वासा के पत्ते का स्वरस 2.5 मिली , मिश्री के साथ लें और लाभ देखें I
★ प्रसूता स्त्रियों में दूध न आने क़ी समस्या होने पर शतावरी का चूर्ण -पांच ग्राम गाय के दूध के साथ देने से लाभ मिलता है ..!
★ यदि पुरुष यौन शिथिलता से परेशान हो तो शतावरी पाक या केवल इसके चूर्ण को दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है I
★ यदि रोगी को मूत्र या मूत्रवह संस्थान से सम्बंधित विकृति हो तो शतावरी को गोखरू के साथ लेने से लाभ मिलता है I
★ शतावरी के पत्तियों का कल्क बनाकर घाव पर लगाने से भी घाव भर जाता है …!
★ यदि रोगी स्वप्न दोष से पीड़ित हो तो शतावरी मूल का चूर्ण -2.5 ग्राम , मिश्री -2.5 ग्राम को एक साथ मिलाकर …पांच ग्राम क़ी मात्रा में रोगी को सुबह शाम गाय के दूध के साथ देने से प्रमेह , प्री -मेच्युर -इजेकुलेशन (स्वप्न-दोष ) में लाभ मिलता है I
★गाँव के लोग इसकी जड़ का प्रयोग गाय या भैंसों को खिलाते हैं, तो उनकी दूध न आने क़ी समस्या में लाभ मिलता पाया गया है …अतः इसके ऐसे ही प्रभाव प्रसूता स्त्रियों में भी देखे गए हैं I
★ शतावरी के जड के चूर्ण को पांच से दस ग्राम क़ी मात्रा में दूध से नियमित से सेवन करने से धातु वृद्धि होती है !
★ वातज ज्वर में शतावरी के रस एवं गिलोय के रस का प्रयोग या इनके क्वाथ का सेवन ज्वर (बुखार) से मुक्ति प्रदान करता है ..I
★ शतावरी के रस को शहद के साथ लेने से जलन , दर्द एवं अन्य पित्त से सम्बंधित बीमारीयों में लाभ मिलता है …I..

ब्रम्हवृक्ष पलाश

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पलाश को हिंदी में ढ़ाक, टेसू, बंगाली में पलाश, मराठी में पळस, गुजराती में केसुडा कहते है | इसके पत्त्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी – पात्र में किये भोजन तुल्य लाभ मिलते है |

पलाश के फुल : प्रेमह (मुत्रसंबंधी विकारों) में: पलाश-पुष्प का काढ़ा (५० मि.ली.) मिश्री मिलाकर पिलायें |

रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में : फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है | आँखे आने पर (Conjunctivitis)फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजे |

वीर्यवान बालक की प्राप्ति : एक पलाश-पुष्प पीसकर, उसे दूध में मिला के गर्भवती माता को रोज पिलाने से बल-वीर्यवान संतान की प्राप्ति होती है |

पलाश के बीज : ३ से ६ ग्राम बीज-चूर्ण सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें | चौथे दिन सुबह १० से १५ मि.ली. अरंडी का तेल गर्म दूध में मिलाकर पिलाने से कृमि निकल जायेंगे |

पत्ते : पलाश व बेल के सूखे पत्ते, गाय का घी व मिश्री समभाग मिला के धुप करने से बुद्धि की शुद्धि व वृद्धि होती है |

बवासीर में : पलाश के पत्तों की सब्जी घी व तेल में बनाकर दही के साथ खायें |

छाल : नाक, मल-मूत्र मार्ग या योनि द्वारा रक्तस्त्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (५० मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें |

पलाश का गोंद : पलाश का १ से ३ ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध या आँवला रस के साथ लेने से बल-वीर्य की वृद्धी होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं | यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है |

सीताफल – Custard Apple

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अगस्त से नवम्बर के आस-पास अर्थात् आश्विन से माघ मास के बीच आने वाला सीताफल, एक स्वादिष्ट फल है।

आयुर्वेद के मतानुसार सीताफल शीतल, पित्तशामक, कफ एवं वीर्यवर्धक, तृषाशामक, पौष्टिक, तृप्तिकर्ता, मांस एवं रक्तवर्धक, उलटी बंद करने वाला, बलवर्धक, वातदोषशामक एवं हृदय के लिए हितकर है।

आधुनिक विज्ञान के मतानुसार सीताफल में कैल्शियम, लौह तत्त्व, फासफोरस, विटामिन – थायमीन, राईबोफ्लेविन एवं विटामिन सी आदि अच्छे प्रमाण में होते हैं।

जिन लोगों की प्रकृति गर्म अर्थात् पित्तप्रधान है उनके लिए सीताफल अमृत के समान गुणकारी है।

औषधी प्रयोगः

हृदय पुष्टिः जिन लोगों का हृदय कमजोर हो, हृदय का स्पंदन खूब ज्यादा हो, घबराहट होती हो, उच्च रक्तचाप हो ऐसे रोगियों के लिए भी सीताफल का सेवन लाभप्रद है। ऐसे रोगी सीताफल की ऋतु में उसका नियमित सेवन करें तो उनका हृदय मजबूत एवं क्रियाशील बनता है।

भस्मक (भूख शांत न होना)- जिन्हें खूब भूख लगती हो, आहार लेने के उपरांत भी भूख शांत न होती हो – ऐसे भस्मक रोग में भी सीताफल का सेवन लाभदायक है।

सावधानीः सीताफल गुण में अत्यधिक ठंडा होने के कारण ज्यादा खाने से सर्दी होती है। कइयों को ठंड लगकर बुखार आने लगता है, अतः जिनकी कफ-सर्दी की तासीर हो वे सीताफल का सेवन न करें। जिनकी पाचनशक्ति मंद हो, बैठे रहने का कार्य करते हों, उन्हें सीताफल का सेवन बहुत सोच-समझकर सावधानी से करना चाहिए, अन्यथा लाभ के बदले नुक्सान होता है।

अमृतफल बिल्व – Aegle Marmelos

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बेल या बिल्व(aegle marmelos) का अर्थ हैःरोगान् बिलति भिनत्ति इति बिल्वः। जो रोगों का नाश करे वह बिल्व। बेल के विधिवत् सेवन से शरीर स्वस्थ और सुडोल बनता है। बेल की जड़, उसकी शाखाएँ, पत्ते, छाल और फल, सब के सब औषधियाँ हैं। बेल में हृदय को ताकत और दिमाग को ताजगी देने के साथ सात्त्विकता प्रदान करने का भी श्रेष्ठ गुण है। यह स्निग्ध, मुलायम और उष्ण होता है। इसके गूदे, पत्तों तथा बीजों में उड़नशील तेल पाया जाता है, जो औषधीय गुणों से भरपूर होता है। कच्चे और पके बेलफल के गुण तथा उससे होने वाले लाभ अलग-अलग प्रकार के होते हैं।

कच्चा बेलफल भूख तथा पाचनशक्ति बढ़ानेवाला, कृमियों का नाश करने वाला है। यह मल के साथ बहने वाले जलयुक्त भाग का शोषण करने वाला होने के कारण अतिसार रोग में अत्यंत हितकर है। इसके नियमित सेवन से कॉलरा (हैजा) से रक्षण होता है।

पका हुआ फल मधुर, कसैला, पचने में भारी तथा मृदु विरेचक है। इसके सेवन से दस्त साफ होते हैं।

औषधि प्रयोगः2i1l848

उलटीः बेलफल के छिलके का 30 से 50 मि.ली. काढ़ा शहद मिलाकर पीने से त्रिदोषजन्य उलटी में आराम मिलता है।

गर्भवती स्त्रियों को उलटी व अतिसार होने पर कच्चे बेलफल के 20 से 50 मि.ली. काढ़े में सत्तू का आटा मिलाकर देने से भी राहत मिलती है।

बार-बार उलटियाँ होने पर और अन्य किसी भी चिकित्सा से राहत न मिलने पर बेलफल के गूदे का 5 ग्राम चूर्ण चावल की धोवन के साथ लेने से आराम मिलता है।

संग्रहणीः इस व्याधि में पाचनशक्ति अत्यंत कमजोर हो जाती है। बार-बार दुर्गन्धयुक्त चिकने दस्त होते हैं। इसके लिए 2 बेलफल का गूदा 400 मि.ली. पानी में उबालकर छान लें। फिर ठंडी कर उसमें 20 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करें।

पुरानी जीर्ण संग्रहणीः बेल का 100 ग्राम गूदा प्रतिदिन 250 ग्राम छाछ में मसलकर पियें।

पेचिश(Dysentery)- बेलफल आँतों को ताकत देता है। एक बेल के गूदे से बीज निकालकर सुबह शाम सेवन करने से पेट में मरोड़ नहीं आती।

जलनः 200 मि.ली. पानी में 25 ग्राम बेल का गूदा, 25 ग्राम मिश्री मिलाकर शरबत पीने से छाती, पेट, आँख या पाँव की जलन में राहत मिलती है।

मुँह के छालेः एक बेल का गूदा 100 ग्राम पानी में उबालें, ठंडा हो जाने पर उस पानी से कुल्ले करें। छाले मिट जायेंगे।

मधुमेहः बेल एवं बकुल की छाल का 2 ग्राम चूर्ण दूध के साथ लें अथवा 15 बिल्वपत्र और 5 काली मिर्च पीसकर चटनी बना लें। उसे एक कप पानी में घोलकर पीने से मधुमेह ठीक हो जाता है। इसे लम्बे समय, एक दो साल तक लेने से मधुमेह स्थायी रूप से ठीक होता है।

दिमागी थकावटः एक पके बेल का गूदा रात्रि के समय पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रखें। सुबह छानकर इसमें मिश्री मिला लें और प्रतिदिन पियें। इससे दिमाग तरोताजा हो जाता है।

कान का दर्द, बहरापनः बेलफल को गोमूत्र में पीसकर उसे 100 मि.ली. दूध, 300 मि.ली. पानी तथा 100 मि.ली. तिल के तेल में मिलाकर धीमी आँच पर उबालें। यह बिल्वसिद्ध तेल प्रतिदिन 4-4 बूँद कान में डालने से कान के दर्द तथा बहरेपन में लाभ होता है।

पाचनः पके हुए बेलफल का गूदा निकालकर उसे खूब सुखा लें। फिर पीसकर चूर्ण बनायें। इसमें पाचक तत्त्व पूर्ण रूप से समाविष्ट होता है। आवश्यकता पड़ने पर 2 से 5 ग्राम चूर्ण पानी में मिलाकर सेवन करने से पाचन ठीक होता है। इस चूर्ण को 6 महीने तक ही प्रयोग में लाया जा सकता है।

गाजर – Carrot

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गाजर को उसके प्राकृतिक रूप में ही अर्थात् कच्चा खाने से ज्यादा लाभ होता है। उसके भीतर का पीला भाग निकाल कर खाना चाहिए क्योंकि वह अत्यधिक गरम होता है, अतः पित्तदोष, वीर्यदोष एवं छाती में दाह उत्पन्न करता है।

गाजर स्वाद में मधुर कसैली कड़वी, तीक्ष्ण, स्निग्ध, उष्णवीर्य, गरम, दस्त ठीक करने वाली, मूत्रल, हृदय के लिए हितकर, रक्त शुद्ध करने वाली, कफ निकालनेवाली, वातदोषनाशक, पुष्टिवर्धक तथा दिमाग एवं नस नाड़ियों के लिए बलप्रद है। यह अफरा, संग्रहणी, बवासीर, पेट के रोगों, सूजन, खाँसी, पथरी, मूत्रदाह, मूत्राल्पता तथा दुर्बलता का नाश करने वाली है।

गाजर के बीज गरम होते हैं अतः गर्भवती महिलाओं को उपयोग कभी नहीं करना चाहिए। इसके बीज पचने में भी भारी होते हैं। गाजर में आलू से छः गुना ज्यादा कैल्शियम होता है। कैल्शियम एवं केरोटीन की प्रचुर मात्रा होने के कारण छोटे बच्चों के लिए यह एक उत्तम आहार है। रूसी डॉ. मेकनिकोफ के अनुसार गाजर में आँतों के हानिकारक जंतुओं को नष्ट करने का अदभुत गुण पाया जाता है। इसमें विटामिन ए भी काफी मात्रा में पाया जाता है, अतः यह नेत्ररोगों में भी लाभदायक है।

गाजर रक्त शुद्ध करती है। 10-15 दिन तक केवल गाजर के रस पर रहने से रक्तविकार, गाँठ, सूजन एवं पांडुरोग जैसे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। इसमें लौह-तत्त्व भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। खूब चबाकर गाजर खाने से दाँत मजबूत, स्वच्छ एवं चमकदार होते हैं तथा मसूढ़ें मजबूत बनते हैं।

सावधानीः गाजर के भीतर का पीला भाग खाने से अथवा गाजर के खाने के बाद 30 मिनट के अंदर पानी पीने से खाँसी होती है। अत्यधिक मात्रा में गाजर खाने से पेट में दर्द होता है। ऐसे समय में थोड़ा गुड़ खायें। अधिक गाजर वीर्य का क्षय करती है। पित्तप्रकृति के लोगों को गाजर का क्रम एवं सावधानीपूर्वक उपयोग करना चाहिए।

औषधि प्रयोगः

दिमागी कमजोरीः गाजर के रस का नित्त्य सेवन करने से दिमागी कमजोरी दूर होती है।

सूजनः सब आहार त्यागकर केवल गाजर के रस अथवा उबली हुई गाजर पर रहने से मरीज को लाभ होता है।

मासिक न दिखने पर या कष्टार्तवः मासिक कम आने पर या समय होने पर भी न आने पर गाजर के 5 ग्राम बीजों को 20 ग्राम गुड़ के साथ काढ़ा बनाकर लेने से लाभ होता है। एलोपैथिक गोलियाँ जो मासिक को नियमित करने के लिए ली जाती हैं, वे अत्यधिक हानिकारक होती हैं। भूल से भी इसक सेवन न करें।

आधासीसीः गाजर के पत्तों पर दोनों ओर घी लगाकर उन्हें गर्म करें। फिर उनका रस निकालकर 2-3 बूँदें गाम एवं नाक में डालें। इससे आधासीसी (आधा सिर) का दर्द मिटता है।

श्वास-हिचकीः गाजर के रस की 4-5 बूंदें दोनों नथुनों में डालने से लाभ होता है।

नेत्ररोगः दृष्टिमंदता, रतौंधी, पढ़ते समय आँखों में तकलीफ होना आदि रोगों में कच्ची गाजर या उसके रस का सेवन लाभप्रद है। यह प्रयोग चश्मे का नंबर घटा सकता है।

पाचन सम्बन्धी गड़बड़ीः अरुचि, मंदाग्नि, अपच, आदि रोगों में गाजर के रस में नमक, धनिया, जीरा, काली मिर्च, नींबू का रस डालकर पियें अथवा गाजर का सूप बनाकर पियें।

पेशाब की तकलीफः गाजर का रस पीने से पेशाब खुलकर आता है, रक्तशर्करा भी कम होती है। गाजर का हलवा खाने से पेशाब में कैल्शियम, फास्फोरस का आना बंद हो जाता है।

जलने परः जलने से होने वाले दाह में प्रभावित अंग पर बार-बार गाजर का रस लगाने से

लाभ होता है।

जामुन – jambul

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जामुन अग्निप्रदीपक, पाचक, स्तंभक (रोकनेवाला) तथा वर्षा ऋतु में अनेक रोगों में उपयोगी है। जामुन में लौह तत्त्व पर्याप्त मात्रा में होता है, अतः पीलिया के रोगियों के लिए जामुन का सेवन हितकारी है। जामुन यकृत, तिल्ली और रक्त की अशुद्धि को दूर करते हैं। जामुन खाने से रक्त शुद्ध तथा लालिमायुक्त बनता है। जामुन मधुमेह, पथरी, अतिसार, पेचिश, संग्रहणी, यकृत के रोगों और रक्तजन्य विकारों को दूर करता है। मधुमेह के रोगियों के लिए जामुन के बीज का चूर्ण सर्वोत्तम है।

सावधानीः जामुन सदा भोजन के बाद ही खाना चाहिए। भूखे पेट जामुन बिल्कुल न खायें। जामुन खाने के तत्काल बाद दूध न पियें।

जामुन वातदोष नाश करने वाले हैं अतः वायुप्रकृतिवालों तथा वातरोग से पीड़ित व्यक्तियों को इनका सेवन नहीं करना चाहिए। शरीर पर सूजन व उलटी दीर्घकालीन उपवास करने वाले तथा नवप्रसूताओं को इनका सेवन नहीं करना चाहिए।

जामुन पर नमक लगाकर ही खायें। अधिक जामुन का सेवन करने पर छाछ में नमक डाल कर पियें।

औषधि-प्रयोगः

मधुमेहः मधुमेह के रोगी को नित्य जामुन खाने चाहिए। अच्छे पके जामुन सुखाकर, बारीक कूटकर बनाया गया चूर्ण प्रतिदिन 1-1 चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।

प्रदररोगः कुछ दिनों तक जामुन के वृक्ष की छाल के काढ़े में शहद (मधु) मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से स्त्रियों का प्रदर रोग मिटता है।

मुँहासेः जामुन के बीज को पानी में घिसकर मुँह पर लगाने से मुँहासे मिटते हैं।

आवाज बैठनाः जामुन की गुठलियों को पीसकर शहद में मिलाकर गोलियाँ बना लें। 2-2 गोली नित्य 4 बार चूसें। इससे बैठा गला खुल जाता है। आवाज का भारीपन ठीक हो जाता है। अधिक बोलने वालों के लिए यह विशेष चमत्कारी योग है।

स्वप्नदोषः जामुन की गुठली का 4-5 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ लेने से स्वप्नदोष ठीक होता है।

दस्तः जामुन के पेड़ की पत्तियाँ (न ज्यादा पकी हुईं न ज्यादा मुलायम) लेकर पीस लें। उसमें जरा-सा सेंधा नमक मिलाकर उसकी गोलियाँ बना लें। 1-1 गोली सुबह-शाम पानी के साथ लेने से कैसे भी तेज दस्त हों, बंद हो जाते हैं।

जमीकन्द (सूरन) – Yam

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आयुर्वेद के मतानुसार सभी प्रकार की कन्द, सब्जियों में सूरन सर्वश्रेष्ठ है। बवासीर के रोगियों को वैद्य सूरन एवं छाछ पर रहने के लिए कहते हैं। आयुर्वेद में इसीलिए इसे अर्शोघ्न भी कहा गया है।

गुणधर्मः सूरन पचने में हलका, रुक्ष, तीक्ष्ण, कड़वा, कसैला और तीखा, उष्णवीर्य, कफ एवं वातशामक, रुचिवर्धक, शूलहर, मासिक बढ़ानेवाला, बलवर्धक, यकृत के लिए उत्तेजक तथा बवासीर (अर्श), गुल्म व प्लीहा के दर्द में पथ्यकारक है।

सूरन की दो प्रजातियाँ पायी जाती हैं – लाल और सफेद। लाल सूरन को काटने से हाथ में खुजली होती है। यह औषधि में ज्यादा प्रयुक्त होता है जबकि सफेद सूरन का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है।

सफेद सूरन अरुचि, अग्निमाद्य, कब्जियत, उदरशूल, गुल्म (वायुगोला), आमवात, यकृत-प्लीहा के मरीजों के लिए तथा कृमि, खाँसी एवं श्वास की तकलीफों वालों के लिए उपयोगी है। सूरन पोषक रसों को बढ़ाकर शरीर में शक्ति उत्पन्न करता है।

लाल सूरन स्वाद में कसैला, तीखा, पचने में हल्का, रुचिकर, दीपक, पाचक, पित्त करने वाला एवं दाहक है तथा कृमि, कफ, वायु, दमा, खाँसी, उलटी, शूल, वायुगोला आदि रोगों का नाशक है। यह उष्णवीर्य, जलन उत्पन्न करने वाला, वाजीकारक, कामोद्दीपक, मेदवृद्धि, बवासीर एवं वायु तथा कफ विकारों से उत्पन्न रोगों के लिए विशेष लाभदायक है।

सावधानीः हृदयरोग, रक्तस्राव एवं कोढ़ के रोगियों को सूरन का सेवन नहीं करना चाहिए।
सूरन की सब्जी ज्यादा कड़क या कच्ची न रहे इस ढंग से बनानी चाहिए। ज्यादा कमजोर लोगों के लिए सूरन का अधिक सेवन हानिकारक है। सूरन से मुँह आना, कंठदाह या खुजली जैसा हो तो नींबू अथवा इमली का सेवन करें।

औषधि-प्रयोगः

बवासीर (मस्से-अर्श)- सूरन के टुकड़ों को पहले उबाल लें और फिर सुखाकर उनका चूर्ण बना लें। 320 ग्राम यह चूर्ण 160 ग्राम चित्रक, 40 ग्राम सोंठ, 20 ग्राम काली मिर्च एवं 1 किलो गुड़। इन सबको मिलाकर बेर जैसी छोटी-छोटी गोलियाँ बना लें। इसे सूरन वटक कहते हैं। प्रतिदिन सुबह शाम 3-3 गोलियाँ खाने से बवासीर में बहुत लाभ होता है।

सूरन के टुकड़ों को भाप में पकाकर तथा तिल के तेल में बनायी गयी सब्जी का सेवन करने से एवं ऊपर से छाछ पीने से सभी प्रकार की

बवासीर में लाभ होता है। यह प्रयोग 30 दिन तक करें।

पुनर्नवा (साटी) Punarnava

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पुनर्नवा का संस्कृत पर्याय ‘शोथघ्नी’ (सूजन को हरनेवाली) है। पुनर्नवा (साटी) या विषखपरा के नाम से विख्यात यह वनस्पति वर्षा ऋतु में बहुतायत से पायी जाती है। शरीर की आँतरिक एवं बाह्य सूजन को दूर करने के लिए यह अत्यंत उपयोगी है।

यह तीन प्रकार की होती हैः सफेद, लाल, एवं काली। काली पुनर्नवा प्रायः देखने में भी नहीं आती, सफेद ही देखने में आती है। काली प्रजाति बहुत कम स्थलों पर पायी जाती है। जैसे तांदूल तथा पालक की भाजी बनाते हैं, वैसे ही पुनर्नवा की सब्जी बनाकर खायी जाती है। इसकी सब्जी शोथ (सूजन) की नाशक, मूत्रल तथा स्वास्थ्यवर्धक है।

पुनर्नवा कड़वी, उष्ण, तीखी, कसैली, रूच्य, अग्निदीपक, रुक्ष, मधुर, खारी, सारक, मूत्रल एवं हृदय के लिए लाभदायक है। यह वायु, कफ, सूजन, खाँसी, बवासीर, व्रण, पांडुरोग, विषदोष एवं शूल का नाश करती है।

पुनर्नवा में से पुनर्नवादि क्वाथ, पुनर्नवा मंडूर, पुनर्नवामूल धनवटी, पुनर्नवाचूर्ण आदि औषधियाँ बनती हैं।

बड़ी पुनर्नवा को साटोड़ी (वर्षाभू) कहा जाता है। उसके गुण भी पुनर्नवा के जैसे ही हैं।punarnava-2

औषधि-प्रयोगः

नेत्रों की फूलीः पुनर्नवा की जड़ को घी में घिसकर आँखों में आँजें।

नेत्रों की खुजलीः पुनर्नवा की जड़ को शहद अथवा दूध में घिसकर आँजने से लाभ होता है।

नेत्रों से पानी गिरनाः पुनर्नवा की जड़ को शहद में घिसकर आँखों में आँजने से लाभ होता है।

रतौंधीः पुनर्नवा की जड़ को काँजी में घिसकर आँखों में आँजें।

खूनी बवासीरः पुनर्नवा की जड़ को हल्दी के काढ़े में देने से लाभ होता है।

पीलियाः पुनर्नवा के पंचांग (जड़, छाल, पत्ती, फूल और बीज) को शहद एवं मिश्री के साथ लें अथवा उसका रस या काढ़ा पियें।

मस्तक रोग व ज्वर रोगः पुनर्नवा के पंचांग का 2 ग्राम चूर्ण 10 ग्राम घी एवं 20 ग्राम शहद में सुबह-शाम देने से लाभ होता है।

जलोदरः पुनर्नवा की जड़ के चूर्ण को शहद के साथ खायें।

सूजनः पुनर्नवा की जड़ का काढ़ा पिलाने एवं सूजन पर लेप करने से लाभ होता है।

पथरीः पुनर्नवामूल को दूध में उबालकर सुबह-शाम पियें।

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विषः 

चूहे का विषः सफेद पुनर्नवा के मूल का 2-2 ग्राम चूर्ण 10 ग्राम शहद के साथ दिन में 2 बार दें।

पागल कुत्ते का विषः सफेद पुनर्नवा के मूल का 25 से 50 ग्राम रस, 20 ग्राम घी में मिलाकर रोज पियें।

विद्राधि (फोड़ा)- पुनर्नवा के मूल का काढ़ा पीने से कच्चा अथवा पका हुआ फोड़ा भी मिट जाता है।

अनिद्राः पुनर्नवा के मूल का क्वाथ 100-100 मि.ली. दिन में 2 बार पीने से निद्रा अच्छी आती है।

संधिवातः पुनर्नवा के पत्तों की भाजी सोंठ डालकर खायें।

वातकंटकः वायुप्रकोप से पैर की एड़ी में वेदना होती हो तो पुनर्नवा में सिद्ध किया हुआ तेल पैर की एड़ी पर पिसें एवं सेंक करें।

योनिशूलः पुनर्नवा के हरे पत्तों को पीसकर बनायी गयी उँगली जैसे आकार की सोगटी को योनि में धारण करने से भयंकर योनिशूल भी मिटता है।

विलंबित प्रसव-मूढ़गर्भः पुनर्नवा के मूल के रस में थोड़ा तिल का तेल मिलाकर योनि में लगायें। इससे रुका हुआ बच्चा तुरंत बाहर आ जाता है।

गैसः 2 ग्राम पुनर्नवा के मूल का चूर्ण, आधा ग्राम हींग तथा 1 ग्राम काला नमक गर्म पानी से लें।

स्थूलता-मेदवृद्धिः पुनर्नवा के 5 ग्राम चूर्ण में 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम लें। पुनर्नवा की सब्जी बना कर खायें।

मूत्रावरोधः पुनर्नवा का 40 मि.ली. रस अथवा उतना ही काढ़ा पियें। पुनर्नवा के पान बाफकर पेड़ू पर बाँधें। 1 ग्राम पुनर्नवाक्षार (आयुर्वेदिक औषधियों की दुकान से मिलेगा) गरम पानी के साथ पीने से तुरंत फायदा होता है।

खूनी बवासीरः पुनर्नवा के मूल को पीसकर फीकी छाछ (200 मि.ली.) या बकरी के दूध (200 मि.ली.) के साथ पियें।

पेट के रोगः गोमूत्र एवं पुनर्नवा का रस समान मात्रा में मिलाकर पियें।

श्लीपद(हाथीरोग)- 50 मि.ली. पुनर्नवा का रस और उतना ही गोमूत्र मिलाकर सुबह शाम पियें।

वृषण शोथः पुनर्नवा का मूल दूध में घिसकर लेप करने से वृषण की सूजन मिटती है। यह हाड्रोसील में भी फायदेमंद है।

हृदयरोगः हृदयरोग के कारण सर्वांगसूजन हो गयी हो तो पुनर्नवा के मूल का 10 ग्राम चूर्ण और अर्जुन की छाल का 10 ग्राम चूर्ण 200 मि.ली. पानी में काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पियें।

श्वास (दमा)- 10 ग्राम भारंगमूल चूर्ण और 10 ग्राम पुनर्नवा चूर्ण को 200 मि.ली. पानी में उबालकर काढ़ा बनायें। जब 50 मि.ली. बचे तब उसमें आधा ग्राम श्रृंगभस्म डालकर सुबह-शाम पियें।

रसायन प्रयोगः हमेशा उत्तम स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए रोज सुबह पुनर्नवा के मूल का या पत्ते का 2 चम्मच (10 मि.ली.) रस पियें अथवा पुनर्नवा के मूल का चूर्ण 2 से 4 ग्राम की मात्रा में दूध या पानी से लें या सप्ताह में 2 दिन पुनर्नवा की सब्जी बनाकर खायें।

पुनर्नवा में मूँग व चने की छिलकेवाली दाल मिलाकर इसकी बढ़िया सब्जी बनती है। ऊपर वर्णित तमाम प्रकार के रोग हों ही नहीं, स्वास्थ्य बना रहे इसलिए इसकी सब्जी या ताजे पत्तों का रस काली मिर्च व शहद मिलाकर पीना हितावह है। बीमार तो क्या स्वस्थ व्यक्ति भी अपना स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए इसकी सब्जी खा सकते हैं। भारत में यह सर्वत्र पायी जाती है। संत श्री आसारामजी आश्रम (दिल्ली, अमदावाद, सूरत आदि) में पुनर्नवा का नमूना देखा जा सकता है। आपके इलाकों में भी यह पर्याप्त मात्रा में होती होगी।

पुदीना-Peppermint

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पुदीने का उपयोग अधिकांशतः चटनी या मसाले के रूप में किया जाता है। पुदीना एक सुगंधित एवं उपयोगी औषधि है। यह अपच को मिटाता है।

आयुर्वेद के मतानुसार पुदीना, स्वादिष्ट, रुचिकर, पचने में हलका, तीक्ष्ण, तीखा, कड़वा, पाचनकर्ता, उलटी मिटाने वाला, हृदय को उत्तेजित करने वाला, शक्ति बढ़ानेवाला, वायुनाशक, विकृत कफ को बाहर लाने वाला, गर्भाशय-संकोचक, चित्त को प्रसन्न करने वाला, जख्मों को भरने वाला, कृमि, ज्वर, विष, अरुचि, मंदाग्नि, अफरा, दस्त, खाँसी, श्वास, निम्न रक्तचाप, मूत्राल्पता, त्वचा के दोष, हैजा, अजीर्ण, सर्दी-जुकाम आदि को मिटाने वाला है।

पुदीने का रस पीने से खाँसी, उलटी, अतिसार, हैजे में लाभ होता है, वायु व कृमि का नाश होता है।

पुदीने में रोगप्रतिकारक शक्ति उत्पन्न करने की अदभुत शक्ति है एवं पाचक रसों को उत्पन्न करने की भी क्षमता है। अजवायन के सभी गुण पुदीने में पाये जाते हैं।

पुदीने के बीज से निकलने वाला तेल स्थानिक एनेस्थटिक, पीड़ानाशक एवं जंतुनाशक होता है। यह दंतपीड़ा एवं दंतकृमिनाशक होता है। इसके तेल की सुगंध से मच्छर भाग जाते हैं।

औषधि-प्रयोगः

मंदाग्निः पुदीने में विटामिन ए अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसमें जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाले तत्त्व भी अधिक मात्रा में हैं। इसके सेवन से भूख खुलकर लगती है। पुदीना, तुलसी, काली मिर्च, अदरक आदि का काढ़ा पीने से वायु दूर होता है व भूख खुलकर लगती है।

त्वचाविकारः दाद-खाज पर पुदीने का रस लगाने से लाभ होता है। हरे पुदीने की चटनी बनाकर सोते समय चेहरे पर उसका लेप करने से चेहरे के मुँहासे, फुंसियाँ समाप्त हो जाती हैं।

हिचकीः हिचकी बंद न हो रही हो तो पुदीने के पत्ते या नींबू चूसें।

पैर-दर्दः सूखा पुदीना व मिश्री समान मात्रा में मिलायें एवं दो चम्मच फंकी लेकर पानी पियें। इससे पैर-दर्द ठीक होता है।

मलेरियाः पुदीने एवं तुलसी के पत्तों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम लेने से अथवा पुदीना एवं अदरक का 1-1 चम्मच रस सुबह-शाम लेने से लाभ होता है।

वायु एवं कृमिः पुदीने के 2 चम्मच रस में एक चुटकी काला नमक डालकर पीने से गैस, वायु एवं पेट के कृमि नष्ट होते हैं।

प्रातः काल एक गिलास पानी में 20-25 ग्राम पुदीने का रस व 20-25 ग्राम शहद मिलाकर पीने से गैस की बीमारी में विशेष लाभ होता है।

पुरानी सर्दी-जुकाम व न्यूमोनियाः पुदीने के रस की 2-3 बूँदें नाक में डालने एवं पुदीने तथा अदरक के 1-1 चम्मच रस में शहद मिलाकर दिन में 2 बार पीने से लाभ होता है।

अनार्तव-अल्पार्तवः मासिक न आने पर या कम आने पर अथवा वायु एवं कफदोष के कारण बंद हो जाने पर पुदीने के काढ़े में गुड़ एवं चुटकी भर हींग डालकर पीने से लाभ होता है। इससे कमर की पीड़ा में भी आराम होता है।

आँत का दर्दः अपच, अजीर्ण, अरुचि, मंदाग्नि, वायु आदि रोगों में पुदीने के रस में शहद डालकर लें अथवा पुदीने का अर्क लें।

दादः पुदीने के रस में नींबू मिलाकर लगाने से दाद मिट जाती है।

उल्टी-दस्त, हैजाः पुदीने के रस में नींबू का रस, प्याज अथवा अदरक का रस एवं शहद मिलाकर पिलाने अथवा अर्क देने से ठीक होता है।

बिच्छू का दंशः बिच्छू के काटने पर इसका रस पीने से व पत्तों का लेप करने से बिच्छू के काटने से होने वाला कष्ट दूर होता है। पुदीने का रस दंशवाले स्थान पर लगायें एवं उसके रस में मिश्री मिलाकर पिलायें। यह प्रयोग तमाम जहरीले जंतुओं के दंश के उपचार में काम आ सकता है।

हिस्टीरियाः रोज पुदीने का रस निकालकर उसे थोड़ा गर्म करके सुबह शाम नियमित रूप से देने पर लाभ होता है।

मुख की दुर्गन्धः पुदीने की रस में पानी मिलाकर अथवा पुदीने के काढ़े का घूँट मुँह में भरकर रखें, फिर उगल दें। इससे मुख की दुर्गन्ध का नाश होता है।

विशेषः पुदीने का ताजा रस लेने की मात्रा 5 से 10 मि.ग्रा. पत्तों का चूर्ण लेने की मात्रा 3 से 6 ग्राम, काढ़ा लेने की मात्रा 20 से 50 ग्राम, अर्क लेने की मात्रा 10 से 20 मि.ग्रा. एवं बीज का तेल लेने की मात्रा आधी बूँद से 3 बूँद तक है।

धनिया – Coriander

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धनिया सर्वत्र प्रसिद्ध है। भोजन बनाने में इसका नित्य प्रयोग होता है। हरे धनिये के विकसित हो जाने पर उस पर हरे रंग के बीज की फलियाँ लगती हैं। वे सूख जाती हैं तो उन्हें सूखा धनिया कहते हैं। सब्जी, दाल जैसे खाद्य पदार्थों में काटकर डाला हुआ हरा धनिया उसे सुगंधित एवं गुणवान बनाता है। हरा धनिया गुण में ठंडा, रूचिकारक व पाचक है। इससे भोज्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट व रोचक बनते हैं। हरा धनिया केवल सब्जी में ही उपयोग में आने वाली वस्तु नहीं है वरन् उत्तम प्रकार की एक औषधि भी है। इसी कारण अनेक वैद्य इसका उपयोग करने की सलाह देते हैं।

गुणधर्मः हरा धनिया स्वाद में कटु, कषाय, स्निग्ध, पचने में हलका, मूत्रल, दस्त बंद करने वाला, जठराग्निवर्द्धक, पित्तप्रकोप का नाश करने वाला एवं गर्मी से उत्पन्न तमाम रोगों में भी अत्यंत लाभप्रद है।

औषधि-प्रयोगः

बुखारः अधिक गर्मी से उत्पन्न बुखार या टायफाइड के कारण यदि दस्त में खून आता हो तो हरे धनिये के 25 मि.ली. रस में मिश्री डालकर रोगी को पिलाने से लाभ होता है।

ज्वर से शरीर में होती जलन पर इसका रस लगाने से लाभ होता है।

आंतरदाहः चावल में पानी के बदले हरे धनिये का रस डालकर एक बर्तन (प्रेशर कूकर) में पकायें। फिर उसमें घी तथा मिश्री डालकर खाने से किसी भी रोग के कारण शरीर में होने वाली जलन शांत होती है।

अरुचिः सूखा, धनिया, इलायची व काली मिर्च का चूर्ण घी और मिश्री के साथ लें।

हरा धनिया, पुदीना, काली मिर्च, सेंधा नमक, अदरक व मिश्री पीसकर उसमें जरा सा गुड़ व नींबू का रस मिलाकर चटनी तैयार करें। भोजन के समय उसे खाने से अरुचि व मंदाग्नि मिटती है।

तृषा रोगः हरे धनिये के 50 मि.ली. रस में मिश्री या हरे अंगूर का रस मिलाकर पिलायें।

सगर्भा की उलटीः हरे धनिये के रस में हलका-सा नींबू निचोड़ लें। यह रस एक-एक चम्मच थोड़े-थोड़े समय पर पिलाने से लाभ होता है।

रक्तपित्तः सूखा धनिया, अंगूर व बेदाना का काढ़ा बनाकर पिलायें।

हरे धनिये के रस में मिश्री या अंगूर का रस मिलाकर पिलायें। साथ में नमकीन, तीखे व खट्टे पदार्थ खाना बंद करें और सादा, सात्त्विक आहार लें।

बच्चों के पेटदर्द व अजीर्णः सूखा धनिया और सोंठ का काढ़ा बनाकर पिलायें।

बच्चों की आँखें आने परः सूखे पिसे हुए धनिये की पोटली बाँधकर उसे पानी में भिगोकर बार-बार आँखों पर घुमायें।

हरा धनिया धोकर, पीसकर उसकी एक-दो बूँदें आँखों में डालें। आँखें आना, आँखों की लालिमा, आँखों की कील, गुहेरी एवं चश्मे के नंबर दूर करने में यह लाभदायक है।