उज्जैन। कहा जाता है कि हर प्राचीन धर्म ग्रंथ ज्ञान का सागर है। इन ग्रंथो में जीवन से जुड़ी ऐसी बातें बताई गई हैं, जो सब के लिए उपयोगी हैं। यदि कोई इन बातों पर अमल करता है तो उसके जीवन में कभी भटकाव नहीं आता है। हालांकि आधुनिक समय में अधिकांश युवा धर्र्म ग्रंथो से दूर है। कम्प्यूटर और मोबाईल में व्यस्त रहने वाले लोग अक्सर भविष्य की चिंता में अपने ही धर्म के बारे में कई बहुत सामान्य बातें भी नहीं जानते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए। हम यहां धर्मग्रंथों के उसी ज्ञान व उपयोगी बातों को रोचक व आसान सवाल-जवाबों के रूप में प्रस्तुत कर रहें हैं, जो बच्चों व नौजवानों के साथ बड़ी उम्र के लोगों की भी हिन्दू या अन्य धर्मों से जुड़ी जानकारी बढ़ाएंगे। आइए जानते हैं धर्म से जुड़े कुछ रोचक सवाल और उनके जवाब……
सृष्टि रचने वाले ब्रह्मदेव के कितने और कौन से मानस पुत्र हैं?
ब्रह्मदेव के 17 मानस पुत्र माने गए हैं, जिनकी ब्रह्मदेव से ही उत्पत्ति इस तरह बताई गई है–
- मन से मरिचि
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नेत्र से अत्रि
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मुख से अंगिरस
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कान से पुलस्त्य
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नाभि से पुलह
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हाथ से कृतु
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त्वचा से भृगु
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प्राण से वशिष्ठ
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अंगूठे से दक्ष
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छाया से कंदर्प
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गोद से नारद
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इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार
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शरीर से मनु
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ध्यान से चित्रगुप्त
भगवान विष्णु के 10 अवतार कौन-कौन से हैं ?
हिंदू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक माने जाते हैं। धर्म की रक्षा के लिए हिंदू धर्मग्रंथ श्रीमद्भागवतपुराण के मुताबिक सतयुग से लेकर कलियुग तक भगवान विष्णु के 24 अवतार माने गए हैं। इनमें से दस प्रमुख अवतार ‘दशावतारÓ के रूप में प्रसिद्ध हैं। ये दस अवतार हैं-
1. मत्स्य अवतार – मछली के रूप में।
- कूर्म अवतार – कछुए के रूप में।
वराह अवतार – सूअर के रूप में।
नरसिंह अवतार – आधे शेर और आधे इंसान के रूप में।
वामन अवतार – बौने ब्राह्मण के रूप में।
परशुराम अवतार – ब्राह्मण योद्धा के रूप में।
श्रीराम अवतार – मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में।
श्रीकृष्ण अवतार – 16 कलाओं के पूर्ण अवतार के रूप में।
बुद्ध अवतार – क्षमा, शील और शांति के रूप में।
कल्कि अवतार ( यह अवतार कलियुग के अंत में होना माना गया है)- सृष्टि के संहारक के रूप में।
कौन हैं अष्टचिरंजीवी यानी 8 अमर चरित्र?
सांसारिक जीवन का अटल सत्य है कि जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु तय है। किंतु इस सच के उलट इसी संसार में ऐसे भी देहधारी हैं, जो युगों के बदलाव के बाद भी हजारों सालों से जीवित हैं। इन महान और अमर आत्माओं को ‘चिरंजीवीÓ यानी अमर बताया गया है। इनकी संख्या 8 होने से ये अष्ट चिरंजीवी भी कहलाते हैं।
हनुमानजी: भगवान रुद्र के 11वें अवतार, भगवान श्रीराम के परम सेवक और भक्त व बल, बुद्धि और पुरूषार्थ देने वाले देवता श्रीहनुमान के चारों युगों में होने की महिमा तो सभी जानते हैं और ‘चारों युग परताप तु्म्हारा है। परसिद्ध जगत उजियारा।।Ó यह चालीसा बोल हर रोज स्तुति भी करते हैं।
ऋषि मार्कण्डेय: भगवान शिव के परम भक्त। शिव उपासना और महामृत्युंजय सिद्धि से ऋषि मार्कण्डेय अल्पायु को टाल चिरंजीवी बन गए और युग-युगान्तर में भी अमर माने गए हैं।
भगवान वेद-व्यास: सनातन धर्म के प्राचीन और पवित्र चारों वेदों – ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद का सम्पादन और 18 पुराणों के रचनाकार भगवान वेदव्यास ही हैं।
भगवान परशुराम: जगतपालक भगवान विष्णु के दशावतारों में एक हैं। इनके द्वारा पृथ्वी से 21 बार निरकुंश व अधर्मी क्षत्रियों का अंत किया गया।
राजा बलि: भक्त प्रहलाद के वंशज। भगवान वामन को अपना सब कुछ दान कर महादानी के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनकी दानशीलता से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान विष्णु ने इनका द्वारपाल बनना स्वीकार किया।
विभीषण: लंकापति रावण के छोटे भाई, जिसने रावण की अधर्मी नीतियों के विरोध में युद्ध में धर्म और सत्य के पक्षधर भगवान श्रीराम का साथ दिया।
कृपाचायर्: युद्ध नीति में कुशल होने के साथ ही परम तपस्वी ऋषि, जो कौरवों और पाण्डवों के गुरु थे।
अश्वत्थामा: कौरवों और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य के सुपुत्र थे, जो परम तेजस्वी और दिव्य शक्तियों के उपयोग में माहिर महायोद्धा थे, जिनके मस्तक पर मणी जड़ी हुई थी। शास्त्रों में अश्वत्थामा को अमर बताया गया है।
क्या है देव और दानवों के माता-पिता का नाम?
हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक देवता धर्म के तो दानव अधर्म के प्रतीक हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौराणिक मान्यताओं में देव-दानवों को एक ही पिता, किंतु अलग-अलग माताओं की संतान बताया गया है।
इसके मुताबिक देव-दानवों के पिता ऋषि कश्यप हैं। वहीं, देवताओं की माता का नाम अदिति और दानवों की माता का नाम दिति है।
देवताओं के गुरु का क्या नाम है?
देवताओं के गुरु बृहस्पति माने गए हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वे महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। भगवान शिव के कठिन तप से उन्होंने देवगुरु का पद पाया। उन्होंने अपने ज्ञान बल व मंत्र शक्तियों से देवताओं की रक्षा की। शिव कृपा से ये गुरु ग्रह के रूप में भी पूजनीय हैं।
दानवों के गुरु का क्या नाम है?
दानवों के गुरु शुक्राचार्य माने जाते हैं। ब्रह्मदेव के पुत्र महर्षि भृगु इनके पिता थे। शुक्राचार्य ने ही शिव की कठोर तपस्या कर मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की, जिससे वह मृत शरीर में फिर से प्राण फूंक देते थे। ब्रह्मदेव की कृपा से यह शुक्र ग्रह के रूप में पूजनीय हैं। शुक्रवार शुक्र देव की उपासना का ही विशेष दिन है।
कौन है हिंदू धर्म के पांच प्रमुख देवता?
हिंदू धर्म मान्यताओं में पांच प्रमुख देवता पूजनीय है। ये एक ईश्वर के ही अलग-अलग रूप और शक्तियां हैं। जानिए इन पांच देवताओं के नाम और रोज उनकी पूजा से कौन-सी शक्ति व इच्छाएं पूरी होती हैं –
सूर्य – स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा व सफलता
विष्णु – शांति व वैभव
शिव – ज्ञान व विद्या
शक्ति – शक्ति व सुरक्षा
गणेश – बुद्धि व विवेक
त्रिलोक या तीन लोक और 14 भवन कौन-कौन से हैं?
1.पाताल लोक ( अधोलोक ) 2.भूलोक ( मध्यलोक ) 3.स्वर्गलोक (उच्चलोक) यह तीन लोक है।
इन लोको को भी 14 लोको में बांटा गया है। इन 14 लोकों को भवन भी पुकारा जाता है-
- सत्लोक
- तपोलोक
- जनलोक
- महलोक
- ध्रुवलोक
- सिद्धलोक
- पृथ्वीलोक
- अतललोक
- वितललोक
- सुतललोक
- तलातललोक
- महातललोक
- रसातललोक
- पाताललोक
भगवान शिव का एक नाम है आशुतोष, क्या है इसका अर्थ?
भगवान शिव का एक नाम आशुतोष भी है। इस शब्द का मतलब जानें तो आशु का अर्थ है – जल्द और तोष यानी प्रसन्नता। इस तरह आशुतोष का अर्थ होता है- जल्द प्रसन्न होने वाला। पौराणिक प्रसंग उजागर करते हैं कि भगवान शिव भी भक्ति व पूजा के सरल उपायों से जल्द ही प्रसन्न होकर मन चाही इच्छा पूरी कर देते हैं। यही कारण है कि भगवान शिव आशुतोष भी पुकारे जाते हैं।
हिन्दू धर्म के चार धाम कौन से और कहां है?
हिन्दू धर्म के चार धाम ये हैं-
- बद्रीनाथ (उत्तराखंड)
द्वारका (गुजरात)
जगन्नाथपुरी (ओडिसा)
रामेश्वरम (तमिलनाडु)
तीर्थ परम्परा में उत्तराखंड या उत्तर दिशा के चार धामों (यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ व केदारनाथ) का भी महत्व है। यह यात्रा पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर होती है, इसलिए यह यात्रा यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री, केदारनाथ के बाद बद्रीनाथ में जाकर पूरी होती है।
इन पवित्र धामों में भी गंगा नदी के दर्शन व स्नान का खास महत्व है। पुराणों के मुताबिक मां गंगा जगत के कल्याण व पापनाश के लिए ही नदी के रूप में स्वर्ग से धरती पर उतरी। इन चार धामों में गंगा के भी कई रूप और नाम हैं। मसलन, गंगोत्री में भागीरथी, केदारनाथ में मंदाकिनी और बद्रीनाथ में अलकनन्दा
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