राजा भोज और सत्य

एक दिन राजा भोज गहरी निद्रा में सोये हुए थे। उन्हें उनके स्वप्न में एक अत्यंत तेजस्वी वृद्ध पुरुष के दर्शन हुए।

राजन ने उनसे पुछा- “महात्मन! आप कौन हैं?”

वृद्ध ने कहा- “राजन मैं सत्य हूँ और तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूँ। मेरे पीछे-पीछे चल आ और अपने कार्यों की वास्तविकता को देख!”

राजा भोज उस वृद्ध के पीछे-पीछे चल दिए। राजा भोज बहुत दान, पुण्य, यज्ञ, व्रत, तीर्थ, कथा-कीर्तन करते थे, उन्होंने अनेक तालाब, मंदिर, कुँए, बगीचे आदि भी बनवाए थे। राजा के मन में इन कार्यों के कारण अभिमान आ गया था। वृद्ध पुरुष के रूप में आये सत्य ने राजा भोज को अपने साथ उनकी कृतियों के पास ले गए। वहाँ जैसे ही सत्य ने पेड़ों को छुआ, सब एक-एक करके सूख गए, बागीचे बंज़र भूमि में बदल गए । राजा इतना देखते ही आश्चर्यचकित रह गया।। फिर सत्य राजा को मंदिर ले गया। सत्य ने जैसे ही मंदिर को छुआ, वह खँडहर में बदल गया। वृद्ध पुरुष ने राजा के यज्ञ, तीर्थ, कथा, पूजन, दान आदि के लिए बने स्थानों, व्यक्तियों, आदि चीजों को ज्यों ही छुआ, वे सब राख हो गए।।राजा यह सब देखकर विक्षिप्त-सा हो गया।

सत्य ने कहा-“ राजन! यश की इच्छा के लिए जो कार्य किये जाते हैं, उनसे केवल अहंकार की पुष्टि होती है, धर्म का निर्वहन नहीं।। सच्ची सदभावना से निस्वार्थ होकर कर्तव्यभाव से जो कार्य किये जाते हैं, उन्हीं का फल पुण्य के रूप मिलता है और यह पुण्य फल का रहस्य है।”

इतना कहकर सत्य अंतर्धान हो गए। राजा ने निद्रा टूटने पर गहरा विचार किया और सच्ची भावना से कर्म करना प्रारंभ किया ,जिसके बल पर उन्हें ना सिर्फ यश-कीर्ति की प्राप्ति हुए बल्कि उन्होंने बहुत पुण्य भी कमाया।

मित्रों , सच ही तो है , सिर्फ प्रसिद्धि और आदर पाने के नज़रिये से किया गया काम पुण्य नहीं देता। हमने देखा है कई बार लोग सिर्फ अखबारों और न्यूज़ चैनल्स पर आने के लिए झाड़ू उठा लेते हैं या किसी गरीब बस्ती का दौरा कर लेते हैं , ऐसा करना पुण्य नहीं दे सकता, असली पुण्य तो हृदय से की गयी सेवा से ही उपजता है , फिर वो चाहे हज़ारों लोगों की की गयी हो या बस किसी एक व्यक्ति की।

प्रेषक – रविन पाटीदार

“इश्कियापा” – कहानी

जिया ने फ़ेसबुक से लॉग आउट किया और अपने बेड पे लेट कर रोने लगी… नितिन और जेनिफर दोनों ऑन लाइन हैं, ज़रुर चैट कर रहे होंगे… आखिर मेरा मैसेज सीन होने के बाद भी नितिन कोई रिप्लाई क्यों नही कर रहा है… लगता है फ़रहीन ठीक ही
कह रही थी. दोनों के बीच इन दिनों कोई चक्कर चल रहा है. नितिन जेनिफर का हर पोस्ट लाईक कर रहा है, पिक्स पर कमेंट्स दे रहा है. उस दिन तो उसकी शायरी भी अपने वाल पर भी शेयर किया. ओह गॉड! क्या नितिन मेरे साथ सचमुच टाइम पास कर रहा है! ये बातें सोच-सोचकर जिया लगातार रोये जा रही थी….

नितिन और जिया तीन महीने से एक दूसरे के साथ हैं… आजकल की जेनेरेशन के शब्दों में ’सीइंग इच अदर’ … नितिन और जिया दोनों शहर के मशहूर मिशनरी कॉलेज “इविंग क्रिश्चियन कॉलेज” में ग्रेजुएशन 2nd इयर के स्टूडेंट है…
नितिन जब जिया से मिला उससे पहले  नितिन का पूजा के साथ एक छोटा-सा अफेयर भी था… वैसे उनमे ’नथिंग वाज़ सीरियस’ कह सकते है… इट वाज ‘पार्ट ऑफ ग्रोइंग अप’…
नितिन भी उन दिनों अपने ‘एक्स’ को भुलाने की क़ोशिश में था. दोनों कुछ क़दम साथ चले तो लगा रास्ता आसान हो रहा है. मगर अब…
जिया कुछ भी नहीं सोच पा रही थी… इतने सारे डेट्स… के. एफ. सी…. डोमिनोज़… आइनॉक्स… इस बार के नेवी बॉल में भी तो वही उसका डांस पार्टनर रही… दोनों ने ’बेस्ट डान्सिंग कपल’ का ख़िताब जीता. सभी कैसे कह रहे थे, उनकी जोड़ी बहुत जंचती है. तब तो नितिन भी कितना ख़ुश था उसके साथ। सारा क़सूर इस नॉनसेन्स जेनिफर का है. शी इज़ अ रियल बीच! हर हैंडसम लड़के पर डोरे डालती है. पढ़ना-लिखना तो है नहीं. सारा दिन कॉलेज कैंटिन में बैठकर आवारा लड़कों के साथ ’हा-हा, हू-हू’ करती रहती है. बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलाद! जाने उसमें क्या है कि लड़के भी मधुमक्खी की तरह उसके पीछे पड़े रहते हैं.

ये सब सोचते हुए और रोते हुये ही जाने उसे कब नींद आ गई उसे पता भी नही चला… व्हाट्स एप्प के मैसेज अलर्ट से उसकी आँख खुली. मोबाइल में देखा तो स्क्रीन पर नितिन का नाम चमक रहा था. मैसेज खोला- ‘मिसिंग यू बेबी!’
झूठा! मक्कार! जिया बुदबुदाई, अपना निचला होंठ काटते हुये जिया ने किसी तरह अपनी रुलाई रोकी… मुझे मिस कर रहा है और उस चुड़ैल से चैट कर रहा है! शायद वह समझ रहा है कि उसे उसकी करतूत का कुछ पता ही नहीं. फेसबुक पर वह ऑन लाइन नहीं हुई थी. चैट ऑफ कर के ही दोनों पर नज़र रख रही थी.

थोड़ी देर बाद नितिन का दूसरा मैसेज आया था- “चुप क्यों हो?” उसने बिना कोई जवाब दिये फोन बंद कर दिया था. तभी उसकी मां दूध का गिलास लेकर कमरे में दाखिल हुई थीं- “जिया! पढ़ रही हो कि वही फ़ेसबुक पर बैठी हो? परीक्षा को सिर्फ चार दिन रह गये हैं. पिछली बार अर्थशास्त्र में फेल होते-होते बची हो, याद है ना?”
“अर्थशास्त्र?” आ गईं उपदेश झाड़ने… मन ही मन चिढ़ते हुये जिया ने मुंह बनाया…
“अर्थशास्त्र यानी इकॉनमिक्स! समझी? यहां सब अंग्रेज़ हैं!” मां ने झुंझलाकर दूध का गिलास टेबल पर रख दिया था- “कितनी बार कहा इनसे, परीक्षा के समय इंटरनेट का कनेक्शन बंद कर दे. सबके सब बिगड़ते जा रहे हैं. बाप उधर अख़बार या टी. वी. में सर डाले बैठा है, बेटा का रातदिन क्रिकेट, आई. पी. एल. और बेटी को फ़ेसबुक से फुरसत नहीं. रह जाती हूं बस एक मैं!”

“मां तुम फिर शुरु हो गई! मुझे पढ़ने दो…” जिया ने झल्लाकर कहा तो वे “हां जाती हूं, जाती हूं! पता है कितना पढ़ना है…” कहकर बड़बड़ाती हुई चली गई…

अपनी माँ के कमरे से बाहर जाते ही उसने उठकर ड्रेसिंग टेबल के आईने में अपना चेहरा देखा और चिंहुक उठी थी- ओह गॉड! ये पिंपल तो पक गया! कितना गंदा दिख रहा है! उस दिन नितिन कह रहा था ‘आई हेट पिंपल्स!’ सक्स! अब क्या करूं! उसे फिर रोना आने लगा था… बाल सीधे करने हैं, नेल पॉलिश लगाना है, स्नग फिट जिंस भी अभी तक सूखा नहीं! आईने में खुद को निहारते-निहारते जाने कितनी बातें उसे एक साथ परेशान कर रही थीं. टेस्ट ख़त्म होते ही जिम ज्वाइन करुंगी, जिंस टाईट होने लगी है. उस दिन राघव फैटसो कहकर चिढ़ा रहा था. और इस सांवलेपन का भी कोई ईलाज नहीं! पांच साल से शायद पांच सौ ट्युब निचोड़ डाले, मगर इन गोरे रंग का दावा करनेवाले क्रीम्स का कोई असर नहीं. सब झूठे, मक्कार! सोचते हुये उसने क्रीम का ट्युब उठाकर कमरे के कोने में फेंक दिया था. इसी गोरी रंगत की वजह से वो चुड़ैल जेनिफर सारे लड़को की फेवरिट बनी हुई है… रात के दो बजे जाने कितनी सारी चिंतायें लेकर वह सोने गई थी. इन सब के बीच उसकी बस पढ़ाई ही रह गई थी. जो वो नही कर पायी… ऐसा रोज़ होता था उसके साथ…

सुबह कॉलेज कैम्पस में जाते ही उसे बुरी ख़बर मिली थी- तान्या ने आत्महत्या कर ली है!
’कब?’, ’कैसे?’, ’क्यों?’ – जाने एक ही साथ उसने कितने सवाल कर डाले थे.
“कल रात! सुना काम्पोस का पूरा पत्ता गटक गई थी. सुबह उसकी मां कॉलेज के लिये उठाने गईं तो उसे मरी हुई पाया!”
“मगर क्यों! उसे जान देने की नौबत क्यों आई?” जिया जैसे अब भी इस बात पर यकीन नहीं कर पा रही थी.
वह बहुत क़रीब से उसे नहीं जानती थी. इस कॉलेज में तो वो दूसरे ब्रांच में थी वह. लेकिन उन दोनों ने 11वीं 12वीं की पढ़ाई एक ही साथ की थी… कितनी ज़हीन थी तान्या… पढ़ाई में हमेशा अव्वल! 12वीं के बोर्ड एग्जाम में पूरे राज्य में पांचवी नम्बर पर थी…
“कहते हैं किसी ने उसका एम. एम. एस. बनाकर नेट पर डाल दिया था. सब उसके एक्स ब्यॉय फ़्रेंड का नाम ले रहे हैं. उसी ने बदला लिया होगा. अपने मां-बाप के कहने पर उसने उसे छोड़ जो दिया था!” ज़िया की क्लासमेट शालू ने उसे बताया
“कौन, शफ़ीक़??”
जिया के पूछते ही शालू ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया था- “शी… इनका नाम लेना भी खतरे से खाली नहीं! देखती नहीं, कैसे रातदिन कैंटिन में दबंगों के साथ बैठे रहते हैं ये लड़के? उस दिन किसी ने बाहर के लड़कों के कैम्पस में आने पर ऐतराज़ किया तो उन्होनें चाकू निकाल लिया. कभी किसी क्लास में नज़र आते हैं? प्रोफ़ेसर्स भी इनसे डरकर चलते हैं. स्पोर्टस टीचर सावंत और रंगनाथन की तो इनसे पूरी मिली-भगत है. इनके बल पर मैनेजमेंट पर भी रौब जमाने से बाज नहीं आते.”

उस दिन तान्या की आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना और एक मिनट के मौन के बाद कॉलेज की छुट्टी कर दी गई थी. जिया का मन उदासियों में डूबा हुआ था. आज उसने कॉलेज कैम्पस में नितिन को भी कहीं नहीं देखा था. बाहर निकलते हुये उसे रहिला ने बताया था कि उसने नितिन और जेनिफर को बास्किन रोबिन्स आईस क्रीम पार्लर में साथ-साथ आईस क्रीम खाते हुये देखा था. “जेनिफर अपने फेवरिट स्ट्राबेरी फ्लेवर के लिये नितिन से ज़िद्द कर रही थी…” बताते हुये राहिला ने शालू की तरफ देखकर शरारत से आंख मारी… यह सब सुनकर जिया और उदास हो गई थी. आज सुबह से उसने कितने मिस कॉल दिये थे नितिन को, मगर उसने उसे मुड़कर फोन नहीं किया था. वह खुद भी उसे कॉल नहीं कर पा रही थी, क्योंकि उसके फोन में बैलेंस नहीं बचा था. पापा साढ़े तीन सौ का रीचार्ज हर महीने करवाते हैं, मगर इससे क्या होता है! 1GB का नेट पैक भी 15 दिन से ज़्यादा नहीं चलता. बाकी का रीचार्ज नितिन करवा देता है, मगर इस महीने जाने उसने क्यों नहीं करवाया. वह भी संकोच से कुछ कह नहीं पा रही थी।
कॉलेज से छूटने के बाद जिया सीधा घर के लिए निकल पड़ी… आज सुबह सुबह ही उसका मूड ऑफ हो गया. आज का दिन ही मनहूस है. हर तरफ से बस बुरी ख़बरें…

घर में आते ही बुआ को देखकर उसका रहा-सहा मूड भी एकदम से बिगड़ गया था. इस गोरखपुर वाली बुआजी को वह ज़रा भी बर्दास्त नहीं कर पाती. हर बात में दूसरों के फटे में टांग अड़ाना, ताने देना, जासूसी करना… रिश्तेदारों के बीच मैडम ’हिन्दुस्तान टाइम्स’ के नाम से जानी जाती हैं. इसकी ख़बर उसे, उसकी ख़बर इसे… बस अब यही एक काम बचा था इनके जीवन में. एकलौते बेटी की शादी हो चुकी है. ज़ाहिर है, बहू से भी नहीं बनती. ये सेर तो बहुरिया सवा सेर! इसलिये हर दूसरे, तीसरे महीने अचार, मठरी लेकर किसी ना किसी रिश्तेदार के घर छापा मारने निकल पड़ती थी. उनको देखकर सभी का मुंह बन जाता था.

पैर छूते ही उन्होंने अपनी तहक़ीकात शुरु कर दी थी – “बड़ी देर कर दी बिट्टो आज तो आने में!” फिर दीवार घड़ी की तरफ देखा था- ” बहू तो कह रही थी दो बजे तक घर आ जाती हो!” इसके बाद बाबूजी की ओर मुड़ी थीं – “समय बहुत ख़राब है नंदू! निर्भया वाला मामला देखा ना… दूसरों को दोष देकर क्या होगा. औरतों को खुद सम्हलकर रहना चाहिये… बाद में गला फाड़ते रहो, उससे क्या होने वाला! गया तो अपना ही जायेगा ना?”
उनकी बात सुनकर जिया का सर गरम हो गया था. मगर मां का चेहरा पीला पड़ गया था. बाबूजी उसे इशारे से शांत रहने को कह रहे थे. फिर भी उससे चुप रहा नहीं गया था – “अगर जमाना बुरा है तो औरतों को घर के भीतर रहना पड़ेगा? क्यों भला! अंदर वह रहे जिसकी नीयत ख़राब है. क्या हम जंगल में रहते हैं कि शेर, भालू के डर से बाहर ना निकलें? और अगर दरिंदे खुले घूम रहे हैं तो उन्हें पिंजरे में बंद करो! मर्दों के डर से औरतें बहुत घरों में रह चुकीं, अब घर में रहने की बारी उनकी है…. मैं तो कहती हूं शाम के बाद सारे लफंगों, दबंगों को लॉक अप्स में डाल देना चाहिये ताकि लड़कियां निश्चिंत होकर घर से बाहर निकल सके!”
जिया की बात सुनकर बुआ ठहाके मारकर हंसने लगी – “तेरी बेटी तो वाकई बहुत पढ़-लिख गई है रे नंदू!” फिर किसी तरह अपनी हंसी रोकते हुये व्यंग्य से बोली थी – “क़िताबों की दुनिया से बाहर निकलकर चीज़ों को देखना सीखो बिटिया, कितने धान से कितना चावल निकलता है पता चल जायेगा…”
उनकी बातों को टालने के लिये मां पहले ही भीतर चली गई थीं. अब जिया भी पैर पटकते हुये उनके पीछे चली गई थी. जाते हुये उसने इतना जरूर सुना, बुआ पापा से कह रही थीं – “मेरी नज़र में एक बहुत अच्छा लड़का है नंदू…”

खाने पे बैठकर जिया बड़बड़ाती रही – “इन्हें मना कर देना, मेरे मामलों में टांग ना अड़ाया करें!”
मां ने खाना परोसते हुये अपने होंठों पर उंगली रखी थीं – “शी…! ऐसा नहीं कहते. तुम्हारे भले की सोचती हैं. पढ़ी-लिखी नहीं हैं इसलिये बोलने का सलीका नहीं आता. महाकाली के दर्शन को आई है, चली जायेंगी परसों, दो दिन की ही बात है.”
जानकर जिया का मूड ख़राब हो गया – “दो दिन!”

उसने खाना शुरु किया ही था कि व्हाट्स एप्प पे मैसेज आने लगा. एक के बाद एक तीन. मोबाईल किताबों के बैग में था. शीट! मोबाईल साइलेंट पर करना भूल गई! वर्ना तो जिया हमेशा घर में घुसने से पहले मोबाईल को याद से साइलेंट मोड में कर देती है… कॉल लॉग, मैसेज सब मिटा देती है… उसने सारे लड़कों के नाम भी लड़कियों के नाम से सेव कर रखे हैं… ये मोबाईल भी जी का जंजाल बना हुआ है! कॉलेज में भी हर टीचर की नज़र से छिपाओ… बीच-बीच में क्लास के सी. आर. से तलाशी ली जाती है तो कभी प्रिंसिपल खुद छापा मारने आ जाता है… ओह गॉड! पूरी दुनिया हमें सुधारने के पीछे पड़ी हुई है! स्कर्ट घूटनों से दो इंच नीचे होनी चाहिये, शर्ट के सारे बटन बंद होने चाहिये, नो स्लीवलेस, नो टाइट्स, नो फैशन… जोजेफ ठीक ही कहता है- ‘ये बूढ़े-खुसट हम नौजवानों से जलते हैं! जो खुद करना चाहकर भी कर नहीं पाते, वही करने से हमें रोकते हैं!’ शालू कहती है- ‘और क्या! ये पादरी लोग खुद कुंठित होते हैं. ना जीते हैं ना किसी को जीने देते हैं! एक कुंठित, अपने जीवन से नाख़ुश आदमी दूसरों को ख़ुश देख नहीं पाता.’ इधर घर में मां की निगरानी! आंखें तो पूरी सर्च लाईट! ज़र्रा-ज़र्रा सूंघती फिरती हैं. कितने सारे तरीके ईज़ाद करने पड़े हैं उनकी खोजी नज़र से बचने के लिये- हर जगह मोबाईल को उल्टा रखना पड़ता है ताकि जब किसी का मैसेज या कॉल आये तो सामने वाले को नाम ना दिखे… सिम लॉक, स्क्रीन लॉक लगाया है…. हमेशा साइलेंट पर भी. अधिकतर बाथरुम में घुसकर मैसेज वगैरह करना पड़ता है. निकलते समय टॉयलेट का चेन खींच देती है ताकि किसी को शक ना हो. फिर भी मां को खटक ही जाता है- ‘क्या बात है, आजकल नहाने में इतना समय लगता है, बार-बार बाथरुम जाकर देर तक अंदर बैठी रहती है! पहले तो दो-चार छींटे लगाकर कौवा स्नान करके बाहर निकल आती थी! जिया चिढ़कर अपनी चोरी छिपाती- ‘अब तुम भी मेरे साथ बाथरुम चला करो, बैठकर देखना क्या-क्या करती हूं!’
एक दिन तो कॉलेज में गज़ब हुआ, लॉजिक के लेक्चर के दौरान टीचर के अचानक क्लास में आ जाने की वजह से जल्दीबाजी में  जिया ने अपना मोबाईल शर्ट में छिपा लिया… किसी सवाल का जवाब देने के लिये खड़ी हुई तो शर्ट में ही मोबाइल में हलचल हुई… साथ में ज़ोर की घों-घों और जलती-बुझती रोशनी! फोन वाइब्रेटर पर था! वह सबके सामने पानी-पानी हो गई….कोई पीछे से गाया- चोली के पीछे क्या है… पूरे क्लास में ठहाका पड़ गया…

चौथे मैसेज की आवाज़ पर मां ने उसे घूरा – “तू फिर मोबाईल कॉलेज ले गई थी? याद है पिछली बार दो हज़ार ज़ुर्माना भरना पड़ा था… प्रिंसिपल की डांट अलग से… अब कभी पकड़ी गई तो फिर कभी मोबाईल नहीं मिलेगा याद रखना…
“ठीक है, ठीक है!” जिया बुदबुदाई।

वह किसी तरह खाना ख़त्म करके अपने कमरे में चली आई थी. आज सब ने मिलकर उसका मूड ख़राब कर दिया था. इस बुआजी को भी अभी आना था. रही-सही क़सर अकेली ही पूरी कर देंगीं! सामने क़िताब खोलकर बैठी रही थी देरतक, मगर अंदर कुछ जा नहीं रहा था. बार-बार नज़र मोबाईल की तरफ घूम जाती थी. हर दो मिनट में व्हाट्स एप्प या hike पे किसी न किसी का मैसेज आता रहता है… परेशान होकर उसने फोन ऑफ करके ड्रऑर में रख दिया… ये मोबाइल भी ना इसके बिना भी रहना मुश्किल इसके साथ भी रहना मुश्क़िल…
मां ने पहले ही कह रखा है रिज़ल्ट ख़राब हुआ तो बुआ के लाये रिश्तों में से ही किसी एक को चुनकर शादी करवा देंगी… शादी और इतनी जल्दी…कभी नहीं… एकबार शादी की गांठ पड़ी नहीं कि ज़िन्दगी भर के लिये रसोई की काल कोठरी में बंद हो जाना पड़ेगा… अभी तो  पढ़ना है, फिर किसी मल्टी नेशनल में नौकरी करनी है, फॉरेन टूर पर जाना है, दुनिया देखनी है, जमकर रोमांस करना है… तब कहीं जाकर शादी! वह भी किसी अंबानी या सिंघानिया से. सोचकर जिया के मन में गुदगुदी होने लगी…

तीन घंटे पढ़ने के बाद जब उसने मोबाईल खोला , उसमें दनादन नितिन के व्हाट्स एप्प पे मैसेज आने लगे… पूरे 15 मैसेज. साथ में मिस कॉल की सूचना भी. उसने उसे जवाब में एक छोटा मैसेज कर दिया था- ‘एक्ज़ाम है… पढ़ाई करनी है…’
दूसरी तरफ से एक स्माईली के साथ तुरन्त एक मैसेज आया- ‘ओके मैडम क्यूरी!’

थोड़ी देर बाद जसिका का फोन आया था. कुछ देर बात करने के बाद कल बाहर घूमने जाने की बात कहकर उसने फोन रख दिया…

कमरे से निकलते हुये उसने सुना था, बुआजी मां से दबी जुबान में कह रही थीं- ‘बेटी की किताब, अलमारी को बीच-बीच में चेक कर लिया करो. हो सकता है कोई प्रेम पत्र-वत्र मिल जाये.’

सोने से पहले बुआ और मां कई बार कमरे में झांक गई थीं. उनके सोने के बाद क़िताब के बीच मोबाईल छिपाकर उसने फ़ेसबुक खोला. इनबॉक्स में दस मैसेज. उनमें से 5 नितिन के बाकि दूसरे दोस्तों के. जेनिफर ने फिर अपना प्रोफाइल पिक्चर बदला है. हूं! खुद को प्रियंका चोपड़ा समझती है. हर दो दिन में नया फोटो… मोटी कहीं की! इसे सबक सिखाती हूं! उसने अपने दूसरे वाले फ़ेक अकाउंट से उसकी तस्वीर के नीचे कमेंट डाल दिया था- ‘आंटी दिख रही हो, वजन घटाओ!’ ये नकली अकाउंट बड़े काम की चीज़ है. जिसे चाहो लतियाओ! झूठ का सहारा लेकर ही सच बोला जा सकता है. कितनी मजेदार बात है।
फेसबुक पे यही सब फन करते हुए अचानक से उसका नेट पैक खत्म हो गया… शीट! अब नेट पैक भी डलवाना पड़ेगा… पैसे किससे मांगू… पापा तो एक ही बार रिचार्ज करवाते है दुबारा वो करवाने से रहे… सुबह माँ को पटाना पड़ेगा…  मां भुनभुनाती रहती हैं कि इस लड़की के खर्चे बढ़ते ही जा रहे हैं, ऐसे ही फिजूल खर्ची करती रहेगी तो उसके दहेज के लिये कहां से पैसे जुड़ेंगे… यही सब सोचते हुए जिया सो गयी।

अगले दिन जिया तैयार होकर टाइम से कॉलेज पहुंची. आज पूरा क्लास खाली खाली नजर आ रहा था… दो चार पढ़ाकू टाइप के स्टूडेंट्स को छोड़ दे तो आज क्लास में कोई नही था… उसके ग्रुप का भी कोई नही दिख रहा था उसे… जिया ने सोचा जब आ ही गयी हूँ तो एक दो लेक्चर अटेंड ही कर लूँ. जिया सामने की बेंच पर अकेली बैठी. उसे याद आया आज शुक्रवार है और आइनॉक्स में ऋतिक रोशन की बैंग-बैंग लगी है. सब क्लास बंक करके वहीं गये होंगे… वैसे भी टिफिन के बाद आधा क्लास अक़्सर खाली ही हो जाता है. जब टीचर रोल नम्बर लेते हैं, स्टुडेंटस एप्लीकेशन पर सिग्नेचर करवाने उनके ईर्द-गिर्द जमा होते हैं. इस मौके का फायदा उठाते हुये कई लड़के-लड़कियां क्लास से बाहर खिसक लेते हैं.

खैर एक दो क्लास जैसे तैसे खत्म करके वो कॉलेज से निकल गयी… गांधी चौक के पास उसने नितिन और जेनिफर को बाईक से मीरामार बीच की तरफ की तरफ जाते हुये देखा. मगर उसने उन्हें टोका नहीं. एक अजीब-सी विरक्ति का भाव पैदा हुआ था उसके मन में- भाड़ में जाये सब…

चूँकि जिया के कॉलेज में इंटरनल एग्जाम होने वाले थे… इसलिए परीक्षा से पहले के दो दिन जिया ने खूब मन लगाकर पढ़ा… फोन उठाकर अलमारी में रख दिया. बुआ चली गई थीं इसलिये घर में शांति थी. उसके सारे पेपर अच्छे जा रहे थे.. आखिरी पेपर इकोनॉमिक्स का था. कॉलेज गई तो सबको यहां-वहां क़िताब में सर डाले हुये पाया. आंखों में उबासी, उड़े हुये बाल, लड़कियों के बिना मेक अप के चेहरे… सब के हाल कमोबेश एक जैसे… सब के सब एग्जाम से पीड़ित लग रहे थे, मगर जेनिफर का स्टाईल बरकरार था. वही स्नग फीट टॉप, फेडेड जींस और हाई हील सैंडल… सबके साथ साथ फादर आन्तिम भी उसे घूर कर देख रहे थे. जिया को देखकर उसी के साथ पढ़ने वाले टोनी ने उसे पास बुलाया था- “अच्छा! ज़रा ये बताओ बालिके! नेपोलियन का हाईट जानना हमारे लिये क्यों ज़रुरी है? इससे किसी का क्या भला होगा? कल सारी रात जगकर रीति काल की नायिकाओं का नख-शिख वर्णन पढ़ रहा था… यही सब पढ़-पढ़ाकर इंडिया सुपर पावर बनेगी क्या? बुल शीट” उसकी बात सुनकर जिया को हंसी आ गई. टोनी के बालों में आज जेल नहीं लगा था, इसलिये उसके हमेशा साही की तरह तने रहनेवाले नुकीले बाल आज चेहरे पर पस्त गिरे हुये थे. रतन एक कोने में बिना एकबार भी सर उठाये पढ़े जा रहा था. ग़रीब मां-बाप का एकलौता बेटा, उसे तीन बहनों की शादी करनी है. रात दिन इसी फिक़्र में घुला रहता है. उसे चार-पांच प्रतियोगिता परिक्षाओं में भी बैठना है. कॉलेज के बाद कई जगह ट्युशन पढ़ाता है. जाने सबकुछ कैसे मैनेज करता है!
रॉनी ने आकर टोनी से दो सौ रुपये उधार मांगे थे- “फॉर गॉड्स सेक! इज्ज़त बचा ले यार! गर्ल फ्रेंड कैंटिन में बैठी ऑडर पे ऑडर दिये जा रही है- मैक्सिकन पिज्ज़ा विथ थिक क्रस्ट एंड एक्सट्रा चीज़! मोटी बहुत खाती है! नहीं खिलाया तो जेम्स की बड़ीवाली बाईक में बैठकर अभी चली जायेगी…” उसका चेहरा यह कहते हुये रुआंसा हो आया था.
टोनी ने उसे उधार देने से मना कर दिया था – “गर्ल फ्रेंड अफोर्ड नहीं कर सकता तो रखता क्यों है?”
’ना’ सुनकर छुहारे-सा मुंह बनाकर वह एक और लड़के की तरफ बढ़ गया…

पेपर देकर जिया बाहर आई तो उसका मन बहुत हल्का हो आया. उसका पेपर बहुत अच्छा गया था. आज घर जाकर खूब सोना है… कितने दिन से पूरी नींद सोई नहीं. गुलमोहर के नीचे चलते हुये जिया ने सोचा था. कॉलेज कैम्पस में रास्ते की दोनों ओर कतार से गुलमोहर के पेड़ लगे हुये हैं, इस मौसम में सुर्ख फूलों से भरे हुये. झरे हुये गुलमोहर से रास्ता भी दूर-दूर तक लाल दिख रहा है. एक अच्छी बारिश के बाद चमकीली धूप निकली है. सबकुछ धुला-धुला, निखरा निखरा सा… हल्की चलती हवा में बोगन बेलिया के पौधे झूम रहे हैं. यह कॉलेज एक पहाड़ी पर है. ऊपर से एक तरफ मापुसा शहर दिखता है तो दूसरी तरफ पहाड़ की ढलान पर बसी झोपड़ पट्टी! मापुसा गोआ का एक छोटा और खूबसूरत शहर है… यहां आये हुये जिया के परिवार को दस साल हो गये हैं. जब वे यहां आये थे, जिया बहुत छोटी थी…
स्कूल में थी… अब तो इतने सालों में यही की होकर रह गई.. हालांकि मां बार-बार याद दिलाती हैं, यह हमारा समाज नहीं है! तेरी शादी भी यहां नहीं होनी है.
सोचते हुये वह कैम्पस के पिछले गेट तक पहुंच गई थी. उसकी आहट पाकर एक जोड़ा दायीं तरफ बने टेनिस कोर्ट की सीढ़ियों से झांककर देखा था और हड़बड़ाकर अपने कपड़े झाड़ते हुये उठ खड़ा हुआ था. लड़की के होंठ फीके थे और लड़के के रंगे हुये. उस जोड़े को देखकर उसे हंसी आ गई थी जिसे दबाते हुये वह अनजान बनकर आगे बढ़ गई… चारों तरफ यही हाल है. कोई गुलमोहर के पीछे छिपा है तो कोई प्रयोगशाला में दुबका बैठा है. लायब्रेरी में भी प्रेमी युगल घंटों अलमारियों के पीछे अंधेरे कोनों में घुसे किताबें ढ़ूंढ़ते रहते हैं. जाने वह कौन-सी किताब है जो उन्हें इतना ढूंढ़ने के बावजूद आज तक नहीं मिल सकी…  सोचते हुये वह गेट तक पहुंची थी जब पीछे से जसिका ने उसे आवाज़ दी.. दोनों साथ साथ अपने अपने घर की ओर चल दी…
कुछ दिनों बाद कॉलेज में वार्षिकोत्सव हुआ… हिंदी विभाग ने भी हिंदी महोत्सव मनाया.. जिया ने सब में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया… इन मौकों में पढ़ाई की बोरियत और एग्जाम के तनाव से कुछ निज़ात मिल जाती थी. दोस्तों के साथ मिलकर हर जगह घूम-घूमकर प्रोग्राम के टिकट्स बेचना, बैनर तैयार करना, डांस आदि का रिहर्सल… उसे हर बात में बहुत मज़ा आता था. एनुअल फंक्शन के दौरान उसने फैशन शो में भी हिस्सा लिया था और दूसरा ईनाम जीता था. ’मांडो’- विशेष पुर्तगाली गीत के लिये भी उसके ग्रुप को ईनाम मिला था…

क्रिचियन कॉलेजो में दिसंबर का तो पूरा महीना ही त्योहार और कार्यक्रमों का महीना होता है. तीन दिसंबर को सेंट ज़ेवियर्स के जन्मदिन के अवसर में पूरे गोआ में छुट्टी रहती है. उसदिन ओल्ड गोआ में बम जीसस चर्च जाने के बहाने वह दोस्तों के साथ आइनॉक्स में एक फ़िल्म भी देख आई थी. जेनिफर अचानक पढ़ाई छोड़कर अपनी मां के पास दुबई चली गई थी. उसके बाद जिया का नितिन उसके पास लौट आया था. आख़िर थोड़े दिनों के ना-नुकुर के बाद वह भी मान गई थी. दोनों का साथ-साथ घूमना, समय बिताना फिर से शुरु हो गया था. मन में एक कसक तो थी, दिल में कुछ शिकवे तो थे… उसे कभी कभी लगता था नितिन उसे सच्चा प्यार नही करता  मगर गिर भी जाने क्यों नितिन से दूर रहना उसके लिये आसान नहीं था. फिर वह ज़्यादा भाव दिखाती तो नितिन किसी और के पास चला जाता. उसके लिये लड़कियां लाईन लगाकर खड़ी रहती हैं. जसिका ने भी समझाया था – “मर्दों की छोटी-छोटी बातों को इग्नोर करना सीख. वफा इनके डी एन ए में नहीं होती. तुझ पर मरने की क़समें खायेंगे मगर नज़र दूसरों पर लगी रहेगी. वो तो गनीमत हुई, ऊपरवाले ने इन्हें कुत्तों की तरह एक अदद पूंछ से नहीं नवाज़ा…
वर्ना लडकियों के सामने लगातार हिलती ही रहती… उसकी बाते सुनकर जिया को रोते हुये भी उसे हंसी आ गई …

लायब्रेरी में पढ़ने का बहाना बनाकर इन दिनों वह नितिन के साथ उसकी बाईक में बैठकर घूमती रहती है. पिछली सीट में उसे बैठाकर जब नितिन अपनी बाईक फुल स्पीड से दौड़ाता,तो  वह रोमांच से भरकर उसकी पीठ से चिपक जाती और अपनी आंखें मूंद लेती. उसे लगता दोनों किसी घोड़े पर सवार होकर बादलों के बीच उड़े जा रहे हैं… सबकुछ स्वप्न सा प्रतीत होता, मांसल भी और स्पर्श से परे भी- देहातीत! अधिकतर वे शामों को वाघातोर या कलंगुट बीच पर सूर्यास्त देखने जाते… गीली रेत पर दूरतक नंगे पैरों साथ-साथ चलना, नमकीन हवा में सूखी मछली और खर-पतवार की उग्र, मादक गंध, जल पक्षियों का उदास शोर… कासनी आकाश की पृष्ठभूमि में क्षण-क्षण रंग बदलता समंदर, उसकी बेचैन लहरें… सबकुछ उसे किसी और दुनिया में खींच ले जाता. दूर तक बिखरी काली चट्टानों और काजू के महकते जंगलों के बीच पहली बार नितिन ने उसे अपने बाँहो में भरा था. उसने सिहरकर कहा- ‘जानते हो नितिन कहीं पढ़ा था, मरते हुये एक औरत को उसका पहला चुम्बन याद आता है! तुम्हारा ये स्पर्श मुझे मेरे आख़िरी पल तक याद रहेगा!’ नितिन ने जिया की इस बात पे उसे अपनी बाँहो में और जोर से कस लिया इसके बाद दोनों के बीच एक खूबसूरत-सा मौन देर तक के लिये पसर गया…
यूँ तो जिया को गोआ में रहते 10 साल हो गए थे मगर इन कुछ दिनों में नितिन के साथ उसने जितने खूबसूरत पल बिताएं उसके बाद ही वो जान पायी कि गोआ कितनी खूबसूरत जगह है. यहां की नाईट लाईफ- पब, डिस्कोथेक, मांडवी नदी पर तैरते रंग-बिरंगे कसिनोज़… पिछले साल पहली बार नये वर्ष की पार्टी में वह दोस्तों के साथ यहां के मशहूर शिस्कोथेक ’टिटोज़’ में गई थी, वह भी घर में झूठ बोलकर कि उसकी सहेली का एपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ है, उसे उसके साथ अस्पताल में रहना है. उसे झूठ बोलना अच्छा तो नहीं लगता, मगर क्या करे! मां-बाप ही इसके लिये मजबूर करते हैं. अगर आप सच नही सुन सकते तो अपको झूठ ही मिलेगा। मन पसंद चीज़ों को ताले में बंद करके रखोगे तो बच्चे चुराकर ही खायेंगे। पता नहीं क्यों लोग हमेशा नकारात्मकता में जीते हैं. हर वह चीज़ जो अच्छी लगे उसी से दूर रहो. हंसना नहीं, जीना नहीं, बस मुंह लटकाकर, मन मारकर जीते रहो… शायद इसी से सब कुंठित और व्यथित हैं. खुद मन मुताबिक जी नहीं पाते तो दूसरों को भी जीने नहीं देते. उसी दिन ’टिटोज़’ की पार्टी में उसने पहली बार लिमका में मिलाकर ’बोदका’ पिया था. और भी क्या-क्या- बकार्डी रिज़र्वा के व्हाईट रम में मिलाकर ज़माइकॉन फ्लेवर का ब्रीज़र, टकिला, कॉकटेल ब्लडी मैरी, व्हाइट मिस्ट, पिना कोलाडा… पहली बार, वह भी इतना कुछ!! थोड़ा-थोड़ा चखकर ही नशा हो गया था. उसे तब कहां पता था रम, बोदका, व्हिस्की आदि कभी एकसाथ मिलाकर नहीं पीते! गनीमत थी कि उस रात घर नहीं लौटना था. लेकिन जो भी हो, मज़ा बहुत आया था- ठहाके, रोशनी, म्युज़िक… काश वह ऐसी जगहों में अक़्सर आ-जा सकती! कितने दकियानुस हैं उसके परिवारवाले! ख़ासकर मां! उनका एक ही ध्येय है जीवन में- किसी तरह घेर-घारकर उसकी शादी करवा दे! मगर वह अपने जीवन को पूरी तरह से एंज्वाय करना चाहती है. एकबार शादी हो गई तो बस हो गई छुटटी! पहले-पहल तो दोस्तो की ज़िद्द की वजह से उसने शराब पी थी मगर अब उसे चस्का लग गया है. जब भी मौका मिलता है, पी लेती है. ’पीअर प्रेशर’ में बहुत कुछ करना पड़ता है. वर्ना आप भीड़ से अलग-थलग पड़ जाओगे. नितिन ने भी दोस्तों के कहने में आकर सिगरेट पीना शुरु किया था… ईसाइयों की शादी में जाना जिया को इसलिये भी पसंद है कि वहां शराब सर्व की जाती है और डांस भी जमकर होता है. अब वह भी बॉल डांस, बालट्ज़, टेन्गो, चा-चा, ट्वीट्स, राम्बा-साम्बा- सब कर लेती है. सारा दिन घूम-घूमकर वह इतना थक जाती कि शाम को घर लौटकर उससे और कुछ नहीं होता. बस किसी तरह खा, नहाकर सो जाती. अब तो क्लासेज़ भी वो रोज़ बंक कर रही थी. नितिन का इश्क़ उसके सर चढ़कर बोल रहा था. उसके साथ सारा दिन घूमना, देर रात तक फेसबुक पर चैट करना, मिल्स एंड बून्स सीरिज के रोमानी उपन्यास पढ़ना… कभी-कभी मन में ग्लानि के भाव भी उत्पन्न होते मगर वह अपने दिल के हाथों मजबूर हो गई थी… उसे नही पता क्या सही क्या गलत बस उसे जो अच्छा लगता वो किये जा रही थी…

उसे नितिन के सिवा कुछ सुझ नहीं रहा था.

इस बीच उसी के कॉलेज में पढ़ने वाले शीतल और अशोक ने अचानक से सामंतवाडी भागकर शादी कर ली थी. गोआ में पुर्तगाली कानून होने की वजह से रजिस्ट्री मैरिज करने में काफी दिक्कतें आती है इसलिये यहां के प्रेमी युगल अक़्सर महाराष्ट्र के सामंतवाडी में जाकर विवाह कर आते हैं. वहां पंडित थोड़े-से पैसों के बदले में कहीं भी बैठाकर शॉर्टकट में शादी करा देते हैं और वह वैधानिक मानी जाती है. शीतल यहां के एक बड़े मंदिर के पुरोहित की बेटी है और अशोक दलित. शीतल के माता-पिता शीतल की शादी करना चाह रहे थे, अंत: दोनों को यह आकस्मिक निर्णय लेना पड़ा था. अब दोनों को उनके घरवाले घर से निकाल चुके थे और वे यहां-वहां भटकते फिर रहे थे. आठ-दस दिन तो दोस्तों ने चंदा करके उनका खर्च उठाया था इसके बाद अशोक ने एक शाइवर कैफे में नौकरी ढूंढ़ ली थी. शीतल भी कुछ बच्चों को ट्युशन पढ़ाने लगी थी. शादी के बाद दोनों की ज़िन्दगी एकदम से बदल गई थी. घर से खा-पीकर कॉलेज के कैंटिन और पार्क में इश्क लड़ाने में और ज़िन्दगी की हकीकतों का सामना करने में बहुत फर्क होता है. थोड़े ही दिनों की मुफलिसी ने दोनों की सिटटी-पिटटी गुम कर दी थी. उनका हश्र देखकर दूसरे प्रेमियों के माथे भी ठनकने लगे थे.

धीरे धीरे फाइनल एग्जाम के दिन सर पर आ गयेे. सारे टीचर्स विद्यार्थियों के पीछे उनका हौसला बुलंद करने में लगे हुये थे. प्रिंसिपल बार-बार कक्षा में आकर लेक्चर झाड़ते. इन सब में मिस सलदाना की बात जुदा थी. उनकी साड़ी, लिपस्टीक, गहने- सब मैचिंग होते. बिल्कुल ’मैं हूं ना’ की सुष्मिता सेन की तरह. सब उन्हें पीठ पीछे सुस्मिता सेन कहकर बुलाते थे. उन्हें भी इस बात का अहसास था कि वे सुस्मिता सेन की तरह दिखती हैं तभी हर बात में उनकी नकल उतारती रहती थी. मिस सलदाना के क्लास में विद्यर्थियों की उपस्थिति हमेशा सौ प्रतिशत रहा करती थी. उन्हें सब सुनते कम और देखते ज़्यादा थे. दूसरे क्लास के विद्यार्थी भी उनके लेक्चर में आ बैठते थे. उन्होनें भी एकदिन जिया को स्टाफ रुम में बुलाकर बहुत समझाया था. बताया था कि नितिन उसके लिये ठीक लड़का नहीं है. वह उसकी संगति छो़ड़कर पढ़ाई में मन लगाये. उनके सामने तो जिया चुपचाप सर हिलाती रही थी मगर बाहर आकर मुंह बनाया था- ऊंह! बड़ी आई समझाने वाली खुद तो जाने कितनो को फंसाकर घूमती है मुझे बता रही है कौन अच्छा है कौन बुरा…

इस बार एग्जाम में बैठने लायक उसकी तैयारी बिलकुल नही थी.क्योकि वह पिछले कुछ दिनों से पढ़ाई लिखाई से कोसो दूर चली गयी थी… वह तो गनीमत थी कि मां गांव गई हुई थीं वर्ना उसकी अच्छी-ख़ासी मरम्मत हो जाती. मां परीक्षा के समय उसे इस तरह कभी छोड़कर नहीं जातीं, मगर दादी की बिमारी की ख़बर आ गई थी. घर में उनके ना होने की वजह से उसे और ज़्यादा छूट मिल गई थी. पापा सारा दिन दफ्तर में रहते. भाई भी माँ के साथ गाँव गया हुआ था.. इसी माहौल का फायदा उठाकर अब नितिन छिप-छिपकर उसके घर में भी आने लगा था. उसकी मांगों के साथ-साथ उसकी हिम्मत भी बढ़ती जा रही थी. जिया उसके सामने बेबस होकर रह जाती. उसे किसी बात के लिये ना करना उसके वश की बात नहीं रह गई थी. रोज दोनों रोमांस की नई नई सीढिया चढ़ने उतरने लगे…

परीक्षा की तैयारियो के बीच ही कॉलेज में एक दुर्घटना घटी थी. बी. ए. दूसरे वर्ष में में पढ़ने वाली काम्या महाजन अपने तीन-चार दोस्तों के साथ एक पार्टी में गई थी जहां उसके कोल्ड ड्रिंक में कोई नशीली चीज़ मिलाकर कुछ लड़को ने उसके साथ बलात्कार किया था. यही नहीं, बलात्कार के बाद गला घोंटकर उसे जान से मार भी दिया था. आंजुना बीच में दूसरे दिन उसकी लाश पाई गई थी. इस घटना से कॉलेज के बच्चों में सनसनी फैल गई थी. किस बेरहमी से उसकी जान ली गई थी. बाद में उसकी हत्या के ज़ुर्म में जिन तीन लड़कों को पकड़ा गया था वे सभी ब्राउनी याने ड्रग लेने वाले पाये गये थे. कॉलेज के ही नहीं, कान्वेंट स्कूल के बच्चे भी आजकल ड्रग के शिकार होते जा रहे थे. स्कूल के आसपास आइसक्रीम, चाट आदि बेचनेवाले बच्चों में पहले ड्रग की आदत डालते फिर उन्हें ड्रग बेचते. कुछ दिन पहले ही प्रिंसिपल ने कॉलेज हॉस्टल से दो लड़कों को इस वजह से निकाल बाहर किया था. वे रातों को किसी सुनसान जगह में या हॉस्टल की छत पर बैठकर ड्रग लेते थे. हॉस्टल से निकाले जाने के बाद उनमें से एक लड़का अपना मानसिक संतुलन खो बैठा था और अब उसका ईलाज चल रह था. इन सारी घटनाओं ने जिया को बेहद परेशान कर दिया. लेट नाईट पार्टियों के प्रति वह सशंकित हो उठी थी. वहां भी उसने अपने दोस्तों को ड्रग सिगरेट में डालकर पीते हुये या रुपहली पन्नियों में लेकर उसे नश्वार की तरह सूंघते हुये देखा था. नितिन ने बहुत ज़िद की थी मगर उसने नहीं ली थी. सबने कहा भी था- लेकर देख, एकदम जन्नत में पहुंच जायेगी!

इन दिनों उसकी परेशानी का एक कारण और भी था. उसका पीरियड दो महीने से मिस हो रहा था. कॉलेज में मिस इवॉन के फेयरवेल पार्टी में उसने दूसरी लड़कियों के साथ मिलकर एक मणिपुरी नृत्य प्रस्तुत किया था…
जिसके लिये उसे बांस की लाठियों के बीच बहुत कूदना पड़ा था. उसे लगा था इस वजह से उसके पीरियड में देर हो रही है. मगर देखते-देखते जब दूसरा महीना भी आकर गुज़र गया,तो वह चिन्तित हो उठी. अब तो रह-रहकर जी भी मिचलाने लगा था. मन कच्चा हो रहा था. हमेशा गुस्सा और रोना आता रहता. बात-बेबात चिढ़ भी जाती. जब भी घर में या कहीं तलने या भुनने की गंध आती उसे उल्टी हो जाती. इसी चक्कर में वह कई दिनों तक कॉलेज लायब्रेरी भी जा नहीं पाई थी. थोड़े दिन बाद उसकी खोज-ख़बर लेने जसिका उनके घर चली आई…  उस समय वह चुपचाप बिस्तर में लेटी हुई थी. उसे देखकर जसिका को बहुत हैरत हुई थे – “अरे! ये क्या हाल बना रखा है! कुछ खाती पीती नहीं क्या?”
जसिका ने तो मज़ाक में कहा था मगर उसकी बात सुनकर जिया एकदम से भरभराकर रो पड़ी थी. उसे इस तरह रोते देख जसिका घबरा उठी थी- “अरे रे… रोती क्यों है! मै तो मज़ाक कर रही थी!” मगर फिर उसकी सारी बातें सुन वह भी गंभीर हो गई थी – “मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा है!”

जसिका फार्मेसी जाकर प्रेगनेन्सी कीट खरीद लाई थी. टेस्ट का नतीजा पॉज़िटिव आया था. जिया के होश उड़ गयेे. जसिका भी चिन्तित हो उठी थी. मामला संगीन था. जिया को शांत करना कठिन हो रहा था उसके लिये. वह रोते हुये बांस के पत्ते की तरह थरथरा रही थी. मां कुछ ही दिनों में वापस आने वाली थीं गांव से. साथ में बुआ भी आ रही थी. फाइनल एग्जाम में भी ज़्यादा दिन नहीं बचे थे. बहुत सोच-विचार कर जसिका ने सलाह दी थी कि पहले नितिन से बात की जाय. देखे वह क्या कहता है. मगर हज़ार क़ोशिश के बाद जब जिया ने किसी तरह उससे फोन पर बात की , तो सारी बातें सुनकर वह देर तक चुप रहा और फिर किसी तरह खांसते हुये कहा था वह जल्द ही इस समस्या को सुलझाने के लिये कोई रास्ता निकाल कर उसे फोन करेगा.

जिया इसके बाद बेसब्री से उसके फोन का इंतज़ार करती रही मगर नितिन ने दुबारा कभी फोन नहीं किया। वह जब भी उसे फोन करने की क़ोशिश करती उसका फोन स्वीच ऑफ ही मिलता. दिन बीतने के साथ-साथ उसकी घबराहट बढ़ती ही जा रही थी. उसकी पढ़ाई-लिखाई तो एकदम बंद पड़ गई थी. उसे कुछ भी सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे. बस एक जसिका का ही सहारा था. और एक दिन जसिका ने ही आकर बताया था कि आंजुना के बीच पार्टी में ड्रग बेचते हुये नितिन गिरफ्तार हो गया. जिया को पता था अच्छी बॉडी के कारण नितिन ऐसी पार्टियों में बाउंसर की हैसियत से जाया करता है. मगर वह ड्रग भी बेचता था! सुनकर जिया को गश  आ गया…

आखिर जसिका ने कोई और रास्ता ना देख अपने ब्यॉय फ्रेंड शिवेन से बात की थी. शिवेन की कोई मुंहबोली भाभी एक प्राईवेट क्लीनिक में नर्स थी. उस क्लीनिक का डॉक्टर चुपचाप अबॉर्शन करने के लिये तैयार हो गया था. उसने दो-चार दिन के भीतर अबॉर्शन करवा लेने के लिये कहा था क्योंकि गर्भ तीन महीने से ज़्यादा का हो गया था. अबॉर्शन के लिये दस हज़ार रुपये की ज़रुरत थी. जिया के पास सिर्फ हज़ार रुपये ही थे. बाबूजी उसे जेब खर्च के लिये रोज़ बीस रुपये देते थे जो उसके लिये कम पड़ते थे. उसने अपनी गुल्लक तोड़कर देखी थी. ढेर-सी रेज़गारी गिनकर सात सौ रुपये और मिले थे. और कोई रास्ता ना देख उसने अपने कान की सोने की बूंदे उतारकर शिवेन को बेचने के लिये दे दी थी. मां के सामने इसके लिये क्या बहाना बनाना है ये बाद में सोचा जाएगा. उन्हें बेचकर और पांच हज़ार का बन्दोबस्त हो गया था. जसिका ने भी हज़ार रुपये उधार दिये थे. शिवेन की भाभी के कहने पर डॉक्टर बाकी पैसे बाद में लेने को तैयार हो गया था.

परीक्षा में सिर्फ सात दिन रह गये थे. मां और बुआ गांव से आ गई थी. जिया की हालत देखकर दोनों चौंके थे. जिया ने पढ़ाई के टेंशन का बहाना बनाया था. वह अक़्सर अपने कमरे में बंद रहती. उसे बुआ की भेदती नज़रों से डर लगता. उसे प्रतीत होता जैसे बुआ उसे आर-पार देख रही हैं. अपने कमरे के एकांत में पड़ी-पड़ी वह चुपचाप रोती रहती थी. उसे ऐसे में नितिन की बहुत याद आती थी. उसने उसे एकबार मुड़कर फोन नहीं किया था. अकेली मरने के लिये छोड़ दिया था. गिरफ्तार तो वह इसके कई दिनों बाद हुआ था. आख़िर वह भी दूसरे मर्दों की तरह निकला… उसे उससे प्यार नहीं था, बस जिस्म की भूख थी. वह जितना सोचती उतना ही उसके दुख बढ़ जाते. जसिका ने इस बीच आकर बताया था डॉक्टर कहीं बाहर गया हुआ है. सात तारीख की सुबह तक ही लौटेगा. उसी दिन दोपहर को उसका अबॉर्शन हो पायेगा. सुनकर जिया और बेचैन हो उठी… आठ तारीख से उनका फाइनल एग्जाम शुरु होने वाला था। मगर क्या किया जा सकता था. अबॉर्शन तो करवाना ही था. तय हुआ, जसिका के घर जाकर पढ़ाई करने का बहाना करके वह घर से निकलेगी और डॉक्टर के क्लीनिक जाकर अबॉर्शन करवा लेगी.
शिवेन की भाभी ने बताया था, ऐसी चीज़ें बहुत आसान होती हैं और दो-चार घंटे आराम करके वह घर जा सकती है.

सात तारीख को वह सुबह जसिका के साथ घर से निकली थी. मां ने बहुत बुरा माना था. मना भी किया था. बुआ भी उनका साथ दे रही थीं मगर किसी तरह उन्हें मनाकर वह घर से निकली. गली के मोड़ पर शिवेन उनके लिये इंतज़ार कर रहा था. तीनों साथ क्लीनिक पहुंचे थे. क्लीनिक में शिवेन की भाभी ने उनका स्वागत किया था. जिया बुरी तरह घबराई हुई थी. उसे रह-रहकर रोना आ रहा था. जसिका ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था. उसकी हथेलियां पसीने से भीगी हुई थी. जसिका और शिवेन को पढ़ाई के लिये लौटना था. भाभी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वे सब संभाल लेंगी और जिया का ध्यान रखेंगी.

जसिका और शिवेन के जाते ही जिया का दिल बुरी तरह से घबराने लगा था. ना जाने क्यों अचानक उसे मां की याद आने लगी थी. जी चाह रहा था किसी तरह वह अपनी मां तक पहुंच जाये और उनकी गोद में छिप जाये. यह क्लीनिक एक निहायत गंदी, अंधेरी गली में था. वहां का वातावरण भी बहुत दमघोंटूं और उदासी भरा था. बीमार मरीज़ों की भीड़, चिड़चिड़ी नर्से, बदतमीज़ वार्ड ब्यॉयज़, दवाई, डेटॉल, फिनाइल की गंध और इधर-उधर से यदा-कदा आती कराहने की आवाज़ें. शायाद ओ. टी. में किसी की डिलीवरी हो रही थी. रह-रहकर उसकी तेज़ चीखें सुनाई पड़ रही थी. एक कोने में कोई सिसक-सिसककर रो रहा था. नर्सों की बातों से लग रहा था किसी का नवजात बच्चा मर गया है. “ये बच्चे होते क्या हैं, भीगे हुये रूई के नर्म गोले! आग़ लगाते ही भाप बनकर उड़ जाते हैं या गर्मी में ओस की बूंद की तरह पिघल जाते हैं, बस…” सुनकर उसने अनायास अपने पेट पर हाथ फेरने लगी. थोड़ी ही देर बाद सफेद तौलिये में लपेटकर एक खिलौने-से बच्चे को कुछ लोग रोते-सिसकते हुये ले गये.. जिया दुपट्टे से अपना चेहरा छिपाकर किसी तरह बैठी रही.

काफी देर हो जाने के बाद शिवेन की भाभी उसे ओ. टी. में बुलाकर ले गई. नीला गाउन पहनकर ऑपरेशन टेबल पर लेटकर वह अपने आसपास चलती गहमा-गहमी को महसूस करती रही थी. उसे अबॉर्शन के लिये तैयार किया जा रहा था. युनिफॉर्म में नर्से, बगल की मेज़ पर सजे तरह-तरह के औज़ार, चाकू-छुरियां, बर्तन, दवाइयां, सर के ऊपर स्पॉट लाईटस… फुसफुसाती आवाज़ें, दवाईयो की उग्र गंध… देखते-सुनते हुये उसकी आंखों से अनायास आंसू बहने लगेे. जाने क्या-क्या याद आने लगा उसे। उस पल  उसे अपना बचपन, अपनी प्रिय गुड़िया, पापा, मां, छोटा भाई, नितिन, उसका पहला चुम्बन,कॉलेज, कैंटीन जाने क्या क्या… सब उसकी आँखों में एक फ़िल्म सा तैरने लगा…

उसकी भरी हुई आंखों में एक परी का सफ़ेद अक्स लहराया. उसे एनेस्थेशिया का इंजेक्शन देते हुये वह गुनगुनाकर कह रही थी- रो मत, सब ठीक हो जायेगा, अब तुम एक अच्छी बच्ची की तरह सो जाओ… और जिया सचमुच एक अच्छी बच्ची की तरह अपने सारे सपने और दुख के साथ चुपचाप सो गई…

आज परीक्षा का दिन है. कॉलेज कैम्पस में चारों तरफ चहल-पहल है. सभी के हाथों में खुली क़िताबें हैं, आंखों में जगार और चेहरे पर तनाव. राहत को टॉप करना है . वह पूरी तरह से तैयार है फिर भी तनाव में है. रतन नर्वस हो रहा है. वह किसी भी तरह ख़राब रिजल्ट नहीं कर सकता. उसपर उसकी तीन बहनों की जिम्मेदारी है. रोशन अपनी स्पोर्ट्स कार में आया है और कैंटिन में बैठा मस्ती कर रहा है. पढ़ाई का उसे कोई टेंशन नहीं. आगे चलकर उसे अपने बाप का जमा-जमाया बिजनेस सम्हालना है. ऋतु की आंखें उसके मोटे चश्मे के फ्रेम के पीछे पढ़-पढ़कर सूज गई हैं. उसे बहुत पढ़ना है, आई. ए. एस. ऑफिसर बनना है. मौज-मस्ती के लिये तो उम्र पड़ी है. अभी आलतू-फालतू चीज़ों में समय नहीं बर्बाद करना है उसे.

परीक्षा शुरु होने में थोड़ी ही देर रह गई है मगर एक कोने में बैठी हुई जसिका अपने सामने फैली हुई क़िताब में किसी भी तरह ध्यान नहीं लगा पा रही है. उसकी आंखों के सामने रह-रहकर जिया का परेशान सा मासूम चेहरा घूम रहा है. जाने कैसी है वह…

दूसरी तरफ जिया के पापा और मां जिया की डायरी में जसिका का फोन नम्बर ढूढ़ रह है.. उसे फोन करने के लिये. जिया ने उसके साथ जाने के बाद कल दोपहर के बाद एक बार भी फोन नहीं किया था. जसिका का घर कॉलेज के पास था. हो सकता है जिया वही से कॉलेज चली जाये परीक्षा देने के लिये. ऐसा उसने पहले भी किया है. मगर उसे फोन तो करना चाहिये था एक बार. सुबह देर तक रास्ता देखने के बाद अब वे परेशान हो रहे थे और जिया के पापा जिया की मां को यह कहते हुये डांट रहे थे कि उन्होनें जसिका का फोन नम्बर कहीं लिखकर क्यों नहीं रखा…

…और इन सब से दूर एक अंधेरी गली के छोटे-से क्लीनिक के ऑफिस में शिवेन की भाभी कांपते हाथों से जसिका का नम्बर डायल कर रही थी. कल तक तो उसने किसी तरह उसे ये बोलकर बहला लिया था कि जिया को ज़्यादा रक्तपात हो जाने की वजह से ऑबजर्वेशन में रखा गया है और उसे आने की ज़रुरत नहीं, वे सब सम्हाल लेंगी… मगर अब उसे बताना ही पड़ेगा कि अपने अजन्मे बच्चे के साथ जिया भी इस दुनिया को अलविदा कह गई है. वह जाकर जिया के परिवार को सूचित कर दे… इसी क्लीनिक के एक तरफ सीलन और गहरे सन्नाटे भरे अंधेरे कॉरीडोर के आखिरी छोर पर स्ट्रेचर पर सफ़ेद कपड़े से ढकी एक ठंडी, लावारिश लाश पड़ी है, सर से पांव तक निचुड़ी हुई, एकदम ज़र्द, रक्त शून्य, उसकी कोख के साथ उसके सीने का पिंजरा भी खाली हो गया है… अब ना उसमें सांसें हैं, ना जीवन है, ना कोई सपना… सबकुछ खत्म हो गया… शेष कुछ नही बचा… अब यहां- ना बसंत है और ना ही उसकी प्रतीक्षा … किसी को अबतक पता नहीं, इस साल की गिनती में एक मौसम कम पड़ गया है, इस बार का बसंत बिना जीवन की देहरी उतरे दबे पांव वापस चला गया है, शायद फिर कभी ना लौटने के लिये… मगर मृत्यु की इस अडोल, अझेल चुप्पी के बीच जाने कैसे किशोर जिया की दो खूबसूरत आंखें अभी भी जिन्दा हैं और उनमें मचलते समंदर की सुनहरी लहरों में वह स्पष्ट देख रही है दो उभती-चुभती लाशें… एक उसकी और दूसरी एक लावारिस नवजात की… वह अपने पहले चुम्बन को अब भी भूली नहीं है… वह उसके मृत होंठों पर अब भी जीवित है…
लेकिन अफ़सोस सिर्फ इतना रह गया कि एक और जिया हमारे समाज में चारो ओर तेजी से फैलते जा रहे इस अनैतिक दूषित कलुषित और भयवाह  कान्वेंट कल्चर के आधुनिक इश्कियापे की भेंट चढ़ गयी…

लेखक- सौरभ पाण्डेय “शौर्य”

अधूरी मोहब्बतें

बात उन दिनों की है जब दिल के धड़कने की गति दुगनी से ज्यादा होती है। वो मौसम सावन के शुरुवात का था, पेड़ो पर नए पत्ते आ रहे थे जो सावन का स्वागत करते हुए प्रतीत हो रहे थे।

ठीक उसी समय किसी घर में तन्हाईयो के साये में लेते हुए रोहन को फेसबुक पर एक लड़की दिखी…..ना जाने क्या आया उसके मन में कि उसने उसको मित्रता अनुरोध भेज दिया और फिर तन्हाईयों से विदा लेकर अपने मित्रों के साथ सुहाने मौसम का लुत्फ़ लेने निकल गया….लेकिन मन में कहीं न कहीं उस लड़की का ख्याल उसे रोमांचित करने के साथ जैसे एक परेशानी का सबब दे रहा था।

शाम को लौटकर वो घर आता है और जल्दी जल्दी खाना खाकर अपना लैपटॉप ऑन करता है और फेसबुक देखता है…उसका मित्रता अनुरोध स्वीकार हो गया था और वो ऑनलाइन भी थी……जितने शीघ्र हो सकता था उसने उसे एक सन्देश डाला…”hii…”…..कुछ देर बाद उसका जवाब आया hiii……बस ऐसे ही बातों का सिलसिला शुरू हुआ और पता चला कि उसका नाम अंशिका है वो बिहार से है और लड़का up से था….बातों का सिलसिला लगभग 2 घंटे चला……आज रोहन इतना खुश था मानो जैसे उसे जहां की सारी खुशियां मिल गयी हो…..2 4 दिन बातें करते हुए गुजरे….और एक दुसरे का मोबाइल नंबर भी ले लिया गया…..बात दोस्ती से होते हुए आगे का सफ़र कर रही थी पर शायद दोनों ही जानते हुए अनजान से बन रहे थे……खैर..रोहन तय कर चूका था कि उसे अंशिका से मुहब्बत हो चुकी है और वो इस बात का इजहार भी करेगा ……लेकिन एक अजीब सी कसमकस जैसे हुए हर घडी घेरे हुए थी कि क्या ऐसा करना उचित रहेगा???? अगर उसने मना कर दिया तो???……बुरा मान कर बात ही करना बंद कर दिया तो????ऐसे ही तमाम सबालों की उधेड़बुन में उसने सही समय आने का इंतज़ार किआ और कुछ दिन दिल को सम्हलने की नसीहत दी….

रोहन को काम के सिलसिले में अपने गाँव जाना पड़ा 3 दिन के लिए और वहां पर इंटरनेट की सुबिधा नही थी…..वो बहुत उदास था और किसी काम में मन भी नही लग रहा था पर बेमन से ही सही पर उसे जाना तो था ही….उसने अंशिका को इक सन्देश छोड़ दिया कि 3 4 दिन के लिए उसे गाँव जाना है और बात नही हो पायेगी…..उसने भी उदास दिल से कह दिया कि ठीक है हो आओ……..अभी तक नंबर होने के बाद भी इक दुसरे से दोनों ने फोन पर बात नही की थी…….अब इन्ही 4 दिन के बीच में रोहन का जन्मदिन भी था ……..गाँव जाने के तीसरे दिन जब वो रात में सो रहा था कि अचानक उसका फोन बजता है…..वो चौंककर उठा कि इतनी रात में कौन फोन कर सकता है……पर ये क्या….स्क्रीन देखकर उसकी आँखों में एक अजीब की चमक आगयी…..दिल जैसे एक पल के लिए ठहर सा गया हो…….हाँ ये अंशिका ही थी….फिर देर न करते हुए उसने फोन उठाया और उस तरफ से एक बड़ी ही प्यारी सी आवाज़ आई…”हैप्पी बर्थडे रोहन”…..रोहन ने उसे धन्यवाद कहा……और फिर काफी देर बात हुई……रोहन को ये पता तो नही था कि शरीर में बांछे कहाँ होती है पर अंशिका से बात करके उसकी बांछे खिल जरूर गयी थी…..अपनी जिंदगी के 20 साल के सफ़र में उसे अपने जन्मदिन पर किसी के द्वारा दी गयी बधाई से इतनी प्रसन्नता नही हुई थी जितनी आज हुई थी…..दिल बहुत खुश था और रोहन इस वक़्त जैसे सातवे आसमान की सफ़र कर रहा था….नींद भी अब कहाँ आने वाली थी…..वो तो ख़ुशी में जैसे कहीं गायब सी हो गयी थी….और रोहन बस ख्यालों में खो गया और यही कह रहा था उसका दिल कि

“खुदा या ये लम्हा बस यूँ ही थम जाये,
जहाँ की सारी ख़ुशी मुझे नसीब हो गयी।।”

अब रोहन गाँव से वापस आ चूका था…..लेकिन अभी भी वो हिम्मत नही जुटा पा रहा था अपनी मोहब्बत का इजहार करने के लिए……..बातों का सिलसिला अब फेसबुक से होते हुए फोन पर आगया था….दोनों घंटों फोन पर चिपके रहते थे……

वो होली का दिन था…..रोहन पूरा मन बना चूका था आज उसे अपने दिल की बात बताने के लिए….आखिर पूरा 1 महीना हो गया था दोनों को बात करते हुए…..उसने सुबह उसे फोन किआ होली की शुभकामनाए देने के किए…..और थोड़ी देर की बात के बाद उसने कहा कि अंशिका में तुमसे कुछ कहना चाहता हु……उसने कहा कि कहो क्या बात है……पर वो कमबख्त फिर जैसे हिम्मत खो चूका था जो फोन करने के पहले बड़ी मसक्कत के बाद जुटा पाया था…..और फिर खामोश हो गया……अंशिका के बार बार पूंछने पर भी वो बता न पाया…..पर ख़ामोशी ने जैसे अंशिका से सब कुछ कह दिया था…..और बस देर थी तो रोहन की ख़ामोशी को अल्फ़ाज़ मिलने की…….लेकिन वो मुकम्मल न हो रहे थे…..पर जब अंशिका ने उसे अपनी कसम दी तो रोहन ने कहा कि बात कुछ ऐसी है कि मैं बताने में थोडा डर रहा हु……अंशिका ने पूंछा डर कैसा?????
रोहन ने बताया कि उसे डर है कि कही मेरी बात सुनकर तुम बुरा न मान जाओ और मै तुम्हे खो न दूँ….और मैं इस स्तिथि मै बिलकुल भी नही हूँ कि तुम्हे खो सकु…क्योकि मुझे तेरी आदत हो चुकी है……..जब अंशिका ने कहा कि जो दिल की बात है उसे दिल में नही रखना चाहिए……उसे बोल देना ही ठीक रहता है……अब रोहन को जब हौसला मिला तो उसने बताया कि ,”अंशिका मै तुमसे प्यार करने लगा हूँ…….और चाहता हूँ कि तुम सदा के लिए मेरी हो जाओ”………अंशिका को तो जैसे इन अल्फ़ाज़ों को सुनने का एक ज़माने से इंतज़ार था…..उसने भी पलट कर बस इतना ही कहा,” पागल….इतनी देर क्यों कर दी बोलने में????….आई लव यू टू…”……

रोहन ये शब्द सुनकर तो ऐसे खुश हुआ जैसे उसके हाथ कोई खजाना लग गया हो…..ये होली उसके जीवन की सबसे यादगार और बेहतरीन होली बनकर आई थी……इजहार-ए-मोहब्बत हुआ और बातों का सिलसिला दिनों दिन बढ़ता गया….दोनो रात रात भर फोन पर ही लगे रहते थे….

इस सबके बाद भी समस्या एक ही थी जो दोनो को परेशान किये थी……दोनों के मिलने का समय मुक़म्मल नही हो पा रहा था…..अंशिका बिहार से थी और रोहन यूपी से था……दोनों मिलने के लिए ऐसे बेताब थे जैसे पपीहा सावन की एक बूँद के लिए होता है,……2 महीने इजहार किये हो गए थे….सब बढ़िया था ……और एक दिन अंशिका ने बताया कि उसे कुछ काम के सिलसिले में दिल्ली जाना है और वो वहां लगभग 1 हफ्ते रहेगी…..अब रोहन को मिलने की एक उम्मीद जगी…..दिल्ली उसके यहाँ से ज्यादा दूर नही था……उसने बोला कि वो कुछ जुगाड़ करता है और देखता है …….उसने घर पर बोला कि मम्मी मुझे दिल्ली जाना है कुछ दिन के लिए अपने दोस्त के पास और वैसे भी छुट्टियां चल रही है…..कुछ दिन रूककर आता हूँ…..और जब ज़्यादा जिद की तो उसे मम्मी से इजाजत मिल गयी……ये रोहन के लिए सिर्फ इजाजत नही जैसे एक लकी ड्रा था……उसने सबसे पहले अंशिका को फोन करके बताया कि उसे इजाजत मिल चुकी है और वो आरहा है…….जाने के लिए 2 दिन बचे थे…..और रोहन के लिए ये 2 दिन मानो 2 सदियो जैसे कट रहे थे……आखिर जैसे तैसे 2 दिन हुए और वो अपना सामान पैक करके दिल की तड़प शांत करने दिल वालो की नगरी दिल्ली के लिए रवाना हो गया…….सारे रास्ते वो हसीं ख्वाब बुनता रहा…..मिलने पर क्या कहूँगा???….कहाँ ले जाऊंगा….ब्लाह ब्लाह…….

दिल्ली अब ज्यादा दूर नही थी……खैर वो पहुँच गया और उसका दोस्त उसे लेने स्टेशन आ चूका था……अंशिका अगले दिन आने वाली थी….उन दोनो के मिलन में ये बैरन रात जैसे रोहन को नस्तर सी लग रही थी…..पर जहाँ इतना इन्तजार किआ वहां एक रात और सही……वो रात को अंशिका से बात करता रहा और अगले दिन मिलने की प्लानिंग करने लगा…….और इसी प्लानिंग को मुक़म्मल बनाने की कसमकस में उसे कब नींद आगयी पता ही नही चला…..सुबह जब उसकी आँख खुली तो 8 बज रहे थे …..ये क्या अंशिका ने उसे 10 बजे मिलने का समय दिया था….. फोन उठाया…..देखा अंशिका के 20 मिस्ड कॉल थे…….फोन किआ तो अंशिका गुस्सा हो रही थी….रोहन ने माफ़ी मांगी और जल्दी आने का कहकर तैयार होने चला गया।

अंशिका ने उसे अक्षरधाम मंदिर में बुलाया था…..रोहन तैयार होकर जल्दी जल्दी निकला और मेट्रो पकड़ी….9:45 पर रोहन अक्षरधाम मेट्रो स्टेशन पर था और अंशिका का इंतज़ार करने लगा….10 min में जब अंशिका आई तो रोहन उसको बस दूर से एक टक देखता ही रहा…और जैसे कहीं खो गया था वो…..वो तो जब अंशिका उसके पास आकर उसे हिलाती है तब जाकर जैसे उसकी नींद टूटती है…..और वो अंशिका को गले लगा लेता है….दोनों स्टेशन से निकलकर मंदिर की ओर टहलते हुए ही चल दिए…..रोहन चाहकर भी अंशिका से पता नही कुछ बोल क्यों नही पा रहा था…..उसे कुछ समझ ही नही आरहा था कि क्या बोलूं……खैर दोनों मंदिर में पहुंचकर एक जगह सुकून से बैठ जाते है । काफी देर बैठकर बातों का सिलसिला चला और फिर वहां से निकलकर एक रेस्टोरेंट में दोनों खाना खाने गए…..अंशिका अभी 4 5 दिन और थी दिल्ली में तो मिलना तो तय ही था…..और मिले भी……ये 5 6 दिन जो रोहन ने अंशिका के साथ गुजारे थे रोहन की जिंदगी से सबसे बेहतरीन दिन थे….रोहन इन दिनों को संजोंकर रखना चाहता था……अब अंशिका को भी चूँकि घर वापिस जाना था तो रोहन भी जाने की तयारी करने लगा….और एक आखरी बार उसके जाने से पहले वो अंशिका से मिलने के लिए गया…..अंशिका से मिलकर दोनों ने काफी सारी बातें की और काफी देर तक साथ रहे…..पर वक़्त थमता नही है वो अपनी गति से चल रहा था तो दोनों को समय हो जाने के कारण जाना तो था पर दोनों का ही दिल जाने को मान नही रहा था…..रोहन से जब अंशिका ने जाने का कहा तो रोहन की आँखों में एक नमी सी आगयी और उसी नमी को छुपाते हुए उसने उसे जाने के लिए कह दिया…….अंशिका से वो अपनी आँखों की नमी छुपा न सका…..और अंशिका ने जब पूंछा कि क्या हुआ तो रोहन कुछ बताने की जगह बस उससे लिपटकर रोने लगा और वैसे भी ये आंसू अल्फाजों से बहुत कुछ ज्यादा वयां कर गए थे…..आग दोनों तरफ बराबर लगी थी तो अंशिका भी खुद को रोक न सकी और उसकी भी आँखें लगभग नम हो गयी …….थोड़ी देर बाद जब माहौल शांत हुआ तो दोनों एक दूसरे से विदा लेकर फिर मिलने के वादे के साथ दिल्ली को अलविदा कह अपने अपने घर को चल दिए।

रोहन अब घर आ चूका था …..मन उसका लग ही नही रहा था…..इतने दिन अंशिका के साथ जो रहा था पर धीरे धीरे सब सामान्य हो गया….और वैसे भी अंशिका साथ तो थी ही….शारीरिक रूप से न सही पर आत्मिक रूप से तो थी ही।
दोनों का प्यार एक अच्छे तरीके से परवान चढ़ रहा था और सब सही जा रहा था…….अचानक एक दिन ज़िन्दगी ने कुछ अजीब सा मोड़ लिया जिसके बाद रोहन की जिंदगी बदल ही गयी……वो रात का पहर था जब अंशिका का फोन आया रोहन ने बात की और बताया कि वो मूवी देख रहा है लैपटॉप पर क्या थोड़ी देर में बात करे????…..अंशिका ने कहा “ओके देख लो।”

रोहन ने फोन काट दिया….मूवी ख़त्म होने के बाद रोहन ने अंशिका को फोन किया पर उस तरफ से कोई जवाब नही आरहा था……रोहन लगातार फोन किये जा रहा था और अंशिका उठा ही नही रही थी…..रोहन जब तकरीवन 40 50 बार फोन कर चूका तो अंशिका ने फोन रिसीव किया…..रोहन की जान में जान आई….उसने डांटते हुए कहा कि फोन क्यों नही उठा रही थी इतनी देर से लगा रहा हु???

उधर से अंशिका ने गुस्से और व्यंग दोनों के समावेशित लहजे में कहा कि तुम मूवी देख लो बाद में बात करते है………रोहन की दिमाग की बत्ती गुल हो गयी कि साला इसने ही तो मूवी देखने के लिए कहा था कि देख लो और अब उसपर इतना बबाल??

रोहन ने समझाया उसे कि यार तूने ही तो कहा था कि देख लो….अगर तुम कह देती कि  नही बात ही करो तो मै न देखता……पर अंशिका के दिमाग में पता नही क्या चल रहा था और रोहन उसे समझ भी नही पा रहा था……और अंशिका ने उसे सुबह फोन करने का कहकर फोन काट दिया…..पर रोहन की आँखों में नींद कहाँ थी???…..वो तो अंशिका को समझ ही नही पा रहा था कि ये हो क्या रहा है…..और पूरी रात इसी कसमकस में निकल गयी कि आखिर हुआ क्या है जो वो समझ नही पा रहा।

सुबह रोहन फिर उसे फोन करता है…..पर बातों में उसे एक अजीब सा एहसास महसूस हो रहा था जैसा उसे पहले कभी नही हुआ था……वो ये न तो सहन कर पा रहा था और न ही समझ पा रहा था…..पर अंशिका तो उससे दूर जाने का जैसे पूरा मन बना चुकी थी…..और 2 3 दिन ऐसे ही औपचारिक बातों का सिलसिला चला और अंशिका ने रोहन को कह दिया ,”i don’t think its working anymore”….अंशिका ने तो ये बड़े ही आराम से कह दिया पर रोहन पर इसका क्या असर पड़ेगा वो शायद इससे अनभिज्ञ थी…..और वहां रोहन ये सब सुनकर जैसे पत्थर हो गया था…..वो अपने रिश्तों की टूटती दीवार बस गिरते देख रहा था….पर ये दीवार आखिर गिर क्यों रही है ये रोहन को समझ नही आरहा था…..रोहन तो बस जैसे  “पागल” सा हो गया था…..उसका किसी काम में मन ही नही लगता था…..उसे ऐसे किसी “हादसे” की कोई उम्मीद ही नही थी…..दिल नही मानता तो अंशिका को फोन करता पर उसने रोहन का नंबर ब्लैक लिस्टेड किया हुआ था……

बस रोहन को इतना ही तो पूंछना था अंशिका से कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि जिसके साथ हमसफ़र बन जीवन का हसीं सफर करने की बातें की उसे पल में अजनबी कर दिया?????

ऐसी क्या खता हुई कि उसकी मोहब्बतें…..एक हसीं मंजिल आने के पहले ही दम तोड़कर “अधूरी मोहब्बतें” बनकर ही रह गयी????……

वो बस उदास सा होकर शायराना अंदाज़ में अंदर ही अंदर खुद से बस इतना ही कहता-

” मुड़ती रही राह इस कदर फिर भी इतना समझ न पाये,
कि वापस वही आ पहुचेंगे जहा से आगाज कर बैठे थे।।”

Story written by- Sonu Sharma “Bhanu”®

अदला-बदली – ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

एक गरीब कवि की एक बार शहर के एक चौराहे पर एक धनी मूर्ख से मुलाकात हो गई। उन्होंने बहुत-सी बातें कीं लेकिन सबकी सब बेमतलब।

तभी उस सड़क का फरिश्ता उधर से गुजरा। उसने उन दोनों के कन्धों पर अपने हाथ रखे। एक चमत्कार हुआ : दोनों के विचार आपस में बदल गए।

इसके बाद वे अपने-अपने रास्ते चले गए।

चमत्कार हुआ।

कवि ने रेत देखी। उसे मुठ्ठी में उठाया और धार बनकर उसमें से उसे रिसते देखता रहा।

और मूर्ख! अपनी आँखें बन्दकर बैठ गया; लेकिन अनुभव कुछ न कर सका हृदय में घुमड़ते बादलों के सिवा।

अथ ध्यानम् – बलराम अग्रवाल

आलीशान बंगला। गाड़ी। नौकर-चाकर। ऐशो-आराम। एअरकंडीशंड कमरा। ऊँची, अलमारीनुमा तिजौरी। करीने से सजा रखी करेंसी नोटों की गड्डियाँ। माँ लक्ष्मी की हीरे-जटित स्वर्ण-प्रतिमा।

दायें हाथ में सुगन्धित धूप। बायें में घंटिका। चेहरे पर अभिमान। नेत्रों में कुटिलता। होंठ शान्त लेकिन मन में भयमिश्रित बुदबुदाहट।

“नौकरों-चाकरों के आगे महनत को ही सब-कुछ कह-बताकर अपनी शेखी आप बघारने की मेरी बदतमीजी का बुरा न मानना माँ, जुबान पर मत जाना। दिल से तो मैं आपकी कृपा को ही आदमी की उन्नति का आधार मानता हूँ, महनत को नहीं। आपकी कृपा न होती तो मुझ-जैसे कंगले और कामचोर आदमी को ये ऐशो-आराम कहाँ नसीब था माँ। आपकी जय हो…आपकी जय हो।”

अतिथि – सतीश दुबे

बम फूटने और बोतलें फेंकने की आवाजें, चीखें, हो–हल्ला, खून–खराबा। हर कोई भाग–दौड़ रहा था। ऐसी ही भीड़ को चीरता हुआ वह बालक ओट ले परे जाकर खड़ा हो गया।

अपने सिर की गोल टोपी व्यवस्थित करते हुए भयाक्रान्त नजरों से जुलूस की खूनी हरकतें देखने लगा। अचानक उसे लगा, उसके बाजू को किसी ने तेजी से दबोचकर उसकी टोपी निकाल ली है।

उसने देखा–वह एक आदमी की गिरफ्त में है।

‘‘हाँ, बोल….’’

‘‘या अब्बा!’’ मौत सिर पर मँडराने के डर से वह चीख पड़ा।

वह आदमी उसे अंदर खींचकर ले गया तथा दोनों कंधों को दबाकर उसे एक पार पर बिठा दिया।

‘‘क्या आप मुझे हलाल करेंगे?’’

‘‘हाँ, तू ऐसे भीड़भाड़–भरे जुलूस में आया क्यों?

‘‘अब्बा ने तो मना किया था, पर मुहल्ले के सभी लड़के तो आ रहे थे।’’ त्यौहार का उल्लास उसके मन में हिलोरे ले रहा था। ‘‘कब से निकला था घर से?’’

‘‘सुबु से। चाचाजान, आप मुझे हलाल मत करिए ना! मेरे अब्बा!’’ वह रोने लगा था।

‘‘अच्छा,चुप हो जा।’’ इशारा पाकर खाने की थाली पत्नी ने उसके सामने रख दी। डर और आतंक से सहमते हुए उसने उस आदमी की ओर देखा।

‘‘खा ले!’’

‘‘मुझे भूख नहीं है।’’ वह डर से काँप रहा था।

‘‘नहीं खाएगा?’’ आदमी का स्वर कुछ तेज था।

बालक को लगा, गंडासा उसकी गर्दन पर ये पड़ा, वो पड़ा।

‘‘अच्छा, खाता हूँ।’’

वह खाने में जुट जाता गया।

‘‘चाचाजान! मेरे अब्बा अकेले हैं, मुझे हलाल मत करो, मुझे जाने दे।’’

‘‘अकेला जाएगा तो मर जाएगा। हम तुझे पहुँचा देंगे।’’

‘‘नहीं….नहीं मरूँगा, अब्बा ने कहा था कि अल्ला तेरे साथ है।’’ वह शकालु डर से लगातार काँपता जा रहा था।

‘‘अच्छा चल, पाजामा में जेब तो है न? इसमें ये टोपी रख ले। तेरा पता क्या है?’’

डसने कागज की चिट पर पता लिखा तथा उसकी अंगुली थामे, कमरे से बाहर निकला।

बाहर रोड पर, वही हो–हल्ला, चीख–पुकार, भाग–दौड़, खून–खराबा।

ुस आदमी ने उसे एक पुलिस को सौंपा, ‘‘इसे इसके घर तक पहुँचा दीजिए, ये रहा पता।…पहुँचा देंगे या इसके लिए भी ऊपर से आर्डर लगेगा।’’ उसका स्वर कुछ ऊँचा हो गया था।

पुलिसमैन ने अचकचाकर उसकी तरफ देखा तथा बच्चे को पुलिस–वैन की ओर ले गया।

बच्चा कृतज्ञता–भरी नजरों से उसकी ओर देखता हुआ आगे बढ़ गया। उसे लगा, उमस–भरी तपन के बीच आया शीतल झोंका उससे दूर हो गया है।

अज्ञात-गमन – बलराम अग्रवाल

चौराहे के घंटाघर से दो बजने की आवाज़ घनघनाती है। बंद कोठरी में लिहाफ के बीच लिपटे दिवाकर आँखेंखोलकर जैसे अँधेरे में ही सब-कुछ देख लेना चाहते हैं—दो जवान बेटों में से एक, बड़ा, अपनी शादी के तुरंत बाद हीबहू को लेकर नौकरी पर चला गया था। राजी-खुशी के दो-चार पत्रों के बाद तीसरे ही महीने—पूज्य पिताजी, बाहररहकर इतने कम वेतन में निर्वाह करना कितना मुश्किल है! इस पर भी, पिछले माह वेतन मिला नहीं। हो सके तो, कुछ रुपए खर्च के लिए भेज दें। अगले कुछ महीनों में धीरे-धीरे लौटा दूँगा…लिखा पत्र मिला।

रुपए तो दिवाकर क्या भेज पाते। बड़े की चतुराई भाँप उससे मदद की उम्मीद छोड़ बैठे। छोटा उस समय कितनाबिगड़ा था बड़े पर—हद कर दी भैया ने, बीवी मिलते ही बाप को छोड़ बैठे!

इस घटना के बाद एकदम बदल गया था वह। एक-दो ट्यूशन के जरिए अपना जेब-खर्च उसने खुद सँभाल लिया थाऔर आवारगी छोड़ आश्चर्यजनक रूप से पढ़ाई में जुट गया था। प्रभावित होकर मकान गिरवी रखकर भी दिवाकरने उसे उच्च-शिक्षा दिलाई और सौभाग्यवश ब्रिटेन के एक कालेज में वह प्राध्यापक नियुक्त हो गया। वहाँ पहुँचकरवह अपनी राजी-खुशी और ऐशो-आराम की खबर से लेकर दिवाकर ‘ससुर’ और फिर ‘दादाजी’ बन जाने तक कीहर खबर भेजता रहा है। लेकिन वह, यहाँ भारत में, क्या खा-पीकर जिन्दा हैं—छोटे ने कभी नहीं पूछा।

…कल सुबह, जब गिरवी रखे इस मकान से वह बेदखल कर दिए जाएँगे—घने अंधकार में डबडबाई आँखें खोलेदिवाकर कठोरतापूर्वक सोचते हैं…अपने बेटों के पास दो पत्र लिखेंगे…यह कि अपने मकान से बेदखल हो जाने औरउसके बाद कोई निश्चित पता-ठिकाना न होने के कारण आगे से उनके पत्रों को वह प्राप्त नहीं कर पाएँगे।

अच्छी बात खराब बात – प्रभुदयाल श्रीवास्तव

मुझे रिश्वत खाना सिखा दो न प्लीज़” टोनी अपने पिता लुईस मरांडा के दोनों हाथ कुहनियों के पास पकड़कर जोर से बोला| मिरांडा आश्चर्य से टॊनी की तरफ देखने लगा,यह विचित्र बात टोनी के दिमाग में कहां से आई, उसने सोचा|

“नहीं बेटे रिश्वत खाना अच्छी बात नहीं है” मिरांडा ने बेटे को समझाना चाहा|

“नहीं डेड मैं तो सीखूंगा रिश्वत खाना| सब लोग खाते हैं न,कितना मजा आता है| कल ही मोनू के पापा पकड़े गये थे रिश्वत खाते, कितना मजा आ रहा था| उनके घर के सामने बहुत सारी भीड़ थी, पुलिस की तीन तीन गाड़ियां खड़ी थीं| मोनू भी चहक रहा था और अपने दोस्तों को बता रहा था कि उसके पापा रिश्वत खाते पकड़े गये हैं| ”

“नहीं बेटे रिश्वत खाना अच्छी बात नहीं है, अच्छे बच्चे यह गंदा काम नहीं करते, वे चाकलेट खाते हैं| ”

“तो फिर बड़ा होकर मैं भी रिश्वत खा सकता हूं न? अभी से सीखूंगा तभी तो ट्रैन्ड हो पाऊंगा, खूब खाऊंगा बड़े होकर| ”

“नहीं बड़े होकर भी नहीं| रिश्व त खाना अच्छी बात नहीं है| यह भ्रष्ट काम बेईमान और बदनाम लोग करते हैं| ”

“नहीं मैं तो खाऊंगा, जब तक आप नहीं सिखायेंगे मैं स्कूल नहीं जाऊंगा| ” टोनी मचलकर जिद करने लगा| मिरांडा ने क्रोध से उसके गाल पर चांटा जड़ दिया|

“चड्डी में नाड़ा बाँधना तक तो आता नहीं रिश्वत खाना सीखेंगे| ” मिरांडा ओंठो में बुदबुदाया|

टोनी रोता हुआ अपनी मां मिरांडा के पास चला गया| ” मुझे रिश्वत खाना है माम पापा नहीं सिखाते” वह जोर जोर से रोने लगा|

मेरिना चौंक गई| यह कैसी बेकार की ख्वाहिश है टॊनी की,कहां से सीखा यह बातें? उसका भेजा खराब हो गया|

“बेटे गुड ब्वाय लोग रिश्वत नहीं खाते,आ प गुड ब्वाय हैं कि नहीं? यू आर ए वेरी गुड ब्वाय, है न| ” उसने उसे बहलाने की कोशिश की|

“क्यों माम रिश्वत खाना बुरी बात है क्या?” टॊनी ने मासूमियत से मां की ओर निहारा|

“हां बेटे यह बहुत खराब काम है, इससे समाज और देश को नुकसान होता है| ” टॊनी मिरांडा के चांटे की चोट से अभी तक सिसक रहा था|

रात का समय मिरांडा और मेरिना डायनिंग टेबिल पर बैठे खाना खा रहे हैं| मिरांडा आज बहुत प्रसन्न नज़र आ रहा है। “क्या बात है आज बहुत खुश हो”मेरिना ने पूछा|

“हां आज का दिन बहुत अच्छा निकला मिस्टर नंदी वाला काम निपटा दिया| बड़ी मुश्किल से माना साला,कितना दबाव डलवाया ऊपर से ताकि मुफ्त में काम हो जाये| वह नहीं जानता था की आखिर मिरांडा भी कोई चीज है, दे गया एक लाख रुपये, तुम्हारे बेड रूम की अलमारी में रख दिये हैं| यह कहकर वह अपनी ही पीठ अपने ही हाथों थपथपाने लगा|

मेरिना की आंखें चमक उठीं| एक लाख का नाम सुनकर ही उसके चेहरे पर खुशियों के फूल खिल उठे| वह मिरांडा की आंखों में आंखें डालकर बोली “अच्छे बच्चे रिश्वत नहीं खाते” और ठहाका मारकर हँसने लगी| मिरांडा ने भी उसके ठहाके में अपना ठहाका जोड़ दिया| कमरे में ठहाके ही ठहाके गूंजने लगे|

टॊनी अपने बेड रूम में लेटे लेटे डेड और माम की बातें समझने की कोशिश करने लगा,”रिश्वत खाना अच्छी बात है या खराब बात|

अच्छा स्कूल – दीपक मशाल

वह एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक था। भलीभांति जानता था कि अपने बच्चे का भविष्य कैसे सुनिश्चित करना है, कैसे संवारना है? तभी तो उसके पैदा होते ही उसने उसके नाम से एक मुश्त रकम जमा कर दी, जिससे कि जब तक बच्चा स्कूल जाने योग्य हो तब तक किसी ‘अच्छे स्कूल’ में दाखिले लायक धन जमा हो सके।

पर बढ़ती महंगाई का क्या करें कि उसके बेटे की उम्र तो शिक्षा पाने की हो गई लेकिन जमा धन शिक्षा दिलाने लायक ना हुआ। इन चंद सालों में मंहगाई उसकी सोच से दोगुनी रफ़्तार से बढ़ चुकी थी। जो पैसे उसके हाथ आये थे उतने तो मनवांछित स्कूल की एडमिशन फीस देने के लिए भी नाकाफी थे, फिर उसकी आसमान छूती ट्यूशन फीस की बात ही कौन करे। एक बारगी सोचा तो कि “एक-दो साल के लिए अपने ही सरकारी स्कूल में दाखिला दिला दूँ”, लेकिन यह उसकी पत्नी को गंवारा ना हुआ। जब कुछ इंतजाम ना बन पड़ा तो अपने मोहल्ले के ही एक शिशुमंदिर में प्रवेश दिला दिया। यह सोचकर कि, “एक साल यहाँ रहकर अनुशासन तो सीखेगा।। तब तक ‘अच्छे स्कूल’ के लिए कहीं से बंदोबस्त कर ही लूँगा”।

अघोरी का मोह – जयशंकर प्रसाद

“आज तो भैया, मूँग की बरफी खाने को जी नहीं चाहता, यह साग तो बड़ा ही चटकीला है। मैं तो….”

“नहीं-नहीं जगन्नाथ, उसे दो बरफी तो जरूर ही दे दो।”

“न-न-न। क्या करते हो, मैं गंगा जी में फेंक दूँगा।”

“लो, तब मैं तुम्ही को उलटे देता हूँ।” ललित ने कह कर किशोर की गर्दन पकड़ ली। दीनता से भोली और प्रेम-भरी आँखों से चन्द्रमा की ज्योति में किशोर ने ललित की ओर देखा। ललित ने दो बरफी उसके खुले मुख में डाल दी। उसने भरे हुए मुख से कहा,-भैया, अगर ज्यादा खाकर मैं बीमार हो गया।” ललित ने उसके बर्फ के समान गालों पर चपत लगाकर कहा-”तो मैं सुधाविन्दु का नाम गरलधारा रख दूँगा। उसके एक बूँद में सत्रह बरफी पचाने की ताकत है। निर्भय होकर भोजन और भजन करना चाहिए।”

शरद की नदी अपने करारों में दबकर चली जा रही है। छोटा-सा बजरा भी उसी में अपनी इच्छा से बहता हुआ जा रहा है, कोई रोक-टोक नहीं है। चाँदनी निखर रही थी, नाव की सैर करने के लिए ललित अपने अतिथि किशोर के साथ चला आया है। दोनों में पवित्र सौहाद्र्र है। जाह्नवी की धवलता आ दोनों की स्वच्छ हँसी में चन्द्रिका के साथ मिलकर एक कुतूहलपूर्ण जगत् को देखने के लिए आवाहन कर रही है। धनी सन्तान ललित अपने वैभव में भी किशोर के साथ दीनता का अनुभव करने में बड़ा उत्सुक है। वह सानन्द अपनी दुर्बलताओं को, अपने अभाव को, अपनी करुणा को, उस किशोर बालक से व्यक्त कर रहा है। इसमें उसे सुख भी है, क्योंकि वह एक न समझने वाले हिरन के समान बड़ी-बड़ी भोली आँखों से देखते हुए केवल सुन लेने वाले व्यक्ति से अपनी समस्त कथा कहकर अपना बोझ हलका कर लेता है। और उसका दु:ख कोई समझने वाला व्यक्ति न सुन सका, जिससे उसे लज्जित होना पड़ता, यह उसे बड़ा सुयोग मिला है।

ललित को कौन दु:ख है? उसकी आत्मा क्यों इतनी गम्भीर है? यह कोई नहीं जानता। क्योंकि उसे सब वस्तु की पूर्णता है, जितनी संसार में साधारणत: चाहिए; फिर भी उसकी नील नीरद-माला-सी गम्भीर मुखाकृति में कभी-कभी उदासीनता बिजली की तरह चमक जाती है।

ललित और किशोर बात करते-करते हँसते-हँसते अब थक गये हैं। विनोद के बाद अवसाद का आगमन हुआ। पान चबाते-चबाते ललित ने कहा-”चलो जी, अब घर की ओर।”

माँझियों ने डाँड़ लगाना आरम्भ किया। किशोर ने कहा-”भैया, कल दिन में इधर देखने की बड़ी इच्छा है। बोलो, कल आओगे?” ललित चुप था। किशोर ने कान में चिल्ला कर कहा-”भैया! कल आओगे न?” ललित ने चुप्पी साध ली। किशोर ने फिर कहा-”बोलो भैया, नहीं तो मैं तुम्हारा पैर दबाने लगूँगा।”

ललित पैर छूने से घबरा कर बोला-”अच्छा, तुम कहो कि हमको किसी दिन अपनी सूखी रोटी खिलाओगे?…”

किशोर ने कहा-”मैं तुमको खीरमोहन, दिलखुश..” ललित ने कहा-”न-न-न.. मैं तुम्हारे हाथ से सूखी रोटी खाऊँगा-बोलो, स्वीकार है? नहीं तो मैं कल नहीं आऊँगा।”

किशोर ने धीरे से स्वीकार कर लिया। ललित ने चन्द्रमा की ओर देखकर आँख बंद कर लिया। बरौनियों की जाली से इन्दु की किरणें घुसकर फिर कोर में से मोती बन-बन कर निकल भागने लगीं। यह कैसी लीला थी!

2

25 वर्ष के बाद

कोई उसे अघोरी कहते हैं, कोई योगी। मुर्दा खाते हुए किसी ने नहीं देखा है, किन्तु खोपड़ियों से खेलते हुए, उसके जोड़ की लिपियों को पढ़ते हुए, फिर हँसते हुए, कई व्यक्तियों ने देखा है। गाँव की स्त्रियाँ जब नहाने आती हैं, तब कुछ रोटी, दूध, बचा हुआ चावल लेती आती हैं। पञ्चवटी के बीच में झोंपड़ी में रख जाती हैं। कोई उससे यह भी नहीं पूछता कि वह खाता है या नहीं। किसी स्त्री के पूछने पर-”बाबा, आज कुछ खाओगे-, अघोरी बालकों की-सी सफेद आँखों से देख कर बोल उठता-”माँ।” युवतियाँ लजा जातीं। वृद्धाएँ करुणा से गद्-गद हो जातीं और बालिकाएँ खिलखिला कर हँस पड़तीं तब अघोरी गंगा के किनारे उतर कर चला जाता और तीर पर से गंगा के साथ दौड़ लगाते हुए कोसों चला जाता, तब लोग उसे पागल कहते थे। किन्तु कभी-कभी सन्ध्या को सन्तरे के रंग से जब जाह्नवी का जल रँग जाता है और पूरे नगर की अट्टालिकाओं का प्रतिबिम्ब छाया-चित्र का दृश्य बनाने लगता, तब भाव-विभोर होकर कल्पनाशील भावुक की तरह वही पागल निर्निमेष दृष्टि से प्रकृति के अदृश्य हाथों से बनाये हुए कोमल कारीगरी के कमनीय कुसुम को-नन्हें-से फूल को-बिना तोड़े हुए उन्हीं घासों में हिलाकर छोड़ देता और स्नेह से उसी ओर देखने लगता, जैसे वह उस फूल से कोई सन्देश सुन रहा हो।


शीत-काल है। मध्याह्न है। सवेरे से अच्छा कुहरा पड़ चुका है। नौ बजने के बाद सूर्य का उदय हुआ है। छोटा-सा बजरा अपनी मस्तानी चाल से जाह्नवी के शीतल जल में सन्तरण कर रहा है। बजरे की छत पर तकिये के सहारे कई बच्चे और स्त्री-पुरुष बैठे हुए जल-विहार कर रहे हैं।

कमला ने कहा-”भोजन कर लीजिए, समय हो गया है।” किशोर ने कहा-”बच्चों को खिला दो, अभी और दूर चलने पर हम खाएँगे।” बजरा जल से कल्लोल करता हुआ चला जा रहा है। किशोर शीतकाल के सूर्य की किरणों से चमकती हुई जल-लहरियों को उदासीन अथवा स्थिर दृष्टि से देखता हुआ न जाने कब की और कहाँ की बातें सोच रहा है। लहरें क्यों उठती हैं और विलीन होती हैं, बुदबुद और जल-राशि का क्या सम्बन्ध है? मानव-जीवन बुदबुद है कि तरंग? बुदबुद है, तो विलीन होकर फिर क्यों प्रकट होता है? मलिन अंश फेन कुछ जलबिन्दु से मिलकर बुदबुद का अस्तित्व क्यों बना देता है? क्या वासना और शरीर का भी यही सम्बन्ध है? वासना की शक्ति? कहाँ-कहाँ किस रूप में अपनी इच्छा चरितार्थ करती हुई जीवन को अमृत-गरल का संगम बनाती हुई अनन्त काल तक दौड़ लगायेगी? कभी अवसान होगा, कभी अनन्त जल-राशि में विलीन होकर वह अपनी अखण्ड समाधि लेगी? ….. हैं, क्या सोचने लगा? व्यर्थ की चिन्ता। उहँ।”

नवल ने कहा-”बाबा, ऊपर देखो। उस वृक्ष की जड़ें कैसी अद्‌भुत फैली हुई हैं।”

किशोर ने चौंक कर देखा। वह जीर्ण वृक्ष, कुछ अनोखा था। और भी कई वृक्ष ऊपर के करारे को उसी तरह घेरे हुए हैं, यहाँ अघोरी की पञ्चवटी है। किशोर ने कहा-”नाव रोक दे। हम यहीं ऊपर चलकर ठहरेंगे। वहीं जलपान करेंगे।” थोड़ी देर में बच्चों के साथ किशोर और कमला उतरकर पञ्चवटी के करारे पर चढऩे लगे।


सब लोग खा-पी चुके। अब विश्राम करके नाव की ओर पलटने की तैयारी है। मलिन अंग, किन्तु पवित्रता की चमक, मुख पर रुक्षकेश, कौपीनधारी एक व्यक्ति आकर उन लोगों के सामने खड़ा हो गया।

“मुझे कुछ खाने को दो।” दूर खड़ा हुआ गाँव का एक बालक उसे माँगते देखकर चकित हो गया। वह बोला, “बाबू जी, यह पञ्चवटी के अघोरी हैं।”

किशोर ने एक बार उसकी ओर देखा, फिर कमला से कहा-”कुछ बचा हो, तो इसे दे दो।”

कमला ने देखा, तो कुछ परावठे बचे थे। उसने निकालकर दे दिया।

किशोर ने पूछा-”और कुछ नहीं है?” उसने कहा-”नहीं।”

अघोरी उस सूखे परावठे को लेकर हँसने लगा। बोला-”हमको और कुछ न चाहिए।” फिर एक खेलते हुए बच्चे को गोद में उठा कर चूमने लगा। किशोर को बुरा लगा। उसने कहा-”उसे छोड़ दो, तुम चले जाओ।”

अघोरी ने हताश दृष्टि से एक बार किशोर की ओर देखा और बच्चे को रख दिया। उसकी आँखें भरी थीं, किशोर को कुतूहल हुआ। उसने कुछ पूछना चाहा, किन्तु वह अघोरी धीरे-धीरे चला गया। किशोर कुछ अव्यवस्थित हो गये। वह शीघ्र नाव पर सब को लेकर चले आये।

नाव नगर की ओर चली। किन्तु किशोर का हृदय भारी हो गया था। वह बहुत विचारते थे, कोई बात स्मरण करना चाहते थे, किन्तु वह ध्यान में नहीं आती थी-उनके हृदय में कोई भूली हुई बात चिकोटी काटती थी, किन्तु वह विवश थे। उन्हें स्मरण नहीं होता था। मातृ-स्नेह से भरी हुई कमला ने सोचा कि हमारे बच्चों को देखकर अघोरी को मोह हो गया