देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फांसी की

भगतसिंह, इस बार न लेना काया भारतवासी की,
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की.

यदि जनता की बात करोगे, तुम गद्दार कहाओगे,
बम्ब-सम्ब की छोड़ो, भाषण दिया तो पकडे जाओगे,

निकला है क़ानून नया, चुटकी बजाते बांध जाओगे,
न्याय अदालत की मत पूछो, सीधे मुक्ति पाओगे.

कांग्रेस का हुक्म, जरूरत क्या वारंट तलाशी की,
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की.

मत समझो पूजे जाओगे, क्योंकि लड़े थे दुश्मन से,
रुत ऐसी है, अब दिल्ली की आँख लड़ी है लन्दन से,

कामनवेल्थ कुटुंब देश को, खींच रहा है मंतर से,
प्रेम विभोर हुए नेतागण, रस बरसा है अम्बर से.

योगी हुए वियोगी, दुनिया बदल गयी बनवासी की,
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की.

गढ़वाली, जिसने अंगरेजी शासन में विद्रोह किया,
वीर क्रान्ति के दूत, जिन्होंने नहीं जान का मोह किया,

अब भी जेलों में सड़ते हैं, न्यू माडल आज़ादी है,
बैठ गए हैं काले, पर गोरे जुल्मों की गादी है.

वही रीत है, वही नीत है, गोरे सत्यानाशी की
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की.

सत्य-अहिंसा का शासन है, रामराज्य फिर आया है,
भेड़-भेड़िये एक घाट हैं, सब ईश्वर की माया है,

दुश्मन ही जज अपना, टीपू जैसों का क्या करना है,
शान्ति-सुरक्षा की खातिर, हर हिम्मतवर से डरना है.

पहनेगी हथकड़ी, भवानी रानी लक्ष्मी झांसी की
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की.
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की.!

कश्मीर का दर्द

कश्मीरी पँडितोँ के दर्द पर अपनी भावनाओँ को कविता मेँ लिखने की कोशिश की है , ये कुछ एक पँक्तियाँ अभी लिख पाया , शीघ्र ही पूरी कविता आपके समक्ष रखूँगा ।

कश्मीर का दर्द

मुखर्जी की आहोँ मेँ करहाता मैँ कश्मीर तुम्हारा हूँ ,
जिहाद की बाहोँ मेँ जल जाता मैँ कश्मीर तुम्हारा हूँ ,

चीखेँ पँडित बहनोँ की आज तक सुनाई देती हैँ ,
आहेँ पँडित भाईयोँ की रहम की दुहाई देती हैँ ,
कोई दशा मेरी पढ़पाता मैँ कश्मीर तुम्हारा हूँ ,
मुखर्जी की आहोँ मेँ करहाता मैँ कश्मीर तुम्हारा हूँ ,

मस्जिद मेँ जब तकरीर हुई , हर हिँदू तब सहम गया ,
मुस्लिम भी अपने भाई हैँ दिल से फिर ये वहम गया ,
शमीशीरोँ से फिर लहू लुहाता मैँ कश्मीर तुम्हारा हूँ ,
मुखर्जी की आहोँ मेँ करहाता मैँ कश्मीर तुम्हारा हूँ ,

घर से बेघर हो गये जब पँडित मस्जिद मेँ महफिलेँ जमती थीँ ,
मस्जिद की तकरीर से फिर कई भाईयोँ कि साँसेँ थमती थीँ,
अलगाव की तपिश मेँ जो सिक जाता मैँ कश्मीर तुम्हारा हूँ,
मुखर्जी की आहोँ मेँ करहाता मैँ कश्मीर तुम्हारा हूँ ।

कवि – गौरव बाबा

गिलानी के कृत्य पर एक ठलुए की कविता

दोस्तों गिलानी ने जिस तरह जिस तरह आतंकियों के मरने पर जुलुस निकाला और उन्हें शहीद का दर्जा दिया। पेश है इस विषय पर चंद पंक्तियाँ –

एक गिलानी ने फिर पूजा, आतंकी आकाओं को,
आँखे फिर से दिखा गया वो, शेरों की विधवाओं को।

भारत की आँखों के तारों को वो गद्दार बता बैठा,
आतंकी की मैयत पर वो फूलों का हार चढ़ा बैठा।

उसको हर पल चुभती है भारत की पावन माटी,
उसके दिल को भाती है बस पकिस्तानों की थाती।

जिस थाली में खा रहा है छेद उसी में कर रहा,
एक गिलानी नाम का पिल्ला, फिर से कांटे बुन रहा।

सुन गिलानी अभी भी हम, तलवार चलाना नहीं भूले,
पागल कुत्तों के सिर को, क़दमों में झुकाना नही भूले।

जब घाटी पानी पानी थी, तब आँखों में पानी क्यों पाला,
भारत भूमि के क़दमों में,तब क्यों मस्तक झुका डाला।

सैनिक जो गद्दार अभी हैं, तब गद्दारी क्यों ना दिखी,
अपने मजहब के खातिर, जिम्मेदारी क्यों ना दिखी।

एक बार फतवे तो देते सेना को ना आने के,
तब मजहब को ऊपर रखते, अपनी जान के जाने से।

सेक्युलर भड़वे अब चुप हैं तेरी इस गद्दारी पर,
इशरत के अब्बु भी गुम हैं दामादों के मर जाने पर।

शेर भारती का बेटा था, मरकर भी फर्ज निभा गया,
और सियार की औलादों को, 72 हूरों से मिला गया।

रचनाकार – अनजान दोस्त

स्वर्णिम भारतवर्ष

हिन्द महासागर जिसके पग सदा निरंतर धोता है
उज्जवल कीर्ति यशोगान जिसका पग पग पर होता है
जिसके ह्रदय बसे राम और कृष्ण प्राण से प्यारे हैं
गर्व से कहते हैं संस्कृति में वो दबे से पाँव हमारे हैं

शब्दों का बोलो जिसे ज्ञान, जिसको पहले लिखना आया
जिसने खोला मुख पहले दुनिया को बोलना सिखलाया
स्मृतियों ही स्मृतियों में बोलो किसने विज्ञान रचा
वेद ऋचाएं गढ़कर किसने ये ज्ञानकोश महान रचा
कोई बतलाये पहले किसने परमब्रह्म का ज्ञान दिया
किसे विश्व में ईश्वर ने नित जीवन का वरदान दिया
निश्चित ही केवल एक नाम मन में आता है वो ‘भारत’
अपनी कीर्ति हर युग में जो चमकाता है वो ‘भारत’
मेरा है सदा प्रणाम जिसे जिसपर ये प्राण न्योछारे हैं
गर्व से कहते हैं संस्कृति में वो दबे से पाँव हमारे हैं

देख चन्द्रमा सूरज देख विश्व डरा था जब करता
भारत नक्षत्रों से गणना, था भविष्य की तब करता
जब संसार ने सीखा था पत्थर घिस घिस आग जलाना
तब भारत को आता था यज्ञों के द्वारा शस्त्र बनाना
भारत नभ पर उड़ता था जब दुनिया चलना सीख रही
भारत भर भर अन्न उगाता जब दुनिया पलना सीख रही
निश्चित ही केवल एक नाम मन में आता है वो ‘भारत’
अपनी कीर्ति हर युग में जो चमकाता है वो ‘भारत’
मेरा है सदा प्रणाम जिसे जिसपर ये प्राण न्योछारे हैं
गर्व से कहते हैं संस्कृति में वो दबे से पाँव हमारे हैं

गर्वीले थे जिनके मस्तक चौड़ी जिनकी छाती थी
जल थल नभ और घाटी घाटी नित जिनके गुण गाती थी
चट्टानों से जिनके सीने और पर्वत से अटल इरादे थे
पत्थर से थे साहस जिनके और प्राण से प्यारे वादे थे
राष्ट्रप्रेम निस्वार्थ थी सेवा, जिनके मन सरल सुजान सदा
प्राण न्योछावर करने वाले वो कहलाये परम महान सदा
निश्चित ही केवल एक नाम मन में आता है वो ‘भारत’
अपनी कीर्ति हर युग में जो चमकाता है वो ‘भारत’
मेरा है सदा प्रणाम जिसे जिसपर ये प्राण न्योछारे हैं
गर्व से कहते हैं संस्कृति में वो दबे से पाँव हमारे हैं

दुनिया ने जिससे सबकुछ सीखा आज वो भारत सोता है
काल का चक्र है चलता जाता और वो स्वर्णिम पल खोता है
क्षण क्षण पल पल बीत रहा है दुःख दुविधा की छाँव में
भारत का कल डूब रहा है गोते खाती इस नाव में
आओ जागो भारत वीरों पुनः स्वयं को पहचानो
अपने भीतर राम कृष्ण उनके गौरव को तुम मानो
निश्चित फिर स्वर्णिम अक्षर से लिखा जाएगा वो ‘भारत’
विश्व कीर्ति युगों युगों तक जिसकी गायेगा वो ‘भारत’
मेरा है सदा प्रणाम जिसे जिसपर ये प्राण न्योछारे हैं
गर्व से कहते हैं संस्कृति में वो दबे से पाँव हमारे हैं

____सौरभ कुमार दुबे

ना भया, ना निर्भया…

ये अचानक क्या हुआ
जल जल उठा है क्यूँ धुआ

बाल बिखरे फटे वसन
रक्त से लथपथ नयन

रो रोके किस्सा फिर कहा
वो दुक्ख का हिस्सा फिर कहा

जा रही थी मैं कहीं
साथ कोई था नहीं

एक रिक्शे तक गयी
वो मिला मुझको वहीँ

चल पड़ी मैं भी तो संग
पर दिखाया उसने रंग

रोक एक सुनसान पर
आ पास बोला कान पर

मैं चीखी मैं चिल्लाई थोड़ी
पर उसने न कलाई छोड़ी

खींचता था अपनी ओर
मैं चीखती थी मुझको छोड़

पर एक ना वो मानता
राक्षस था जानता

पास उसने कुछ निकाला
मुझपे छिड़का कुछ था डाला

मैं हुयी बेहोश तब
बेसुध पड़ी मदहोश तब

मेरे वसन फिर चीर डाले
मैं हवस के थी हवाले

फिर भी खुद को मैंने सम्भाला
हाथ उसका काट डाला

भागी मैं फिर थी उतरकर
भागना चाहती थी मैं घर

पर फिर वो मेरे पीछे आया
मन में मेरे रुदन छाया

भागती सी मैं गिरी फिर
चोट खाती मैं फिरी फिर

सहमी सहमी डर गयी मैं
जैसे कुछ पल मर गयी मैं

लेकर के पेड़ की मैं ओट
छिप छिपाकर अपनी चोट

सिसकियाँ मैं रोकती
अपने मन को टोकती

पास ही एक सलाख थी
मेरे लिए ज्यो साख थी

धीरे से जो मैंने उठाई
दौड़ता आया कसाई

डर के मारे जोर से
बचके सारे शोर से

दे मारी मैंने उसके सर
एक वार में गया वो मर

बस्ती में एक पहुंची मैं फिर
बेहोश होकर रही मैं गिर

होश आया आँखें खुली
अस्पताल में खुदको मिली

मैंने किया अपराध क्या
इसमें कोई बाध क्या

जो कोई ऐसा आएगा
वो तो मारा जाएगा

महिसासुर की देखो बलि
देने को अब दुर्गा चली

सन्न अस्पताल था
वो दिन भी क्या कमाल था

एक चंडी थी जागी तब
जैसे विकृतता सब भागी तब

आत्मरक्षा पहला धर्म
ये ही नारी तेरा कर्म

बनके चंडी चलती जा
दुष्टों को यूँ कुचलती जा!!

___सौरभ कुमार

अरे होश में आजा पाकिस्तान

अरे होश में आजा तू,
वरना एहसास करा देगें!
हम सौ करोड से ज्यादा है,
मूतें तो तूझें बहा देगें!
तू भूला है औकात कहीं
जो सिंहों को ललकार रहा,
ए मुर्ख होश में बातें कर,
क्यों पैर कुल्हाडी मार रहा!
तेरी गिनती है बस इतनी,
जितने भारत में कुत्ते है!
तू नीच अधर्मी होश में आ,
तूझको काफी मेरे जुत्ते है!
जितना बारूद लिए पापी,
तू सीमाओं पर आता है!
उतना बम का बारूद, यहाँ
दीवाली में जल जाता है!
हम यदि चाह कर एक बार,
सीमाओं पर जाकर खाँसे!
मौन तोप तेरी होगी,
रूक जाएगी तेरी साँसें!
यह मान अभी भी देश मेरा,
गाँधी जी का अनुयायी है!
हम हम प्रेम प्रेम चिल्लाते है,
तू सचमुच आतातायी है!
भूल गया अपनी हस्ती,
दर दर का अरे भिखारी तू!
इस सुंदर जगत की काया में,
कोढी सा रहा बीमारी तू!!
तू वेश्याओं से बदतर है,
तेरा ग्राहक है ओ बामा,
तेरी गिनती उन हिजडों में,
तू पाक नही है पाखाऩा!
मुझको मेरा मोदी कह दें,
शीश सईद का ले आऊँ!
फिर फाड तेरा हरा झंडा,
मैं वहाँ भगवा लहराऊँ!!

भारत में न डेरा डालो

ओ मजहब के ठेकेदारो,
भारत माँ के हिस्सेदारो!
ओ हिँसा के रखवालो,
भारत मेँ न डेरा डालो!!

धार्मिक उन्माद मेँ मतवालो,
एकता मेँ न बाधा डालो!
साम्प्रदायिकता तज,
नित नया आयाम बना लो!!

सोचो जरा राष्ट्रहित कुछ!
साम्प्रदायिकता की आग लगाकर,
हासिल कर लोगे क्या कुछ?
नफरत की आग बढ़ाकर,
क्या खाक कर दोगे सबकुछ?

चलकर इन अंगारो पे मंजिल नही पा सकते हो,
अहिँसा पर हिँसा की विजय नही पा सकते हो,
नफरत की दुनिया मेँ खुश नही रह सकते हो,
भारतीय एकता के आगे कुछ नही कर सकते हो!!

अभी वक्त हैँ सम्भलो यारोँ!
हिँसा का हथियार डालकर,
देशप्रेम मेँ शीश झुकालो
व्रत राष्ट्र आराधना का अब पालो,
प्रण मिलजुलकर रहने का ठानो!!

साम्प्रदायिकता की जमीँ पर एकता के पौध उगा लो,
साम्प्रदायिकता की बारिश मेँ अखण्डता की छतरी तानो,
अब तो जागो! हे भारत माँ के काबिल लालो,
उठो दुनिया को अपनी ताकत दिखला दो!!

सर्वविदित सर्वधर्म समान हैँ,
भारत सदियोँ से महान हैँ,
हे भारत के उर्जावानो,
राष्ट्रनिर्माण मेँ कदम बढ़ा लो!!

ओ हिँसा के रखवालो,
भारत मेँ न डेरा डालो!!

रचयिता- सौरभ पाण्डेय “शौर्य”

जय जवान

रुके न तू थमे न तू,
चले सदा थके न तू,
चाहे हो पाषाण खण्ड,
चाहे हो वनोँ का झुण्ड,
तू डटा रहे वहाँ सदा,
डरे न तू हटे न तू।।

चाहे प्रकृति कितना भी रंग  बदले,
बदलती रहे,
भीषण गर्मी बर्फबारी,
सागर के लहरोँ को चीरता,
तू वहाँ सदा टिका रहे,
चले सदा थके न तू॥

तू ही सच्चा सपूत हैँ,
प्रहरी!  सच्चा अग्रदूत हैँ,
तुझसे हैँ कौम मेँ अमन,
ऐ कौम भक्त! तुझे नमन,    मेरी शुभकामना तुझे,
तू यूँ ही सदा खड़ा रहे।।

सुरक्षा पथ के पथिक!
डिगो न वीर तुम तनिक!
ले दुआएँ देश की,
जीत का कदम बढ़ा,
जीते सदा हारे न तू,

रुके न तू थमे न तू,
चले सदा थके न तू ।।

रचयिता-  सौरभ पाण्डेय “शौर्य”

सुनो पाक के नापाक दरिंदो

सुनोँ पाक के नापाक दरिँदो,
क्योँ बेवजह चिल्लाते हो।
क्या तुलना हैँ तुमसे हमारी,
तुम तो बर्बाद गुलिस्ताँ हो॥

तुम क्या तुम्हारी औकात क्या,
जो विश्वगुरू को ललकारते हो?
जाओ जाकर घर मेँ बैठो,
बच्चे हो,बाप से भिड़कर जरा भी नही शरमाते हो?

अरे तनिक भी शर्म तुम्हेँ,
आती भी हैँ या नहीँ।
जाके डूब मरो शैतानोँ,
गर बची हो तुममे हया कहीँ॥

देखोँ जरा इतिहास पुराना,
क्या हश्र हुआ था शर्मनाक तुम्हारा।
जब जब हम पर नजर उठायी,
तब तब तुमने मुहँ की खायी॥

तुम क्या तुम्हारी सौ पुश्ते भी,
कुछ नही बिगाड़ पायेगेँ।
जब तक जीवित हैँ सूर्य चन्द्रमा,
सब भारत को पायेगेँ॥

तुम तो कैँसर हो धरती का,
जिसे मिटाना मजबूरी हैँ।
ओ अमेरिका और चीन केचमचे,
तेरा इलाज जरूरी हैँ॥

आतंकवाद की फसल उगाकर,
क्योँ बर्बादी चाहते होँ?
क्योँ तुले हो मिट जाने पर,
क्योँ नही शान्ति से रहते हो?

मत देखोँ सपने कदाचित,
अखण्ड भारत को खण्डित करने का।
अंजाम तुम्हारा भी होगा कमोवेश,
जैसा हुआ तुम्हारे पुरखोँ का॥

अभी वक्त हैँ सम्भल जाओ,
वरन् होगा वही जो राम की मर्जी।
न तुम बचोगे न देश तुम्हारा,
खत्म हो जायेगा सब धन्धा फर्जी॥

दाऊद और हाफिज जैसी गन्दी नस्लोँ को,
क्योँ पालना चाहते होँ?
क्योँ गुमराह करते होँ नवयुवकोँ को,
क्योँ नफरत का विष घोलते हो?

भिखमंगे हो तुम चन्द डालर के वास्ते,
अमेरिका का तेल लगाते हो।
ब्लूचिस्तान सम्भाल नही पाते,
कश्मीर का ख्वाब सजाते हो?

अपना देश सम्भालोँ मूर्खो,
क्योँ हमसे टकराते हो।
सुनो पाक के नापाक दरिँदो,
क्योँ बेवजह चिल्लाते हो॥
— रचयिता- सौरभ पाण्डेय “शौर्य”

मेल मिलाप अब बंद करो

कटा शीश जिन शेरोँ का उनका तो कुछ सम्मान करो,
मेल-मिलाप अब बन्द करो महायुध्द का आगाज करो,
उनको भी तो पता चले हम शेरोँ की औलादेँ हैँ,
उनको भी समझा दो अब क्या हिन्दोस्तां के इरादे हैँ,
तोड़ हड्डियाँ उन भेड़ियो की वीरोँ सा शंखनाद करो,
मेल-मिलाप अब बन्द करो महायुध्द का आगाज करो,
बहुत हुई शर्मिन्दगी अब मर्दो सा बर्ताव करो,
लेकर अपने शेरोँ की फौज इस्लामाबाद का घेराव करो,
उस बेईमान पड़ोसी की छाती पर चढ़कर अब हुकांर भरो,
मेल-मिलाप अब बन्द करो महायुध्द का आगाज करो,
written by  — सौरभ पाण्डेय “शौर्य”