सिर का दर्द

सिर का दर्द

• सिर पर शुद्ध शहद का लेप करना चाहिए। कुछ ही समय में सिर का दर्द खत्म हो जायेगा।
• आधा चम्मच शहद और एक चम्मच देशी घी मिलाकर सिर पर लगाना चाहिए। घी तथा शहद के सूखने के बाद दोबारा लेप करना चाहिए।
• यदि पित्त के कारण सिर में दर्द हो तो दोनों कनपटियों पर शहद लगायें। साथ ही थोड़ा शहद भी चाटना चाहिए।
• सर्दी, गर्मी या पाचन क्रिया की खराबी के कारण सिर में दर्द हो तो नींबू के रस में शहद को मिलाकर माथे पर लेप करना चाहिए।
• कागज के टुकड़ों पर शहद और चूना को मिलाकर माथे के जिस भाग में दर्द हो उस भाग पर रख देने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।

एलर्जी

ऐसे बचें एलर्जी से-

सर्दियों में आम तौर पर लोगों में एलर्जी के मामले कुछ ज्यादा ही सामने आते हैं। एलर्जी वातावरण में मौजूद तत्वों व पदार्थो के द्वारा शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र की प्रतिक्त्रिया से पैदा होने वाला रोग है, जिसे नियंत्रित कर सकते हैं

1.___ मौजूदा मौसम में एलर्जी, नाक व साइनस और फेफड़ों को कहीं ज्यादा प्रभावित करती है। इसलिए जहा तक संभव हो, ठंड से बचने के लिए पर्याप्त ऊनी कपड़े पहनें। ऊनी वस्त्र पहनकर ही कमरे या घर से बाहर निकलें।

2.___ एलर्जी में लगातार छींकें आना, नाक में खुजली होना और पानी आना, नाक बंद रहना, सिरदर्द, खासी आना या सास का फूलना आदि लक्षण प्रकट हो सकते हैं।

3.___ एलर्जी से संबंधित तमाम मामलों का कारण धूल, प्रदूषण और विभिन्न पौधों के फूलों से उत्पन्न पराग कण हैं। वातावरण में मौजूद फंगल व महक वाले पदार्थो जैसे कास्मेटिक्स, पेंट्स, और परफ्यूम्स आदि भी अनेक लोगों में एलर्जी का कारण बन सकते हैं।

4.____ एलर्जी की जानकारी के लिये इनविट्रो टेस्ट कराया जाता है।

5.___ एलर्जी से पीड़ित व्यक्ति इस बात का निरीक्षण करें कि उन्हें जिन वस्तुओं से एलर्जी हो, उनसे बचाव करना चाहिए। एलर्जी के इलाज में दवाओं के अलावा नाक में डालने वाले स्प्रे का भी इस्तेमाल किया जाता है!

स्त्रियों के प्रदर रोग के लिए

🐚सुपारी पाक🐚

400 ग्राम चिकनी सुपारी,कूटकर कपड़छान करें।फिर इसे 2½ किलो गाय के दूध में पकाकर मावा बनायें जब मावा जम जाये तो ½ किलो गाय का घी डालकर भून लें । इसके बाद नीचे लिखी दवा कूट छानकर मिला दें ।
★ चिरोंजी 25 ग्राम
★ नारियल गोला 25 ग्राम
★ जायफल 5 ग्राम
★ जावित्री 5 ग्राम
★ लौंग 5 ग्राम
★ नागकेसर 5 ग्राम
★ तेजपात 5 ग्राम
★ छोटी इलाइची 5 ग्राम
★ वंशलोचन 5 ग्राम
मिलाकर पाक सिद्ध करें । सेवन मात्रा 25 ग्राम ।स्त्रियों के प्रदर रोग की उत्तम दवा है।

मेरी किस्मत

अपने ही आँसू से आँख भिगो….
प्यासे होंठों से जब कोई झील न बोली
हमने अपने ही आँसू से आँख भिगो ली  !!

भोर नहीं काला सपना था पलकों के दरवाज़े पर
हमने यों ही डर के मारे आँख न खोली  !!

दिल के अंदर ज़ख्म बहुत हैं इनका भी उपचार करो
जिसने हम पर तीर चलाए मारो गोली  !!

हम पर कोई वार न करना हैं कहार हम शब्द नहीं
अपने ही कंधों पर है कविता की डोली  !!

यह मत पूछो हमको क्या-क्या दुनिया ने त्यौहार दिए
मिली हमें अंधी दीवाली गूँगी होली !!

सुबह सवेरे जिन हाथों को मेहनत के घर भेजा था
वही शाम को लेकर लौटे खाली झोली !!
कृति- सुमित महाराज झाँसी

कई बीमारियों के लिए छोटा सा प्रयोग

🐚कई बीमारियों का एक साथ छोटा सा प्रयोग 🐚

  • तुलसी की 21 से 35 पत्तियाँ स्वच्छ खरल या सिलबट्टे (जिस पर मसाला न पीसा गया हो) पर चटनी की भांति पीस लें और 10 से 30 ग्राम मीठी दही में मिलाकर नित्य प्रातः खाली पेट तीन मास तक खायें।
  • ध्यान रहे दही खट्टा न हो और यदि दही माफिक न आये तो एक-दो चम्मच शहद मिलाकर लें।
  • छोटे बच्चों को आधा ग्राम दवा शहद में मिलाकर दें। दूध के साथ भुलकर भी न दें। औषधि प्रातः खाली पेट लें। आधा एक घंटे पश्चात नाश्ता ले सकते हैं। दवा दिनभर में एक बार ही लें
  • कैंसर जैसे असह्य दर्द और कष्टप्रद रोगो में २-३ बार भी ले सकते हैं।
  • इसके तीन महीने तक सेवन करने से खांसी, सर्दी, ताजा जुकाम या जुकाम की प्रवृत्ति, जन्मजात जुकाम, श्वास रोग, स्मरण शक्ति का अभाव, पुराना से पुराना सिरदर्द, नेत्र-पीड़ा, उच्च अथवा निम्न रक्तचाप, ह्रदय रोग, शरीर का मोटापा, अम्लता, पेचिश, मन्दाग्नि, कब्ज, गैस, गुर्दे का ठीक से काम न करना, गुर्दे की पथरी तथा अन्य बीमारियां, गठिया का दर्द, वृद्धावस्था की कमजोरी, विटामिन ए और सी की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग, सफेद दाग, कुष्ठ तथा चर्म रोग, शरीर की झुर्रियां, पुरानी बिवाइयां, महिलाओं की बहुत सारी बीमारियां, बुखार, खसरा आदि रोग दूर होते हैं।यह प्रयोग कैंसर में भी बहुत लाभप्रद है।

कौन होता है मांगलिक और इसके प्रभाव क्या है?

कौन होता है मांगलिक और इसके प्रभाव क्या है?

भारत में अनेकों मान्यताओं और अंधविश्वासों को मानने वाले लोग रहते हैं| इनमे से कुछ मान्यताओं का तो वैज्ञानिक आधार है लेकिन कुछ मान्यताएं तो निराधार ही हैं| उदाहरण के तौर पर यदि कोई मांगलिक दोष वाला पुरुष या महिला बिना मांगलिक दोष वाले से शादी करे तो उसका पति या पत्नी शादी के कुछ समय के बाद ही मर जाता है| कैसा पागलपन है ना ये| इस दोष के कारण कई लड़कियां तो मानसिक रूप से बहुत परेशान हो जाती हैं यहाँ तक की आत्म हत्या जैसा विचार भी उनके मन में आता है क्यों कि कुंडली में मांगलिक दोष होने के कारण उनकी शादी नहीं हो पाती है| वैदिक ज्योतिष में मंगल दोष को एक बड़ा ज्योतिषीय दोष माना जाता है जिससे व्यक्ति की जिंदगी, शादी आदि बाधित होती हैं और यह दुर्भाग्य को जन्म देता है| यह कुज दोष, भौम दोष और अंगरखा दोष के नाम से भी जाना जाता है| ज्योतिष के अनुसार जातक की कुंडली में पहले, दुसरे, चौथे, सातवे, आठवे और बारहवें स्थान में मंगल के होने से मांगलिक दोष होता है| बारह में से इन छ में मंगल दोष होता है| जिनकी कुंडली में यह दोष होता हैं उन्हें मांगलिक कहा जाता है| हालही में बॉलीवुड अभिनेत्री ऐश्वर्या राय का मांगलिक दोष काफी चर्चा में रहा था| अपने पति अभिषेक से शादी करने से पहले उन्हें इस दोष के निवारण के लिए एक पेड़ से विवाह करना पड़ा| मांगलिक दोष के बारे में लोगों की क्या विचारधाराएँ हैं इससे पहले हमें यह जानना होगा कि मांगलिक दोष है क्या और इसके प्रभाव और इससे बचने के उपाय क्या हैं| ऐसा इसलिये क्‍योंकि मंगल ग्रह को अकेले रहना पसंद है और इस प्रकार अगर कोई अन्‍य ग्रह उसके समीप आता है तो वह उससे झगड़ा कर लेता है। इसी प्रकार मांगलिक व्‍यक्‍ति लंबे समय के लिए अपने साथी को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।

जिस जातक की जन्म कुंडली, लग्न-चंद्र कुंडली आदि मेंमंगल ग्रह, लग्न सेलग्न में (प्रथम), चतुर्थ, सप्तम,अष्टम तथा द्वादश भावोंमेंसेकहींभी स्थित हो, तो उसे मांगलिक कहतेहैं।

गोलिया मंगल ‘पगड़ी मंगल’ तथा चुनड़ी मंगल : जिस जातक की जन्म कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें भाव में कहीं पर भी मंगल स्थित हो उसके साथ शनि, सूर्य, राहु पाप ग्रह बैठे हों तो व पुरुष गोलिया मंगल, स्त्री जातक चुनड़ी मंगल हो जाती है अर्थात द्विगुणी मंगली इसी को माना जाता है।

मांगलिक कुंडली का मिलान : वर, कन्या दोनों की कुंडली ही मांगलिक हों तो विवाह शुभ और दाम्पत्य जीवन आनंदमय रहता है। एक सादी एवं एक कुंडली मांगलिक नहीं होना चाहिए।

आज भी जब किसी स्त्री या पुरुष के विवाह के लिए कुंडली मिलान किया जाता है तो सबसे पहले देखा जाता है कि वह मंगली है या नहीं। ज्योतिष के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मंगली है तो उसकी शादी किसी मंगली से ही की जानी चाहिए। इसके पीछे धारणाएं बताई गई हैं। क्या आप जानते हैं मंगली शब्द किन लोगों के लिए उपयोग किया जाता है। किन कारणों से कोई स्त्री या पुरुष मंगली होते हैं? मंगली होने के प्रभाव क्या-क्या होते हैं? यदि आप इन प्रश्नों के उत्तर नहीं जानते हैं तो यहां जानिए मंगली शब्द से जुड़ी खास बातें… मंगल से प्रभावित होते हैं मंगली ज्योतिष के अनुसार मंगली लोगों पर मंगल ग्रह का विशेष प्रभाव होता है। यदि मंगल शुभ हो तो वह मंगली लोगों को मालामाल बना देता है। मंगली व्यक्ति अपने जीवन साथी से प्रेम-प्रसंग के संबंध में कुछ विशेष इच्छाएं रखते हैं, जिन्हें कोई मंगली जीवन साथी ही पूरा कर सकता है। इसी वजह से मंगली लोगों का विवाह किसी मंगली से ही किया जाता है।

रतौंधी होने पर करें ये देशी इलाज

१- तुलसी के पत्तों का स्वरस दिन में 3 बार आंखों में डालने से रतोंधी में लाभ होता है.
२- केवल शहद लगाते रहने से रतोंधी मिट जाती है.
३- केले के पत्तों का रस नेत्रों में लगाने से रतोंधी मिट जाती है.

पुष्टिवर्धक प्रयोग
छोटे बच्चे और गर्भवती माताएँ १५ से २५ ग्राम भुनी हुई मूँगफली पुराने गुड के साथ खायें तो उन्हें बहुत पुष्टि मिलती हैं | जिन माताओं का दूध पर्याप्त मात्रा में न उतरता हो, उनके लिए भी इनका सेवन लाभप्रद है |

स्मरणशक्ति बढ़ाने और बुध्दि तेज करने के उपाय

उपाय-
साधारणतया मस्तिष्क का केवल 3 से 7 प्रतिशत
भाग ही सक्रिय हो पाता है। शेष भाग सुप्त
रहता है, जिसमें अनंत ज्ञान छिपा रहता है।
ऐसी विलक्षण शक्ति को जाग्रत करने के कुछ
उपाय यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
– दोनों कानों के नीचे के भाग को अंगूठे और
अंगुलियों से दबाकर नीचे की ओर खीचें। पूरे कान
को ऊपर से नीचे करते हुए मरोड़ें। सुबह 4-5
मिनट और दिन में जब भी समय मिले, कान के
नीचे के भाग को खींचे।
– सिर व गर्दन के पीछे बीच में
मेडुला नाड़ी होती है। इस पर अंगुली से 3-4 मिनट
मालिश करें। इससे एकाग्रता बढ़ती है और
पढ़ा हुआ याद रहता है।
– ज्ञान मुद्रा- प्रात: उठकर पद्यासन
या सुखासन में बैठकर हाथों की तर्जनी अंगुली के
अग्र भाग को अंगूठे से मिलाकर रखने से ज्ञान
मुद्रा बनती है। शेष अंगुलियां सहज रूप से
सीधी रखें, आंखें बंद, कमर व रीढ़ सीधी, यह
अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्रा है।
इसका हितकारी प्रभाव समस्त वायुमंडल और
मस्तिष्क पर पड़ता है। ज्ञानमुद्रा पूरे
स्नायुमंडल को सशक्त बनाती है। विशेषकर
मानसिक तनाव से होने वाले दुष्प्रभावों को दूर
कर मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं को सबल
बनाती है।
– ज्ञानमुद्रा के निरंतर अभ्यास से मस्तिष्क
की सभी विकृतियां और रोग दूर होते हैं। जैसे
पागलपन, उन्माद, विक्षिप्तता, चिड़चिड़ापन,
अस्थिरता, अनिश्चितता क्रोध, आलस्य घबराहट,
अनमनापन, व्याकुलता, भय आदि। मन शांत
हो जाता है। और चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है।
ज्ञानमुद्रा विद्यार्थियों के लिए वरदान है। इसके
अभ्यास से स्मरण शक्ति और बुध्दि तेज होती है।
– अकारण अंगुलियों को चटकाना,
पंजा लड़ाना और अंगुलियों को अनुचित रूप से
चलाना आदि आदतें मस्तिष्क और स्नायुमंडल पर
बुरा प्रभाव डालती हैं। इससे प्राणशक्ति का ह्रास
होता है और स्मरण शक्ति कमजोर होती हैं। अत:
इनसे बचना चाहिए।
– आज्ञाचक्र ललाट पर दोनों भौंहों के मध्य
स्थित होता है। इसका संबंध ब्रह्म शरीर से
होता है। जिस व्यक्ति का आज्ञाचक्र जाग
जाता है, वही विशुध्द ब्रह्मचारी हो सकता है। और
उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं रहता।
आज्ञाचक्र पर ध्यान केन्द्रित करने से
आज्ञाचक्र जाग्रत होता है। सफेद रंग
की ऊर्जा यहां से निकलती है। अत: सफेद रंग के
ध्यान से आज्ञाचक्र के जागरण में
सहायता मिलती है।
– पढ़ाई करने से पहले या कोई भी ज्ञान अर्जन ,
ज्ञान दान का कार्य करने से पहले गणेश जी और
सरस्वती जी का स्मत्रण कर उन्हें प्रणाम करे।
– देशी गाय के शुध्द घी में एक बादाम कुचलकर
डाल दें और उसे गरम करके ठंडा कर लें।
तत्पश्चात् छानकर रखें। रात को सोते समय यह
घी दो-दो बूंद दोनों नासिका के छिद्रों में थोड़
गुनगुना करके डालें। यही घी नाभि पर डालकर 4-5
बार घड़ी की दिशा में और 4-5 बार
घड़ी की विपरीत दिशा में घुमाएं, फिर उस पर गीले
कपड़े की पट्टी और फिर सूखे कपड़े की पट्टी रखें।
ऐसा करीब 10-15 मिनट करें।
– इसी तरह बादाम रोगन तेल का उपयोग कर
सकते है।
– दक्षिण दिशा में सिर रखकर सोएं। सोते वक्त
दोनों पैरों के तलवों में अपने हाथ से घी से मालिश
करें। इससे नींद अच्छी आती है, मस्तिष्क में
शांति, प्रसन्नता और सक्रियता आती है। मनोबल
बढ़ता है।
– चार-पांच बादाम की गिरी पीसकर गाय के दूध
और मिश्री में मिलाकर पीने से मानसिक
शक्ति बढ़ती है।
– आयुर्वेद के अनुसार ब्राह्मी, शंखपुष्पी, वच,
असगंध, जटामांसी, तुलसी समान मात्रा में लेकर
चूर्ण का प्रयोग नित्य प्रतिदिन दूध के साथ करने
पर मानसिक शक्ति, स्मरण शक्ति में
वृध्दि होती है।
– उत्तर दिशा में मुंह करके पिरामिड
की आकृति की टोपी पहनकर पढ़ाई करने से
पढ़ा हुआ बहुत शीघ्र याद होता है। टोपी, कागज,
गत्ता या मोटे कपड़े की बनाई जा सकती है।
– देशी गाय का शुध्द घी, दूध, दही, गोमूत्र, गोबर
का रस समान मात्रा में लेकर गरम करें। घी शेष
रहने पर उतार कर ठंडा करके छानकर रख लें। यह
घी ‘पंचगव्य घृत’ कहलाता है।
रात को सोते समय और प्रात: देशी गाय के दूध में
2-2 चम्मच पिघला हुआ पंचगव्य घृत, मिश्री,
केशर, इलायची, हल्दी, जायफल, मिलाकर पिएं।
इससे बल, बुध्दि, साहस, पराक्रम, उमंग और
उत्साह बढ़ता है। हर काम को पूरी शक्ति से करने
का मन होता है और मनोवांछित
फलों की प्राप्ति होती है।
– रात्रि को सोते समय अपने दिन भर के किए हुए
कार्यों पर चिंतन-मनन करना,
उनकी समीक्षा करना, गलतियों के प्रति खेद
व्यक्त करना और उन्हें पुन: न दोहराने
का संकल्प लेना चाहिए। प्रात: सो कर जागते
समय ईश्वर को नया जन्म देने हेतु धन्यवाद
देना चाहिए और पूरा दिन अच्छे कार्यों में व्यतीत
करने का संकल्प लेकर पूरे दिन की योजना बनाकर
बिस्तर छोड़ना चाहिए।

शतावरी

🐚शतावरी 🐚

” शतावरी हिमतिक्ता स्वादीगुर्वीरसायनीसुस्निग्ध शुक्रलाबल्यास्तन्य मेदोs ग्निपुष्टिदा ..!!
चक्षु स्यागत पित्रास्य, गुल्मातिसारशोथजित…उदधृत किया है ..तो शतावरी एक बुद्धिवर्धक, अग्निवर्धक, शुक्र दौर्बल्य को दूर करनेवाली स्तन्यजनक औषधि है …!!
शतावरी एक झाड़ीनुमा लता के बारे में बताते है , जिसमें फूल मंजरियों में एक से दो इंच लम्बे एक या गुच्छे में लगे होते हैं और फल मटर के समान पकने पर लाल रंग के होते हैं..नाम है “शतावरी” ..I
★आपने विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों में इसके प्रयोग को अवश्य ही जाना होगा ..अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं, इसके प्रयोग को ..!
★आयुर्वेद के आचार्यों के अनुसार , शतावर पुराने से पुराने रोगी के शरीर को रोगों से लड़ने क़ी क्षमता प्रदान करता है …I
★ इसे शुक्रजनन, शीतल, मधुर एवं दिव्य रसायन भी माना गया है I महर्षि चरक ने भी शतावर को बल्य और वयः स्थापक ( चिर यौवन को बरकार रखने वाला) माना है.I
★ आधुनिक शोध भी शतावरी क़ी जड़ को हृदय रोगों में प्रभावी मान चुके हैं I अब हम आपको शतावरी के कुछ आयुर्वेदिक योग क़ी जानकारी देंगे , ..जिनका औषधीय प्रयोग चिकित्सक के निर्देशन में करना अत्यंत लाभकारी होगा …!
★यदि आप नींद न आने क़ी समस्या से परेशान हैं तो बस शतावरी क़ी जड़ को खीर के रूप में पका लें और थोड़ा गाय का घी डालें , इससे आप तनाव से मुक्त होकर अच्छी नींद ले पायेंगे ..!
★ शतावरी क़ी ताज़ी जड़ को यव (जौ) कूट करें, इसका स्वरस निकालें और इसमें बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर पका लें, हो गया मालिश का तेल तैयार …इसे माइग्रेन जैसे सिरदर्द में लगायें और लाभ देखें I
★यदि रोगी खांसते-खांसते परेशान हो तो शतावरीचूर्ण – 1.5 ग्राम ,वासा के पत्ते का स्वरस 2.5 मिली , मिश्री के साथ लें और लाभ देखें I
★ प्रसूता स्त्रियों में दूध न आने क़ी समस्या होने पर शतावरी का चूर्ण -पांच ग्राम गाय के दूध के साथ देने से लाभ मिलता है ..!
★ यदि पुरुष यौन शिथिलता से परेशान हो तो शतावरी पाक या केवल इसके चूर्ण को दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है I
★ यदि रोगी को मूत्र या मूत्रवह संस्थान से सम्बंधित विकृति हो तो शतावरी को गोखरू के साथ लेने से लाभ मिलता है I
★ शतावरी के पत्तियों का कल्क बनाकर घाव पर लगाने से भी घाव भर जाता है …!
★ यदि रोगी स्वप्न दोष से पीड़ित हो तो शतावरी मूल का चूर्ण -2.5 ग्राम , मिश्री -2.5 ग्राम को एक साथ मिलाकर …पांच ग्राम क़ी मात्रा में रोगी को सुबह शाम गाय के दूध के साथ देने से प्रमेह , प्री -मेच्युर -इजेकुलेशन (स्वप्न-दोष ) में लाभ मिलता है I
★गाँव के लोग इसकी जड़ का प्रयोग गाय या भैंसों को खिलाते हैं, तो उनकी दूध न आने क़ी समस्या में लाभ मिलता पाया गया है …अतः इसके ऐसे ही प्रभाव प्रसूता स्त्रियों में भी देखे गए हैं I
★ शतावरी के जड के चूर्ण को पांच से दस ग्राम क़ी मात्रा में दूध से नियमित से सेवन करने से धातु वृद्धि होती है !
★ वातज ज्वर में शतावरी के रस एवं गिलोय के रस का प्रयोग या इनके क्वाथ का सेवन ज्वर (बुखार) से मुक्ति प्रदान करता है ..I
★ शतावरी के रस को शहद के साथ लेने से जलन , दर्द एवं अन्य पित्त से सम्बंधित बीमारीयों में लाभ मिलता है …I..