भारत की 10 खूबसूरत, दिलकश प्राकर्तिक जगह

  1. नोहकालिकाई फॉल्स, चेरापूंजी (Noakhali Falls, Cherrapunji) :
Noakhali Falls, Cherrapunji

नोहकलिकाई फॉल्स भारत के मेघालय में स्थित है। चेरापूंजी के नज़दीक यह एक आकर्षक झरना है। चेरापूंजी को सबसे ज्यादा बारिश के लिए जाना जाता है और इस झरने के जल का स्रोत यही बारिश है। यह झरना 335 मीटर ऊंचाई से गिरता है। यहां झरने के नीचे एक तालाब बना हुआ है, जिसमें गिरता हुआ पानी हरे रंग का दिखाई देता है।

2-मुन्नार के चाय बागान और पहाड़ियां, केरल (Munnar Tea  Gardens, Kerala) :

 

 Munnar Tea  Gardens, Kerala

यहां हर साल हज़ारों पर्यटक आते हैं। जिंदगी की भागदौड़ और प्रदूषण से दूर यह जगह लोगों को अपनी ओर खींचता है। 12000 हेक्टेयर में फैले चाय के खूबसूरत बागान यहां की खासियत है। दक्षिण भारत की अधिकतर जायकेदार चाय इन्हीं बागानों से आती हैं। चाय के उत्पादन के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए चाय संग्रहालय है जहां इससे संबधित सभी तस्वीरें और
सूचनाएं मिलती हैं। इसके अतिरिक्त यहां वन्य जीवन को करीब से देखा जा सकता है।

3- स्टोक रंज, लद्दाख (Stok Range Ladakh) :

लद्दाख जम्मू और कश्मीर में स्थित है। यह उत्तर-पश्चिमी हिमालय के पर्वतीय क्रम में आता है,जहां का अधिकांश धरातल कृषि योग्य नहीं है। 11, 845 फुट की ऊंचाई पर, स्टोक रेंज में स्टोक कांगड़ी, पर्वतारोहियों के बीच एक लोकप्रिय पर्वत है। दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर, एवरेस्ट पर्वत की चढ़ाई करने से पहले, स्टोक रेंज पर चढ़ाई एक अभ्यास मानी जाती है।

4- नुब्रा वैली, लद्दाख (Nubra Valley Ladakh) :

Nubra Valley Ladakh

नुब्रा वैली का मतलब ही है ‘फूलों की घाटी’। नुब्रा वैली जाने के लिए आपको इनर लाइन परमिट की
आवश्यकता होगी, क्योंकि यहां तक आने के लिए खरदुंग ला पास को पार करना होगा जो दुनिया का सबसे ऊंचा पास है। हुन्डर और पनामिक नुब्रा वैली के दो मुख्य आकर्षण हैं।
हुन्डर को ‘आकाश में रेगिस्तान’ भी कहा जाता है। यही एक ऐसी जगह है जहां आप दो कूबड़ वाले ऊंट की सवारी कर पाएंगे। पनामिक में सल्फर स्प्रिंग और मठों के नज़ारे ले पाएंगे।

5- माथेरन (Matheran) :

माथेरन ब्रिटिश राज में गर्मियों में छुट्टियां बीताने का लोकप्रिय स्थान बन चुका था। यह मुंबई में पदस्थापित ब्रिटिश अधिकारियों की बड़ी पसंद था। इंडिया का यह सबसे छोटा हिल स्टेशन मुंबई से 90 कि.मी. की दूरी पर है। यहां से सूर्यास्त और सूर्योदय का नज़ारा देखने लायक है। यह समुद्र तल से 2625 फुट की ऊंचाई पर पश्चिमी घाट पर स्थित है।

6- नन्दा देवी (Nanda Devi) :

Nanda Devi

नन्दा देवी पर्वत भारत के उत्तराखण्ड राज्य में अंतर्गत गढ़वाल ज़िले में स्थित है। यह पर्वत हिमालय के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र का प्रसिद्ध पर्वतशिखर है। इसकी चमोली से दूरी 32 मील पूर्व है। इस पर्वत शिखर में दो जुड़वां चोटियां हैं, जिनमें से नंदादेवी चोटी समुद्रतल से 25645 फुट ऊंची है। हिंदुओं का विश्वास है कि शंकर भगवान की पत्नी नंद इसी पर्वत पर निवास करती हैं।

7- मिज़ोरम (Mijoram) :

Mijoram

मिज़ोरम में प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा पड़ा है। यहां की पहाड़ियां घने सदाबहार वनों से ढकी हैं, जिनमें चंपक, आयरन वुड और गुर्जुन जैसे मूल्यवान इमारती लकड़ी के वृक्ष पाए जाते हैं। वास्तविक वनाच्छादित क्षेत्र 18,775 वर्ग कि.मी. है, जो भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 89 प्रतिशत है। इन जंगलों में हाथी, बाघ, भालू, हिरन और जंगली भैंसों समेत कई जंतुओं का
पर्यावास है।

8- लोनार सरोवर, महाराष्ट्र (Lonar Lake, Maharashtra) :

Lonar Lake, Maharashtra

लोनार झील महाराष्ट्र के बुलढ़ाणा ज़िले में स्थित एक खारे पानी की झील है। यह आकाशीय उल्का पिंड की टक्कर से निर्मित पहली झील है। इसका खारा पानी इस बात का प्रतीक है कि कभी यहां समुद्र था। इसके बनते वक्त क़रीब दस लाख टन के उल्का पिंड की टकराहट हुई।
क़रीब 1.8 किलोमीटर व्यास की इस उल्कीय झील की गहराई लगभग पांच सौ मीटर है।आज भी वैज्ञानिकों में इस विषय पर गहन शोध जारी है कि लोनार में जो टक्कर हुई,वो उल्का पिंड और पृथ्वी के बीच हुई या फिर कोई ग्रह पृथ्वी से टकराया था। उस वक्त वो तीन हिस्सों में टूट चुका था और उसने लोनार के अलावा अन्य दो जगहों  पर भी झील बना दी, हालांकि पूरी तरह सूख चुकी अम्बर और गणेश नामक इन झीलों का कोई विशेष महत्व नहीं रहा है।

9- यूमथांग वैली, सिक्किम (Yumthang Valley, Sikkim) :

यूमथांग को सिक्किम का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। समुद्र तल से करीब 3564 मीटर्स की ऊंचाई पर स्थित यह इलाका, फूलों की घाटी के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। यह घाटी उत्तर सिक्किम में है और हिमालय पर्वतों से घिरी हुई है। यहां जानवर घास चरने भी आते हैं। उत्तर जिला सभी जिलों में सबसे खूबसूरत है। कंचनजंघा के पर्वत शिखर की गोद में लिपटा यह जिला काफी ऊंचाई पर स्थित है।

10- लेह (Leh) :

 

Monastery at Leh

लेह जम्मू कश्मीर राज्य के लद्दाख जिले का प्रमुख नगर है। सिंधु नदी के किनारे और 11000 फीट की ऊंचाई पर बसा लेह पर्यटकों को जमीं पर स्वर्ग का आभास कराता है। सुंदरता से परिपूर्ण लेह में रूईनुमा बादल इतने नजदीक होते हैं कि लगता है जैसे हाथ बढाकर उनका स्पर्श किया जा सकता है। गगन चुंबी पर्वतों पर ट्रैकिंग का यहां अपना ही मज़ा है। लेह में पर्वत और नदियों के अलावा भी कई ऐतिहासिक इमारतें मौजूद हैं। यहां बड़ी संख्या में खूबसूरत बौद्ध मठ हैं जिनमें बहुत से बौद्ध भिक्षु रहते हैं।

भारत के टॉप 10 हिल स्टेशन (Top 10 Hill station of India)

1-शिलॉन्ग, मेघालय (Shillong Meghalaya) :

शिलॉन्ग, मेघालय (Shillong Meghalaya)
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मेघायल की राजधानी शिलॉन्ग खासी पहाड़ियों के बीच स्थित है। यह भारत के सबसे खूबसूरत हिल स्टेशन में से एक है। यहां पर पूरी दुनिया का सबसे ऊंचा वॉटरफॉल है जिसे देखने दनियाभर से लोग आते हैं। यह भारत के प्रसिद्ध ब्लूस मैन, लाउ मैजॉ (सिंगर और गिटारिस्ट) का घर भी है। शिलॉन्ग को इसकी खूबसूरती के लिए पूर्व का स्कॉटलैंड भी कहा जाता है।

शिलॉन्ग, मेघालय (Shillong Meghalaya)
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शिलॉन्ग के पॉपुलर टूरिस्ट प्लेस-

डॉन बॉस्को सेंटर, मॉवलिननॉन्ग वॉटरफॉल, ऑल सैंट चर्च, कैथेरल कैथोलिक चर्च, एलीफेंट फॉल, शिलॉन्ग व्यू पॉइंट, मॉव्फलांग सैकरेड फॉरेस्ट, पुलिस बाजार और बटरफ्लाई म्यूज़ियम।

2- नैनीताल, उत्तराखंड (Nainital, Uttarakhand)  :

नैनीताल, उत्तराखंड (Nainital, Uttarakhand)
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नैनीताल एक खूबसूरत और पॉपलुर हनीमून स्पॉट है। यह उत्तराखंड में स्थित है। यहां आकर आपको शांत और प्रकृति के पास होने जैसा महसूस होगा। अगर आपको शॉपिंग करनी है तो यहां की प्रसिद्ध मार्केट मॉलरोड जाना न भूलें।

नैनीताल, उत्तराखंड (Nainital, Uttarakhand)
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नैनीताल में पॉपुलर टूरिस्ट स्पॉट-

नैनीताल झील, नैनादेवी मंदिर, नैना चोटी, गर्वनर हाउस, टिफिन टॉप और पंडित जी.बी. पंत प्राणी उद्यान यहां के पॉपुलर टूरिस्ट स्पॉट हैं।

3- शिमला, हिमांचल प्रदेश (Shimla, Himachal Pradesh) :

शिमला, हिमांचल प्रदेश (Shimla, Himachal Pradesh)
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हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला भारत का सबसे पॉपुलर हिल स्टेशन है, साथ ही हनीमून के लिए भी यह बेस्ट डेस्टिनेशन है। यहां घाटी और चारों ओर हिमालय पर्वत की चोटियों का सुंदर दृश्‍य दिखाई देता है।

शिमला, हिमांचल प्रदेश (Shimla, Himachal Pradesh)
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शिमला में पॉपुलर टूरिस्ट स्पॉट-

यहां घूमने के लिए दि मॉल, क्राइस्ट चर्च, तारादेवी मंदिर, समर हिल और शिमला स्टेट म्यूज़ियम जैसी जगहें हैं। दि मॉल शिमला की शॉपिंग गली है जहां कई रेस्टोरेंट, क्लब, बैंक, बार, पोस्ट ऑफिस और टूरिस्ट ऑफिस हैं।

4- दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल (Darjeeling, West Bengal) :

दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल (Darjeeling, West Bengal)
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भारत का खूबसूरत हिल स्टेशन दार्जिलिंग चारों ओर से चाय के बागानों से घिरा हुआ है, जो देखने में काफी सुंदर लगता है। ये बाग हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों के अपोज़िट तरफ स्थित हैं। दार्जिलिंग प.बंगाल के उत्तरी क्षेत्र में स्थित है। दार्जिलिंग में हिमालयन रेलवे की यात्रा काफी पॉपुलर है जिसे वहां टॉय ट्रेन कहा जाता है। इस ट्रेन की यात्रा से आप पूरे दार्जिलिंग की खूबसूरती को देख सकते हैं और इसकी खूबसूरती में खो सकते हैं।

दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल (Darjeeling, West Bengal)
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5- श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर (Srinagar, Jammu and Kashmir) :

श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर (Srinagar, Jammu and Kashmir)
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श्रीनगर का खूबसूरत दृश्य लोगों को बहुत पहले समय को अपनी ओर आकर्षित करता आ रहा है। यह हाउसबोट, हिस्टॉरिक गार्डेन और घाटियों के लिए प्रसिद्ध है। यहां डल झील और झेलम नदी का किनारे स्थित घाटियां भी बेहद खूबसूरत हैं।

श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर (Srinagar, Jammu and Kashmir)
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श्रीनगर में पॉपुलर टूरिस्ट प्लेस

इंदिरा गांधी ट्यूलिप गार्डेन, शंकराचार्य पहाड़ी, सिंथन चोटी, नागिन झील, बेताब घाटी और सोनामार्ग।

6- मुन्नार, केरल  (Munnar Kerala) :

मुन्नार, केरल  (Munnar Kerala)
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विशाल चाय बागान और घुमावदार गलियों की वजह से मुन्नार भारत के फेमस हिल स्टेशन में से एक है। यह भारतीय मसालों की खुशबू आती है क्योंकि यहां मसालों की खेती होती है। यहां पर्यटकों के बीच हाउसबोटिंग काफी पॉपुलर है।

मुन्नार, केरल  (Munnar Kerala)
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मुन्नार में पॉपुलर टूरिस्ट प्लेस

चाय के बगीचे, वॉंन्डरला अम्यूसमेंट पार्क, कोची फोर्ट, गणपति मंदिर और हाउस बोट।

7-मनाली, हिमाचल प्रदेश  (Manali, Himachal Pradesh) :

मनाली, हिमाचल प्रदेश  (Manali, Himachal Pradesh)
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चारों ओर से पहाड़ों के रोमांचक दृश्य के साथ मनाली एडवेंचरस लोगों के लिए बेहतरीन स्पॉट है। यहां आने वाले टूरिस्ट कस्बे में स्थित गांव में ठहरते हैं और यहां ट्रैकिंग, स्कीइंग और राफ्टिंग का मज़ा लेते हैं। मनाली से करीब 53 कि.मी. दूर स्थित प्रसिद्ध रोहतांग पास में पर्यटकों को ग्लेशियर, चोटियां और घाटियों के एडवेंचरस और सांसें रोक देने वाले दृश्य दिखाई देते हैं।

मनाली, हिमाचल प्रदेश  (Manali, Himachal Pradesh)
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मनाली में पॉपुलर टूरिस्ट प्लेस-

व्यास नदी, जोगिनी झरना, हडिंबा देवी मंदिर, मनीकरण गुरुद्वारा, सोलांग घाटी, व्यास कुंड, रोहतांग पास और हिमवैली मनाली।

8- ऊटी, तमिलनाडु (Ooty, Tamil Nadu) :

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इसको अंग्रेजों ने गर्मियों में रहने के उद्देश्य से विकसित किया और यहां बर्फ पड़ने की वजह से स्नूटी-ऊटी उपनाम दिया गया। यहां सुंदर कॉटेज, फेंच्ड फूलों के बगीचे, फूस की छत वाले चर्च और बोटेनिकल गार्डन इसकी खूबसूरती को बयां करते हैं। यहां कुछ किलोमीटर चलते ही आप खुद को हरी-भरी प्रकृति से घिरा हुआ पाएंगे। यहां चीड़ के पेड़ काफी मात्रा में उगाए गए हैं।

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ऊटी में पॉपुलर टूरिस्ट प्लेस-

अपर भवानी झील, नीलगिरी माउंटेन रेलवे, सेंचुरी एवेलांचे, एमेराल्ड झील, बोटेनिकल गार्डन, सेंट स्टीफेन चर्च, पिकारा झील और पिकारा झरना और गुलाब के बगीचे।

9-कुनूर, तमिलनाडु  (Coonoor, Tamil Nadu) :

कुनूर, तमिलनाडु  (Coonoor, Tamil Nadu)
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कुनूर, ऊटी से कुछ ही दूर पर उससे कम क्षेत्रफल में स्थित है। कुनूर नीलगिरी पर्वत पर बसा हुआ है और चारों ओर से इसकी घुमावदार पहाड़ियां, चाय और कॉफी के बागानों से घिरा हुआ है। यहां कुनूर से ऊटी तक टॉय ट्रेन चलती है, जो पर्यटकों के बीच बेहद पॉपुलर है। कुनूर से ऊटी के बीच यात्रा में वेलिंगटन के कैंटोमेंट एरिया के साथ बेहद खूबसूरत दृश्य देखे जा सकते हैं।

कुनूर, तमिलनाडु  (Coonoor, Tamil Nadu)
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कुनूर में पॉपुलर टूरिस्ट प्लेस-

हेरिटेज ट्रेन, सिम पार्क, वेलिंग्टन गोल्फ कोर्स, डॉल्फिन नोस, हाईफील्ड टी फैक्ट्री, लैंब रॉक और ड्रूग किला।

10-कुर्ग, कर्नाटक  ( Coorg, Karnataka) :

कुर्ग, कर्नाटक  ( Coorg, Karnataka)
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पश्चिमी घाटों में फैला हुआ, कुर्ग की मिस्टी घाटी में खूबसूरत दृश्य हैं। यहां कॉफी, चाय और मसालों के वृझ हैं। कुर्ग को इसकी खूबसूरती और यहां के खुशनुमे मौसम के चलते भारत का स्कॉटलैंड कहा जाता है। यहां कॉफी और मसालों की खेती होती है।

कुर्ग, कर्नाटक  ( Coorg, Karnataka)
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कु्र्ग के पॉपुलर टूरिस्ट प्लेस

मंडालपत्ती, तिब्बती मठ, कावेरी नदी, इरूपू फॉल, इगुथापा मंदिर, ओमकारेश्वर मंदिर, मरकारा डाउन गोल्फ क्लब, ब्रह्मागिरी पहाड़ी और नाल्कनद महल।

मेघालय का एक गाँव जिसे कहते है भगवान का अपना बगीचा, है एशिया का सबसे स्वच्छ गाँव

Mawlynnong Village Meghalaya - God;s Own Garden
गाँव का एक दृश्य Image Credit

जहाँ एक और सफाई के मामले में हमारे अधिकांश गाँवो, कस्बों और शहरों की हालत बहुत खराब है वही यह एक सुखद आश्चर्य की बात है की एशिया का सबसे साफ़ सुथरा गाँव भी हमारे देश भारत है। यह है मेघालय का मावल्यान्नॉंग गांव जिसे की भगवान का अपना बगीचा (God’s Own Garden) के नाम से भी जाना जाता है। सफाई के साथ साथ यह गाँव शिक्षा में भी अवल्ल है।  यहाँ की साक्षरता दर 100 फीसदी है, यानी यहां के सभी लोग पढ़े-लिखे हैं। इतना ही नहीं, इस गांव में ज्यादातर लोग सिर्फ अंग्रेजी में ही बात करते हैं।

Mawlynnong Village Meghalaya - God;s Own Garden
गाँव से गुजरता एक रास्ता  Image Credit 

मावल्यान्नॉंग गांव (Mawlynnong Village) :

Mawlynnong Village Meghalaya - God;s Own Garden
Image Credit 

खासी हिल्स डिस्ट्रिक्ट का यह गांव मेघालय के शिलॉंन्ग और भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से 90 किलोमीटर दूर है। साल 2014 की गणना के अनुसार, यहां 95 परिवार रहते हैं। यहां सुपारी की खेती आजीविका का मुख्य साधन है। यहां लोग घर से निकलने वाले कूड़े-कचरे को बांस से बने डस्टबिन में जमा करते हैं और उसे एक जगह इकट्ठा कर खेती के लिए खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं।

Mawlynnong Village Meghalaya - God;s Own Garden
पुरे गाँव में हर जगह कचरा डालने के लिए ऐसे बांस के डस्टबिन लगे है Image Credit 

ग्रामवासी स्वयं करते है सफाई :
यह गांव 2003 में एशिया का सबसे साफ और 2005 में भारत का सबसे साफ गांव बना। इस गाँव की सबसे बड़ी खासियत यह है की यहाँ की सारी सफाई ग्रामवासी स्वयं करते है, सफाई व्यवस्था के लिए वो किसी भी तरह प्रशासन पर आश्रित नहीं है।  इस पुरे गांव में जगह जगह बांस के बने डस्टबिन लगे है। किसी भी ग्रामवासी को, वो चाहे महिला हो, पुरुष हो या बच्चे हो जहाँ गन्दगी नज़र आती है , सफाई पर लग जाते है  फिर चाहे वो सुबह का वक़्त हो, दोपहर का या शाम का।  सफाई के प्रति जागरूकता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है की यदि सड़क पर चलते हुए किसी ग्रामवासी को कोई कचरा नज़र आता है तो वो रूककर पहले उसे उठाकर डस्टबिन में डालेगा फिर आगे जाएगा। और यही आदत इस गाँव को शेष भारत से अलग करती है जहाँ हम हर बात के लिए प्रशासन पर निर्भर रहते है, खुद कुछ पहल नहीं करते है।

Mawlynnong Village Meghalaya - God;s Own Garden
सफाई करता पुरुष  Image Credit 

 

Mawlynnong Village Meghalaya - God;s Own Garden
सफाई करती महिलायें Image Credit 
Mawlynnong Village Meghalaya - God;s Own Garden
सफाई करते बच्चे Image Credit 

टूरिस्ट अट्रैक्शन (Tourist Attractions) :

Mawlynnong Village Meghalaya - God;s Own Garden
वाटर फाल Image Credit 
इस गाँव के आस पास टूरिस्ट्स के लिए कई अमेंजिग स्पॉट हैं, जैसे वाटरफॉल, लिविंग रूट ब्रिज (पेड़ों की जड़ों से बने ब्रिज) और बैलेंसिंग रॉक्स भी हैं। इसके अलावा जो एक और बहुत फेमस टूरिस्ट अट्रैक्शन है वो है 80 फ़ीट ऊंंची मचान पर बैठ कर शिलांग की प्राकृतिक खूबसूरती को निहारना। आप मावल्यान्नॉंग गांव घूमने का आनंद ले सकते पर आप यह ध्यान रखे की आप के द्वारा वहां की सुंदरता किसी तरह खराब न हो।

इन ऊंंची मचानों पर बैठ कर आप निहार सकते है प्रकर्ति को।  Image Credit 
 पेड़ो की जड़ो से बने प्राकर्तिक पूल जो समय के साथ साथ मजबूत होते जाते है।  इस तरह के ब्रिज पुरे विशव में केवल मेघालय में ही मिलते है।
बैलेंसिंग रॉक Image Credit 

गाँव में कई जगह आने वाले प्रयटकों की जलपान सुविधा के लिए ठेठ ग्रामीण परिवेश की टी स्टाल बनी हुई है जहाँ आप चाय का आनंद ले सकते है इसके अलावा एक रेस्टोरेंट भी है जहाँ आप भोजन कर सकते है।

टी स्टाल Image Credit 
कैसे पहुंचे मावल्यान्नॉंग गांव :
मावल्यान्नॉंग गांव शिलांग से 90 किलोमीटर और चेरापूंजी से 92 किलोमीटर दूर स्तिथ है। दोनों ही जगह से सड़क के द्वारा आप यहाँ पहुँच सकते है।  आप चाहे तो शिलांग तक  देश के किसी भी हिस्से से हवाईजहाज के द्वारा भी पहुँच सकते है। लेकिन यहाँ जाते वक़्त एक बात ध्यान रखे की अपने साथ पोस्ट पेड़ मोबाइल ले के जाए क्योंकि अधिकतर पूर्वोत्तर राज्यों में प्रीपेड मोबाइल बंद है।

भारत के 10 सबसे अमीर मंदिर (Top 10 Richest Temple of India)

आइए जानते हैंं कौन से है भारत के दस सबसे अमीर हिन्दू मंदिर….
  1. पद्मनाभ स्वामी मंदिर, त्रिवेंद्रम (Padmanabhaswamy Temple Trivandrum) : –
पद्मनाभ स्वामी मंदिर, त्रिवेंद्रम (Padmanabhaswamy Temple Trivandrum)
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पद्मनाभ स्वामी मंदिर भारत का सबसे अमीर मंदिर है। यह तिरुवनंतपुरम् (त्रिवेंद्रम) शहर के बीच स्थित है। इस मंदिर की देखभाल त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार द्वारा की जाती है। यह मंदिर बहुत प्राचीन है और द्रविड़ शैली में बनाया गया है। मंदिर की कुल एक लाख करोड़ की संपत्ति है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है जिसे देखने के लिए हजारों भक्त दूर दूर से यहां आते हैं।

इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। मान्यता है कि तिरुअनंतपुरम नाम भगवान के अनंत नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है। यहां पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को पद्मनाभ कहा जाता है और इस रूप में विराजित भगवान पद्मनाभ स्वामी के नाम से विख्यात हैं।

2. तिरूपति बालाजी का मंदिर, आंध्रप्रदेश (Tirupati Balaji Temple, Andhra Pradesh) :-

तिरूपति बालाजी का मंदिर, आंध्रप्रदेश (Tirupati Balaji Temple, Andhra Pradesh
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तिरूपति बालाजी का मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। मंदिर सात पहाड़ों से मिलकर बने तिरूमाला के पहाड़ों पर स्थित है, कहते हैं कि तिरूमाला की पहाड़ियां विश्व की दूसरी सबसे प्राचीन पहाड़ियां है। इस तिरूपति मंदिर में भगवान वेंकटश्वर निवास करते है। भगवान वेंकटश्वर को विष्णुजी का अवतार माना जाता है।

यह मंदिर समुद्र तल से 2800 फिट की ऊंचाई पर स्थित है।  इस मंदिर को तमिल राजा थोडईमाननें ने बनवाया था। इस मंदिर में लगभग 50,000 श्रृद्धालु रोज दर्शन करने आते हैं। मंदिर की कुलसंपत्ति लगभग 50,000 करोड़ है।

  1. श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी (Jagnnath Temple, Puri) : –
श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी (Jagnnath Temple, Puri)
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पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है। यह भारत के उड़ीसा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है।

इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है। पुरी जगन्नाथ मंदिर भारत के दस अमीर मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के लिए जो भी दान आता है। वह मंदिर की व्यवस्था और सामाजिक कामों में खर्च किया जाता है।

  1. सांई बाबा मंदिर, शिरडी (Shai Baba Temple, Shirdi) :-
सांई बाबा मंदिर, शिरडी (Shai Baba Temple, Shirdi)
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सांई बाबा एक भारतीय गुरु, योगी और फकीर थे, उन्हें उनके भक्तों द्वारा संत कहा जाता है। उनके असली नाम, जन्म, पता और माता पिता के सन्दर्भ में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। सांई शब्द उन्हें भारत के पश्चिमी भाग में स्थित प्रांत महाराष्ट्र के शिर्डी नामक कस्बे में पहुंचने के बाद मिला।

शिर्डी सांई बाबा मंदिर भी यहीं बना हुआ है। सांई बाबा मंदिर भारत के अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर की संपत्ति और आय दोनों ही करोड़ों में है। मंदिर के पास लगभग 32 करोड़ की चांदी के जेवर हैं। 6 लाख कीमत के चांदी के सिक्के हैं। साथ ही, हर साल लगभग 350 करोड़ का दान आता है।

  1. सिद्घिविनायक मंदिर, मुंबई  (Siddhivinayak Temple, Mumbai) :-
सिद्घिविनायक मंदिर, मुंबई  (Siddhivinayak Temple, Mumbai)
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सिद्घिविनायक गणेश जी का सबसे लोकप्रिय रूप है। गणेश जी की जिन प्रतिमाओं की सूड़ दाईं तरह मुड़ी होती है, वे सिद्घपीठ से जुड़ी होती हैं और उनके मंदिर सिद्घिविनायक मंदिर कहलाते हैं। सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है, वे भक्तों की मनोकामना को तुरंत पूरा करते हैं।

मान्यता है कि ऐसे गणपति बहुत ही जल्दी प्रसन्न होते हैं और उतनी ही जल्दी कुपित भी होते हैं। सिद्धी विनायक मंदिर भारत के रईस मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर को 3.7 किलोग्राम सोने से कोट किया गया है, जो कि कोलकत्ता के एक व्यापारी ने दान किया था।

  1. वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू (Vaishno Devi Templ, Jammu) :-
वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू (Vaishno Devi Templ, Jammu)
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भारत में हिन्दूओं का पवित्र तीर्थस्थल वैष्णो देवी मंदिर है जो त्रिकुटा हिल्स में कटरा नामक जगह पर 1700 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर के पिंड एक गुफा में स्थापित है, गुफा की लंबाई 30 मी. और ऊंचाई 1.5 मी. है।

लोकप्रिय कथाओं के अनुसार, देवी वैष्णों इस गुफा में छिपी और एक राक्षस का वध कर दिया। मंदिर का मुख्य आकर्षण गुफा में रखे तीन पिंड है। इस मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की है। आंध्र प्रदेश के तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद इसी मंदिर में भक्तों द्वारा सबसे ज्यादा दर्शन किए जाते है। यहां हर साल लगभग 500 करोड़ का दान आता है।

  1. सोमनाथ मंदिर, गुजरात (Somnath Temple, Gujarat) :-
सोमनाथ मंदिर, गुजरात (Somnath Temple, Gujarat)
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सोमनाथ एक महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर है जिसकी गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है।  गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह पर स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था।

इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। इसे अब तक 17 बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया। सोमनाथ में हर साल करोड़ों को चढ़ावा आता है। इसलिए ये भारत के अमीर मंदिरों में से एक है।

  1. गुरुवयुर मंंदिर, केरल (Guruvayur Temple, Kerala) :-
गुरुवयुर मंंदिर, केरल (Guruvayur Temple, Kerala)
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गुरुवयुर श्री कृष्ण मंदिर गुरुवयुर केरला में स्थित है। यह मंदिर विष्णु भगवान का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर लगभग 5000 साल पुराना है। गुरुवयुर मंंदिर वैष्णवों की आस्था का केंद्र है। अपने खजाने के कारण यह मंदिर भी भारत के 10 सबसे अमीर मंदिरों में से एक है।

  1. काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी (Kashi Vishwanath Temple, Varanasi) :-
काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी (Kashi Vishwanath Temple, Varanasi)
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काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर वाराणसी में स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन 1780 में करवाया गया था। बाद में महाराजा रंजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा मढ़वाया गया था। काशी विश्वनाथ भी भारत के अमीर मंदिरों में से एक है। यहां हर साल करोड़ों का चढ़ावा आता है।

  1. मीनाक्षी अम्मन मंदिर,  मदुरै (Meenakshi Temple, Madurai) :
मीनाक्षी अम्मन मंदिर,  मदुरै (Meenakshi Temple, Madurai)मीनाक्षी अम्मन मंदिर,  मदुरै (Meenakshi Temple, Madurai)
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तमिलनाडु में मदुरै शहर में स्थित मीनाक्षी अम्मन मंदिर प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। मीनाक्षी अम्मन मंदिर विश्व के नए सात अजूबों के लिए नामित किया गया है।

यह मंदिर भगवान शिव व मीनाक्षी देवी पार्वती के रूप के लिए समर्पित है। मीनाक्षी मंदिर पार्वती के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। मंदिर का मुख्य गर्भगृह 3500 वर्ष से अधिक पुराना माना जा रहा है। यह मंदिर भी अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है

भारत के 10 प्रसिद्ध और सुन्दर बगीचे (10 Famous and Beautiful Gardens of India)

आइए जानते है भारत के 10 फेमस और ब्यूटीफुल गार्डन्स के बारे में –

1- पिंजौर गार्डन,चंडीगढ़  (Pinjore Garden, Chandigarh) :-

पिंजौर गार्डन,चंडीगढ़  (Pinjore Garden, Chandigarh)

अगर आप चंडीगढ़ जाते हैं, तो आपको पिंजौर गार्डन घूमना बेहद पसंद आएगा। इस गार्डन को स्थानीय लोग यादविन्द्रा गार्डन के नाम से भी जानते हैं। पिंजौर गार्डन में आपको पौराणिक महत्व की कुछ चीजें देखने को मिलेंगी। पौराणिक कथा के अनुसार, अज्ञातवास के दौरान पांडव इस गार्डन में घूमने के लिए आए थे। यह शहर का फेमस पिकनिक स्पॉट है। साथ ही, यहां पर जापानी गार्डन भी देखने लायक है। इस गार्डन में छोटा-सा चिड़ियाघर, नर्सरी और एक सुंदर-सा लॉन है। पिंजौरा गार्डन को रात के समय में कलरफुल लाइट से सजाया जाता है। यहां फाउंटेन भी है। यहां पर टूरिस्ट्स ज़्यादातर रात के समय घूमने के लिए आते हैं। इस गार्डन में घूमने के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से लेकर जून है, क्योंकि इन दिनों यहां पर बैसाखी का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा, यहां पर मैंगो फेस्टिवल भी बेहद ही फेमस है।

2- बोटेनिकल गार्डन, ऊटी (Botanical Garden, Ooty) :-

 बोटेनिकल गार्डन, ऊटी (Botanical Garden, Ooty)

इस  गार्डन को 1847 में ऊटी में बनवाया था। यह 55 एकड़ एरिया में फैला हुआ है। इस गार्डन में 2000 से भी अधिक विदेशी प्रजाति के पेड़-पौधे हैं। इस गार्डन की देखरेख तमिलनाडु सरकार का हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट करता है। इस गार्डन में अलग-अलग तरह के पेड़-पौधे टूरिस्ट्स के आकर्षण का केंद्र हैं। हर साल मई के महीने में यहां ‘समर फेस्टिवल’ मनाया जाता है, जो टूरिस्ट्स को बहुत ही पसंद आता है। इस गार्डन का खास आकर्षण फ्लॉवर शो है। इसके अलावा, लिली पाउंड और एक कॉर्क पेड़ भी है, जो कहा जाता है कि हज़ारों साल पुराना है।

3- गुलाब बाग, उदयपुर (Gulab Bagh, Udaipur) :-

 गुलाब बाग, उदयपुर (Gulab Bagh, Udaipur)
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गुलाब बाग को सज्जन निवास के नाम से भी जाना जाता है। यह उदयपुर का सबसे सुंदर और बड़ा गार्डन है। इसे महाराणा सज्जन सिंह ने 100 एकड़ जमीन पर बनवाया था। यह राजस्थान का सबसे बड़ा गुलाब के फूलों का गार्डन है। गुलाब के फूलों की वजह से इस गार्डन का नाम गुलाब गार्डन रखा गया। यह गार्डन पिछोला लेक की दाईं तरफ स्थित है। इस गार्डन में आपको गुलाब के फूल की ऐसी वेरायटी मिल जाएगी जो कहीं और देखने को नहीं मिलेगी। इस गार्डन की गिनती विश्व के खूबसूरत गार्डन्स में होती है। अगर आपको प्राकृतिक सुंदरता पसंद है, तो आप गुलाब गार्डन जा सकते हैं। इस गार्डन में सरस्वती भवन नाम से एक पब्लिक लाइब्रेरी भी है। इस गार्डन में घूमने के साथ आप ट्वॉय ट्रेन से सैर कर सकते हैं और जानवरों को भी देख सकते हैं।

4- निशात बाग, श्रीनगर (Nishat Bagh, Srinagar) :-

निशात बाग, श्रीनगर (Nishat Bagh, Srinagar)

इस गार्डन को मुगल शासकों ने 1633-34 ई. में बनवाया था। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा गार्डन है। यह श्रीनगर से 11 किलोमीटर दूर डल झील के पास पूर्वी हिस्से पर बना हुआ है। इस गार्डन में आपको आनंद का एहसास होगा। साथ ही, इस गार्डन से आप डल झील की खूबसूरती को निहार सकते हैं। इस सीढ़ीदार गार्डन के एक तरफ झील और दूसरी तरफ हिमालय की चोटी दिखाई पड़ती है। इस गार्डन में भव्य पहाड़ और मुगल मंडप की कलाकारी देखते बनती है।

5- हैंगिंग गार्डन, मुंबई  (Hanging Gardens, Mumbai) :-

 हैंगिंग गार्डन, मुंबई  (Hanging Gardens, Mumbai)
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मुंबई के मालाबार हिल्स के सबसे ऊपर बना हैंगिंग गार्डन बेहद ही आकर्षक है। यह गार्डन कमला नेहरू पार्क के सामने ही है। इस गार्डन के अलावा फिरोजशाह मेहता गार्डन भी अरब सागर में छिपते सूरज के अनोखे नज़ारे के लिए प्रसिद्ध है। इस गार्डन में सन् 1880 से भी पहले का जलाशय है। यह पार्क मुंबई के लोगों के लिए खास जगह है और यहां से आप मुंबई की तेज रफ्तार लाइफ का अंदाज़ा लगा सकते हैं। यह गार्डन बच्चों के लिए आकर्षण का खास केंद्र है। यहां पर अलग-अलग तरह के फूल और पौधे लगाए गए हैं।

6- वृन्दावन गार्डन, मैसूर (Vrindavan Garden, Mysore) :-

वृन्दावन गार्डन, मैसूर (Vrindavan Garden, Mysore) :-

यह गार्डन इतना बड़ा है कि इसमें 2 मिलियन यानी 20 लाख से भी ज़्यादा लोग एक साथ आ सकते हैं। यह मैसूर से 20 कि.मी. दूर कृष्णराज सागर बांध के नीचे बनाया गया है। यह भारत का सबसे आकर्षक और कर्नाटक का सबसे सुंदर टूरिस्ट प्लेस है। इस गार्डन को कश्मीर के शालीमार गार्डन की तरह मुगल स्टाइल में बनाया गया है। फाउंटेन, फूलों की क्यारी, ग्रीन लॉन और हरी घास के चलते यह बगीचा बेहद खूबसूरत लगता है। इस गार्डन को देख कर आपका मन मुग्ध हो जाएगा। इस गार्डन का खास आकर्षण म्यूजिकल और डांसिंग फाउंटेन है। यह लोगों के लिए सुबह और शाम में खुलता है। आज के समय में यह गार्डन पूरी दुनिया में अपनी सुंदरता के लिए फेमस है।

7- लोधी गार्डन,दिल्ली (lodi gardens delhi) :-

लोधी गार्डन,दिल्ली (lodi gardens delhi)
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यह दिल्ली का सबसे बड़ा और फेमस पार्क है। इस गार्डन को सैय्यद और लोधी ने 16वीं शताब्दी में बनवाया था। इस गार्डन में गुज़रे दौर की कई सारी कब्रें हैं। इस पार्क में मोहम्मद शाह की कब्र, सिकंदर लोधी की कब्र, शीश गुंबद और बारा गुंबद है। साथ ही, यहां 15वीं शताब्दी की वास्तुकला भी देखते बनती है। फिलहाल, इस पार्क की देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के हाथों में है। नेशनल पार्क और ग्लास हाउस हेल्थ क्रेजी लोगों स्पाइरल शेप झील के लिए फेमस है। दिल्ली की कुछ खास ही जगहों में से यह एक है।

8- सिम पार्क, कुन्नूर (Sim’s Park Coonoor) :-

 सिम पार्क, कुन्नूर (Sim's Park Coonoor)

सिम पार्क तमिलनाडु के हिल स्टेशन कुन्नूर का सबसे बड़ा लैंडमार्क है। यह पार्क 12 हेक्टेयर में बना है। इसे एक अंग्रेज़ मेजर मर्रे और मि.जे.डी. मर्रे सिम ने सन् 1874 में बनवाया था। सिम पार्क में 1000 विदेशी पेड़-पौधे हैं। फर्न्स, पाइन्स, मंगोलिया और कामेलिया जैसे पुराने और कम पाए जाने वाले पेड़ आपको यहां दिखेंगे।
कुन्नूर का यह प्राकृतिक गार्डन है, जहां पर हर साल फ्रूट शो होता है। सुबह की सैर करने के लिए यह बेहद अच्छा और प्राकृतिक परिवेश वाला गार्डन है।

9-इंडियन बोटेनिकल गार्डन, कोलकाता  (Indian Botanical Garden, Kolkata) :-

इंडियन बोटेनिकल गार्डन, कोलकाता  (Indian Botanical Garden, Kolkata)
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यह गार्डन कोलकाता के हावड़ा जिले के शिबपुर में है। यह ऑर्चिड पाम, बैम्बूज़ एंड प्लांट्स ऑफ द पाइन जीनस के लिए फेमस है। यह गार्डन हुगली नदी के किनारे 270 एकड़ में बना हुआ है, जहां 1700 अलग-अलग तरह के पेड़-पौधे लगाए गए हैं। बोटेनिकल गार्डन ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1787 में बढ़ती कमर्शियल एक्टिविटीज और बाजार को देखते हुए बनाया गया था। इसके अलावा, यहां का बर्ड हाउस आकर्षण का केंद्र है। इस गार्डन की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यहाँ पर विशव का सबसे चौड़ा बरगद का पेड़ है 144400 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। (अधिक जानकारी के लिए यह पढ़े – यह जंगल नहीं एक पेड़ है)

10-जवाहरलाल नेहरू बोटेनिकल गार्डन, सिक्किम  (Jawaharlal Nehru Botanical Garden, Sikkim) :-

जवाहरलाल नेहरू बोटेनिकल गार्डन, सिक्किम  (Jawaharlal Nehru Botanical Garden, Sikkim)
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सिक्किम के गंगटोक शहर से 24 किलोमीटर दूर जवाहरलाल नेहरू गार्डन टूरिस्ट्स के लिए बेहद ही फेमस है। इस गार्डन को 1987 में बनाया गया था, जिसकी देखरेख फॉरेस्ट डिपार्टमेंट करता है। प्राकृतिक सुंदरता और लुप्त होते पेड़ों को देखने के लिए यह जगह अच्छी है। यहां पर आपको वैसे पेड़ों की कई प्रजातियां देखने को मिल सकती हैं, जो अब लुप्त होती जा रही हैं। हिमालय की पर्वत श्रृंखला से पौधों की कई प्रजातियां यहां पर लाकर लगाई गई हैं। यहां पर आपको 50 से भी अधिक अलग तरह के पेड़ मिल सकते हैं। यह पार्क बच्चों के मनोरंजन और पिकनिक स्पॉट के रूप में बेस्ट है।

परशुराम कुण्ड – अरुणाचल प्रदेश – जहाँ मिली थी परशुराम जी को मातृ-हत्या के पाप से मुक्ति

Parushram Kund Lohit Arunachal Pradesh
परशुराम कुण्ड

 

हमने हमारी एक पिछली पोस्ट में आप सबको राजस्थान के चितौड़ जिले में स्तिथ मातृकुण्डिया के बारे में बताया था जिसके बारे में मान्यता है की इसी कुण्ड में स्नान करने से भगवान परशुराम को अपनी माता की हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। लेकिन हाल ही में हमें ज्ञात हुआ की कुछ ऐसी ही मान्यता अरुणाचल प्रदेश में स्तिथ परशुराम कुण्ड से भी जुडी हुई है। इसलिए आज इस लेख में हम आपको परशुराम कुण्ड के बारे में जानकारी दे रहे है, पर आइए पहले जानते की परशुराम जी ने आखिर क्यों अपनी माता की हत्या की थी ?

आखिर क्यों किया भगवान परशुराम ने अपनी माँ का वध –

Parushram Kund Lohit Arunachal Pradesh

परशुराम भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। उनके पिता का नाम जमदग्नि तथा माता का नाम रेणुका था। परशुराम के चार बड़े भाई थे लेकिन गुणों में यह सबसे बढ़े-चढ़े थे। एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने गई रेणुका आसक्त हो गयी और कुछ देर तक वहीं रुक गयीं। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी। लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नहीं किया। तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई। अन्य भाइयों द्वारा ऐसा दुस्साहस न कर पाने पर पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का शिरोच्छेद कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा। तो उन्होंने तीन वरदान माँगे-

माँ पुनर्जीवित हो जायँ,
उन्हें मरने की स्मृति न रहे,
भाई चेतना-युक्त हो जायँ और

जमदग्नि ने उन्हें तीनो वरदान दे दिये। माता तो पुनः जीवित हो गई पर परशुराम पर मातृहत्या का पाप चढ़ गया।

परशुराम कुण्ड (Parshuram Kund) :-

मान्यता है की जिस फरसे से परशुराम जी ने अपनी माता की हत्या की थी वो फरसा उनके हाथ से चिपक गया था। तब उनके पिता ने कहा की तुम इसी अवस्था में अलग-अलग नदियों में जाकर स्नान करो , जहाँ तुम्हें अपनी माता की हत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी वही यह फरसा हाथ से अलग हो जाएगा। पिता की आज्ञा अनुसार उस फरसे को लिए-लिए परशुराम जी ने सम्पूर्ण भारत के देवस्थानों का भ्रमण किया पर कही भी उस फरसे से मुक्ति नहीं मिली। पर जब परशुराम जी ने आकर लोहित स्तिथ इस कुण्ड में स्नान किया तो वो फरसा हाथ से अलग होकर इसी कुण्ड में गिर गया। इस प्रकार भगवन परशुराम अपनी माता की हत्या के पाप से मुक्त हुए और इस कुण्ड का नाम परशुराम कुण्ड पड़ा।

परशुराम कुण्ड को प्रभु कुठार के नाम से भी जाना जाता है। यह अरुणाचल प्रदेश के लोहित जिला की उत्तर-पूर्व दिशा में 24 किमी की दूरी पर स्थित है। लोगों का ऐसा विश्वास है कि मकर संक्रांति के अवसर परशुराम कुंड में एक डूबकी लगाने से सारे पाप कट जाते है। समय के साथ यह स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों में भी लोकप्रिय हो गया। अब यह कुण्ड लोहित की पहचान बन चुका है।

Parushram Kund Lohit Arunachal Pradesh
मकर सक्रांति पर स्नान करने के लिए  उमड़े श्रद्धालु

हजारों तीर्थयात्री प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रान्ति के दिन इस कुण्ड में स्नान करने आते हैं। अरूणाचल प्रदेश ही नहीं वरन् समूचा उत्तरपूर्व, नेपाल और भूटान तक का श्रध्दालु समाज मकर संक्रांति पर्व के समय इस कुण्ड पर सहज खिंचा चला आता है। जनवरी मास में प्रत्येक वर्ष जो आस्था-सैलाब यहां उमड़ता है उसकी तुलना यहां पर महाकुंभ से की जाती है।

परशुराम महादेव गुफा मंदिर – मेवाड़ का अमरनाथ – स्वंय परशुराम ने फरसे से चट्टान को काटकर किया था निर्माण

अरावली की सुरम्य पहाड़ियों में स्तिथ परशुराम महादेव गुफा मंदिर का निर्माण स्वंय परशुराम ने अपने फरसे से चट्टान को काटकर किया था। इस गुफा मंदिर तक जाने के लिए 500 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। इस गुफा मंदिर के अंदर एक स्वयं भू शिवलिंग है जहां पर विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने भगवान शिव की कई वर्षो तक कठोर तपस्या की थी। तपस्या के बल पर उन्होंने भगवान शिव से धनुष, अक्षय तूणीर एवं दिव्य फरसा प्राप्त किया था।

Parshuram Mahadev Cave Temple Kumbhalgarh
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हैरतअंगेज वाली बात यह है  कि पूरी गुफा एक ही चट्टान में बनी हुई  है। ऊपर का स्वरूप गाय के थन जैसा है। प्राकृतिक स्वयं-भू लिंग के ठीक ऊपर गोमुख बना है, जिससे शिवलिंग पर अविरल प्राकृतिक जलाभिषेक हो रहा है। मान्यता है कि मुख्य शिवलिंग के नीचे बनी धूणी पर कभी भगवान परशुराम ने शिव की कठोर तपस्या की थी। इसी गुफा में एक शिला पर एक राक्षस की आकृति बनी हुई है। जिसे परशुराम ने अपने फरसे  से मारा था।
दुर्गम पहाड़ी, घुमावदार रास्ते, प्राकृतिक शिवलिंग, कल-कल करते झरने एवं प्राकृतिक सौंदर्य से ओत-प्रोत होने के कारण भक्तों ने इसे मेवाड़ के अमरनाथ का नाम  दे दिया है।

Water Storage at Parshuram- Mahadev, Udaipur, India
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कहां स्थित है :
परशुराम महादेव का मंदिर राजस्थान के राजसमन्द और पाली जिले की सीमा पर स्तिथ है। मुख्य गुफा मंदिर राजसमन्द जिले में आता है जबकि कुण्ड धाम पाली जिले में आता है।  पाली से इसकी दुरी करीब 100 किलोमीटर और विशव प्रसिद्ध कुम्भलगढ़ दुर्ग से मात्र 10 किलोमीटर है।

Water Kund at Parshuram Mahadev Temple
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इसकी समुद्र ताल से उचाई 3600 फ़ीट है। यहाँ से कुछ दूर सादड़ी क्षेत्र में परशुराम महादेव की बगीची है। गुफा मंदिर से कुछ ही मील दूर मातृकुंडिया नामक स्थान है जहां परशुराम को मातृहत्या के पाप से मुक्ति मिली थी । इसके अलावा यहां से 100 किमी दूर पर परशुराम के पिता महर्षि जमदगनी की तपोभूमि है।

Main entrance of Parshuram Mahadev Cave temple
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स्थान से जुडी है कई मान्यता :
इस स्थान से जुडी एक  मान्यता के अनुसार भगवान बद्रीनाथ के कपाट वही व्यक्ति खोल सकता है जिसने परशुराम महादेव के दर्शन कर रखे हो।

Waterfall filling the kund
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एक अन्य मान्यता गुफा मंदिर में स्तिथ शिवलिंग से जुडी है गुफा मंदिर में स्तिथ शिवलिंग में एक छिद्र हैजिसके बारे में मान्यता है कि इसमें दूध का अभिषेक करने से दूध छिद्र में नहीं जाता जबकि पानी के सैकड़ों घड़े डालने पर भी वह नहीं भरता और पानी शिवलिंग में समा जाता है। इसी जगह पर परशुराम ने दानवीर कर्ण को शिक्षा दी थी।

सावन में भरता है विशाल मेला :
परशुराम महादेव मंदिर में परशुराम जयंती पर तो कोई खास कायक्रम नहीं होता है लेकिन हर साल श्रावण शुक्ल षष्ठी और सप्तमी को यहां विशाल मेला लगता है।

Devotees at Parshuram Mahdev Cave Temple, Pali

हिमालय के 10 रहस्य जानिए

”हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते॥”- (बृहस्पति आगम)
अर्थात : हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
 
 

‘हिमालय’ संस्कृत के ‘हिम’ तथा ‘आलय’ दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘बर्फ का घर’ होता है। हिमालय को भारत का ताज कहा जाता है। हिमालय से ही हिन्दू धर्म है। ‘हिन्दू’ शब्द की उत्पत्ति का मूल भी हिमालय ही है। वैसे तो हिमालय में हजारों रहस्य छिपे हुए हैं लेकिन यहां प्रस्तुत है प्रमुख 10 रहस्य। दसवें रहस्य पर आज भी वैज्ञानिक शोध जारी है… 

 
पहले हम जान लेते हैं कि हिमालय कितना विशाल- भारत के राज्य जम्मू और कश्मीर, सियाचिन, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम, असम, अरुणाचल तक हिमालय का विस्तार है। ये सभी राज्य हिमालय की गोद में ही हैं। इसके अलावा उत्तरी पाकिस्तान, उत्तरी अफगानिस्तान, तिब्बत, नेपाल और भूटान देश हिमालय के ही हिस्से हैं।
 
 
भारतीय हिमालय के 4 भाग : जम्मू-कश्मीर हिमालय (सिन्धु नदी से सतलुज नदी के बीच का भाग), गढ़वाल-कुमाऊं हिमालय (सतलुज से काली नदी (सरयू) के बीच का भाग), नेपाल हिमालय (सरयू नदी से तीस्ता नदी के बीच का भाग), असम-अरुणाचल हिमालय (तीस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक का भाग)
 
जैन ग्रंथ ‘जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति’ में हिमवान की जंबूद्वीप के 6 वर्ष पर्वतों में गणना की गई है और इस पर्वतमाला के ‘महाहिमवंत’ और ‘चुल्लहिमवंत’ नाम के दो भाग बताए गए हैं। महाहिमवंत पूर्व समुद्र (बंगाल की खाड़ी) तक फैला हुआ है और चुल्लहिमवंत पश्चिम और दक्षिण की ओर वर्षधर पर्वत के नीचे वाले सागर (अरब सागर) तक फैला है। इस ग्रंथ में गंगा और सिन्धु नदियों का उद्गम चुल्लहिमालय में स्थित सरोवरों से माना गया है। महाहिमवंत के 8 और चुल्ल के 11 शिखरों का उल्लेख ‘जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति’ में है। 
 
हिमालय के पर्वत : हिमालय के बीचोबीच सुमेरू पर्वत है। सुमेरू के दक्षिण में हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक पर्वत हैं, जो अलग-अलग देश की भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुमेरू के उत्तर में नील, श्वेत और श्रृंगी पर्वत हैं, वे भी भिन्न-भिन्न देश में स्थित हैं। इस सुमेरू पर्वत को प्रमुख रूप से बहुत दूर तक फैले 4 पर्वतों ने घेर रखा है। 1. पूर्व में मंदराचल, 2. दक्षिण में गंधमादन, 3. पश्चिम में विपुल और 4. उत्तर में सुपार्श्व। इन पर्वतों की सीमा इलावृत के बाहर तक है।
 
सुमेरू के पूर्व में शीताम्भ, कुमुद, कुररी, माल्यवान, वैवंक नाम से आदि पर्वत हैं। सुमेरू के दक्षिण में त्रिकूट, शिशिर, पतंग, रुचक और निषाद आदि पर्वत हैं। सुमेरू के उत्तर में शंखकूट, ऋषभ, हंस, नाग और कालंज आदि पर्वत हैं।
 
अन्य पर्वत : माल्यवान तथा गंधमादन पर्वत उत्तर तथा दक्षिण की ओर नीलांचल तथा निषध पर्वत तक फैले हुए हैं। उन दोनों के बीच कर्णिकाकार मेरू पर्वत स्थित है। मर्यादा पर्वतों के बाहरी भाग में भारत, केतुमाल, भद्राश्व और कुरुवर्ष नामक देश सुमेरू के पत्तों के समान हैं। जठर और देवकूट दोनों मर्यादा पर्वत हैं, जो उत्तर और दक्षिण की ओर नील तथा निषध पर्वत तक फैले हुए हैं। पूर्व तथा पश्चिम की ओर गंधमादन तथा कैलाश पर्वत फैला है। इसी समान सुमेरू के पश्चिम में भी निषध और पारियात्र- दो मर्यादा पर्वत स्थित हैं। उत्तर की ओर निश्रृंग और जारुधि नामक वर्ष पर्वत हैं। ये दोनों पश्चिम तथा पूर्व की ओर समुद्र के गर्भ में स्थित हैं
 
हिमालय के शिखर : हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमालय, अन्नपूर्णा, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रोलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा हैं।
 
हिमालय की कुछ प्रमुख नदियां हैं- सिंधु, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज।
 
 
सबसे बेहतर वातावरण : हिमालय की वादियों में रहने वालों को कभी दमा, टीबी, गठिया, संधिवात, कुष्ठ, चर्मरोग, आमवात, अस्थिरोग और नेत्र रोग जैसी बीमारी नहीं होती। हिमालय क्षेत्र के राज्य जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, हिमाचल, उत्तराखंड, असम, अरुणाचय आदि क्षेत्रों के लोगों का स्वास्थ्य अन्य प्रांतों के लोगों की अपेक्षा बेहतर होता है।

 

इसे ध्यान और योग के माध्यम से और बेहतर करके यहां की औसत आयु सीमा बढ़ाई जा सकती है। तिब्बत के लोग निरोगी रहकर कम से कम 100 वर्ष तो जीवित रहते ही हैं।

 
 
देव स्थान : प्राचीन काल में हिमालय में ही देवता रहते थे। यहीं पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्थान था और यहीं पर नंदनकानन वन में इंद्र का राज्य था। इंद्र के राज्य के पास ही गंधर्वों और यक्षों का भी राज्य था। स्वर्ग की स्थिति दो जगह बताई गई है: पहली हिमालय में और दूसरी कैलाश पर्वत के कई योजन ऊपर।
 
मुण्डकोपनिषद् के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। इनका केंद्र हिमालय की वादियों में उत्तराखंड में स्थित है। इसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है। इन दुर्गम क्षेत्रों में स्थूल-शरीरधारी व्यक्ति सामान्यतया नहीं पहुंच पाते हैं।
 
अपने श्रेष्ठ कर्मों के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माएं यहां प्रवेश कर जाती हैं। जब भी पृथ्वी पर संकट आता है, नेक और श्रेष्ठ व्यक्तियों की सहायता करने के लिए वे पृथ्वी पर भी आती हैं। 
 
भौगोलिक दृष्टि से उसे उत्तराखंड से लेकर कैलाश पर्वत तक बिखरा हुआ माना जा सकता है। इसका प्रमाण यह है कि देवताओं, यक्षों, गंधर्वों, सिद्ध पुरुषों का निवास इसी क्षेत्र में पाया जाता रहा है। इतिहास पुराणों के अवलोकन से प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र को देवभूमि कहा और स्वर्गवत माना जाता रहा है। आध्यात्मिक शोधों के लिए, साधनाओं सूक्ष्म शरीरों को विशिष्ट स्थिति में बनाए रखने के लिए वह विशेष रूप से उपयुक्त है। 
 
 
 
हिमालय के तीर्थ : हिमालय में कुछ हजारों ऐसे स्थान हैं जिनको देवी-देवताओं और तपस्वियों के रहने का स्थान माना गया है, लेकिन मानव आबादी के विस्फोट और तीर्थों के बाजारीकरण के चलते अब हिमालय में सामान्य मानवों की ‍उपस्थिति घातक सिद्ध हो रही है। 
 
हिमालय के कुछ तीर्थ स्थान : कैलाश, मानसरोवर, अमरनाथ, कौसरनाग, वैष्णोदेवी, पशुपतिनाथ, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देवप्रयाग, ऋषिकेश तथा अमरनाथ जैसे और भी स्थान हैं, जहां तीर्थ की दृष्टि से जाना उचित है लेकिन इनमें से कुछ जगहों पर अब लोगों ने होटल, लॉज, दुकानें आदि खोल ली हैं जिसके दुष्परिणाम भी उन्हें भुगतने पड़ रहे हैं।
 
।।हिमश्रृंग एवं प्रमुख स्थल।।
चौखम्बा, संतोपथ, नीलकंठ, सुमेरु पर्वत, कुनाली, त्रिशूल, भारतखूण्टा, नंदादेवी, कामेत, द्रोणागिरी, कैलास मानसरोवर एवं प्रमुख स्थानों में पंचप्रयाग, पंच केदार, पंच बद्री, गंगोत्री, यमुनोत्री, गोमुख, तुंगनाथ, मध्महेश्वर, गोपेश्वर, श्रीनगर, उत्तरकाशी, ऊखीमठ, त्रिजुगीनाराण, जोशीमठ, टिहरी, पौड़ी, हेमकुण्ड, फूलों की घाटी, रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा, रानीखेत, नैनीताल, मनुस्यारी, वागेस्यारी, वागेश्वर, जागेश्वर, धारचूला, पिथौरागढ़, लोहाघाट, चम्पावत, देहरादून, मसूरी, ऋषिकेश, हरिद्वार आदि स्थान हैं। इसी केदारखंड में अलकापुरी तपोवन, गोमुख, ब्रह्मपुरी, नंदनवन, गन्धमादन, वासुकीताल, वसुधारा आदि दर्शनीय देवस्थल हैं।
 
शास्त्रों के अनुसार इन तीर्थस्थलों में किसी भी प्रकार की मानव आबादी का रहना वर्जित है। यह स्थान सिर्फ तपस्वियों के लिए ही है। हिमालय ने निकलने वाली हजारों नदियों में से कुछ गंगा, यमुना, सिंधु, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज पर बांध बनाए जाने के बाद हिमालय की प्रकृति बिगड़ चुकी है। ये ऐसी नदियां हैं जिनके दम पर हजारों दूसरी नदियां जीवित हैं। सभी की प्रकृति बिगड़ चुकी है। केदारनाथ और कश्मीर में आई भयानक बाढ़ से भी भारतीय यदि सबक नहीं लेते हैं तो एक दिन भारत को हिमालय प्रलय की भूमि में बदल देगा और भारतीयों को छुपने की जगह नहीं मिलेगी। ऐसा एक बार हो चुका है, तब मालवा के पठार के कुछ हिस्से ही जल के प्रलय से अछूते थे, बाकी संपूर्ण भारत डूब चुका था।
 
 
 
मानव की उत्पत्ति हिमालय क्षेत्र में हुई : तमाम शोध के बाद यह ज्ञात हुआ है कि मानव की उत्पत्ति हिमालय में हुई थी। पुराणों के अनुसार विवस्ता नदी के किनारे। विज्ञानियों एवं इतिहासवेत्ताओं के अनुसार हिमालय पर फल, अन्न और शाक आदि सभी खाद्य पदार्थ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। स्वभावतः मानव का मूल आहार यही है।
 
प्रसिद्ध समाज विज्ञानी कालचेंटर के अनुसार मनुष्य प्राकृतिक रूप से फल और अनाज पर निर्भर करता है अतः हिमालय का क्षेत्र ही मानव की स्वाभाविक जन्मस्थली है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है यहां जीवाश्म का पाया जाना, जो विश्व में अन्य जगहों पर पाए गए दूसरे सभी जीवाश्मों की अपेक्षा कहीं ज्यादा पुराना है।
 
विज्ञानियों का मानना है कि विश्वभर में मानव की 4 मुख्य जातियां पाई जाती हैं। ये जातियां- 1. श्वेत- काकेशस, 2. पीले- मंगोलियन, 3. काले- नाग्रो, 4. लाल, रेड इंडियन-अमेरिकन। इन चारों के अलावा एक 5वीं जाति हैं, जो भारतीयों की है। इस जाति में उपर्युक्त चारों जातियों का मिश्रण है। ये भारतीय संकर नहीं हैं, अपितु यह इनकी मौलिकता है। इन भारतीयों में उपर्युक्त सभी विशेषताएं पाई जाती हैं। भारत की संरचना एवं बनावट ऐसी है, जहां नित्य छहों ऋतुएं विद्यमान रहती हैं। इसी भूमि में सब रंग-रूप के आदमी निवास करते हैं। ये सारे लक्षण भारतवर्ष में स्थित हिमालय के निवासियों में पाए जाते हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि मानव ने हिमालय में जन्म लिया और समूचे देश में अपना विस्तार किया।
 
 
सिद्धाश्रम, मठ और गुफाओं का रहस्य : हिमालय में जैन, बौद्ध और हिन्दू संतों के कई प्राचीन मठ और गुफाएं हैं। मान्यता है कि गुफाओं में आज भी कई ऐसे तपस्वी हैं, जो हजारों वर्षों से तपस्या कर रहे हैं। इस संबंध में हिन्दुओं के दसनामी अखाड़े, नाथ संप्रदाय के सिद्धि योगियों के इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है। उनके इतिहास में आज भी यह दर्ज है कि हिमालय में कौन-सा मठ कहां पर है और कितनी गुफाओं में कितने संत विराजमान हैं।
 
ज्ञानगंज मठ, जोशीमठ, हेमिस मठ आदि। केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ आदि जगहों पर हजारों ऐसी चमत्कारिक गुफाएं हैं, जहां आम मनुष्य नहीं जा पाता है। हिमालय के सिद्धाश्रमों में रहने वाले संन्यासियों की उम्र रुक जाती है। संपूर्ण क्षेत्र का वातावरण ही ऐसा रहता है कि यहां मठों में समय को रोकने वाले महात्मा तपस्या लीन रहते हैं। इसके अलावा अरुणाचल, सिक्किम, असम में भी सैकड़ों तीर्थ हैं।
 
प्राचीनकाल में यहां अनेक शिक्षण केंद्र भी थे। बद्रीकाश्रम में सरस्वती के तट पर व्यास एवं जैमिन का आश्रम था। यहीं पर महर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों की रचना की। काश्यप एवं अरुंधती का हिमदाश्रय, जगदग्नि का उत्तरकाशी के पास, गर्ग का द्रोणगिरि में, मनु का बद्रीनाथ के पास, अगत्स्य एवं गौतम का मंदाकिनी के तट पर, केदारनाथ मार्ग पर अगस्त्य मुनि का, पाराशर मुनि का यमुनोत्री के पास, परशुराम का उत्तरकाशी, भृगु का केदारकांठ, अत्री एवं अनुसूईया का गोपेश्वर पर विद्यापीठ था। इसी तरह जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग, पहलगाम, अमरनाथ, शिवखेड़ी गुफा, सुरिंसर और मानसर झील, श्रीनगर, कौसरनाग आदि ऐसे स्थान हैं, जहां मठ और आश्रम होते थे। 
 
 

जड़ी-बूटियों का भंडार : हनुमानजी हिमालय के एक क्षेत्र से ही संजीवनी का पर्वत उखाड़कर ले गए थे। हिमालय ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां दुनियाभर की जड़ी-बूटियों का भंडार है। हिमालय की वनसंपदा अतुलनीय है।
 
हिमालय में लाखों जड़ी-बूटियां हैं जिससे व्यक्ति के हर तरह के रोग को दूर ही नहीं किया जा सकता बल्कि उसकी उम्र को दोगुना किया जा सकता है। इसके अलावा ऐसी भी कई चमत्कारिक जड़ी-बूटियां हैं जिनका वर्णन अथर्ववेद, आयुर्वेद और जड़ी-बूटियों के ग्रंथों में मिलता है। सोमवल्ली, संजीवनी बूटी, अरुंधती, ब्रह्मकमल जैसी वनस्पतियां हिमालय के एक विशेष क्षेत्र में पाई जाती हैं।
 
भारतीय चिकित्सा पद्धति में आदिकाल से ही जड़ी-बूटियों को विशेष महत्व दिया गया है। अनेक प्राकृतिक फूलों, जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों की इस सुरम्य स्थली का महत्व जानना जरूरी है। महर्षि चरक ने अपनी चरक संहिता में उल्लेख किया कि हिमालय दिव्य औषधि भूमि में श्रेष्ठ है। इस हिमालय में अनेक प्रकार की दिव्यौषधियां, 24 प्रकार के सोम एवं अष्टवर्ग की जड़ी-बूटियां विद्यमान हैं।
 
 
 
येति : मान्यता है कि कस्तूरी मृग और येति का निवास हिमालय में ही है। येति या यति एक विशालकाय हिम मानव है जिसे देखे जाने की घटना का जिक्र हिमालय के स्थानीय निवासी करते आए हैं। येति आज भी एक रहस्य है। कोई इसे भूरा भालू कहता है, कोई जंगली मानव तो कोई हिम मानव। कुछ वैज्ञानिक इसे निंडरथल मानव मानते हैं। यह आमतौर पर तिब्बत के हिमालय वाले क्षेत्र में पाया जाता है। विश्वभर में करीब 30 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हिमालय के बर्फीले इलाकों में हिममानव मौजूद हैं।
 
कस्तूरी मृग : हिमालय में ऐसे कई जीव-जंतु हैं, जो बहुत ही दुर्लभ है। उनमें से एक दुनिया का सबसे दुर्लभ मृग है कस्तूरी मृग। यह हिरण उत्तर पाकिस्तान, उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, साइबेरिया, मंगोलिया में ही पाया जाता है। इस मृग की कस्तूरी बहुत ही सुगंधित और औषधीय गुणों से युक्त होती है। कस्तूरी मृग की कस्तूरी दुनिया में सबसे महंगे पशु उत्पादों में से एक है। यह कस्तूरी उसके शरीर के पिछले हिस्से की ग्रंथि में एक पदार्थ के रूप में होती है। 
 
कस्तूरी चॉकलेटी रंग की होती है, जो एक थैली के अंदर द्रव रूप में पाई जाती है। इसे निकालकर व सुखाकर इस्तेमाल किया जाता है। कस्तूरी मृग से मिलने वाली कस्तूरी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत अनुमानित 30 लाख रुपए प्रति किलो है जिसके कारण इसका शिकार किया जाता रहा है। आयुर्वेद में कस्तूरी से टीबी, मिर्गी, हृदय संबंधी बीमारियां, आर्थराइटिस जैसी कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में भी किया जाता है। माना जाता है कि यह कस्तूरी कई चमत्कारिक धार्मिक और सांसारिक लाभ देने वाली औषधि है। 
 
 
 
हिमालय की रहस्यमय दुनिया : हिमालय क्षेत्र में प्रकृति के सैकड़ों चमत्कार देखने को मिलेंगे। एक ओर जहां सुंदर और अद्भुत झीलें हैं तो दूसरी ओर हजारों फुट ऊंचे हिमखंड। हजारों किलोमीटर क्षेत्र में फैला हिमालय चमत्कारों की खान है। कुछ उदाहण यहां प्रस्तुत हैं-
 
* हिमालय में मोलेब्का गांव में सेलफोन केवल कुछ ऊंची पहाड़ियों पर ही काम करता है। लोग केवल स्थानीय ऑपरेटर के माध्यम से ही फोन कर सकते हैं, परंतु वहां एक छोटा-सा बस खड़े भर रहने का एक ऐसा स्थान है, जहां खड़े होने पर मोबाइल फोन का नेटवर्क बेहतरीन ढंग से काम करता है।
 
* इस क्षेत्र में कई प्रयोगों के दौरान पाया गया कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अचानक काम करना बंद कर देते हैं। कई पर्यटकों की इलेक्ट्रॉनिक घड़ियां अचानक बंद हो जाती हैं। कई बार तो घड़ियों के समय में बदलाव की घटनाएं भी सामने आईं। इलाके के रहस्यों में शोध कार्यों के लिए गए वैज्ञानिकों में से कई ने स्वीकार किया कि उनको हर समय लगता था कि कोई उन पर हर समय निगाह रखे हुए है।
 
* जम्मू-कश्मीर की लेह सीमा में स्थित एक चमत्कारिक पहाड़ी है जिसे लोग मैग्नेटिक हिल कहते हैं। सामान्यतौर पर पहाड़ी के फिसलन पर वाहन को गियर में डालकर खड़ा किया जाता है। यदि ऐसा नहीं किया जाए तो वाहन नीचे की ओर लुढ़ककर खाई में गिर सकता है लेकिन इस मैग्नेटिक हिल पर वाहन को न्यूट्रल करके खड़ा कर दिया जाए तब भी यह नीचे की ओर नहीं जाता, बल्कि ऊपर की ओर ही खींचा चला जाता है। यही तो इस पहाड़ी का चमत्कार है कि वाहन लगभग 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से स्वत: ही ऊपर की ओर चढ़ने लगता है।
 
* नारीलता नामक पौधे भारत में हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है। इसका फूल 20 साल में एक बार खिलता है। यह फूल एक निर्वस्त्र स्त्री के आकार का होता है। यह एक बहुत ही आश्चर्यजनक और दुर्लभ घटना है। इसी तरह एक फूल हनुमानजी के मुख के समान होता है। हिमालय में ऐसे कई पेड़-पौधे हैं, जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाते हैं।
 
 
 
एलियंस रहते हैं हिमालय में?: विश्वभर के वैज्ञानिक मानते हैं कि धरती पर कुछ जगहों पर छुपकर रहते हैं दूसरे ग्रह के लोग। उन जगहों में से एक हिमालय है। भारतीय सेना और वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार नहीं करते लेकिन वे अस्विकार भी नहीं करते हैं। 
 
भारतीय सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) की यूनिटों ने सन् 2010 में जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में उडऩे वाली अनजान वस्तुओं (यूएफओ) के देखे जाने की खबर दी थी। लेकिन बाद में इस खबर को दबा दिया गया।
 
पहली घटना:  20 अक्टूबर, 2011, सुबह 4.15 बजे, रात की ड्यूटी कर रहे भारतीय सेना के एक जवान ने तश्तरी के आकार वाला उज्जवल चमकती रोशनी से आच्छादित एक अंतरिक्ष यान सीमा रेखा के नजदीक एक सीमांत बस्ती में उतरते देखा।
 
दो प्रकाश उत्सर्जक करीब तीन फुट ऊंचे जीव, जिनमें प्रत्येक के छह पैर और चार आंखें थीं, यान के किनारे से एक ट्यूब से उभरे, वो जवान के पास पहुंचे और अंग्रेजी के भारी-भरकम उच्चारण के साथ ज़ोर्ग ग्रह का रास्ता पूछा।
 
दूसरी घटना: एक अन्य सूचित घटना में, 15 फरवरी दोपहर तकरीबन 2.18 पर, भारत-चीन सीमा से करीब 0.25 किलोमीटर दूर, एक छोटे से क्षेत्र में मैदान से करीब 500 मीटर ऊपर चमकदार सफेद रोशनी नजर आई और आठ भारतीय कमांडो, एक कुत्ते, तीन पहाड़ी बकरियों और एक बर्फीले तेंदुए को भारी बादलों में ले जाने से पहले गायब हो गई। बाद में छह कमांडो को गोवा के एक स्वीमिंग पूल से बचाया गया। दो लापता हैं। बचे हुए लोगों को ये घटना याद नहीं। इस घटना का गवाह एक स्थानीय किसान बना, जो सीमा रेखा के नज़दीक भेड़ चरा रहा था।
 
तीसरी घटना : 22 जून को शाम 5.42 बजे, एक बड़ा अंडाकार अंतरिक्ष यान उच्च हिमालय में गायब होने से पहले अस्थायी रूप से चीन की तरफ एक सैन्य पड़ाव के ऊपर मंडराता नज़र आया, ऐसा कई प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा। रिपोर्टों में उर्द्धत किया गया कि वो करीब एक बड़े वायुयान के माप का था, जो चमकते चक्रों और पीछे घसीटते कपड़ों से आच्छादित था।
 
आइटीबीपी की धुंधली तस्वीरों के अध्ययन के बाद भारतीय सैन्य अधिकारियों का मानना है कि ये गोले न तो मानवरहित हवाई उपकरण (यूएवी) हैं और न ही ड्रोन या कोई छोटे उपग्रह हैं। ड्रोन पहचान में आ जाता है और इनका अलग रिकॉर्ड रखा जाता है। यह वह नहीं था। सेना ने 2011 जनवरी से अगस्त के बीच 99 चीनी ड्रोन देखे जाने की रिपोर्ट दी है। इनमें 62 पूर्वी सेक्टर के लद्दाख में देखे गए थे और 37 पूर्वी सेक्टर के अरुणाचल प्रदेश में। इनमें से तीन ड्रोन लद्दाख में चीन से लगी 365 किमी लंबी भारतीय सीमा में प्रवेश कर गए थे जहां आइटीबीपी की तैनाती है।
 
पहले भी लद्दाख में ऐसे प्रकाश पुंज देखे गए हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और चीन अधिकृत अक्साइ चिन के बीच 86,000 वर्ग किमी में फैले लद्दाख में सेना की भारी तैनाती है। इस साल लगातार आइटीबीपी के ऐसे प्रकाश पुंज देखे जाने की खबर से सेना की लेह स्थित 14वीं कोर में हलचल मच गई थी।
 
जो प्रकाश पुंज आंखों से देखे जा सकते थे, वे रडार की जद में नहीं आ सके. इससे यह साबित हुआ कि इन पुंजों में धातु नहीं है. स्पेक्ट्रम एनलाइजर भी इससे निकलने वाली किसी तरंग को नहीं पकड़ सका. इस उड़ती हुई वस्तु की दिशा में सेना ने एक ड्रोन भी छोड़ा, लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ. इसे पहचानने में कोई मदद नहीं मिली. ड्रोन अपनी अधिकतम ऊंचाई तक तो पहुंच गया लेकिन उड़ते हुए प्रकाश पुंज का पता नहीं लगा सका।
 
भारतीय वायु सेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) पी.वी. नाइक कहते हैं, ‘हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमें पता लगाना होगा कि उन्होंने कौन-सी नई तकनीक अपनाई है।’
 
भारतीय वायु सेना ने 2010 में सेना के ऐसी वस्तुओं के देखे जाने के बाद जांच में इन्हें ‘चीनी लालटेन’ करार दिया था। पिछले एक दशक के दौरान लद्दाख में यूएफओ का दिखना बढ़ा है। 2003 के अंत में 14वीं कोर ने इस बारे में सेना मुख्यालय को विस्तृत रिपोर्ट भेजी थी। सियाचिन पर तैनात सैन्य टुकडिय़ों ने भी चीन की तरफ तैरते हुए प्रकाश पुंज देखे हैं, लेकिन ऐसी चीजों के बारे में रिपोर्ट करने पर हंसी उडऩे का खतरा रहता है। (एजेंसियां)

संकलन : अनिरुद्ध जोशी ‘शतायु’  

ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’

 

दुनिया की सबसे लंबी दीवार ग्रेट वाल ऑफ चाइना के बारे में सबने सुना है ,लेकिन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार के बारे में बहुत कम लोगों ने सुना है।

यह किसी दूसरे देश में नहीं, बल्कि भारत के राजस्थान राज्य में स्थित कुंभलगढ़ किले की दीवार है। यह ‘ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’ है। उदयपुर से 64 किमी की दूर स्थित इस किले का निर्माण महाराणा कुम्भा ने 15 वीं शताब्दी में करवाया था।
किले के घेरे की लंबाई 36 किमी है और यही तथ्य इसे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार की श्रेणी में रखता है।

कुंभलगढ़ मेवाड़ के साम्राज्य की किलेबंदी का हिस्सा था। यहां महाराणा प्रताप का जन्म भी हुआ था। किले के अंदर 360 से अधिक मंदिर हैं। किले की दीवार से अरावली पर्वत श्रृंखला 10 किलोमीटर दूर तक दिखाई देती है।

किले की दीवार से 13 पहाडिय़ां घिरी हुई है। कुंभलगढ़ का किला समुद्र की सतह से 1,914 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। किले की दीवार की कुल लंबाई 36 किमी है।

दीवार की चौड़ाई अलग-अलग स्थानों पर 15 से 25 फीट है। कहा जाता है , इस पर आठ घोड़े एक साथ दौड़ सकते थे।

इस ‘ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’ की वास्तुकला भव्य है ,अभी इस किले का संरक्षण एएसआई करती है। गर्व करने की बात कुछ तो है !!

जानिये पशुपति नाथ मंदिर नेपाल के बारे में

 

पशुपतिनाथ मंदिर काठमांडू (नेपाल) के पूर्वी हिस्से में बागमती नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। नेपाल में यह भगवान शिव का सबसे पवित्र मंदिर है। मंदिर दुनिया भर के हिन्दू तीर्थ यात्रियों के अलावा गैर हिन्दू पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी रहा है। यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल है।

महत्त्व

पशुपतिनाथ मंदिर में आने वाले गैर हिन्दू आगंतुकों को बागमती नदी के दूसरे किनारे से बाहर से मंदिर को देखने की अनुमति है। नेपाल में भगवान शिव का यह मंदिर विश्वभर में विख्यात है। इसका असाधारण महत्त्व भारत के अमरनाथ व केदारनाथ से किसी भी प्रकार कम नहीं है। इस अंतर्राष्ट्रीय तीर्थ के दर्शन के लिए भारत के ही नहीं, अपितु विदेशों के भी असंख्य यात्री और पर्यटक काठमांडू पहुंचते हैं। इस नगर के चारों ओर पर्वत मालाएँ हैं, जिनकी घाटियों में यह नगर अपना पर्वतीय सौंदर्य को बिखेरने के लिए थोड़ी-सी भी कंजूसी नहीं करता।

मंदिर संरचना

प्राचीन समय इस नगर का नाम ‘कांतिपुर’ था। काठमांडू में बागमती व विष्णुमती नदियों का संगम है। मंदिर का शिखर स्वर्णवर्णी छटा बिखेरता रहता है। इसके साथ ही डमरू और त्रिशूल भी प्रमुख है। मंदिर एक मीटर ऊँचे चबूतरे पर स्थापित है। मंदिर के चारों ओर पशुपतिनाथ जी के सामने चार दरवाज़े हैं। दक्षिणी द्वार पर तांबे की परत पर स्वर्ण जल चढ़ाया हुआ है। बाकी तीन पर चांदी की परत है। मंदिर की संरचना चौकोर आकार की है। मंदिर की दोनों छतों के चार कोनों पर उत्कृष्ट कोटि की कारीगरी से सिंह की आकृति उकेरी गई है। मुख्य मंदिर में महिष रूपधारी भगवान शिव का शिरोभाग है, जिसका पिछला हिस्सा केदारनाथ में है। इस प्रसंग का उल्लेख स्कंदपुराण में भी हुआ है। मंदिर का अधिकतर भाग काष्ठ से निर्मित है। गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग का विग्रह है, जो अन्यत्र नहीं है। मंदिर परिसर में अनेक मंदिर हैं, जिनमें पूर्व की ओर गणेश का मंदिर है। मंदिर के प्रांगण की दक्षिणी दिशा में एक द्वार है, जिसके बाहर एक सौ चौरासी शिवलिंगों की कतारें हैं।

लिंग विग्रह
पशुपतिनाथ मंदिर के दक्षिण में उन्मत्त भैरव के दर्शन भैरव उपासकों के लिए बहुत कल्याणकारी है। पशुपतिनाथ लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पाँचवाँ मुख है। प्रत्येक मुखाकृति के दाएँ हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएँ हाथ में कमंडल है। प्रत्येक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है। पहला मुख ‘अघोर’ मुख है, जो दक्षिण की ओर है। पूर्व मुख को ‘तत्पुरुष’ कहते हैं। उत्तर मुख ‘अर्धनारीश्वर’ रूप है। पश्चिमी मुख को ‘सद्योजात’ कहा जाता है। ऊपरी भाग ‘ईशान’ मुख के नाम से पुकारा जाता है। यह निराकार मुख है। यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है।

पशुपतिनाथ मंदिर की सेवा आदि के लिए 1747 से ही नेपाल के राजाओं ने भारतीय ब्राह्मणों को आमंत्रित करना शुरू किया। उनकी धारणा थी कि भारतीय ब्राह्माण हिन्दू धर्मशास्त्रों और रीतियों में ज्यादा पारंगत होते हैं। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ‘माल्ला राजवंश’ के एक राजा ने एक दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को पशुपतिनाथ मंदिर का प्रधान पुरोहित नियुक्त किया था। यही परंपरा आने वाले दिनों में भी रही। दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण ही इस मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त होते रहे हैं।

पढ़ने के लिए धन्यवाद,
जानकारी अपने मित्रों तक भी पहुँचाए…!!

जय पशुपतिनाथ