विचार योग’ से पाएं सेहत, खुशी और सफलता

अजीब है कि कोई दवा नहीं, एक्सरसाइज नहीं और कोई भी इलाज नहीं फिर भी लोग सोचकर कैसे ठीक हो सकते हैं? दुनिया में ऐसे बहुत से चमत्कार हुए हैं, लेकिन इसके पीछे के रहस्य को कोई नहीं जानता।img1120329123_1_1

आज आप जो भी हैं वह आपके पिछले विचारों का परिणाम है-भगवान बुद्ध।

सोचे अपनी सोच पर कि वह कितनी नकारात्म और कितनी सकारात्मक है, वह कितनी सही और कितनी गलत है। आप कितना अपने और दूसरों के बारे में अच्‍छा और बुरा सोचते रहते हैं। आपकी सोच को स्वस्थ बनाता है। सोच के स्वस्थ बनने से चित्त निर्मल होने लगता है। चित्त के निर्मल रहने से सेहत, खुशी और सफलता मिलती है तो विचार करें अच्छे विचार पर।

कैसे होगा यह संभव : योगश्चित्त्वृतिनिरोध:- योग चित्त की वृत्तियों का निरोध है। योग के आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार आदि सभी उपक्रम आपके चित्त को शुद्ध और बुद्ध बनाने के ही उपक्रम हैं। चित्त से ही व्यक्ति का शरीर, मन, मस्तिष्क और जीवन संचालित होता है। चित्त यदि रोग ग्रस्त है तो इसका असर सभी पर पड़ता है। रोग की उत्पत्ति बाहर की अपेक्षा भीतर से कहीं ज्यादा होती है तो समझे कि जैसे भीतर वैसा बाहर।

वैज्ञानिक कहते हैं मानव मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग हजारों विचार आते हैं। उनमें से ज्यादातर नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचार इसलिए अधिक होते हैं कि जब हम कोई नकारात्मक घटना देखते हैं जिसमें भय, राग, द्वैष, सेक्स आदि हो तो वह घटना या विचार हमारे चित्त की इनर मेमोरी में सीधा चला जाता है जबकि कोई अच्छी बातें हमारे चित्त की आउटर मेमोरी में ही घुम फिरकर दम तोड़ देती है।

दो तरह की मेमोरी होती है-इनर और आउटर। इनर मेमोरी में वह डाटा सेव हो जाता है, जिसका आपके मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़श है और फिर फिर वह डाटा कभी नहीं मिटता। रात को सोते समय इनर मेमोरी सक्रिय रहती है और सुबह-सुबह उठते वक्त भी इनर मेमोरी जागी हुई होती है। अपनी इनर मेमोरी अर्थात चित्त से व्यर्थ और नकारात्मक डाटा को हटाओ और सेहत, सफलता, खुशी और शांति की ओर एक-एक कदम बढ़ाओ।

कैसे बन जाता है व्यक्ति दुखी और रोगी : जो भी विचार निरंतर आ रहा है वह धारणा का रूप धर लेता है। अर्थात वह हमारी इनर मेमोरी में चला जाता है। आपके आसपास बुरे घटनाक्रम घटे हैं और आप उसको बार-बार याद करते हैं तो वह याद धारणा बनकर चित्त में स्थाई रूप ले लेगी। बुरे विचार या घटनाक्रम को बार-बार याद न करें।

विचार ही वस्तु बन जाते हैं। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि हम जैसा सोचते हैं वैसे ही भविष्य का निर्माण करते हैं। यदि आपको अपनी को लेकर भय है, सफलता को लेकर संदेह है और आप विश्वास खो चुके हैं तो समझ जाएं की चित्त रोगी हो गया है। किसी व्यक्ति के जीवन में बुरे घटनाक्रम बार-बार सामने आ जाते हैं तो इसका सीधा सा कारण है वह अपने अतीत के बारे में हद से ज्यादा विचार कर रहा है। बहुत से लोग डरे रहते हैं इस बात से कि कहीं मुझे भी वह रोग न हो जाए या कहीं मेरे साथ भी ऐसा न हो जाए….आदि। सोचे सिर्फ वर्तमान को सुधारने के बारे में।

कैसे होगा यह संभव : योग के तीन अंग ईश्वर प्राणिधान, स्वाध्याय और धारणा से होगा यह संभव। जैसा ‍कि हमने उपर लिखा की इनर और आउटर मेमोरी होती है। इनर मेमोरी रात को सोते वक्त और सुबह उठते वक्त सक्रिय रही है उस वक्त वह दिनभर के घटनाक्रम, विचार आदि से महत्वपूर्ण डाडा को सेव करती है। इसीलिए सभी धर्म ने उस वक्त को ईश्वर प्रार्थना के लिऋ नियु‍क्त किया है ताकि तुम वह सोचकर सो जाए और वही सोचकर उठो जो शुभ है। इसीलिए योग में ‘ईश्वर प्राणिधान’ का महत्व है।

संधिकाल अर्थात जब सूर्य उदय होने वाला होता है और जब सूर्य अस्त हो जाता है तो उक्त दो वक्त को संधिकाल कहते हैं- ऐसी दिन और रात में मिलाकर कुल आठ संधिकाल होते हैं। उस वक्त हिंदू धर्म और योग में प्रार्थना या संध्यावंन का महत्व बताया गया है। फिर भी प्रात: और शाम की संधि सभी के लिए महत्वपूर्ण है जबकि हमारी इनर मेमोरी सक्रिय रहती है। ऐसे वक्त जबकि पक्षी अपने घर को लौट रहे होते हैं…संध्यावंदन करते हुए अच्छे विचारों पर सोचना चाहिए। जैसे की मैं सेहतमंद बना रहना चाहता हूं।img1120329123_1_2

ईश्वर प्राणिधान: सिर्फ एक ही ईश्वर है जिसे ब्रह्म या परमेश्वर कहा गया है। इसके अलावा और कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। ईश्वर निराकार है यही अद्वैत सत्य है। ईश्वर प्राणिधान का अर्थ है, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण। ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास। न देवी, न देवता, न पीर और न ही गुरु घंटाल।

एक ही ईश्वर के प्रति अडिग रहने वाले के मन में दृढ़ता आती है। यह दृढ़ता ही उसकी जीत का कारण है। चाहे सुख हो या घोर दुःख, उसके प्रति अपनी आस्था को डिगाएँ नहीं। इससे आपके भीतर पाँचों इंद्रियों में एकजुटता आएगी और लक्ष्य को भेदने की ताकत बढ़ेगी। वे लोग जो अपनी आस्था बदलते रहते हैं, भीतर से कमजोर होते जाते हैं।

विश्वास रखें सिर्फ ‘ईश्वर’ में, इससे बिखरी हुई सोच को एक नई दिशा मिलेगी। और जब आपकी सोच सिर्फ एक ही दिशा में बहने लगेगी तो वह धारणा का रूप धर लेगी और फिर आप सोचे अपने बारे में सिर्फ अच्‍छा और सिर्फ अच्छा। ईश्वर आपकी मनोकामना अवश्य पूरी करेगा।

स्वाध्याय : स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। अच्छे विचारों का अध्ययन करना और इस अध्ययन का अभ्यास करना। आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें, वह सब कुछ जिससे आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो साथ ही आपको इससे खुशी ‍भी मिलती हो। तो बेहतर किताबों को अपना मित्र बनाएँ।

जीवन को नई दिशा देने की शुरुआत आप छोटे-छोटे संकल्प से कर सकते हैं। संकल्प लें कि आज से मैं बदल दूँगा वह सब कुछ जिसे बदलने के लिए मैं न जाने कब से सोच रहा हूँ। अच्छा सोचना और महसूस करना स्वाध्याय की पहली शर्त है।

धारणा से पाएं मनचाही सेहत, खुशी और सफलता : जो विचार धीरे-धीरे जाने-अनजाने दृढ़ होने लगते हैं वह धारणा का रूप धर लेते हैं। यह भी कि श्वास-प्रश्वास के मंद व शांत होने पर, इंद्रियों के विषयों से हटने पर, मन अपने आप स्थिर होकर शरीर के अंतर्गत किसी स्थान विशेष में स्थिर हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव भी एक ही दिशा में होता है। ऐसे चित्त की शक्ति बढ़ जाती है, फिर वह जो भी सोचता है वह घटित होने लगता है। जो लोग दृढ़ निश्चयी होते हैं, अनजाने में ही उनकी भी धारणा पुष्ट होने लगती है।

कंप्यूटर और योग

इस बार हम योग टिप्स लाएँ हैं उन लोगों के लिए जो कंप्यूटर पर लगातार आठ से दस घंटे काम करके कई तरह के रोगों का शिकार हो जाते हैं या फिर तनाव व थकान से ग्रस्त रहते हैं। निश्‍चित ही कंप्यूटर पर लगातार आँखे गड़ाए रखने के अपने नुकसान तो हैं ही इसके अलावा भी ऐसी कई छोटी-छोटी समस्याएँ भी पैदा होती है, जिससे हम जाने-अनजाने लड़ते रहते हैं। तो आओं जाने की इन सबसे कैसे निजात पाएँ।img1120211157_1_1

नुकसान : स्मृति दोष, दूर दृष्टि कमजोर पड़ना, चिड़चिड़ापन, पीठ दर्द, अनावश्यक थकान आदि। कंप्यूटर पर लगातार काम करते रहने से हमारा मस्तिष्क और हमारी आँखें इस कदर थक जाती है कि केवल निद्रा से उसे राहत नहीं मिल सकती। देखने में आया है कि कंप्यूटर पर रोज आठ से दस घंटे काम करने वाले अधिकतर लोगों को दृष्टि दोष हो चला है। वे किसी न किसी नंबर का चश्मा पहने लगे हैं। इसके अलावा उनमें स्मृति दोष भी पाया गया। काम के बोझ और दबाव की वजह से उनमें चिड़चिड़ापन भी आम बात हो चली है। यह बात अलग है कि वह ऑफिस का गुस्सा घर पर निकाले। कंप्यूटर की वजह से जो भारी शारीरिक और मानसिक हानि पहुँचती है, उसकी चर्चा विशेषज्ञ अकसर करते रहे हैं।

बचाव : पहली बात कि आपका कंप्यूटर आपकी आँखों के ठीक सामने रखा हो। ऐसा न हो की आपको अपनी आँखों की पुतलियों को उपर उठाये रखना पड़े, तो जरा सिस्टम जमा लें जो आँखों से कम से कम तीन फिट दूर हो। दूसरी बात कंप्यूटर पर काम करते वक्त अपनी सुविधानुसार हर 5 से 10 मिनट बाद 20 फुट दूर देखें। इससे दूर ‍दृष्‍टि बनी रहेगी। स्मृति दोष से बचने के लिए अपने दिनभर के काम को रात में उल्टेक्रम में याद करें। जो भी खान-पान है उस पर पुन: विचार करें। थकान मिटाने के लिए ध्यान और योग निद्रा का लाभ लें।

योग एक्सरसाइज : इसे अंग संचालन भी कहते हैं। प्रत्येक अंग संचालन के अलग-अलग नाम हैं, लेकिन हम विस्तार में न जाते हुए बताते हैं कि आँखों की पुतलियों को दाएँ-बाएँ और ऊपर-नीचे ‍नीचे घुमाते हुए फिर गोल-गोल घुमाएँ। इससे आँखों की माँसपेशियाँ मजबूत होंगी। पीठ दर्द से निजात के लिए दाएँ-बाएँ बाजू को कोहनी से मोड़िए और दोनों हाथों की अँगुलियों को कंधे पर रखें। फिर दोनों हाथों की कोहनियों को मिलाते हुए और साँस भरते हुए कोहनियों को सामने से ऊपर की ओर ले जाते हुए घुमाते हुए नीचे की ओर साँस छोड़ते हुए ले जाएँ। ऐसा 5 से 6 बार करें ‍फिर कोहनियों को विपरीत दिशा में घुमाइए। गर्दन को दाएँ-बाएँ, फिर ऊपर-नीचे नीचे करने के बाद गोल-गोल पहले दाएँ से बाएँ फिर बाएँ से दाएँ घुमाएँ। बस इतना ही। इसमें साँस को लेने और छोड़ने का ध्यान जरूर रखें।

योग पैकेज : आसनों में ताड़ासन, अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, ब्रह्म मुद्रा, नौकासन और विपरीत नौकासन। प्राणायामों में नाड़ी शोधन और कपालभाति। फिर शवासन में योग निद्रा का मजा लें। ध्यान में आप करें विपश्यना या फिर सिर्फ ध्यान दें साँसों के आवागमन पर। गहरी-गहरी साँस लें और छोड़ें। और इस लेने और छोड़ने की क्रिया पर ही पूरा ध्‍यान केंद्रित कर इसका मजा लें।

योग : यौवन का राज , नाड़ियों के पास

नाड़ी का शुद्ध और मजबूत होना जरूरी है। वायु प्रदूषण, शराब का सेवन, अन्य किसी प्रकार का नशा, अनियमित खान-पान, क्रोध, अनिंद्रा, तनाव और अत्यधिक काम और संभोग के चलते नाड़ियां कमजोर हो जाती हैnadis

नाड़ियों के कमजोर होने से शरीर भारी रहने लगता है। व्यक्ति कफ, पित्त, आदि की शिकायत से या आलस्य से ग्रस्त हो जाता है। किसी भी कार्य के प्रति अरुचि बढ़ जाती है। ऐसा व्यक्ति संभोग के क्षणों में भी स्वयं को अक्षम पाता है। नाड़ियों के कमजोर रहने से व्यक्ति अन्य कई गंभीर रोगों की चपेट में भी आ सकता है।

हमारे शरीर में बहत्तर हजार से ज्यादा नाड़ियां हैं और सभी का मूल उदगम स्त्रोत नाभि स्थान है। उक्त नाड़ियों में भी दस नाड़ियां मुख्य हैं- 1.इड़ा (नाभि से बाईं नासिका), 2.पिंगला (नाभि से दाईं नासिका), 3.सुषुम्ना (नाभि से मध्य में), 4.शंखिनी (नाभि से गुदा), 5.कृकल (नाभि से लिंग तक), 6.पूषा (नाभि से दायां कान), 7.जसनी (नाभि से बाया कान), 8.गंधारी (नाभि से बाईं आंख), 9.हस्तिनी (नाभि से दाईं आंख), 10.लम्बिका (नाभि से जीभ)।

नाड़ियों को स्वस्थ रखने का तरीका : सामान्यत: नाड़ियां दो तरीके से स्वस्थ्य, मजबूत और हष्ट-पुष्ट बनी रहती है- 1.यौगिक आहार और 2.प्राणायाम।

यौगिक आहार : यौगिक आहार में गेहूं, चावल, जौ जैसे सुंदर अन्न। दूध, घी, खाण्ड, मक्खन, मिसरी, मधु जैसे फल-दूध। जीवन्ती, बथुआ, चौलाई, मेघनाद एवं पुनर्नवा जैसे पांच प्रकार के शाक। मूंग, हरा चना आदि। फल और फलों का ज्यूस ज्यादा लाभदायक है।

प्राणायाम : प्राणायाम की शुरुआत अनुलोम-विलोम से करें इसमें कुंभक की अवधि कुछ हद तक बढ़ाते जाएं। फिर कपालभाती और भस्त्रिका का अभ्यास मौसम और शारीरिक स्थिति अनुसार करें।

नाड़ी शुद्धि के लाभ : स्वस्थ और मजबूत नाड़ियां मजबूत शरीर और लम्बी उम्र की पहचान है। इससे सदा स्फूर्ति और जोश कायम रहता है। मजबूत नाड़ियों में रक्त संचार जब सुचारू रूप से चलता है तो रक्त संबंधी किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता। हृदय और फेंफड़ा मजबूत बना रहता है।

श्वास नलिकाओं से भरपूर वायु के आवागमन से दिमाग और पेट की गर्मी छंटकर दोनों स्वस्थ बने रहते हैं। पाचन क्रिया सही चलती है। संभोग क्रिया में भी लाभ मिलता है। शरीर व चेहरे की क्रांति बढ़ जाती है। तनाव और थकान से मुक्ति मिल जाती है।

स्नान योग का महत्व

स्नान योग से त्वचा में आए निखारimg1120504052_1_1

हमारी त्वचा में लाखों रोम-कूप है जिनसे पसीना निकलता रहता है। इन रोम कूपों को जहां भरपूर ऑक्सीजन की जरूरत होती है वहीं उन्हें पौषक तत्व भी चाहिए, लेकिन हमारी त्वचा पर रोज धुल, गर्द, धुवें और पसीने से मिलकर जो मैल जमता है उससे हमारी त्वचा की सुंदरता और उसकी आभा खत्म हो जाती है।

त्वचा की सफाई का काम स्नान ही करता है। योग और आयुर्वेद में स्नान के प्रकार और फायदे बताए गए हैं। बहुद देर तक और अच्छे से स्नान करने से जहां थकान और तनाव घटता है वहीं यह मन को प्रसंन्न कर स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायी सिद्ध होता है।

योगा स्नान कई तरीके से किया जाना है- सनबाथ, स्टीमबाथ, और मिट्टी, उबटन, जल और धौती आदि से आंतरिक और बाहरी स्नान।img1120504052_1_3

कैसे करें स्नान : शारीरिक शुद्धता भी दो प्रकार की होती है- पहली में शरीर को बाहर से शुद्ध किया जाता है। इसमें मिट्टी, उबटन, त्रिफला, नीम आदि लगाकर निर्मल जल से स्नान करने से त्वचा एवं अंगों की शुद्धि होती है। दूसरी शरीर के अंतरिक अंगों को शुद्ध करने के लिए योग में कई उपाय बताए गए है- जैसे शंख प्रक्षालन, नेती, नौलि, धौती, कुंजल, गजकरणी, गणेश क्रिया, अंग संचालन आदि।

सामान्य तौर पर किए जाने वाले स्नान के दौरान शरीर को खूब मोटे तोलिए से हल्के हल्के रगड़कर स्नान करना चाहिए ताकि शरीर का मैल अच्छी तरह उत्तर जाए। स्नान के पश्चात सूखे कपड़े से शरीर पोंछे और धुले हुए कपड़े पहन लेने चाहिए। इस तरह से शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है।

ठंठे जल से ही नहाएं : गर्म जल सर पर डालकर स्नान करना आंखों के लिए हानिकारक है, लेकिन शीतल जल लाभदायक है। मौसम अनुसार जल का प्रयोग करना चाहिए, इसका यह मतलब नहीं की ठंठ में हम बहुत तेज गर्म जल से स्नान करें। गर्म पानी से नहाने पर रक्त-संचार पहले कुछ उतेजित होता है किन्तु बाद में मंद पड़ जाता है, लेकिन ठंठे पानी से नहाने पर रक्त-संचार पहले मंद पड़ता है और बाद में उतेजित होता है जो कि लाभदायक है।

रोगी को या कमजोर मनुष्य को भी ज्यादा गर्म पानी से स्नान नहीं करना चाहिए। जिनकी प्रक्रति सर्द हो जिन्हें शीतल जल से हानि होती है केवल उन्हें ही कम गर्म जल से स्नान करना चाहिए। भोजन के बाद स्नान नहीं करना चाहिए।

ठंडे पानी से स्नान करने के फायदे : शीतल या ठंडे जल द्वारा स्नान करने से उश्नावात, सुजाप, मिर्गी, उन्माद, धातुरोग, हिस्ट्रीया, मूर्च्छा और रक्त-पित्त आदि रोगों में बड़ा फायदा होता है।

स्नान के फायदे : स्नान से पवित्रता आती है। इससे तनाव, थकान और दर्द मिटता है। पांचों इंद्रियां पुष्ट होती है। यह आयुवर्धक, बल बढ़ाने वाला और तेज प्रदान करने वाला है। इससे निद्रा अच्छी आती है। यह हर तरह की जलन और खुजली खत्म करता है। इससे त्वचा में निखार और रक्त साफ होता है। स्नान के पश्चात मनुष्य की जठराग्नि प्रबल होती है और भूख भी अच्छी लगती है।

योग और आयुर्वेद

योग और आयुर्वेद (Yoga and Ayurveda)। योग का संबंध आयुर्वेद से क्यों हैं? दरअसल हमारे ऋषि-मुनियों ने योग के साथ ही आयुर्वेद को जन्म दिया। इसके पीछे कारण यह कि वे सैकड़ों वर्ष तक जिंदा रहकर ध्‍यान और समाधि में गति करना चाहते थे। इसके चलते उन्होंने दोनों ही चिकित्सा पद्धति को अपने ‍जीवन का अंग बनाया। img1131018032_1_1

निश्चित ही योग करते हुए आप स्वस्थ रह सकते हैं लेकिन प्रकृति की शक्ति आपकी शक्ति से भी ज्यादा है और मौसम की मार सभी पर रह सकती है। हिमालय में प्राणायाम के अभ्यास से शरीर का तापमान सामान्य बनाए रखा जा सकता है, लेकिन मान लो कोई गंभीर रोग हो ही गया तो फिर क्या कर सकते हैं। ऐसे में उन्होंने कई चमत्कारिक जड़ी-बुटियों की खोज की जो व्यक्ति को तुरंत तंदुरुस्त बनाकर दीर्घजीवन प्रदान करे।

आयुर्वेद एक प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है। बहुत से ऐसे रोग और मानसिक विकार हो सकते हैं जिस पर योग कंट्रोल न भी कर पाए तो आयुर्वेद उसका विकल्प बन जाता है और बहुत से ऐसे रोग भी होते हैं जिसे आयुर्वेद न भी कंट्रोल कर पाए तो योग उसका विकल्प बन जाता है।

योग करते हुए सिर्फ और सिर्फ आयुर्वेदिक चिकित्सा का ही लाभ लेना चाहिए, क्योंकि योग आपके शरीर की प्रकृति को सुधारता है। का संबंध अटूट है।

कमर दर्द के लिए 4 योगासन

कमर का दर्म कमर तोड़ देता है। कमर का दर्द असहनीय होता है। पीठ दर्द, कमर दर्द, सरवाइकल और कमर से जुड़ी अन्य समस्याएं आम हो गई है। डॉक्टर भी कहते हैं कि इसका सबसे अच्छा इलाज योग (Yoga for Back pain) ही है। आओ जानते हैं कि वह कौन से आसन हैं जिससे कमर का दर्द ठीक हो जाता है। ये चार आसन है- मकरासन, भुजंगासन, हलासन और अर्ध मत्येन्द्रासन।

1.मकरासन ( makarasana ) :मकरासन की गिनती पेट के बल लेटकर किए जाने वाले आसनों में की जाती है। इस आसन की अंतिम अवस्था में हमारे शरीर की आकृति मगर की तरह प्रतीत होती है इसीलिए इसे मकरासन कहते हैं। मकरासन से जहां दमा और श्वांस संबंधी रोग समाप्त हो जाते हैं वहीं यह में रामबाण औषधि है।

2.भुजंगासन ( bhujangasana ) : भुजंगासन की गिनती भी पेट के बल लेटकर किए जाने वाले आसनों में की जाती है। इस आसन की अंतिम अवस्था में हमारे शरीर की आकृति फन उठाए सांप की तरह प्रतीत होती है इसीलिए इसे भुजंगासन कहते हैं।

3.हलासन ( halasana ) : दो आसन पेट के बल करने के बाद अब पीठ के बील किए जाने वाले आसनों में हलासन करें। हलासन करते वक्त शरीर की स्थित हल के समान हो जाती है इसीलिए इसे हलासन कहते हैं।

4.अर्ध-मत्स्येन्द्रासन ( ardha matsyendrasana ) : यह आसन सबसे महत्वपूर्ण है। कहते हैं कि मत्स्येन्द्रासन की रचना गोरखनाथ के गुरु स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ ने की थी। वे इस आसन में ध्यानस्थ रहा करते थे। मत्स्येन्द्रासन की आधी क्रिया को लेकर ही अर्ध-मत्स्येन्द्रासन प्रचलित हुआ।

एकपादासन योग से होगा पिंडलियों का दर्द दूर

या (eka pada asana or One Legged Posture) अर्थात एक पैर से किया जाने वाला योग आसन। एक पैर से बहुत से योग आसन किए जाते हैं जैसे एकपाद शीर्षासन, एकपाद बकासन आदि। लेकिन यह आसन सिर्फ एकपाद आसन है। यह सिर्फ खड़े रहकर किया जाता है।

आसन का लाभ : इस आसन के अभ्यास से शरीर में संतुलन बै़ता है। इस संतुलन से चित्त में एकाग्रता का विकास होता है। यह आसन कंधे और कलाई की शक्ति को बढ़ाता है। इसके अभ्यास से कमर और पिंडलियों का दर्द दूर होता है।

एकपादासन के नियमित अभ्यास से जहां एकाग्रता बढ़ती है वहीं शरीर के अंग दृढ़ होते हैं। यह शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन के लिए जरूरी है।

आसन विधि : सबसे पहले सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाएं। फिर दोनों कंधों को सिर के ऊपर ले जाकर हाथों की अंगुलियों को मिला दें। अर्थात ताड़ासन की मुद्रा में खड़े हो जाएं। इस अवस्था में आंखे पांच फिट दूर किसी चीज पर केंद्रित कर दें। कमर को सीधा रखें।

अब श्वास लेते हुए कंधों को ऊपर खींचे तथा श्वास बाहर निकालते हुए कमर से सामने की ओर 90 डिग्री के कोण में झुकें। अब दहिने पैर पर संतुलन बनाते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर तथा दोनों हाथों को आगे की ओर इस तरह लें जाए की बायां पैर, सिर और कंधे एक सीध में हों।download

पुन: प्रारंभिक अवस्था में आने के लिए पहले पैर को भूमि पर टिकाएं फिर हाथों को सीधा कर पुन: सावधान मुद्रा में आ जाए। यह पूरा एक चक्र पूरा है। अब दूसरे पैर से भी एक पादासन का इसी तरह अभ्यास करें।

सावधानी : उच्च रक्तचाप से पीड़ित होने पर एकपादासन का अभ्यास नहीं किया जाना चाहिए। इस आसन मुद्रा में कम से कम 30 सेकंड में ठहर सकते हैं और एक पैर से इसे दो बार किया जा सकता है।

गोमुखासन : श्वास संबंधी रोग में लाभदायक योग

इस आसन में व्यक्ति की आकृति गाय के मुख के समान बन जाती है इसीलिए इसे कहते हैं।img1121109077_1_2

गोमुखासन की विधि : पहले दंडासन अर्थात दोनों पैरों को सामने सीधे एड़ी-पंजों को मिलाकर बैठे। हाथ कमर से सटे हुए और हथेलियां भूमि टिकी हुई। नजरें सामने।

अब बाएं पैर को मोड़कर एड़ी को दाएं नितम्ब के पास रखें। दाहिने पैर को मोड़कर बाएं पैर के ऊपर एक दूसरे से स्पर्श करते हुए रखें। इस स्थिति में दोनों जंघाएं एक-दूसरे के ऊपर रखा जाएगी जो त्रिकोणाकार नजर आती है।

फिर श्वास भरते हुए दाहिने हाथ को ऊपर उठाकर दाहिने कंधे को ऊपर खींचते हुए हाथ को पीछे पीठ की ओर ले जाएं तब बाएं हाथ को पेट के पास से पीठ के पीछे से लेकर दाहिने हाथ के पंजें को पकड़े। गर्दन व कमर सीधी रखें।

अब एक ओर से लगभग एक मिनट तक करने के पश्चात दूसरी ओर से इसी प्रकार करें। जब तक इस स्टेप में आराम से रहा जा सकता है तब तक रहें।

कुछ देर बाद धीरे- धीरे श्वास छोड़ते हुए हाथों के लाक को खोल दें और क्रमश: पुन: दंडासन की स्थिति में आ जाएं। फिर दाएं पैर को मोड़कर तथा दाहिने हाथ को उपर से पीछे ले जाकर इसे करें तो एक चक्र पूरा होगा।

अवधि/दोहराव- हाथों के पंजों को पीछे पकड़े रहने की सुविधानुसार 30 सेकंड से एक मिनट तक इसी स्थिति में रहें। इस आसन के चक्र को दो या तीन बार दोहरा सकते हैं।

सावधा‍नी- हाथ, पैर और रीढ़ की हड्डी में कोई गंभीर रोग हो तो यह आसन न करें। जबरदस्ती पीठ के पीछे हाथों के पंजों को पकड़ने का प्रयास न करें।

गोमुखासन से लाभ : इससे हाथ-पैर की मांसपेशियां चुस्त और मजबूत बनती है। तनाव दूर होता है। कंधे और गर्दन की अकड़न को दूरकर कमर, पीठ दर्द आदि में भी लाभदायक। छाती को चौड़ा कर फेफड़ों की शक्ति को बढ़ाता है जिससे श्वास संबंधी रोग में लाभ मिलता है।

यह आसन सन्धिवात, गठीया, कब्ज, अंडकोषवृद्धि, हर्निया, यकृत, गुर्दे, धातु रोग, बहुमूत्र, मधुमेह एवं स्त्री रोगों में बहुत ही लाभदायक सिद्ध होता है।

नटराज आसन योग, पैरों के लिए लाभदायक

नटराज’ शिव के ‘तांडव नृत्य’ का प्रतीक है। नटराज का यह नृत्य विश्व की पांच महान क्रियाओं का निर्देशक है- सृष्टि, स्थिति, img1121128061_1_1प्रलय, तिरोभाव (अदृश्य, अंतर्हित) और अनुग्रह। शिव की नटराज की मूर्ति में धर्म, शास्त्र और कला का अनूठा संगम है। उनकी इसी नृत्य मुद्रा पर एक आसन का नाम है- नटराज आसन (नटराजासन)।

नटराज आसन की विधि : सबसे पहले सीधे खड़े हो जाइए। फिर दाएं पैर को पीछे ले जाकर जमीन से ऊपर उठाएं। इसके बाद उसे घुटने से मोड़कर उस पैर के पंजे को दाएं हाथ से पकड़ें।

दाएं हाथ से दाएं पैर को अधिकतम ऊपर की ओर उठाने का प्रयास करें। बाएं हाथ को सामने की ओर ऊपर उठाएं। इस दौरान सिर को ऊपर की ओर उठा कर रखें।
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महज तीस सेकंड के बाद वापस पूर्व स्थिति में आ जाएं। फिर इसी क्रिया को दूसरे पैर अर्थात बाएं पैर को पीछे ले जाकर जमीन से ऊपर उठाकर करें।

हालांकि यह क्रिया चित्र में दिखाए गई नटराज की मुद्रा से भिन्न है लेकिन यह भी नटराज आसन ही है। आप चित्र में दिखाई मुद्रा अनुसार भी कर सकते हैं तांडव नृत्य की ऐसी कई मुद्राएं हैं।

सावधानी : जब कोई आसन करते हैं तो उसका विपरित आसन करना भी जरूरी होता है। नटराज आसन के साथ उत्थित जानू शीर्षासन करना चाहिए।

इस आसन से लाभ : यह आसन स्नायुमण्डल को सुदृढ़ बनाता है। इससे पैरों की मांसपेशियों को व्यायाम मिलता है। इसके नियमित अभ्यास से तंत्रिकाओं में आपसी तालमेल बेहतर होता है। इसके प्रभाव से शारीरिक स्थिरता आती है और मानसिक एकाग्रता बढ़ती है।

लम्बी उम्र और यौवन का राज

श्वास-प्रश्वास की उचित विधि मनुष्य को न केवल स्वस्थ, सुंदर और दीर्घजीवी बनाती है बल्कि ईश्वरानुभूति तक करा सकती है। सदा युवा बने रहने और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सांसों पर संयम जरूरी है। श्वास की गति का संबंध मन से जुड़ा है।img1130214061_1_1

मनुष्य के दोनों नासिका छिद्रों से एक साथ श्वास-प्रश्वास कभी नहीं चलती है। कभी वह बाएं तो कभी दाएं नासिका छिद्र से सांस लेता और छोड़ता है। बाएं नासिका छिद्र में इडा यानी चंद्र नाडी और दाएं नासिका छिद्र में पिंगला यानी सूर्य नाड़ी स्थित है। इनके अलावा एक सुषुम्ना नाड़ी भी होती है जिससे सांस और ध्यान विधियों से ही प्रवाहित होती है।

शिवस्वरोदय ज्ञान में स्पष्ट रूप से लिखा है कि प्रत्येक एक घंटे के बाद यह श्वास नासिका छिद्रों में परिवर्तित होता रहता है। एक अन्य ग्रंथ में लिखा भी है:

कबहु डडा स्वर चलत है कभी पिंगला माही।
सुष्मण इनके बीच बहत है गुर बिन जाने नाही।।

योगियों का कहना है कि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने पर वह मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है। चंद्र नाड़ी से रिणात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। जब सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होता है तो शरीर को उष्मा प्राप्त होती है यानी गर्मी पैदा होती है। सूर्य नाड़ी से धनात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है।

प्राय: मनुष्य उतनी गहरी सांस नहीं लेता और छोड़ता है जितनी एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरूरी होती है। प्राणायाम मनुष्य को वह तरीका बताता है जिससे मनुष्य ज्यादा गहरी और लंबी सांस ले और छोड़ सकता है।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम की विधि से दोनों नासिका छिद्रों से बारी-बारी से वायु को भरा और छोड़ी जाता है। अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आ जाता है जब चंद्र और सूर्य नाड़ी से समान रूप से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने लगता है। उस अल्पकाल में सुषुम्ना नाड़ी से श्वास प्रवाहित होने की अवस्था को ही ‘योग’ कहा जाता है।

प्राणायाम का मतलब है- प्राणों का विस्तार। दीर्घ श्वास-प्रश्वास से प्राणों का विस्तार होता है। एक स्वस्थ मनुष्य को एक मिनट में 15 बार सांस लेनी चाहिए। इस तरह एक घंटे में उसके श्वासों की संख्या 900 और 24 घंटे में 21600 होनी चाहिए।

स्वर विज्ञान के अनुसार चंद्र और सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास के जरिए कई तरह के रोगों को ठीक किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास को प्रवाहित किया जाए तो रक्तचाप, हाई ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है।