सब बह जाएंगे

बादशाह अकबर और बीरबल शिकार पर गए हुए थे। उनके साथ कुछ सैनिक तथा सेवक भी थे। शिकार से लौटते समय एक गांव से गुजरते हुए बादशाह अकबर ने उस गांव के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई। उन्होंने इस बारे में बीरबल से कहा तो उसने जवाब दिया—‘‘हुजूर, मैं तो इस गांव के बारे में कुछ नहीं जानता, किंतु इसी गांव के किसी बाशिन्दे से पूछकर बताता हूं।’’

बीरबल ने एक आदमी को बुलाकर पूछा—‘‘क्यों भई, इस गांव में सब ठीकठाक तो है न ?’’

उस आदमी ने बादशाह को पहचान लिया और बोला—‘‘हुजूर आपके राज में कोई कमी कैसे हो सकती है।’’

‘‘तुम्हारा नाम क्या है ?’’ बादशाह ने पूछा।

‘‘गंगा।’’

‘‘तुम्हारे पिता का नाम ?’’

‘‘जमुना और मां का नाम सरस्वती है ?’’

‘‘हुजूर, नर्मदा।’’

यह सुनकर बीरबल ने चुटकी ली और बोला—‘‘हुजूर तुरन्त पीछे हट जाइए। यदि आपके पास नाव हो तभी आगे बढ़ें वरना नदियों के इस गांव में तो डूब जाने का खतरा है।’’

यह सुनकर बादशाह अकबर हंसे बगैर न रह सके।

राखपत और रखापत

एक बार दिल्ली दरबार में बैठे हुए बादशाह अकबर ने अपने नवरत्नों से पूछा “भई, यह बताओ सबसे बडा पट यानी शहर कौनसा हैं।” पहले नवरत्न ने कहा ‘सोनीपत’। दूसरा नवरत्न -“हुजूर, पानीपत सबसे बडा पत हैं। तीसरे नवरत्न ने लम्बी हांकी “नहीं जनाब, दलपत से बडा पत और कोई दूसरा नहीं हैं।

चौथे नवरत्न ने अपना राग अलापा “सबसे बडा पत तो दिल्लीपत यानी दिल्ली शहर हैं। बीरबल चुपचाप बैठे हुए सारी बातें सुन रहे थे। अकबर ने बीरबल से कहा तुम भी कुछ बोलो। बीरबल ने कहा “सबसे बडा पत हैं ‘राखपत’ और दूसरा बडा पत हैं ‘रखापत’।” अकबर ने पूछा “बीरबल हमने सोनीपत, पानीपत दलपत और दिल्लीपत सब पत सुन रखे हैं। पर राखपत, रखापत किस शहर के नाम हैं।

बीरबल बोले “हुजूर राखपत का मतलब हैं मैं आपके रखूं और राकह्पत का मतलब हैं आप मेरी बात रखो। यह मेलजोल और प्रेमभाव जिस पत में नहीं है उस पत का क्या मतलब हैं। प्रेमभाव हैं तो जंगल में भी मंगल हैं और प्रेमभाव नहीं तो नगर भी नरक का द्वार हैं।

अकबर बीरबल की बातों को सुनकर बहुत खुश हुए और उन्हें कई इनामों से नवाजा।

मैं आपका नौकर हूँ, बैंगन का नहीं

एक दिन अकबर और बीरबल महल के बागों में सैर कर रहे थे| फले-फूले बाग को देखकर अकबर बहुत खुश थे| वे बीरबल से बोले, “बीरबल, देखो यह बैंगन, कितनी सुनदर लग रहे हैं!” इनकी सब्जी कितनी स्वादिष्ट लगती है! बीरबल, मुझे बैंगन बहुत पसंद हैं| हाँ महाराज, आप सत्य कहते हैं| यह बैंगन है ही ऐसी सब्जी, जो ना सिर्फ देखने में ब्लकि खाने में भी इसका कोई मुकाबला नहीं है| और देखिये महाराज भगवान ने भी इसीलिये इसके सिर पर ताज बनाया है| अकबर यह सुनकर बहुत खुश हुआ|

कुछ हफ्तों बाद अकबर और बीरबल उसी बाग में घूम रहे थे| अकबर को कुछ याद आया और मुस्कुराते हुए बोले, “बीरबल देखो यह बैंगन कितना भद्दा और बदसूरत है और यह खाने में भी बहुत बेस्वाद है|” हाँ हुज़ूर, आप सही कह रहे हैं बीरबल बोला| इसीलिये इसका नाम बे-गुण है बीरबल ने चतुराई से नाम को बदलते हुए कहा|

यह सुनकर अकबर को गुस्सा आ गया| उन्होंने झल्लाते हुए कहा,”क्या मतलब है बीरबल?” मैं जो भी बात कहता हूँ तुम उसे ही ठीक बताते हो| बैंगन के बारे में तुम्हारी दोनों ही बातें सच कैसे हो सकती हैं, क्या तुम मुझे समझाओगे? बीरबल ने हाथ जोडते हुए कहा,”हुज़ूर, मैं आपका नौकर हूँ बैंगन का नहीं”|

अकबर यह जवाब सुनकर बहुत खुश हुए और बीरबल की तरफ पीठ करके मुस्कुराने लगे|

भाई जैसा

बादशाह अकबर तब बहुत छोटे थे, जब उनकी मां का देहांत हुआ था। चूंकि वह बहुत छोटे थे, इसलिए उन्हें मां के दूध की दरकार थी। महल में तब एक दासी रहती थी, जिसका शिशु भी दुधमुंहा था। वह नन्हें अकबर को दूध पिलाने को राजी हो गई। दासी का वह पुत्र व अकबर दोनों साथ-साथ दासी का दूध पीने लगे।

दासी के पुत्र का नाम हुसिफ था। चूंकि हुसिफ व अकबर ने एक ही स्त्री का दुग्धपान किया था, इसलिए वे दूध-भाई हो गए थे। अकबर को भी लगाव था हुसिफ से।

समय बीतता रहा। अकबर बादशाह बन गए और देश के सर्वाधिक शक्तिशाली सम्राट बने। लेकिन हुसिफ एक मामूली दरबारी तक न बन पाया। उसकी मित्रता जुआरियों के साथ थी और कुछ ऐसे लोग भी उसके साथी थे, जो पैसा फिजूल बहाया करते थे। एक समय ऐसा आया जब हुसिफ के पास दो समय के भोजन के लिए भी पैसा पास न था। लोगों ने तब उसे बादशाह के पास जाने को कहा।

हुसिफ ने बादशाह अकबर के पास जाने की तैयारी शुरू कर दी।

हुसिफ के दरबार में पहुंचते ही बादशाह ने उसे ऐसे गले लगाया जैसे उसका सगा भाई ही हो। लंबे अर्से के बाद हुसिफ को देख बादशाह बेहद खुश थे। उन्होंने उसकी हर संभव सहायता करनी चाही।

हुसिफ को अकबर ने दरबार में नौकरी दे दी। रहने के लिए बड़ा मकान, नौकर-चाकर, घोड़ागाड़ी भी दी। निजी खर्च के लिए एक मोटी रकम हर महीने उसको मिलती थी।

अब हुसिफ की जिन्दगी अमन-चैन से गुजर रही थी। उसे किसी चीज की कोई कमी नहीं थी।

‘‘यदि तुम्हारी कुछ और जरूरतें हों, तो बेहिचक कह डालो। सब पूरी की जाएंगी।’’ बादशाह ने हुसिफ से कहा।

तब हुसिफ ने जवाब दिया, ‘‘आपने अब तक जितना दिया है वह काफी है शाही जीवन बिताने को, बादशाह सलामत। आपने मुझे इज्जत बख्शी, सर उठाकर चलने की हैसियत दी। मुझसे ज्यादा खुश और कौन होगा। मेरे लिए यह भी फक्र की बात है कि देश का सम्राट मुझे अपना भाई मानता है। और क्या चाहिए हो सकता है मुझे।’’ कहते हुए उसने सिर खुजाया, होंठों पर अहसान भरी मुस्कान थी। लेकिन लगता था उसे कुछ और भी चाहिए था। वह बोला, ‘‘मैं महसूस करता हूं कि बीरबल जैसे बुद्धिमान व योग्य व्यक्ति के साथ रहूं। मेरी ख्वाहिश है कि जैसे बीरबल आपका सलाहकार है, वैसा ही मुझे भी कोई सलाह देने वाला हो।’’

बादशाह अकबर ने हुसिफ की यह इच्छा भी पूरी करने का फैसला किया। उन्होंने बीरबल को बुलाकर कहा, ‘‘हुसिफ मेरे भाई जैसा है। मैंने उसे जीवन के सभी ऐशो-आराम उपलब्ध करा दिए हैं, लेकिन अब वह तुम्हारे जैसा योग्य सलाहकार चाहता है। तुम अपने जैसा बल्कि यह समझो अपने भाई जैसा कोई व्यक्ति लेकर आओ जो हुसिफ का मन बहला सके। वह बातूनी न हो, पर जो भी बोले, नपा-तुला बोले। उसकी बात का कोई मतलब होना चाहिए। समझ गए न कि मैं क्या चाहता हूं।’’

पहले तो बीरबल समझ ही न पाया कि बादशाह ऐसा क्यों चाहते हैं। उसे हुसिफ में ऐसी कोई खूबी दिखाई न देती थी।

‘‘जी हुजूर !’’ बीरबल बोला, ‘‘आप चाहते हैं कि मैं ऐसा आदमी खोजकर लाऊं जो मेरे भाई जैसा हो।’’

‘‘ठीक समझे हो।’’ बादशाह ने कहा।

अब बीरबल सोचने लगा कि ऐसा कौन हो सकता है, जो उसके भाई जैसा हो। हुसिफ भाग्यशाली है जो बादशाह उसे अपना भाई मानते हैं और उसे सारे ऐशो-आराम उपलब्ध करा दिए हैं। लेकिन बीरबल को हुसिफ की यह मांग जची नहीं कि उसके पास भी बीरबल जैसा सलाहकार हो। बादशाह बेहद सम्मान करते थे बीरबल का और बीरबल भी बादशाह पर जान छिड़कता था। लेकिन हुसिफ तो इस लायक कतई नहीं था। अब बीरबल सोच ही रहा था कि समस्या को हल कैसे किया जाए, तभी पास की पशुशाला से सांड़ के रंभाने की आवाज आई। बीरबल तुरंत खड़ा हो गया। आखिरकार उसे अपने भाई जैसा कोई मिल ही गया था।

अगले दिन उस सांड़ के साथ बीरबल महल में जाकर अकबर के सामने खड़ा हो गया।

‘‘तुम अपने साथ इस सांड़ को लेकर यहां क्यों आए हो, बीरबल ?’ अकबर ने पूछा।

‘‘यह मेरा भाई है, बादशाह सलामत।’’ बीरबल बोला, ‘‘हम दोनों एक ही मां का दूध पीकर बड़े हुए हैं….गऊ माता का दूध पीकर। इसलिए यह सांड़ मेरे भाई जैसा है…दूध-भाई। यह बोलता भी बहुत कम है। जो इसकी भाषा समझ लेता है, उसे यह कीमती सलाह भी देता है। इसे हुसिफ को दे दें, मेरे जैसा सलाहकार पाने की उसकी इच्छा पूरी हो जायगी।’’

बीरबल का यह उत्तर सुनकर अकबर को अपनी गलती का अहसास हुआ। तब उन्हें लगा कि जैसे उन जैसा कोई दूसरा नहीं, वैसे ही बीरबल भी एक ही है।

बीरबल की योग्यता

दरबार में बीरबल से जलने वालों की कमी नहीं थी। बादशाह अकबर का साला तो कई बार बीरबल से मात खाने के बाद भी बाज न आता था। बेगम का भाई होने के कारण अक्सर बेगम की ओर से भी बादशाह को दबाव सहना पड़ता था।

ऐसे ही एक बार साले साहब स्वयं को बुद्धिमान बताते हुए दीवान पद की मांग करने लगे। बीरबल अभी दरबार में नहीं आया था। अतः बादशाह अकबर ने साले साहब से कहा—‘‘मुझे आज सुबह महल के पीछे से कुत्ते के पिल्ले की आवाजें सुनाई दे रही थीं, शायद कुतिया ने बच्चे दिए हैं। देखकर आओ, फिर बताओ कि यह बात सही है या नहीं ?’’

साले साहब चले गए, कुछ देर बाद लौटकर बोले—‘‘हुजूर आपने सही फरमाया, कुतिया ही ने बच्चे दिए हैं।

‘‘अच्छा कितने बच्चे हैं ?’’ बादशाह ने पूछा।

‘‘हुजूर वह तो मैंने गिने नहीं।’’

‘‘गिनकर आओ।’’

साले साहब गए और लौटकर बोले—‘‘हुजूर पाँच बच्चे हैं ?’’

‘‘कितने नर हैं…कितने मादा ?’’ बादशाह ने फिर पूछा।

‘‘वह तो नहीं देखा।’’

‘‘जाओ देखकर आओ।’’

आदेश पाकर साले साहब फिर गए और लौटकर जवाब दिया—‘‘तीन नर, दो मादा हैं हुजूर।’’

‘‘नर पिल्ले किस रंग के हैं ?’’

‘‘हुजूर वह देखकर अभी आता हूं।’’

‘‘रहने दो…बैठ जाओ।’’ बादशाह ने कहा।

साले साहब बैठ गए। कुछ देर बाद बीरबल दरबार में आया। तब बादशाह अकबर बोले—‘‘बीरबल, आज तुम सुबह महल के पीछे से पिल्लों की आवाजें आ रही हैं, शायद कुतिया ने बच्चे दिए हैं, जाओ देखकर आओ माजरा क्या है !’’

‘‘जी हुजूर।’’ बीरबल चला गया और कुछ देर बाद लौटकर बोला—‘‘हुजूर आपने सही फरमाया…कुतिया ने ही बच्चे दिए हैं।’’

‘‘कितने बच्चे हैं ?’’

‘‘हुजूर पांच बच्चे हैं।’’

‘‘कितने नर हैं….कितने मादा।’’

‘‘हुजूर, तीन नर हैं…दो मादा।’’

‘‘नर किस रंग के हैं ?’’

‘‘दो काले हैं, एक बादामी है।’’

‘‘ठीक है बैठ जाओ।’’

बादशाह अकबर ने अपने साले की ओर देखा, वह सिर झुकाए चुपचाप बैठा रहा। बादशाह ने उससे पूछा—‘‘क्यों तुम अब क्या कहते हो ?’’

उससे कोई जवाब देते न बना।

पैसे की थैली किसकी

दरबार लगा हुआ था। बादशाह अकबर राज-काज देख रहे थे। तभी दरबान ने सूचना दी कि दो व्यक्ति अपने झगड़े का निपटारा करवाने के लिए आना चाहते हैं।

बादशाह ने दोनों को बुलवा लिया। दोनों दरबार में आ गए और बादशाह के सामने झुककर खड़े हो गए।

‘‘कहो क्या समस्या है तुम्हारी ?’’ बादशाह ने पूछा।

‘‘हुजूर मेरा नाम काशी है, मैं तेली हूं और तेल बेचने का धंधा करता हूं; और हुजूर यह कसाई है। इसने मेरी दुकान पर आकर तेल खरीदा और साथ में मेरी पैसों की भरी थैली भी ले गया। जब मैंने इसे पकड़ा और अपनी थैली मांगी तो यह उसे अपनी बताने लगा, हुजूर अब आप ही न्याय करें।’’

‘‘जरूर न्याय होगा, अब तुम कहो तुम्हें क्या कहना है ?’’ बादशाह ने कसाई से कहा। ‘‘हुजूर मेरा नाम रमजान है और मैं कसाई हूँ, हुजूर, जब मैंने अपनी दुकान पर आज मांस की बिक्री के पैसे गिनकर थैली जैसे ही उठाई, यह तेली आ गया और मुझसे यह थैली छीन ली। अब उस पर अपना हक जमा रहा है, हुजूर, मुझ गरीब के पैसे वापस दिला दीजिए।’’

दोनों की बातें सुनकर बादशाह सोच में पड़ गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह किसके हाथ फैसला दें। उन्होंने बीरबल से फैसला करने को कहा। बीरबल ने उससे पैसों की थैली ले ली और दोनों को कुछ देर के लिए बाहर भेज दिया। बीरबल ने सेवक से एक कटोरे में पानी मंगवाया और उस थैली में से कुछ सिक्के निकालकर पानी में डाले और पानी को गौर से देखा। फिर बादशाह से कहा—‘‘हुजूर, इस पानी में सिक्के डालने से तेल जरा-सा भी अंश पानी में नहीं उभार रहा है। यदि यह सिक्के तेली के होते तो यकीनन उन पर सिक्कों पर तेल लगा होता और वह तेल पानी में भी दिखाई देता।’’

बादशाह ने भी पानी में सिक्के डाले, पानी को गौर से देखा और फिर बीरबल की बात से सहमत हो गए। बीरबल ने उन दोनों को दरबार में बुलाया और कहा—‘‘मुझे पता चल गया है कि यह थैली किसकी है। काशी, तुम झूठ बोल रहे हो, यह थैली रमजान कसाई की है।’’

‘‘हुजूर यह थैली मेरी है।’’ काशी एक बार फिर बोला।

बीरबल ने सिक्के डले पानी वाला कटोरा उसे दिखाते हुए कहा—‘‘यदि यह थैली तुम्हारी है तो इन सिक्कों पर कुछ-न-कुछ तेल अवश्य होना चाहिए, पर तुम भी देख लो…तेल तो अंश मात्र भी नजर नहीं आ रहा है।’’

काशी चुप हो गया।

बीरबल ने रमजान कसाई को उसकी थैली दे दी और काशी को कारागार में डलवा दिया।

 

बीरबल की पैनी दृष्टि

बीरबल बहुत नेक दिल इंसान थे। वह सैदव दान करते रहते थे और इतना ही नहीं, बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी ज्यादातर गरीबों और दीन-दुःखियों में बांट देते थे, परन्तु इसके बावजूद भी उनके पास धन की कोई कमी न थी। दान देने के साथ-साथ बीरबल इस बात से भी चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति उन्हें अपनी दीनता दिखाकर ठग न लें।

ऐसे ही अकबर बादशाह ने दरबारियों के साथ मिलकर एक योजना बनाई कि देखें कि सच्चे दीन दुःखियों की पहचान बीरबल को हो पाती है या नही। बादशाह ने अपने एक सैनिक को वेश बदलवाकर दीन-हीन अवस्था में बीरबल के पास भेजा कि अगर वह आर्थिक सहायता के रूप में बीरबल से कुछ ले आएगा, तो अकबर की ओर से उसे इनाम मिलेगा।

एक दिन जब बीरबल पूजा-पाठ करके मंदिर से आ रहे थे तो भेष बदले हुए सैनिक ने बीरबल के सामने आकर कहा, “हुजूर दीवान! मैं और मेरे आठ छोटे बच्चे हैं, जो आठ दिनों से भूखे हैं….भगवान का कहना है कि भूखों को खाना खिलाना बहुत पुण्य का कार्य है, मुझे आशा है कि आप मुझे कुछ दान देकर अवश्य ही पुण्य कमाएंगे।”

बीरबल ने उस आदमी को सिर से पांव तक देखा और एक क्षण में ही पहचान लिया कि वह ऐसा नहीं है, जैसा वह दिखावा कर रहा है।

बीरबल मन ही मन मुस्कराए और बिना कुछ बोले ही उस रास्ते पर चल पडे़ जहां से होकर एक नदी पार करनी पड़ती थी। वह व्यक्ति भी बीरबल के पीछे-पीछे चलता रहा। बीरबल ने नदी पार करने के लिए जूती उतारकर हाथ में ले ली। उस व्यक्ति ने भी अपने पैर की फटी पुरानी जूती हाथ में लेने का प्रयास किया।

बीरबल नदी पार कर कंकरीले मार्ग आते ही दो-चार कदम चलने के बाद ही जूती पहन लेता। बीरबल यह बात भी गौर कर चुके थे कि नदी पार करते समय उसका पैर धुलने के कारण वह व्यक्ति और भी साफ-सुथरा, चिकना, मुलायम गोरी चमड़ी का दिखने लगा था इसलिए वह मुलायम पैरों से कंकरीले मार्ग पर नहीं चल सकता था।

“दीवानजी! दीन ट्टहीन की पुकार आपने सुनी नहीं?” पीछे आ रहे व्यक्ति ने कहा।

बीरबल बोले, “जो मुझे पापी बनाए मैं उसकी पुकार कैसे सुन सकता हूँ? ”

“क्या कहा? क्या आप मेरी सहायता करके पापी बन जांएगे?”

“हां, वह इसलिए कि शास्त्रों में लिखा है कि बच्चे का जन्म होने से पहले ही भगवान उसके भोजन का प्रबन्ध करते हुए उसकी मां के स्तनों में दूध दे देता है, उसके लिए भोजन की व्यव्स्था भी कर देता है। यह भी कहा जाता है कि भगवान इन्सान को भूखा उठाता है पर भूखा सुलाता नहीं है। इन सब बातों के बाद भी तुम अपने आप को आठ दिन से भूखा कह रहे हो। इन सब स्थितियों को देखते हुए यहीं समझना चाहिये कि भगवान तुमसे रूष्ट हैं और वह तुम्हें और तुम्हारे परिवार को भूखा रखना चाहते हैं लेकिन मैं उसका सेवक हूँ, अगर मैं तुम्हारा पेट भर दूं तो ईश्वर मुझ पर रूष्ट होगा ही। मैं ईश्वर के विरूध्द नहीं जा सकता, न बाबा ना! मैं तुम्हें भोजन नहीं करा सकता, क्योंकि यह सब कोई पापी ही कर सकता है।”

बीरबल का यह जबाब सुनकर वह चला गया।

उसने इस बात की बादशाह और दरबारियों को सूचना दी।

बादशाह अब यह समझ गए कि बीरबल ने उसकी चालाकी पकड़ ली है।

अगले दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा, “बीरबल तुम्हारे धर्म-कर्म की बड़ी चर्चा है पर तुमने कल एक भूखे को निराश ही लौटा दिया, क्यों?”

“आलमपनाह! मैंने किसी भूखे को नहीं, बल्कि एक ढोंगी को लौटा दिया था और मैं यह बात भी जान गया हूँ कि वह ढोंगी आपके कहने पर मुझे बेवकूफ बनाने आया था।”

अकबर ने कहा, “बीरबल! तुमनें कैसे जाना कि यह वाकई भूखा न होकर, ढोंगी है?”

“उसके पैरों और पैरों की चप्पल देखकर। यह सच है कि उसने अच्छा भेष बनाया था, मगर उसके पैरों की चप्पल कीमती थी।”

बीरबल ने आगे कहा, “माना कि चप्पल उसे भीख में मिल सकती थी, पर उसके कोमल, मुलायम पैर तो भीख में नहीं मिले थे, इसलिए कंकड क़ी गड़न सहन न कर सके।”

इतना कहकर बीरबल ने बताया कि किस प्रकार उसने उस मनुष्य की परीक्षा लेकर जान लिया कि उसे नंगे पैर चलने की भी आदत नहीं, वह दरिद्र नहीं बल्कि किसी अच्छे कुल का खाता कमाता पुरूष है।”

बादशाह बोले, “क्यों न हो, वह मेरा खास सैनिक है।” फिर बहुत प्रसन्न होकर बोले, “सचमुच बीरबल! माबदौलत तुमसे बहुत खुश हुए! तुम्हें धोखा देना आसान काम नहीं है।”

बादशाह के साथ साजिश में शामिल हुए सभी दरबारियों के चेहरे बुझ गए।

बीरबल कहां मिलेगा

एक दिन बीरबल बाग में टहलते हुए सुबह की ताजा हवा का आनंद ले रहा था कि अचानक एक आदमी उसके पास आकर बोला, ‘‘क्या तुम मुझे बता सकते हो कि बीरबल कहां मिलेगा ?’’

‘‘बाग में।’’ बीरबल बोला।

वह आदमी थोड़ा सकपकाया लेकिन फिर संभलकर बोला, ‘‘वह कहां रहता है ?’’

‘‘अपने घर में।’’ बीरबल ने उत्तर दिया।

हैरान-परेशान आदमी ने फिर पूछा, ‘‘तुम मुझे उसका पूरा पता ठिकाना क्यों नहीं बता देते ?’’

‘‘क्योंकि तुमने पूछा ही नहीं।’’ बीरबल ने ऊंचे स्वर में कहा।

‘‘क्या तुम नहीं जानते कि मैं क्या पूछना चाहता हूं ?’’ उस आदमी ने फिर सवाल किया।

‘‘नहीं।’ बीरबल का जवाब था।

वह आदमी कुछ देर के लिए चुप हो गया, बीरबल का टहलना जारी था। उस आदमी ने सोचा कि मुझे इससे यह पूछना चाहिए कि क्या तुम बीरबल को जानते हो ? वह फिर बीरबल के पास जा पहुंचा, बोला, ‘‘बस, मुझे केवल इतना बता दो कि क्या तुम बीरबल को जानते हो ?’’

‘‘हां, मैं जानता हूं।’’ जवाब मिला।

‘‘तुम्हारा क्या नाम है ?’’ आदमी ने पूछा।

‘‘बीरबल।’’ बीरबल ने उत्तर दिया।

अब वह आदमी भौचक्का रह गया। वह बीरबल से इतनी देर से बीरबल का पता पूछ रहा था और बीरबल था कि बताने को तैयार नहीं हुआ कि वही बीरबल है। उसके लिए यह बेहद आश्चर्य की बात थी।

‘‘तुम भी क्या आदमी हो…’’ कहता हुआ वह कुछ नाराज सा लग रहा था, ‘‘मैं तुमसे तुम्हारे ही बारे में पूछ रहा था और तुम न जाने क्या-क्या ऊटपटांग बता रहे थे। बताओ, तुमने ऐसा क्यों किया ?’’

‘‘मैंने तुम्हारे सवालों का सीधा-सीधा जवाब दिया था, बस !’’

अंततः वह आदमी भी बीरबल की बुद्धि की तीक्ष्णता देख मुस्कराए बिना न रह सका।

बीरबल और तानसेन का विवाद

तानसेन और बीरबल में किसी बात को लेकर विवाद हो गया। दोनों ही अपनी-अपनी बात पर अटल थे। हल निकलता न देख दोनों बादशाह की शरण में गए। बादशाह अकबर को अपने दोनों रत्न प्रिय थे। वे किसी को भी नाराज नहीं करना चाहते थे, अतः उन्होंने स्वयं फैसला न देकर किसी और से फैसला कराने की सलाह दी।

‘‘हुजूर, जब आपने किसी और से फैसला कराने को कहा है तो यह भी बता दें कि हम किस गणमान्य व्यक्ति से अपना फैसला करवाएं ?’’ बीरबल ने पूछा।

‘‘तुम लोग महाराणा प्रताप से मिलो, मुझे यकीन है कि वे इस मामले में तुम्हारी मदद जरूर करेंगे।’’ बादशाह अकबर ने जवाब दिया।

अकबर की सलाह पर तानसेन और बीरबल महाराणा प्रताप से मिले और अपना-अपना पक्ष रखा। दोनों की बातें सुनकर महाराणा प्रताप कुछ सोचने लगे, तभी तानसेन ने मधुर रागिनी सुनानी शुरू कर दी। महाराणा मदहोश होने लगे। जब बीरबल ने देखा कि तानसेन अपनी रागिनी से महाराणा को अपने पक्ष में कर रहा है तो उससे रहा न गया, तुरन्त बोला—‘‘महाराणाजी, अब मैं आपको एक सच्ची बात बताने जा रहा हूं, जब हम दोनों आपके पास आ रहे थे तो मैंने पुष्कर जी में जाकर प्रार्थना की थी कि मेरा पक्ष सही होगा तो सौ गाय दान करूंगा; और मियां तानसेन जी ने प्रार्थना कर यह मन्नत मांगी कि यदि वह सही होंगे तो सौ गायों की कुर्बानी देंगे। महाराणा जी अब सौ गायों की जिंदगी आपके हाथों में है।’’

बीरबल की यह बात सुनकर महाराणा चौंक गए। भला एक हिंदू शासक होकर गो हत्या के बारे में सोच कैसे सकते थे। उन्होंने तुरन्त बीरबल के पक्ष को सही बताया।

जब बादशाह अकबर को यह बात पता चली तो वह बहुत हंसे।

बादशाह की पहेली

बादशाह अकबर को पहेली सुनाने और सुनने का काफी शौक था। कहने का मतलब यह कि पक्के पहेलीबाज थे। वे दूसरो से पहेली सुनते और समय-समय पर अपनी पहेली भी लोगो को सुनाया करते थे। एक दिन अकबर ने बीरबल को एक नई पहेली सुनायी, “ऊपर ढक्कन नीचे ढक्कन, मध्य-मध्य खरबूजा। मौं छुरी से काटे आपहिं, अर्थ तासु नाहिं दूजा।”

बीरबल ने ऐसी पहेली कभी नहीं सुनी थी। इसलिए वह चकरा गया। उस पहेली का अर्थ उसकी समझ में नहीं आ रहा था। अत प्रार्थना करते हुए बादशाह से बोला, “जहांपनाह! अगर मुझे कुछ दिनों की मोहलत दी जाये तो मैं इसका अर्थ अच्छी तरह समझकर आपको बता सकूँगा।” बादशाह ने उसका प्रस्ताव मंजूर कर लिया।

बीरबल अर्थ समझने के लिए वहां से चल पड़ा। वह एक गाँव में पहुँचा। एक तो गर्मी के दिन, दूसरे रास्ते की थकन से परेशान व विवश होकर वह एक घर में घुस गया। घर के भीतर एक लड़की भोजन बना रही थी।

बेटी! क्या कर रही हो?” उसने पूछा। लडकी ने उत्तर दिया, “आप देख नहीं रहे हैं। मैं बेटी को पकाती और माँ को जलाती हूँ।”

अच्छा, दो का हाल तो तुमने बता दिया, तीसरा तेरा बापू क्या कर रहा है और कहाँ है?” बीरबल ने पूछा।

वह मिट्टी में मिट्टी मिला रहे हैं।” लडकी ने जवाब दिया। इस जवाब को सुनकर बीरबल ने फिर पूछा, “तेरी माँ क्या कर रही है?” एक को दो कर रही है।” लडकी ने कहा।

बीरबल को लडकी से ऐसी आशा नहीं थी। परन्तु वह ऐसी पण्डित निकली कि उसके उत्तर से वह एकदम आश्चर्यचकित रह गया। इसी बीच उसके माता-पिता भी आ पहुँचे। बीरबल ने उनसे सारा समाचार कह सुनाया। लडकी का पिता बोला, मेरी लड़की ने आपको ठीक उत्तर दिया है। अरहर की दाल अरहर की सूखी लकड़ी से पक रही है। मैं अपनी बिरादरी का एक मुर्दा जलाने गया था और मेरी पत्नी पडोस में मसूर की दाल दल रही थी।” बीरबल लडकी की पहेली-भरी बातों से बड़ा खुश हुआ। उसने सोचा, शायद यहां बादशाह की पहेली का भेद खुल जाये, इसलिए लडकी के पिता से उपरोक्त पहेली का अर्थ पूछा।

यह तो बड़ी ही सरल पहेली है। इसका अर्थ मैं आपको बतलाता हूँ – धरती और आकाश दो ढक्कन हैं। उनके अन्दर निवास करने वाला मनुष्य खरबूजा है। वह उसी प्रकार मृत्यु आने पर मर जाता है, जैसे गर्मी से मोम पिघल जाती है।” उस किसान ने कहा। बीरबल उसकी ऐसी बुध्दिमानी देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे पुरस्कार देकर दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। वहाँ पहुँचकर बीरबल ने सभी के सामने बादशाह की पहेली का अर्थ बताया। बादशाह ने प्रसन्न होकर बीरबल को ढेर सारे इनाम दिये।

बादशाह का सपना

एक रात सोते समय बादशाह अकबर ने यह अजीब सपना देखा कि केवल एक छोड़कर उनके बाकी सभी दांत गिर गए हैं।

फिर अगले दिन उन्होंने देश भर के विख्यात ज्योतिषियों व नुजूमियों को बुला भेजा और और उन्हें अपने सपने के बारे में बताकर उसका मतलब जानना चाहा।

सभी ने आपस में विचार-विमर्श किया और एक मत होकर बादशाह से कहा, ‘‘जहांपनाह, इसका अर्थ यह है कि आपके सारे नाते-रिश्तेदार आपसे पहले ही मर जाएंगे।’’

यह सुनकर अकबर को बेहद क्रोध हो आया और उन्होंने सभी ज्योतिषियों को दरबार से चले जाने को कहा। उनके जाने के बाद बादशाह ने बीरबल से अपने सपने का मतलब बताने को कहा।

कुछ देर तक तो बीरबल सोच में डूबा रहा, फिर बोला, ‘‘हुजूर, आपके सपने का मतलब तो बहुत ही शुभ है। इसका अर्थ है कि अपने नाते-रिश्तेदारों के बीच आप ही सबसे अधिक समय तक जीवित रहेंगे।’’

बीरबल की बात सुनकर बादशाह बेहद प्रसन्न हुए। बीरबल ने भी वही कहा था जो ज्योतिषियों ने, लेकिन कहने में अंतर था। बादशाह ने बीरबल को ईनाम देकर विदा किया।