बीमारियों की वजह बन सकता है मोटापा

दुनियाभर में लगभग 2 अरब 10 करोड़ लोग मोटापे के शिकार हैं, जो चिंता का विषय है। मोटापे के प्रकोप और खतरे को देखते हुए 15 से 19 अक्तूबर तक विश्व मोटापा जागरूकता सप्ताह मनाया जाता है। ऐसे में इस समस्या के बारे में जानना बेहत जरूरी है। जानकारी दे रही हैं शमीम खान
मोटापा एक मेडिकल कंडीशन है, जिसमें शरीर पर वसा की परतें इतनी मात्रा में जम जाती हैं कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाती हैं। आज दुनिया की कम-से-कम 20 प्रतिशत आबादी मोटापे से ग्रस्त है। मोटापे को बीमारी नहीं माना जाता, लेकिन माना जाता है कि यह 53 बीमारियों की वजह बन सकता है। इसकी वजह से डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हार्ट फेलियर, अस्थमा, कोलेस्ट्रॉल, अत्यधिक पसीना आना, जोड़ों में दर्द, बांझपन आदि का खतरा बढ़ जाता है। खान-पान की गलत आदतें, जीवनशैली में बदलाव और शारीरिक सक्रियता की कमी के कारण यह समस्या लगातार गंभीर हो रही है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार भारत में स्कूल जाने वाले 20 प्रतिशत बच्चे ओवरवेट हैं।
मोटापे के कारण
तनाव
तनाव के कारण शरीर में कई हार्मोन्स का स्तर बढ़ जाता है, जिनमें एड्रीनलीन और कार्टिसोल प्रमुख हैं। इससे शरीर की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है और पाचन तंत्र गड़बड़ा जाता है, जिससे मोटापा बढ़ता है।
गर्भावस्था
गर्भावस्था के दौरान बच्चे के विकास के कारण महिलाओं का भार बढ़ जाता है। बच्चे के जन्म के बाद भी कई महिलाओं को भार कम करना मुश्किल लगता है और वे मोटापे की शिकार हो जाती हैं।
हार्मोन असंतुलन
हार्मोन असंतुलन पुरुषों और महिलाओं में मोटापे का एक और प्रमुख कारण है, लेकिन यह महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है, क्योंकि उनमें हार्मोन असंतुलन अधिक होता है। तनाव, अनिद्रा, गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन और मेनोपॉज के कारण महिलाओं में हार्मोन्स के स्तर में तेजी से बदलाव आता है, जिस कारण पेट के आसपास चर्बी बढ़ जाती है।
बीमारियां
कई बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, कैंसर, हाइपर थारॉइडिज्म और शरीर में कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर भी मोटापे का कारण होते हैं।
दवाओं के दुष्प्रभाव
कुछ दवाएं जैसे गर्भनिरोधक गोलियां, स्टेरॉयड हार्मोन, डायबिटीज, अवसाद और ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने वाली दवाओं के कारण भी भार बढ़ जाता है।
अनिद्रा
अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि नींद की कमी मोटापे को बढ़ा देती है। जो लोग सामान्य से कम सोते हैं, वे अधिक कैलोरी और कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन खाने को प्राथमिकता देते हैं, जो मोटापा बढ़ने का एक कारण बन जाता है।
शारीरिक सक्रियता की कमी
गैजेट्स के बढ़ते चलन ने शारीरिक सक्रियता में अत्यधिक कमी ला दी है। लोग ऑफिस और घरों में पूरा दिन कम्प्यूटर या टीवी के सामने बिताते हैं, सीढियां चढ़ने के बजाय लिफ्ट का उपयोग करते हैं, पैदल चलने या साइकिल चलाने के बजाय गाडियों में सफर करते हैं, आउटडोर गेम खेलने के बजाय वीडियो गेम खेलना या टीवी देखना पसंद करते हैं। यह मोटापा बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण है।
उम्र बढ़ना
उम्र बढ़ने का मोटापे से सीधा संबंध है। उम्र बढ़ने के साथ मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं, जिससे उनकी कैलोरी जलाने की क्षमता प्रभावित होती है। यह समस्या उन लोगों में और बढ़ जाती है, जो शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होते।
आनुवंशिक कारण
मोटापा बढ़ाने में आनुवंशिक कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता मोटे हैं, जिनकी मेटाबॉलिज्म की दर धीमी है या जिनको डायबिटीज है, उनके मोटापे की चपेट में आने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।
कैसे घटाएं बढ़ा हुआ वजन
खाली पेट कतई न रहें। हर तीन या साढ़े तीन घंटे में भोजन करें। अनाज अधिक मात्रा में खाएं। कोशिश करें कि ओट, बाजरा, गेहूं आपकी खुराक में शामिल हों।
हरी सब्जियां जैसे पालक, मेथी और सरसों खूब खाएं। जितनी बार भोजन करें, उतनी बार आपकी थाली में एक ऐसा पकवान जरूर हो, जिसमें प्रोटीन पाया जाता हो।
पेट और कमर की चर्बी को कम करने के लिए पवनमुक्तासन, जानुशिरासन, पश्चिमोतानासन, मण्डूकासन, उष्ट्रासन,धनुरासन, भुजंगासन, उतानपादासन, नौकासन तथा शशांकासन करें।
घरेलू नुस्खे
रोज सुबह एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद मिला कर पिएं।
एक गिलास पानी में अदरक के कुछ टुकड़े डाल कर उबाल लें, इस पानी को निथार लें। इसमें दो चम्मच नीबू का रस डाल कर पी लें। यह भूख कम करता है।
एक कप गरम पानी में तीन चम्मच नीबू का रस, 0.25 चम्मच काली मिर्च और एक चम्मच शहद मिला कर दिन में एक बार तीन महीने तक पिएं।
ग्रीन टी भी वजन कम करने के लिए बहुत अच्छी है।
मोटापे के दुष्प्रभाव
ऐसे लोगों को चलने, सांस लेने और बैठने में परेशानी होती है।
शरीर में वसा की मात्रा अधिक होने पर सोडियम इकट्ठा हो जाता है। इससे रक्त का दबाव बढ़ जाता है। यह दिल के लिए काफी नुकसानदेह होता है।
मोटापा टाइप टू डायबिटीज की मुख्य वजह है। वसा की मात्रा अधिक होने पर शरीर इंसुलिन के प्रति रेजिस्टेंट हो जाता है।
ब्रेन स्ट्रोक और कार्डिएक अरेस्ट की आशंका बढ़ जाती है।
शरीर के मध्य भाग में अतिरिक्त भार होना पेल्विस को आगे की ओर खींचता है और कमर के निचले हिस्से पर दबाव डालता है। इस अतिरिक्ति भार को संभालने के लिए कमर आगे की ओर झुक जाती है।
वजन अधिक बढ़ने से रीढ़ की हड्डी के छोटे-छोटे जोड़ों में टूट-फूट जल्दी होती है और डिस्क भी जल्दी खराब हो जाती है।
क्या है उपचार
वजन घटाने का सबसे कारगर तरीका खान-पान को नियंत्रित रखना और नियमित रूप से व्यायाम करना है, लेकिन जिन लोगों के लिए यह उपाय कारगर नहीं होते या जो अत्यधिक मोटे हैं, उनके लिए मोटापा कम करने के लिए कई उपचार भी हैं।
वेरी लो कैलोरी डाइट (वीएलसीडी)
इसमें एक दिन में 1,000 से भी कम कैलोरी का सेवन किया जाता है। इससे भार तो तेजी से कम होता है, लेकिन यह हर किसी के लिए उपयुक्त और सुरक्षित नहीं है। इसलिए किसी डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
टमीटक (एब्डोमिनोप्लास्टी)
इसकी सलाह उन्हीं लोगों को दी जाती है, जिनका स्वास्थ्य अच्छा होता है। यह उन लोगों के लिए कारगर है, जिनके पेट पर अत्यधिक मात्रा में वसा जमी है या वजन कम करने के कारण पेट की त्वचा ढीली पड़ गई है। सर्जरी के द्वारा अतिरिक्त वसा, त्वचा, मांसपेशियां, ऊतकों को निकाल दिया जाता है।
गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी
वेट-लॉस सर्जरियों को सामूहिक रूप से बैरियाटिक सर्जरी कहते हैं। इसमें से गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी सबसे अधिक प्रचलित है, क्योंकि इसमें दूसरी सर्जरियों की तुलना में जटिलताएं कम होती हैं। यह दो प्रकार से की जाती है। एक तो आपके भोजन की मात्रा को नियंत्रित करके, दूसरा जो भोजन आप खाते हैं, उसमें से पोषक तत्वों का अवशोषण कम करके या दोनों के द्वारा।
लिपोसक्शन
इसमें त्वचा में एक छोटा-सा कट लगा कर एक पतली और छोटी सी टय़ूब को डाला जाता है। डॉंक्टर इस टय़ूब को त्वचा के अंदर शरीर के उन भागों में घुमाते हैं, जहां वसा का जमाव अधिक है। आधुनिक तकनीकों ने लिपोसक्शन को पहले से अधिक सुरक्षित, आसान और कम पीड़ादायक बना दिया है।
वजन नियंत्रित कैसे रखें
नाश्ता नहीं करना मोटापे का एक प्रमुख कारण है। नाश्ता न करने से वजन को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल होता है।
ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर का एक निश्चित समय बना लें। इससे शरीर इस रूटीन को फॉलो करने लगेगा।
सुबह उठने के बाद ज्यादा देर तक भूखे न रहें और रात को सोने से दो घंटा पहले खाना खा लें।
सब्जियां और फल खाएं। इससे आपका पेट भी भरा हुआ लगेगा और खाने में कैलोरी भी कम आएगी।
मेगा मील की बजाय मिनी मील खाएं। हर तीन-चार घंटे में कुछ खाते रहें। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि उन लोगों में वसा का जमाव ज्यादा होता है, जो कम बार में अधिक भोजन खाते हैं।
फाइबर मेटाबॉलिज्म को दुरुस्त रखता है, भूख को कम करता है। भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ा दें।
व्यायाम-योग से मोटापे को काबू में रखा जा सकता है। इससे पाचन दुरुस्त रहता है, वसा कम होती है।
ऐसी चीजें जिनमें स्टार्च हो जैसे आलू, मटर या कॉर्न का सेवन कम करें। एक दिन में लगभग छह सौ ग्राम हरी सब्जियां खाने की कोशिश करें।
दिन के पहले हिस्से में ही फल खाएं। ज्यादा मिठास वाले फलों से परहेज करें।

बोध योग से मिलती संतापों से मुक्ति

व्यक्ति एक शरीर में रहता है। शरीर ‘जड़ जगत’ का हिस्सा है। व्यक्ति के शरीर में एक मस्तिष्क है जो ‘विचार’ करता है। मस्तिष्क विचार करता है इसलिए विचार भी जड़ जगत का हिस्सा है। विचार जुड़ा होता है प्राण से अर्थात वायु से

हमारी श्वासों की लय अनुसार विचार बढ़ते और घटते हैं। ‍जीभ को स्थिर करके श्वासों को रोक देने से कुछ क्षण के लिए विचार भी रुक जाते हैं। तो सिद्ध हुआ की जड़ से बढ़कर है प्राण।img1120407135_1_1

शरीर में प्राण है तभी तक विचार है। लेकिन इस शरीर (जड़), प्राण (वायु) से भी बढ़कर है मन (चित्त)। शरीर और प्राण का आधार है मन या माइंड। मन जिसमें कल्पनाएं, भावनाएं, स्मृतियां और विचार विचरण करता है। मन जुड़ा है सूक्ष्म शरीर से।

अब सिद्ध हुआ की जड़ से बढ़ा प्राण, प्राण से बढ़ा मन या चित्त। हमारे मन और मस्तिष्क पर विचार, कल्पना, आदत, भावना, क्रोध, भय आदि सभी मानसिक गतिविधियों के बादल छाए रहते हैं। इससे ही शरीर और प्राण संचालित होकर रोगी और निरोगी होते रहते हैं। इस समस्त तरह की गतिविधियों को रोक देने का नाम है- बोध योग।

सबसे बढ़कर बोध : शरीर से बढ़कर प्राण, प्राण से बढ़कर मन और मन से बढ़कर बोध। शरीर को साधने के लिए आसन है। प्राण को साधने के लिए प्राणायाम है। मन को साधने के लिए प्रत्याहार है और शरीर, प्राण, मन में सुप्त अवस्था में पड़े बोध को जगाने के लिए है ध्यान।

योग में बोध के संबंध में बहुत कुछ कहा गया है। शरीर, मन-मस्तिष्क की कल्पनाएं, ज्ञान, विचार आदि हमें रोगी बनाने वाले और धोका देने वाले रहते हैं। इससे व्यक्ति कभी भी सच्चाई को नहीं जान सकता, लेकिन जिसका बोध जाग्रत है उसको शरीर और मन में होने वाली प्रत्येक गतिविधियों का पूर्व ही ज्ञान हो जाता है।

प्रत्यक्ष और स्वज्ञान को जगाओं : आंखों देखा और कानों सुना भी गलत होता है। सदा शुद्ध और सात्विक भोजन करने और रहने के बावजूद भी व्यक्ति रोगग्रस्त हो सकता है। तब वह क्या है जिससे हमारे आसपास का आभामंडल शुभ्र वर्ण का हो जाता है? वह है सिर्फ बोध। बोध से प्रत्यक्ष और स्व का ज्ञान हो जाता है।

बोध कई प्रकार से होता है- ध्यान करने से। सदा में बने रहने से या लगातार प्राणायाम का अभ्यास करते रहने से। प्रत्यक्ष बोध और स्वबोध जरूरी है। इससे प्रत्येक गतिविधियां दूध का दूध और पानी के पानी की तरह स्पष्ट होने लगती है। दरअसल हर तरह की तंद्रा के टूटने से बोध जाग्रत होता है। विचार, कल्पना, भावना, स्वप्न और सुषुप्ति ये सभी बोहोशी (तंद्रा) के हिस्से हैं।

शांत कर देता है बोध : बोध उसी तरह है जैसे किसी नदी में तूफान होने से नदी के अंदर का कुछ भी दिखाई नहीं देता है और नदी का जल भी अपना मूल स्वरूप खो देता है लेकिन जब नदी शांत रहती है तब सब कुछ स्पष्ट हो जाता है और उसका सारा कचरा भी नीचे जम जाता है। उसी तरह अशांत शरीर और मन रोगग्रस्त हो जाता है।

बोध के लाभ : बोध के जाग्रत होने से व्यक्ति की सभी तरह की मानसिक परेशानियां मिट जाती है। प्राणावायु सुचारू रूप से संचालित होने से शरीर निरोगी बना रहता है। सदा बोधपूर्ण जीवन यापन करने वाले व्यक्ति की स्वप्न और सुषुप्ति अवस्था समाप्त हो जाती है और वह निरंतर आनंदित अवस्था में रहता है।

मृत्यु के बाद ऐसे व्यक्ति को शरीर छुटने का पूरा-पूरा भान रहता है और उसके पास होती है नए जन्म के चयन की ‍शक्ति। – संदर्भ योग दर्शन, योग सूत्र

कंप्यूटर और योग

इस बार हम योग टिप्स लाएँ हैं उन लोगों के लिए जो कंप्यूटर पर लगातार आठ से दस घंटे काम करके कई तरह के रोगों का शिकार हो जाते हैं या फिर तनाव व थकान से ग्रस्त रहते हैं। निश्‍चित ही कंप्यूटर पर लगातार आँखे गड़ाए रखने के अपने नुकसान तो हैं ही इसके अलावा भी ऐसी कई छोटी-छोटी समस्याएँ भी पैदा होती है, जिससे हम जाने-अनजाने लड़ते रहते हैं। तो आओं जाने की इन सबसे कैसे निजात पाएँ।

नुकसान : स्मृति दोष, दूर दृष्टि कमजोर पड़ना, चिड़चिड़ापन, पीठ दर्द, अनावश्यक थकान आदि। कंप्यूटर पर लगातार काम करते रहने से हमारा मस्तिष्क और हमारी आँखें इस कदर थक जाती है कि केवल निद्रा से उसे राहत नहीं मिल सकती। देखने में आया है कि कंप्यूटर पर रोज आठ से दस घंटे काम करने वाले अधिकतर लोगों को दृष्टि दोष हो चला है। वे किसी न किसी नंबर का चश्मा पहने लगे हैं। इसके अलावा उनमें स्मृति दोष भी पाया गया। काम के बोझ और दबाव की वजह से उनमें चिड़चिड़ापन भी आम बात हो चली है। यह बात अलग है कि वह ऑफिस का गुस्सा घर पर निकाले। कंप्यूटर की वजह से जो भारी शारीरिक और मानसिक हानि पहुँचती है, उसकी चर्चा विशेषज्ञ अकसर करते रहे हैं।

बचाव : पहली बात कि आपका कंप्यूटर आपकी आँखों के ठीक सामने रखा हो। ऐसा न हो की आपको अपनी आँखों की पुतलियों को उपर उठाये रखना पड़े, तो जरा सिस्टम जमा लें जो आँखों से कम से कम तीन फिट दूर हो। दूसरी बात कंप्यूटर पर काम करते वक्त अपनी सुविधानुसार हर 5 से 10 मिनट बाद 20 फुट दूर देखें। इससे दूर ‍दृष्‍टि बनी रहेगी। स्मृति दोष से बचने के लिए अपने दिनभर के काम को रात में उल्टेक्रम में याद करें। जो भी खान-पान है उस पर पुन: विचार करें। थकान मिटाने के लिए ध्यान और योग निद्रा का लाभ लें।

योग एक्सरसाइज : इसे अंग संचालन भी कहते हैं। प्रत्येक अंग संचालन के अलग-अलग नाम हैं, लेकिन हम विस्तार में न जाते हुए बताते हैं कि आँखों की पुतलियों को दाएँ-बाएँ और ऊपर-नीचे ‍नीचे घुमाते हुए फिर गोल-गोल घुमाएँ। इससे आँखों की माँसपेशियाँ मजबूत होंगी। पीठ दर्द से निजात के लिए दाएँ-बाएँ बाजू को कोहनी से मोड़िए और दोनों हाथों की अँगुलियों को कंधे पर रखें। फिर दोनों हाथों की कोहनियों को मिलाते हुए और साँस भरते हुए कोहनियों को सामने से ऊपर की ओर ले जाते हुए घुमाते हुए नीचे की ओर साँस छोड़ते हुए ले जाएँ। ऐसा 5 से 6 बार करें ‍फिर कोहनियों को विपरीत दिशा में घुमाइए। गर्दन को दाएँ-बाएँ, फिर ऊपर-नीचे नीचे करने के बाद गोल-गोल पहले दाएँ से बाएँ फिर बाएँ से दाएँ घुमाएँ। बस इतना ही। इसमें साँस को लेने और छोड़ने का ध्यान जरूर रखें।

योग पैकेज : आसनों में ताड़ासन, अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, ब्रह्म मुद्रा, नौकासन और विपरीत नौकासन। प्राणायामों में नाड़ी शोधन और कपालभाति। फिर शवासन में योग निद्रा का मजा लें। ध्यान में आप करें विपश्यना या फिर सिर्फ ध्यान दें साँसों के आवागमन पर। गहरी-गहरी साँस लें और छोड़ें। और इस लेने और छोड़ने की क्रिया पर ही पूरा ध्‍यान केंद्रित कर इसका मजा लें।

‘विचार योग’ से पाएं सेहत, खुशी और सफलता

अजीब है कि कोई दवा नहीं, एक्सरसाइज नहीं और कोई भी इलाज नहीं फिर भी लोग सोचकर कैसे ठीक हो सकते हैं? दुनिया में ऐसे बहुत से चमत्कार हुए हैं, लेकिन इसके पीछे के रहस्य को कोई नहीं जानता।

आज आप जो भी हैं वह आपके पिछले विचारों का परिणाम है-भगवान बुद्ध।img1120329123_1_1

सोचे अपनी सोच पर कि वह कितनी नकारात्म और कितनी सकारात्मक है, वह कितनी सही और कितनी गलत है। आप कितना अपने और दूसरों के बारे में अच्‍छा और बुरा सोचते रहते हैं। आपकी सोच को स्वस्थ बनाता है। सोच के स्वस्थ बनने से चित्त निर्मल होने लगता है। चित्त के निर्मल रहने से सेहत, खुशी और सफलता मिलती है तो विचार करें अच्छे विचार पर।

कैसे होगा यह संभव : योगश्चित्त्वृतिनिरोध:- योग चित्त की वृत्तियों का निरोध है। योग के आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार आदि सभी उपक्रम आपके चित्त को शुद्ध और बुद्ध बनाने के ही उपक्रम हैं। चित्त से ही व्यक्ति का शरीर, मन, मस्तिष्क और जीवन संचालित होता है। चित्त यदि रोग ग्रस्त है तो इसका असर सभी पर पड़ता है। रोग की उत्पत्ति बाहर की अपेक्षा भीतर से कहीं ज्यादा होती है तो समझे कि जैसे भीतर वैसा बाहर।

वैज्ञानिक कहते हैं मानव मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग हजारों विचार आते हैं। उनमें से ज्यादातर नकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचार इसलिए अधिक होते हैं कि जब हम कोई नकारात्मक घटना देखते हैं जिसमें भय, राग, द्वैष, सेक्स आदि हो तो वह घटना या विचार हमारे चित्त की इनर मेमोरी में सीधा चला जाता है जबकि कोई अच्छी बातें हमारे चित्त की आउटर मेमोरी में ही घुम फिरकर दम तोड़ देती है।

दो तरह की मेमोरी होती है-इनर और आउटर। इनर मेमोरी में वह डाटा सेव हो जाता है, जिसका आपके मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़श है और फिर फिर वह डाटा कभी नहीं मिटता। रात को सोते समय इनर मेमोरी सक्रिय रहती है और सुबह-सुबह उठते वक्त भी इनर मेमोरी जागी हुई होती है। अपनी इनर मेमोरी अर्थात चित्त से व्यर्थ और नकारात्मक डाटा को हटाओ और सेहत, सफलता, खुशी और शांति की ओर एक-एक कदम बढ़ाओ।

कैसे बन जाता है व्यक्ति दुखी और रोगी : जो भी विचार निरंतर आ रहा है वह धारणा का रूप धर लेता है। अर्थात वह हमारी इनर मेमोरी में चला जाता है। आपके आसपास बुरे घटनाक्रम घटे हैं और आप उसको बार-बार याद करते हैं तो वह याद धारणा बनकर चित्त में स्थाई रूप ले लेगी। बुरे विचार या घटनाक्रम को बार-बार याद न करें।

विचार ही वस्तु बन जाते हैं। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि हम जैसा सोचते हैं वैसे ही भविष्य का निर्माण करते हैं। यदि आपको अपनी को लेकर भय है, सफलता को लेकर संदेह है और आप विश्वास खो चुके हैं तो समझ जाएं की चित्त रोगी हो गया है। किसी व्यक्ति के जीवन में बुरे घटनाक्रम बार-बार सामने आ जाते हैं तो इसका सीधा सा कारण है वह अपने अतीत के बारे में हद से ज्यादा विचार कर रहा है। बहुत से लोग डरे रहते हैं इस बात से कि कहीं मुझे भी वह रोग न हो जाए या कहीं मेरे साथ भी ऐसा न हो जाए….आदि। सोचे सिर्फ वर्तमान को सुधारने के बारे में।

कैसे होगा यह संभव : योग के तीन अंग ईश्वर प्राणिधान, स्वाध्याय और धारणा से होगा यह संभव। जैसा ‍कि हमने उपर लिखा की इनर और आउटर मेमोरी होती है। इनर मेमोरी रात को सोते वक्त और सुबह उठते वक्त सक्रिय रही है उस वक्त वह दिनभर के घटनाक्रम, विचार आदि से महत्वपूर्ण डाडा को सेव करती है। इसीलिए सभी धर्म ने उस वक्त को ईश्वर प्रार्थना के लिऋ नियु‍क्त किया है ताकि तुम वह सोचकर सो जाए और वही सोचकर उठो जो शुभ है। इसीलिए योग में ‘ईश्वर प्राणिधान’ का महत्व है।

संधिकाल अर्थात जब सूर्य उदय होने वाला होता है और जब सूर्य अस्त हो जाता है तो उक्त दो वक्त को संधिकाल कहते हैं- ऐसी दिन और रात में मिलाकर कुल आठ संधिकाल होते हैं। उस वक्त हिंदू धर्म और योग में प्रार्थना या संध्यावंन का महत्व बताया गया है। फिर भी प्रात: और शाम की संधि सभी के लिए महत्वपूर्ण है जबकि हमारी इनर मेमोरी सक्रिय रहती है। ऐसे वक्त जबकि पक्षी अपने घर को लौट रहे होते हैं…संध्यावंदन करते हुए अच्छे विचारों पर सोचना चाहिए। जैसे की मैं सेहतमंद बना रहना चाहता हूं।img1110714026_1_1

ईश्वर प्राणिधान: सिर्फ एक ही ईश्वर है जिसे ब्रह्म या परमेश्वर कहा गया है। इसके अलावा और कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। ईश्वर निराकार है यही अद्वैत सत्य है। ईश्वर प्राणिधान का अर्थ है, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण। ईश्वर के प्रति पूर्ण विश्वास। न देवी, न देवता, न पीर और न ही गुरु घंटाल।

एक ही ईश्वर के प्रति अडिग रहने वाले के मन में दृढ़ता आती है। यह दृढ़ता ही उसकी जीत का कारण है। चाहे सुख हो या घोर दुःख, उसके प्रति अपनी आस्था को डिगाएँ नहीं। इससे आपके भीतर पाँचों इंद्रियों में एकजुटता आएगी और लक्ष्य को भेदने की ताकत बढ़ेगी। वे लोग जो अपनी आस्था बदलते रहते हैं, भीतर से कमजोर होते जाते हैं।

विश्वास रखें सिर्फ ‘ईश्वर’ में, इससे बिखरी हुई सोच को एक नई दिशा मिलेगी। और जब आपकी सोच सिर्फ एक ही दिशा में बहने लगेगी तो वह धारणा का रूप धर लेगी और फिर आप सोचे अपने बारे में सिर्फ अच्‍छा और सिर्फ अच्छा। ईश्वर आपकी मनोकामना अवश्य पूरी करेगा।

स्वाध्याय : स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। अच्छे विचारों का अध्ययन करना और इस अध्ययन का अभ्यास करना। आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें, वह सब कुछ जिससे आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो साथ ही आपको इससे खुशी ‍भी मिलती हो। तो बेहतर किताबों को अपना मित्र बनाएँ।

जीवन को नई दिशा देने की शुरुआत आप छोटे-छोटे संकल्प से कर सकते हैं। संकल्प लें कि आज से मैं बदल दूँगा वह सब कुछ जिसे बदलने के लिए मैं न जाने कब से सोच रहा हूँ। अच्छा सोचना और महसूस करना स्वाध्याय की पहली शर्त है।

धारणा से पाएं मनचाही सेहत, खुशी और सफलता : जो विचार धीरे-धीरे जाने-अनजाने दृढ़ होने लगते हैं वह धारणा का रूप धर लेते हैं। यह भी कि श्वास-प्रश्वास के मंद व शांत होने पर, इंद्रियों के विषयों से हटने पर, मन अपने आप स्थिर होकर शरीर के अंतर्गत किसी स्थान विशेष में स्थिर हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव भी एक ही दिशा में होता है। ऐसे चित्त की शक्ति बढ़ जाती है, फिर वह जो भी सोचता है वह घटित होने लगता है। जो लोग दृढ़ निश्चयी होते हैं, अनजाने में ही उनकी भी धारणा पुष्ट होने लगती है।

योग के आसन हैं एरोबिक्स नहीं…

के आसनों को का विकल्प समझने की भूल न करें। योग के आसनों को मन और शरीर के सम्मिलित योग से साधने की जरूरत होती है जबकि एरोबिक्स शरीर की एक यांत्रिक क्रिया भर है। योग के आसन कभी किताबों से सीखकर सिद्ध नहीं होते। इन्हें प्रशिक्षित योगाचार्यों से सीखना अच्छा होता है। इसकी वजह यह है कि करते समय अगर आप गलत ढंग से साँस ले रहे हैं तो आपको फायदे के स्थान पर नुकसान हो सकता है। इसकी वजह से आपके मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति में कमी हो सकती है और ब्लैक आउट भी हो सकता है। इससे हॉर्निया तक होने की आशंका रहती है। img1130214061_1_1

पैदल चलना और योगासन करना किसी के लिए भी सबसे सुरक्षित शुरुआती कसरत हो सकती है। योगासनों का चलन अनादि काल से जारी है। इसमें साँस लेने और आसन करने की असंख्य तकनीकें मौजूद हैं। पैदल चलने और एरोबिक्स की कसरतों में पसीना बहाने में भले ही कोई सुरक्षा तकनीक अपनाने की जरूरत हो लेकिन आसनों को तनाव शैथिल्य उत्पन्ना करने वाला माना जाता है, इसलिए विशेषज्ञ की निगरानी चाहिए। वे प्रशिक्षक जिन्हें आसन सिद्ध हो चुका है उनके शरीर में पर्याप्त लचीलापन है और वे श्वास-प्रच्छवास में महारत हासिल कर चुके हैं। वे ही आपको साँसों पर नियंत्रण साधने का मंत्र सिखा सकते हैं।

वार्मअप जरूर करें : किसी भी एक्सरसाइज से पहले वार्मअप करना ठीक होता है। सर्दियों में भी योगासनों की शुरुआत से पहले वार्मअप करना चाहिए। बिना वार्मअप किए एकाएक योगासन शुरू करने से शरीर के ठंडे ऊतक बहुत जल्दी क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। योगासनों को करने से पहले ढीले वस्त्र पहनें ताकि मूवमेंट आसान रहे। हमेशा साँस कब अंदर भरना है और कब छोड़ना है इस पर ध्यान दें। आसनों की शुरुआत से पहले ही साँस लेने की तकनीक सीख लें। आसन की तीन स्थितियाँ होती हैं। आसन की शुरुआती स्थिति, मध्य स्थिति एवं मोक्ष की स्थिति।

आसन कभी भी जल्दबाजी में नहीं किए जाते। योग का अर्थ है मन और शरीर का सम्मिलित प्रयास। एक स्थिति से दूसरी तक पहुंचने में धीरज रखें। धीरे धीरे शुरुआत करते हुए आसन की चरम स्थिति तक पहुंचे। इस स्थिति में थोड़ी देर रुकें। इस दौरान सांस की गति पर नियंत्रण हासिल होते ही आप महसूस करेंगे की आसन करना अब कितना सहज हो गया है। याद रखें कि योग कोई ऐसा खेल नहीं है जिसमें कोई हार या जीत होती हो।

कभी भी अपने योगाचार्य की भोंडी नकल करने का प्रयत्न न करें। योगाचार्य वर्षों के निरंतर अभ्यास के बाद आसन की चरम स्थिति तक पहुंच सके हैं। कभी भी क्लास के दूसर प्रशिक्षार्थियों से होड़ न करें। हर व्यक्ति का शरीर भिन्न होता है। इसलिए आप पहले दिन ही योगाचार्य की तरह आसन नहीं कर सकेंगे। याद रखें कि योगासनों का अभ्यास आपको दूसरी किसी भी कसरतों के मुकाबले अधिक खुश रखता है।

फेंफड़े शुद्ध करने के योगा टिप्स

व्यक्ति प्राकृतिक लेना भूल गया है। प्रदूषण और तनाव के कारण उसकी श्वास उखड़ी-उखड़ी और मंद हो चली है। यहां प्रस्तुत है श्वास को शुद्ध करने के योगा टिप्स

img1120515086_1_11.जहां भी प्रदूषण भरा माहौल हो वहां केवली प्राणायाम करने लगें और उस प्रदूषण भरे माहौल से बच निकलने का प्रयास करें। यदि रूमाल साथ रखते हैं तो केवली की आवश्यकता नहीं।

2.बदबू से बचें, यह उसी तरह है जिस तरह की हम खराब भोजन करने से बचते हैं। बेहतर इत्र या स्प्रे का इस्तेमाल करें। श्वासों की बदबू के लिए आयुर्वेदिक इलाज का सहारा ले सकते हैं।

3.क्रोध, राग, द्वैष या अन्य नकारात्मक भाव के दौरान नाक के दोनों छिद्रों से श्वास को पूरी ताकत से बाहर निकाल कर धीरे-धीरे पेट तक गहरी श्वास लें। ऐसा पांच बार करें।

4.अपनी श्वासों पर विशेष ध्यान दें कि कहीं वह उखड़ी-उखड़ी, असंतुलित या अनियंत्रित तो नहीं है। उसे सामान्य बनाने के लिए अनुलोम-विलोम कर लें।

5.पांच सेकंट तक गहरी श्वास अंदर लेकर उसे फेंफड़ों में भर लें और उसे 10 सेकंट तक रोककर रखें। 10 सेकंट के बाद उसे तब तक बाहर छोड़ते रहें जब तक की पेट पीठ की तरफ ना खिंचाने लगे।

6.नाक के छिद्रों का हमेशा साफ-सुधरा रखें। चाहें तो जलनेती या सूतनेती का सहारा ले सकते हैं।

7.सुगंध भी प्राकृतिक भोजन है। समय-समय पर सभी तरह की सुगंध का इस्तेमाल करते रहने से मन और शरीर में भरपूर उर्जा का संचार किया जा सकता है।

उचित, साफ, स्वच्छ और भरपूर हवा का सेवन सभी तरह के रोग और मानसिक तनाव को दूर कर उम्र को बढ़ाता है।

जानिए अष्टांग योग को

महर्षि पतं‍जलि के योग को ही या राजयोग कहा जाता है। योग के उक्त आठ अंगों में ही सभी तरह के योग का समावेश हो जाता है। भगवान बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग भी योग के उक्त आठ अंगों का ही हिस्सा है। हालांकि योग सूत्र के बुद्ध के बाद की रचना है।img1110916064_1_1

अष्टांग योग : इसी योग का सर्वाधिक प्रचलन और महत्व है। इसी योग को हम अष्टांग योग योग के नाम से जानते हैं। अष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग। दरअसल पतंजल‍ि ने योग की समस्त विद्याओं को आठ अंगों में श्रेणीबद्ध कर दिया है। लगभग 200 ईपू में महर्षि पतंजलि ने योग को लिखित रूप में संग्रहित किया और योग-सूत्र की रचना की। योग-सूत्र की रचना के कारण पतंजलि को योग का पिता कहा जाता है।

यह आठ अंग हैं- (1)यम (2)नियम (3)आसन (4) प्राणायाम (5)प्रत्याहार (6)धारणा (7) ध्यान (8)समाधि। उक्त आठ अंगों के अपने-अपने उप अंग भी हैं। वर्तमान में योग के तीन ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान।

योग सूत्र : 200 ई.पू. रचित महर्षि पतंजलि का ‘योगसूत्र’ योग दर्शन का प्रथम व्यवस्थित और वैज्ञानिक अध्ययन है। योगदर्शन इन चार विस्तृत भाग, जिन्हें इस ग्रंथ में पाद कहा गया है, में विभाजित है- समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद तथा कैवल्यपाद।

प्रथम पाद का मुख्य विषय चित्त की विभिन्न वृत्तियों के नियमन से समाधि के द्वारा आत्म साक्षात्कार करना है। द्वितीय पाद में पाँच बहिरंग साधन- यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार का विवेचन है। तृतीय पाद में अंतरंग तीन धारणा, ध्यान और समाधि का वर्णन है। इसमें योगाभ्यास के दौरान प्राप्त होने वाली विभिन्न सिद्धियों का भी उल्लेख हुआ है, किन्तु ऋषि के अनुसार वे समाधि के मार्ग की बाधाएँ ही हैं। चतुर्थ कैवल्यपाद मुक्ति की वह परमोच्च अवस्था है, जहाँ एक योग साधक अपने मूल स्रोत से एकाकार हो जाता है।

दूसरे ही सूत्र में योग की परिभाषा देते हुए पतंजलि कहते हैं- ‘योगाश्चित्त वृत्तिनिरोधः’। अर्थात योग चित्त की वृत्तियों का संयमन है। चित्त वृत्तियों के निरोध के लिए महर्षि पतंजलि ने द्वितीय और तृतीय पाद में जिस अष्टांग योग साधन का उपदेश दिया है, उसका संक्षिप्त परिचय निम्नानुसार है:-

1).यम: कायिक, वाचिक तथा मानसिक इस संयम के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय चोरी न करना, ब्रह्मचर्य जैसे अपरिग्रह आदि पाँच आचार विहित हैं। इनका पालन न करने से व्यक्ति का जीवन और समाज दोनों ही दुष्प्रभावित होते हैं।
(2).नियम: मनुष्य को कर्तव्य परायण बनाने तथा जीवन को सुव्यवस्थित करते हेतु नियमों का विधान किया गया है। इनके अंतर्गत शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान का समावेश है। शौच में बाह्य तथा आन्तर दोनों ही प्रकार की शुद्धि समाविष्ट है।
(3).आसन: पतंजलि ने स्थिर तथा सुखपूर्वक बैठने की क्रिया को आसन कहा है। परवर्ती विचारकों ने अनेक आसनों की कल्पना की है। वास्तव में आसन हठयोग का एक मुख्य विषय ही है। इनसे संबंधित ‘हठयोग प्रतीपिका’ ‘घरेण्ड संहिता’ तथा ‘योगाशिखोपनिषद्’ में विस्तार से वर्णन मिलता है।
(4).प्राणायाम: योग की यथेष्ट भूमिका के लिए नाड़ी साधन और उनके जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायाम मन की चंचलता और विक्षुब्धता पर विजय प्राप्त करने के लिए बहुत सहायक है।
(5).प्रत्याहार: इंद्रियों को विषयों से हटाने का नाम ही प्रत्याहार है। इंद्रियाँ मनुष्य को बाह्यभिमुख किया करती हैं। प्रत्याहार के इस अभ्यास से साधक योग के लिए परम आवश्यक अन्तर्मुखिता की स्थिति प्राप्त करता है।
(6).धारणा: चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।
(7).ध्यान: जब ध्येय वस्तु का चिंतन करते हुए चित्त तद्रूप हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।
(8).समाधि: यह चित्त की अवस्था है जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन में पूरी तरह लीन हो जाता है। योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है।

समाधि की भी दो श्रेणियाँ हैं : सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है।।इति।।

एंटी ग्रेविटी योग

भारत ही नहीं भारत के बाहर भी योग दर्शन और आसनों को तोड़मरोड़कर नए तरीके से प्रस्तुत किए जाने का प्रचलन चल पड़ा है। हो सकता है‍ कि कुछ लोग इसका पक्ष लें और कुछ नहीं।

बेलिबास योगा, क्रिश्चियन योगा, पॉवर योगा, बिक्रम हॉट योग, एरोबिक्स, डॉगी योगा, आदि नाम से योग के ऐसे अनेकों फॉर्मेट विकसित किए जा रहे हैं जिन्हें योग कहें या नहीं यह बहस का विषय हो सकता है।

योग के ऐसे अनेकों आसन, प्राणायाम, सुक्ष्म व्यायाम और मुद्राओं को विदेशियों ने अपने तरीके ने नए पोश्चर में ढाल दिया है और बाजार में योग के स्टूमेंट भी उपलब्ध करा दिए हैं। इसी के चलते अब प्रचलन में आ रहा है जिसे एंटि ग्रेविटी योगा या एरियल योगा भी कहते हैं।

द सन में छपी खबर के अनुसार सेलिब्रिटी के बीच जीरो ग्रेविटी या का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। एक योग प्रशिक्षक है जिसका नाम है एश पेटर्सन। कहा जाता है कि पामेला एंडरसन और जेरी हेली इसके क्लाइंट रहे हैं।

वेस्ट लंदन के चेल्सिया में स्थित पेटर्सन की योगा क्लास में प्रशिक्षण ले रही एक नव प्रशिक्षु बेला बैटल ने द सन को दिए एक इंटरव्यू में अपने अनुभव बताए। उन्होंने कहा कि यह आश्चर्यजनक रूप से आपकी बॉडी को स्लिम बनाता है। आपके थुलथुल पेट को समतल बनाने के लिए यह बेहतर है। मैंने जब इसकी क्लास ज्वाइन की तो बहुत ही रोमांचक अनुभव रहा।

दरअसल इस योग में छत पर एक हुक पर झुला लटका होता है। इस झुले की दो रस्सियों के माध्यम से उल्टा लटका जाता है। रस्सियों में जंघा और पेट का हिस्सा ही फंदेनुमा बंधा होता है और फिर व्यक्ति इस तरह उल्टे लटकर ही झुला झुलता है। इस योग को करने वाले का सिर जमीन से लगभग 3 से 4 फिट उँचा होता है। कुछ देर झुलते रहने के बाद ‍विश्राम किया जाता है। विश्राम करने के बाद आप इसे अपनी क्षमता अनुसार फिर से शुरू कर सकते हैं।

इसके लाभ बताए जाते हैं कि यह थुलथुले पेट को बहुत ही तेजी से समतल और कमर को झरहरा बना देता है साथ ही यह चेहरे की झाइयां मिटाकर उसमें कसावट भर देता है। आंखों के नीचे का कालापन मिटा देता हैं और चेहरे की त्वचा को पुन: जवान बना देता है।

वैसे तो इस तरह का योगा हमारे भारत के अखाड़ों में या करतब दिखाने वाले समूह में किया ही जाता रहा है। अखाड़ों में खंबे और रस्सी के साथ मलखम किया जाता है, लेकिन माना जाता है कि यह विदेशों में दंगल के एक कलाबाज डु सोलेल के दिमाग की उपज है।

प्रार्थना योग का महत्व

प्रार्थना का प्रचलन सभी धर्मों में है, लेकिन प्रार्थना करने के तरीके अलग-अलग हैं। तरीके कैसे भी हों जरूरी है प्रार्थना करना। भी अपने आपमे एक अलग ही योग है, लेकिन कुछ लोग इसे योग के तप और ईश्वर प्राणिधान का हिस्सा मानते हैं। प्रार्थना को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ प्राप्त करने की एक क्रिया भी माना जाता है।img1131015015_1_1

कैसे करें प्रार्थना : ईश्वर, भगवान, देवी-देवता या प्रकृति के समक्ष प्रार्थना करने से मन और तन को शांति मिलती है। मंदिर, घर या किसी एकांत स्थान पर खड़े होकर या फिर ध्यानमुद्रा में बैठककर दोनों हाथों को नमस्कारमुद्रा में ले आए। अब मन-मस्तिष्क को एकदम शांत और शरीर को पूर्णत: शिथिल कर लें और आंखें बद कर अपना संपूर्ण ध्यान अपने इष्ट पर लगाएं। 15 मिनट तक एकदम शांत इसी मुद्रा में रहें तथा सांस की क्रिया सामान्य कर दें।

प्रार्थना के फायदे : प्रार्थना में मन से जो भी मांगा जाता है वह फलित होता है। ईश्वर प्रार्थना को ‘संध्या वंदन’ भी कहते हैं। संध्या वंदन ही प्रार्थना है। यह आरती, जप, पूजा या पाठ, तंत्र, मंत्र आदि क्रियाकांड से भिन्न और सर्वश्रेष्ठ है।

प्रार्थना से मन स्थिर और शांत रहता है। इससे क्रोध पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इससे स्मरण शक्ति और चेहरे की चमक बढ़ जाती है। प्रतिदिन इसी तरह 15-20 मिनट प्रार्थना करने से व्यक्ति अपने आराध्य से जुड़ने लगता है और धीरे-धीरे उसके सारे संकट समाप्त होने लगते हैं। प्रार्थना से मन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है तथा शरीर निरोगी बनता है।

योग का इतिहास

योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को, पश्चात विवस्वान (सूर्य) को दिया। बाद में यह दो शाखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुर‍ि, वोढु और पच्चंशिख नारद-शुकादिकों ने शुरू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के बीच में ज्ञान, अध्यात्म और सांख्‍य योग नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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दूसरी कर्मयोग की परम्परा विवस्वान की है। विवस्वान ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया। उक्त सभी बातों का वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की प्रथम पुस्तक माना जाता है जिसका उत्पत्ति काल लगभग 10000 वर्ष पूर्व का माना जाता है। पुरातत्ववेत्ताओं अनुसार योग की उत्पत्ति 5000 ईपू में हुई। गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा।

भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले हुई थी। योग की सबसे आश्चर्यजनक खोज 1920 के शुरुआत में हुई। 1920 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने ‘सिंधु सरस्वती सभ्यता’ को खोजा था जिसमें प्राचीन हिंदू धर्म और योग की परंपरा होने के सबूत मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को 3300-1700 बी.सी.ई. पूराना माना जाता है।

‘यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन। स धीनां योगमिन्वति।।-ऋक्संहिता, मंडल-1, सूक्त-18, मंत्र-7। अर्थात- योग के बिना विद्वान का भी कोई यज्ञकर्म सिद्ध नहीं होता। वह योग क्या है? योग चित्तवृत्तियों का निरोध है, वह कर्तव्य कर्ममात्र में व्याप्त है।

स घा नो योग आभुवत् स राये स पुरं ध्याम। गमद् वाजेभिरा स न:।।- ऋ. 1-5-3 अर्थात वही परमात्मा हमारी समाधि के निमित्त अभिमुख हो, उसकी दया से समाधि, विवेक, ख्याति तथा ऋतम्भरा प्रज्ञा का हमें लाभ हो, अपितु वही परमात्मा अणिमा आदि सिद्धियों के सहित हमारी ओर आगमन करे।

उपनिषद में इसके पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं। कठोपनिषद में इसके लक्षण को बताया गया है- ‘तां योगमित्तिमन्यन्ते स्थिरोमिन्द्रिय धारणम्’

योगाभ्यास का प्रामाणिक चित्रण लगभग 3000 ई.पू. सिन्धु घाटी सभ्यता के समय की मोहरों और मूर्तियों में मिलता है। योग का प्रामाणिक ग्रंथ ‘योगसूत्र’ 200 ई.पू. योग पर लिखा गया पहला सुव्यवस्थित ग्रंथ है। हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म में योग का अलग-अलग तरीके से वर्गीकरण किया गया है। इन सबका मूल वेद और उपनिषद ही रहा है।

वैदिक काल में यज्ञ और योग का बहुत महत्व था। इसके लिए उन्होंने चार आश्रमों की ‍व्यवस्था निर्मित की थी। ब्रह्मचर्य आश्रम में वेदों की शिक्षा के साथ ही शस्त्र और योग की शिक्षा भी दी जाती थी। ऋग्वेद को 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के बीच लिखा गया माना जाता है। इससे पूर्व वेदों को कंठस्थ कराकर हजारों वर्षों तक स्मृति के आधार पर संरक्षित रखा गया।

भारतीय दर्शन के मान्यता के अनुसार वेदों को अपौरुषेय माना गया है अर्थात वेद परमात्मा की वाणी हैं तथा इन्हें करीब दो अरब वर्ष पुराना माना गया है। इनकी प्राचीनता के बारे में अन्य मत भी हैं। ओशो रजनीश ऋग्वेद को करीब 90 हजार वर्ष पुराना मानते हैं। 563 से 200 ई.पू. योग के तीन अंग तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान का प्रचलन था। इसे क्रिया योग कहा जाता है।

जैन और बौद्ध जागरण और उत्थान काल के दौर में यम और नियम के अंगों पर जोर दिया जाने लगा। यम और नियम अर्थात अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप और स्वाध्याय का प्रचलन ही अधिक रहा। यहाँ तक योग को सुव्यवस्थित रूप नहीं दिया गया था।

पहली दफा 200 ई.पू. पतंजलि ने वेद में बिखरी योग विद्या का सही-सही रूप में वर्गीकरण किया। पतंजलि के बाद योग का प्रचलन बढ़ा और यौगिक संस्थानों, पीठों तथा आश्रमों का निर्माण होने लगा, जिसमें सिर्फ राजयोग की शिक्षा-दीक्षा दी जाती थी।

भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से विस्तार दिया। इसके पश्चात पातंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया। इस रूप को ही आगे चलकर सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ वैष्णव और शाक्त पंथियों ने अपने-अपने तरीके से विस्तार दिया।

योग परम्परा और शास्त्रों का विस्तृत इतिहास रहा है। हालाँकि इसका इतिहास दफन हो गया है अफगानिस्तान और हिमालय की गुफाओं में और तमिलनाडु तथा असम सहित बर्मा के जंगलों की कंदराओं में।

जिस तरह राम के निशान इस भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह बिखरे पड़े हैं उसी तरह योगियों और तपस्वियों के निशान जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में आज भी देखे जा सकते हैं। बस जरूरत है भारत के उस स्वर्णिम इतिहास को खोज निकालने की जिस पर हमें गर्व है।