‘प्रोपगंडा’: प्रभु का प्रताप – शिवपूजन सहाय(व्यंग्य)

‘प्रोपगंडा’-प्रभु का प्रताप प्रचंड है – ‘जिन्‍हके जस-प्रताप के आगे, ससि मलीन रवि सीतल लागे।’ यदि आज ‘भूषण’ और ‘पद्माकर’ जीवित होते तो इनके यश और प्रताप का भड़कीला वर्णन कर सकते। मैं भला चूहे के चाम से दमामा कैसे मढ़ सकता हूँ? फिर भी आँख-कानवाला जन्‍तु हूँ, जिनके आँख-कान हैं उन्‍हें तो सुझा-बुझाकर प्रभुजी के प्रताप की बानगी दिखा ही दूँगा।

इनके प्रताप-सूर्य की किरणें सभी क्षेत्रों में प्रवेश कर गई हैं। राजनीतिक क्षेत्र में इनके जुए के नीचे कन्‍धा देने से कोई न बचा। साहित्यिक क्षेत्र में इन्‍हीं के प्रताप-प्रभाव से कुछ लोगों के चेहरे की लाली बनी हुई है। धार्मिक क्षेत्र में कितने ही लोग बाघम्‍बर ओढ़े दूसरों की हरी-भरी खेती चर रहे हैं। सामाजिक क्षेत्र में बहुतेरों की पाँचों उँगलियाँ घी में हैं – यद्यपि बाकी पाँच पर वे दिन गिन रहे हैं। व्‍यापारिक क्षेत्र में, इन्‍हीं प्रभुजी की छत्रच्‍छाया में, कुछ लोग जवानी की खैरात बाँट रहे हैं, नपुंसक को साँड़ बना रहे हैं, बाँझ की कोख आबाद कर रहे हैं, संतानों की बाढ़ रोकने का बीमा लेकर घुड़दौड़ का मुफ्त टिकट काट रहे हैं, ‘ययाति’ को यौवन-दान देते हैं और ‘सम्‍पाति’ के पंख उगाते हैं।

इन प्रभुजी का भक्‍त हुए बिना न कोई चाँदी काट सकता है, न मूँछ पर ताव दे सकता है, न हार में जीत का सपना देख सकता है, न किसी को उलटे छुरे से मूँड़ सकता है, न दुनिया की आँखों में धूल झोंक सकता है, न मिथ्‍या महोदधि का मंथन कर असत्‍यरत्‍न निकाल सकता है, न जादू की छड़ी फेरकर गीदड़ को शेर बना सकता है, न छछूँदर के सिर में चमेली का तेल लगा सकता है, न सूखी रेत में नाव चला सकता है, न ढोल की पोल छिपा सकता है, न कोयले पर मोहर की छाप लगा सकता है; इस दुनिया में कुछ भी नहीं कर सकता।

जिसके मन में इनका प्रताप व्‍याप गया, उसका बेड़ा पार समझिए। वह चाहे तो पानी में आग लगा दे, हवा में महल बना दे, आकाश में कुसुम खिला दे, अमावस को पूर्णिमा करके दिखा दे, तिल का ताड़ और राई का पहाड़ कर दे, कौए को हंस की चाल चला दे, एक सेज के दम्‍पति को दो सेजों पर सुला दे, पतोहू से सास का झोंटा नुचवा दे, भाई की पीठ में भाई की कटार भोंकवा दे, परदे की आड़ में रहकर रंगमंच पर खून-खराबा मचा दे, भीषण रेल-दुर्घटना में भी मौत को अँगूठा दिखा दे; चाहे जो कुछ कर दिखाना उसके बाएँ हाथ का खेल है; वह दुनिया को अँगुलियों पर नचा सकता है।

तुलसीदास ने लिखा है – ‘श्री रघुबीर प्रताप से सिन्‍धु तरे पाषान’ – शायद उन्‍हें इन प्रभुजी के प्रताप का पता न था। इनके प्रताप से ही अग्निवर्षा पुष्‍पवृष्टि बन जाती है, मारतों के पीछे और भागतों के आगे रहने वालों के सिर सेहरा बँध जाता है, दूध का धुला भी कालिख से पुता नजर आता है, लंकाकाण्‍ड में भी हिमालय की हिमवर्षा का दृश्‍य उपस्थित होता है, घनघोर महाभारत में भी केवल पाण्‍डवों का ही संहार होता है और कौरवों का बाल भी बाँका नहीं होता ! धन्‍य है प्रोपगंडा-प्रभु का प्रबल प्रताप ! ऐसा प्रताप तो रावण का भी न था ! उसकी बहन की नाक उसके जीते-जी काटी गई; मगर इन प्रभुजी की बहन ‘बेहयाई’ तो सारी दुनिया में छाती ताने फिरती है, कोई आँखें तो बराबर कर ले ! उसके देखते-ही-देखते उसका लंका-गढ़ एक वानर ने जला डाला, प्रभुजी का दुर्गम गढ़ ‘सफेद झूठ’ तो प्रलयाग्नि की लपटों को भी जुगनू की जोत बना देता है। प्रोपगंडा-प्रभु का पटतर पाना असंभव है।

श्री हनुमानजी राम प्रताप सुमिर‍कर कल्‍पनातीत कार्य कर डालते थे ! प्रोपगंडा-प्रभु का प्रताप भी यदि आपकी सुमिरनी का ध्‍येय बन जाय तो आप भी बिना हर्रे-फिटकरी के अपना रंग चोखा बना सकते हैं। तब तो राजनीति क्षेत्र में सदा आपकी पौ बारह है! आप मजे से खद्दर की खाल में स्‍वार्थ का भुसा भर सकते हैं। फिर तो मंच पर दहाड़िए और लंच में ‘व्हिस्‍की’ की चुसकी लीजिए। लच्‍छेदार भाषा से वाग्‍जाल बुनकर बुद्धुओं को फँसाइए। वाक्प्रपंच का ही तो यह युग है। प्रभु-प्रताप से आप में ऐसी वचनचातुरी आ जाएगी कि आप दुनिया को चकमा देकर काजल की कोठरी से भी बेदाग निकल जाइएगा। आपके प्रतापी प्रभु की बहन खुद ही दुनिया की नाक काट लेगी। आपके प्रभु के गढ़ में शत्रु-सेना की तो बात ही क्‍या, बड़े-बड़ों की बुद्धि भी न पैठ सकेगी। और, प्रभु -प्रताप का सुमिरन करते हुए कहीं आप साहित्यिक क्षेत्र में जा पड़े, तो फिर कीर्ति की कलँगी लगी हुई गद्दीधर की पगड़ी आपके सिर। लीजिए सुविधाएँ, भोगिए अधिकार। अयोग्‍यता आपके तहखाने में घूँघट काढ़े बैठी रहेगी और योग्‍यता केवल ‘पाउडर’ और ‘लिपस्टिक’ के बल पर हाट-बाट में मटकती फिरेगी। इसी तरह धार्मिक क्षेत्र में भी आप प्रभु-प्रताप से मन का घोड़ा सरपट दौड़ा सकते हैं, कहीं खन्‍दक-खाई न मिलेगी। अगर बाना आप ठीक बनाए रहें तो गोमुखी में चौमुखी कतरनी भी रख सकते हैं; एक ही मठ में आप विविध प्रकार के यज्ञकुण्‍ड रख सकते हैं। नीचे लंगरखाने का नगाड़ा, ऊपर इन्‍द्र का अखाड़ा! यदि सचमुच आप प्रभु-प्रताप का मन्‍त्र जपते रहे तो सारी दुनिया को आप अपनी टाँगों के नीचे से निकाल देंगे। ऐसा प्रखर प्रताप है प्रोपगंडा-प्रभु का!

हामिद की कहानी

मोरक्को के छोटे से गावं में एक बच्चा हामिद रहता था… उसके स्कूल के बच्चे उसको हमेशा “उल्लू” बोलकर चिढाते थे और उसकी टीचर उस की बेवकूफियों से हमेशा बहुत परेशान रहती थी..

एक दिन उसकी माँ उसका रिजल्ट जानने उसके स्कूल गयी और टीचर से हामिद के बारे में पूछा.. टीचर ने कहा कि “अपने जीवन के पचीस साल के कार्यकाल में उसने पहली बार ऐसा बेवकूफ लड़का देखा है, ये जीवन में कुछ न कर पायेगा”

यह सुनकर हामिद की माँ बहुत आहात हो गयी और उसने शर्म के मारे वो गाँव छोड़कर एक शहर में चली गयी हामिद को लेकर.. 

बीस साल बाद जब उस टीचर को दिल की बिमारी हुई तो सबने उसे शहर के एक डॉक्टर का नाम सुझाया जो ओपन हार्ट सर्जरी करने में माIहिर था.. टीचर ने जा कर सर्जरी करवाई और ऑपरेशन कामयाब रहा.. 

जब वो बेहोशी से वापस आई और आँख खोली तो टीचर ने एक सुदर और सुडौल नौजवान डॉक्टर को अपने बेड के बगल खड़े हो कर मुस्कुराते हुवे देखा.. वो टीचर डॉक्टर को शुक्रिया बोलने ही वाली थी अचानक उसका चेहरा नीला पड़ गया और जब तक डॉक्टर कुछ समझें समझें.. वो टीचर मर गयी..

डॉक्टर अचम्भे से देख रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे की आखिर हुवा क्या है.. तभी वो पीछे मुड़े और देखा कि हामिद, जो की उसी अस्पताल में एक सफाई कर्मचारी था, उसने वेंटीलेटर का प्लग हटा के अपना वैक्यूम क्लीनर का प्लग लगा दिया था..

अब अगर आप लोग ये सोच रहे थे कि हामिद डॉक्टर बन गया था.. तो इसका मतलब ये है की आप हिंदी/तमिल/तेलुगु फ़िल्में बहुत ज्यादा देखते हैं.. या फिर बहुत ज्यादा प्रेरणादायक कहानियां पढ़ते हैं..

हामिद उल्लू था और उल्लू ही रहेगा 

शेखचिल्ली रेलगाड़ी में – शेखचिल्ली की कहानियां

शेखजी ने बहुत सी नौकरियां की लेकिन उनका दिल नौकरी में नहीं लगता था । एकदिन उन्होंने मुंबई जाने की सोची , नौकरी करने के लिए नहीं, बल्कि हीरो बन्ने के लिए ।

वह सोचने लगे – ‘कलाकार तो वह है ही, उसे फिल्मो में मौका भी मिल सकता है। एक बार फिल्मों में आ जाये तो वह तहलका मचा सकता है । चारों और उसी के चर्चे होंगे ।’

वह मुंबई के लिए चल दिए। टिकट लिया। स्टेशन यार कड़ी हुई गाडी में प्रथम श्रेणी के डिब्बे में जाकर  बैठ गए । गाडी चल दी । चिल्ली अपने डब्बे में अकेले ही थे ।

वह सोचने लगे – ‘लोग यूं तो कहते हैं की रेलों  में इतनी भीड़ होती है, लेकिन यहाँ तो भीड़ है ही नहीं । पूरे डिब्बे में मैं तो अकेला बैठा हूँ ।’

उन्हें दर सा लगने लगा । इतनी बड़ी गाडी और वह अकेले । गाडी धडधडाती हुई भागी जा रही थी । रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ।
वह सोच रहे थे – ‘गाड़ियाँ जगह जगह रूकती हैं । कहीं कहीं तो घंटों कड़ी रहती है और एक ये है, जो रुकने का नाम ही नहीं लेती । बस भागी ही जा रही है, रुक ही नहीं रही है ।’

कई जिले पार करने के बाद जब गाडी रुकी तो बहार झांकते हुए एक नीले कपड़ो वाले रेलवे कर्मचारी को बुलाकर बोले -” ऐ भाई ! ये रेलगाड़ी है या अलादीन के चिराग का जिन्न ।”
“क्या हुआ ?”
“कमबख्त रूकती ही नहीं । खूब शोर मचाया, पर किसीने भी तो नहीं सुना ।”
“यह बस नहीं है की ड्राइवर या कंडक्टर को आवाज़ दी और कहीं भी उतर गए, यह रेलगाड़ी है मियां ।”
“रेलगाड़ी है मियां !” शेखचिल्ली बोला-“इस बात को मैं अच्छी तरह जानता हूँ ।”
“फिर क्यों पूछ रहे हो ?”
“क्या पूछ रहा हूँ ?”
“तुम तो यह भी नहीं जानते की रेलगाड़ी बिना स्टेशन आये नहीं रूकती ।”
“क्या बकते हो ! कौन बेवकूफ नहीं जानता, हम जानते हैं ।”
“जानते हो तो फिर क्यों पूछ रहे हो?”
“यह तो हमारी मर्जी है ।”
“ओह ! तो तुम मुझे मूर्ख बना रहे थे ?”
“अरे! बने बनाये को भला हम क्या बनायेंगे ?”
“ओह! नॉनसेन्स ।”
“नून तो खाओ तुम । अपन तो बिना दाल सब्जी के कभी नहीं खाते ।”
‘अजीब पागल है ।’ वह बडबडाता हुआ वहां से चला गया ।
शेखजी ठहाका लगाकर हंस पड़े और गाडी पुनः चल पड़ी ।

शेखजी की गप्प – शेखचिल्ली की कहानियां

एक दिन सुल्तान मीर मुर्तजा ने सेनापति शेखजी को नीचा दिखने के लिए एक अजीब प्रश्न पूछा -“क्यों सेनापति जी! दुनिया में सबसे बड़ा राजा कौन है ?”

“अंग्रेजों की रानी एलिज़ाबेथ और रानी विक्टोरिया ।” शेखचिल्ली ने जवाब दिया ।
“क्या मतलब?” सुल्तान ने आश्चर्य से पूछा ।
“उनके राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता । उनका राज्य पूरब से पश्चिम तक फैला हुआ है ।”
सुनकर सुल्तान चुप हो गए।
एक दिन सुल्तान और शेखचिल्ली शिकार खेलते खेलते जंगल में चले गए ।
दोपहर के समय एक झील से कुछ दूर पेड़ों की घनी छाँव में वे आराम करने लगे ।
“घोड़ों को भी पानी दिखा आओ ।” सुल्तान ने शेखचिल्ली से कहा ।
शेखजी घोड़ों को लेकर चल दिए ।
घोड़ों को झील पर ले जाकर शेखजी ने पानी दूर से ही दिखाया और वापस ले आये । घोड़े प्यासे ही रह गए ।
प्यासे घोड़ों की और देखकर सुल्तान ने कहा – “इन्हें पानी नहीं पिलाया ?”
“नहीं”
“क्यों?”
“आपका आदेश था कि घोड़ों को पानी दिखाना है सो दिखा लाया हूँ । पिलाने का हुक्म नहीं मिला था ।”
“तुम महामूर्ख हो सेनापति शेख्चिल्लीजी बहादुर।” कहकर सुल्तान हंस पड़े और हंसकर बोले – “तुम युद्ध कौशल में जितने आगे हो, तुम्हारा व्यावहारिक ज्ञान उतना ही कम है ।”
“मेरी हाजिर जवाबी को मूर्खता समझते हैं आप, यह आपका नज़रिया है । मैं क्या कह सकता हूँ ।
“अब तो पानी पिला लाओ ।” सुल्तान ने मुस्कुराते हुए कहा ।
“पिलाने को अब कहा है ।”
“समझ का फेर है वर्ना अक्लमंद आदमी तो एक काम बताने पर दो करते हैं ।”
“एक बताने पर दो ?”
“हाँ! अगर मैंने पानी दिखने के लिए कहा था तो पानी पिला भी लाना चाहिए था ।”
“आइन्दा मैं एक काम बताने पर दो काम करूँगा ।”
“जाओ, अब पानी पिला लाओ, घोड़े प्यासे होंगे ।”
शेखजी पानी पिला लाये ।
बहुत दिनों बाद एक दिन सुल्तान कि बेगम बीमार हो गयी ।
सुल्तान के पास थे शेख्चिल्लीजी  क्योंकि उनकी सुल्तान से अच्छी मित्रता हो गयी थी । हर वक़्त वे साथ ही रहने लगे थे । सुल्तान शेखजी से बोले – “बेगम बीमार है, एक अच्छा सा वैद्य या हकीम बुलवाओ, जल्दी से भेज दो किसी को ।”
“अभी लीजिये ।” शेखजी ने कहा ।
शेखचिल्ली ने तीन नौकर बुलवाए और उन्हें अलग ले जाकर कुछ समझाया ।
नौकर चले गए ।
कुछ देर बाद वैद्यजी भी आ गए । उन्होंने नाड़ी देखनी शुरू कि ही थी कि कफ़न लेकर एक नौकर आ गया और तीसरा कब्र खोदने वालों को ले आया ।
“यह सब क्या है?” सुल्तान क्रोधित होते हुए बोले ।
“सेनापति बहादुर चिल्ली साहब के आदेश से कफ़न लाया हूँ ।” एक बोला ।
“चिल्ली बहादुर ने मुझे आदेश दिया था कि कब्र खोदने वालो बुला लाऊं । नाप लेने आये है ये मुर्दे का ।”
“कमबख्त! यहाँ शेखचिल्ली का बाप नहीं मारा है।”
“गुस्ताखी माफ़ हो हुजूर!” आगे आकर शेखचिल्ली बोले – “मेरा बाप तो बहुत पहले ही मर गया था, बेचारा स्वर्ग में है । अब रही बात बेगम साहिबा की तो जैसा आपने एक बार कहा था की हर बुद्धिमान आदमी एक काम बताने पर दो करता है, आगे तक की सोचता है । यह सोचकर हमने वैद्यजी भी बुला लिए हैं, कफ़न भी मंगवा दिया और कब्र खोदने वाले भी आ गए हैं । हमने आगे की सोची है । आपने एक काम बताया था, हमने तीन कर दिए हैं, फिर बात ये है कि खुदा न खस्ता बेगम को कुछ भी हो सकता है ?”
सुल्तान चुप हो गए ।
शेखचिल्ली के जवाब अनूठे थे ।
सुल्तान समझ गए थे कि शेखचिल्ली को हराना असंभव है ।
“शेखजी कोई गप्प सुनाओ ।” एक दिन सुल्तान ने चिल्ली से कहा ।
“अजी गप्प क्या सुनाऊं, हमारे पास सच्ची ही इतनी बातें हैं कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेतीं ।
“तो फिर सुनाओ ।”
“सुनिए ।”
शेखजी कहानी सुनाने लगे —-
“एक बार हम गर्मियों में घूमने के इरादे से मंसूरी चले गए । बर्फ में हम खूब नाचे । खूब नंगे पाँव बर्फ के मैदान में खेलते रहे, परन्तु, तभी एक दिन…”
“क्या हुआ ?”सुल्तान ने चौंककर पूछा ।
“अजी साहब हमें हिमालय ने देख लिया और हमें मरने को दौड़ पड़ा । अब आप सोचिये, कहाँ हम और कहाँ हिमालय । हम डर गए । भाग लिए नंगे पैर, लेकिन हिमालय हमारे पीछे था और हमसे आ भिड़ा । हमने उसे ऐसा पटक मारा कि वह रो पड़ा, परन्तु डर तो हम भी रहे थे । तभी हमारी निगाह मटर के दरख़्त पर पड़ गयी। हमने हिमालय को मटर के दरख़्त से बाँध दिया । उसे वहीँ बांधकर हम चल दिए पर हिमालय बड़ा हरामी निकला  । पेड़ को उखाड़कर हमारा पीछा करने लगा । जब हमें गुस्सा आया तो हमने भी हिमालय को मजा चखाना तय कर लिया । हम जहाँ थे वहीँ रुक गए हुजूर, रुक गए । तनकर खड़े हो गए । हिमालय हमारे काफी करीब आ गया । हमने दोनों हाथों से हिमालय को पकड़ा और घुमाकर उछाल दिया । पूरे साथ दिन, पांच घंटे और सैंतालीस मिनट, दस सेकंड में उत्तर कि और जा गिरा, जहाँ आज भी मारा पड़ा है ।”
सुल्तान और उनकी बेगम हँसते हँसते लोटपोट हो गए ।
“गप्प क्यों सुनाएं जब ऐसी सच्ची बातें हैं, हमारे पास । ऐसे वाकिये गुजरे हुए हैं ।” शेखचिल्ली ने मुस्कुराकर कहा ।
“बड़ी अच्छी गप्प है ।” सुल्तान खिलखिलाकर हंस पड़े ।
“तो क्या आपने मान लिया यह अच्छी गप्प है ।”
“हाँ ।”
“शुक्रिया, यही तो मैं चाहता था ।”
सुलतान मेरे के चेहरे पर हंसी उभर आई । शेखचिल्ली उनके यहाँ तब तक रहे, जब तक सुल्तान मीर मुर्तजा जीवित रहे । उनके निधन के बाद वह अपने बीवी बच्चों को लेकर अपने पुश्तैनी गाँव चले गए ।

कुतुबमीनार कैसे बनी – शेखचिल्ली की कहानियां

एक दिन शेखजी नौकरी कि तलाश में दिल्ली आये । वे घुमते घामते कुतुबमीनार पहुंचे । उन्होंने देखा क़ुतुब मीनार के पास खड़े दो आदमी आपस में बात कर रहे थे । उनमें से एक कह रहा था –  “यार कमल है! पुराने जमाने में लोग काफी लम्बे होते थे तभी तो इतनी ऊंची कुतुबमीनार बना ली ।”

“तू गधा है ।” दुसरे ने कहा – “अबे पहले इसे लिटाकर बना लिया होगा और जब क़ुतुब मीनार बन गयी तो इसे उठाकर खड़ा कर दिया होगा ।”
पहले व्यक्ति को अपने साथी का तर्क पसंद नहीं आया । उसने उसकी बात कर विरोध किया ।
दूसरा व्यक्ति भी हार मानने वाला नहीं था । वह भी अपने तर्क पर अड़ गया ।
जनाब शेखचिल्ली एक और खड़े उनकी बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे । उन्हें उनकी मूर्खतापूर्ण बातों पर तरस आने लगा तो वह उनके करीब आकर बोले – “तुम दोनों ही महामूर्ख हो, जो इतनी सी बात पर लड़ रहे हो । इतना भी नहीं जानते, पहले कुआं खोदकर पक्का बना दिया गया था और जब कुआं बनकर तैयार हो गया तो उसे पलटकर खड़ा कर दिया गया और इस प्रकार कुतुबमीनार तैयार हो गयी ।”

प्यार ही खुदा है – शेखचिल्ली की कहानियां

एक दिन शेखजी अपनी अम्मी के साथ बैठकर खाना खा रहे थे । अम्मी ने शेख को दूध दिया । दूध देखकर शेखजी ने अम्मी से पूछा – “अम्मी जान दूध सफ़ेद क्यूँ होता है ?”
“अल्लाह ने बनाया है बेटा।” अम्मी ने कहा ।
“सफ़ेद ही क्यों बनाया है ?”
“क्योंकि अल्लाह की दाढ़ी सफ़ेद है इसलिए ।”
“अल्लाह का रंग भी सफ़ेद है ?”
“जरुर होगा बेटे ।”
एक दिन शेखचिल्ली रात को घूमने निकल गए । नगर से बहार उन्हें एक सफ़ेद दाढ़ी वाला आदमी मिल गया । शेख को माँ की बात याद आ गयी ।
“आपकी दाढ़ी सफ़ेद क्यों है मौलवी साहब?” शेखजी ने पूछा ।
“बूढा हो गया हूँ इसलिए ।”
“बूढा होने पर मेरी दाढ़ी भी सफ़ेद हो जाएगी ?”
“हाँ, जब बूढ़े हो जाओगे ।”
“इसका मतलब तो ये है की अल्लाह भी बूढा हो गया है ।” शेखचिल्ली ने कुछ सोचते हुए पुछा ।
“कैसे?”
“उनकी भी दाढ़ी सफ़ेद है न ।” शेखजी ने कहा ।
“कौन कहता है?” मौलवी ने आश्चर्य से पुछा ।
“मेरी माँ।”
“उन्होंने देखा है ?”
“हां ।”
“फिर तो वे जरुर पैगम्बर की भेजी हुयी होंगी । मैं तो उनके दर्शन करूँगा बेटे, मुझे ले चलो ।”
“आइये ।”
बूढा मौलवी शेखचिल्ली के साथ उनके घर आया ।
“आपने खुदा को देखा है?” मौलवी साहब ने उसकी माँ से पुछा ।
“हां।”
“कहाँ है ?”

“बैठिये, पहले ये बताइए क्या खायेंगे ?”
“मैं तो खुदा को देखने आया हूँ ।”
“पहले आप आराम कीजिये, खाना खाइए ।”

मौलवी की बड़ी सेवा की गयी । उन्हें भोजन कराया गया । घर के तीनों सदस्यों के व्यव्हार और प्यार से मौलवी प्रसन्न हो उठे और बोले – “अल्लाह भंडार भरे, बड़ा नेक और तहजीब वाला घराना है । मैं इस सेवा को, इस इज्जत को भूल नहीं सकता । अब कृपा करके मुझे खुदा के दर्शन करिए ।”
“मौलवी साहब, खुदा यही मोहब्बत और सेवा का जज्बा है और शैतान है नफरत । इस घर में हिन्दू-मुस्लिम और सिख-ईसाई को एक सा माना जाता है । प्यार दिया जाता है । प्यार ही खुदा है। नफरत ही शैतान है ।” शेखचिल्ली की माँ ने कहा ।
“या अल्लाह तुम तो सचमुच खुदा की बेटी हो । हिन्दुओं में जिसे देवी कहते हैं ।”
“मैं तो एक मामूली औरत हूँ मौलवी साहब । मामूली सी औरत और यह मेरा लड़का शेखचिल्ली है, जिसे लोग मूर्ख कहते हैं ।”
“आप…आप… महँ शेखचिल्ली की माँ हैं । आपके दर्शन से तो मैंने तीर्थ कर लिए । दरअसल शेखचिल्ली जी मामूली आदमी नहीं हैं । वह तो बहुत महँ हैं, लोगों ने इन्हें पहचाना नहीं है ।”

लम्बी दाढ़ी वाले बेवकूफ – शेखचिल्ली की कहानियां

शेखजी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन पुस्तकें पढने का उन्हें बड़ा शौक था । एक दिन शेखजी कोई पुस्तक पढ़ रहे थे । तभी उनकी निगाह एक जगह लिखे कुछ अक्षरों पर पड़ी । लिखा था – ‘लम्बी दाढ़ी वाले मूर्ख होते हैं ।’

यह वाक्य पढ़ते ही शेखजी का हाथ तुरंत अपनी दाढ़ी पर गया । पूरी एक फुट लम्बी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए शेखजी ने सोचा – ‘तब तो लोग हमें भी मूर्ख समझते होंगे ।’

बस, यह बात दिमाग में आता ही फ़ौरन लगे कैंची ढूँढने । पूरा घर छान मारा , लेकिन कैंची नहीं मिली । अचानक उनकी नज़र आले में जल रहे दीपक पर पड़ी । शेखजी ने फ़ौरन दीपक उठाया और एक हाथ से दाढ़ी पकड़कर सोचा – ‘जहाँ तक हाथ है वहां तक की दाढ़ी फूंक देते हैं, बाकी कल हज्जाम से मुंडवा लेंगे ।’

शेखजी ने फ़ौरन दीपक की लौ दाढ़ी में लगा दी । अगले ही पल उनकी दाढ़ी धूं-धूं कर जलने लगी । चेहरे और छाती पर तपिश लगी तो शेखजी ने दीपक एक और फेंका और लगे चीख पुकार मचने और जब चेहरा भी झुलसने लगा तो भागकर गए और बाल्टी में गर्दन तक सर डाल दिया । तब कहीं जाकर उन्हें राहत मिली, फिर सोचने लगे – ‘बिलकुल सच बात लिखी है, सचमुच लम्बी दाढ़ी वाले बेवकूफ होते हैं ।’

मैं गांधी को नही मारा बल्कि अमर कर दिया

व्यंग्य – मैं नाथुराम गोडसे – गाँधी को मोक्ष देने वाला

आप सभी को लगता है कि मैंने गाँधी का ट्विटर अकाउंट हैक करके डिलीट कर दिया। आप सभी को ऐसा लगना जायज है क्योंकि मेरे बारे में आज तक आपने जो भी पढ़ा-सुना सब जगह मुझे ही गाँधी के अकाउंट हैक करने का जिम्मेदार ठहराया गया है। जिन किताबों और ब्लॉग में मेरे पहलू से गाँधी को सेलेब्रिटी बनाने का जिक्र है उन्हें भारत की सरकार ने कभी आप तक पहुंचने का मौका नही दिया, हर सरकार आते ही गुगल को पत्र लिखकर मेरे ऊपर लिखे सेलेब्रिटी बनने के मार्केटिंग टिप्स वाले URL ब्लॉक करवा देती है, यदि कभी वो किताब या ब्लॉग आपको मिल जाए तो पढ़ना फिर आप भी मेरे फैन अकाउंट को फॅालो करने लगेंगे।

एक दिन भगत सिंह, उनके साथी सुखदेव और राजगुरु ने एक अंग्रेजी दरोगा का अकाउंट हैक करके डिलीट कर दिया। वो दरोगा रोज अपने अकाउंट से गरीब लोगों को ट्रोल करता और उन्हें ब्लॉक कर देता। लेकिन उस दरोगा का अकाउंट डिलीट करने के जुल्म में भगत सिंह और उनके साथियों का अकाउंट डिलीट करने का फरमान जारी हो गया। इस सजा के होने के बाद हम सब को ये उम्मीद थी कि बापू देश के लिए कुर्बानी देनेवाले इन क्रांतिकारियों के अकाउंट बचाने के लिए ट्विटर पर किसी हैशटैग की पहल करेंगे परंतु हमारे लाख निवेदन के बाद भी बापू ने भगत सिंह के अकाउंट को ना डिलीट करने के लिए किसी भी तरह का हैशटैग ट्रेंड करवाने से मना कर दिया। गाँधी को डर था यदि वो भगत सिंह के ट्विटर अकाउंट के बचाव का पहल करेंगे तो उनके फॅालोवर भगत सिंह को भी फॅालो करने लगेंगे और भगत सिंह ट्विटर पर उनसे बड़े सेलेब बन जाएंगे।

आखिरकार अंग्रेजी सरकार ने भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव के ट्विटर अकाउंट को डिलीट कर दिया, यदि गांधी को सेलेब्रिटी बनने का लोभ नही होता तो इन सभी क्रांतिकारियों का अकाउंट डिलीट होने से बच सकता था।

भारत को आजाद होते ही अपने चहिते चाटुकार नेहरू को ट्विटर पर सेलेब्रिटी बनाने के चक्कर में उन्होने भारत के सभी ट्विटर युजर को हिंदुस्तान और पाकिस्तान में बाट दिया। जिन्हा के पास फॅालोवर की कमी नही थी उसके सब फॅालोवर जिन्हा के सारे ट्वीट आँख बंद करके रीट्विट करते थे लेकिन नेहरू के ट्वीट लिंक भेजने पर भी ज्यादा रीट्विट नही हो पाते थे। गाँधी सभी को डीएम करके नेहरू के ट्वीट, अनशन का वास्ता देकर रीट्विट करवाते थे। भारत के दो हिस्से होने के बाद भी बापू ने सिर्फ अपने अंधे प्यार के चलते नेहरू को ट्विटर पर #ff

गाँधी के अनशन के डर से कोई भी उनके ट्वीट के खिलाफ नही बोल रहा था लेकिन अंग्रेजों के इतने साल ट्वीट पढ़ने के बाद फिर से गैर जिम्मेदार लोगों का ट्वीट पढ़ना मुझे मंजूर नही था। मैं ने ट्विटर अकाउंट देश सेवा के लिए बनाया था और अब मेरा जमीर रोज मुझे देशभक्ति के लिए ललकारने लगा। ट्विटर पहले हिंदू-मुसलमान और फिर सवर्ण और दलित में बट गया। दलितों को फॅालो बैक के लिए ट्विटर पर आरक्षण मिल गया। अपने भारतीय ट्विटर युजर का ये हाल मुझसे नही देखा जा रहा था। मैं ने कुछ लोगों को अपने साथ लेकर ट्विटर अकाउंट हैक करने की ट्रेनिंग ली। एक दिन शाम के वक्त गाँधी जब अपने ट्विटर अकाउंट ने प्रार्थना ट्वीट करके लॉग आउट कर रहे थे तब मैं ने उनका सिक्योरिटी वॅाल तोड़कर उनका अकाउंट तीन प्रयत्न में हैक करके डिलीट कर दिया।

गाँधी का अकाउंट हैक करने के कुछ महीनों बाद भारत सरकार ने मेरा अकाउंट ससपेंड करके डिलीट कर दिया लेकिन याद रखना मैं ने ये सब मेरे देश के लिए किया। मेरी मार्केटिंग टिप्स पढ़ना आप सब समझ जाओगे ओ ट्विटर पर सेलेब्रिटी बन जाओगे और समझ जाओगे की मैंने गांधी को नहीं मारा बल्कि अमर कर दिया।

जय हिंद,
नाथुराम गोडसे फ्रॉम ट्विटर आर्काइव

केजरीवाल ने लौटाया पानवाले का एक रुपया, कहा नहीं लूँगा कारपोरेट से चंदा – फेकिंग न्यूज़

चावड़ी बाज़ार, नई दिल्ली: अपनी साफ़ सादा छवि को जनता के सामने रखने की कवायद में आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल ने एक पानवाले तक को नहीं छोड़ा और उसका एक रुपया यह कहते हुए लौटा दिया के वह किसी बिज़नेस मैन से चंदा नहीं ले सकते |

यह घटना दिल्ली के चावड़ी बाज़ार इलाके में एक रोडसाइड पान की दुकान “विमल पान पैलेस” की है | इस खबर की तह तक पहुचने के लिए फेकिंग न्यूज़ ने बात की श्री मक्ख्न्चंद पांडे से जो इस दुकान को चलाते हैं |

फेकिंग न्यूज़ रिपोर्टर: पांडे जी नमस्कार
मक्ख्न्चंद पांडे जी: जी नमस्ते

रिपोर्टर: पांडे जी गत शनिवार आपकी दुकान पर अरविन्द केजरीवाल जी आये थे, उसी के बारे आपसे बात करनी थी |
पांडे जी: अजी क्या बताएं अब. केजरीवाल जी दुकान पे आये और बोले के एक मगही लगा दो फटाफट | हमने कहा अभी लो | अब हम ठहरे खानदानी पानवाले, हमें कोई टाइम थोड़े ही लगता है | हमारे पड़दादा ने तो राजा अकबर तक के पान लगाये हैं …

रिपोर्टर: एक मिनट, उन्होंने आपसे पान माँगा फिर क्या हुआ, उस बारे में बात कीजिये ?
पांडे जी: अजी होना क्या था, हमने दुई मिनट मैं पान लगा के उनको दिया उन्होंने मुंह में दबाया और दस का नोट हमें थमाया और जाने लगे |

रिपोर्टर: फिर?
पांडे जी: हमने फटाफट से निकाल के एक रुपया उनके सामने रख दिया क्योंकि मगही हमारे यहाँ नौ रूपये का मिलता है | देखिये यहाँ बोर्ड पे लिखा है मगही पान नौ रुपया | महंगाई बहुत है लेकिन पिछले छह साल से दाम नहीं बढ़ाये हैं | खानदानी है न, नहीं तो बाजू में चौक पे जो पान वाला बैठता है …

रिपोर्टर: जब आपने एक रुपया दिया तो उन्होंने क्या कहा?
पांडे जी: उन्होंने तो बहुत अजीब से बात कर दी साहब | उन्होंने पहले उस एक रुपये के सिक्के को पांच मिनट तक एकटक देखा, फिर जोर जोर से रोने लगे |

रिपोर्टर: रोने लगे?
पांडे जी: जी हाँ, और मैं तो बहुते डर गया था | मुझे लगा के पान में चूना ज्यादा लग गया है और जीभ काट रहा है जिस वजह से रो रहे हैं | अब उनके साथ पांच छह पार्टी कार्यकर्ता लोग भी थे, मुझे लगा के कहीं गुस्सा गए, तो मारपीट न हो जाए |

रिपोर्टर: फिर?
पांडे जी: फिर वह आंसू पोछकर एकदम से चुप होकर बोले के, दोस्त तुम्हारी इस छोटी सी भेंट को मैं सलाम करता हूँ, पर मेरा उसूल है के मैं किसी कारपोरेट या किसी बिजनेसमैन से मैं आम आदमी पार्टी के लिए चंदा नहीं लेता इसलिए मैं ये नहीं ले सकता |

रिपोर्टर: आपने उन्हें बताया नहीं के ये एक रुपया उनकी पार्टी के लिए चंदा नहीं बल्कि उनके दस रूपये में से चेंज है?
पांडे जी: इससे पहले मैं कुछ बोलता उनके कार्यकर्ताओ ने “जब तक सूरज-चाँद रहेगा, केजरीवाल का नाम रहेगा” ऐसे नारे लगाने शुरू कर दिए और सब लोग यहाँ से चलते बने |

रिपोर्टर: फिर?
पांडे जी: फिर मैंने रुपया वापिस गल्ले में डाला और रेडियो चालु कर दिया, आल इंडिया रेडियो पर उस समय “ओल्ड इज गोल्ड” नाम का कार्यक्रम आता है, काफी अच्छे गीत चलाती हैं नीलिमा जी |

रिपोर्टर: नहीं मेरा मतलब के आपने कोशिश नहीं की के आप उनके पीछे जाकर उन्हें रुपया लौटा दें?
पांडे जी: दुकान छोड़ कर कैसे जाता ? और वैसे भी जब कोई ग्राहक ऐसे एक-दो रुपये छोड़ जाता है तो हम उससे सर्विस चार्ज समझ के रख लेते हैं | ऐसे ग्राहक ही तो होंते हैं भलेमानुस | मैंने तो यहाँ तक फैसला कर लिए है के मैं केजरीवाल जी को ही वोट दूंगा |

रिपोर्टर: अरे, एक रुपया छोड़ गए इसलिए उन्हें वोट देंगे?
पांडे जी: अजी नहीं | एक रुपया छोड़ने की यह जो खबर मीडिया में फ़ैल रही है, उसके चलते उनके कुछेक समर्थक मेरे यहाँ से पान लेलेकर एक-एक रुपया छोड़े जा रहे हैं | ऊपर से आप जैसे रिपोर्टर खूब चक्कर लगा रहे हैं | अभी देखिये सुबह से एक सो पांच मगही, छब्बीस बनारसी, ग्यारह स्ट्रॉबेरी और चार चॉकलेट पान बिक चुका है | इतना तो मेरे पिछले पूरे हफ्ते का टर्नओवर नहीं था बाउजी | वैसे आपने नहीं बताया आप कौनसा पान लेना चाहेंगे?

रिपोर्टर: जी पान नहीं, अब मै इजाज़त लेना चाहूँगा | आपके कीमती वक़्त के लिए शुक्रिया |

सोर्स – फेकिंग न्यूज़

मोदी कान न ऐंठ दें, इसलिए भारत नहीं आईं ओबामा की बेटियाँ – आशीष मिश्र

एक अच्छी बात फैलाने चलिए सारी जिन्दगी गुजर जाएगी सिर्फ दस लोग कान और उनमें से भी दो ध्यान देंगे. लेकिन वहीं कोई अफवाह हुई तो एक मुंह से दूसरे कान होते हुए शाम तक दस नए तथ्य जोड़कर वापिस आ पहुंचेगी. ऐसा ही कुछ हुआ बराक ओबामा के भारत दौरे के साथ. पहली बात सामने आई कि ओबामा अपनी बेटियों को इस बार भारत नहीं ला रहे हैं.साथ ही अफवाह ये सुनाई दी कि इसके पीछे वजह मोदी जी का डर है. हाल ही में उन्होंने बेटियों को पढ़ाने को लेकर बयान दिए हैं. ऐसे मौके पर अगर ओबामा बीच सत्र में स्कूल से छुट्टी दिलाकर बेटियों को भारत लाते तो डर था कहीं मोदी एयरपोर्ट पर ही उन्हें बच्चियों की पढ़ाई में बाधा बनने के लिए डपटने न लग जाएं. दूसरी वजह ये बताई गई कि मालिया नहीं चाहती कोई उन्हें आलिया की बहन समझ बैठे. साथ ही दोनों बहनों ने ब्राजील दौरे पर नरेन्द्र मोदी को लाड़ में बच्चे के कान उमेठते भी देखा था और तबसे भारत आने के नाम पर ही उन्हें हाड़ का बुखार आ जाता है. इन अफवाहों के बीच बच्चियों के भारत न आने की सबसे मजेदार वजह ये बताई जा रही है कि मिशेल नही चाहती थीं कि दिल्ली से लौटने के बाद उनकी बेटियां दिल्ली के बच्चे-बच्चियों की तरह अमेरिका की सड़कों पर ‘जानता है मेरा बाप कौन है?’ चिल्लाती फिरें.

ओबामा ने आने से पहले अपना भारत दौरा थोड़ा छोटा किया जिसकी वजह से उनका आगरा जाने का कार्यक्रम रद्द हो गया. ये सुनने के बाद कइयों के दिल टूट गए और वो यूं प्रतिक्रियाएं देने लगे मानो ओबामा ने ताज देखने से नहीं उनके भतीजे के मुंडन में शामिल होने से मना कर दिया हो. कुछ ये कहते पाए गए कि बराक ‘हुसैन’ ओबामा आगरा में हुए हालिया ‘घर वापसी’ के चलते डर गए हैं. वहीं कुछ ये कह रहे थे कि उन्हें डर था कहीं ताजमहल के साथ-साथ आजम खान उन्हें भी वक्फ बोर्ड की संपत्ति न घोषित कर दें. लेकिन बराक ओबामा के आगरा न जाने की जो सबसे वाजिब वजह बताई गई वो ये थी कि ओबामा दिल्ली से आगरा के बीच पड़ने वाले टोल टैक्स का खर्च सुन सकते में आ गए थे.

खैर ओबामा भारत आए और उतरते ही नमस्ते किया. यहां भी अफवाह फैलाने वालों ने उन्हें नहीं बख्शा. उनकी मानें तो नमस्ते के बाद ओबामा ने मोदी जी से सीधे ‘बाबूजी (आलोकनाथ’) कहां हैं?’ पूछा और उसके बाद होटल जाने की बजाय ‘सूर्यवंशम’ वाले हीरा ठाकुर के घर जाने की जिद करने लगे. मिशेल ओबामा के बारे में कहा जा रहा है कि वो मोदी से औपचारिक अभिवादन के बाद पालिका बाजार का रास्ता पूछ रही थीं. ओबामा की भारत यात्रा की वजह अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चीन का बढ़ता दखल भी बताया जा रहा है. मोदी ने ओबामा की वो चिंता भी चाय पीते-पिलाते खत्म कर दी. उन्होंने चाय के प्याले में शुगरक्यूब डाल चम्मच से हिलाते हुए ओबामा को इशारा किया कि ‘चीनियों’ को हम यूं गायब कर सकतेहैं.

बराक ओबामा की भारत यात्रा के उद्देश्य भी तलाशे जा रहे हैं और निहितार्थ भी बताए जा रहे है. अफवाहों के बाजार में जैसी सुगबुगाहट है, उस हिसाब से ओबामा मिशेल के कहने पर भारत आए हैं. क्योंकि वो यहां आकर ‘ससुराल सिमर का’ देखना चाहती थीं. बीमा क्षेत्र से जुड़े लोगों की मानें तो वो इस यात्रा के बहाने ‘जीवन सरल पालिसी’ भी ले डालेंगे. एक बिल्डर की मानें, तो ओबामा उससे नोएडा में रिटायरमेंट के बाद रहने के लिए एक फ्लैट और ईएमआई की किश्त पता करने आए हैं. निर्मल बाबा के एक शिष्य बताते हैं वास्तव में वो परेड की आड़ में बाबाजी के समागम में हिस्सा लेने आए हैं. अफवाहों की हद तो तब हो गई जब किसी को यह कहते सुना की ओबामा गुरमीत राम रहीम की एमएसजी देखने आये हैं और लौटते तक में अपना नाम बराक हुसैन ओबामा ‘इन्सान’ रख लेंगे.
चलते-चलते:ओबामा की भारत यात्रा से सबसे ज्यादा खुश आगरा वाले हैं. एक तो ताज चमक उठा शहर साफ हो गया और दूसरे ओबामा के न आने के चलते दिल्लीवासियों की तरह बंदिशें भी नही झेलनी पड़ीं. इससे एक बात और सामने आई है कि सारे मुल्क को साफ करने के लिए किसी स्वच्छ्ता अभियान की जरूरत नही सिर्फ ओबामा को हर महीने अलग-अलग शहर घूमने बुला लिया जाए

लेखक – आशीष मिश्र