द अनटोल्ड स्टोरी अहिंसा

बैनर : डाउन टू अर्थ एंटरटेनमेंट प्रा.लि., श्री दर्शन ट्रेडर्स
निर्माता : इमाद हबीब, नरेश राणे
निर्देशक : युसुफ अली खान
संगीत : प्रशांत सिंह
कलाकार : नाफे खान, काशवी कंचन, नीतू वाधवा, अनूप शुक्ला
रिलीज डेट : 13 जून 2014

 

आज समाज गौ मां की हत्या को लेकर लाचार है। सबसे बड़ी चौकाने वाली बात यह है कि हमने ही उसे मां का दर्जा दिया और हम ही उसकी हत्या कर रहे हैं। एक समय वो था जब बेटा अपनी मां के लिए जान दे सकता था। पर आज इस हत्या को वही बेटा सही कहता है। भारत में आज इंसान वही है बस उसकी सोच बदल गई है।
भारत स्थित एक राज्य में भ्रष्ट नेता लालजी, खां साहेब और गुलाब चौधारी गाय हत्या जैसा कुकर्म कर रहे हैं। जिसमें कुछ भ्रष्ट पुलिस अधिकारी भी लिप्त हैं और इस पाप को सामने आने नहीं दे रहे हैं। कुछ अच्छे नेता और पुलिस अधिकारी गौ हत्या के सख्त खिलाफ हैं, परंतु उनके पास कोई सबूत नहीं है।

सूफी कुरैशी भी इस क्रूरता में शामिल है। कल्पना मिश्रा पेशे से पत्रकार है। सूफी को प्यार करने के साथ-साथ वह एक मजबूत और महत्वाकांक्षी लड़की है। हमेशा अपराध पर पड़े परदे को उठाने की कोशिश में लगी रहती है। चाहे वो गौ हत्या हो या महिलाओं पर हो रहे अत्याचार।
समय बीतता है और सूफी जो गौ हत्या में शामिल था, वह कल्पना की मदद से गौ हत्या के खिलाफ हो जाता है और इस लड़ाई का आरंभ करता है। ‘अहिंसा : एक अनकही कहानी’ के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि असली गुनाहगार कौन है? कानून या आम आदमी? फिल्म के जरिये गौ हत्या के खिलाफ सोए समाज को जागृत करने की कोशिश की गई है।

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धार्मिक कार्यों में गाय के गोबर का प्रयोग क्यों?

आपने देखा होगा कि किसी भी धार्मिक कार्यों में गाय के गोबर से स्थान को पवित्र किया जाता है। गाय के गोबर से बने उपले से हवन कुण्ड की अग्नि जलाई जाती है। आज भी गांवों में महिलाएं सुबह उठकर गाय गोबर से घर के मुख्य द्वार को लिपती हैं। माना जाता है कि इससे लक्ष्मी का वास बना रहता है। प्राचीन काल में मिट्टी और गाय का गोबर शरीर पर मलकर साधु संत स्नान भी किया करते थे।

इसके पीछे धार्मिक कारण यह है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार गोमूत्र में गांगा मैया का वास है। इसलिए आयुर्वेद में चिकित्सा के लिए गोमूत्र पीने की भी सलाह दी जाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी गोबर को चर्म रोग एवं गोमूत्र को कई रोगों में फायदेमंद बताया गया है।

गाय का दूध उत्तम आहार माना गया है। माना जाता है कि मां के दूध के समान गाय का दूध पौष्टि होता है। इसलिए गाय को माता भी कहा गया है। शास्त्रों में कहा गया है ”गावो विश्वस्य मातरः”। यानी गाय विश्व की माता है।

नवग्रहों सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, केतु के साथ साथ वरूण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है, जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है, और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है।

गाय के अंगों में सभी देवताओं का निवास माना जाता है। गाय की छाया भी बेहद शुभप्रद मानी गयी है। गाय के दर्शन मात्र से ही यात्रा की सफलता स्वतः सिद्ध हो जाती है। दूध पिलाती गाय का दर्शन हो जाए तो यह बेहद शुभ माना जाता है।

पंचगव्य

गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का पानी को सामूहिक रूप से पंचगव्य कहा जाता है। आयुर्वेद में इसे औषधि की मान्यता है। हिन्दुओं के कोई भी मांगलिक कार्य इनके बिना पूरे नहीं होते।

पंचगव्य का चिकित्सकीय महत्व

पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर के द्वारा किया जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर के रोगनिरोधक क्षमता को बढाकर रोगों को दूर किया जाता है। गोमूत्र में प्रति ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। दही एवं घी के पोषण मान की उच्चता से सभी परिचित हैं। दूध का प्रयोग विभिन्न प्रकार से भारतीय संस्कृति में पुरातन काल से होता आ रहा है। घी का प्रयोग शरीर की क्षमता को बढ़ाने एवं मानसिक विकास के लिए किया जाता है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं जो क्षुधा को बढ़ाने में सहायता करते हैं। पंचगव्य का निर्माण देसी मुक्त वन विचरण करने वाली गायों से प्राप्त उत्पादों द्वारा ही करना चाहिए।

पंचगव्य निर्माण

सूर्य नाड़ी वाली गायें ही पंचगव्य के निर्माण के लिए उपयुक्त होती हैं। देसी गायें इसी श्रेणी में आती हैं। इनके उत्पादों में मानव के लिए जरूरी सभी तत्त्व पाये जाते हैं। महर्षि चरक के अनुसार गोमूत्र कटु तीक्ष्ण एवं कषाय होता है। इसके गुणों में उष्णता, राष्युकता, अग्निदीपक प्रमुख हैं। गोमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फुर, अमोनिया, कॉपर, लौह तत्त्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फास्फेट, सोडियम, पोटेसियम, मैंगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सिअम, नमक, विटामिन बी, ऐ, डी, ई; एंजाइम, लैक्टोज, हिप्पुरिक अम्ल, कृएतिनिन, आरम हाइद्रक्साइद मुख्य रूप से पाये जाते हैं। यूरिया मूत्रल, कीटाणु नाशक है। पोटैसियम क्षुधावर्धक, रक्तचाप नियामक है। सोडियम द्रव मात्रा एवं तंत्रिका शक्ति का नियमन करता है। मेगनीसियम एवं कैल्सियम हृदयगति का नियमन करते हैं।

भारत में गाय को माता कहा जाता है। विश्व के दूसरे देशों में गाय को पूजनीय नहीं माना जाता। भारतीय गोवंश मानव का पोषण करता रहा है, जिसका दूध, गोमूत्र और गोबर अतुलनीय है। सुख, समृद्धि की प्रतीक रही भारतीय गाय आज गोशालाओं में भी उपेक्षित है। अधिक दूध के लिए विदेशी गायों को पाला जा रहा है जबकि भारतीय नस्ल की गायें आज भी सर्वाधिक दूध देती हैं। गोशाला में देशी गोवंश के संरक्षण, संवर्धन की परम्परा भी खत्म हो रही है। हमारी गोशालाएं ‘डेयरी फार्म’ बन चुकी हैं, जहां दूध का ही व्यवसाय हो रहा है और सरकार भी इसी को अनुदान देती है। वैसे गोशाला में दान देने वाले व्यक्तियों की भी कमी नहीं है। हमें देशी गाय के महत्व और उसके साथ सहजीवन को समझना जरुरी है। आज भारतीय गोशालाओं से भारतीय गोवंश सिमटता जा रहा है।

गाय की उत्पत्ति स्थल भी भारत ही है। गाय का उद्भव बास प्लैनिफ्रन्स के रूप में प्लाईस्टोसीन के प्रथम चरण (15 लाख वर्ष पूर्व) में हुआ। इस प्रकार इसका सर्वप्रथम विकास एशिया में हुआ। इसके बाद प्लाईस्टोसीन के अंतिम दौर (12 लाख वर्ष पूर्व) गाय अफ्रीका और यूरोप में फैली। विश्व के अन्य क्षेत्र उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में तो 19वीं सदी में गोधन गया। गायों का विकास दुनिया के पर्यावरण, वहां की आबोहवा के साथ उनके भौतिक स्वरूप व अन्य गुणों में परिवर्तित हुआ। भारतीय ऋषि-मुनियों ने गाय को कामधेनु माना, जो समस्त भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाली है। गाय का दूध अनमोल पेय रहा है। गोबर से ऊर्जा के लिए कंडे व कृषि के लिए उत्तम खाद तैयार होती है। गोमूत्र तो एक रामबाण दवा है, जिसका अब पेटेंट का हो चुका है।

विदेशी नस्ल की गाय को भारतीय संस्कृति की दृष्टि से गोमाता नहीं कहा जा सकता। जर्सी, होलस्टीन, फ्रिजियन, आस्ट्रियन आदि नस्ल की तुलना भारतीय गोवंश से नहीं हो सकती। आधुनिक गोधन जिनेटिकली इंजीनियर्ड है। इन्हें मांस व दूध उत्पादन अधिक देने के लिए सुअर के जींस से विलगाया गया है।

भारतीय नस्ल की गायें सर्वाधिक दूध देती थीं और आज भी देती हैं। ब्राजील में भारतीय गोवंश की नस्लें सर्वाधिक दूध दे रही हैं। अंग्रेजों ने भारतीयों की आर्थिक समृद्धि को कमजोर करने के लिए षडयंत्र रचा था। कामनवेल्थ लाइब्रेरी में ऐसे दस्तावेज आज भी रखे हैं। आजादी बचाओ आंदोलन के प्रणेता प्रो. धर्मपाल ने इन दस्तावेजों का अध्ययन कर सच्चाई सामने रखी है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट में कहा गया है-‘ब्राजील भारतीय नस्ल की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। वहां भारतीय नस्ल की गायें होलस्टीन, फ्रिजीयन (एचएफ) और जर्सी गाय के बराबर दूध देती हैं।

हमारे गोवंश की शारीरिक संरचना अदभुत है। इसलिए गोपालन के साथ वास्तु शास्त्र में भी गाय को विशेष महत्व दिया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भारतीय गोवंश की रीढ़ में सूर्य केतु नामक एक विशेष नाड़ी होती है। जब इस पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तब यह नाड़ी सूर्य किरणों के तालमेल से सूक्ष्म स्वर्ण कणों का निर्माण करती है। यही कारण है कि देशी नस्ल की गायों का दूध पीलापन लिए होता है। इस दूध में विशेष गुण होता है। विदेशी नस्ल की गायों का दूध त्याज्य है। ध्यान दें कि अनेक पालतू पशु दूध देते हैं, पर गाय का दूध को उसके विशेष गुण के कारण सर्वोपरी पेय कहा गया है। गाय के दूध, गोबर व मूत्र में अदभुत गुण हैं, जो मानव जीवन के पोषण के लिए सर्वोपरि हैं।

देशी गाय का गोबर व गोमूत्र शक्तिशाली है। रासायनिक विश्लेषण में देखें कि खेती के लिए जरुरी 23 प्रकार के प्रमुख तत्व गोमूत्र में पाए जाते हैं। इन तत्वों में कई महत्वपूर्ण मिनरल, लवण, विटामिन, एसिड्स, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट होते हैं।

गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है। गौरी-गणेश के बाद ही पूजा कार्य होता है। गोबर में खेती के लिए लाभकारी जीवाणु, बैक्टीरिया, फंगल आदि बड़ी संख्या में रहते हैं। गोबर खाद से अन्न उत्पादन व गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

गाय मानव जीवन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राणी है। भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति और परम्परा में गाय को इसीलिए पूज्यनीय ही माना जाता है। हम भारतीय गोवंश को अपनाकर उन्हें गोशाला में संरक्षित, संवर्धित कर सकते हैं, जिसका सर्वाधिक लाभ भी हमें ही मिलेगा। देशी गौवंश को हमारी गोशालाओं से हटाने की साजिश भी सफल हो रही है, जिस पर समय रहते ध्यान देना जरुरी है।

अहिल्या बाई और गौ माता की कथा

 

गोमाता ने स्वंय का पुत्र खोकर भी हत्यारे के प्राण
बचाये।
एक बार की बात है इन्दौर नगर के किसी मार्ग के
किनारे एक गाय अपने बछड़े के साथ खड़ी थी,
तभी देवी अहिल्याबाई के पुत्र मालोजीराव अपने रथ
पर सवार होकर गुजरे । मालोजीरा व बचपन से ही बेहद
द्यारारती व उच्छृंखल प्रवृत्ति के थे । राह चलते
लोगों को परेशान करने में उन्हें विशेष आंनद आता था ।
गाय का बछड़ा अकस्मात उछलकर उनके रथ के सामने आ
गया । गाय भी उसके पीछे दौड़ी पर तब तक
मालोजी का रथ बछड़े के ऊपर से निकाल चुका था ।
रथ अपने पहिये से बछड़े को कुचलता हुआ आगे निकल
गया था ।
गाय बहुत देर तक अपने पुत्र की मृत्यु पर शोक
मनाती रही । तत्पष्चात उठकर देवी अहिल्याबाई के
दरबार के बाहर टंगे उस घण्टे के पास जा पहुँची, जिसे
अहिल्याबाई ने प्राचीन राज परम्परा के अनुसार
त्वरित न्याय हेतु विशेष रूप से लगवाया था।
अर्थात् जिसे भी न्याय की जरूरत होती,वह जाकर उस
घन्टें को बजा देता था। जसके बाद तुरन्त दरबार
लगता तुरन्त न्याय मिलता । घन्टें की आवाज सुनकर
देवी अहिल्याबाई ने ऊपर से एक विचित्र दृश्य
देखा कि एक गाय न्याय का घन्टा बजा रही है ।
देवी ने तुरन्त प्रहरी को आदेश दिया कि गाय के
मालिक को दरबार में हाजिर किया जाये। कुछ देर
बाद गाय का मालिक हाथ जोड़ कर दरबार में
खड़ा था। देवी अहिल्याबाई ने उससे कहा कि ” आज
तुम्हारी गाय ने स्वंय आकर न्याय की गुहार की है ।
जरूर तुम गो माता को समय पर चारा पानी नही देते
होगें। उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा कि माते
श्री ऐसी कोई बात नही है । गोमाता अन्याय
की शिकार तो हुई है,परन्तु उसका कारण में नही कोई
ओर है, उनका नाम बताने में मुझे प्राणो का भय है ।”
देवी अहिल्या ने कहा कि अपराधी जो कोई भी है
उसका नाम निडर होकर बताओं ,तुम्हे हम अभय -दान देते
है। तब उस व्यक्ति ने पूरी वस्तु:स्थित कह सुनायी । अपने
पुत्र को अपराधी जानकर देवी अहिल्याबाई तनिक
भी विचलीत नही हुई। और फिर गोमाता स्वयं उनके
दरबार में न्याय की गुहार लगाने आयी थी। उन्होने
तुरन्त मालोजी की पत्नी मेनावाई को दरबार में
बुलाया यदि कोई व्यक्ति किसी माता के पुत्र
की हत्या कर दें ,तो उसे क्या दण्ड मिलना चाहिए ?
मालो जी की पत्नी ने कहा कि जिस प्रकार से
हत्या हुई, उसी प्रकार उसे भी प्राण-दण्ड
मिलना चाहिए। देवी अहिल्याने तुरन्त
मालोजी राव का प्राण-दण्ड सुनाते हुए उन्हें
उसी स्थान पर हाथ -पैर बाँधकर उसी अवस्था में मार्ग
पर डाल दिया गया। रथ के सारथी को देवी ने आदेश
दिया ,पर सारथी ने हाथ जोड़कर
कहा मातेश्री मालोजी राजकुल के एकमात्र कुल
दीपक है। आप चाहें तो मुझे प्राण -दण्ड दे दे,किन्तु मे
उनके प्राण नही ले सकता । तब देवी अहिल्याबाई स्वंय
रथ पर सवार हुई और मालोजी की ओर रथ को तेजी से
दोड़ाया, तभी अचानक एक अप्रत्याशित घटना हुई।
रथ निकट आते ही फरियादी गोमाता रथ निकट आ
कर खड़ी हो गयी । गोमाता को हटाकर देवी ने फिर
एक बार रथ दौड़ाया , फिर गोमाता रथ के सामने आ
खड़ी हो गयी। सारा जन समुदाय गोमाता और उनके
ममत्व की जय जयकार कर उठा।
देवी अहिल्या की आँखो से भी अश्रुधारा बह
निकलीं ।
गोमाता ने स्वंय का पुत्र खोकर भी उसके हत्यारे के
प्राण ममता के वशीभूत होकर बचाये। जिस स्थान पर
गोमाता आड़ी खड़ी हुई थी, वही स्थान आज इन्दौर
में ( राजबाड़ा के पास) आड़ा बाजार के नाम से
जाना जाता है।

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भारतीयों की ताकत का राज़ उनकी उन्नत कृषि और गाय है जिसे वे गौमाता कह कर पुकारते है- रोबर्ट क्लाइव

भारतीयों की ताकत का राज़ उनकी उन्नत कृषि और गाय है जिसे वे गौमाता कह कर पुकारते है- रोबर्ट क्लाइव
हमारा देश लम्बे समय तक अंग्रेंजो का गुलाम रहा ,सेकड़ो वर्षो तक इस देश को अंग्रेंजो ने गुलाम बनाने की काफी तैयारी की थी
सन 1813 में अंग्रेंजो की संसद हाउस ऑफ़ कॉमन्स में एक बहस चली 24 जुन 1813 को वो बहस पूरी हुई और वहाँ से एक प्रस्ताव पारित किया
भारत में गरीबी पैदा करनी है भुखमरी लानी है भारत की समृदि को तोडन है इनको यदि शारीरिक और मानसिक रूप से कमज़ोर करना है
तो भारत की अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करना पड़ेगा इसे बरबाद करना पड़ेगा
इसके लिय भारत का केन्द्र बिन्दु भारत की कृषि पद्धति को भी बरबाद करना पड़ेगा । भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि पर टिकी हुई है
इनकी कृषि गाय पर टिकी हुई है गाय के बिना भारतीय कृषि हो नहीं सकती
दूसरा इनको ये पता चला के भारत के कोने कोने में गाय की पूजा होती है इनके 33 करोड़ देवी देवता इसमें वास करते है

तब उन्होंने एक बढ़ा फैसला लिया यदि भारतीय कृषि को बरबाद करना है भारतीय संस्कृति का नाश करना है तो गाय का नाश करना चाहिय
भारत मे पहला गौ का कत्लखाना 1707 ईस्वी में रॉबर्ट क्लाएव ने खोला था जिसमें गाय को काट कर उसके मॉस को अंग्रेंजी फोज़ को खिलाया जाने लगा
गो वंश का नाश शुरू हो गया।

बीच दौर में अंग्रेंजो को एक और महत्वपूर्ण बात पता चली के यदि गो वंश का नाश करना है तो उसके लिय जहाँ से इसकी उत्पति होती है उस नन्दी को मरवाना होगा
तो अग्रेंजो ने गाय से ज्यादा नन्दी का कत्ल करवाना शुरू किया।
1857 में मंगल पाण्डे को जब फांसी सजा हुई थी इसका मूल प्रश्न गाय का ही था इसी मूल प्रश्न से हिन्दुस्तान में क्रांति की शुरुआत हुई थी
उस जमाने में अंग्रेंजो ने पुरे भारत में लगभग 350 कत्लखाने खुलवाये|
1939 में लाहोर शहर में अंग्रेंजो ने एक मशीनी कत्लखाना खोला बढे पैमाने में वहाँ गो और नंदी का कत्ल हो सकत था
इस कत्ल खाने को बंद करने के लिय सबसे जबरदस्त आंदोलन किया पंडित नेहरू ने और आंदोलन सफल भी हुआ
कत्लखाना बंद हो गया पंडित नेहरू ने कहा यदि वो अज़ाद हिंदुस्तान के किसी महत्वपूर्ण पद पर पहुंचे तो वो ऐसा कानून बना देंगे जिसे हिंदुस्तान में गाय का कत्ल बंद हो जायेगा

1939 में लाहोर शहर में अंग्रेंजो ने एक मशीनी कत्लखाना खोला बढे पैमाने में वहाँ गो और नंदी का कत्ल हो सकत था
इस कत्ल खाने को बंद करने के लिय सबसे जबरदस्त आंदोलन किया पंडित नेहरू ने और आंदोलन सफल भी हुआ
कत्लखाना बंद हो गया पंडित नेहरू ने कहा यदि वो अज़ाद हिंदुस्तान के किसी महत्वपूर्ण पद पर पहुंचे तो वो ऐसा कानून बना देंगे जिसे हिंदुस्तान में गाय का कत्ल बंद हो जायेगा
चांस की बात नेहरू भारत के सबसे उँचे शिखर पर बैठे और डॉ राजेन्द्र प्रसाद भारत के राष्ट्रपति बने

दुःख की बात ये है दोनों अपने शासन काल में गो के लिय ऐसा कोई कानून ही नहीं बना पाये| बाकी बहुत सारे कानून उन्होंने बनाये
आज अज़ादी के 67 साल में पुरे भारत में लगभग 36000 कत्लखाने है जिसमें कुछ कत्लखाने ऐसे है जिसमें 10 हज़ार पशु रोज़ काटे जाते है
भारत वर्तमान में विश्व का 3 नम्बर गो मॉस निर्यात करने वाला देश बन गया है
भविष्य में इन कत्ल खानो को हाई टेक किया जाना है
अंग्रेंजो ने 1910 से 1940 तक लगभग 10 करोड़ से ज्यादा गो वंश को खत्म किया गया ।

अज़ादी के 50 साल बाद 1947 से 1997 तक लगभग 48 करोड़ गो वंश का नाश किया जा चूका है
अगर भारत में इन 48 करोड़ गो वंश को यदि बचा लिया गया होता तो भारत में सम्पति और सम्पदा कितनी होती पैसा कितना होता
एक गाय 1 साल में 25 हज़ार रुपय का फ़र्टिलाइज़र (खाद ) पैदा करती है जो हम फ़र्टिलाइज़र करोडो रुपय का आयात करते है वो करोडो रूपया बचता
यदि 48 करोड़ गाय बचती तो हमने कितनी खाद का नुकसान किया है
1 गाय यदि 1 साल में 10 से 15 हज़ार रुपय का दूध देती हो तो कितने रुपय का नुकसान हुआ है गाय के दूध,मूत्र से 108 तरह की दवाये बनती है
कैंसर,मधुमेह तक का इलाज़ है गाय के मूत्र में
भारत को पेट्रोल और डीज़ल बहार से आयात करना पढ़ता है
बायो गैस से भारत की पेट्रोल, डीज़ल,गैस सिलेंडर और बेरोज़गारी की समस्या को भी ख़त्म किया जा सकता है ये पशुधन कितनी बचत कर सकता है आप सोचिय जरा ??

और अधिक जानकारी के लिय लिंक पर क्लिक करे

गाय एक अद्भुत रसायनशाला

अमेरिका के कृषि विभाग द्वारा प्रकाशित हुई पुस्तक ” THE COW IS A WONDERFUL LABORATORY ” के अनुसार प्रकृति ने समस्त जीव-जंतुओं और सभी दुग्धधारी जीवों में केवल गाय ही है जिसे ईश्वर ने 180 फुट (2160 इंच ) लम्बी आंत दी है जो की एनी पशुओ में ऐसा नहीं है जिसके कारण गाय जो भी खाती-पीती है वह अंतिम छोर तक जाता है |
लाभ :- जिस प्रकार दूध से मक्खन निकालने वाली मशीन में जितनी अधिक गरारियां लगायी जाती है उससे उतना ही वसा रहित मक्खन निकलता है , इसीलिये गाय का दूध सर्वोत्तम है |
गो वात्सल्य :- गौ माता बच्चा जनने के 18 घंटे तक अपने बच्चे के साथ रहती है और उसे चाटती है इसीलिए वह लाखो बच्चों में भी वह अपने वच्चे को पहचान लेती है जवकि भैंस और जरसी अपने बच्चे को नहीं पहचान पायेगी | गाय जब तक अपने बच्चे को अपना दूध नहीं पिलाएगी तब तक दूध नहीं देती है , जबकि भैस , जर्सी होलिस्टयन के आगे चारा डालो और दूध दुह लो |
बच्चो में क्रूरता इसीलिए बढ़ रही है क्योकि जिसका दूध पी रहे है उसके अन्दर ममता नहीं है |
खीस :- बच्चा देने के गाय के स्तन से जो दूध निकलता है उसे खीस, चाका, पेवस, कीला कहते है , इसे तुरंत गर्म करने पर फट जाता है | बच्चा देने के 15 दिनों तक इसके दूध में प्रोटीन की अपेक्षा खनिज तत्वों की मात्रा अधिक होती है , लेक्टोज , वसा ( फैट ) एवं पानी की मात्रा कम होती है | खीस वाले दूध में एल्व्युमिन दो गुनी , ग्लोव्लुलिन 12-15 गुनी तथा एल्युमीनियम की मात्रा 6 गुनी अधिक पायी जाती है |
लाभ:- खीज में भरपूर खनिज है यदि काली गौ का दूध ( खीझ) एक हफ्ते पिला देने से वर्षो पुरानी टीबी ख़त्म हो जाती है |
सींग :- गाय की सींगो का आकर सामान्यतः पिरामिड जैसा होता है , जो कि शक्तिशाली एंटीना की तरह आकाशीय उर्जा ( कोस्मिक एनर्जी ) को संग्रह करने का कार्य सींग करते है |
गाय का ककुद्द ( ढिल्ला ) :- गाय के कुकुद्द में सुर्य्केतु नाड़ी होती है जो सूर्य से अल्ट्रावायलेट किरणों को रोकती है , 40 मन दूध में लगभग 10 ग्राम सोना पाया जाता है जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढती है इसलिए गाय का घी हलके पीले रंग का होता है |
गाय का दूध :- गाय के दूध के अन्दर जल 87 % वसा 4 %, प्रोटीन 4% , शर्करा 5 % , तथा अन्य तत्व 1 से 2 % प्रतिशत पाया जाता है |
गाय के दूध में 8 प्रकार के प्रोटीन , 11 प्रकार के विटामिन्स , गाय के दूध में ‘ कैरोटिन ‘ नामक प्रदार्थ भैस से दस गुना अधिक होता है |
भैस का दूध गर्म करने पर उसके पोषक ज्यादातर ख़त्म हो जाते है परन्तु गाय के दूध के पोषक तत्व गर्म करने पर भी सुरक्षित रहता है |
गाय का गोमूत्र :- गाय के मूत्र में आयुर्वेद का खजाना है , इसके अन्दर ‘ कार्बोलिक एसिड ‘ होता है जो कीटाणु नासक है , गौ मूत्र चाहे जितने दिनों तक रखे ख़राब नहीं होता है इसमें कैसर को रोकने वाली ‘ करक्यूमिन ‘ पायी जाती है |
गौ मूत्र में नाइट्रोजन ,फास्फेट, यूरिक एसिड , पोटेशियम , सोडियम , लैक्टोज , सल्फर, अमोनिया, लवण रहित विटामिन ए वी सी डी ई , इन्जैम आदि तत्व पाए जाते है |
देसी गाय के गोबर-मूत्र-मिश्रण से ‘ प्रोपिलीन ऑक्साइड ” उत्पन्न होती है जो बारिस लाने में सहायक होती है | इसी के मिश्रण से ‘ इथिलीन ऑक्साइड ‘ गैस निकलती है जो ऑपरेशन थियटर में काम आता है |
गौ मूत्र में मुख्यतः 16 खनिज तत्व पाये जाते है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाता है |
गाय का शरीर :- गाय के शरीर से पवित्र गुग्गल जैसी सुगंध आती है जो वातावरण को शुद्ध और पवित्र करती है |
जननी जनकार दूध पिलाती ,
केवल साल छमाही भर |
गोमाता पय-सुधा पिलाती ,
रक्षा करती जीवन भर |
जय गौ माता ——by @UC Browser

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मैनेजर की नौकरी छोड़ खोली गोशाला

फैशन की रंगीली दुनिया छोड़ गौशाला शुरु करने वाली निधि यादव

 

सरकारी अफसरों से भरे परिवार में उसने बहुत पहले तय कर लिया था कि वह अपने मन का काम करेगी. इसीलिए 2010 में उसने एसबीआइ लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के दिल्ली में कनॉट प्लेस वाले दफ्तर की मैनेजरी को तौबा किया और मुंबई चली गई. यहां एक सहेली के साथ मिलकर लोखंडवाला में ‘बॉटलग्रीन’ नाम से स्टाइलिश कपड़ों का शोरूम शुरू कर दिया. काम चल निकला.

लेकिन संगम किनारे वाली लड़की को समंदर के शहर की हवा कहां रास आती भला! सो मन फिर उचट गया. वह इलाहाबाद लौट आई और यहां से प्रतापगढ़ रोड पर 30 किमी दूर अपने पुश्तैनी गांव धोसड़ा पहुंची. गोबर लिपे चबूतरों और दूध दुहते किसानों को देखकर उसके एमबीए दिमाग में नया पॉप अप ब्लिंक हुआ—”पापा देसी गायों की सेवा करते हैं, आस्था को बिजनेस मॉडल का सहारा मिल जाए तो धर्म और बिजनेस दोनों चल सकते हैं.”

इस विचार के बाद 30 वर्षीय निधि यादव की जिंदगी बदल गई. उन्होंने अपने पिता शिक्षाविद् वासुदेव यादव के सहयोग से देश के अलग-अलग इलाकों से परित्यक्त देसी नस्ल की गायों को गांव लाना शुरू किया. आज धोसड़ा गांव में उनकी 100 गायों की गोशाला ‘गोधाम’ है. जहां सिर्फ साहीवाल और गीर नस्ल की भारतीय गाएं हैं.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि यहां गोमाता की सेवा ही हो रही है या बिजनेस का ख्वाब भी आगे बढ़ रहा है. निधि की सुनिए, ”बिजनेस से आपका मतलब दूध और उससे बनने वाले उत्पादों से होगा,लेकिन पहले वह सुनिए जो आपके सवाल में शामिल नहीं है.” पहला काम तो यहां यह हुआ है कि जिन 40 एकड़ खेतों के बीच यह गोशाला बनी है, वहां पूरी तरह ऑर्गेनिक खेती हो रही है, क्योंकि यहां खेती के लिए खाद गोशाला से निकले गोबर और गोमूत्र से मिल रही है.

फ्रांस की एक कंपनी ने गोधाम की फसल को ऑर्गेनिक प्रमाणपत्र दे दिया है. बाकी किसानों का गेहूं जहां 1,400 रु. क्विंटल बिकता है वहीं गोधाम का गेहूं 2,500 रु. क्विंटल. यहां की गायें रोजाना 15 से 20 लीटर दूध देती हैं जो विदेशी नस्ल की गायों से थोड़ा कम है, लेकिन इन गायों के रख-रखाव पर होने वाला खर्च तो विदेशी गायों पर होने वाले खर्च का आधा भी नहीं. निधि के सॉफ्टवेयर इंजीनियर पति प्रभात कुमार चुटकी लेते हैं, ”इन्हें इतनी फिक्र तो आद्या (निधि की 4 महीने की बेटी) की भी नहीं है, जितनी गाय के बछड़ों की रहती है.”

निधि बखूबी जानती हैं कि यह वक्त हाइजिन और इकोफ्रेंडली जुमलों को जोर से उछालने का है. दो टवेरा गाडिय़ां सुबह-शाम गांव से दूध लेकर इलाहाबाद पहुंच जाती हैं. गोधाम के दूध के ग्राहकों में इलाहाबाद हाइकोर्ट के जज, बड़े सरकारी अफसर और शहर की मिठाई की नामी दुकानें शामिल हो गई हैं. लेकिन निधि को अंदाजा है कि यह तो बस शुरुआत भर है. वे इस जुगत में लगी हैं कि किस तरह गोधाम को ‘डेयरी प्लांट’ में बदला जाए.

उनकी मुहिम का समर्थन करते हुए उनके पिता वासुदेव यादव कहते हैं, ”अगर हम समाज को यह दिखा सकें कि गाय पालना आज भी मुनाफे का सौदा है, तो शायद हमें उन मनहूस मंजरों से निजात मिल जाए, जिसमें गाय सड़कों पर पॉलीथीन और दर-दर की ठोकरें खाती दिखती हैं.”

गौ घृत के चमत्कार

गाय के घी को अमृत कहा गया है जो जवानी को कायम रखते हुए बुढ़ापे को दूर रखता है । ऐसी मान्यता है कि काली गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है । देशी गाय के घी को रसायन कहा गयाहै जो तरुणाई को कायम रखते हुए, वृद्धावस्था को दूर रखता है। गाय के घी में पाए जाने वाले स्वर्ण-छार में अदभुत औषधिय गुण होते हैंजो गाय के घी के अलावा अन्य किसी घी में नहीं मिलते । गाय के घी मेंवैक्सीन एसिड, ब्यूट्रिक एसिड, बीटा-कैरोटीन जैसे माइक्रोन्यूट्रींस मौजूद होते हैं जिनमें कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की अद्भुत क्षमता होती है।

धार्मिक नजरिये से देखने पर भी यदि गाय के 100 ग्राम घी से हवन अनुष्ठान (यज्ञ) किया जावे तो इसके परिणाम स्वरूप वातावरण में लगभग 1 टन ताजे ऑक्सीजन का उत्पादन होता है । यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने तथा धार्मिक समारोहों में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित है । इसमें वातावरण में फैले परमाणु विकिरणों को हटाने की पर्याप्त क्षमता होती है।

गाय के घी के औषधीय प्रयोग :–
दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है । गाय के घी को इसी प्रकार नाक में डालने से एलर्जी खत्म होती है, लकवे के रोग का उपचार होता है, कान का पर्दा ठीक हो जाता है, नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाताहै, कोमा के रोगी की चेतना वापस लौटने लगती है, बाल झडना समाप्त होकर नए बाल आने लगते है, मानसिक शांति मिलती है और याददाश्त तेज होती है ।
हाथ पांव मे जलन होने पर गाय के घीकी पैरों के तलवो में मालिश करने से जलन दूर होती है । ऐसे ही सिर दर्द के साथ यदि शरीर में गर्मी लगती हो तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करने से सर दर्द ठीक होकर शरीर में शीतलता महसूस होती है ।
फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है।
गाय के घी की छाती पर मालिश करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालनेमे मदद मिलती है ।
सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलाकर उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।

अधिक कमजोरी की शिकायत लगने पर एकगिलास गाय के दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पीने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है ।
हार्ट अटैक की तकलीफ वालों को चिकनाई खाने की मनाही हो तो भी गाय का घी खाएं इससे ह्रदय मज़बूतहोता है । यहाँ यह भी स्मरण रखें कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता, वजन संतुलित होता है यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है और मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।
20-25 ग्राम घी मिश्री के साथ खिलाने से शराब, भांग व गांजे का नशा कम हो जाता है।

गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है ।

हिचकी के न रुकने पर गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी रुक जाएगी ।
गाय के घी के नियमित सेवन से बल-वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में इजाफा होता है ।

देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है । यह इस बीमारी के फैलने को आश्चर्यजनक गति से रोकता है और इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है ।
संभोग के बाद कमजोरी आने पर एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच देसीगाय का घी मिलाकर पीने से थकान खत्म व शरीर तरोताजा हो जाता है ।
रात को सोते समय एक गिलास मीठे दूध में एक चम्मच घी डालकर पीने से शरीर की खुश्की और दुर्बलता दूर होती है, नींद गहरी आती है, हड्डी बलवान होती है और सुबह शौच साफ आता है । शीतकाल के दिनों में यह प्रयोग करने से शरीर में बलवीर्य बढ़ता है और दुबलापन दूर होता है।
एक चम्मच गाय के शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है ।
उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए । यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है। गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार नाक में प्रयोग करने पर यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है।
गाय के घी को ठन्डे जल में फेंटकर घी को पानी से अलग कर लें, यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करें और फिर इस घी में थोड़ा सा कपूर मिला दें । इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असरकारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक मलहम कि तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं । यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है ।

गाय के घी में छिलके सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा)तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें । प्रातः खाली पेटएक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा कुनकुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों को प्रदर रोग में आराम होता है । पुरुषों को इसका प्रयोगसुडौल और बलवान बनता है।

विशेष – यदि स्वस्थ व्यक्ति भी हर रोज नियमित रूप से सोने से पहले दोनों नाशिकाओं में हल्का गर्म (गुनगुना) देसी गाय का घी डालकर सोने की आदत बनाले तो इससे नींद गहरी आएगी, खराटे बंद होंगे, यादास्त तेज होगी और अन्य अनेकों बीमारियों से शरीर का बचाव होता रह सकेगा । इसके लिए बिस्तर पर लेट कर दो दो बूंद घी दोनों नाकों में डाल कर पांच मिनट तक सीधे लेटे रहिये घी को जोर लगा कर न खीचें यह क्रिया अधिक प्रभावशालीहोती है । सामान्य व्यक्ति रात कोसोते वक्त तथा रोगी दिन में तीन बार देसी गाय का घी नाक में डाल सकते है ।

 

घी के बारे मे लोगो मे कई भ्रांतिया है हममे से ज्यादातर लोगो ने देशी घी के नुकसानो की कहानी ही पढ़ी है लोगो को लगता है घी खाने से कोलेस्ट्राल बढ़ जाता है,लोग मोटे हो जाते है आदि आदि, परिवार का कोई बुजर्ग सदस्य जब घी की अनदेखी पर चेताता है और कहता है कि घी खाने से हड्डीया मजबूत होती है,शरीर मे ताकत आती है तो उसकी सलाह को लोग पुराने जमाने की बात समझकर टाल देते है, शायद इसलिए कि ये सलाह फिटनेस के आधुनिक फण्डो पर खरा नही उतरती इसलिए भी कि घी के फायदो के सम्बन्ध मे लोगो को कभी कोई प्रमाणिक जानकारी नही मिली, लोग पश्चिमी देशो मे लोकप्रिय सब्जी व फल खूब खाते है,गर्मियो मे स्ट्राबेरी खाते है सर्दियो मे रेड वाइन पीते है क्योकि इसके सैकड़ो फायदे इन्टरनेट पर दर्ज है.
इन तमाम बातो के बीच हमारे परंपरागत खान-पान पीछे छूट गए जिनमे से घी भी एक है,अगर अपने ग्रन्थो के पन्नो को पलटे तो पता चलता है कि आर्युवेद मे घी को काफी फायदेमंद बताया गया है आर्युवेद मे कई ऐसी दवाए है जिनके निर्माण मे देशी घी का प्रयोग होता है,
घी खाने से होने वाले कुछ प्रमुख फायदो से आज हम आपको अवगत करा रहे है-
1.घी से हमे विटामिन D मिलता है जिससे हमारी त्वचा खूबसूरत बनती है
2.घी खाने से हमारे शरीर मे हार्मोन की मात्रा संतुलित रहती है
3.घी हमारी हड्डियो को मजबूत बनाता है जिससे बुढ़ापे मे जोड़ो का दर्द नही सताता है
4.घी हमारे शरीर मे कई तरह के रसायनो का निर्माण करता है जिससे पाचन क्रिया मजबूत बनती है
5.घी खाने से विटामिनो के अलावा पोटैशियम फास्फोरस मिनरल्स जैसे पोषक तत्व हमारे शरीर को मिलते है

:::::¤¤ वन्दे गौ मातरम् ¤¤:::::

Value of Cows – (Translated in Hindi & English)

 

Once upon a time there was a sage name Chayavan, who was a great Tapasvi and also the son of Bhrugu Rishi .Once he undertook a vow to remain inside water for meditation. He wanted to give up attachment, anger, pride, pain, pleasure, sorrow etc. He was inside the water for 12 years and meditated. Seeing this austerity and nature of great soul all the living entities inside the water became his friends and had no fear from him. Once this great saint entered the confluence of Ganga and Yamuna rivers with great faith and humility. At times he would perform Samadhi inside water and sometimes float on water. In this way, lot of time passed away.
Once a fisherman came there to catch fish. With the intention of catching the fish he threw the net. Coincidently Chyavan rishi was caught in the net. However fisherman was not aware that he has caught the Rishi in his net and so when he tried to pull the net, it was very heavy and so he thought that today he has got a big fish in his net. All fishermen together started pulling the net with full force and when the net came out on shore they saw that along with fishes Chyavan rishi has also been caught in net.
Seeing a Rishi caught in their net all the fishermen got frightened. They started begging for forgiveness with folded hands. Having being removed from water the fishes died after withering in pain. Seeing this scene the heart of Chyavan rishi melted with compassion. He said to the fishermen, “I will give up my life along with these fishes as we both were living together for long time. I cannot give up their company. Since they are now without consciousness, I will also become like them.
Hearing such statements from the sage the fishermen were trembling with fear, as they would become the cause of death of saintly person like Chyavan rishi. They told the sage to wait, and ran toward the king Nahusha and narrated the incident in detail. King Nahusha heard everything and was pleased that a sage of such great caliber i.e. Chyavan rishi has come to his kingdom to show some mercy. He thought this to be mercy of Supreme lord and went to meet the sage along with ministers and priests along with the fishermen.
King immediately joined hands in front of him and worshiped him nicely and offered obeisances unto the sage Chyavan. Then thus satisfying him the king said, “Your servant is ready to carry out your order. Please order and be merciful.”
The sage said, “Today these fishermen had removed me from water along with these fishes with great effort. But seeing me caught in the net they have become greatly fearful and perturbed. They could not get much fish also today. How will their life go on? Please give them the right price of myself to these fishermen so that they can carry on with their life.”
At that time the king Nahusha said to the ministers, “Please give these fishermen 1000 gold coins as price for this sage.” Hearing this sage said, “O King is my value only 1000 gold coins. Please decide the right amount of my value and give to the fishermen.” Then Nahusha said to the ministers, “Please give these fishermen 1 lakh gold coins. Saying this he enquired from the sage weather is this the right amount? The sage Chyavan replied, “Please don’t limit me to only 1 lakh coins.
Please take advice from your ministers and priests and then decide my value.” The king without discussing told the people to give the fishermen 1 crore gold coins. Sage again protested. King told that half his kingdom be given to fishermen. The sage said, “O king what to speak of half kingdom, even your full kingdom will not be equal to my value. Please consult your ministers, priests and sages etc to decide my value.
Hearing this king was mortified. He thus consulted his ministers and priests. At this time another forest dwelling muni who subsisted only on roots and fruits came near the king and spoke to him. O King don’t be dejected. I will satisfy this Chyavan rishi and also tell the right value of this sage.
Please listen to me carefully as I never speak lies.. I always speak truth and so have no doubts.
King said, “O lords, I am in great danger. Because of my actions, a great sage is ready to give up his life. If you can tell me the right value of this Chyavan rishi then I will be grateful. Please save my kingdom my family and me from this great danger. Hearing this that Sage spoke, “Brahman’s and cows belong to same family but appear differently. Brahman’s take the form of mantras and cows take form of offering in yajnas. We cannot estimate the value of Cows and Brahman’s. Therefore, you give a cow as value for this Chyavan sage.
Hearing the statements of this forest dwelling muni king and his priests became overjoyed. They quickly went to Chyavan rishi and told him that we have fixed cow as equal in value to you, which we will give to anglers. Now please get up and desist from giving up life. Chyavan replied, “Yes, you have purchased me at right price. Surely, there is no wealth comparable to Holy cows in this world. Great glories are sung chanting and glorifying holy cow’s qualities and names. Performance of above activities grant us supreme destination. They bless us with laxmi, and they are not tinged with sins.
Cows always grant men grains and demigods sacrificial offerings. All sacrifices are dependent on cows and cows are the sacrificial mouths. They hold divine nectar (amruta) which is free from all faults and on being milked; they give only nectar (milk). Nectar is sheltered on cows. Whole world bows in front of them. Where ever a group of cows sits and breaths fearlessly that place increases in beauty and is freed from all sins. Cows are steps to heaven. Cows are worshipped even in heaven. They are demigoddesses who can fulfill all our desires. There is no one as great as they are and no one can describe them fully.
Saying thus the sage Chyavan became silent. That time the anglers requested the sage to accept the cow that they have received from the king. Sage accepted the cow and said that by donating a cow all your sins have been destroyed. Now soon all of you will attain heaven along with these sins. While the sage was saying, thus the fishes and anglers started ascending to heaven. Seeing them ascend to heaven king Nahusha was astonished. Then the sages who had suggested the values of cow and Chayavan muni asked the king to ask for blessings. The King asked that he should always walk on codes of religion and be engaged in devotional service. The king received this blessing and then worshiped all the sages.

एक बार वाराणसी में एक महात्मा तपस्या कर रहे थे , वे जल के अन्दर बैठ कर समाधी में थे की अचानक एक मछुआरे ने मछलियाँ पकड़ने के लिए जाल फेंका और गलती से मछलियों के साथ उनको भी जाल में पकड़ लिया और जल से निकाल लिया ,जब उसने देखा की मछलियों के साथ उसने महात्मा जी को भी पकड़ लिया तो मछुआरा उनको निकालने लगा ,पर महात्मा जी कहने लगे की तुम मुझे भी मछलियों के साथ ही बेच दो ,वह उनको छोड़ना चाहता था पर महात्…मा नहीं माने ,

बात राजा तक पहुंची ,राजा ने कहा ,”ठीक है महात्मा जी मैं आपको खरीद लेता हूँ ,बताईये ,कितने पैसे दू इस मछुआरे को आपको इससे खरीदने के लिए?”राजा ने लाखों ,करोड़ों रुपये दिए ,आधा राज्य ,फिर पूरा राज्य दे डाला ,पर महात्मा बोले …”बस मेरा मूल्य केवल एक राज्य ही है ?”फिर राजा ने महात्मा के सामने एक गौ खड़ी की ,तो महात्मा हंसने लगे और बोले ,”हा हा !! राजन ,तुम जीत गए ,और मैं हार गया ,मेरा मूल्य इस गौ माता से अधिक नहीं है ,गौ माता के सामान तीनों लोको में कोई वस्तु नहीं ”

गाय की बहु-उपयोगिता

…”गावः पवित्रं परमं
गावो मांगल्यमुत्तमम् ।
गावः स्वर्गस्य सोपानं
गावो धन्याः सनातनाः।।”

‘गायें परम पवित्र, परम मंगलमयी, स्वर्ग का सोपान, सनातन एवं धन्यस्वरूपा हैं।’

‘गाय पशु नहीं बल्कि सुंदर अर्थतन्त्र है।’ गाय का देश की अर्थव्यवस्था में भी काफी महत्त्व है। गाय का दूध, घी, मक्खन, झरण (गौमूत्र), गोबर आदि सभी जीवनोपयोगी तथा लाभकारी चीजें हैं।

इतना ही नहीं, गाय के रोएँ और निःश्वास भी मानव-जीवन के लिए आवश्यक हैं। इस बात की पुष्टि वैज्ञानिकों ने भी अपने प्रयोगों से की है।

गाय के शरीर से निकलने वाली सात्त्विक तरंगे पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करती हैं तथा वातावरण में फैले रोगों के कीटाणुओं को नष्ट करती हैं।

गाय के शरीर से गूगल की गंध निकलती है, जो प्रदूषण को नष्ट करती है।

गाय और उसके बछड़े के रँभाने की आवाज से मनुष्य की अनेक मानसिक विकृतियाँ तथा रोग अपने-आप नष्ट हो जाते हैं।

गाय की पीठ पर रोज सुबह-शाम 15-20 मिनट हाथ फेरने से ब्लडप्रेशर (रक्तचाप) नियंत्रित (संतुलित) हो जाता है।

गाय अपने निःश्वास में ऑक्सीजन छोड़ती है। डा. जूलिशस व डॉ. बुक (कृषि वैज्ञानिक जर्मनी)।

गाय अपने सींग के माध्यम से कॉस्मिक पावर ग्रहण करती है।

एक थके माँदे व तनावग्रस्त व्यक्ति को स्वस्थ एवं सीधी गाय के नीचे लिटाने से उसका तनाव एवं थकावट कुछ ही मिनटों में दूर हो जाती है तथा व्यक्ति पहले से ज्यादा ताजा एवं स्फूर्तियुक्त हो जाता है। (वैज्ञानिक पावलिटा, चेक यूनिवर्सिटी)।

पृथ्वी पर आने वाले भूकम्पों में से अधिकांश ई.पी.वेव्स से ही आते हैं, जो प्राणियों के क़त्ल के समय उत्पन्न दारूण वेदना एवं चीत्कार से निःसृत होती है।
–डॉ. मदनमोहन बजाज व डॉ. विजय राज सिंह (भौतिकी व खगोल विभाग के रीडर, दिल्ली वि.वि.)

गाय के ताजे गोबर से टी.बी. तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं।

गोबर में हैजे के कीटाणुओं को मारने की अदभुत क्षमता है।– डॉ. किंग, मद्रास।

अमेरिका के वैज्ञानिक जेम्स मार्टिन ने गाय के गोबर, खमीर और समुद्र के पानी को मिलाकर ऐसा उत्प्रेरक बनाया है, जिसके प्रयोग से बंजर भूमि हरी-भरी हो जाती है एवं सूखे तेल के कुओं में दोबारा तेल आ जाता है।

शहरों में निकलने वाले कचरे पर गोबर का घोल डालने से दुर्गंध पैदा नहीं होती एवं कचरा खाद में परिवर्तित हो जाता है। – डॉ. कांती सेन सर्राफ, मुम्बई।

♥ गौमांस खाने वाले सावधानः

युनानी चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार गाय का गोश्त बड़ा कड़ा होता है, यह जल्दी नहीं पचता। आदमी के पेट के माफिक नहीं है। इससे खून गाढ़ा होता है और उन्माद, पीलिया, घाव एवं कोढ़ आदि बीमारियाँ हो जाती हैं।

गाय आय का साधन भी है, आरोग्यदात्री भी है। अतः गाय मारने योग्य नहीं है बल्कि हर प्रकार से गोवंश की रक्षा व उसका संवर्धन अत्यन्त आवश्यक है।