नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान में इंडिया टीम का योगदान – आशीष मिश्र

नरेन्द्र मोदी ऐसे नेता हैं जो चुनाव हराने के बाद भी अपने विरोधियों को चैन से नहीं बैठने देते हैं,दो अक्टूबर से शुरू हुए ‘स्वच्छ भारत अभियान’ में कुछ ऐसा ही देखने को मिला,सबसे पहले तो उन्होंने कांग्रेस से गाँधी जी को छीन लिया और उसके बाद आम आदमी पार्टी से झाड़ू ।

लोकसभा चुनाव हारने और गाँधी जी को छीने जाने के बाद कांग्रेस के पास गाँधी के नाम पर सिर्फ ‘राहुल’ बचे हैं और यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है । इसके बाद भी कांग्रेस, केजरीवाल से कहीं बेहतर स्थिति में दिखाई पड़ रही है क्योंकि अब भी कांग्रेस के पास इतने सांसद हैं कि उनके दम पर वो भले खुद को लोकसभा में प्रमुख विपक्षी पार्टी न बना पाई लेकिन खुद का व्हाट्सएप ग्रुप बना पार्टी मीटिंग तो कर ही सकती है,जबकि आम आदमी पार्टी में अंगूठा छोड़ उँगलियों पर गिने जा सकने वाले सांसद ही इतनेहैं कि उनकी पार्टी मीटिंग केजरीवाल की वैगन-आर में भी हो सकती है ।

नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान देश के साथ विदेशों में भी कितनालोकप्रिय हुआ,इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वेस्टइंडीज और भारत के बीच पहले ही एकदिवसीय मुकाबले में वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम ने टीम इण्डिया की बुरी तरह से धुलाई करदी । असल वजह तब पता चली जब पुरूस्कार वितरण के दौरान उनके कप्तान ने बताया कि ये धुलाई ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत की गई है ।

धुलाई और सफाई का टीम इण्डिया सेपुराना नाता है,क्योंकि हमारे पास महेन्द्र सिंह ‘धोनी’ और शिखर ‘धोवन’ जैसे खिलाड़ी हैं,साथ ही अक्सर मैच हारने के बाद प्रेसकान्फ्रेंस में दी जाने वाली ‘सफाई’ भी ।

वेस्टइंडीज से मैच हारने और विराट कोहली की खोई हुई फॉर्म के बीच टीम इण्डिया के सारे खिलाडियों ने एक चौंकाने वाला फैसला लिया है, अगले मैच के पहले वो विराट कोहली के घर दीपावली की सफाई करने जाएंगे,टीम प्रबंधन ने भी इस बात की पुष्टि की है पर कारण बताने से साफ़ मना कर दिया ।

इस बारे में जब हमने अपने सूत्रों से जानकारी जुटाई तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं आपको पता ही होगा कि कुछ ही दिनों में दीपावली का त्यौहार आने वाला है और दीपावली के पहले घर की सफाई होना आम बात है,बताते चलें कि हिन्दुस्तानी घरों में सफाई भी तीन तरह की होती है,पहली रोज की सफाई,दूसरी रविवार सुबह की सफाई जिसमें आमतौर पर डंडे पर झाड़ू बाँध मकड़ी के जाले हटाए जाते हैं,और तीसरी दीपावली की सफाई,दीपावली की सफाई के दौरान अक्सर साल भर छुपाकर रखे गए लव लेटर्स और वैलेन्टाइन डे के कार्ड ,गुमे हुए नेल कटर और रखकर भुला दी गई चाबियाँ वापिस मिल जाती हैं । टीम इण्डिया के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी की अगुवाई में विराट कोहली के घर परकी जाने वाली इस सफाई का असली मकसद विराट कोहली की खोई हुई फॉर्म ढूंढना है,जो शायद विराट घर के किसी कोने में अनुष्का शर्मा के कॉस्मेटिक्स के बीच रखकर भूल गए हैं ।

आशीष मिश्रा (कटाक्ष)

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मुलायम सिंह को डॉक्टरेट की उपाधि मिलने पर कुछ लोगो की प्रतिक्रियाये – आशीष मिश्र

मुलायम सिंह यादव को डॉक्टरेट की उपाधि मिलने पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है,आम आदमी जिसे दो किलो टिंडे पर मुट्ठी भर धनिया भी नही मिलती वो मुलायम सिंह यादव को डॉक्टरेट मिलने पर हतप्रभ है,ऐसी ही कई प्रतिक्रियाएं हम तक आ रही हैं।

मुलायम को डॉक्टरेट किसने दे दिया उन्हें तो मैं हाइवे पर ‘जगह मिलने पर पास’ तक न दूं।

मुलायम सिंह यादव इकलौते डॉक्टरेट होंगे जिन्हें सही-सही ‘डॉक्टरेट’ बोलना भी नही आता।

पहले मैं सोचता था स्मृति ईरानी को येल से डिग्री कैसे मिल गई,फिर मैंने मुलायम को डॉक्टरेट मिलते देखा।

मुलायम सिंह यादव को डॉक्टरेट की उपाधि ‘राहुल गाँधी साक्षरता मिशन’ के तहत मिली है।

लार्ड मैकाले को अगर ये बात पता चले तो वो भारत की शिक्षा व्यवस्था की ये हालत देख ग्लानिवश परलोक में भी हीरे की कनी चाट लेंगे।

मुलायम को डॉक्टरेट की उपाधि मिल गई यहाँ मुझे अपने स्मार्टफोन का चार्जर तक नही मिल रहा।

मुलायम सिंह यादव को डॉक्टरेट की डिग्री मिल गई तो क्या अब हिम्मत है तो वो रेवांचल का कन्फर्म टिकिट लाकर दिखाएं।

उन्हें डिग्री फ़ॉरेन लैंग्वेज में विशेषज्ञता के लिए मिली है,वो एक वाक्य में सात भाषाएँ बोल सकते हैं और इक्कीस भाषाओं के जानकार मिलकर भी उसे नही समझ सकते।

ये खबर सुनके हमारे पड़ोस के डॉक्टर साहब ने अपनी डिग्री पर रखकर सत्यनारायण भगवान की कथा का प्रसाद बाँट दिया।

देशभर के ‘डॉक्टरेट’ आज मुँह छुपा के घूम रहे हैं।

आज का अखबार देखने के बाद प्रोफ़ेसर अवस्थी ने अपनी नेमप्लेट उखाड़ कर सिगड़ी में डाल दी।

आज के बाद इस मुल्क में कोई माँ ‘मेरा बेटा ‪#‎पढ़_लिखकर‬ बड़ा आदमी बनेगा नही कहेगी।

मैं जिन्दगी भर आजम खान की भैंसे चराने को तैयार हूँ बशर्ते मुलायम सिंह बिना देखे सही-सही ‘डॉक्टरेट’ की स्पेलिंग बता दे।

मुलायम सिंह यादव सच में डॉक्टर कहलाने लायक हैं,डॉक्टर का लिखा और इनका बोला कोई समझ नही पाता।

हद तो तब हो गई जब मुलायम सिंह घर जाकर अखिलेश को डिग्री पकड़ाते हुए बोले ‘दो फोटोकॉपी करा के तुम और डिम्पल भी रख लो।’

— आशीष मिश्रा (कटाक्ष)

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सफाई अभियान में लडको का योगदान – नीरज बधवार

चुनावों में नरेंद्र मोदी का बढ़ चढ़कर साथ देने वाला युवा उनके द्वारा शुरू किए सफाई अभियान में मदद को लेकर धर्म संकट में है। दरअसल साफ-सफाई का मूल सम्बंध आत्म-अनुशासन से होता है। मतलब, कॉलेज या ऑफिस से आने के बाद अपने कपड़े खूंटी पर टांगे, जूते जगह पर रखे, खाने के बाद झूठे बर्तन रसोई में रखे और नहाने के बाद तौलिया बाहर रस्सी पर टांगा या नहीं। अब दिक्कत ये है कि कोई भी काम करने से पहले लड़के खुद से तीन सवाल पूछते हैं, पहला, क्या इसको करने से कोई लड़की इम्प्रैस हो सकती है? दूसरा, क्या इससे मेरे करियर में कोई फायदा हो सकता है? तीसरा, क्या इसे अभी टाला जा सकता है?

बिना किसी फायदे के सिर्फ सभ्य दिखने की ख़ातिर कुछ करने की दलील उन्हें इम्प्रैस नहीं कर पाती। इस बारे में ज़्यादा कहा जाए तो उन्हें घबराहट होने लगती है। लगता है कोई कनपटी पर बंदूक रखकर जबरन उनकी मर्ज़ी के खिलाफ कोई काम करवा रहा है। वो खाना खाने के बाद हाथ धोने भी तब जाते हैं जब घर पर कोई मेहमान आया हो वरना हाथ को पजामे के आगे-पीछे रगड़कर वहीं पड़े-पड़े सो जाते हैं।

बैठते वक्त सिर्फ उतनी ही जगह साफ करते हैं जितनी पर बैठा जा सके। उनके कमरों की हालत पर एक अमेरिका सुरक्षा सलाहाकार ने कहा भी था कि छह-आठ फीट के गड्ढे में छिपने के बजाए सद्दाम हुसैन किसी भी भारतीय लड़के के हॉस्टल रूम के बिखरे सामान के बीच छिप जाता, तो अमेरिकी फौजें दस जन्म तक भी उसे नहीं ढूंढ पाती।

गर्मी में भी ये लोग इतने दिनों तक नहीं नहाते कि इतने बदन की गर्मी और बदबू से कमरे में लगे मनी तक प्लांट मुरझा जाते हैं, एसी कूलिंग करना बंद कर देता, फ्रिज में बर्फ जमनी भी बंद हो जाती है और कुछ एक मामलो में तो, जहां अभियुक्त साल-साल नहीं नहाते, वहां कमरे की दीवारों पर लगा रंग पपड़ी बनकर उतरने लगता है।

बस एक जगह है जिसकी साफ-सफाई का ये पूरा ख्याल रखते हैं…बिना नागा, बिना ग़लती, बिना किसी के याद दिलाए, बिना अलार्म लगाए…घर से निकलने से पहले उसकी सफाई करना नहीं भूलते और वो जगह है इनके कम्प्यूटर की ब्राउज़र हिस्ट्री!

— नीरज बधवार (खबरबाज़ी)

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हिंदी बोलने में व्यवहारिक दिक्कते

मुझे भी आज हिंदी बोलने का शौक हुआ, घर से निकला और एक ऑटो वाले से पूछा,
“त्री चक्रीय चालक पूरे बनारस नगर के परिभ्रमण में कितनी मुद्रायें व्यय होंगी”…???
ऑटो वाले ने कहा, “अबे हिंदी में बोल न”
मैंने कहा, “श्रीमान मै हिंदी में ही वार्तालाप कर रहा हूँ।”
ऑटो वाले ने कहा, “मोदी जी पागल करके ही मानेंगे।” चलो बैठो कहाँ चलोगे?
मैंने कहा, “परिसदन चलो।”
ऑटो वाला फिर चकराया!
“अब ये परिसदन क्या है? बगल वाले श्रीमान ने कहा, “अरे सर्किट हाउस जाएगा।”
ऑटो वाले ने सर खुजाया बोला,
“बैठिये प्रभु।”
रास्ते में मैंने पूछा, “इस नगर में कितने छवि गृह हैं….???”
ऑटो वाले ने कहा, “छवि गृह मतलब….???”
मैंने कहा, “चलचित्र मंदिर।”
उसने कहा, “यहाँ बहुत मंदिर हैं राम मंदिर, हनुमान मंदिर, जग्गनाथ मंदिर, शिव मंदिर।”
मैंने कहा, “मै तो चलचित्र मंदिर की बात कर रहा हूँ जिसमें
नायक तथा नायिका प्रेमालाप करते हैं।”
ऑटो वाला फिर चकराया, “ये चलचित्र मंदिर क्या होता है….???”
यही सोचते सोचते उसने सामने वाली गाडी में टक्कर मार दी।
ऑटो का अगला चक्का टेढ़ा हो गया।
मैंने कहा, “त्री चक्रीय चालक तुम्हारा अग्र-चक्र तो वक्र हो गया।”
ऑटो वाले ने मुझे घूर कर देखा और कहा, “उतर, जल्दी उतर…. चल भाग यहाँ से”
तब से यही सोच रहा हूँ अब और हिंदी बोलूं या नहीं…..???

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रावण होने की व्यवहारिक दिक्कते – नीरज बधवार

दशहरे पर जब भी रावण के दस सिर के बारे में सोचता हूं तो ये सोचकर सिहर उठता हूं कि अगर आज रावण को दस सिर के साथ अगर गुज़ार करना पड़ता तो उसे क्या कुछ झेलना पड़ता।

आज रावण अगर बाइक चलाने की सोचता तो बाइक से ज़्यादा उसका खर्चा हेलमेट पर हो जाता। यही वजह होती कि बैंक उसकी बाइक फाइनेंस करने के लिए तो तैयार हो जाते मगर दस हेलमेट के लिए कहकर मना कर दिया जाता कि कंपनी के पास ऐसी कोई स्कीम नहीं है।

बिना हेलमेट पकड़े जाने पर सौ-पचास देकर उसकी जान नहीं छुटती। उसे सिर के हिसाब से बारगेनिंग करनी पड़ती। भइया, लेफ्ट वाले 5 सिर का माफ कर दो…आगे से ख्याल रखूंगा…ट्रैफिक पुलिसवाला भी अकड़कर कहता, तुम्हारा स्साला रोज़-रोज़ का लफड़ा है…कल भी तुमने बाएं से चौथे सिर में हेलमेट नहीं पहना था और दाएं से तीसरे सिर में तो आज तक नहीं पहना। और रावण ये कहकर सफाई देता कि उस सिर में तो मेरे जुओं की वजह से ज़ख्म हो रखे हैं, इसलिए नहीं पहन पाता।

एक साथ दस सिर की फोटो न खिंचवा पाने के कारण रावण का कभी आधार कार्ड नहीं बन पाता। वो फेसबुक पर मेघनाद और कुंभकर्ण की फोटूएं देख-देखकर कुढ़ता रहता मगर खुद कभी सेल्फी नहीं ले पाता।

ऐसे किसी भी डांस बार में जाना उसके लिए असंभव हो जाता जहां ‘पर हेड’ 2000 रुपये वसूले जाते हैं।

चार घंटे लगाकर रावण के सभी दस सिरों के बाल काटने के बाद नाई उस समय बेहोश होकर गिर पड़ता जब रावण कहता, ऐसा करो…अब हेड मसाज कर दो!

कृपया सिर खिड़की से बाहर न निकालें…बस में लिखी इस हिदायत को मानना उसके लिए नामुमकिन होता। अब इतने सिर होते, तो 2-4 तो दाएं-बाएं से अपने आप ही बाहर निकल जाते।

थिएटर में फिल्म देखने जाने पर रावण का या तो पूरी ‘रो’ बुक करनी पड़ती या फिर ये कहकर उसके बाकी नौ सिर पर पट्टी बांध दी जाती कि एक टिकट पर एक ही आदमी फिल्म देख सकता है!

मगर रावण आज होता तो हम कभी भी दशहरा नहीं मना पाते क्योंकि उसकी दया याचिक आज भी राष्ट्रपति के पास लंबित पड़ी होती और भगवान राम कभी उसका वध नहीं कर पाते!

— नीरज बधवार (खबरबाजी)

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काफिर बाघ

दिल्ली चिडियाघर मे हुए हादसे का एक काल्पनिक चित्रण ।
मकसूद के दोस्त : भाईजान वो देखो सफेद बाघ ।
मकसूद : चल आ पास से देखते है
दोस्त : चलो भाई
(कुछ सेकंड बाद)
दोस्त : क्या गजब का दिख रहा है.
मकसूद : हाँ मगर काफिरों के देश का है सूअर है साला
दोस्त : सही कह रहे हो मन तो कर रहा है इस बार का बकरीद इसे काट के मनाऊँ
मकसूद : चल मोबाईल निकाल इसकी फोटो लेनी है
दोस्त : ये ले फोटो मस्त आनी चाहिए
मकसूद ( दिवार पर चढते हुए) : DONT WORRY dude !
दोस्त : हो गया ?
मकसूद : तेरा मोबाईल ही बेकार है (अपना हाथ अन्दर की ओर बढाते हुए) इसका camera खराब है
(तभी गलती से पैर फिसला और शान्तिदूत बाडे मे आ गिरा�)
अब मकसूद का ह्रदय अपनी साधारण गति की दुगनी रफ्तार से धडक रहा था मानो अब अल्लाह को प्यारा होने वाला है फिर भी अपना सम्पूर्ण जोर लगा के वह चिल्लाया, ” बचाओ ! मुझे ऊपर खीचों ! ”
दोस्त : भाई तू हिम्मत से काम ले हम अभी मदद लाते है (घबराते हुए बोला)
मकसूद की पुकार सुन वहाँ लोगो का जमावडा इकट्ठा हो गया । लोगो की भीड से बाघ का ध्यान भंग हो गया ।
“भैंस की आँख ! अचानक इतने लोग कहाँ से आये ? लगता है आज कुछ ज्यादा smart दिख रहा हूँ ( मन ही मन मे मंद मुस्कान लिए बाघ ने सोचा) पर ये लोग नीचे क्या देख रहे है,
अरे ! ‘ये नमूना यहाँ कैसे आया?’ (मकसूद की तरफ बाघ घूरते हुए बोला ।)
अपनी तरफ मौत को बड़ते देख मकसूद को अल्लाह की सभी 72 हूरेँ याद आ गई । अब बाघ और मकसूद के बीच कुछ ही इंच का फासला था ।
“क्या स्वाद है इस नमुने का ! ” (मकसूद को चाटते हुए बाघ घुर्राया�)
मकसूद अल्लाह को याद करने लगा और बोला, “Allahu Akbar, Allahu Akbar,
Ash-hadu an’ la ilaha ill Allah,
Ash-hadu ana Muhammadan Rasoolallah,
Hayya ‘alas-Salah,
Hayya ‘alal Falah,
Allahu Akbar, Allahu Akbar,
La illaha ill Allah” ।
बाघ : चूतिये ये क्या है (आश्चर्यचकित होकर )
मकसूद : अपने अल्लाह को याद कर रहा हूँ उन से मदद माँग रहा हूँ
“तेरी माँ का अजान ! ” बाघ ने दो कन्टाप (पंजे) लगाये ।
मकसूद : “जोर से बोलो जय माता दी ! दूर्गा मैया की जय ! (हाथ जोडते हुए�) ”
बाघ : ये तो मैया का भक्त है निकल लो पतली गली से (वापस मुडते हुए)
तभी अचानक एक पत्थर बाघ की खोपडी मे आ गिरता है जो शायद मकसूद ने फैंका था ।�
बाघ बौंखला गया
” bc कश्मीर समझ रखा है हर जगह को, अभी तेरी पत्थरबाजी ‘तेरे स्थान विशेष मे डालता हूँ’ (झपट्टा मारते हुए) ।
इस प्रकार एक देशभक्त (शान्तिदूत) 72 हूरों के पास पहुँच गया…
MORAL : अगर ऊंगली करोगे तो, पेले जाओगे

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प्यार-इजहार और इंकार

ये हैं लड़कों को रिजेक्ट करते वक्त लड़कियों के 10 बहाने

  1. तुम तो मेरे भाई जैसे हो

प्यार का इजहार करते ही लड़कों के दिलों दिमाग में रक्षा बंधन का एहसास लाने वाला जो बहाना सबसे पहले आता है, वो है- तुम तो मेरे भाई जैसे हो. मैंने तुम्हें कभी इस नजर से नहीं देखा. मैं तो तुम्हें भाई मानती थी और तुम…छी छी. । यह बहाना लड़कों में धिक्कार भाव को अनचाहा जन्म देता है. बहाना सुनते ही आशिक को कई दिन सदमे से निकलने में लग जाते हैं.

2.प्यार माई फुट

जिस तरह भूत है या नहीं, इसको लेकर काफी संशय है, ठीक उसी तरह कुछ सुंदरियों को प्यार के अस्तित्व पर शक रहता है. ऐसे में कोई मासूम दिल किसी सुंदरी से प्यार करने की गुस्ताखी कर बैठता है तो पहला जवाब आता है. ‘प्यार माई फुट’, मुझे प्यार में यकीन नहीं है. हालांकि यह बहाना आज के दौर में वीसीआर कैसेट की तरह हो गया है, जिसका इस्तेमाल कम ही होता है.

3.अपनी शक्ल देखी है क्या

जब बात दिल की चल रही हो और शक्ल बीच में आ जाए तो समझ लीजिए कि आपका मामला अमुक इश्क के मंदिर में फिट नहीं होगा.
लड़कियां प्यार का इजहार करते वक्त अक्सर गुस्से में यह कह देती हैं कि ‘अपनी शक्ल देखी है क्या’. ऐसे में उन लड़कों का दिल सबसे ज्यादा टूटता है, जो महीने में कई बार छिप-छिप कर फेशियल करवाते हैं.

4.सारे लड़के एक जैसे होते हैं

वो लड़कियां जिन्हें प्यार में लड़के धोखा दे देते हैं, ऐसी लड़कियां लड़कों को लेकर एक बुरी छवि बना लेती हैं और हर बार करीब आने वाले लड़के को इस पुरस्कार से नवाजती हैं कि ‘सारे लड़के एक जैसे होते हैं’. हालांकि यह बहाना ‘शक्ल देखी है’ वाले बहाने की काट करता है.

5.मां-बाप को धोखा

बॉर्नवीटा और भगवान कृष्ण को गुरु मानते हुए लड़के अपने रपटते दिल की बात जैसे ही लड़कियों के सामने रखते हैं, फट से जैसे जवाब आता है, मैं अपने मां-बाप-परिवार को धोखा नहीं दे सकती. इस बहाने को सुनते ही लड़कों के मन में ख्याल आता है कि प्यार मांगा है तुम्हीं से..घर की रजिस्ट्री के कागज नहीं मांगे हैं.

6.करियर जरूरी है भई

प्यार करने के बाद करियर चौपट हो जाता है. इस अटूट सत्य का ज्ञान लड़कों के प्यार का इजहार करते ही लड़कियां दे देती हैं. इजहार करने वाले लड़कों को यह ज्ञान तब मिलता है, जब वो अपनी ट्यूशन फीस से कई मर्तबा ग्रीटिंग कार्ड खरीदने में खर्च कर चुके होते हैं.

7.मेरी उम्र ही क्या है

प्यार करने के लिए वोटर कार्ड जरूरी होता है क्या??? यही सवाल सोचते हुए लड़कों ने घंटों पार्क में बिता दिए होंगे, जब किसी खूबसूरत प्रेमिका ने यह कहा होगा कि मेरी अभी उम्र ही क्या है. तुम मुझसे उम्र में बड़े या छोटे हो.

8.बाबा जी का ठुल्लू

प्यार को कबूल न करने के बहानों में इस बहाने का एंट्री जल्दी ही हुई है. पर जिस तेजी से इसने एकतरफा इश्क की बगिया में पांव पसारे हैं,
ऐसा मालूम होता है कि आने वाला कल इसी बहाने का है.

9.मेरा ब्वॉयफ्रेंड है

मेरा ब्वॉयफ्रेंड है..बस ये सुनते ही लड़कों के दिमाग और जुबां पर यही सवाल आ जाता है कि मुझमें क्या कमी है. इस बहाने को कुंठा पैदा करने की श्रेणी में अव्वल दर्जा प्राप्त है. इस बहाने के कान में घुसते ही लड़के आसमान की ओर देखते हुए कल्पनाओं के सागर में उतरकर अपनी तुलना उस लड़के से करने लगते हैं, जिसका जिक्र बहाने के तौर पर या सच्चाई बताते हुए लड़कियां कर देती हैं.

  1. मैं उस तरह की लड़की नहीं हूं

महिलाओं को बांटने की रणनीति के तहत ही इस बहाने का जन्म हुआ था. लड़कों को कई मर्तबा 3 जादुई शब्द सुनने को मिल जाते हैं. मैं बाकी लड़कियों जैसी नहीं हूं. ऐसे में प्यार का इजहार करने वाले के मन में भी यह शक और खोज करने की इच्छा पैदा हो जाती है कि मैं अब उस तरह की लड़की कहां से लाऊं.प्यार का मजा तब ही है, जब कई बार इंकार हो, तकरार हो, कभी कभार मार भी हो.

तो ऐसे में अगर कोई लड़का किसी लड़की से सच्ची मोहब्बत करता है, तो वो इन बहानों से न घबराए और प्यार को साबित करने की कोशिश करते रहे. लेकिन सीमाओं का ध्यान रहे, डर फिल्म के शाहरुख खान बनोगे तो भैया वही हाल होगा जो शाहरुख का कि..कि. करते हुए फिल्म के आखिर में हुआ था. बाकी प्यार सच्चा है तो राहत इंदौरी के इस शेर को दिल में बिठा लीजिये कि

घर उसका ही सही पर हक़दार तुम भी हो,
रोज़ आया करो,रोज़ जाया करो।।

कबीर के दोहों के ट्विटरीय अर्थ

कबीरदास जी दोहे लिखते थे. तमाम लोग उनके दोहे पढ़कर बड़े हुए. कुछ ने उन दोहों से कुछ तो कुछ ने बहुत कुछ सीखा. इन दो के अलावा तीसरी तरह के लोगों ने उन्हें दूसरों के सामने बोलकर खुद के लिए ज्ञानी की उपाधि पक्की कर ली. इन तीनो के अलावा एक और प्रजाति है जिसने उनके दोहों का ब्लॉग खोल लिया और ट्विटर पर अकाउंट बनाकर उन्हें ट्वीट भी करते रहे.

ट्विटर पर कबीरदास जी के दोहे पढ़कर हमलोगों के मन में एकदिन आया कि अगर वे आज रहते तो ट्विटर पर जरूर होते और अपने दोहे ट्वीट करते तो उन्हें खूब आरटी मिलती. दोहों का साइज भी ऐसा कि ट्विटर पर एक सौ चालीस करैक्टर की शर्त में फिट बैठता है. फिर मन में आया कि अगर वे अपने दोहे ट्वीट करते तो तमाम लोग उन दोहों को स्लाई समझकर अपने-अपने हिसाब से उसका अर्थ निकालते. सोचकर देखिये कि कैसे कैसे भावार्थ निकाले जाते। यह पोस्ट कुछ ऐसे ही संभावित भावार्थों का संकलन है. आप बांचिये।

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पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीर दास जी सन्देश देना चाहते हैं कि हे ट्वीपल न ही मोटी-मोटी पुस्तकें पढने से और न ही अपने ट्विटर बायो में आईआईटी/आईआईएम लिख देने से ट्विटर पर पंडित या विद्वान कहलाये जाओगे. यह न भूलो कि ज्ञान नहीं, अपितु ज्ञान की बातें ट्विटर पर तुम्हारे विद्वान या पंडित कहे जाने का मार्ग प्रशस्त करती है. इसलिए हे ट्वीपल अगर विद्वान कहलाने की लालसा है तो फिर ट्वीट लिखकर बताओ कि ‘Just got my copy of ‘Human Psychology’ from flipkart, #nowreading.

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीरदास ट्वीपल से कह रहे हैं कि टेक इट ईजी डूड. बार-बार मेंशन या प्लीज आरटी लिखने से कुछ नहीं होगा. हे ट्वीपल वैसे तो आईफ़ोन, आईपैड, एस-फोर वगैरह रखना ईजी है और धीरज रखना कठिन, किन्तु सफलता की कुंजी बताती है कि धीरज ही रखने की जरूरत है. जब तुम्हारा समय आएगा और सामने वाले को पता चल जायेगा कि तुम बड़ी कंपनी में उच्च-पद पर कार्यरत हो, तब तुम्हें आरटी अपने आप मिलने लग जाएगी क्योंकि सामनेवाला जबतक आरटी नहीं करेगा वह तुम्हें लिंक्ड-इन पर इनवाईट नहीं कर पायेगा.

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीरदास जी यह सन्देश देना चाहते हैं कि हे ट्वीपल अपने आलोचक को न केवल फालो करो अपितु उसे अपने और पास रखने के लिए उसके साथ डीएम का आदान-प्रदान भी करो. क्योंकि ट्विटर पर असली आलोचक वह होता है जो तुम्हारी गल्तियाँ तुम्हें बताकर उनमें सुधार कर पाए या न कर पाए, अपनी आलोचना से तुम्हें फेमस जरूर कर देता है.

जहाँ एक तरफ कुछ विद्वान इस दोहे का भावार्थ यह निकालते हैं वहीँ सोशल मीडिया के कुछ और भावार्थ-वीरों का मानना है कि यह दोहा कबीरदास जी ने एक्स्क्लुसिवली ऐसे ट्विटर सेलेब के लिए लिखा है जिन्हें अपनी असाधारण रूप से साधारण ट्वीट के लिए भी एपिक नामक टिप्पणी पढने का नशा होता है. कबीरदास जी ऐसे ट्विटर सेलेब्स को इस दोहे के माध्यम से सन्देश दे रहे हैं कि हे ट्वीपल तुम मानो या न मानो लेकिन सत्य यही है कि हरबार तुम ऐसा ट्वीट नहीं ठेल सकते जो एपिक हो और एपिक के अलावा कुछ भी न हो. इसलिए जब तुम्हारा कोई फालोवर उसे रद्दी करार दे दे, तो उसकी आलोचना का सम्मान करो और उसे कुछ मत कहो क्योंकि तुम्हारे बाकी चेले-चपाटे उससे खुद ही निपट लेंगे.

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीरदास जी ट्वीपिल को संदेश देते हैं कि ट्विटर पर फालोवर से यह पूछने की जरूरत नहीं कि वह रागां का फैन है या नमो का. कौन किसका फैन-शैन है यह जानने में कुछ आनी-जानी नहीं है. असल ज्ञान यह जानना है कि कौन से फैन फालोविंग से ज्यादा आरटी मिल सकती है? जिस ग्रुप से ज्यादा आरटी मिले, बस उसी के फैन बन जाओ, फालोवर भला करेंगे.

हिन्दू कहे मोहि राम पियारा, तुरक कहे रहमाना,
आपस में दोउ लडि लडि मुए, मरम न कोऊ जाना।

इस अत्यंत महत्वपूर्ण दोहे के माध्यम से कबीरदास जी कहते हैं कि ट्विटर पर कोई शाहरुख़ का भक्त है तो कोई सलमान का. इन दोनों के भक्तों की मंडली सुबह-शाम आपस में लडती-भिड़ती रहती है. यह साबित करने के लिए दोनों में से कौन महान है? लेकिन लड़ने-भिड़ने में बिजी दोनों ग्रुप आजतक इस मरम का पता नहीं लग पाए कि लाखों लोग जस्टिन बीबर और केआरके दीवाने क्यों हैं?

सात समंदर मसि करौ, लेखनि सब बनराइ,
धरती सब कागद करौ, हरि गुन लिखा न जाइ।

कबीरदास जी कहते हैं सात समंदर की स्याही घोल लो और संसार भर के वनों के पेड़ से कलम बना लो फिर भी ट्विटर पर विराजमान उस फ़िल्मी भगवान की रिप्लाई के जवाब के एवज में उसकी महिमा का बखान नहीं कर सकोगे जो उसने तुम्हारे एक हज़ारवें ट्वीट के बाद तुम्हें दिया है. हे ट्वीपल जब यह करके भी तुम धन्य नहीं हो सकते तो ट्वीट तो केवल एक सौ चालीस करैक्टर का होता है. ऐसे में अपने उस फ़िल्मी स्टार रुपी भगवान की रिप्लाई का बखान करने के लिए एक हज़ार ट्वीट लिखकर उसे थैंक यू बोलोगे तो भी उसका कर्ज नहीं उतार पाओगे.

जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम,
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम।

कबीरदास जी कहते हैं कि जब तुम्हारे फ़लोवर्स की संख्या हजारों में हो जायेगी और तुम अपने घर वालों को दिखाते हुए बताओगे तो तुम्हारे घर में तुम्हारा दाम बढेगा. अपना दाम बढाने के लिए तुम्हें और फ़ालोवर्स चाहिए और इसका एक ही मन्त्र है कि तुम नए नए फलोवार्स की ट्वीट की रिप्लाई दोनों हाथ से उलीच कर करते रहो. फालोवर्स की संख्या बढ़ती रहेगी और घर में तुम्हारा दाम भी बढ़ता रहे.

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

श्री कबीरदास का उपरोक्त दोहा ऐसे ट्वीपल के लिए नीतिवचन टाइप है जो दिनभर में दो ढाई सौ ट्वीट ठेल देता है. उपरोक्त दोहे में कबीरदास जी ऐसे ट्वीपल को इशारा करते हुए बताना चाहते हैं कि हे ट्वीटयोद्धा दिनभर ट्वीट करने से कुछ नहीं मिलेगा. ऊपर से लोग जान जायेंगे कि तुम्हारे पास और कोई काम-धंधा नहीं है इसलिए तुम सारा दिन ट्विटर से चिपके रहते हो. साथ ही वे ऐसे ट्वीपल को भी इशारा करके समझा रहे हैं जो दिन भर सरकार और मीडिया पर बरसते रहते हैं. वे उन्हें हिदायत दे रहे हैं कि ज्यादा बरसना ठीक नहीं है क्योंकि इधर तुम बरसोगे और उधर सरकार और मीडिया धूप करके इस बरसात को सुखा देंगे.

सांई इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय,
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।

इस दोहे के माध्यम से संत कबीरदास ने ट्वीटबाजों के लिए नहीं अपितु फेसबुकियों के लिए सन्देश दिया है. कबीरदास जी फेसबुकी से कहते हैं कि वह अपने सांई से फेसबुक के फोटो और एलबम वाले सेक्शन में उतनी जगह मांगे जिसमें उसके और उसके कुटुंब यानी परिवार के हर सदस्य की हर होलीडे की फोटो लग जाए और उसका पूरा कुटुंब उन अलबमों में समा जाय. वह फेसबुक प्रोफाइल पर इतनी फोटो डाल दे कि फिर उसे फोटो डालने की भूख न रहे. साथ ही फ्रेंड रुपी साधु उन फोटो को देखकर इतनी लाइक दे कि लाइक देने से उसका पेट भर जाए और उसे भूखा वापस जाने की जरूरत न पड़े.

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय,
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदलेजाय।

इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि हे ट्वीपल रात को सोकर और दिन को खाकर अपना जीवन व्यर्थ न करो. असल मज़ा लेने के लिए पूरी-पूरी रात ट्वीट करो. यह चिंता न करो कि रात हो गई है और तुम्हारी ट्वीट कोई नहीं पढ़ेगा। अरे भारत में रात है तो क्या हुआ, ऑस्ट्रेलिया में तो दिन है और कैनाडा में शाम. इसलिए दिन रात ट्विटर पर लगे रहो. परिवार, मित्र वगैरह तो आते-जाते रहेंगे लेकिन ट्विटर पर फालो करने वाला एकबार चला गया तो फिर वापस नहीं आएगा और ट्विटर पर ही नहीं, घर में भी तुम्हारा मोल घट जायेगा

लेखक :- शिव कुमार मिश्र

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किसके बिना कौन बेकार

लड़कियाँ नही तो कालेज बेकार…
चीनी नही तो चाय बेकार…
दोस्त नही तो जिन्दगी बेकार…
चाँदनी नही तो रात बेकार…
गेल नही तो आइपीएल बेकार…
परीक्षा नही तो पढ़ाई बेकार…
मिठाई नही तो हलवाई बेकार…
नमक नही तो पकवान बेकार…
संगीत नही तो गीत बेकार…
हीरो नही तो फिल्म बेकार…
सोनिया नही तो काँग्रेस बेकार…
मायावती नही तो जोक्स बेकार…
मनमोहन नही तो कार्टून बेकार…
आऊल नही तो गधे बेकार…
दिग्गी नही तो चुतिये बेकार…
मनीष तिवारी नही तो चमचागिरी बेकार…
आडवाणी नही तो बीजेपी बेकार…
मोदी नही तो देश बेकार…
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और अन्त मेँ
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ठलुआ नही तो सोशल मिडिया बेकार…

मॉडर्न बहू और गाँव की “गंवार” बहु

एक शहरी बहू की मासूमियत ने मुझे ये पोस्ट लिखने पर मजबूर कर दिया !!! एक शहर की बहू का विवाह देहात क्षेत्र में हुआ जहाँ आज भी पर्दा प्रथा जारी थी !!! एक दिन बहू अपनी सास के साथ आंगन में बैठकर गेंहू साफ़ करवा रही थी तभी अचानक उसके ससुर को आंगन में किसी आवश्यक कार्य हेतू आना पड़ा !!! आंगन के बाहर खांसकर ससुर ने सांकेतिक रूप में बहु के समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी चाही (बीते वक़्त में बड़े बुजुर्ग इसी प्रकार खांसकर डोरबेल की कमी पूरी करते थे )परन्तु जब बार बार खांसने पर भी बहू आंगन से नही हिली तो सास ने बहू को कहा –

जाओ बहू … जरा अंदर कमरे में चली जाओ , बाहर तुम्हारे ससुर कब से धूप में खड़े हैं !!!

मम्मी जी ( हैरत से मुंह फाड़कर ) क्या कह रही हैं आप ??? कमरे में मैं जाउंगी या आप ??? यह सुनते ही सास निःशब्द होकर बहू की समझ पर द्रवित हो उठी !!! किताबी ज्ञान सामाजिक ज्ञान को कितनी सरलता से निगल गया , वो भी मुस्कराकर  !!! हैं ना ???

गाँव देहात और शहर की पढ़ी लिखी महिलाओं में यही सबसे बड़ा फर्क हैं कि किताबी ज्ञान के आगे सामाजिक ज्ञान पूर्णतया निःशब्द हैं !!! गाँव की औरत मुंह पर पल्ला रख साडी का एक कोना पेटीकोट में दबाकर गाय भैस का दूध गोबर करती हैं वही शहर की महिलाये दूधिये को छूत की बीमारी समझकर मशीन के दूध (थैली वाले) को अमृत मानती हैं !!! गाँव की औरत खेत में जाकर छोल ( गन्ने का गोला काटना , कूलडयूड अब ये ना पूछे कि गोला क्या होता हैं ??? ) करके आती हैं , वही शहर की महिला किचन में धनिया ऐसे काटेगी जैसे नाई घोड़े के बाल कुतर रहा हो !!!

गाँव की महिला सिर पर ज्वार की गठरी उठाकर खेत से दस कोस चलकर घर घेर में आती हैं मगर वही शहरी महिला गोद में कुत्ता लेकर रे बेन का चश्मा पहनकर कार में ऐसे निकलती हैं जैसे मजनू मोटरसाईकिल सीखने के बाद अपनी लैला की सडक का मौका मुआयना करने जाता हैं !!! गाँव की महिला हाथ से चक्की चलाकर धड़ी दो धड़ी नाज पीसती थी वही शहर की महिला मिक्सी ऐसे चलाएगी जैसे जेट विमान के बटन से जहाज कंट्रोल कर रही हो ??? गाँव की महिला फूंकनी से घोस्से /उपले /कर्से तोडकर उसे चूल्हे में झोंककर कागज जलाकर फूंकनी से अपनी आँखे और छाती जलाती हैं मगर शहर की महिला किटी पार्टी में जाकर बियर , ब्रीजल , वाइन इत्यादि के साथ लम्बी सिगरेट में फूंक मारती नजर आती हैं क्योकि वो ” मोडर्न ” हैं !!!

कभी कभी जब अपनी अनपढ़ माँ को मैं अपने मोहल्ले की पढ़ी लिखी भाभीयो आंटियो के साथ बात करते तथा तीज त्योहारों तथा परम्परा एवं संस्कृति के विषय में बहस करते देखता हूँ तो यही सोचता हूँ कि क्या किताबी ज्ञान ही सम्पूर्ण ज्ञान हैं ??? इस पर सभी महिला मित्रो की प्रतिक्रिया अवश्य जानना चाहूँगा जिससे इस स्थिति की पुनरावृत्ती पर फिर किसी सास को अपनी बहू के अल्पज्ञान के चलते शर्मिंदा ना होना पड़ेक्योकी ” सास भी कभी बहू थी ” !

अमित तेवतिया निःशब्द