रज हस्त मुद्रा योग, महिलाओं के लिए

रज मुद्रा योग। ‘रज’ जो स्त्री के मासिक काल में निकलता है- रजस्वला स्त्री। दूसरा रज एक गुण विशेष का नाम है जैसे रजोगुण। तीसरा रज का अर्थ होता है जल। मूलत: रज का संबंध स्त्री से है इसलिए यह मुद्रा (Raj mudra yoga) विशेष तौर पर स्त्रियों के लिए है।img1121026077_1_1

मुद्रा बनाने का तरीका : बाकि तीनों अंगुलिया सीधी रखते हुए कनिष्ठा (छोटी अंगुली) अंगुली को हथेली की जड़ में मोड़कर लगाने से रज मुद्रा बन जाती है।

इसका लाभ : इस मुद्रा के अभ्यास से मासिकधर्म से संबंधित कोई परेशानी कभी नहीं होगी। स्त्री के सारे प्रजनन अंगों की परेशानियों को ये मुद्रा बिल्कुल दूर कर देती है। इसके अलावा सिर का भारीपन रहना, छाती में दर्द, पेट, पीठ, कमर का दर्द आदि रोगों में रजमुद्रा का अभ्यास बहुत ही लाभकारी है।

रजमुद्रा करने से केवल स्त्रियों को ही नहीं लाभ होता बल्कि अगर पुरुष इस मुद्रा को करता है तो उनके वीर्य संबंधी रोग समाप्त हो जाते हैं।

मृगी मुद्रा योग का लाभ

मृगी मुद्रा। मृग हिरन को कहा जाता है। यज्ञ के दौरान होम की जाने वाली सामग्री को इसी मुद्रा में होम किया जाता है। प्राणायाम किए जाने के दौरान भी इस मुद्रा का उपयोग होता है। ध्यान करते वक्त भी इस मुद्रा का इस्तेमाल किया जाता है। यह मुद्रा बनाते वक्त हाथ की आकृति मृग के सिर के समान हो जाती है इसीलिए इसे मृगी मुद्रा (Mrigi mudra yoga) कहा जाता है। यह एक हस्त मुद्रा है।img1121120062_1_1

मुद्रा बनाने की विधि : अपने हाथ की अनामिका और मध्यमा अंगुली को अंगूठे के आगे के भाग को छुआ कर बाकी बची तर्जनी और कनिष्ठा अंगुली को सीधा तान देने से मृगी मुद्रा बन जाती है।

योग आसन – इस दौरान उत्कटासन, सुखासन और उपासना के समय इस्तेमाल होने वाले आसन किए जा सकते हैं।

अवधि/दोहराव- इस मुद्रा को सुविधानुसार कुछ देर तक कर सकते हैं और इसे तीन से चार बार किया जा सकता है।

मृगी मुद्रा का लाभ ( mrigi mudra benefits ): मृगी मुद्रा करते समय अंगूठे के पोर और अंगुलियों के जोड़ पर दबाव पड़ता है। उक्त दबाव के कारण सिरदर्द और दिमागी परेशानी में लाभ मिलता है। एक्युप्रेशर चिकित्सा के अनुसार उक्त अंगुलियों के अंदर दांत और सायनस के बिंदु होते हैं जिसके कारण हमें दांत और सहनस रोग में भी लाभ मिलता है।

विशेष- माना जाता है कि इस मुद्रा को करने से सोचने और समझने की शक्ति का विकास भी होता है। मृगी मुद्रा मिर्गी के रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी है।

योनि मुद्रा योग का चमत्कार

योनि मुद्रा योग। हस्त मुद्राएं कई प्रकार की होती है और उन सबके अलग अलग स्वास्थ्‍य लाभ हैं। यौगिक दृष्टि योग मुद्राओं में योनि मुद्रा को भी खास महत्व मिला हुआ है। हालांकि तंत्रशास्त्र में इसका अलग महत्व है लेकिन यहां यह मुद्रा प्राणवायु के लिए उत्तम मानी गई है। यह बड़ी चमत्कारी मुद्रा है|img1121204031_1_1

विशेष : इस योनि हस्त मुद्रा योग (yoni mudra yoga) के निरंतर अभ्यास के साथ मूलबंध क्रिया भी की जाती है। योनि मुद्रा को तीन तरह से किया जाता है। ध्यान के लिए अलग, सामान्य मुद्रा अलग लेकिन यहां प्रस्तुत है कठिनाई से बनने वाली मुद्रा का विवरण।

योनि मुद्रा विधि : पहले किसी भी सुखासन की स्थिति में बैठ जाएं। फिर दोनों हाथों की अंगुलियों का उपयोग करते हुए सबसे पहले दोनों कनिष्ठा अंगुलियों को आपस में मिलाएं और दोनों अंगूठे के प्रथम पोर को कनिष्ठा के अंतिम पोर से स्पर्श करें।

फिर कनिष्ठा अंगुलियों के नीचे दोनों मध्यमा अंगुलियों को रखते हुए उनके प्रथम पोर को आपस में मिलाएं। मध्यमा अंगुलियों के नीचे अनामिका अंगुलियों को एक-दूसरे के विपरीत रखें और उनके दोनों नाखुनों को तर्जनी अंगुली के प्रथम पोर से दबाएं।

इसका आध्यात्मिक लाभ : योनि मुद्रा बनाकर और पूर्व मूलबंध की स्थिति में सम्यक् भाव से स्थित होकर प्राण-अपान को मिलाने की प्रबल भावना के साथ मूलाधार स्थान पर यौगिक संयम करने से कई प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं|

भौतिक लाभ : अंगूठा शरीर के भीतर की अग्नि को कंट्रोल करता है। तर्जनी अंगुली से वायु तत्व कंट्रोल में होता है। मध्‍यमा और अनामिका शरीर के पृथ्वी तत्व को कंट्रोल करती है। कनिष्ठा अंगुली से जल तत्व कंट्रोल में रहता है।

इसके निरंतर अभ्यास से जहां सभी तत्वों को लाभ मिलता है वहीं इससे इंद्रियों पर नियंत्रण रखने की शक्ति बढ़ती है।

इससे मन को एकाग्र करने की योग्यता का विकास भी होता है। यह शरीर की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मक का विकास करती है। इससे हाथों की मांसपेशियों पर अच्छा खासा दबाव बनता है जिसके कारण मस्तिष्क, हृदय और फेंफड़े स्वस्थ बनते हैं।

चित्त मुद्रा योग, ध्यान के लिए उपयोगी

चित्त के तीन अर्थ है उल्टा, मनस और निश्चय। इस मुद्रा को बनाने के बाद हथेलियों को उल्टा भूमि की ओर कर देते हैं। यह मन को काबू में करने वाली मुद्रा है इसीलिए इसे चित्त हस्त मुद्रा योग कहते हैं।img1121211066_1_1

मुद्रा बनाने की विधि- दोनों हाथों की तर्जनी अंगुली को मोड़कर उसके प्रथम पोर को अंगूठे की जड़ से लगा दें। इससे इनके बीच में गोल सी आकृति बन जाएगी और फिर हथेलियों का रुख नीचे की ओर कर लें। इसी को चित्त मुद्रा कहते हैं।

इस मुद्रा का लाभ : वैसे ध्यान करने के दौरान इस मुद्रा का उपयोग किया जाता है। इसके अभ्यास से इससे नाड़ियों को लंबे समय तक मजबूत बने रहने की ताकत देता है। इससे मस्तिष्क को शांति मिलती है।

गंजेपन का इलाज माण्डुकी मुद्रा

यदि आपके बाल झड़ रहे हैं या सफेद हो रहे हैं तो यह मुद्रा आपके लिए है। गंजेपन से निजात पाने के लिए योग शास्त्र में माण्डु की मुद्रा को सबसे श्रेष्ठ उपाय बताया गया है। इसका लगातार अभ्यास करने से बाल स्वस्थ और मजबूत बन जाते हैं।baldness-633x319

माण्डुकी मुद्रा बनाने की विधि : सबसे पहले मुंह को बंद कर दें। फिर जीभ को पूरे तालू के ऊपर दाएं-बाएं और ऊपर-नीचे घुमाएं। इससे जीभ में लार उत्पन्न होगी। इसी को सुधा या अमृत कहते हैं। तालू से टपकती हुई लार बूंदों का जीभ से पान करें। इस क्रिया को ही माण्डुकी मुद्रा कहते हैं।

इसका लाभ- इसको करने से झुर्रियां पड़ना और बालों का सफेद होना रुक जाता है तथा नव यौवन की प्राप्ति होती है। इससे त्वचा चमकदार बनती है तथा इसके नियमित अभ्यास से वात-पित्त एवं कफ की समस्या दूर हो जाती है।

तीसरी आंख खोले- शक्ति पान मुद्रा योग

योग दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धर्म है। यदि योग अनुसार जीवन शैली ढाली जाए तो कुछ भी संभव हो सकता है। योग का एक अंग हस्तमुद्रा योग है जो योग की सबसे सरलतम विद्या है। यहां प्रस्तुत है शक्तिपान मुद्रा की विधि और लाभ।img1130404025_1_1

मुद्रा बनाने की विधि : सबसे पहले दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी अंगुली को इस तरह से मिला लें कि पान की सी आकृति बन जाएं तथा दोनों हाथों की बची हुई तीनों अंगुलियों को हथेली से लगा ले, इसे ही शक्ति पान मुद्रा कहते हैं।

इस मुद्रा का लाभ : इस मुद्रा को करने से जहां दिमागी संतुलन और शक्ति बढ़ती है, वहीं इसके निरंतर अभ्यास से भृकुटी में स्थित तीसरी आंख जाग्रत होने लगती है जिसे सिक्स्थ सेंस कहते हैं।

इसके अलावा इस मुद्रा को करने से क्रोध, सुस्ती और तनाव दूर हो जाता है साथ ही इससे याददाश्त भी बढ़ती है।

खेचरी मुद्रा से मिलती है समाधि और सिद्धि

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मनुष्य की जीभ (जिह्वा) दो तरह की होती हैं- लंबी और छोटी। लंबी जीभ को सर्पजिह्वा कहते हैं। कुछ लोगों की जीभ लंबी होने से वे उसे आसानी से नासिकाग्र पर लगा सकते हैं और खेचरी-मुद्रा कर सकते हैं। मगर जिसकी जीभ छोटी होती है उसे तकलीफों का सामना करना पड़ता है। सबसे पहले उन्हें अपनी जीभ लंबी करनी पड़ती है और उसके लिए घर्षण व दोहन का सहारा लेना पड़ता है। जीभ नीचे की ओर से जिस नाड़ी से जुड़ी होती है उसे काटना पड़ता है।

खेचरी मुद्रा को सिद्ध करने एवं अमृत के स्राव हेतु आवश्यक उद्दीपन में कुछ वर्ष भी लग सकते हें। यह व्यक्ति की योग्यता पर भी निर्भर करता है। योग में कुछ मुद्राएं ऐसी हैं जिन्हें सिर्फ योगी ही करते हैं। सामान्यजनों को इन्हें नहीं करना चाहिए। खेचरी मुद्रा साधकों के लिए मानी गई है।

विधि : इसके लिए जीभ और तालु को जोड़ने वाले मांस-तंतु को धीरे-धीरे काटा जाता है अर्थात एक दिन जौ भर काटकर छोड़ दिया जाता है। फिर तीन-चार दिन बाद थोड़ा-सा और काट दिया जाता है।

इस प्रकार थोड़ा-थोड़ा काटने से उस स्थान की रक्त शिराएं अपना स्थान भीतर की तरफ बनाती जाती हैं। जीभ को काटने के साथ ही प्रतिदिन धीरे-धीरे बाहर की तरफ खींचने का अभ्यास किया जाता है।

इसका अभ्यास करने से कुछ महीनों में जीभ इतनी लंबी हो जाती है कि यदि उसे ऊपर की तरफ लौटा (उल्टा करने) दिया जाए तो वह श्वास जाने वाले छेदों को भीतर से बंद कर देती है। इससे समाधि के समय श्वास का आना-जाना पूर्णतः रोक दिया जाता है।

लाभ : इस मुद्रा से प्राणायाम को सिद्ध करने और सामधि लगाने में विशेष सहायता मिलती है। साधनारत साधुओं के लिए यह मुद्रा बहुत ही लाभदायी मानी जाती है।

विशेषता : निरंतर अभ्यास करते रहने से जिब जब लंबी हो जाती है, तब उसे नासिका रन्ध्रों में प्रवेश कराया जा सकता है। इस प्रकार ध्यान लगाने से कपाल मार्ग एवं बिंदु विसर्ग से संबंधित कुछ ग्रंथियों में उद्दीपन होता है। जिसके परिणामस्वरूप अमृत का स्राव आरंभ होता है। उसी अमृत का स्राव होते वक्त एक विशेष प्रकार का आध्यात्मिक अनुभव होता है। इस अनुभव से सिद्धि और समाधि में तेजी से प्रगति होती है।

चेतावनी : यह आलेख सिर्फ जानकारी हेतु है। कोई भी व्यक्ति इसे पढ़कर करने का प्रयास न करे, क्योंकि यह सिर्फ साधकों के लिए है आम लोगों के लिए नहीं।

यम हरिमुद्रा से दूर होगी कमजोरी

मुद्राओं के अभ्यास से गंभीर से गंभीर रोग भी समाप्त हो सकता है। मुद्राओं से सभी तरह के रोग और शोक मिटकर जीवन में शांति मिलती है। हठयोग प्रदीपिका में 10 मुद्राओं का उल्लेख कर उनके अभ्यास पर जोर दिया गया है।img1130731012_1_1

घेरंड ने 25 मुद्राओं एवं बंध का उपदेश दिया है और भी अनेक मुद्राओं का उल्लेख अन्य ग्रंथों में मिलता है।

सर्व प्रधम आप अपने दोनों हाथों की सबसे छोटी अंगुली अर्थात कनिष्ठा को आपस में एक दूसरे के प्रथम पोर से मिला दें। इसी के साथ दोनों अंगूठे को भी आपस में मिला दें। अब तीन अंगुलियां बाकी रह जाएंगी- मध्‍यमा, तर्जनी और अनामिका। इन तीनों अंगुलियों को हथेली की ओर मोड़कर मुट्ठी जैसा बनाइए।

अंगुलियों की इस स्थिति को यम हरिमुद्रा कहते हैं।

हरि मुद्रा के नियमित अभ्यास से नाड़ियों को शक्ति मिलती है। इस मुद्रा के निरंतर अभ्यास से पेट के रोग जैसे- कब्ज, भूख ना लगना और जिगर की कमजोरी दूर होती है। इस मुद्रा से स्त्रियों के स्तनों के सारे रोगों में भी लाभ मिलता है।

यम हरिमुद्रा को प्रतिदिन 5 मिनट सुबह और 5 मिनट शाम को करें। आप इसके करने का समय बढ़ाकर 10 मिनट तक कर सकते हैं। प्रतिदिन कम से कम पांच मुद्राएं अपनी सुविधानुसार करनी चाहिए।

मुद्राओं से सभी रोगों में लाभ पाया जा सकता है यदि उनका योग शिक्षक से पूछकर नियमित अभ्यास किया जाए। मुद्राएं खासकर उन लोगों के लिए फायदेमंद साबित होती है जो योगासन करने में असमर्थ हैं।

ब्रह्ममुद्रा

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ब्रह्ममुद्रा योग की लुप्त हुई क्रियाओं में से एक महत्त्वपूर्ण मुद्रा है। ब्रह्मा के तीन मुख और दत्तात्रेय के स्वरूप को स्मरण करते हुए व्यक्ति तीन दिशा में सिर घुमायें ऐसी यह क्रिया है अतः इस क्रिया को ब्रह्ममुद्रा कहते हैं।

विधिः वज्रासन या पद्मासन में कमर सीधी रखते हुए बैठें। हाथों को घुटनों पर रखें। कन्धों को ढीला रखें। अब गर्दन को सिर के साथ ऊपर-नीचे दस बार धीरे-धीरे करें। सिर को अधिक पीछे न जाने दें। गर्दन ऊपर-नीचे चलाते वक्त आँखें खुली रखें। श्वास चलने दें। गर्दन को ऊपर-नीचे करते वक्त झटका न दें। फिर गर्दन को चलाते वक्त ठोड़ी और कन्धा एक ही दिशा में लाने तक गर्दन को घुमायें। इस प्रकार गर्दन को 10 बार दाँये-बायें चलायें और अन्त में गर्दन को गोल घुमाना है। गर्दन को ढीला छोड़ कर एक तरफ से धीरे-धीरे गोल घुमाते हुए 10 चक्कर लगायें। आँखें खुली रखें। फिर दूसरे तरफ से गोल घुमायें। गर्दन से चक्कर धीरे-धीरे लगायें। कान को हो सके तो कन्धों से लगायें। इस प्रकार ब्रह्ममुद्रा का अभ्यास करें।

लाभः सिरदर्द, सर्दी, जुकाम आदि में लाभ होता है। ध्यान साधना-सत्संग के समय नींद नहीं आयेगी। आँखों की कमजोरी दूर होती है। चक्कर बंद होते हैं। उलटी-चक्कर, अनिद्रा और अतिनिद्रा आदि पर ब्रह्ममुद्रा का अचल प्रभाव पड़ता है। जिन लोगों को नींद में अधिक सपने आते हैं वे इस मुद्रा का अभ्यास करें तो सपने कम हो जाते हैं। ध्वनि-संवेदनशीलता कम होती है। मानसिक अवसाद (Depression) कम होता है। एकाग्रता बढ़ती है। गर्दन सीधी रखने में सहायता मिलती है।

लिंग मुद्रा

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लिंग मुद्राः दोनों हाथों की उँगलियाँ परस्पर भींचकर अन्दर की ओर रहते हुए अँगूठे को ऊपर की ओर सीधा खड़ा करें।

लाभः शरीर में ऊष्णता बढ़ती है, खाँसी मिटती है और कफ का नाश करती है।