बेबी (मिल्क) पाउडर की सच्चाई

हमारे देश में एक अमेरिकी कंपनी है – nestle , नेस्ले बेबी पावडर (डब्बे का दूध) बेचती है |
यूरोप के देशों में बेबी पावडर बिकता नहीं, यूरोप के देशों में बेबी पावडर को बेबी किलर कहते
हैं | मैंने यूरोप के कई देशों में देखा है, बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे रहते हैं और सरकार की तरफ से उन होर्डिंगों पर प्रचार किया जाता है कि “आप अपने बच्चे को बेबी पावडर मत खिलाईये” |

क्यों ?

क्योंकि इसमें जहर है, तो पुरे यूरोप में ये जो बेबी पावडर “बेबी किलर” कहा जाता है वही बेबी पावडर धड़ल्ले से भारत के बाजार में बिक रहा है और बहुत वर्षों तक इस देश में जो बेबी पावडर बिकता था, उसके डब्बे पर कुछ भी लिखा नहीं होता था,
जब कुछ अच्छे लोगों ने इस मुद्दे को उठाया, हमारे जैसे विचार वाले कुछ डोक्टरों ने संसद पर दबाव बनाया तब भारत की भ्रष्ट सरकार ने सिर्फ इतना सा संसोधन कर दिया कि “कंपनियों को बेबी पावडर के डब्बे पर ये लिखना आवश्यक होगा कि माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम है”, (breast feed is best feed )बस बात ख़त्म |

होता ये कि भारत सरकार इन डब्बे के दूध को भारत में प्रतिबंधित कर देती, लेकिन नहीं | और भारत की पढ़ी-लिखी माताओं की हालत भी कुछ वैसी ही है, जो जितनी ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं वो उतना ही ज्यादा बेबी पावडर पिलाती हैं अपने बच्चों को |

कभी-कभी तो मुझे ये लगता है कि जैसे भारत में जब से बेबी पावडर आया है तभी से बच्चे जवान हो रहे हैं, बिना बेबी पावडर के तो क्या लोग बड़े ही नहीं हुए होंगे इस देश में ? ???? आपके दादा दादी जी न तो ये सब नहीं पीया था तो क्या वे बड़े नहीं हुये थे ?????? बल्कि वे आज की पीढ़ी से ज्यादा सव्स्थ थे !

कुछ ऐसा ही माहौल बनाया गया है इस देश में पिछले कुछ वर्षों से, और विरोधाभास क्या है इस देश में कि बाजार में बेबी पावडर भी बिक रहा है और “माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम है” इस विषय पर सेमिनार भी आयोजित किये जाते हैं, करोड़ो रूपये खर्च कर के |

भ्रष्ट सरकार सीधा ये नहीं करती कि बेबी पावडर को प्रतिबंधित कर दे इस देश में | जिनको समझना चाहिए कि “माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम है” वो सेमिनार में आते नहीं और जिनको ये समझ है वो कोई कैम्पेन चलाते नहीं, ये इस देश का दुर्भाग्य है | दोस्तो कहीं न कहीं गलती हमारी भी है ! बिना अपने दिमाग का प्रयोग किए tv पर जो विज्ञापन देखते हैं ! उठा के उसे घर ले आते है ! एक मिनट के लिए भी हम नहीं सोचते ! की ये जो tv पर दिखाया जा रहा है इसके लिए कंपनियो ने करोड़ो रूपये खर्च किये ! तो वो अपनी चीज को बढ़िया बताएँगे !! तो दोस्तो हमेशा दिखावे पर मत जाये अपनी बुद्धि का प्रयोग करे !

एक और बात दोस्तो ये वही विदेशी nestle कंपनी है ! जो kitkat चाकलेट में गाय के बछड़े के मांस का रस मिलती हैं ! और इस बात को खुद मानती है !

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High BP और Low BP का उपचार आयुर्वेद के अनुसार

मित्रो राजीव भाई बताते है आयुर्वेद के अनुसार high BP की बीमारी ठीक करने के लिए घर में उपलब्ध कुछ आयुर्वेदिक दबाईया है जो आप ले सकते है । जैसे एक बहुत अच्छी दवा है आप के घर में है वो है दालचीनी जो मसाले के रूप में उपयोग होता है वो आप पत्थर में पिस कर पावडर बनाके आधा चम्मच रोज सुबह खाली पेट गरम पानी के साथ खाइए ;

अगर थोडा खर्च कर सकते है तो दालचीनी को शहद के साथ लीजिये (आधा चम्मच शहद आधा चम्मच दालचीनी) गरम पानी के साथ, ये हाई BP के लिए बहुत अच्छी दवा है । और एक अच्छी दवा है जो आप ले सकते है पर दोनों में से कोई एक । दूसरी दावा है मेथी दाना, मेथी दाना आधा चम्मच लीजिये एक ग्लास गरम पानी में और रात को भिगो दीजिये, रात भर पड़ा रहने दीजिये पानी में और सुबह उठ कर पानी को पि लीजिये और मेथी दाने को चबा के खा लीजिये । ये बहुत जल्दी आपकी हाई BP कम कर देगा, देड से दो महीने में एकदम स्वाभाविक कर देगा ।

और एक तीसरी अच्छी दवा है हाई BP के लिए वो है अर्जुन की छाल । अर्जुन एक वृक्ष होती है उसकी छाल को धुप में सुखा कर पत्थर में पिस के इसका पावडर बना लीजिये । आधा चम्मच पावडर, आधा ग्लास गरम पानी में मिलाकर उबाल ले, और खूब उबालने के बाद इसको चाय की तरह पि ले । ये हाई BP को ठीक करेगा, कोलेस्ट्रोल को ठीक करेगा, ट्राईग्लिसाराईड को ठीक करेगा, मोटापा कम करता है , हार्ट में अर्टेरिस में अगर कोई ब्लोकेज है तो वो ब्लोकेज को भी निकाल देता है ये अर्जुन की छाल । डॉक्टर अक्सर ये कहते है न की दिल कमजोर है आपका; अगर दिल कमजोर है तो आप जरुर अर्जुन की छाल लीजिये हरदिन , दिल बहुत मजबूत हो जायेगा आपका; आपका ESR ठीक होगा, ejection fraction भी ठीक हो जायेगा; बहुत अछि दावा है ये अर्जुन की छाल ।

और एक अछि दावा है हमारे घर में वो है लौकी का रस । एक कप लौकी का रस रोज पीना सबेरे खाली पेट नास्ता करने से एक घंटे पहले ; और इस लौकी की रस में पांच धनिया पत्ता, पांच पुदीना पत्ता, पांच तुलसी पत्ता मिलाके, तिन चार कलि मिर्च पिस के ये सब डाल के पीना .. ये बहुत अच्छा आपके BP ठीक करेगा और ये ह्रदय को भी बहुत व्यवस्थित कर देता है , कोलेस्ट्रोल को ठीक रखेगा, डाईबेटिस में भी काम आता है ।

और एक मुफ्त की दावा है , बेल पत्र की पत्ते – ये उच्च रक्तचाप में बहुत काम आते है । पांच बेल पत्र ले कर पत्थर में पिस कर उसकी चटनी बनाइये अब इस चटनी को एक ग्लास पानी में डाल कर खूब गरम कर लीजिये , इतना गरम करिए के पानी आधा हो जाये , फिर उसको ठंडा करके पि लीजिये । ये सबसे जल्दी उच्च रक्तचाप को ठीक करता है और ये बेलपत्र आपके सुगर को भी सामान्य कर देगा । जिनको उच्च रक्तचाप और सुगर दोनों है उनके लिए बेल पत्र सबसे अछि दावा है ।

और एक मुफ्त की दावा है हाई BP के लिए – देशी गाय की मूत्र पीये आधा कप रोज सुबह खाली पेट ये बहुत जल्दी हाई BP को ठीक कर देता है । और ये गोमूत्र बहुत अद्भूत है , ये हाई BP को भी ठीक करता है और लो BP को भी ठीक कर देता है – दोनों में काम आता है और येही गोमूत्र डाईबेटिस को भी ठीक कर देता है , Arthritis , Gout (गठिया) दोनों ठीक होते है । अगर आप गोमूत्र लगातार पि रहे है तो दमा भी ठीक होता है अस्थमा भी ठीक होता है, Tuberculosis भी ठीक हो जाती है । इसमें दो सावधानिया ध्यान रखने की है के गाय सुद्धरूप से देशी हो और वो गर्भावस्था में न हो ।

low BP की बीमारी के लिए दावा : निम्न रक्तचाप की बीमारी के लिए सबसे अछि दावा है गुड । ये गुड पानी में मिलाके, नमक डालके, नीबू का रस मिलाके पि लो । एक ग्लास पानी में 25 ग्राम गुड, थोडा नमक नीबू का रस मिलाके दिन में दो तिन बार पिने से लो BP सबसे जल्दी ठीक होगा ।
और एक अछि दावा है ..अगर आपके पास थोड़े पैसे है तो रोज अनार का रस पियो नमक डालकर इससे बहुत जल्दी लो BP ठीक हो जाती है , गन्ने का रस पीये नमक डालकर ये भी लो BP ठीक कर देता है, संतरे का रस नमक डाल के पियो ये भी लो BP ठीक कर देता है , अनन्नास का रस पीये नमक डाल कर ये भी लो BP ठीक कर देता है ।
लो BP के लिए और एक बढ़िया दावा है मिसरी और मखन मिलाके खाओ – ये लो BP की सबसे अछि दावा है ।
लो BP के लिए और एक बढ़िया दावा है दूध में घी मिलाके पियो , एक ग्लास देशी गाय का दूध और एक चम्मच देशी गाय की घी मिलाके रातको पिने से लो BP बहुत अछे से ठीक होगा ।
और एक अछि दावा है लो BP की और सबसे सस्ता भी वो है नमक का पानी पियो दिन में दो तिन बार , जो गरीब लोग है ये उनके लिए सबसे अच्छा है ।

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मैकोले की चाल कामयाब हुई

हिन्दी मे पढ़े क्या लिखा अंग्रेज़ macaulay ने 1835 मे अंग्रेज़ो की संसद को !!!


मैं भारत के कोने कोने मे घूमा हूँ मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया जो भिखारी हो चोर हो !

इस देश में मैंने इतनी धन दोलत देखी है इतने ऊंचे चारित्रिक आदर्श गुणवान मनुष्य देखे हैं की मैं नहीं समझता हम इस देश को जीत पाएंगे , जब तक इसकी रीड की हड्डी को नहीं तोड़ देते !

जो है इसकी आध्यात्मिक संस्कृति और इसकी विरासत !

इस लिए मैं प्रस्ताव रखता हूँ ! की हम पुरातन शिक्षा व्यवस्था और संस्कृति को बादल डाले !

क्यूंकि यदि भारतीय सोचने लगे की जो भी विदेशी है और अँग्रेजी है वही अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर है तो वे अपने आत्म गौरव और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे !! और वैसे बन जाएंगे जैसा हम चाहते है ! एक पूरी तरह से दमित देश !!


और बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है की macaulay अपने इस मकसद मे कामयाब हुआ !!
और जैसा उसने कहा था की मैं भारत की शिक्षा व्यवस्था को ऐसा बना दूंगा की इस मे पढ़ के निकलने वाला व्यक्ति सिर्फ शक्ल से भारतीय होगा ! और अकल से पूरा अंग्रेज़ होगा !!

और यही आज हमारे सामने है दोस्तो ! आज हम देखते है देश के युवा पूरी तरह काले अंग्रेज़ बनते जा रहे है !!

उनकी अँग्रेजी भाषा बोलने पर गर्व होता है !!
अपनी भाषा बोलने मे शर्म आती है !!

madam बोलने मे कोई शर्म नहीं आती !
श्री मती बोलने मे शर्म आती है !!

अँग्रेजी गाने सुनने मे गर्व होता है !!
मोबाइल मे अँग्रेजी tone लगाने मे गर्व होता है !!

विदेशी समान प्रयोग करने मे गर्व होता है !
विदेशी कपड़े विदेशी जूते विदेशी hair style बड़े गर्व से कहते है मेरी ये चीज इस देश की है उस देश की है !ये made in uk है ये made इन america है !!

अपने बच्चो को convent school पढ़ाने मे गर्व होता है !!
बच्चा ज्यादा अच्छी अँग्रेजी बोलने लगे तो बहुत गर्व ! हिन्दी मे बात करे तो अनपद !
विदेशी खेल क्रिकेट से प्रेम कुशती से नफरत !!!

विदेशी कंपनियो pizza hut macdonald kfc पर जाकर कुछ खाना तो गर्व करना !!
और गरीब रेहड़ी वाले भाई से कुछ खाना तो शर्म !!

अपने देश धर्म संस्कृति को गालिया देने मे सबसे आगे !! सारे साधू संत इनको चोर ठग नजर आते है !!

लेकिन कोई ईसाई मिशनरी अँग्रेजी मे बोलता देखे तो जैसे बहुत समझदार लगता है !!

करोड़ो वर्ष पुराने आयुर्वेद को गालिया ! और अँग्रेजी ऐलोपैथी को तालिया !!!

विदेशी त्योहार वैलंटाइन मनाने पर गर्व !! स्वामी विवेकानद का जन्मदिन याद नहीं !!!!

दोस्तो macaulay अपनी चाल मे कामयाब हुआ !! और ये सब उसने कैसे किया !!

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टूथपेस्ट व टूथब्रश प्रयोग करते समय ध्यान दें

हमलोग ब्रश करते हैं तो पेस्ट का इस्तेमाल करते हैं, कोलगेट, पेप्सोडेंट, क्लोज-अप, सिबाका, फोरहंस आदि का, क्योंकि वो साँस की बदबू दूर करता है, दांतों की सडन को दूर करता है, ऐसा कहा जाता है प्रचारों में | आप सोचिये कि जब कोलगेट नहीं था, तब सब के दांत सड़ जाते थे क्या ? और सब के सांस से बदबू आती थी क्या ? अभी कुछ सालों से टेलीविजन ने कहना शुरू कर दिया कि भाई कोलगेट रगडो तो हमने कोलगेट चालू कर दिया | अब जो नीम का दातुन करते हैं तो उनको तथाकथित पढ़े-लिखे लोग बेवकूफ मानते हैं और खुद कोलगेट इस्तेमाल करते हैं तो अपने को बुद्धिमान मानते हैं, जब कि है उल्टा | जो नीम का दातुन करते हैं वो सबसे बुद्धिमान हैं और जो कोलगेट का प्रयोग करते हैं वो सबसे बड़े मुर्ख हैं |

जब यूरोप में घुमा करता था तो एक बात पता चली कि यूरोप के लोगों के दाँत सबसे ज्यादा ख़राब हैं, सबसे गंदे दाँत दुनिया में किसी के हैं तो यूरोप के लोगों के हैं और वहां क्या है कि हर दूसरा-तीसरा आदमी दाँतों का मरीज है और सबसे ज्यादा संख्या उनके यहाँ दाँतों के डाक्टरों की ही है, अमेरिका में भी यही हाल है | वहां एक डाक्टर मुझे मिले, नाम था डाक्टर जुकर्शन, मैंने पूछा कि “आपके यहाँ दाँतों के इतने मरीज क्यों हैं? और दाँतों के इतने ज्यादा डाक्टर क्यों हैं ?” तो उन्होंने बताया कि “हम दाँतों के मरीज इसलिए हैं कि हम पेस्ट रगड़ते हैं ” तो मैंने कहा कि “तो क्या रगड़ना चाहिए?”, तो उन्होंने कहा कि “वो हमारे यहाँ नहीं होती, तुम्हारे यहाँ होती है ” तो फिर मैंने कहा कि “वो क्या?”, तो उन्होंने बताया कि “नीम का दातुन” | तो मैंने कहा कि “आप क्या इस्तेमाल करते हैं?” तो उन्होंने कहा कि “नीम का दातुन और वो तुम्हारे यहाँ से आता है मेरे लिए ” | यूरोप में लोग नीम के दातुन का महत्व समझते हैं और हम प्रचार देख कर “कोलगेट का सुरक्षा चक्र” अपना रहे हैं, हमसे बड़ा मुर्ख कौन होगा |

कोलगेट बनता कैसे हैं, आपको मालूम है? किसी को नहीं मालूम, क्योंकि कोलगेट कंपनी कभी बताती नहीं है कि उसने इस पेस्ट को बनाया कैसे ? कोलगेट का पेस्ट दुनिया का सबसे घटिया पेस्ट है, क्यों ? क्योंकि ये जानवरों के हड्डियों के चूरे से बनता है | जानवरों के हड्डियों के चूरे के साथ-साथ इसमें एक और खतरनाक चीज मिलाई जाती है, वो है फ्लोराइड | फ्लोराइड नाम उस जहर का है जो शरीर में फ्लोरोसिस नाम की बीमारी करता है और भारत के पानी में पहले से ही ज्यादा फ्लोराइड है | तीसरी एक और खतरनाक चीज होती है उसमे, ये है Sodium Lauryl Sulphate | मैं जब लोगों से पूछता हूँ कि “आप कोलगेट क्यों इस्तेमाल करते हैं” तो सभी लोगों का कहना होता है कि “इसमें क्वालिटी है” फिर मैं पूछता हूँ कि “क्या क्वालिटी है?” तो कहते हैं कि “इसमें झाग बहुत बनता है”, ये पढ़े-लिखे लोगों का उत्तर होता है | रसायन शास्त्र में एक रसायन होता है “Sodium Lauryl Sulphate ” और रसायन शास्त्र के शब्दकोष (dictionary) में जब आप देखेंगे तो इस “Sodium Lauryl Sulphate” के नाम के आगे लिखा होता है “जहर”/”poison “| और .05mg मात्रा शरीर में चली जाए तो कैंसर कर देता है और यही केमिकल कोलगेट में मिलाया जाता है क्योंकि “Sodium Lauryl Sulphate ” डाले बिना किसी टूथपेस्ट में झाग नहीं बन सकता | टूथपेस्ट और सेविंग क्रीम दोनों में ये “Sodium Lauryl Sulphate ” डाला जाता है, बस थोडा प्रोसेस में अंतर होता है | ये झाग इसी केमिकल से बनता है तकनीकी भाषा में जिसे सिंथेटिक डिटर्जेंट कहा जाता है वही इन पेस्टों में मिलाया जाता है | यही सिंथेटिक डिटर्जेंट “Sodium Lauryl Sulphate ” कपडा धोने वाले वाशिंग पावडर और डिटर्जेंट केक में, शैम्पू में और दाढ़ी बनाने वाले सेविंग क्रीम में भी मिलाया जाता है | दुनिया का सबसे रद्दी पेस्ट हम इस्तेमाल कर रहे हैं |

धर्म के हिसाब से भी पेस्ट सबसे ख़राब है | सभी पेस्टों में मरे हुए जानवरों की हड्डियाँ मिलायी जाती है | ये कोई भी जानवर हो सकता है, मैं इशारों में आपको बता रहा हूँ और आप अगर शाकाहारी है या जैन धर्म को मानने वाले हैं तो क्यों अपना धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं | मेरे पास हर कंपनी की लेबोरेटरी रिपोर्ट है कि कौन कंपनी कौन से जानवर की हड्डी मिलाती है और ये प्रयोगशाला में प्रयोग करने के बाद प्रमाणित होने के बाद आपको बता रहे हैं हम |

और ये कोलगेट नाम का पेस्ट बिक रहा है Indian Dental Association के प्रमाण से | मुझे जरा बताइए कि कब इस संगठन ने कोई बैठक किया और कोलगेट के ऊपर प्रस्ताव पारित किया कि “हम कोलगेट को प्रमाणित करते हैं कि ये भारत में बिकना चाहिए” लेकिन कोलगेट भारत में बिक रहा है IDA का नाम बेच कर | “IDA” लिखा रहता है Upper Case में और मोटे अक्षरों में, और “Accepted” लिखा होता है छोटे अक्षर में | यहाँ भी धोखा है, ये “accepted” लिखते हैं ना कि “certified” | मुझे तो आश्चर्य होता है कि भारत में दाँतों के डॉक्टर इसका विरोध क्यों नहीं करते, कोई डेंटिस्ट खड़ा हो कर इस झूठ को झूठ क्यों नहीं कहता, क्यों नहीं वो कोर्ट में केस करता | मैं नहीं कर सकता क्योंकि मैं कोई डेंटिस्ट नहीं हूँ, लेकिन कोई डेंटिस्ट इस बात को सिद्ध कर सकता है, और वो ये भी बता सकता है कि “कोई भी टूथपेस्ट जिसमे 1000 PPM से ज्यादा फ्लोराइड होता है तो वो सारे के सारे टूथपेस्ट जहर हो जाते है, टूथपेस्ट नहीं रहते” मैं अगर ये बात कोर्ट में कहूं तो कोर्ट मेरी बात नहीं मानेगा, कहेगा कि “आपके पास कोई डिग्री है इससे सम्बंधित” | दुर्भाग्य से, जिनके पास डिग्री है वो कोर्ट में जा नहीं रहे हैं और मेरे जैसे लोग, जिनके पास डिग्री नहीं है तो कोर्ट में जा नहीं सकते और खिसिया (गुस्सा) के रह जाते हैं |

आपको एक और जानकारी देता हूँ | अमेरिका और यूरोप में जब कोलगेट बेचा जाता है तो उसपर चेतावनी (Warning) लिखी होती है | लिखते अंग्रेजी में हैं, मैं आपको हिंदी में बताता हूँ, उसपर लिखते हैं “please keep out this Colgate from the reach of the children below 6 years” मतलब “छः साल से छोटे बच्चों के पहुँच से इसको दूर रखिये/उसको मत दीजिये”, क्यों? क्योंकि बच्चे उसको चाट लेते हैं, और उसमे कैंसर करने वाला केमिकल है, इसलिए कहते हैं कि बच्चों को मत देना ये पेस्ट | और आगे लिखते हैं ” In case of accidental ingestion , please contact nearest poison control center immediately , मतलब “अगर बच्चे ने गलती से चाट लिया तो जल्दी से डॉक्टर के पास ले के जाइए” इतना खतरनाक है, और तीसरी बात वो लिखते हैं “If you are an adult then take this paste on your brush in pea size ” मतलब क्या है कि ” अगर आप व्यस्क हैं /उम्र में बड़े हैं तो इस पेस्ट को अपने ब्रश पर मटर के दाने के बराबर की मात्रा में लीजिये” | और आपने देखा होगा कि हमारे यहाँ जो प्रचार टेलीविजन पर आता है उसमे ब्रश भर के इस्तेमाल करते दिखाते हैं | हमारे देश में बिकने वाले पेस्ट पर ये “warning” नहीं होती और उसके जगह “Directions for use” लिखा होता है, और वो बात, जो वो अमेरिका और यूरोप के पेस्ट पर लिखते हैं, वो यहाँ भारत के पेस्ट पर नहीं लिखते | और कोलगेट के डिब्बे पर ISI का निशान भी नहीं होता , इसको Agmark भी नहीं मिला है, क्योंकि ये सबसे रद्दी क्वालिटी का होता है | जो वो अमेरिका और यूरोप के पेस्ट पर लिखते हैं, वो यहाँ भारत के पेस्ट पर नहीं लिखते, अब क्यों होता है ऐसा ये आपके मंथन के लिए छोड़ता हूँ और निर्णय भी आप ही को करना है |

यहाँ मैं भारत में कार्यरत कोलगेट कंपनी का एक पत्र भी डाल रहा हूँ जो भाई राकेश जी के इस प्रश्न के उत्तर में था कि “अमेरिका और यूरोप के पेस्ट पर जो चेतावनी आपकी कंपनी छापती है, वो भारत में उपलब्ध अपने पेस्ट के ऊपर क्यों नहीं छापती”| तो उनका (कंपनी का) उत्तर कितने छिछले स्तर का था ये देखिये……………….
From:
Date: Tue, May 31, 2011 at 6:04 PM
Subject: In response to your Colgate communication #022844460A
To: prakriti.pune@gmail.com

May 31, 2011

Ref: 022844460A

Mr. Rakesh Chandra Rakesh
B 13 Everest Heights Behind Joggers
Near Khalsa Dairy
Viman Nagar
Pune 411014
Maharashtra
India

Dear Mr. Rakesh,

Thank you for contacting Colgate-Palmolive (India) Limited.

“The labelling requirements of cosmetic preparations like toothpaste in India are governed by the drugs and cosmetics regulations. We are fully complying with those regulations.In addition, we have incorporated an additional direction (i.e. Dentists recommend parents supervise brushing with a pea-size amount of toothpaste, discourage swallowing and ensure children spit and rinse afterwards) with a view to guiding the parents of children under 6 years of age using toothpaste.”

We greatly value your patronage of Colgate-Palmolive products.

Regards,

COLGATE PALMOLIVE (INDIA) LIMITED

Abilio Dias
Consumer Affairs
Communications
(http://www.natural-health/- information-centre.com/sodium- lauryl-sulfate.html) और http://www.fluoridealert/. org/ toothpaste.html इन दोनों लिंक को समय निकाल कर पढने का कष्ट करेंगे तो आपके लिए अच्छा होगा | आप जिस भी पेस्ट के INGREDIENT में इस केमिकल का नाम देखिये तो उसे कृपा कर के इस्तेमाल मत कीजिये, अपना नहीं तो अपने बीवी-बच्चो का तो ख्याल कीजिये, अगर शादी नहीं हुई है तो अपने माता-पिता का ख्याल तो कीजिये |

विकल्प
यहाँ मैं महर्षि वाग्भट के अष्टांग हृदयम का कुछ हिस्सा जोड़ता हूँ, जिसमे वो कहते हैं कि दातुन कीजिये | दातुन कैसा ? तो जो स्वाद में कसाय हो, कसाय समझते हैं आप ? कसाय मतलब कड़वा और नीम का दातुन कड़वा ही होता है और इसीलिए उन्होंने नीम के दातुन की बड़ाई (प्रसंशा) की है | उन्होंने नीम से भी अच्छा एक दूसरा दातुन बताया है, वो है मदार का, उसके बाद अन्य दातुन के बारे में उन्होंने बताया है जिसमे बबूल है, अर्जुन है, आम है, अमरुद है, जामुन है, ऐसे 12 वृक्षों का नाम उन्होंने बताया है जिनके दातुन आप कर सकते हैं | चैत्र माह से शुरू कर के गर्मी भर नीम, मदार या बबूल का दातुन करने के लिए उन्होंने बताया है, सर्दियों में उन्होंने अमरुद या जामुन का दातुन करने को बताया है , बरसात के लिए उन्होंने आम या अर्जुन का दातुन करने को बताया है | आप चाहें तो सालों भर नीम का दातुन इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उसमे ध्यान इस बात का रखे कि तीन महीने लगातार करने के बाद इस नीम के दातुन को कुछ दिन का विश्राम दे | इस अवधि में मंजन कर ले | दन्त मंजन बनाने की आसान विधि उन्होंने बताई है, वो कहते हैं कि आपके स्थान पर उपलब्ध खाने का तेल (सरसों का तेल. नारियल का तेल, या जो भी तेल आप खाने में इस्तेमाल करते हों, रिफाइन छोड़ कर ), उपलब्ध लवण मतलब नमक और हल्दी मिलाकर आप मंजन बनाये और उसका प्रयोग करे | दातुन जब भारत के सबसे बड़े शहर मुंबई में मिल जाता है तो भारत का ऐसा कोई भी शहर नहीं होगा जहाँ ये नहीं मिले |

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पेप्सी और कोकाकोला की सच्चाई

भारत मे जो सबसे ज्यादा विदेशी कंपनिया काम कर रही हैं वो अमेरिका से आई है ! उनमे से ए नाम है pepsi cola दूसरी का नाम है cocacola ! जिसको हम coke pepsi भी कह देते है !, भारत मे बिकने वाले सॉफ्ट ड्रिंक क्षेत्र में अमेरिका की दो कंपनियों का एकाधिकार है,!

| 1990 -91 में दोनों कंपनियों का संयुक्त रूप से जो विदेशी पूंजी निवेश था भारत में, उसे सुन कर आश्चर्य करेंगे आप, दोनों ने मिलकर लगभग 10 करोड़ की पूंजी लगाई थी भारत में, कुल जमा 10 करोड़ रुपया (डौलर नहीं) | अर्थशास्त्र की भाषा में इसको Initial Paid-up Capital कहते हैं | मतलब शुरुवाती पूंजी ! वो केवल 10 करोड़ कि है !

इन दोनों कंपनियों के कुल मिलाकर 64 कारखाने हैं पुरे भारत में ! और मैं जब उन कारखानों में घुमा और इनके अधिकारियों से बात कर के जानकारी लेने की कोशिश की !, क्योंकि इनके वेबसाइट पर इनके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है, इन कंपनियों ने भारत के शेयर बाजार में भी अपनी लिस्टिंग नहीं कराई है, इनका रजिस्ट्रेशन नहीं है हमारे यहाँ के शेयर मार्केट में | बॉम्बे स्टोक एक्सचेंज (BSE) या NSE में जिन कंपनियों की लिस्टिंग नहीं होती उनके बारे में पता करना या उनके आंकड़े मिलना एकदम असंभव होता है | listing होती तो SEBI (security exchange board of INDIA) से सारी जानकारी मिल जाती !

इन कंपनियों के एक बोतल पेय की लागत मात्र 70 पैसे होती है, आप कहेंगे कि मुझे कैसे मालूम ? भारत सरकार का एक विभाग है जिसका नाम है BICP, ब्यूरो ऑफ़ इंडस्ट्रियल कास्ट एंड प्राईसेस, यही वो विभाग है जिसे भारत में उत्पन्न होने वाले हर औद्योगिक उत्पादन की लागत पता होती है, वहीं से मुझे ये जानकारी मिली थी | आप हैरान हो जायेंगे ये जानकर कि 70 पैसे का जो ये लागत है इनका वो एक्साइज ड्यूटी देने के बाद की है, यानि एक्स-फैक्ट्री कीमत है ये | अगर एक बोतल 10 रुपया में बिक रहा है तो लगभग 1500% का लाभ ये कंपनी एक बोतल पर कमा रही है !

और जब पेप्सी और कोका कोला के 64 कारखानों में होने वाले एक वर्ष के कुल उत्पादन के बारे में पता किया तो पता चला कि ये दोनों कंपनियाँ एक वर्ष में 700 करोड़ बोतल तैयार कर के भारत के बाजार में बेंच देती हैं | और कम से कम 10 रूपये में एक बोतल वो बेचती हैं तो आप जोडिये कि हमारे देश का 7000 करोड़ रुपया लूटकर वो भारत से ले जाती हैं | और इस 7000 करोड़ रूपये की लुट होती है एक ऐसे पानी को बेच कर जिसमे जहर ही जहर है, एक पैसे की न्यूट्रीशनल वैल्यू नहीं है इसमे |

भारत के कई वैज्ञानिकों ने पेप्सी और कोका कोला पर रिसर्च करके बताया कि इसमें मिलाते क्या हैं | पेप्सी और कोका कोला वालों से पूछिये तो वो बताते नहीं हैं, कहते हैं कि ये फॉर्मूला टॉप सेक्रेट है, ये बताया नहीं जा सकता | लेकिन आज के युग में कोई भी सेक्रेट को सेक्रेट बना के नहीं रखा जा सकता | तो उन्होंने अध्ययन कर के बताया कि इसमें मिलाते क्या हैं, तो वैज्ञानिको का कहना है इसमे कुल 21 तरह के जहरीले कैमिकल मिलाये जाते हैं !

कुछ नाम बताता हूँ !इसमें पहला जहर जो मिला होता है – सोडियम मोनो ग्लूटामेट, और वैज्ञानिक कहते हैं कि ये कैंसर करने वाला रसायन है, फिर दूसरा जहर है – पोटैसियम सोरबेट – ये भी कैंसर करने वाला है, तीसरा जहर है – ब्रोमिनेटेड वेजिटेबल ऑइल (BVO) – ये भी कैंसर करता है | चौथा जहर है – मिथाइल बेन्जीन – ये किडनी को ख़राब करता है, पाँचवा जहर है – सोडियम बेन्जोईट – ये मूत्र नली का, लीवर का कैंसर करता है, फिर इसमें सबसे ख़राब जहर है – एंडोसल्फान – ये कीड़े मारने के लिए खेतों में डाला जाता है और ऊपर से होता है ऐसे करते करते इस में कुल 21 तरह के जहर मिलये जाते हैं !

ये 21 तरह के जहर तो एक तरफ है और हमारे देश के पढ़े लिखे लोगो के दिमाग का हाल देखिये -बचपन से उन्हे किताबों मे पढ़ाया जाता है ! की मनुष्य को प्राण वायु आक्सीजन अंदर लेनी चाहिए और कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकलनी चाहिए ये जानने के बावजूद भी गट गट कर उसे पे रहे हैं !और पीते ही एक दम नाक मे जलन होती और वो सीधा दिमाग तक जाती है !और फिर दूसरा घूट भरते है गट गट गट !

और हमारा दिमाग इतना गुलाम हो गया है ! आज हम किसी बिना coke pepsi के जहर के किसी भी शादी विवाह पार्टी के बारे मे सोचते भी नही !कार्बन डाईऑक्साइड – जो कि बहुत जहरीली गैस है और जिसको कभी भी शरीर के अन्दर नहीं ले जाना चाहिए और इसीलिए इन कोल्ड ड्रिंक्स को “कार्बोनेटेड वाटर” कहा जाता है | और इन्ही जहरों से भरे पेय का प्रचार भारत के क्रिकेटर और अभिनेता/अभिनेत्री करते हैं पैसे के लालच में, उन्हें देश और देशवाशियों से प्यार होता तो ऐसा कभी नहीं करते |
पहले अमीर खान ये जहर बिकवाता था अब उसका भांजा बिकवाता है ! अमिताभ बच्चन,शरूखान ,रितिक रोशन लगभग सबने इस कंपनी का जहर भारत मे बिकवाया है !क्यूंकि इनके लिए देश से बड़ा पैसा है !

पूरी क्रिकेट टीम इस दोनों कंपनियो ने खरीद रखी है ! और हमारी क्रिकेट टीम की कप्तान धोनी जब नय नय आये थे! तब मीडिया मे ऐसे खबरे आती थी ! जो 2 लीटर दूध पीते हैं धोनी ! ये दूध पीकर धोनी बनने वाला धोनी आज पूरे भारत को पेप्सी का जहर बेच रहा है ! और एक बात ध्यान दे जब भी क्रिकेट मैच की दौरान water break होती है तब इनमे से कोई खिलाड़ी pepsi coke क्यूँ नहीं पीता ??? ?? क्यूँ कि ये सब जानते है ये जहर है ! इन्हे बस ये देश वासियो को पिलाना है !

ज्यादातर लोगों से पूछिये कि “आप ये सब क्यों पीते हैं ?” तो कहते हैं कि “ये बहुत अच्छी क्वालिटी का है” | अब पूछिये कि “अच्छी क्वालिटी का क्यों है” तो कहते हैं कि “अमेरिका का है” | और ये उत्तर पढ़े-लिखे लोगों के होते हैं |

तो ऐसे लोगों को ये जानकारी दे दूँ कि अमेरिका की एक संस्था है FDA (Food and Drug Administration) और भारत में भी ऐसी ही एक संस्था है, उन दोनों के दस्तावेजों के आधार पर मैं बता रहा हूँ कि, अमेरिका में जो पेप्सी और कोका कोला बिकता है और भारत में जो पेप्सी-कोक बिक रहा है, तो भारत में बिकने वाला पेप्सी-कोक, अमेरिका में बिकने वाले पेप्सी-कोक से 40 गुना ज्यादा जहरीला होता है, सुना आपने ? 40 गुना, मैं प्रतिशत की बात नहीं कर रहा हूँ | और हमारे शरीर की एक क्षमता होती है जहर को बाहर निकालने की, और उस क्षमता से 400 गुना ज्यादा जहरीला है, भारत में बिकने वाला पेप्सी और कोक | तो सोचिए बेचारी आपकी किडनी का क्या हाल होता होगा !जहर को बाहर निकालने के लिए !ये है पेप्सी-कोक की क्वालिटी, और वैज्ञानिकों का कहना है कि जो ये पेप्सी-कोक पिएगा उनको कैंसर, डाईबिटिज, ओस्टियोपोरोसिस, ओस्टोपिनिया, मोटापा, दाँत गलने जैसी 48 बीमारियाँ होगी |

पेप्सी-कोक के बारे में आपको एक और जानकारी देता हूँ – स्वामी रामदेव जी इसे टॉयलेट क्लीनर कहते हैं, आपने सुना होगा (ठंडा मतलब टाइलेट कालीनर )तो वो कोई इसको मजाक में नहीं कहते या उपहास में नहीं कहते हैं,देश के पढ़े लिखे मूर्ख लोग समझते है कि ये बात किसी ने ऐसे ही बना दी है !

इसके पीछे तथ्य है, ध्यान से पढ़े !तथ्य ये कि टॉयलेट क्लीनर harpic और पेप्सी-कोक की Ph value एक ही है | मैं आपको सरल भाषा में समझाने का प्रयास करता हूँ | Ph एक इकाई होती है जो acid की मात्रा बताने का काम करती है !और उसे मापने के लिए Ph मीटर होता है | शुद्ध पानी का Ph सामान्यतः 7 होता है ! और (7 Ph) को सारी दुनिया में सामान्य माना जाता है, और जब पानी में आप हाईड्रोक्लोरिक एसिड या सल्फ्यूरिक एसिड या फिर नाइट्रिक एसिड या कोई भी एसिड मिलायेंगे तो Ph का वैल्यू 6 हो जायेगा, और ज्यादा एसिड मिलायेंगे तो ये मात्रा 5 हो जाएगी, और ज्यादा मिलायेंगे तो ये मात्रा 4 हो जाएगी, ऐसे ही करते-करते जितना acid आप मिलाते जाएंगे ये मात्रा कम होती जाती है | जब पेप्सी-कोक के एसिड का जाँच किया गया तो पता चला कि वो 2.4 है और जो टॉयलेट क्लीनर होता है उसका Ph और पेप्सी-कोक का Ph एक ही है, 2.4 का मतलब इतना ख़राब जहर कि आप टॉयलेट में डालेंगे तो ये झकाझक सफ़ेद हो जायेगा | इस्तेमाल कर के देखिएगा |

और हम लोगो का हाल ये है ! घर मे मेहमान को आती ये जहर उसके आगे करते है ! दोस्तो हमारी महान भारतीय संस्कृति मे कहा गया है ! अतिथि देवो भव ! मेहमान भगवान का रूप है ! और आप उसे टॉइलेट साफ पीला रहे हैं !!

अंत मे राजीव भाई कहते हैं ! कि देश का युवा वर्ग सबसे ज्यादा इस जहर को पीता ! और नपुंसकता कि बीमारी सबसे ज्यादा ये जहर पीकर हो रही है ! और कहीं न कहीं मुझे लगता है ! ये pepsi coke पूरी देश पूरी जवान पीढ़ी को खत्म कर देगा ! इस लिए हम सबको मिलकर स्कूलों कालेजो मे जा जा कर बच्चो को समझना चाहिए ! राजीव भाई जा कहना है ! आप बस स्कूल कालेजो मे जाते ही उनके सामने इस pepsi coke से वहाँ का टाइलेट साफ कर के दिखा दी जीए ! एक मिनट ही वो मान जाएंगे !

और बच्चे अगर मान गये तो उनके घर वाले खुद पर खुद मान जाएंगे ! वो एक कहावत हैं न son is a father of father ! बच्चा बाप का बाप होता है ! तो बच्चो को समझाये ! बच्चे ये जहर छोड़े बड़े छोड़े और इस दोनों अमेरीकन कंपनियो को अपने देश भगाये ! जैसे हमने east india company को भगाया था !!

वन्देमातरम !!!!!!!!!!

राजीव भाई कहते हैं 1997 मे जब उन्होने पेप्सी और कोक के खिलाफ अभियान शुरू किया था तो वो अकेले थे लेकिन आज भारत में 70 संस्थाएं हैं जो पेप्सी-कोक के खिलाफ अभियान चला रहीं हैं, हम खुश हैं कि इनके बिक्री में कमी आयी है | और इनकी 60 % sale कम हुये है ! 1997 मे ये दोनों कंपनिया कुल 700 करोड़ बोतल बेचती थी ! और आज 50 करोड़ के लगभग बिकती है ! लेकिन दोस्तो यह भी बहुत ज्यादा है ! लेकिन अगर हम सब संकल्प ये जहर न खुद पीये गे न किसी को पिलएंगे ! तो ये 50 करोड़ बोतले बिकनी भी बंद हो जायगी !और ये दोनों कंपनिया अपने देश अमेरिका भाग जाएंगी !

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स्वस्थ जीवन के लिए अपनाइये ये सोने के नियम

दोस्तो भारत मे बहुत बड़े बड़े ऋषि हुये ! चरक ऋषि ,पतंजलि ऋषि ,शुशुद ऋषि ऐसे एक ऋषि हुए है 3000 साल पहले बाग्वट ऋषि ! उन्होने 135 साल के जीवन मे एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था अष्टांग हरद्यम उसमे उन्होने ने मानव शरीर के लिए सैंकड़ों सूत्र लिखे थे उनमे से एक सूत्र के बारे मे आप नीचे पढे !

बाग्वट जी एक जगह लिख रहे है ! कि जब भी आप आराम करे मतलब सुबह या शाम या रात को सोये तो हमेशा दिशाओ का ध्यान रख कर सोये !अब यहाँ पे वास्तु घुस गया वास्तुशास्त्र ! वास्तु भी विज्ञान ही है ! तो वो कहते की इसका जरूर ध्यान रखे !

क्या ध्यान रखे ???? तो वो कहते है हमेशा आराम करते समय सोते समय आपका सिर सूर्य की दिशा मे रहे ! सूर्य की दिशा मतलब पूर्व और पैर हमेशा पश्चिम की तरफ रहे !और वो कहते कोई मजबूरी आ जाए कोई भी मजबूरी के कारण आप सिर पूर्व की और नहीं कर सकते तो दक्षिण (south)मे जरूर कर ले ! तो या तो east या south ! जब भी आराम करे तो सिर हमेशा पूर्व मे ही रहे !पैर हमेशा पश्चिम मे रहे !और कोई मजबूरी हो तो दूसरी दिशा है दक्षिण ! दक्षिण मे सिर रखे उत्तर दिशा मे पैर !

आगे के सूत्र मे बागवट जी कहते है उत्तर मे सिर करके कभी न सोये !फिर आगे के सूत्र मे लिखते है उत्तर की दिशा म्रत्यु की दिशा है सोने के लिए ! उत्तर की दिशा दूसरे और कामो के लिए बहुत अच्छी है पढ़ना है लिखना है अभ्यास करना है ! उत्तर दिशा मे करे ! लेकिन सोने के लिए उत्तर दिशा बिलकुल निशिद है !

अब बागवट जी ने तो लिख दिया ! पर राजीव भाई इस पर कुछ रिसर्च किया ! तो राजीव भाई लिखते हैं कि गाव गाव जब मैं घूमता था तो किसी कि मृतुय हो जाती तो मुझे अगर किसी के संस्कार पर जाना पड़ता !तो वहाँ मैं देखता कि पंडित जी खड़े हो गए संस्कार के लिए !और संस्कार के सूत्र बोलना वो शुरू करते हैं !

तो पहला ही सूत्र वो बोलते हैं ! मृत का शरीर उत्तर मे करो मतलब सिर उत्तर मे करो !पहला ही मंत्र बोलेंगे मृत व्यक्ति का सिर उत्तर मे करो !और हमारे देश मे आर्य समाज के संस्थापक रहे दयानंद सरस्वती जी ! भारत मे जो संस्कार होते है ! जनम का संस्कार है गर्भधारण का एक संस्कार है ऐसे ही मृतुय भी एक संस्कार है !तो उन्होने एक पुस्तक लिखी है (संस्कार विधि) ! तो उसमे मृत संस्कार की विधि मे पहला ही सूत्र है ! मृत का शरीर उत्तर मे करो फिर विधि शुरू करो !
अब ये तो हुआ बागवट जी दयानंद जी आदि लोगो का !!

अब इसमे विज्ञान क्या है वो समझे !!
ये राजीव भाई का अपना explaination है !!

क्यूँ ????

आज का जो हमारा दिमाग है न वो क्यूँ ? के बिना मानता ही नहीं !
क्यूँ क्यूँ ऐसा करे ???
कारण उसका बिलकुल सपष्ट है ! आधुनिक विज्ञान ये कहता है आपका जो शरीर है !और आपकी पृथ्वी है इन दोनों के बीच एक बल काम करता है इसको हम कहते हैं गुरुत्वाकर्षण बल (GRAVITATION force )!

इसको आप ऐसे समझे जैसे आपने कभी दो चुंबक अपने हाथ मे लिए होंगे और आपने देखा होगा कि वो हमेशा एक तरफ से तो चिपक जाते हैं पर दूसरी तरफ से नहीं चिपकते ! दूसरे तरफ से वे एक दूसरे को धक्का मारते है ! तो ये इस लिए होता है चुंबक कि दो side होती है एक south एक north ! जब भी आप south और south को या north और north को जोड़ोगे तो वो एक दूसरे को धक्का मारेंगे चिपकेगे नहीं ! लेकिन चुंबक के south और north एक दूसरे से चिपक जाते है !!

अब इस बात को दिमाग मे रख कर आगे पड़े !

अब ये शरीर पर कैसे काम करता है !तो आप जानते है कि पृथ्वी का उत्तर और पृथ्वी का दक्षिण ये सबसे ज्यादा तीव्र है गुरुत्वाकर्षण के लिए ! पृथ्वी का उत्तर पृथ्वी का दक्षिण एक चुंबक कि तरह काम करता गुरुत्वाकर्षण के लिए ! अब ध्यान से पढ़े !आपका जो शरीर है उसका जो सिर वाला भाग है वो है उत्तर ! और पैर वो है दक्षिण !! अब मान लो आप उत्तर कि तरफ सिर करके सो गए ! अब पृथ्वी का उत्तर और सिर का उत्तर दोनों साथ मे आयें तो force of repulsion काम करता है ये विज्ञान ये कहता है !

force of repulsion मतलब प्रतिकर्षण बल लगेगा ! तो आप समझो उत्तर मे जैसे ही आप सिर रखोगे प्रतिकर्षण बल काम करेगा धक्का देने वाला बल !तो आपके शरीर मे स्कूचन आएगा contraction ! शरीर मे अगर सकुचन आया तो रक्त का प्रवाह blood pressure पूरी तरह से control के बाहर जाएगा !क्यूँ की शरीर को pressure आया तो blood को भी pressure आएगा ! तो अगर खून को pressure है तो नींद आए गई ही नहीं ! मन मे हमेशा धरपर धरपर चलती रहेगी !दिल की गति हमेशा तेज रहेगी !तो उत्तर की दिशा पृथ्वी की है जो north poll कहलाती है ! और हमारे शरीर का उत्तर ये है सिर ! अगर दोनों एक तरफ है तो force of repulsion (प्रतिकर्षण बल ) काम करेगा नींद आएगी ही नहीं !

अब इसका उल्टा कर दो आपका सिर दक्षिण मे कर दो ! तो आपका सिर north है उत्तर है ! और पृथ्वी की दक्षिण दिशा मे रखा हुआ है ! तो force of attraction काम करेगा ! एक बल आपको खींचेगा !और आपके शरीर मे अगर खीचाव पड़ेगा मान ली जिये अगर आप लेटे हैं !और ये पृथ्वी का दक्षिण है और इधर आपका सिर है !तो आपको खेचेगा और शरीर थोड़ा सा बड़ा होगा ! जैसे रबड़ खीचती है न ? elasticity ! थोड़ा सा बढ़ाव आएगा ! जैसे ही शरीर थोड़ा सा बड़ा तो boby मे relaxation आ गया !

उदारण के लिए जैसे आप अंगड़ाई लेते हैं न एक दम !शरीर को तान देते है फिर आपको क्या लगता है ??? बहुत अच्छा लगता है !क्यूँ की शरीर को ताना शरीर मे थोड़ा बढ़ाव आया और आप बहुत relax feel करते हैं !

इसलिए बागव्ट जी ने कहा की दक्षिण मे सिर करेगे तो force of attraction है ! उत्तर मे सिर करेगे तो force of repulsion है ! force of repulsion से शरीर पर दबाव पड़ता है ! force of attraction से शरीर पर खीचाव पड़ता है ! खीचाव और दबाव एक दूसरे के विपरीत है ! दबाव से शरीर मे सकुचन आएगा दबाव से शरीर मे थोड़ा सा फैलाव आएगा ! फैलाव है तो आप सुखी नींद लेंगे !और अगर दबाव है तो नींद नही आएगी है !

इस लिए बाग्वट जी ने सबसे बढ़िया विश्लेषण दिया है ! ये विश्लेषण जिंदगी मे सारे मानसिक रोगो को खत्म करने का उतम उपाय है ! नींद अच्छी ले रहे है तो सबसे ज्यादा शांति है ! इस लिए नींद आप अच्छी ले ! दक्षिण मे सिर करके सोये नहीं तो पूर्व मे !!

अब पूर्व क्या है ?????
पूर्व के बारे मे पृथ्वी पर रिसर्च करने वाले सब वैज्ञानिको का कहना है ! की पूर्व नूट्रल है ! मतलब न तो वहाँ force of attraction है ज्यादा न force of repulsion ! और अगर है भी तो दोनों एक दूसरे को balance किए हुए हैं !इस लिए पूर्व मे सिर करके सोयेगे तो आप भी नूट्रल रहेंगे आसानी से नींद आएगी !

पश्चिम का पुछेगे जी !??
तो पश्चिम पर रिसर्च होना अभी बाकी है !
बाग्वट जी मौन है उस पर कोई explanation देकर नहीं गए हैं !
और आज का विज्ञान भी लगा हुआ है इसके बारे भी तक कुछ पता नहीं चल पाया है !

तो इन तीन दिशाओ का ध्यान रखे !
उत्तर मे कभी सिर मत करे !
पूर्व या दक्षिण मे करे !

बस एक अंतिम बात का ध्यान रखे !
को साधू संत है या सन्यासी है ! जिहोने विवाह आदि नहीं किया ! वो हमेशा पूर्व मे सिर करके सोये ! और जो ग्रस्त आशरम मे जी रहे है ! विवाह के बंधन मे बंधे है परिवार चला रहे है ! वो हमेशा दक्षिण मे सिर करके सोये !

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अंग्रेजी कानून व्यवस्था

आज गम्भीर बातें नहीं हो रही हैं न समाज में न संसद में | जिनको देश को दिशा देनी चाहिये वो दिशाहीन हो गये हैं | दिशाहीन लोग समाज को दिशा नहीं दे पाते | मेरे जैसे आदमी को इस काम में लगना पड़ा ये मैं खुशी से नहीं लगा, देश की परिस्थितियाँ, देश के हालात, बढ़ते हुए अंतर्राष्ट्रीय दबाव, बढ़ती हुई गुलामी, टूटता हुआ समाज, शक्तिहीन होता हुआ समाज, बढ़ती हुई गरीबी, बेरोजगारी, ये तमाम बड़े कारण है जिन्होंने मेरे जैसे नौजवान को अन्दर से परेशान किया है | और उस परेशानी में ही मैं इस काम में लगा हूँ | मेरे सोचने का ढंग थोड़ा अलग है | किसी भी समस्या के बारे में जब विचार करता हूँ तो थोड़ा गहरे जाता हूँ उस समस्या में | उसका एक कारण ये भी हो सकता  है की मैं विज्ञान और तकनीकी का विद्यार्थी रहा हूँ | तो विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते जब तक किसी समस्या के इतिहास को समझ नहीं लेता तब तक वो समस्या मुझे समझ नहीं आती | तो जो वर्तमान में जो समस्याएं हैं उनको भी वैसे ही समझने की कोशिश की है और इस देश की समस्याओं को समझने में मैंने लगभग २० हज़ार दस्तावेज़ इकट्ठा किये है | ये जो दस्तावेज़ मैंने इकट्ठा किये हैं ये (Indian office of britain) के हैं लन्दन के, ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स की लाइब्रेरी के हैं, दुनिया के और भी पुस्तकालय से हैं | कुछ दस्तावेज़ भारत की (archive) से निकाले हैं और उनके आधार पर मेरी जो समझ बनी वही आपको बताता हूँ | वो सही भी हो सकती है और गलत भी तो विनम्रता से कहता हूँ की आपको कहीं गलत लगे तो आप जरूर मुझे सुधारने की कोशिश करें | ये बड़ा अभियान है , देश का काम है जिसमें मैं लगा हुआ हूँ और मुझसे गलती होगी तो सारे देश को उसका परिणाम भुगतना पड़ेगा तो ये आप की जिम्मेदारी है की मेरी गलतियों को सुधारे | देश आज़ाद हो गया है और आज़ादी के ५० साल पूरे हो गये हैं सारे देश में राजनीतिक स्तर पर जशन जैसा माहौल है हालाँकि उसकी आत्मा मरी हुई है | और माहौल इस तरह का है की हम तो आज़ाद हो गये हैं, ये देश गणतन्त्र हो गया है, और हिन्दुस्तान की संसद में भी आपने १४ अगस्त १९९७ को आपने जो कुछ हुआ वो आपने देखा ही होगा | आजादी का एक बड़ा मेला सा मनाया गया | इस देश में आजादी मनाने की भी कुछ ऐसी परम्पराएं पड़ रही हैं | जैसे उदाहरण के लिये देश में आज़ादी का जशन मनाने के लिये अमेरिका से एक संगीतज्ञ आ गया था यानी | तो हिन्दुस्तान की आज़ादी मनाने के लिये अमेरिका से संगीतकार बुलाया जाता है जो मेरी समझ के बाहर की बात है | उस यानी को हिन्दुस्तान की आज़ादी के बारे में क्या समझ है और कितनी समझ  है और साथ ही साथ उस यानी को संगीत की कितनी समझ है जो मेरे देश में चलता है और बजाया जाता है | फिर एक दिन अखबार में पढ़ा की हिन्दुस्तान की आज़ादी का जशन मनाने के लिये अमेरिका की एक नाटक कम्पनी आयी उसका नाम था पॉल टेलर की कम्पनी, तो पॉल टेलर की कम्पनी हिन्दुस्तान के १०-१२ शहरों में नाटक करती थी और पॉल टेलर उस नाटक के माध्यम से दिखाने की कोशिश करते थे | लेकिन उन को मालूम नहीं था की झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कौन थी और उस ने क्या-क्या किया  | वो कोशिश करते थे हिन्दुस्तान की आजादी का इतिहास बताते थे लेकिन उसी दृष्टि से कोशिश करते थे जैसे अमेरिका वाले हिन्दुस्तान को देखते थे और दुर्भाग्य ये है हिन्दुस्तान की आजादी के जितने कार्यक्रम हो रहे हैं वो सब विदेशी कंपनियों द्वारा प्रायोजित हो रहे हैं | माने जिन विदेशी कंपनियों के कारण इस देश की आजादी चली गई थी, जिस ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजों के कारण इस देश की आजादी चली गयी थी | अभी उन्हीं देशों की कंपनियों को हमारी देश की आजादी से इतना प्यार कैसे हो गया | टीवी पर रात दिन आप विज्ञापन देखिये तो जितने विज्ञापन हिन्दुस्तान की आज़ादी के कार्यक्रम के आते हैं वो सब विदेशी कंपनियों द्वारा प्रायोजित किये हुए होते हैं | तो ये कुछ विदुषताएं हैं, विडम्बना है इस देश की और इसी विडम्बना के बीच मेरी बात आप से करने की कोशिश कर रहा हूँ की ये जो आजादी के ५० साल पूरे हुए हैं हम कहाँ आ गये हैं और हुआ क्या है पिछले ५० साल में | पिछले ५० साल में जो कुछ इस देश में हुआ है उसको अगर ठीक से समझना हो मेरे जैसे विद्यार्थी के लिये तो मैं हिन्दुस्तान के पिछले ५०० साल को भी समझना चाहता हूँ | की पिछले ५०० साल में इस देश में क्या हुआ और पिछले ५०० साल का इतिहास अगर समझ में आ जायेगा तो अभी जो कुछ चल रहा है वो भी आपके समझ में आ जायेगा | मैं मेरी बात यहाँ से शुरू कर रहा हूँ की इस देश में कोई आजादी आयी नहीं है | ये मेरे दिल का दर्द है | इस देश में कोई आजादी आई नहीं है ये देश अभी भी उतना ही गुलाम है जितना की अंग्रेजों के ज़माने में था | और कई बार मैं इस बात को एक कदम आगे जा के कहता हूँ की ये देश अंग्रेजों के ज़माने से ज्यादा गुलाम है | देश की व्यवस्थाएं अंग्रेजों के ज़माने से ज्यादा गुलाम हैं | तो (प्लानिंग) के तीन चरण निर्धारित किए गए थे | पहला चरण ये है सबसे पहले हिन्दुस्तान की व्यवस्था को खलास किया जाए और जो बात ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में चल रही है वो ये चल रही है की (इंडियन इकनोमिक सिस्टम) को (कोलाप्स) करा दिया जाए |और (इंडियन इकनोमिक सिस्टम) जब (कोलाप्स) हो जायेगा तो हिन्दुस्तान के व्यापारी,हिन्दुस्तान के उद्योगपति, हिन्दुस्तान के पूंजीपति, सब खलास हो जायेंगे | और ये व्यापारी, पूंजीपति, उद्योगपति अगर खलास हो जायेंगे हिन्दुस्तान में तो हमारी ईस्ट इंडिया कंपनी का माल हिन्दुस्तान के गाँव – गाँव में बिकने लगेगा और इस (डिबेट) को चलाते हुए बिलवर फ़ोर्स कह क्या रहा है एक मजेदार बात | बिलवर फ़ोर्स कह रहा है की हमको हिन्दुस्तान में फ्री ट्रेड करना है तो एक (एम् पी) पूछ रहा है उससे  “वाट डू यू मीन बय फ्री ट्रेड” |तो बिलवर फ़ोर्स कह रहा है फ्री ट्रेड माने ब्रिटिश सामान का हिन्दुस्तान के गाँव – गाँव में बिकना, ब्रिटेन के माल का हिन्दुस्तान के बाज़ार में भर जाना और ब्रिटेन के माल का हिन्दुस्तानी लोगों द्वारा ज्यादा से ज्यादा उपभोग करना| ये है फ्री ट्रेड ! इसके दुसरे भाग में बिलवर फ़ोर्स इस फ्री ट्रेड की व्याख्या देते हुए एक और बात कह रहा है की ये जो फ्री ट्रेड चलेगा इसमें एक चीज़ और होनी चाहिए की हिन्दुस्तान में बहुत अच्छा कच्चा माल है जो इंग्लैंड में नहीं है जैसे कपास का कच्चा माल, स्टील का कच्चा माल, लोहे का कच्चा माल, और भी तमाम तरह का कच्चा माल |तो वो कह रहा है की कुछ इस तरह का फ्री ट्रेड चलना चाहिए की जिससे हिन्दुस्तान का कच्चा माल ब्रिटेन में आना शुरू हो जाए और उस कच्चे माल के लिए हमको एक नया पैसा खर्च करना ना पड़े और उस कच्चे माल से हम सामान बनाएं और वापस भारतीय बाज़ार में ले जाकर बचें | तो ये (डिबेट कंक्लुड़) हो रही है, (डिबेट) को (इम्प्लेमेंट) करने के लिए (पॉलिसीस) बनाई जा रही हैं और वो (पॉलिसीस) क्या बन रही हैं | पहली (पालिसी) बनी है और ईस्ट इंडिया कंपनी को (चार्टर इशू) किया गया है| ये ईस्ट इंडिया कम्पनी जब आई है तो २०-२० साल के (चार्टर) इशू किये जा रहे हैं,पहला (चार्टर) १६०१ में मिला है, फिर दूसरा (charter चार्टर) १६२१ में मिलता है, फिर इस तरह से २०-२० साल के (चार्टर) दिए जाते हैं, चार्टर माने अधिकार पत्र | १८१३ की ये (debate डिबेट) जब (conclude कांक्लुड़) हो गई है तो ईस्ट इंडिया कंपनी को एक (स्पेशल चार्टर इशू) किया गया है हाउस ऑफ कॉमन्स की तरफ से और उस (चार्टर) का नाम है “ चार्टर फॉर फ्री ट्रेड” | और में जोर दे रहा हूँ इस “फ्री ट्रेड” शब्द पर की ये जो“फ्री ट्रेड” शब्द है ये कोई नया नहीं है ये २५०-३०० साल पुराना शब्द है | आज जो कुछ अखबारों में पढ़ते हैं सुनते हैं की इस देश में (liberalisation लिबेरलिसतिओन) हो रहा है, (Globalisation ग्लोबलिसतिओन) हो रहा है, किसलिए हो रहा है | “फ्री ट्रेड” के लिए हो रहा है तो ये “फ्री ट्रेड” तो इस देश में अंग्रेजों ने भी चलाया और अंग्रेज इस देश में “फ्री ट्रेड” क्यूँ चला रहे हैं | भारतीय अर्थव्यवस्था को बर्बाद करना है और (ब्रिटिश इकोनोमिक सिस्टम) को इस देश में स्थापित करना है इसके लिए वो “फ्री ट्रेड” चला रहे हैं | तो उस फ्री ट्रेड में पालिसी क्या बन रही है जो सबसे पहली पालिसी बनी है कंपनी सरकार की,१८१३ में इस देश में कंपनी की सरकार है, ब्रिटेन की सरकार नहीं है | ब्रिटेन की सरकार आई है १८५८ के बाद, रानी की सरकार सीधे १८५८ के बाद आई है, उसके पहले कंपनी की सरकार है | माने ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार है तो ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार “फ्री ट्रेड” के लिए सबसे पहले पालिसी क्या बना रही है | वो ये है की हिन्दुस्तान में ब्रिटिश माल पर कोई (टैक्स) नहीं लगेगा और उसके बदले में जो हिन्दुस्तानी माल होगा उस पर ज्यादा से ज्यादा टैक्स लगाया जाए | नतीजा क्या निकलेगा अगर ब्रिटिश माल इस देश में (टैक्स फ्री) हो जायेगा तो गाँव – गाँव में ब्रिटिश माल सस्ता होगा और हिन्दुस्तानी माल पर लगातार (टैक्स ) बढ़ा दिया जायेगा तो हिन्दुस्तानी माल महंगा हो जायेगा | स्वदेशी माल महंगा हो जायेगा और विदेशी माल सस्ता हो जायेगा इसके लिए (पालिसी) बनाई है कंपनी सरकार ने जिसको कहा गया है “चार्टर फॉर फ्री ट्रेड” | उसके तहत अँगरेज़ इस देश में कुछ क़ानून बना रहे हैं | क़ानून क्या बना रहे हैं ? ब्रिटेन के माल पर तो (टैक्स) हटा दिया पूरी तरह से और कोई (इम्पोर्ट ड्यूटी) नहीं लगेगी ब्रिटेन के माल पर और हिन्दुस्तानी माल पर सबसे पहला टैक्स लगाया गया “ सेंट्रल एक्साइज एंड साल्ट टैक्स ” | और ये अंग्रेजों ने क्यूँ लगाया है “ सेंट्रल एक्साइज टैक्स ” ताकि हिन्दुस्तान में माल बनाने वाले लोगों का माल महंगा हो जाए | तो “सेंट्रल एक्साइज टैक्स” लगा दिया माने जो वस्तुएं बन रही हैं उस पर “उत्पाद कर” यानी उत्पादन पर कर | उसके बाद हिन्दुस्तानी व्यापारी उन वस्तुओं को बाज़ार में बेच रहे हैं तो कंपनी सरकार ने वस्तुओं के बाज़ार में बेचने पर भी कर लगाया है जिसको उन्होंने कहा है“सेल्स टैक्स” | फिर तीसरा कर लगाया है की उन वस्तुओं के बिकने पर जो आमदनी आये उस पर भी टैक्स | उसका नाम रखा “इनकम टैक्स” | तो उत्पादन पर “सेंट्रल एक्साइज टैक्स”, बिक्री पर “सेल्स टैक्स”, बिक्री से होने वाली आमदनी पर “इनकम टैक्स” | उसके बाद वस्तुओं का आवागमन जो है, यातायात जो है उसपर अंग्रेजों ने एक टैक्स लगाया है | जिसका नाम है “ओक्ट्रॉय टैक्स”, चुंगी नाका | उसके बाद एक आखिरी टैक्स और लगाया अंग्रेजों ने | कंपनी सरकार क्या करती कहीं-कहीं पुल बनती थी तो पुल पर से जब ट्रक माल लेकर गुजर रहा है तो आप को पुल का कर देना है क्यूंकि हमारी बनायीं हुई सड़क आप उपयोग कर रहे हैं | तो उसको उन्होंने नाम दिया “टोल टैक्स” | तो ये ५ टैक्स लगा दिए अंग्रेजों ने देश के उद्योगपतियों पर ताकि उद्योगपतियों का नाश किया जाए और इसके बदले में जितना भी ब्रिटेन से माल आ रहा है इस देश में उसपर से सारे टैक्स हटा लिए गए हैं | क्यूंकि ब्रिटेन का माल उनको इस देश में बेचना है | नतीजे क्या निकलते हैं जब ये पाँचों के पाँचों टैक्स लग जाते हैं तो हर १०० रुपए के व्यापार पर १२७ रुपए का टैक्स |  और इस बात की गंभीरता को समझिये की हर १०० रुपए के व्यापार पर १२७ रूपए का टैक्स है | तो एक दिन हाउस ऑफ कॉमन्स में (डिबेट) चल रही है तो एक सांसद कह रहा है की हिन्दुस्तान के व्यापारियों पर इतना टैक्स लगा दिया है की वो सब मर जायेंगे | तो दूसरा सांसद जवाब दे रहा है की यही हमें करना है | एक दूसरा सांसद खड़ा हो जाता है वो कहता है दोनों हाथ में लड्डू हैं हमारे या तो हिन्दुस्तानी व्यापारी मर जायेंगे मने १०० रूपए पर १२७ रूपए टैक्स देना पड़ जाए तो या तो वो आदमी मर जायेगा और या वो बेईमान हो जायेगा | और अगर वो बेईमान हो जायेगा तो भी हमारी गुलामी में आ जायेगा, और बर्बाद हो जायेगा तो हमारी गुलामी में आने ही वाला है | अब आप ध्यान करिए इन दो बातों को की इस देश में टैक्स प्रणाली क्यूँ लाई जा रही है ताकि हिन्दुस्तान के व्यापारियों को, पूंजीपतियों को, काम करने वालोँ को, उत्पादकों को बेईमान बनाया जाए या फिर उनको खलास किया जाए | इमानदारी से काम करें तो खलास हो जायें और बेईमानी से काम करें तो टैक्स की चोरी करें | और टैक्स की चोरी करें तो ब्रिटिश सरकार के अधीन रहें क्यूंकि चोरी करने वाला आदमी आँख में आँख डालकर बात नहीं कर सकता और इसके लिए फिर उन्होंने विभाग बना दिए | “इनकम टैक्स” विभाग, “सेंट्रल एक्साइज टैक्स” विभाग, “टोल टैक्स” वाला विभाग, “सेल्स टैक्स” विभाग, “ओक्टरॉय टैक्स” विभाग और आप को मैं बताऊँ की ये पाँचों के पाँचों विभाग आज आजादी के ५० सालों में भी चल रहे हैं | अंग्रेजों ने इन विभागों को बनाया था हिन्दुस्तान के व्यापारियों को ख़त्म करने के लिए तो मुझे लगता था की जब १५ अगस्त १९४७ को इस देश में आजादी आई तो अंग्रेजों द्वारा बनाये गए ये पाँचों विभाग कर देने चाहिए थे लेकिन वो आज भी चल रहे हैं | और उसी दौर की एक और जानकारी दूँ अंग्रेजों ने सबसे पहले जब “इनकम टैक्स” लगाया तो उसकी दर क्या है,कितना “इनकम टैक्स” देना पड़ता है | तो जो अंग्रेजों का सबसे पहला इनकम टैक्स की दर है वो ९७ प्रतिशत की है | मने १०० रूपए की कमी है तो ९७ रूपए आपको देना पड़ेगा | मने सिर्फ ३ रूपए आप को मिलेगा और आपको शायद ये मालूम होगा की आजादी के २०-२५ साल तक “इनकम टैक्स” ९७ प्रतिशत चलता रहा है | आजादी के बाद १९७०-१९७२ तक ९७% ही “इनकम टैक्स” लगता रहा इस देश में जबकि आजादी आ गयी थी १९४७ में तो मेरा सबसे पहला और गंभीर प्रश्न ये है की जो कर-प्रणाली का (स्ट्रक्चर) अंग्रेजों ने बनाया वही कर-प्रणाली का “स्ट्रक्चर” इस समय देश में चल रहा है| अंग्रेजों ने क्यूँ बनाया हिन्दुस्तानी व्यापारियों को बर्बाद करने के लिए और हिन्दुस्तानी व्यापारी बर्बाद हुए | १८३५, १८४० में इस देश की क्या स्थिति है व्यापार के क्षेत्र में उसका एक आंकडा है और ये आंकड़ा ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स की एक (डिबेट) से मिला | हाउस ऑफ कॉमन्स की एक (डिबेट) चल रही है तो एक सांसद कह रहा है की हिन्दुस्तान का व्यापार है कितना पूरी दुनिया में तो एक सर्वे किया है और वो सर्वे किया है यहाँ के (रेवेनुए ऑफिसर्स) ने जो ब्रिटेन की सरकार के जो भारत में कार्यरत हैं| उनका एक प्रमुख है विलियम एडम | तो वो हिन्दुस्तान के कई (रेवेनुए ऑफिसर्स) को इस सर्वे में लगाता है की भारत का पूरा व्यापार कितना है | तो उसका आंकड़ा है १८५० तक हमारा पूरा व्यापार सारी दुनिया के व्यापार का एक तिहाई है | माने पूरी दुनिया में उस जमाने में १०० बिलियन डॉलर का व्यापार चल रहा हो तो ३३ बिलियन डॉलर का व्यापार अकेले हिन्दुस्तान का है | इसको एक दुसरे तरीके से भी कह सकते हैं की आज से १५० साल पहले इस देश का कुल व्यापार सारे दुनिया के व्यापार का ३३ टका है  और इस बात को एक तीसरे तरीके से ऐसे भी कहा जा सकता है की १८५० के आस पास तक दुनिया में जो पूरा एक्सपोर्ट हो रहा है, एक्सपोर्ट में हिन्दुस्तान का प्रतिशत ३३ प्रतिशत है और आज आजादी के ५० साल के बाद हिन्दुस्तान का हिस्सा पूरे विश्व बाजार में .०१ प्रतिशत | हम जब गुलाम हैं अंग्रेजों के और अंग्रेज इस देश का सत्यानाश करने पर तुले हुए हैं और १५० साल पहले की ये बातें है तब इस देश में कोई उच्च तकनीकी नहीं है तथाकथित उच्च तकनीकी माने उच्च तकनीकी तो है पर तथाकथित नहीं | कोई (मेगा स्ट्रक्चर) नहीं है तब हमारे देश का एक्सपोर्ट ३३% है और आज इस देश में लाखों-लाख के निवेश के बाद, २४४ राष्ट्रीय (सेक्टर) होने के बाद इतनी विदेशी कंपनियों को बुलाने के बाद, हिन्दुस्तान में इतने बड़े-बड़े घराने होने के बाद, इतनी उच्च तकनीकी लेने के बाद व्यापार कितना है .०१% | तो हम तरक्की की तरफ बढ़ रहे हैं या विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं | कहा ये जा रहा है की आप बहुत तरक्की कर रहे हैं | तो मैं मानता की तरक्की होती अगर ३३% वाला व्यापार हमारा ५०% हो गया होता, ७०% हो गया होता तो मैं मानता की हिन्दुस्तान ने तरक्की कर ली है | लेकिन ये तो घट कर .०१% पर आ गई | तो हम तरक्की कर रहे हैं या पीछे की तरफ जा रहे हैं | और एक बात विलियम एडम ने जो सर्वे कराया है उस सर्वे में कुछ ऐसे आश्चर्यजनक तथ्य हैं जो आप को पता चलेंगे तो आप चकरा जायेंगे | विलियम एडम अपनी रिपोर्ट में लिख रहा है १८३५, १८४० के आस पास हिन्दुस्तान में स्टील बनाने वाली १०,००० फैक्ट्री हैं आज से १५० साल पहले | और जो १०,००० फैक्ट्री हैं उनमे जो स्टील बनता है १८५० के आस पास वो स्टील इस क्वालिटी का है आप उसको वर्षों-वर्षों पानी में पड़ा रहने दीजिये उसमे जंग नहीं लग सकता | वो महरोली का खम्बा सालों से खड़ा है उसपर १% कहीं जंग नहीं है और आज आधुनिक तकनीकी से बनने वाले किसी भी स्टील को आप अपने आँगन में फ़ेंक दीजिये, तीन महीने उसको बारिश में पड़ा रहने दीजिये, उसपर जंग लग जायेगा | १५० साल पहले स्टील बन रहा है इस देश में उसपर १ प्रतिशत का जंग नहीं लगता, वर्षों वर्षों तक ऐसे ही है, और १०,००० फैक्ट्रीयाँ स्टील बना रही हैं | और स्टील का कुल उत्पादन कितना हैं ये सुनेंगे तो और आश्चर्य करेंगे | कुल उत्पादन है स्टील का हिन्दुस्तान में १८५० का करीब ८० से ९० लाख टन एक साल का | और आज जानते हैं कितना स्टील उत्पादन है इस देश में मुश्किल से ७० से ७५ लाख टन | इतना बड़े (प्रोजेक्ट) हैं, इतने बड़े बड़े निवेश हैं, इतने बड़े – बड़े सफ़ेद हाथी हमने खड़े किये हुए हैं तब स्टील उत्पादन है ७० लाख टन के आस पास | और हिन्दुस्तान १८५० में स्टील निर्यातक देश रहा है | ये दस्तावेज़ ब्रिटेन की संसद के हैं जब एक सांसद कह रहा है की ईस्ट इंडिया कंपनी के जितने जहाज बनाये गए हैं सब हिन्दुस्तान के स्टील को आयात करके बनाये गए हैं | और उस जमाने में १८५० के आस पास सबसे बढ़िया जो स्टील बनता है वो हिन्दुस्तान में बनता है या फिर एक दूसरा देश है डेनमार्क में बनता हैं तो डेनिश स्टील जो माना जाता है वो भारतीय स्टील से हल्का है और भारतीय स्टील डेनिश स्टील से बढ़िया है | और १०,००० स्टील बनाने के कारखाने हैं और इतने बड़े स्टील के उत्पादन का तंत्र है तो जरूर कोई ना कोई उच्च तकनीकी रही होगी इस देश में | ये अलग बात है की हम उसको जानते नहीं क्यूंकि अंग्रेजों ने वो दस्तावेज़ नष्ट कर दिए | और उन्हीं अंग्रेजों के दस्तावेजों के कुछ दुसरे हिस्से हैं जिनके आधार पर पता चला है की हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा स्टील उत्पादन होता था १८५० के आस-पास सरगुजा, मध्यप्रदेश में | इस पूरे सरगुजा में स्टील बनाने के कारखाने रहे हैं और सरगुजा में स्टील बनाने के कारखाने क्यूँ रहे | तो ये बात सब जानते है की सरगुजा में लोह अयस्क बहुत ज्यादा है | इसलिए उस ज़माने में स्टील बनाने के कारखाने हैं वहां पर | और स्टील बनाने का काम कौन करते हैं वहां, तो जिनको आप आदिवासी कहते हैं वो उस जमाने के स्टील उत्पादक लोग हैं | जिनको हम मानते हैं की ये लोग तो पढ़े लिखे नहीं हैं क्यूंकि इनके पास डिग्री नहीं है | क्यूंकि इन्होने बी-टेक नहीं किया , ऍम- टेक नहीं किया, पी एच डी नहीं किया | जबकि सच्चाई यह है की हिन्दुस्तान के सबसे बड़े स्टील उत्पादक हैं वो | और अभी भी सरगुजा में मैंने अपनी आँखों से देखा है,आजादी के ५० साल भी कुछ लोग बचे हैं जो स्टील बनाने की तकनीकी जानते हैं |लेकिन दुर्भाग्य ये है की वो तकनीकी आगे तक पहुँच नहीं रही है | वो तकनीकी ख़त्म कैसे हुई? अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान के स्टील बनाने वाले कारखाने बंद कराए | पहले जो स्टील बनाने वाले आदिवासी होते थे वो जंगलों में से जो खदानें होती थी उन में से स्टील का कच्चा माल ले आते थे और स्टील बनाते थे उससे | अंग्रेजों ने एक कानून बना दिया की कोई भी आदिवासी खदानों में से कच्चा माल नहीं निकाल सकता | और इसको सख्ती से लागू भी करा दिया, फिर उन्होंने घोषणा कर दी की खदानों में से कोई आदिवासी अगर कच्चा माल निकलेगा तो उसको ४० कोड़े मारने की सज़ा | और उससे भी वो ना मरे तो उसको गोली मार दी जाए | इतना सख्ती से वो क़ानून लागू हो गया तो धीरे-धीरे आदिवासियों के स्टील के कच्चे माल पर पाबंदी लगा दी गयी और धीरे-धीरे वो ख़त्म होते चले गए | और क्रम के काल में वो करीब–करीब समाप्त हो गए |और आप को जानकर ये आश्चर्य होगा की ये जो क़ानून अंग्रेजों ने चलाया की आदिवासी लोह अयस्क नहीं ले सकते वो आज भी चल रहा है | आज भी वो लोग जो तकनीकी जानते हैं वो लोह अयस्क नहीं ले पाते और उसके दूसरी तरफ  क्या चल रहा है? की बड़ी-बड़ी विदेशी कम्पनियां उस लोह अयस्क को खोद-खोद कर ले जा रही है |जापान की एक कंपनी है “निप्पन डेरनो” वो इसी धंधे में लगी हुई है | तो जापान की कंपनी को तो हिन्दुस्तान की खदानें खोद कर ले जाने की खुली छूट है लेकिन हिन्दुस्तान का कोई आदिवासी उन खदानों से लोह अयस्क लाकर स्टील बनाये तो उस पर पाबन्दी लगी हुई है | वो कच्चा माल नहीं ले सकता और ये मैं मान सकता हूँ की ये क़ानून अंग्रेजों ने बनाया, अंग्रेजों की सरकार थी, उनके अपने स्वार्थ थे, उनको ये देश बर्बाद करना था | मैं ये कैसे मान लूँ की आजादी के ५० साल बाद भी वही क़ानून चल रहा है, आज तो हमारी सरकार है, आज तो हमारे लोग हैं जो संसद में बैठे हैं, अब तो हम ये मानते हैं की ये देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया है | तो फिर वोही क़ानून जो अंग्रेजों ने चलाया इस देश को बर्बाद करने के लिए वो क्यूँ चल रहा है? और क्यूँ नहीं कोई राजनीतिक पार्टी इस बात पर सोचती ? की विदेशी कंपनी तो कच्चा माल खोद-खोद कर ले जा रही है, जापान की कंपनी “निप्पन डेरनो” जो कच्चा माल ले जाती है वो कोडी के दाम पर जाता है और उससे स्टील बनाकर वापस इसी देश में लाकर बेचती है और फिर दूसरी बार भी मुनाफा ले कर जाती है | ये धंधा तो अंग्रेजों के जमाने में चलता था वो तो आज भी चल रहा है | कैसे मैं मानू की ये देश आजाद हो गया है |और इस तरह से अंग्रेजों ने क्या किया है की इस देश के तमाम हुनरमंद लोगों को बर्बाद कर दिया | स्टील बनाने वालों को को तो ऐसे बर्बाद किया अंग्रेजों ने और एक दूसरा किस्सा है | हिन्दुस्तान में बहुत बढ़िया और बेशकीमती कपडा बनाने वाले कारीगर होते थे और उन कारीगरों के हाथ का बनाया हुआ कपडा सारा देश जानता है की एक छोटी से अंगूठी में से सारा थान पार निकलता था | ढाका की मलमल इस देश में बनती थी, ढाका उस जमाने में इस देश का हिस्सा था बांग्लादेश तो १९७२ में बना है | उससे पहले वो पाकिस्तान का हिस्सा था और १९४७ से पहले हमारे देश का हिस्सा था | और ये किस्सा में बता रहा हूँ १७५० से १८५० के बीच का | इतना बेहतरीन कपडा बनाने वाले जो कारीगर होते थे उनके हाथ का बुना हुआ कपडा कोई कल्पना नहीं कर सकता की कोई मशीन इतना महीन कपडा बना सकती है क्या, इस हुनर से वो कपडा बनाते थे| और सारी दुनिया में वो हिन्दुस्तान का कपडा मशहूर था | सबसे ज्यादा निर्यात से मुनाफा दो ही चीज़ों से होती थी, एक तो हमारे मसाले बिकते थे या हमारा कपडा बिकता था | तो कपडा बनाने वाले जो कारीगर थे अंग्रेजों को उनसे परेशानी थी | अंग्रेजों को क्या परेशानी थी, लंकाशायर और मानचेस्टर का कपड़ा इस देश में बिक नहीं पाता था, क्यूंकि हिन्दुस्तानी कपड़ा ही इतनी उच्च गुणवत्ता का बनता था की कोई खरीदता ही नहीं था मानचेस्टर और लंकाशायर के कपडे को | तो अंग्रेजों ने क्या किया “फ्री ट्रेड”के नाम पर हिन्दुस्तान के बेहतरीन कपड़ा बनाने वाले कारीगरों के अंगूठे काटे गए,उनके हाथ काटे गए | दस्तावेज बताते हैं की सूरत के इलाके में एक लाख से ज्यादा कारीगरों के अंगूठे कटे, अंग्रजों के समय में | बिहार में एक इलाका है मधुबनी, मधुबनी के इलाके में अंग्रेजों ने करीब २,५०,००० कारीगरों के हाथ काटे | और अंगेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी ये काम करते हुए बड़ा गर्व महसूस कर रही है | जब लंकाशायर और मानचेस्टर का कपड़ा बिकना शुरू हो जायेगा तो हिन्दुस्तान की कपड़ा मीलें बंद हो जाएँगी और ये कपड़ा उद्योग हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा उद्योग है, जो सबसे ज्यादा निर्यात आमदनी देता है अगर ये (कोलाप्स) हो जायेगा तो भारतीय अर्थव्यवस्था (कोलाप्स) हो जाएगी ये (डिबेट) है ब्रिटिश संसद की | और उसके बाद उन्होंने ये कर दिया | बाद में क्या हुआ है की लंकाशायर और मानचेस्टर से आने वाले कपडे पर से टैक्स हटाया गया है और हिन्दुस्तान के व्यापारियों के ना सिर्फ अंगूठे और हाथ काटे गए हैं बल्कि हिन्दुस्तान के व्यापारी जो कपड़ा बना रहे हैं उन पर टैक्स भी बढ़ा दिया गया है | सूरत की (टेक्सटाइल) उद्योग पर १८४० के बाद अंग्रेजों ने एक हज़ार प्रतिशत टैक्स लगाया ताकि ये उद्योग बंद हो जायें | और लंकाशायर, मानचेस्टर का कपड़ा टैक्स फ्री कर दिया है ताकि गाँव-गाँव, गली-गली में वो ही कपड़ा बिकने लगे | बाद में यहाँ से कच्चा माल ले जा रहे हैं और जो कच्चा माल ले जा रहे हैं वो कपास के रूप में ले जा रहे हैं | और अंग्रेजों को कपास ले जाते समय कठिनाई आ रही है तो अंग्रेजों ने जानते हैं क्या किया ? रेल चलाई है इस देश में | कई लोग कहते हैं की अंग्रेज़ नहीं आते तो इस देश में रेल नहीं होती और रेल अंग्रेजों ने चलायी क्यूँ ? रेल अंग्रेजों ने चलाई है ताकि हिन्दुस्तान के गाँव-गाँव से कपास इकट्ठा करके रेल में भरके बम्बई तक पहुँचाया जाए | और बम्बई से पानी के जहाज में भरके लन्दन ले जाया जाए | सबसे पहली रेल चली है इस देश में अहमदाबाद–बम्बई वाली | ये सबसे पुरानी रेल पटरी है | बम्बई से ठाणे रेल, परीक्षण के रूप में अंग्रेजों ने रेल चलायी है लेकिन जब परीक्षण सफल हो गया है तो फिर उन्होंने सबसे पहली रेल चलायी है अहमदाबाद और बम्बई के बीच में |ये जो अहमदाबाद और बम्बई का इलाका है ये सबसे अच्छे किस्म के कपास उत्पादक क्षेत्र रहे हैं तो यहाँ से क्या होता है जो रेल चल रही है उसमे कपास भर-भर के यहाँ आ रहा है बम्बई के बंदरगाह पर और बम्बई के बन्दरगाह से वो कपास जहाजों में भर कर इंग्लैंड जा रहा है | तो जहाजों में कपास भरकर इंग्लॅण्ड जाता था तो अंग्रेजों को खाली जहाज भेजने पड़ते थे | ताकि यहाँ का कपास जहाज भरकर लन्दन जाए तो अक्सर अंग्रेजों के जहाज खाली आते थे तो वो डूब जाया करते थे तो अंग्रजों ने उसकी युक्ति निकाली थी की यहाँ से जहाज खाली नहीं जाना चाहिए | तो अंग्रेज उसमे नमक भरके उस जहाज को हिन्दुस्तान में भेजा करते थे और वो नमक बम्बई के बंदरगाह पर निकाल दिया जाता था और फिर उसमे कपास भर कर लन्दन ले जाया जाता था |नतीजा क्या होने लगा की अंग्रजों के जहाज आते थे तो नमक आता था, नमक आता था तो नमक का ढेर लग जाता था तो अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी को दिक्कत हुई की इस नमक का करें क्या | तो उन्होंने एक नियम बना दिया की हिन्दुस्तान के गाँव-गाँव में बिकवाना शुरू करो | तो इसके लिए उन्होंने क्या किया ? इसके लिए उन्होंने ये किया की हिन्दुस्तान में जो अपना नमक बनता था स्वदेशी उसपर टैक्स लगा दिया और ब्रिटेन के नमक को टैक्स फ्री कर दिया ? नतीजा ये निकला की हिन्दुस्तान के गाँव-गाँव में अंग्रेजों का नमक भी बिकने लगा | और ये बात गाँधी जी को बर्दाश्त नहीं थी | गाँधी जी की उम्र उस समय मुश्किल से २०-२१ साल की थी | २०-२१ साल की उम्र में वो लन्दन में थे और लन्दन के “वेजीटेरियन काउंसिल” के सदस्य थे | तो लन्दन के“वेजीटेरियन काउंसिल” के सदस्य के हैसियत से उन्होंने एक लेख लिखा था १८९० में |उस लेख में गांधीजी लिख रहे हैं की ये अँगरेज़ कितने क्रूर हैं इन्होने हिन्दुस्तानी नमक पर भी टैक्स लगा दिया | और हिन्दुस्तानी नमक पर टैक्स लगा के इन्होनें क्या किया है गाँव-गाँव में हिन्दुस्तानी नमक महंगा हो गया है | अंग्रेजों की चाल यह है की उनका जो ब्रिटिश नमक है वो हिन्दुस्तान के गाँव-गाँव में बिके | वो कह रहे की अंग्रेजों के दोनों हाथों में लड्डू है, भारतीय नमक पर टैक्स लगा दिया है तो भारतीय नमक महंगा हो गया है उससे (रेवेनु कलेक्सन ) बढ़ गया है और ब्रिटेन का नमक गाँव-गाँव में सस्ता हो गया है, उसकी बिक्री हो रही है तो मुनाफा भी हो रहा है | और तब गाँधी जी कह रहे है की ये तो इतना क्रूर क़ानून है इसके खिलाफ तो कुछ होना चाहिए | उस समय उनकी उम्र २०-२१ साल की है, लेकिन उनके दिमाग में ये मंथन चल रहा है की कुछ होना चाहिए | और वो मंथन चलते-चलते १९३० में नमक सत्याग्रह के रूप में प्रकट हुआ | और गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह किया क्यूँ ? गांधीजी ने नमक सत्याग्रह इसलिए किया है क्यूंकि अंग्रेजों का नमक इस देश में बिक रहा है, भारतीय नमक पर टैक्स लगा हुआ है, हिन्दुस्तानी लोगों को नमक बनाने से रोका जाता है, अंग्रेजों के लोग इस देश में नमक बनाते हैं और बेचते हैं इस क़ानून को मैं तोडूंगा | और इसके खिलाफ मुझे सत्याग्रह करना है, गाँधी जी के साथ इस सत्याग्रह में आने के लिए कोई तैयार नहीं तो गाँधी जी कह रहे हैं मैं अकेले जाऊंगा | उस समय मोतीलाल नेहरु गांधीजी को चिड़ा रहे हैं और क्या कह रहे हैं मोतीलाल नेहरु ? की बापू अगर नमक सत्याग्रह करने से आजादी मिल जाए तो कोई भी आजादी ना ले ले इस देश में | तो मोतीलाल नेहरु को गांधीजी कह रहे हैं पंडित तुम एक बार नमक क़ानून तोड कर तो देखो तुमको पता चल जायेगा की आजादी आती है की नहीं | और इस देश में नमक सत्याग्रह आजादी के प्रतीक के रूप में उभर के आया और उस गाँधी नाम के व्यक्ति ने दांडी नाम के समुद्र तट पर एक मुट्ठी नमक हाथ में लेकर ६ अप्रैल १९३० को कसम खाई है की आज के बाद इस देश में अंग्रेजों का नमक नहीं बिकेगा | गाँव-गाँव में गली-गली में हम अपना नमक बनायेंगे और इसके लिए हम को नमक क़ानून तोडना पड़ेगा तो हम तोड़ेंगे | और उस नमक क़ानून को तोड़ने में लाखों-लाखों लोग जेल गए, पूरे देश में | लाखों-लाखों लोग अंग्रेजों की लाठीचार्ज से घायल हुए और हजारों लोग उसमें मर गए | बाद में अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा और वो सारा का सारा वापस लिया | लेकिन मैं आज आपको दुर्भाग्य से कहूँ की जिस गाँधी जी ने १९३० में ६ अप्रैल को एक मुट्ठी नमक हाथ में लेके कसम खाई थी की इस देश में आज के बाद विदेशी नमक नहीं बिकेगा उस देश में आजादी के ५० साल के बाद विदेशी नमक बिक रहा है, कैप्टेन कुक और अन्नपूर्णा | अगर आजादी के पहले अंग्रेजों की सरकार के ज़माने में इस देश में अंग्रेजों का नमक बिकता था और स्वदेशी नमक पर टैक्स लगाके उस को महंगा कर दिया गया था | तो आज आजादी के ५० साल के बाद भी वही दृश्य इस देश में देख रहे हैं और क्या दृश्य देख रहे हैं की हिन्दुस्तान की सरकारों ने विदेशी कंपनियों को नमक बनाने के लिए खुली छूट दे दी है | इस नमक को बनाने में कौन सी उच्च तकनीकी है जरा मुझे बताइए ? नमक को बनाने में कौन सी मशीन लगती है ये मुझे बताइये ? सूरज की रोशनी होती है समुद्र का पानी होता है, सूरज की रोशनी और समुद्र के पानी के मिलन से नमक बन जाता है, हिन्दुस्तान में हजारों साल से ये तकनीकी इस्तेमाल होती है| सारे दुनिया के कई देशों में यही तकनीकी इस्तेमाल होती है और इस काम के लिए भी विदेशी कंपनियों को बुलाया जाए तो मैं कैसे मान लूँ की ये देश आज़ाद हो गया है |और कहीं गांधीजी की आत्मा देखती होगी स्वर्ग से तो आज आँसू रोती होगी की जिस देश में मैंने नमक सत्याग्रह किया इसलिए की उस विदेशी कंपनी का नमक ना खाया जाए, आज इस देश के लोग बाज़ार से विदेशी कंपनी का नमक खरीद रहे हैं | शायद हमको मालूम नहीं है की हम कितना बड़ा राष्ट्रीय अपराध कर रहे हैं, जब ये काम हम कर रहे हैं | और इसलिए मैं मानता नहीं की ये देश आजाद हो गया है | इस देश में गुलामी की पहले की जो व्यवस्थाएं थी, आजादी से पहले की जो व्यवस्थाएं थी वही व्यवस्थाएं चल रही हैं  | अंग्रेजों ने इस तरह से इस देश को खलास किया | एक दो और उदाहरण हैं की अंग्रेजों के जमाने की व्यवस्थाएं कैसे चल रही हैं | १८६५ में अंग्रजों ने इस देश में क़ानून बना दिया उस क़ानून का नाम था “इंडियन फारेस्ट एक्ट” | और ये क़ानून अंग्रेजों ने क्यूँ बनाया ? ये क़ानून अंग्रेजों ने बनाया की हिन्दुस्तान में जंगल जो होते थे वो ग्राम समाज की संपत्ति होते थे, गाँव सभा की संपत्ति होते थे | तो गाँव के लोगों का जंगल पर अधिकार होता था | और जब जंगल गाँव समाज की संपत्ति होते थे, ग्राम सभा की संपत्ति होते थे तो जंगलों की रखवाली करने का काम गाँव के लोगों का होता था | और गाँव के लोग मानते थे की ये हमारी संपत्ति है तो उस संपत्ति को संरक्षित और सुरक्षित रखने के उन्होंने पचासों तरीके अपनाए थे | हिन्दुस्तान में आज भी एक ऐसी जाती है राजस्थान में जिस जाति का नाम है विश्नोई | और एक बार में ये विश्नोई जाति के लोगों के गाँव में जा कर आया | अलवर जिले के आस पास में ये लोग काफी रहते हैं | तो मैंने उनके गाँव के सरपंच और मुखिया से कहा आप मुझे अपने गाँव का इतिहास बताइए | तो गाँव के मुखिया ने बताया की राजीव भाई सन १८६५ में अंग्रेजों ने हमारी विश्नोई जाति के हज़रून लोगों का क़त्ल किया | मैंने पुछा – क्यूँ ? तो उन्होंने बताया की उसका मतलब ये था की अंग्रेजों ने क़ानून बनाया था उसका नाम था “ फारेस्ट एक्ट “| तो मैंने कहा “इंडियन फारेस्ट एक्ट” तो उन्होंने कहा“हाँ” | तो मैंने उनसे कहा की उसमे तो अंग्रेजों ने ये किया था की जंगल जो ग्राम समाज की संपत्ति होते थे उन जंगलों को सरकार की संपत्ति घोषित किया था | एक ही क़ानून से एक ही झटके में | तो सरकार की घोषित होने से पहले अँगरेज़ जंगलों को काटा करते थे तो अक्सर आदिवासियों के साथ उनके झगडे होते थे | आदिवासी पेड़ कटने नहीं देते थे और अंग्रेज़ पेड़ काटते थे | और विश्नोई गाँव के लोगों ने बताया की जब अंग्रेज़ लोग हमारे यहाँ पेड़ काटने आते थे, हमारी महिलाएं पेड़ पकड़ के खड़ी हो जाती थी, पहले महिला की गर्दन कटती थी फिर पेड़ कटता था | हमारे नौजवान पेड़ पकड के खड़े हो जाते थे, पहले नौजवान का शरीर कटता था, फिर पेड़ कटता था | और हजारों पेड़ को बचाने के लिए इस तरह हमारे जाति के लोगों ने कुर्बानियां दीं | और ये सब अंग्रेजों ने किया था १८६५ के “इंडियन फारेस्ट एक्ट” के क़ानून के आधार पर | और १८६५ में जैसे ही क़ानून पारित हो गया वैसे ही अंग्रेजों ने क्या घोषित कर दिया की अब जो पूरे हिन्दुस्तान के जंगल हैं वो अंग्रेजी सरकार की संपत्ति हैं | और जब वो सरकार की संपत्ति घोषित हो गए तो सरकार जैसे चाहे उनका इस्तेमाल करे | गाँव समाज के लोगों को कोई हक़ ही नहीं है, उन्होंने हजारों-हजारों साल से जंगलों को लगाया है उन्हीं लोगों का जंगलों पर कोई हक़ नहीं है, जिन्होंने जंगल लगायें हैं , जंगले खड़े किये हैं | और जिनको जंगलों से कुछ लेना देना नहीं और जो जानते नहीं की जंगल कैसे लगाये जाते हैं उनको पेड़ काटने का अधिकार मिल गया क्यूँकि “इंडियन फारेस्ट एक्ट” बना दिया अंग्रेजों ने | और अंग्रेजों के काम करने का तरीका क्या था की जब किसी को मारना हो, खलास करना हो, बर्बाद करना हो तो उसके लिए क़ानून बना दो | तो वो क्या कहते थे हम तो क़ानून का पालन कर रहे हैं मतलब आपकी जेब कट रही है, आपकी बर्बादी हो रही है और अंग्रेजों के लिए क़ानून का पालन हो रहा है | तो १८६५ में उन्होंने क़ानून बना दिया अब उसका पालन करने के लिए उन्होंने हजारों-हजारों आदिवासियों को मार दिया क्यूँकि वो जंगल बचने की लड़ाई लड़ते थे | उस क़ानून में एक (प्रोविसिन) है , (प्रोविसिन) क्या है ? १८६५ का जो “ इंडियन फारेस्ट एक्ट” है वो ये कहता है की कोई भी आदिवासी या कोई भी हिन्दुस्तानी व्यक्ति जंगल के पेड़ नहीं काट सकता और जंगल से लकड़ी भी नहीं ला सकता | भले ही अपने निजी इस्तेमाल के लिए क्यूँ ना हो | उसके उलटे तरफ अगर अंग्रेजी सरकार चाहे और अंग्रजो के ठेकेदार चाहें तो करोड़ों पेड़ कट सकते हैं | तो अंग्रेजी सरकार को और ठेकेदारों को तो लाइसेंस मिल गया पेड़ काटने का लेकिन हिन्दुस्तान के लोग जो जंगलों में रहते थे,अगर वो पेड़ काटकर लकड़ी ले आयें अपना खाना बनाने के लिए तो उन पर पाबन्दी लगा दी उन्होंने, क़ानून से | और अगर कोई भी व्यक्ति जंगल से लकड़ी लाया है खाना बनाने के लिए तो उसको जेल हो जाएगी और अंग्रेजों ने इसी काम के लिए एक पोस्ट बनाई जिसका नाम था “ डिस्ट्रिक् फारेस्ट ऑफिसर” “डी एस ओ “ | और ये पोस्ट बनी १८६५ में और इस पोस्ट के आदमी का काम क्या था यही की कोई भी हिन्दुस्तानी अगर जंगल से लकड़ी काट लाये तो उसको सजा दिलवाना, उसके ऊपर केस बनाना,उसको मारना, उसको पीटना और दूसरी तरफ अंग्रेजों के ठेकेदार और अँगरेज़ पेड़ काटें तो उनको लाइसेंस जारी करना | तो १८६५ में ये क़ानून अंग्रेजों ने बनाया | ठीक है १९४७ में अंग्रेज़ चले गए, लेकिन क़ानून अभी भी वो ही है और आज भी इस देश में १८६५ का वही “इंडियन फारेस्ट एक्ट” चल रहा है, जो अंग्रेज़ बनाकर गए थे | और उसके (प्रोविसन) क्या हैं, उसका वो (प्रोविसन) जिसमें आप पेड़ नहीं काट सकते लेकिन अंग्रेजी सरकार और अंग्रेजों की कम्पनियां पेड़ काट सकती हैं वो (प्रोविसन) आज भी वैसे का वैसे ही है | अगर आप की (सोसाइटी) में कोई पेड़ लगा हो और वो पेड़ आप की (सोसाइटी) की दीवार गिराने वाला हो आप उस पेड़ को काट नहीं सकते और आपने वो पेड़ काट दिया और कोई आदमी आप की शिकायत कर दे “डी ऍफ़ ओ” से आप के ऊपर केस चलेगा | ये क़ानून आज भी है | और दूसरी तरफ कुछ विदेशी कम्पनियां हैं इस देश में जो हर साल करोड़ों-करोड़ों पेड़ काटती है और इस देश का सत्यानाश कर रही हैं उनको लाइसेंस मिला हुआ है |  जैसे एक कंपनी है “आई टी सी”, “इंडियन टोबाको कंपनी”| नाम से ऐसे लगता है जैसे ये हिन्दुस्तानी है लेकिन मूलतः ये अमेरिका और ब्रिटेन के पैसे से चलने वाली कंपनी है, ये कंपनी क्या करती है सिगरेट बनती है | और एक साल में इस कंपनी के नब्बे अरब सिगरेट बनते हैं और वो नब्बे अरब सिगरेट बनाने के लिए इस कंपनी को कागज की जरुरत होती है क्यूंकि सिगरेट की जो तम्बाकू होती है वो तो खेतों में पैदा हो जाती है | लेकिन तम्बाकू के ऊपर जो कागज लपेटा जाता है वो तो बनाना पड़ता है और वो कागज लपेटकर जो स्टिक बन जाती है उसको पैकेट के अन्दर बंद करना पड़ता है | तो पैकेट के लिए भी कागज बनाना पड़ता है, फिर उनका विज्ञापन करना पड़ता है तो उसके लिए पोस्टर चाहिए तो उसका भी कागज बनाना पड़ता है | तो ये कंपनी लगभग ५०० सिगरेट बनाने के लिए एक पेड़ काटती है |और हर साल ये कंपनी १४०० करोड़ पेड़ काट देती है उसको लाइसेंस मिला हुआ है |आप अगर एक पेड़ काटें तो आप को जेल हो जाएगी | ये क़ानून किसका है, ये क़ानून अंग्रेजों के ज़माने का है | क्यूँ चल रहा है ? इसका जवाब कौन देगा | १९४७ में हम आजाद हो गए थे ये क़ानून ख़त्म हो जाना चाहिए था | लेकिन क्यूँ चल रहा है अभी भी ये क़ानून आजादी के ५० साल बाद भी | और अंग्रेजों ने जो जंगल गाँव समाज की संपत्ति थे वो छीन कर सरकार की संपत्ति घोषित कर दिए | १९४७ में जो सरकार आई थी उसको सबसे पहला काम ये करना चाहिए था की जंगलों को वापस ग्राम समाज की संपत्ति घोषित करना चाहिए था | लेकिन वो तो नहीं हुआ आज तक |  तो कैसे मैं मानूँ की ये देश आजाद हो गया है | १८९४ में अंग्रेजों ने एक क़ानून बनाया जिसका नाम था (लैंड एक़ुइसितिन एक्ट) | और ये क़ानून क्या था गाँव-गाँव के लोगों की जमीन हड़पने के लिए अंग्रेजों को एक क़ानून की जरुरत थी क्यूँकि अंग्रेजी पुलिस ऑफिसर जो होते थे वो गाँव-गाँव में जाते थे, लोगों को मारते थे, पीटते थे उनकी जमीन हड़प लेते थे |और ना सिर्फ जमीन हड़पते   थे बल्कि हिन्दुस्तान के बड़े-बड़े राज्य भी अंग्रेजों ने हड़प लिए थे | यहाँ के कई राजाओं के राज्य हड़प लिए थे अंग्रेजों ने | और ऐसा एक किस्सा तो आप सब को मालूम होगा झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के राज्य को अंग्रेजों ने हड़प लिया था | और अंग्रेजों ने झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के राज्य को हडपा इसलिए ही रानी लक्ष्मी बाई ने युद्ध लड़ा था | बाद में झाँसी की रानी की हत्या कराई थी, इसी देश के कुछ गद्दारों ने मिलकर झाँसी की रानी को मरवाया था अंग्रेजों से | उसको धोखे से,और वो गद्दार खानदान इस देश में अभी भी मौजूद है | तो झाँसी की रानी की हत्या हुई थी, मामला क्या था की झाँसी को हड़प लिया था, तो अंग्रेजों का एक अफसर था डलहौजी, डलहोजी अक्सर ये कहा करता था की हम को ये राज्य हडपने पड़ते हैं, गाँव-गाँव की संपत्ति हमको हडपनी पड़ती है और इसके लिए हमको बड़ी हिंसा करनी पड़ती है और अंग्रेजों को बड़ी मुश्किल सहन करनी पड़ती है | क्यूँ ना इनको हड़पने का एक क़ानून बना दिया जाए | तो उन्होंने संपत्ति गाँव की हड़पने का क़ानून बना दिया जिसका नाम हो गया (लैंड एक़ुइसितिन एक्ट) | और वो (लैंड एक़ुइसितिन एक्ट) १८९४ में बनाया था ताकि गाँव-गाँव की जमीन को छीना जाए | किसानों की जमीन को छीन लिया जाए और वो जमीन छीनकर अंग्रेजी सरकार ईस्ट इंडिया कंपनी को बेचे या किसी विदेशी कंपनी को बेचे, ये धंधा करती थी उस जमाने की अंग्रेज़ सरकार | और आप को मैं बताऊँ के दुर्भाग्य आज हमारा ये है की वो क़ानून आज भी इस देश में चल रहा है |बस इतना फर्क हुआ है की उस ज़माने में अंग्रेजी सरकार गाँव के लोगों की जमीन छीन कर विदेशी कंपनियों को बेचती थी अब हमारी सरकारें गाँव के किसानों की जमीनें छीन कर विदेशी कंपनियों को बेचती हैं, इतना ही फर्क है | पहले जो धंधा अंग्रेज़ करते थे अब वही भारत की सरकारें कर रही हैं | तमाम प्रदेशों की सरकारें कर रही हैं और यह सरकारें तर्क क्या देती हैं की देश की प्रगति के लिए, देश के भले के लिए गाँव की जमीनें छीन कर विदेशी कंपनियों को देना बहुत जरुरी है | और उसी के आधार पर क्या हुआ है पिछले पांच वर्षों में सन १९९१ से लेकर १९९६ के बीच में महाराष्ट्र की हजारों हेक्टेयर जमीन विदेशी कंपनियों को बेची गयी है | हजारों हेक्टेयर जमीन गाँव के लोगों से छीन कर, उनकी पिटाई करके, उनको मारकर, उनको डराके, उनको धमका के उनकी जमीनें छीनी गयी हैं और विदेशी कंपनियों को दी गई हैं | गुजरात में पिछले पांच साल में हजारों हेक्टेयर जमीन किसानों की छीनकर विदेशी कंपनियों को बेचीं गई हैं | और हिन्दुस्तान का कोई एक प्रदेश ऐसा नहीं है, कर्णाटक में हजारों हेक्टेयर के जंगल कटवाए गए हैं ताकि विदेशी कंपनियों के कारखाने वहां लग सकें | (कोजेंत्रिक) की जो बिजली की परियोजना आ रही है कर्णाटक में वो इसी आधार पर आ रही है की जो पश्चिम घाट है वहां का, उसके जो बेहतरीन जंगल हैं उनको कटवाया जाए और विदेशी कंपनी की परियोजना चले वहां पर | ये धंधा तो अंग्रेज़ सरकार करती थी इस देश में |अगर वही धंधा आजादी के ५० साल बाद हमारी सरकार कर रही है तो इसको में अंग्रेजी सरकार कहूँ या हिन्दुस्तानी सरकार कहूँ | और मैं कैसे मान लूँ की ये देश आजाद है |जिस तरह से अंग्रेज़ जमीन छीना करते थे गाँव-गाँव की उसी तरह से जमीन छिन रही है और दी जा रही है विदेशी कंपनियों को तो कैसे मानें की ये देश आजाद हो गया |काम तो वो ही चल रहें हैं, देश तो वैसे ही चल रहा है, सरकारें तो वैसे ही काम कर रही हैं जैसे अंग्रेजों के ज़माने में काम करती थी | १८६० में अंग्रेजों ने क़ानून बनाया उसका नाम था “इंडियन पुलिस एक्ट” | ये १८६० का “इंडियन पुलिस एक्ट” अंग्रेजों ने इसलिए बनाया की १८५७ में इस देश में क्रांति हो गयी थी, विद्रोह हो गया था, बगावत हो गयी थी पूरे देश में | मंगल पाण्डे को फांसी की सज़ा हुयी थी बैरकपुर की छावनी में और सारे देश में आग लग गयी थी | गाँव-गाँव में नौजवान खड़े होने लगे थे, युवकों के मंडल आ गए थे और वो युवकों के मंडल अंग्रेजी सरकार के लिए खतरा पैदा करते थे तो अंग्रेजी सरकार नें हिन्दुस्तान के क्रांतिकारियों को पीटने के लिए, मारने के लिए, उनपर गोली चलाने के लिए एक (स्पेशल) क़ानून बनाया, जिसका नाम था “इंडियन पुलिस एक्ट” | और उस “पुलिस एक्ट” में उन्होंने क्या किया की हर अंग्रेजी सिपाही के हाथ में एक डंडा पकड़ा दिया की तुम हिन्दुस्तानी क्रांतिकारियों पर लाठीचार्ज कर सकते हो |और क़ानून कैसे बनाया, क़ानून ऐसे बनाया की हर अंग्रेजी पुलिस अधिकारी को, हर अंग्रेजी सिपाही को हिन्दुस्तान के क्रांतिकारियों पर लाठीचार्ज करने का अधिकार होता था जिसको तकनीकी भाषा में मैं कहता हूँ की हर अंग्रेज़ अधिकारी को “राईट टू ओफेंस”था लेकिन पिटने वाले को “राईट टू डिफेंस” नहीं था | और जैसे अंग्रेज़ सिपाही किसी को पीट रहा है और बदले में जो व्यक्ति पिट रहा है अंग्रेजी सिपाही को पीट दे तो केस उस व्यक्ति पर चलता था जिसने अँगरेज़ सिपाही को पीटा, न की अंग्रेज़ सिपाही के ऊपर जो पीट रहा है | इसी को तकनीकी भाषा में कहता हैं की हर अंग्रेज़ को “राईट टू ओफेंस” था लेकिन पिटने वाले को “राईट टू डिफेन्स” नहीं था | और इस काम के लिए अंग्रेजों ने हर सिपाही के हाथ में डंडा पकड़ा दिया और उस डंडे के बाद में इस देश में दनादन लाठीचार्ज होना शुरू हो गया | और जो क़ानून अंग्रेजों ने १८६० में बनाया था वही क़ानून आज भी चल रहा है इस देश में | और आप को शायद मालूम नहीं होगा की हिन्दुस्तान का हर कांस्टेबल हाथ में डंडा लिए क्यूँ घूमता है | ये हिन्दुस्तान के हर कांस्टेबल के हाथ में डंडा किसने दिया, क़ानून कौन सा है जो वो हाथ में डंडा लिए घूमता है | वो क़ानून अंग्रेजों के जमाने का है सन १८६० का | और वो डंडा क्यूँ दिया ताकि हिन्दुस्तानी लोगों को पीटो, अपने ही भाइयों को पीटो | हमारे बहुत से लोग अंग्रेजी सरकार में नौकरी करते थे, अंग्रेजी पुलिस में नौकरी करते थे तो हिन्दुस्तानी अधिकारियों से हिन्दुस्तानियों को पिटवाते थे अंग्रेज़ | अंग्रेज़ ऑफिसर बाद में आते थे पहले हिन्दुस्तानी भाई हिन्दुस्तानी भाइयों को पीटते थे और ये दृश्य मैं मान सकता हूँ की १८६० में चलता होगा जब ये देश गुलाम होगा अंग्रेजों का, आज आजादी के ५० साल के बाद भी अगर वही दृश्य हमको देखने को मिले तो कैसे मैं मानूँ की ये देश आजाद हो गया है | और इसी १८६० के “इंडियन पुलिस एक्ट” के आधार पर क्यूंकि हर अंग्रेजी पुलिस अधिकारी को “राईट टू ओफेंस” होता था और मरने वाले को “राईट टू डिफेंस” नहीं होता था इसी आधार पर गोलीकांड हुआ था १३ अप्रैल १९१९ में जलियांवाला बाग में |और जलियांवाला बाग में जो गोलीकांड हुआ था १३ अप्रैल सन १९१९ में उसमें हुआ क्या था | २०,००० क्रांतिकारियों की सभा चल रही थी, शांतिपूर्वक | जिसमें कहीं कोई उत्तेजना नहीं थी, और एक भी क्रांतिकारी के हाथ में ना लाठी थी, ना डंडा था, ना बन्दूक थी और ना पिस्तौल थी, कुछ भी नहीं था | और उन क्रांतिकारियों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था जनरल डायर ने | और डायर ने जिस तरह से गोली चलाई वो जलियांवाला बाग जिसने देखा हो, मैं तो वहाँ तीन बार गया हूँ उस में घुसने के लिए बहुत छोटा सा रास्ता है, मुश्किल से साढ़े तीन फीट का रास्ता, बहुत ही छोटा | उस रास्ते पर डायर ने ले जा के तोप लगा दी ताकि कोई भाग ना सके और चारों तरफ से वो घिरा हुआ है ऊँची दीवारों से | तो २०,०००  लोगों की सभा चल रही थी, डायर अन्दर घुसा, फ़ौज उसकी बिखर गयी और बिना चेतावनी दिए गोली चला दी | अठारह मिनट तक बराबर फायरिंग होती रही और अठारह मिनट की फायरिंग में २००० लोग मर गए वहीँ पर | और २००० आदमी मर गए तो बाद में डायर के ऊपर केस चला था तो उसने बयान दिया था की मेरे पास गोलियाँ खत्म हो गई थी अगर होती तो और आधा घंटा चलाता | तो जब वो गोलियाँ चली, २००० लोग मर गए और बाकी लोग जो मरे, वो भगदड़ से मरे | जो बच गए वो कुएँ में कूदे जान बचाने के लिए और कुएँ में कूदे तो भी वो मर गए | और उन गोलियों से मरने वाले लोगों के जो दृश्य होते थे, इतने वीभत्स तरीके से लोगों को मारा है, इतनी नृशंसता से, इतने क्रूर कृत्यों से मारा है लोगों को, बाद में डायर के ऊपर केस चला, तो डायर बाइज्ज़त बरी हो गया | उसको फांसी की सज़ा नहीं हुई, क्यूँ नहीं हुई | क्यूँकि जज ने कहा की – १८६० का जो “पुलिस एक्ट” है वो डायर को गोली चलने का अधिकार देता है, मरने वाले को “राईट टू डिफेन्स” नहीं देता, इसलिए डायर का कोई कसूर नहीं है | भारत माता की जय

वन्देमातरम

भारत के काले कानून

भारत में 1857 के पहले ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हुआ करता था वो अंग्रेजी सरकार का सीधा शासन नहीं था | 1857 में एक क्रांति हुई जिसमे इस देश में मौजूद 99 % अंग्रेजों को भारत के लोगों ने चुन चुन के मार डाला था और 1% इसलिए बच गए क्योंकि उन्होंने अपने को बचाने के लिए अपने शरीर को काला रंग लिया था | लोग इतने गुस्से में थे कि उन्हें जहाँ अंग्रेजों के होने की भनक लगती थी तो वहां पहुँच के वो उन्हें काट डालते थे | हमारे देश के इतिहास की किताबों में उस क्रांति को सिपाही विद्रोह के नाम से पढाया जाता है | Mutiny और Revolution में अंतर होता है लेकिन इस क्रांति को विद्रोह के नाम से ही पढाया गया हमारे इतिहास में | 1857 की गर्मी में मेरठ से शुरू हुई ये क्रांति जिसे सैनिकों ने शुरू किया था, लेकिन एक आम आदमी का आन्दोलन बन गया और इसकी आग पुरे देश में फैली और 1 सितम्बर तक पूरा देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो गया था | भारत अंग्रेजों और अंग्रेजी अत्याचार से पूरी तरह मुक्त हो गया था | लेकिन नवम्बर 1857 में इस देश के कुछ गद्दार रजवाड़ों ने अंग्रेजों को वापस बुलाया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित करने में हर तरह से योगदान दिया | धन बल, सैनिक बल, खुफिया जानकारी, जो भी सुविधा हो सकती थी उन्होंने दिया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित किया | और आप इस देश का दुर्भाग्य देखिये कि वो रजवाड़े आज भी भारत की राजनीति में सक्रिय हैं | अंग्रेज जब वापस आये तो उन्होंने क्रांति के उद्गम स्थल बिठुर (जो कानपुर के नजदीक है) पहुँच कर सभी 24000 लोगों का मार दिया चाहे वो नवजात हो या मरणासन्न | बिठुर के ही नाना जी पेशवा थे और इस क्रांति की सारी योजना यहीं बनी थी इसलिए अंग्रेजों ने ये बदला लिया था | उसके बाद उन्होंने अपनी सत्ता को भारत में पुनर्स्थापित किया और जैसे एक सरकार के लिए जरूरी होता है वैसे ही उन्होंने कानून बनाना शुरू किया | अंग्रेजों ने कानून तो 1840 से ही बनाना शुरू किया था और मोटे तौर पर उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था, लेकिन 1857 से उन्होंने भारत के लिए ऐसे-ऐसे कानून बनाये जो एक सरकार के शासन करने के लिए जरूरी होता है | आप देखेंगे कि हमारे यहाँ जितने कानून हैं वो सब के सब 1857 से लेकर 1946 तक के हैं |
1840 तक का भारत जो था उसका विश्व व्यापार में हिस्सा 33% था, दुनिया के कुल उत्पादन का 43% भारत में पैदा होता था और दुनिया के कुल कमाई में भारत का हिस्सा 27% था | ये अंग्रेजों को बहुत खटकती थी, इसलिए आधिकारिक तौर पर भारत को लुटने के लिए अंग्रेजों ने कुछ कानून बनाये थे और वो कानून अंग्रेजों के संसद में बहस के बाद तैयार हुई थी, उस बहस में ये तय हुआ कि “भारत में होने वाले उत्पादन पर टैक्स लगा दिया जाये क्योंकि सारी दुनिया में सबसे ज्यादा उत्पादन यहीं होता है और ऐसा हम करते हैं तो हमें टैक्स के रूप में बहुत पैसा मिलेगा” | तो अंग्रेजों ने सबसे पहला कानून बनाया Central Excise Duty Act और टैक्स तय किया गया 350% मतलब 100 रूपये का उत्पादन होगा तो 350 रुपया Excise Duty देना होगा | फिर अंग्रेजों ने समान के बेचने पर Sales Tax लगाया और वो तय किया गया 120% मतलब 100 रुपया का माल बेचो तो 120 रुपया CST दो | फिर एक और टैक्स आया Income Tax और वो था 97% मतलब 100 रुपया कमाया तो 97 रुपया अंग्रेजों को दे दो | ऐसे ही Road Tax, Toll Tax, Municipal Corporation tax, Octroi, House Tax, Property Tax लगाया और ऐसे करते-करते 23 प्रकार का टैक्स लगाया अंग्रेजों ने और खूब लुटा इस देश को | 1840 से लेकर 1947 तक टैक्स लगाकर अंग्रेजों ने जो भारत को लुटा उसके सारे रिकार्ड बताते हैं कि करीब 300 लाख करोड़ रुपया लुटा अंग्रेजों ने इस देश से | तो भारत की जो गरीबी आयी है वो लुट में से आयी गरीबी है | विश्व व्यापार में जो हमारी हिस्सेदारी उस समय 33% थी वो घटकर 5% रह गयी, हमारे कारखाने बंद हो गए, लोगों ने खेतों में काम करना बंद कर दिया, हमारे मजदूर बेरोजगार हो गए | इस तरीके से बेरोजगारी पैदा हुई, गरीबी-बेरोजगारी से भुखमरी पैदा हुई और आपने पढ़ा होगा कि हमारे देश में उस समय कई अकाल पड़े, ये अकाल प्राकृतिक नहीं था बल्कि अंग्रेजों के ख़राब कानून से पैदा हुए अकाल थे, और इन कानूनों की वजह से 1840 से लेकर 1947 तक इस देश में साढ़े चार करोड़ लोग भूख से मरे | तो हमारी गरीबी का कारण ऐतिहासिक है कोई प्राकृतिक,अध्यात्मिक या सामाजिक कारण नहीं है |

1857 की क्रांति की बाद अंग्रेजों ने भारत के ही कुछ गद्दार राजाओं के सहयोग से अपनी खोयी सत्ता को पुनर्स्थापित किया और 1 नवम्बर 1858 को भारत में प्रकाशित होने वाले कुछ अंग्रेजो अख़बारों में ब्रिटेन की तत्कालीन महारानी का ये पत्र छपा जिसमे कहा गया था “आज से भारत में कंपनी (ईस्ट इंडिया कंपनी) की सरकार नहीं बल्कि कानून की सरकार की स्थापना होगी”| लेकिन वो कानून कौन बनाएगा ? तो वो कानून अंग्रेजों की संसद बनाएगी, ब्रिटिश पार्लियामेंट बनाएगी और उसके हिसाब से भारत को चलाया जायेगा | अब ब्रिटिश पार्लियामेंट में बहस इस बात को लेकर हुई कि “कानून ऐसे बनाये जाने चाहिए कि भारतवासी कभी भी दुबारा खड़े न हो सकें और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत न कर सकें” | इस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश में कानून की सरकार बनाई और हमारे देश में अंग्रेजों ने 34735 कानून बनाये शासन करने के लिए, सब का जिक्र करना तो मुश्किल है लेकिन कुछ मुख्य कानूनों के बारे में मैं संक्षेप में लिख रहा हूँ |  हमेशा की तरह ये लेख भी परम सम्मानीय राजीव दीक्षित भाई के विभिन्न व्याख्यानों में से जोड़ के मैंने बनाया है, उम्मीद है कि आप लोगों के ये पसंद आएगी |

  •  Licensing of Arms Act –  सबसे पहला कानून जानते हैं क्या आया ? सबसे पहला कानून ? आपको ये जानकार हैरानी होगी | अंग्रेजों के खिलाफ जो बगावत हुई थी वो सशस्त्र बगावत थी, उसमे हथियारों का इस्तेमाल हुआ था तो अंग्रेजों ने सबसे पहला कानून यही बनाया कि  “हथियार वही रख सकेगा जिसके पास लाइसेंस होगा, लाइसेंस जिसके पास नहीं होगा वो हथियार रखने का अधिकारी नहीं होगा”, तो अंग्रेजों ने क्या किया ? लाइसेंसिंग ऑफ़ आर्म्स एक्ट नामक पहला कानून बनाया और इस कानून के आधार पर क्या किया गया कि घर-घर की तलाशी ली गयी कि किसके घर में बन्दूक है, किसके घर में चाकू है, किसके घर में छुरा है, किसके घर में हसिया है और वो सब अंग्रेजों ने छीन लिया क्योंकि अंग्रेजों को डर था कि इन्ही हथियारों की मदद से भारतवासी फिर से बगावत कर सकते हैं | और इस कानून के आधार पर जब भारतवासियों के हर्थियर छीन लिए गए तब भारतवासी कमजोर हो गए और वो कमजोरी इतनी भारी पड़ी कि अगले 90 साल तक फिर अंग्रेजों की गुलामी हमको सहन करनी पड़ी | और इस देश का दुर्भाग्य ये कि ये कानून आज भी चल रहा है इस देश में | आपको मालूम है कि इस देश में हथियार वही रख सकता है जिसके पास लाइसेंस होगा और हथियार देने का काम पहले गोरे अंग्रेज करते थे आज लाइसेंस देने का काम काले अंग्रेज कर रहे हैं |
  • Indian Education Act – 1858 में Indian Education Act बनाया गया | इसकी ड्राफ्टिंग लोर्ड मैकोले ने की थी | लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी | अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W.Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था | 1823 के आसपास की बात है ये | Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है | और मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा  के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे, और मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है “कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी ” | इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को  गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया, और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमे पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा-पीटा, जेल में डाला | 1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे 7 लाख 50 हजार, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में Higher Learning Institute हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था, और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी | इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे फ्री स्कूल कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं | और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमे वो लिखता है कि “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी ” और उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है |  और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा | लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है | शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है | इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे | ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी | अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी |  संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है | जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी |
  • Indian Police Act – 10 मई 1857 को जब देश में क्रांति हो गई और भारतवासियों ने पूरे देश में 3 लाख अंग्रेजो को मार डाला । उस समय क्रांतिकारी थे मंगल पांडे, तात्या टोपे, नाना साहब पेशवा आदि । लेकिन कुछ गद्दार राजाओ के वजह से अंग्रेज दुबारा भारत में वापिस आयें । तब उन्होने फ़ैसला किया कि अब हम भारतवासियों को सीधे मारे पीटेंगे नहीं, अब हम इनको कानून बना कर गुलाम रखेंगे ।भारतवासी कभी भी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत न कर सके इसके लिए भारतवासियों को दबाने-कुचलने के लिए एक ऐसा तंत्र चाहिए जो ये काम बखूबी कर सके तो पुलिस नाम की एक व्यवस्था उन्होंने खड़ी की | क्या आपको मालूम है कि 1858 के पहले इस देश में पुलिस नाम की कोई व्यस्था नहीं हुआ करती थी? भारत के किसी भी राजा ने पुलिस व्यवस्था नहीं रखी थी, सैनिक और सेना था लेकिन पुलिस नहीं होती थी, क्योंकि पुलिस की जरूरत नहीं होती थी, अपने ही लोगों को मारना, पीटना और धमकाना ये कौन करता है ? तो 1860 में इंडियन पुलिस एक्ट बनाया गया | 1857 के पहले अंग्रेजों की कोई पुलिस नहीं थी इस देश में लेकिन 1857 में जो विद्रोह हुआ उससे डरकर उन्होंने ये कानून बनाया ताकि ऐसे किसी विद्रोह/क्रांति को दबाया जा सके | अंग्रेजों ने इसे बनाया था भारतीयों का दमन और अत्याचार करने के लिए, उनको डर था कि 1857 जैसी क्रंति दुबारा न हो जाये, तब अंग्रेजो ने इंडियन पुलिस एक्ट बनाया, और पुलिस बनायी, उस पुलिस को विशेष अधिकार दिया गया | उसमे एक धारा बनाई गई right to offence की, मतलब पुलिस वाला आप पर जितनी मर्जी लाठियां मारे पर आप कुछ नहीं कर सकते और अगर आपने लाठी पकड़ने की कोशिश की तो आप पर मुकद्दमा चलेगा और इसी कानून के आधार पर सरकार अंदोलन करने वालो पर लाठियां बरसाया करती थी, फ़िर धारा 144 बनाई गई ताकि लोग इकठे न हो सके और बेचारे पुलिस की हालत देखिये कि ये 24 घंटे के कर्मचारी हैं उतने ही तनख्वाह में, तनख्वाह मिलती है 8 घंटे की और ड्यूटी रहती है 24 घंटे की | जब साईमन कमीशन भारत आने वाला था तो क्रान्तिकारी लाला लाजपत राय जी उसका शंतिप्रिय विद्रोह कर रहे थे । अंग्रेजी पुलिस के एक अफ़सर सांडर्स ने उन पर लाठिया बरसानी शुरु कर दी । एक लाठी मारी, दो मारी, तीन, चार, पांच, करते करते 14 लाठिया मारी । नतीजा ये हुआ लाला जी के सर से खून ही खून बहने लगा, उनको अस्तपताल ले जाया गया जहाँ उनकी मृत्यु हो गई । अब सांडर्स को सज़ा मिलनी चाहिए, इसके लिये शहीदेआजम भगत सिंह ने अदालत में मुकदमा कर दिया, सुनवाई हुई और अदालत ने फैसला दिया कि लाला जी पर जो लाठिया मारी गई है वो कानून के आधार पर मारी गई है अब इसमे उनकी मौत हो गई तो हम क्या करे इसमे कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि सांडर्स अपनी ड्यूटी कर रहा था,  नतीजा सांडर्स को बाइज्जत बरी किया जाता है ।
    तब भगत सिंह को गुस्सा आया उसने कहा जिस अंग्रेजी न्याय व्यवस्था ने लाला जी के हत्यारे को बाईज्जत बरी कर दिया, उसको सज़ा मैं दुंगा और इसे वहीं पहुँचाउगा जहाँ इसने लाला जी को पहुँचाया है और जैसा आप सब जानते हैं कि फ़िर भगत सिंह ने सांडर्स को गोली से उड़ा दिया और फ़िर भगत सिंह को इसके लिये फ़ांसी की सज़ा हुई । जिंदगी के अंतिम दिनो में जब भगत सिंह लाहौर जेल में बंद थे तो बहुत से पत्रकार उनसे मिलने जाया करते थे और उसी बातचीत में किसी पत्रकार ने भगत सिंह से उनकी आख़िरी इच्छा पूछी । शहीदे आजम भगत सिंह ने कहा कि ” मैं देश के नौजवानो से उम्मीद करता हूँ कि जिस
    इंडियन पुलिस एक्ट के कारण लाला जी की जान गई, जिस इंडियन पुलिस एक्ट के आधार पर मैं फ़ांसी चढ़ रहा हूँ, इस देश के नौजवान आजादी मिलने से पहले पहले इसको खत्म करवा देगें, यही मेरे दिल की इच्छा है ।”
    लेकिन ये बहुत शर्म की बात है कि आजादी के 64 साल के बाद आज भी इस कानून को हम खत्म नहीं करवा पाये । आज भी आप देखिये कि उसी इंडियन पुलिस एक्ट के आधार पर पुलिस देशवासियो पर कितना जूल्म करती है । कभी आन्दोलन करने वाले किसानों को डंडे मारती है,  कभी औरत को डंडे मारती है और सैकड़ों लोग उसमे घायल होते हैं । हम हर साल 23 मार्च को भगत सिंह का शहीदी दिवस मानाते हैं । लाला लाजपत राय का शहीदी दिवस मानाते हैं । किस मुँह से हम उनको श्रद्धांजलि अर्पित करे कि “लाला लाजपत राय जी जिस कानून के आधार आपको लाठिया मारी गई और आपकी मौत हुई उस कानून को हम आजादी के 64 साल बाद भी हम खत्म नहीं करवा पाये, किस मुँह से हम भगत सिंह को श्रद्धांजलि दे कि भगत सिंह जी जिस अंग्रेजी कानून के आधार पर आपको फाँसी की सज़ा हुई, आजादी के 64 साल बाद भी हम उसको सिर पर ढो रहे हैं ।” आजादी के 64 साल बाद आज भी पुलिस आन्दोलन करने वाले भारतवासियो को वैसे ही डंडे मारे जैसे अंग्रेजो की पुलिस मारती तो थी तो हम कैसे कहें कि हम आजाद हो गए हैं ?
  • Indian Civil Services Act – 1860 में ही इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया गया | ये जो Collector हैं वो इसी कानून की देन हैं | भारत के Civil Servant जो हैं उन्हें Constitutional Protection है, क्योंकि जब ये कानून बना था उस समय सारे ICS अधिकारी अंग्रेज थे और उन्होंने अपने बचाव के लिए ऐसा कानून बनाया था, ऐसा विश्व के किसी देश में नहीं है, और वो कानून चुकी आज भी लागू है इसलिए भारत के IAS अधिकारी सबसे निरंकुश हैं | अभी आपने CVC थोमस का मामला देखा होगा | इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता | और इन अधिकारियों का हर तीन साल पर तबादला हो जाता था क्योंकि अंग्रेजों को ये डर था कि अगर ज्यादा दिन तक कोई अधिकारी एक जगह रह गया तो उसके स्थानीय लोगों से अच्छे सम्बन्ध हो जायेंगे और वो ड्यूटी उतनी तत्परता से नहीं कर पायेगा या उसके काम काज में ढीलापन आ जायेगा | और वो ट्रान्सफर और पोस्टिंग का सिलसिला आज भी वैसे ही जारी है और हमारे यहाँ के कलक्टरों की जिंदगी इसी में कट जाती है | और ये जो Collector होते थे उनका काम था Revenue, Tax, लगान और लुट के माल को Collect करना इसीलिए ये Collector कहलाये और जो Commissioner होते थे वो commission पर काम करते थे उनकी कोई तनख्वाह तय नहीं होती थी और वो जो लुटते थे उसी के आधार पर उनका कमीशन होता था | ये मजाक की बात या बनावटी कहानी नहीं है ये सच्चाई है इसलिए ये दोनों पदाधिकारी जम के लूटपाट और अत्याचार मचाते थे उस समय | अब इस कानून का नाम Indian Civil Services Act से बदल कर Indian Civil Administrative Act हो गया है, 64 सालों में बस इतना ही बदलाव हुआ है  |
  • Indian Income Tax Act – इस एक्ट पर जब ब्रिटिश संसद में चर्चा हो रही थी तो एक सदस्य ने कहा कि “ये तो बड़ा confusing है, कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है”,  तो दुसरे ने कहा कि हाँ इसे जानबूझ कर ऐसा रखा गया है ताकि जब भी भारत के लोगों को कोई दिक्कत हो तो वो हमसे ही संपर्क करें | आज भी भारत के आम आदमी को छोडिये, इनकम टैक्स के वकील भी इसके नियमों को लेकर दुविधा की स्थिति में रहते हैं | और इनकम टैक्स की दर रखी गयी 97% यानि 100 रुपया कमाओ तो 97 रुपया टैक्स में दे दो और उसी समय ब्रिटेन से आने वाले सामानों पर हर तरीके के टैक्स की छुट दी जाती है ताकि ब्रिटेन के माल इस देश के गाँव-गाँव में पहुँच सके | और इसी चर्चा में एक सांसद कहता है कि “हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू है, अगर भारत के लोग इतना टैक्स देते हैं तो वो बर्बाद हो जायेंगे या टैक्स की चोरी करते हैं तो बेईमान हो जायेंगे और अगर बेईमान हो गए तो हमारी गुलामी में आ जायेंगे और अगर बरबाद हुए तो हमारी गुलामी में आने ही वाले है” | तो ध्यान दीजिये कि इस देश में टैक्स का कानून क्यों लाया जा रहा है ? क्योंकि इस देश के व्यापारियों को, पूंजीपतियों को, उत्पादकों को, उद्योगपतियों को, काम करने वालों को या तो बेईमान बनाया जाये या फिर बर्बाद कर दिया जाये, ईमानदारी से काम करें तो ख़त्म हो जाएँ और अगर बेईमानी करें तो हमेशा ब्रिटिश सरकार के अधीन रहें | अंग्रेजों ने इनकम टैक्स की दर रखी थी 97% और इस व्यवस्था को 1947 में ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आपको जान के ये आश्चर्य होगा कि 1970-71 तक इस देश में इनकम टैक्स की दर 97% ही हुआ करती थी | और इसी देश में भगवान श्रीराम जब अपने भाई भरत से संवाद कर रहे हैं तो उनसे कह रहे है कि प्रजा पर ज्यादा टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए और चाणक्य ने भी कहा है कि टैक्स ज्यादा नहीं होना चाहिए नहीं तो प्रजा हमेशा गरीब रहेगी, अगर सरकार की आमदनी बढ़ानी है तो लोगों का उत्पादन और व्यापार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करो | अंग्रेजों ने तो 23 प्रकार के टैक्स लगाये थे उस समय इस देश को लुटने के लिए, अब तो इस देश में VAT को मिला के 64 प्रकार के टैक्स हो गए हैं | महात्मा गाँधी के देश में नमक पर भी टैक्स हो गया है और नमक भी विदेशी कंपनियां बेंच रही हैं, आज अगर गाँधी जी की आत्मा स्वर्ग से ये देखती होगी तो आठ-आठ आंसू रोती होगी कि जिस देश में मैंने नमक सत्याग्रह किया कि विदेशी कंपनी का नमक न खाया जाये आज उस देश में लोग विदेश कंपनी का नमक खरीद रहे हैं और नमक पर टैक्स लगाया जा रहा है | शायद हमको मालूम नहीं है कि हम कितना बड़ा National Crime कर रहे हैं |
  • Indian Forest Act – 1865 में Indian Forest Act बनाया गया और ये लागू हुआ 1872 में | इस कानून के बनने के पहले जंगल गाँव की सम्पति माने जाते थे और गाँव के लोगों की सामूहिक हिस्सेदारी होती थी इन जंगलों में, वो ही इसकी देखभाल किया करते थे, इनके संरक्षण के लिए हर तरह का उपाय करते थे, नए पेड़ लगाते थे और इन्ही जंगलों से जलावन की लकड़ी इस्तेमाल कर के वो खाना बनाते थे | अंग्रेजों ने इस कानून को लागू कर के जंगल के लकड़ी के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया | साधारण आदमी अपने घर का खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं काट सकता और अगर काटे तो वो अपराध है और उसे जेल हो जाएगी, अंग्रेजों ने इस कानून में ये प्रावधान किया कि भारत का कोई भी आदिवासी या दूसरा कोई भी नागरिक पेड़ नहीं काट सकता और आम लोगों को लकड़ी काटने से रोकने के लिए उन्होंने एक पोस्ट बनाया District Forest Officer जो उन लोगों को तत्काल सजा दे सके, उसपर केस करे, उसको मारे-पीटे | लेकिन दूसरी तरफ जंगलों के लकड़ी की कटाई के लिए ठेकेदारी प्रथा लागू की गयी जो आज भी लागू है और कोई ठेकेदार जंगल के जंगल साफ़ कर दे तो कोई फर्क नहीं पड़ता |  अंग्रेजों द्वारा नियुक्त ठेकेदार जब चाहे, जितनी चाहे लकड़ी काट सकते हैं | हमारे देश में एक अमेरिकी कंपनी है जो वर्षों से ये काम कर रही है, उसका नाम है ITC पूरा नाम है Indian Tobacco Company इसका असली नाम है American Tobacco Company, और ये कंपनी हर साल 200 अरब सिगरेट बनाती है और इसके लिए 14 करोड़ पेड़ हर साल काटती है | इस कंपनी के किसी अधिकारी या कर्मचारी को आज तक जेल की सजा नहीं हुई क्योंकि ये इंडियन फोरेस्ट एक्ट ऐसा है जिसमे सरकार के द्वारा अधिकृत ठेकेदार तो पेड़ काट सकते हैं लेकिन आप और हम चूल्हा जलाने के लिए, रोटी बनाने के लिए लकड़ी नहीं ले सकते और उससे भी ज्यादा ख़राब स्थिति अब हो गयी है, आप अपने जमीन पर के पेड़ भी नहीं काट सकते | तो कानून ऐसे बने हुए हैं कि साधारण आदमी को आप जितनी प्रताड़ना दे सकते हैं, दुःख दे सकते है, दे दो विशेष आदमी को आप छू भीं नहीं सकते | और जंगलों की कटाई से घाटा ये हुआ कि मिटटी बह-बह के नदियों में आ गयी और नदियों की गहराई को इसने कम कर दिया और बाढ़ का प्रकोप बढ़ता गया |
  • Indian Penal Code – अंग्रेजों ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC ) | ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ “I” का मतलब Irish है वहीं भारत में इस “I” का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है | अंग्रेजों का एक अधिकारी था टी.वी.मैकोले, उसका कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा | और आपने अभी ऊपर Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी | ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में | ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि “मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा | इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी | और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जडमूल से समाप्त कर देगा”| और वो आगे लिखता है कि ” जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा” | ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है | और आजादी के 64 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं | 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है ? कारण यही IPC है | IPC का आधार ही ऐसा है | और मैकोले ने लिखा था कि “भारत के लोगों के मुकदमों का फैसला होगा, न्याय नहीं मिलेगा” | मुक़दमे का निपटारा होना अलग बात है, केस का डिसीजन आना अलग बात है, केस का जजमेंट आना अलग बात है और न्याय मिलना बिलकुल अलग बात है | अब इतनी साफ़ बात जिस मैकोले ने IPC के बारे में लिखी हो उस IPC को भारत की संसद ने 64 साल बाद भी नहीं बदला है और ना कभी कोशिश ही की है |
  •  Land Acquisition Act – एक अंग्रेज आया इस देश में उसका नाम था डलहौजी | ब्रिटिश पार्लियामेंट ने उसे एक ही काम के लिए भारत भेजा था कि तुम जाओ और भारत के किसानों के पास जितनी जमीन है उसे छिनकर अंग्रेजों के हवाले करो | डलहौजी ने इस “जमीन को हड़पने के कानून” को भारत में लागू करवाया, इस कानून को लागू कर के किसानों से जमीने छिनी गयी | जो जमीन किसानों की थी वो ईस्ट इंडिया कंपनी की हो गयी | डलहौजी ने अपनी डायरी में लिखा है कि ” मैं गाँव गाँव जाता था और अदालतें लगवाता था और लोगों से जमीन के कागज मांगता था” | और आप जानते हैं कि हमारे यहाँ किसी के पास उस समय जमीन के कागज नहीं होते थे क्योंकि ये हमारे यहाँ परंपरा से चला आ रहा था या आज भी है कि पिता की जमीन या जायदाद बेटे की हो जाती है, बेटे की जमीन उसके बेटे की हो जाती है | सब जबानी होता था, जबान की कीमत होती थी या आज भी है आप देखते होंगे कि हमारे यहाँ जो शादियाँ होती हैं वो सिर्फ और सिर्फ जबानी समझौते से होती है कोई लिखित समझौता नहीं होता है, एक दिन /तारीख तय हो जाती है और लड़की और लड़का दोनों पक्ष शादी की तैयारी में लग जाते है लड़के वाले निर्धारित तिथि को बारात ले के लड़की वालों के यहाँ पहुँच जाते है, शादी हो जाती है | तो कागज तो किसी के पास था नहीं इसलिए सब की जमीनें उस अत्याचारी डलहौजी ने हड़प ली | एक दिन में पच्चीस-पच्चीस हजार किसानों से जमीनें छिनी गयी | परिणाम क्या हुआ कि इस देश के करोड़ों किसान भूमिहीन हो गए | डलहौजी के आने के पहले इस देश का किसान भूमिहीन नहीं था, एक-एक किसान के पास कम से कम 10 एकड़ जमीन थी, ये अंग्रेजों के रिकॉर्ड बताते हैं | डलहौजी ने आकर इस देश के 20 करोड़ किसानों को भूमिहीन बना दिया और वो जमीने अंग्रेजी सरकार की हो गयीं | 1947 की आजादी के बाद ये कानून ख़त्म होना चाहिए था लेकिन नहीं, इस देश में ये कानून आज भी चल रहा है | हम आज भी अपनी खुद की जमीन पर मात्र किरायेदार हैं, अगर सरकार का मन हुआ कि आपके जमीन से हो के रोड निकाला जाये तो आपको एक नोटिस दी जाएगी और आपको कुछ पैसा दे के आपकी घर और जमीन ले ली जाएगी | आज भी इस देश में किसानों की जमीन छिनी जा रही है बस अंतर इतना ही है कि पहले जो काम अंग्रेज सरकार करती थी वो काम आज भारत सरकार करती है | पहले जमीन छीन कर अंग्रेजों के अधिकारी अंग्रेज सरकार को वो जमीनें भेंट करते थे, अब भारत सरकार वो जमीनें छिनकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भेंट कर रही है और Special Economic Zone उन्हीं जमीनों पर बनाये जा रहे हैं और ये जमीन बहुत बेदर्दी से लिए जा रहे हैं | भारतीय या बहुराष्ट्रीय कंपनी को कोई जमीन पसंद आ गयी तो सरकार एक नोटिस देकर वो जमीन किसानों से ले लेती है और वही जमीन वो कंपनी वाले महंगे दाम पर दूसरों को बेचते हैं | जिसकी जमीन है उसके हाँ या ना का प्रश्न ही नहीं है, जमीन की कीमत और मुआवजा सरकार तय करती है, जमीन वाले नहीं | एक पार्टी की सरकार वहां पर है तो दूसरी पार्टी का नेता वहां पहुँच के घडियाली आंसू बहाता है और दूसरी पार्टी की सरकार है तो पहले वाला पहुँच के घडियाली आंसू बहाता है लेकिन दोनों पार्टियाँ मिल के इस कानून को ख़त्म करने की कवायद नहीं करते और 1894 का ये अंग्रेजों का कानून बिना किसी परेशानी के इस देश में आज भी चल रहा है | इसी देश में नंदीग्राम होते हैं, इसी देश में सिंगुर होते हैं और अब नोएडा हो रहा है | जहाँ लोग नहीं चाहते कि हम हमारी जमीन छोड़े, वहां लाठियां चलती हैं, गोलियां चलती है | आपको लगता है कि ये देश आजाद हो गया है ? मुझे तो नहीं लगता |
  • Indian Citizenship Act – अंग्रेजों ने एक कानून लाया था Indian Citizenship Act, आप और हम भारत के नागरिक हैं तो कैसे हैं, उसके Terms और Condition अंग्रेज तय कर के गए हैं | अंग्रेजों ने ये कानून इसलिए बनाया था कि अंग्रेज भी इस देश के नागरिक हो सकें | तो इसलिए इस कानून में ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति  (पुरुष या महिला) एक खास अवधि तक इस देश में रह ले तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है (जैसे बंगलादेशी शरणार्थी) | लेकिन हमने इसमें आज 2011 तक के 64 सालों में रत्ती भर का भी संशोधन नहीं किया | इस कानून के अनुसार कोई भी विदेशी आकर भारत का नागरिक हो सकता है, नागरिक हो सकता है तो चुनाव लड़ सकता है, और चुनाव लड़ सकता है तो विधायक और सांसद भी हो सकता है, और विधायक और सांसद बन सकता है तो मंत्री भी बन सकता है, मंत्री बन सकता है तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी बन सकता है | ये भारत की आजादी का माखौल नहीं तो और क्या है ? दुनिया के किसी भी देश में ये व्यवस्था नहीं है | आप अमेरिका जायेंगे और रहना शुरू करेंगे तो आपको ग्रीन कार्ड मिलेगा लेकिन आप अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन सकते, जब तक आपका जन्म अमेरिका में नहीं हुआ होगा | ऐसा ही कनाडा में है, ब्रिटेन में है, फ़्रांस में है, जर्मनी में है | दुनिया में 204 देश हैं लेकिन दो-तीन देश को छोड़ के हर देश में ये कानून है कि आप जब तक उस देश में पैदा नहीं हुए तब तक आप किसी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ सकते, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है | कोई भी विदेशी इस देश की नागरिकता ले सकता है और इस देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन हो सकता है और आप उसे रोक नहीं सकते, क्योंकि कानून है, Indian Citizenship Act , उसमे ये व्यवस्था है | ये अंग्रेजों के समय का कानून है, हम उसी को चला रहे हैं, उसी को ढो रहे हैं आज भी, आजादी के 64 साल बाद भी | आप समझते हैं कि हमारी एकता और अखंडता सुरक्षित रहेगी ?
  • Indian Advocates Act – हमारे देश में जो अंग्रेज जज होते थे वो काला टोपा लगाते थे और उसपर नकली बालों का विग लगाते थे | ये व्यवस्था आजादी के 40-50 साल बाद तक चलता रहा था | हमारे यहाँ वकीलों का जो ड्रेस कोड है वो इसी कानून के आधार पर है, काला कोट, उजला शर्ट और बो ये हैं वकीलों का ड्रेस कोड | काला कोट जो होता है वो आप जानते हैं कि गर्मी को सोखता है, और अन्दर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता, और इंग्लैंड में चुकी साल में 8-9 महीने भयंकर ठण्ड पड़ती है तो उन्होंने ऐसा ड्रेस अपनाया, अब हम भारत में भी ऐसा ही ड्रेस पहन रहे हैं ये समझ से बाहर की बात है | हमारे यहाँ का मौसम गर्म है और साल में नौ महीने तो बहुत गर्मी रहती है और अप्रैल से अगस्त तक तो तापमान 40-50 डिग्री तक हो जाता है फिर ऐसे ड्रेस को पहनने से क्या फायदा जो शरीर को कष्ट दे, कोई और रंग भी तो हम चुन सकते थे काला रंग की जगह, लेकिन नहीं | हमारे देश में आजादी के पहले के जो वकील हुआ करते थे वो ज्यादा हिम्मत वाले थे | लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक हमेशा मराठी पगड़ी पहन कर अदालत में बहस करते थे और गाँधी जी ने कभी काला कोट नहीं पहना और इसके लिए कई बार उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन लोगों ने कभी समझौता नहीं किया |
  • Indian Motor Vehicle Act – उस ज़माने में कार/मोटर जो था वो सिर्फ अंग्रेजों, रजवाड़ों और पैसे वालों के पास होता था तो इस कानून में प्रावधान डाला गया कि अगर किसी को मोटर से धक्का लगे या धक्के से मौत हो जाये तो सजा नहीं होनी चाहिए या हो भी तो कम से कम | साल डेढ़ साल की सजा हो ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए उसको हत्या नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि हत्या में तो धारा 302 लग जाएगी और वहां हो जाएगी फाँसी या आजीवन कारावास, तो अंग्रेजों ने इस एक्ट में ये प्रावधान रखा कि अगर कोई (अंग्रेजों के) मोटर के नीचे दब के मरा तो उसे कठोर और लम्बी सजा ना मिले | ये व्यवस्था आज भी जारी है और इसीलिए मोटर के धक्के से होने वाली मौत में किसी को सजा नहीं होती | और सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस देश में हर साल डेढ़ लाख लोग गाड़ियों के धक्के से या उसके नीचे आ के मरते हैं लेकिन आज तक किसी को फाँसी या आजीवन कारावास नहीं हुआ |
  • Indian Agricultural Price Commission Act – ये भी अंग्रेजों के ज़माने का कानून है | पहले ये होता था कि किसान, जो फसल उगाते थे तो उनको ले के मंडियों में बेचने जाते थे और अपने लागत के हिसाब से उसका दाम तय करते थे | अंग्रेजों ने हमारे कृषि व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए ये कानून लाया और किसानों को उनके फसल का दाम तय करने का अधिकार समाप्त कर दिया | अंग्रेज अधिकारी मंडियों में जाते थे और वो किसानों के फसल का मूल्य तय करते थे कि आज ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा और ये अनाज इस मूल्य में बिकेगा, ऐसे ही हर अनाज का दाम वो तय करते थे | आप हर साल समाचारों में सुनते होंगे कि “सरकार ने गेंहू का,धान का, खरीफ का, रबी का समर्थन मूल्य तय किया” | ये किसानों के फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है, मतलब किसानों के फसलों का आधिकारिक मूल्य होता है | इससे ज्यादा आपके फसल का दाम नहीं होगा | किसानों को अपने उपजाए अनाजों का दाम तय करने का अधिकार आज भी नहीं है इस आजाद भारत में | उनका मूल्य तय करना सरकार के हाथ में होता है | और आज दिल्ली के AC Room में बैठ कर वो लोग किसानों के फसलों का दाम तय करते हैं जिन्होंने खेतों में कभी पसीना नहीं बहाया और जो खेतों में पसीना बहाते हैं, वो अपने उत्पाद का दाम नहीं तय कर सकते |
  • Indian Patent Act – अंग्रेजों ने एक कानून लाया Patent Act , और वो बना था 1911 | Patent मतलब होता है एक तरह का Legal Right, कोई व्यक्ति, वैज्ञानिक या कंपनी अगर किसी चीज का आविष्कार करती है तो उसे उस आविष्कार पर एक खास अवधि के लिए अधिकार दिया जाता है | ये जा के 1970 में ख़त्म हुआ श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रयासों से लेकिन इसे अब फिर से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में बदल दिया गया है | अभी विस्तार से नहीं लिखूंगा मतलब इस देश के लोगों के हित से ज्यादा जरूरी है बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हित |
  • Indian Evidence Act – Indian Evidence Act काम करता है गवाह और सबूत के आधार पर और ये दोनों ही बदले जा सकते हैं | गवाह भी बदले जा सकते हैं और सबूत तो इतने आसानी से मिटाए जाते हैं और नए बनाये जाते हैं इस देश में कि आप कल्पना नहीं कर सकते हैं | इसी कारण से, चूकी गवाह बदले जाते हैं, गवाह कैसे बदलते हैं, पता है आपको ? पुलिस बयान लेती है और अदालत में जैसे ही वो गवाह खड़ा होता है, तुरंत मुकर जाता है और कहता है कि पुलिस ने जबरदस्ती ये बयान मुझसे लिया है और जैसे ही वो ये कहता है, वो मुक़दमा, जो 20 मिनट में ख़त्म हो जाता, 10 साल तक चलता रहता है | और यही कारण है कि अंग्रेजी न्याय व्यवस्था में conviction rate  पाँच प्रतिशत है | Conviction Rate समझते हैं आप ? 100 लोगों के ऊपर मुक़दमा किया जाये तो सिर्फ पाँच लोगों को ही सजा होती है, 95 को सजा होती ही नहीं, वो अदालत से बाइज्जत बरी हो जाते हैं | तो इसका मतलब है कि या तो 95 मुकदमे झूठे, या सरकार झूठी, या पुलिस व्यवस्था झूठी या न्याय व्यवस्था कमजोर | ये इंडियन एविडेंस एक्ट ने ऐसा सत्यानाश कर रखा है इस देश का कि सत्य महत्व का नहीं है बल्कि गवाह और सबूत महत्व का है, कई बार पुलिस कहती है कि सत्य हमें मालूम है लेकिन गवाह नहीं, सबूत नहीं है, क्या करे हम ? ना सजा दिलवा सकते हैं, ना किसी को न्याय दिलवा सकते हैं | और न्यायाधीश को सत्य की पहचान करने के लिए बिठाया जाता है, वो न्यायाधीश भी सबूत और गवाह के आधार पर सत्य की तलाश करता है, जब कि सच्चाई ये है कि सत्य अपने आप में ही पूर्ण होता है, उसको कोई गवाह की जरूरत नहीं होती है, उसको कोई सबूत की जरूरत नहीं होती | इस इंडियन एविडेंस एक्ट या कहें भारतीय न्याय व्यवस्था का कैसा मजाक इस देश में हो रहा है उसका एक उदाहरण देता हूँ | 26 नवम्बर को जिन आतंकवादियों ने पाकिस्तान से आकर मुंबई में सैकड़ों निर्दोष लोगों को मार दिया | उनमे से एक पकड़ा गया और उसके ऊपर नौटंकी चली कि नहीं | हम सब को सत्य मालूम है कि इसने सैकड़ों लोगों को मारा, इस मामले में निर्णय देना 10 मिनट का काम था, अब उस पर सबूत ढूंढे गए, गवाह ढूंढे गए और वो मक्कार आतंकवादी मजाक बना रहा है, हँस रहा है | भारतीय न्याय व्यवस्था पर हँस रहा है और दुर्भाग्य से ये हमारी न्याय व्यवस्था नहीं है, ये अंग्रेजों की है |

ये हैं भारत के विचित्र कानून, सब पर लिखना संभव नहीं है और ज्यादा बोझिल न हो जाये इसलिए यहीं विराम देता हूँ | इन कानूनों के किताब बाज़ार में उपलब्ध हैं लेकिन मैंने इनके इतिहास को वर्तमान के साथ जोड़ के आपके सामने प्रस्तुत किया है, और इन कानूनों का इतिहास, उन पर हुई चर्चा को ब्रिटेन के संसद House of Commons की library से लिया गया हैं | अब कुछ छोटे-छोटे कानूनों की चर्चा करता हूँ |

  • अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था कि गाय को, बैल को, भैंस को डंडे से मारोगे तो जेल होगी लेकिन उसे गर्दन से काट कर उसका माँस निकल कर बेचोगे तो गोल्ड मेडल मिलेगा क्योंकि आप Export Income बढ़ा रहे हैं | ये कानून अंग्रेजों ने हमारी कृषि व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए लाया था | लेकिन आज भी भारत में हजारों कत्लखाने गायों को काटने के लिए चल रहे हैं |
  • 1935 में अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था उसका नाम था Government of India Act , ये अंग्रेजों ने भारत को 1000 साल गुलाम बनाने के लिए बनाया था और यही कानून हमारे संविधान का आधार बना |
  • 1939 में राशन कार्ड का कानून बनाया गया क्योंकि उसी साल द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हुआ और अंग्रेजों को धन के साथ-साथ भोजन की भी आवश्यकता थी तो उन्होंने भारत से धन भी लिया और अनाज भी लिया और इसी समय राशन कार्ड की शुरुआत की गयी | और जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें सस्ते दाम पर अनाज मिलता था और जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार था | और अंग्रेजों ने उस द्वितीय विश्वयुद्ध में 1732 करोड़ स्टर्लिंग पोंड का कर्ज लिया था भारत से जो आज भी उन्होंने नहीं चुकाया है और ना ही किसी भारतीय सरकार ने उनसे ये मांगने की हिम्मत की पिछले 64 सालों में |
  • अंग्रेजों को यहाँ से चीनी की आपूर्ति होती थी | और भारत के लोग चीनी के बजाय गुड (Jaggary) बनाना पसंद करते थे और गन्ना चीनी मीलों को नहीं देते थे | तो अंग्रेजों ने गन्ना उत्पादक इलाकों में गुड बनाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया और गुड बनाना गैरकानूनी घोषित कर दिया था और वो काननों आज भी इस देश में चल रहा है |
  • पहले गाँव का विकास गाँव के लोगों के जिम्मे होता था और वही लोग इसकी योजना बनाते थे | किसी गाँव की क्या आवश्यकता है, ये उस गाँव के रहने वालों से बेहतर कौन जान सकता है लेकिन गाँव के उस व्यवस्था को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने PWD की स्थापना की | वो PWD आज भी है | NGO भी इसीलिए लाया गया था, ये भी अंग्रेजों ने ही शुरू किया था |
  •  हमारे देश में सीमेंट नहीं होता था बल्कि चुना और दूध को मिला कर जो लेप तैयार होता था उसी से ईंटों को जोड़ा जाता था | अंग्रेजों ने अपने देश का सीमेंट बेचने के लिए 1850 में इस कला को प्रतिबंधित कर दिया और सीमेंट को भारत के बाजार में उतारा | हमारे देश के किलों (Forts) को आप देखते होंगे सब के सब इसी भारतीय विधि से खड़े हुए थे और आज भी कई सौ सालों से खड़े हैं | और सीमेंट से बने घरों की अधिकतम उम्र होती है 100 साल और चुने से बने घरों की न्यूनतम उम्र होती है 500 साल |
  • आप दक्षिण भारत में भव्य मंदिरों की एक परमपरा देखते होंगे, इन मंदिरों को पेरियार जाती के लोग बनाते थे आज की भाषा में वो सब के सब सिविल इंजिनियर थे, बहुत अद्भुत मंदिरों का निर्माण किया उन्होंने | एक अंग्रेज अधिकारी था A.O.Hume, इसी ने 1885 में कांग्रेस की स्थापना की थी, जब ये 1890 में मद्रास प्रेसिडेंसी में अधिकारी बन के गया तो इसने वहां इस जाति को मंदिरों के निर्माण करने से प्रतिबंधित कर दिया, गैरकानूनी घोषित कर दिया | नतीजा क्या हुआ कि वो भव्य मंदिरों की परंपरा तो ख़त्म हुई ही साथ ही साथ वो सभी कारीगर बेरोजगार हो गए और हमारी एक भवन निर्माण कला समाप्त हो गयी | वो कानून आज भी है |
  • उड़ीसा में नहर के माध्यम से खेतों में पानी तब छोड़ा जाता था जब उसकी जरूरत नहीं होती थी और जब जरूरत होती थी यानि गर्मियों में तो उस समय नहरों में पानी नहीं दिया जाता था | आप भारत के पूर्वी इलाकों को देखते होंगे, जिसमे शामिल हैं पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड और उड़ीसा, ये इलाके पिछड़े हुए हैं | कभी आपने सोचा है कि ये इलाके क्यों पिछड़े हुए हैं ? जब कि भारत के 90% Minerals इसी इलाके में होते हैं | ये सब अंग्रेजों की गलत नीतियों की वजह से है और हमारे केंद्र की सरकार ने कभी ये प्रयास नहीं किया कि ऐसा क्यों है |
  • एक कानून के हिसाब से बच्चे को पेट में मारोगे तो Abhortion और पैदा होने पर मारोगे तो हत्या | Abhortion हुआ तो कुछ नहीं लेकिन उसे पैदा होने के बाद मारा तो हत्या का मामला बनेगा | (भारत स्वाभिमान इस भ्रूण हत्या को धारा 302 के तहत लाना चाहता है |)
  • जेल मैनुअल के अनुसार आपको पुरे कपडे उतारने पड़ेंगे आपकी बॉडी मार्क दिखाने के लिए भले ही आपका बॉडी मार्क आपके चेहरे पर क्यों न हो | क्योंकि कपडे उतरवाने के पीछे का मकसद ये था कि आपका (मतलब भारत के लोगों का) कदम-कदम पर अपमान किया जाये, नीचा दिखाया जाये | और जेल के कैदियों को अल्युमिनियम के बर्तन में खाना दिया जाता था ताकि वो जल्दी मरे, वो अल्युमिनियम के बर्तन में खाना देना आज भी जारी हैं हमारे जेलों में, क्योंकि वो अंग्रेजों के इस कानून में है |
  • अंग्रेजों ने सेना के लिए कानून बनाया था | इसके सैनिकों को मूंछ (mustache) रखने पर अतिरिक्त भत्ता मिलता था | सेना में आज भी मूंछ रखने पर उसके देख रेख और maintenance के लिए भत्ता मिलता है |
  • आपमें से बहुतों ने क़ुतुब मीनार के पास एक लोहे का स्तम्भ देखा होगा जो सैकड़ों साल से खुले में है लेकिन आज तक उसमे जंग (Rust) नहीं लगा है | ये स्टील बनाने की जो कला थी वो हमारे देश के आदिवासियों के पास थी जो कि आज के झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और ओड़िसा के इलाकों में रहते थे और वो कच्चा लोहा वहीं के खदानों से निकाल के लाते थे और इस तरीके के उन्नत किस्म का लोहा बनाते थे | आज दुनिया में इतनी उच्च तकनीक होने के बावजूद ऐसा लोहा कोई देश नहीं बना पाया है जिस पर जंग न लगे | तो अंग्रेजों ने इस तकनीक को बर्बाद करने के लिए एक कानून बनाया कि कोई भी आदिवासी खदानों से कच्चे लोहे नहीं निकालेगा, और कोई ऐसा करते हुए पकड़ा गया तो उसे 40 कोड़े पड़ेंगे और अगर फिर भी बच गया तो उसको गोली मार दी जाएगी | इस तरह से ये तकनीक इस देश में अंग्रेजों ने ख़त्म की | और वो कानून आज भी चल रहा है और ध्यान दीजियेगा कि इन्ही इलाकों में माओवाद और नक्सलवाद चल रहा है |

अजीब अजीब कानून है इस देश में | आप ध्यान देंगे कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाया था उससे वे भारत के अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था को ख़त्म करना चाहते थे और ख़त्म भी किया था, मैं कहना ये चाहता हूँ कि अंग्रेजों ने जो भी कानून बनाये थे वो अपने फायदे और हमारे नुकसान के लिए था और हमें आजादी के बाद इसे ख़त्म कर देना चाहिए था लेकिन अंग्रेजों के गुलामी की एक भी निशानी को हमने 64 सालों में मिटाया नहीं | सब को संभाल के और सहेज के रखा है और हर साल अपने को मुर्ख बनाने के लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराते है, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस मनाते हैं | स्वतंत्रता का मतलब होता है अपना तंत्र/अपनी व्यवस्था | ये स्वतंत्रता है या परतंत्रता ? हमने अपना कौन सा तंत्र विकसित किया है इन 64 सालों में ? सब तो अंग्रेजों का ही है | अगर झंडा फहराना ही स्वतंत्रता है तो भीकाजी कामा ने बहुत पहले तिरंगा फहरा दिया था तो क्या हम आजाद हो गए थे | स्वतंत्रता का मतलब है अपनी व्यवस्था जिसमे आप गुलामी की एक एक निशानी को, एक एक व्यवस्था को उखाड़ फेंकते हैं, उन सब चीजों को अपने समाज से हटाते हैं जिससे गुलामी आयी थी, वो तो हम नहीं कर पाए हैं, इसलिए मैं मानता हूँ कि आजादी अधूरी है, इस अधूरी आजादी को पूर्ण आजादी में बदलना है, अपनी व्यवस्था लानी है, स्वराज्य लाना है, इसके लिए आपको और हमको ही आगे आना होगा | गुलामी के कानूनों को ही अगर हमारी संसद आगे बढाती जाये और चलाती जाये इसके लिए संसद नहीं बनाई हमने और इसके लिए चुनाव नहीं होते और करोडो रूपये खर्च नहीं किये जाते | हमने हमारी अपनी व्यवस्थाओं को चलाने के लिए संसद बनाई है | ये जो गुलामी की व्यवस्था आजादी के 64 साल बाद भी चल रही है तो उसे तो ख़त्म करना ही पड़ेगा | आज नहीं तो कल किसी को तो ये सवाल करना ही होगा | भारत की राजनितिक पार्टियाँ ये सवाल नहीं उठाती है, ये मंदिर-मस्जिद के सवाल उठाती हैं और हमको उसी में उलझाये रखती है, इन कानूनों को जो गुलामी की निशानी है उनका सवाल नहीं उठती हैं | समाज को बाँट देने वाले जितने प्रश्न है वो ये उठाती हैं लेकिन गुलामी वाले कानूनों के सवाल नहीं उठाती हैं |

यकीन मानिये हमारे देश की आजादी की लड़ाई के समय जितने भी देशभक्त शहीद हुए, जैसे खुदीराम बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, वीर सावरकर, सुभाष चन्द्र बोस, उधम सिंह आदि आदि, ये तो कुछ नाम हैं ऐसे 7 लाख से ऊपर देशभक्त थे, उन सब की आत्मा आज भी भटक रही होगी, और वो आपस में एक दुसरे से यही सवाल कर रहे होंगे कि हम कितने मुर्ख थे जो ऐसे देश के लिए जान दिए | या तो वो मुर्ख थे या फिर हम महामूर्ख हैं जो इन सब व्यवस्थाओं को सहेज के और संभाल के रखे हुए हैं |

हमारे सारे दुखों का कारण ये व्यवस्था है जब हम इस व्यवस्था को हटायेंगे तभी हमें सुख की प्राप्ति होगी | जिस देश में धर्मग्रन्थ गीता की रचना हुई और जिसमे कर्म करने को कहा गया और कर्म की प्रधानता बताई गयी, उसी देश के लोग भाग्यवादी हो गए | भाग्य के भरोसे बैठने से कुछ नहीं होगा, उठिए, जागिये और इस व्यवस्था को बदलिए क्योंकि दुःख हमें है नेताओं को नहीं |
जय हिंद 

वैश्वीकरण और भारत (Globalisation and Bharat)

मैं स्पष्ट कर दूँ कि मैं अर्थशास्त्र का विद्यार्थी कभी नहीं रहा लेकिन एक आम आदमी के तौर पर इस वैश्वीकरण के बारे में मेरी जो समझ बनी है उसे आपको बताने की कोशिश करूँगा | भाषा आसान रहेगी ताकि किसी को समझने में परेशानी न हो | एक बात और कि इस लेख में जो आंकड़े हैं वो 1991 से लेकर 1997 तक के हैं, ऐसा इसलिए है कि इसी दौर में सबसे ज्यादा हल्ला मचाया गया था इस Globalisation /वैश्वीकरण का  |

1991 के वर्ष से इस देश में Globalisation शुरू हुआ और इसका बहुत शोर भी मचाया गया | भारत से पहले साउथ ईस्ट एशिया में ये उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण (Globalisation, Liberalization, Privatization ) आदि शुरू किया गया था, उसके पहले ये उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण लैटिन अमेरिका और सोवियत संघ में भी शुरू किया गया था | ये उदारीकरण/ वैश्वीकरण का जो पॅकेज या प्रेस्क्रिप्सन है वो अगर कोई देश अपने अंतर्ज्ञान से तैयार करें तो बात समझ में आती है लेकिन ये पॅकेज dictated होता है वर्ल्ड  बैंक और IMF द्वारा | मुझे कभी-कभी हँसी आती है  कि 1991 के पहले हम ग्लोबल नहीं थे और 1991 के बाद हम ग्लोबल हो गए | खैर, ये जो वर्ल्ड बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का प्रेस्क्रिसन होता है वो हर तरह के मरीज (देश) के लिए एक ही होता है | उनके प्रेस्क्रिप्सन में सब मरीजों के लिए समान इलाज होता है, जैसे….

  • पहले वो कहते हैं कि आप अपने मुद्रा का अवमूल्यन कीजिये |
  • उसके बाद कहते हैं कि इम्पोर्ट ड्यूटी ख़त्म कीजिये |
  • उसके बाद कहते हैं कि Social Expenditure कम करते-करते इसको ख़त्म कीजिये, क्योंकि उनका कहना है कि सरकार को Social Expenditure से कोई मतलब नहीं होता है |

उसके बाद विदेशी पूंजी निवेशकों के लिए दरवाजा खोल दिया गया | उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण के कुछ तर्क हैं, जैसे …….

  • पहला तर्क है कि भारत को पूंजी की बहुत जरूरत है और जब तक विदेशी पूंजी निवेश नहीं होगा, FDI (Foreign Direct Investment)  नहीं आएगा तो देश का भला नहीं होगा |
  • इस देश में तकनीक की बहुत कमी है और वो तभी आएगा जब आप अपना दरवाजा विदेशी पूंजी निवेश के लिए खोलेंगे |
  • आपके देश का एक्सपोर्ट कम है, जब तक आप बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नहीं बुलाएँगे तब तक आपका निर्यात नहीं बढेगा |
  • आप उनको खुल कर खेलने की छुट दीजिये, उनपर कोई पाबन्दी मत लगाइए |
  • यहाँ भारत में बहुत बेरोजगारी है, विदेशी कंपनियां आएँगी तो वो यहाँ रोजगार पैदा करेंगी, वगैरह, वगैरह |

अब मैं इस अवधि में पूंजी निवेश के आंकड़ों के ऊपर आता हूँ, 1991 से लेकर जून 1997 तक कितना विदेशी पूंजी निवेश हुआ भारत में ? जब ये प्रश्न किया गया लोकसभा में तो इस प्रश्न के जवाब में लोकसभा में सरकार का कहना था कि हमने जो विभिन्न MoU sign किये हैं इस अवधि में वो 94 हजार करोड़ का है | ये जवाब बहुत भ्रामक था, तो फिर इस प्रश्न को थोडा specific बना के पूछा गया कि Actual inflow कितना है इस अवधि में ? MoU तो आपने sign किये 94 हजार करोड़ के, लेकिन असल पूंजी आयी कितनी है ? तो पता चला कि उन्नीस हजार सात सौ करोड़ का असल निवेश हुआ है और ये डाटा रूपये में हैं न कि डौलर में | और ये मेरा जवाब नहीं है, वित्त मंत्री का लोकसभा में दिया हुआ जवाब है ये | और ये पूंजी आयी कितने सालों में है, तो 1991 से 1997 के बीच में, मतलब छः सालों में | मतलब इतना हल्ला मचाने के बाद आया क्या तो उन्नीस हजार सात सौ करोड़ | यानि प्रति वर्ष लगभग तीन, सवा तीन हजार करोड़ रुपया आया | और जो निवेश हुआ उसमे ज्यादा कैपिटल मार्केट में हुआ निवेश था, ये Financial capital से किसी देश में उत्पादकता नहीं बढ़ता, Financial capital से किसी देश में कारखाने नहीं खुलते, Financial capital से किसी देश में उत्पादन नहीं बढ़ता, Financial capital से कोई रोजगार पैदा नहीं होता, Financial capital से कभी अर्थव्यवस्था में कोई असर नहीं पड़ता | Financial capital तो आता है शेयर मार्केट में शेयरों का दाम बढ़ाने के लिए | और शेयर मार्केट में जो निवेश होता है वो स्थाई नहीं होता है, आज वो भारत में है, कल उसे पाकिस्तान में फायदा दिखेगा तो वहां चला जायेगा, परसों सिंगापूर चला जायेगा |

और इसी दौरान हमारे देश के लोगों का बचत कितना था तो वित्त मंत्री का ही कहना था कि हमारे GDP का 24% बचत है भारत के लोगों के द्वारा | मतलब, लगभग 2 लाख करोड़ रुपया बचत था हमारा प्रतिवर्ष जब हमारी GDP 8 लाख करोड़ रूपये की थी |  जिस देश की नेट सेविंग इतनी ज्यादा हो उस देश को विदेशी पूंजी निवेश की जरूरत क्या है ? मतलब हम हर साल 2 लाख करोड़ रूपये बचत करते थे उस अवधि में घरेलु बचत के रूप में, और छः साल में आया मात्र 20 हजार करोड़ रुपया या हर साल तीन, सवा तीन हजार करोड़ रूपये और ढोल पीट-पीट कर हल्ला हो रहा था कि देश में उदारीकरण हो रहा है, वैश्वीकरण हो रहा है | किसको बेवकूफ बना रहे हैं आप |

विदेशी पूँजी आती है तो वो आपके फायदे के लिए नहीं आती है वो उनके फायदे के लिए आती है और दुनिया में कोई देश ऐसा नहीं है जो आपके फायदे के लिए अपनी पूँजी आपके देश में लगाये | एक तो सच्चाई ये है कि 1980 से यूरोपियन और अमरीकी बाजार में भयंकर मंदी है और जितना मैं अर्थशास्त्र जानता हूँ उसके अनुसार उनको पूँजी की जरूरत है, अपनी मंदी दूर करने के लिए ना कि वो यहाँ पूँजी ले कर आयेंगे | ये छोटी सी बात समझ में आनी चाहिए और अमेरिका और यूरोप वाले इतने दयावान और साधू-महात्मा नहीं हो गए कि अपना घाटा सह कर भारत का भला करने आयेंगे | इतने भले वो ना थे और ना भविष्य में होंगे | और दुसरे हिस्से की बात कीजिये, मतलब 1991 -1997 तक विदेशी पूंजी आयी 20 हजार करोड़ लेकिन इसी अवधि में हमारे यहाँ से कितनी पूंजी चली गयी विदेश ? तो पता चला कि इसी अवधि में हमारे यहाँ से 34 हजार करोड़ रूपये विदेश चले गए | 20 हजार करोड़ रुपया आया और 34 हजार करोड़ रुपया चला गया तो ये बताइए कि कौन किसको पूंजी दे रहा है |

दुनिया में एक South South Commission है जो गुट निरपेक्ष देशों (NAM) के लिए बनाया गया था 1986 में | और 1986 से 1989 तक डॉक्टर मनमोहन सिंह इस South South Commission के सेक्रेटरी जेनेरल थे | उनकी वेबसाइट पर आज भी मनमोहन सिंह को ही सेक्रेटरी जेनरल बताया जाता है, और भारत के वित्त मंत्री बनने के पहले भारत के तीन-तीन सरकारों के वित्तीय सलाहकार रह चुके थे, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रह चुके थे, दुनिया में उनकी एक अर्थशास्त्री के रूप में खासी इज्ज़त है |  जब डॉक्टर मनमोहन सिंह इस South South Commission के सेक्रेटरी जेनरल थे तो इन्होने एक केस स्टडी किया था, उस में उन्होंने दुनिया के 17 गरीब देशों के आंकड़े दिए थे जिसमे भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, म्यांमार, इंडोनेशिया वगैरह शामिल थे | ये अध्ययन इस विषय पर था कि 1986 से 1989 के बीच में इन गरीब देशों में अमीर देशों से कितनी पूंजी आयी है और इन गरीब देशों से अमीर देशों में कितनी पूंजी चली गयी है, तो उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इन 17 देशों में 1986 से 1989 तक 215 Billion Dollars की पूंजी आयी जिसमे FDI ,Foreign Loan , Foreign Assistance और Foreign Aid शामिल है और जो चली गयी वो राशि है 345 Billion Dollars | अब जो आदमी एक अर्थशास्त्री के रूप में अपने केस स्टडी में ये कह रहा है कि विदेशों से पूंजी आती नहीं बल्कि पूंजी यहाँ से चली जाती है और जब इस देश का वित्त मंत्री बनता है तो 180 डिग्री पर घूम के उलटी बात करता है, ये समझ में नहीं आता | ऐसा क्यों हुआ, इसको समझिये ……

मई 1991 में फ्रांस के एक अख़बार La Monde में ये खबर छपी थी कि “हमारे विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि भारत में जो भी सरकार बने मनमोहन सिंह भारत के अगले वित्त मंत्री होंगे” | यहाँ मैं ये स्पष्ट कर दूँ कि उस समय हमारे देश में चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी चुनाव संपन्न नहीं हुए थे और राजीव गाँधी जिन्दा थे | ये मनमोहन सिंह, और मोंटेक सिंह अहलुवालिया वर्ल्ड बैंक के बैठाये हुए आदमी थे और अब प्रधानमंत्री कैसे बने हैं आप समझ सकते हैं | आप लोगों को याद होगा कि एक बार मनमोहन सिंह वित्त मंत्री के पोस्ट से इस्तीफा दिए थे लेकिन वो इस्तीफा वर्ल्ड बैंक के दबाव में मंजूर नहीं किया गया था | वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह मात्र एक रुपया और पच्चीस पैसा टोकन मनी के तौर पर लेते थे | अब कौन वित्त मंत्री बनता है, कौन प्रधान मंत्री बनता है इससे मतलब नहीं है, लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि हमारी राजनैतिक संप्रुभता को क्या हो गया है कि अमेरिका, यूरोप और वर्ल्ड बैंक तय कर रहा है कि वित्त मंत्री कौन होगा, प्रधानमंत्री कौन होगा | और जब वर्ल्ड बैंक या अमेरिका अपना आदमी आपके यहाँ बैठायेगा तो काम भी अपने लिए ही करवाएगा और वही मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलुवालिया और उनके बाद चिदंबरम ने किया है | FDI, Foreign Loan, Foreign Assistance और Foreign Aid का खूब हल्ला मचाया गया लेकिन हुआ क्या ? भारत और गरीब हो गया | उस समय मनमोहन सिंह और उनके साथ-साथ भारत के अखबार चिल्ला चिल्ला कर इंडोनेशिया, थाईलैंड  और दक्षिण कोरिया को Asian Tigers कहते थे और जब इंडोनेशिया, थाईलैंड  और दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था धराशायी हो गयी तो इनकी बोलती बंद हो गयी | और अभी वालमार्ट को लाने का निर्णय कर लिया है तो उसे भी लायेंगे ही, अभी वो रुक गए है तो सिर्फ इसलिए कि पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले है | और इसीलिए ये लोग महंगाई बढ़ने पर इनके दिल में दर्द नहीं होता बल्कि खुश होते हैं, मोंटेक सिंह, मनमोहन सिंह, प्रणव मुख़र्जी और सारे मंत्रिमंडल के बयान पढ़ लीजियेगा |

फिर से मैं उसी वैश्वीकरण पर आता हूँ ……..और इसी दौरान जब इस देश में वैश्वीकरण के नाम पर उन्नीस हजार सात सौ करोड़ रूपये का निवेश हुआ, हमारे देश में शेयर मार्केट के माध्यम से 70 हजार करोड़ रूपये की खुले-आम डकैती हो गयी और हमने FIR तक दर्ज नहीं कराई | शेयर मार्केट का वो घोटाला हर्षद मेहता स्कैम के नाम से हम सब भारतीय जाने हैं, लेकिन ये जान लीजिये कि हर्षद मेहता तो महज एक मोहरा था, असल खिलाडी तो अमेरिका का सिटी बैंक था और ये मैं नहीं कह रहा, रामनिवास मिर्धा की अध्यक्षता में गठित Joint Parliamentary Committee का ये कहना था, और रामनिवास मिर्धा कमिटी का कहना था कि जितनी जल्दी हो सके इस देश से सिटी बैंक का बोरिया-बिस्तर समेटिये और इसको भगाइए, लेकिन भारत सरकार की हिम्मत नहीं हुई कि सिटी बैंक पर कोई कार्यवाही करे और सिटी बैंक को छोड़ दिया गया और हमारा 70 हजार करोड़ रुपया डूब गया |

आपने ध्यान दिया होगा या आप अगर याद करेंगे तो पाएंगे कि उस globalization के समय (1991 -1997 ) भारत में कई बदलाव हुए थे जैसे ….

  • शेयर बाज़ार बहुत तेजी से बढ़ा और बहुत से लोगों ने उस दौर में शेयर में पैसा लगाया था और कुछ लोगों ने पैसा भी बनाया लेकिन ज्यादा मध्य वर्ग के लोग बर्बाद हुए | और market manipulation और media management कैसे किया जाता है ये थोडा सा दिमाग लगायेंगे तो आपको पता लग जायेगा |
  • Satellite Television Channel आना शुरू हुए, हमारे मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि प्रचार दिखा कर दिमाग में बकवास भरने के लिए और आपको याद होगा कि दूरदर्शन के दिनों में हम बिना ब्रेक के सीरियल और फिल्म देखा करते थे | लुभावने प्रचार दिखा-दिखा कर भारत के लोगों को प्रेरित करने की कोशिश की गयी ताकि हम बचत पर नहीं खरीदारी पर ध्यान दे और ज्यादा से ज्यादा पैसा बाज़ार में आये और वो पैसा विदेशों में जाये |
  • बैंकों ने बचत पर इंटेरेस्ट रेट कम कर दिया ताकि लोग बैंक में पैसा जमा नहीं कर के खरीदारी करे, पैसा बाज़ार में इन्वेस्ट करें | क़र्ज़ लेने पर इंटेरेस्ट रेट बढ़ा दिया गया |
  • इसी दौर में कई city developer और builder पैदा हुए जो घर और फ्लैट का सपना दिखा कर लोगों का पैसा बाहर निकालना शुरू किये और अगर पैसा नहीं है तो बैंकों ने होम लोन का सपना दिखाना शुरू किया |
  • बैंकों के मार्फ़त हाऊसिंग लोन और कार लोन को बढ़ावा दिया गया, ताकि लोग कर्ज लेकर गाड़ी और घर खरीदें |

इन सब के पीछे एक ही मकसद था कि पैसा ज्यादा से ज्यादा बाहर निकले, बचत की भावना कम हो लेकिन भारतीय संस्कृति ऐसी है जहाँ लोग निवेश भी करते हैं तो बचत करने के बाद | अमेरिका और भारत में ये मूल अंतर है जो समझना होगा | हमारे देश में ऐसे ही एक महात्मा हुए थे जिनका नाम था “चारवाक” और उनका कहना था यावत् जीवेत सुखं जीवेत ऋणं कृत्वा घृतं पीबेत, ………अर्थात जब तक जियो सुख से जियो और जरूरत पड़े तो कर्ज लेकर भी घी पियो मतलब मौज मस्ती करो…….. और ये भारत का उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण भी हमें यही सिखाता है |

भारत के बुद्धिजीवियों द्वारा विदेशी निवेश को लेकर भारत में भ्रम फैलाया जाता है, तो मैं आपको बता दूँ कि विदेशी कम्पनियाँ आज भी निवेश नहीं करती है, क्योंकि उनके पास निवेश करने के लिए कुछ भी नहीं है | यूरोप और अमेरिका के बाजारों में 1980 से मंदी चल रही है और ये मंदी इतना जबरदस्त है कि खुद उनको अपनी मंदी दूर करने के लिए पूँजी की जरूरत है | जब कोई कंपनी निवेश करती है तो उनका जो Initial paid -up capital होता है उसका सिर्फ 5% ही वो लेकर आती हैं और बाकी 95% पूँजी वो यहीं के बाजार से उठाती हैं, बैंक लोन के रूप में और अपने शेयर बाजार में उतार कर | इसलिए उनके निवेश पर भरोसा करना दुनिया की सबसे बड़ी बेवकूफी है | एक बात को दिमाग में बैठा लीजिये कि कोई भी देश, विदेशी पूँजी निवेश से विकास नहीं करता चाहे वो जापान हो या चीन | जापान और चीन ने भी अपने घरेलु बचत बढ़ाये थे, तब वो कुछ कर सके | हमारी सालाना घरेलु बचत जब 2 लाख करोड़ की है तो हमें विदेशी पूँजी निवेश की जरूरत कहाँ है ? और उन्होंने 6 -7 सालों में जो 20 हजार करोड़ का निवेश किया उसके बदले में हमने कितना गवाँ दिया इसकी चर्चा ये बुद्धिजीवी कभी नहीं करते |

बुद्धिजीवियों का ये भी तर्क है कि वैश्वीकरण से हमारा निर्यात बढ़ा है और आयात कम हुआ है | उसे भी समझ लीजिये, ऐसा इसलिए दिखता है क्यों कि हमारे रूपये का अवमूल्यन बहुत हो गया है, जब वैश्वीकरण इस देश में शुरू हुआ तो हमारे 17 -18 रूपये में एक डौलर मिलता था और आज 2011 के अंत में ये लगभग 55 रूपये हो गया है | इसको उदाहरण से समझ लीजिये, अभी कुछ महीने पहले एक डौलर की कीमत 44 रूपये थी तो 11 रूपये प्रतिकिलो के हिसाब से हमने 4 किलो प्याज निर्यात किया तो हमें एक डौलर मिला, अब उसी एक डौलर को पाने के लिए आज हमें 11 रूपये प्रति किलो के हिसाब से 5 किलो प्याज देना होगा, जब एक डौलर की कीमत 55 रूपये हो गयी है | समझ रहे हैं आप ? मतलब हमारा volume of export तो बढ़ा लेकिन आया एक ही डौलर, तो नुकसान किसका हो रहा है ? हमारी निर्यात से होने वाली आय ख़त्म होती जा रही है और जितना निर्यात नहीं बढ़ रहा है उससे ज्यादा आयात बढ़ रहा है, नहीं तो हमारा व्यापार घाटा (trade deficit ) इतना क्यों है ? 1991 के बजट में भारत सरकार का 3000 करोड़ का व्यापार घाटा था और 1997 में ये 18000 करोड़ का हो गया | अगर हमारा निर्यात बढ़ रहा है तो फिर ये व्यापार घाटा क्यों है ? विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी कितनी है ये भी जान लीजिये, आंकड़े तो मेरे पास हर वर्ष के हैं,  लेकिन मैं उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण के दौर की ही बात करूँगा, 1990 में हमारी विश्व व्यापार में हिस्सेदारी थी 0.05%, 1991 में ये हो गया 0.045%, 1992 में ये हो गया 0.042%, 1993 में ये हो गया 0.041%, 1994 में ये हो गया 0.038% और ये घटते-घटते आज 2011 में लगभग आधा प्रतिशत रह गया है | हमारी कितनी बड़ी हिस्सेदारी है विश्व व्यापार में कि हम निर्यात के पीछे पड़े हैं ?

हमारे यहाँ Export Oriented Growth का मंत्र बुद्धिजीवियों द्वारा जपा जाता है, जब कि हमारे जैसे विकासशील देशों को Export Oriented Growth के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहिए | हमको development oriented growth पर ध्यान देना चाहिए, Growth oriented Export करना होगा, नीतियाँ बदलनी होगी हमें | अभी क्या है कि हम export oriented growth में फंसे हैं | मैं कहना ये चाहता हूँ कि growth oriented export कीजिये, तो इसके लिए पहले उत्पादन बढाइये, मतलब उत्पादन को भारत में इतना surplus कीजिये कि आपके पास निर्यात करने के लिए अलग से बचे, हम तो अपने trade को ख़त्म करते जा रहे हैं, market को ख़त्म करते जा रहे हैं, मतलब trading activity धीरे-धीरे ख़त्म होती जा रही है | आपके पास बचा क्या है निर्यात करने के लिए जो आप निर्यात करेंगे ?

और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बारे में भ्रम फैलाया जाता है कि उनके आने से बाजार में प्रतियोगिता होती है | सच्चाई ये है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कभी प्रतियोगिता नहीं करती हैं बल्कि प्रतियोगियों को उखाड़ फेंकती हैं | पेप्सी और कोका कोला को देखिये, इनके आने के पहले भारत में थम्स-अप, कैम्पा कोला, गोल्ड स्पोट, लिम्का, आदि ब्रांड थे लेकिन पेप्सी और कोका कोला के आने के बाद या तो इन्होने इनका अपने में विलय कर लिया या ये बंद हो गयी | ऐसे अलग-अलग क्षेत्रों में कई उदहारण हैं | तो ये भ्रम दिमाग से निकालना होगा, उनके आने से competition नहीं monopoly होती है |

ये उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण हो रहा है तो किसको ध्यान में रखकर तो जवाब है बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ध्यान में रखकर, देश की आबादी के 70 प्रतिशत किसानों को ध्यान में रखकर ये होता तो समझ में भी आता | भारत का किसान अपना गेंहू और कपास लेकर एक प्रदेश से दुसरे प्रदेश में बेंच नहीं सकता लेकिन अमेरिका की कारगिल कंपनी उसी गेंहू को भारत के किसी भी गाँव में बेच देगी क्योंकि उसे अधिकार मिला हुआ है | पहले हमें अपने देश के अन्दर Liberalization करना होगा | पहले हमें घरेलु या आतंरिक उदारीकरण (Internal Liberalization) करना होगा और उसको 10-15 साल चलाना होगा | यही नीति जापान ने चलाई, यही नीति चीन ने चलाई, यही नीति अमेरिका ने चलाया, यही नीति फ़्रांस ने चलाया | मैं कहना ये चाहता हूँ कि अच्छी बातें तो हम सीखते नहीं और सीखेंगे क्या तो जिसे दुनिया में हमने फेल होते देखा, भारत में जो उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण की नीति अपनाई गयी है वही नीति दक्षिण कोरिया ने अपनाया था, रूस ने अपनाया था, थाईलैंड ने अपनाया था , ब्राजील ने अपनाया था और सब के सब डूबे थे |

भारत में एक प्रधानमंत्री हुए मोरारजी देसाई उनकी सरकार ने भारत में जितने भी Zero Technology के क्षेत्र में MNC (Multi National Company) काम कर रहे थे उनमे से अधिकांश को भारत से भगाया था | ये  Zero Technology वाले उत्पादों की संख्या लगभग 700 थी | और आप ध्यान दीजियेगा कि ये जितने भी MNC आये हैं वो उन्हीं क्षेत्रों में निवेश कर रहे हैं जिस क्षेत्र को मोरारजी देसाई की सरकार ने प्रतिबंधित किया था | मतलब जिन कंपनियों को मोरारजी देसाई की सरकार ने भगाया था सब की सब वापस आ गयी हैं | दूसरी बात, जितने भी MNC हैं वो कभी भी हमारे देश में आ के कोई technology के क्षेत्र में निवेश नहीं करते हैं | क्या कभी किसी कंपनी ने आ के यहाँ satellite बनाया या किसी ने मिसाइल बनाने में मदद की ? Technology इस देश में बाहर से जो भी आती है वो outdated /redundant होती है | 1991 में उदारीकरण (जिसे मैं उधारीकरण कहता हूँ ) के बाद जितने भी MoU (Memorandum of Understanding) sign हुए इस देश में सब के सब zero technology के क्षेत्र में हुए हैं | आप देखिएगा कि ये क्या बनाती हैं और बेचती हैं, ये बनाती है – साबुन,वाशिंग पावडर, आलू का चिप्स, टमाटर की चटनी, आम का आचार, बोतल का पानी, चोकलेट, बिस्कुट, पावरोटी, आदि, आदि | एक भी उदहारण कोई दे दे जब इन विदेशी कंपनियों ने तकनीक के क्षेत्र में निवेश किया हो | भारत ने अपने स्वदेशी तकनीक से सुपर कंप्यूटर बनाया, भारत ने अपने बूते मिसाइल बनाया, भारत ने अपने दम पर क्रायोजनिक इंजन बनाया, एक भी कंपनी ने भारत को तकनीक तो दूर सहयोग तक नहीं दिया | मारुती में जो सुजुकी का इंजन लगता है वो इंजन यहाँ नहीं जापान में बनता है, हीरो होंडा में जो इंजन लगता था वो जापान से बन के आता था , मतलब ये है कि अपने तकनीक को ये कम्पनियाँ शेयर नहीं करती वो कोई तकनीक जानते हैं तो आपको देते नहीं हैं और जब वही तकनीक उनके लिए पुरानी या बेकार हो जाती है तो वो उसे भारत में ला के dump कर देती हैं और हम खुश हो जाते हैं कि नयी तकनीक आयी है |

आप दुनिया में जितने भी विकसित देश देखेंगे वो सब स्वदेशी के बल पर आगे आये हैं | भारत को भी खड़ा करना है तो स्वदेशी के माध्यम से ही खड़ा किया जा सकता है | अगर आप विदेशियों पर निर्भर हैं या परावलम्बी है तो आप दुनिया में कभी कोई ताकत हासिल नहीं कर सकते | विदेशी वैसाखी पर, परावलम्बी होकर, विदेशी चिंतन से, विदेशी अर्थव्यवस्था की नीतियों की नक़ल से कोई देश कभी आगे नहीं आता, हर देश को आगे आने के लिए स्वदेशी का चिंतन, स्वदेशी का मनन और स्वदेशी का अनुपालन करना पड़ता है |

15 अगस्त 1947 को भारत ऐसा नहीं था, भारत के ऊपर एक रूपये का विदेशी कर्ज नहीं था, भारत का व्यापार घाटा एक रूपये का नहीं था | एक डौलर की कीमत भारत के एक रुपया के बराबर थी, एक पोंड की कीमत एक रुपया के बराबर थी और एक जर्मन मार्क की कीमत भी एक रुपया थी, भारत आजाद हुआ तो भारत को आगे की तरफ बढ़ना चाहिए था लेकिन हुआ उल्टा | हमारे नीति निर्धारकों ने भारत को पश्चिम के रास्ते आगे बढ़ाने का प्रयास किया जो कि किसी भी दृष्टिकोण से बुद्धिमत्ता नहीं कही जा सकती है | आज का भारत कर्ज में डूबा हुआ भारत है, भारत की हर प्राकृतिक चीज विदेशियों के हाथ में चली गयी है, अब तो भारत के लोग भी भारतीय नहीं रहे, जब कोई राष्ट्र की बात करता है तो लोग उसे ही गालिया देने लगते हैं  | मैं भारत में पैदा हुआ और भारत की संस्कृति में पला-बढ़ा, और हमारे भारत की संस्कृति में मरने वाले के आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है लेकिन मैं भगवान से ये प्रार्थना करता हूँ कि इन 64 सालों में जिन-जिन शासकों ने भारत को इस दुष्चक्र में पहुँचाया है, उनकी आत्मा को कभी शांति प्रदान ना करें |

जय हिंद

सन 1757 की पलासी की लड़ाई – क्या हम जाहिल थे?

जैसा कि आप सब जानते हैं कि अंग्रेजों को भारत में व्यापार करने का अधिकार जहाँगीर ने 1618 में दिया था और 1618 से लेकर 1750 तक भारत के अधिकांश रजवाड़ों को अंग्रेजों ने छल से कब्जे में ले लिया था | बंगाल उनसे उस समय तक अछूता था | और उस समय बंगाल का नवाब था सिराजुदौला | बहुत ही अच्छा शासक था, बहुत संस्कारवान था | मतलब अच्छे शासक के सभी गुण उसमे मौजूद थे | अंग्रेजों का जो फ़ॉर्मूला था उस आधार पर वो उसके पास भी गए व्यापार की अनुमति मांगने के लिए गए लेकिन सिराजुदौला ने कभी भी उनको ये इज़ाज़त नहीं दी क्यों कि उसके नाना ने उसको ये बताया था कि सब पर भरोसा करना लेकिन गोरों पर कभी नहीं और ये बातें उसके दिमाग में हमेशा रहीं इसलिए उसने अंग्रेजों को बंगाल में व्यापार की इज़ाज़त कभी नहीं दी | इसके लिए अंग्रेजों ने कई बार बंगाल पर हमला किया लेकिन हमेशा हारे | मैं यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि अंग्रेजों ने कभी भी युद्ध करके भारत में किसी राज्य को नहीं जीता था, वो हमेशा छल और साजिस से ये काम करते थे | उस समय का बंगाल जो था वो बहुत बड़ा राज्य था उसमे शामिल था आज का प. बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, बंग्लादेश, पूर्वोत्तर के सातों राज्य और म्यांमार (बर्मा) | हम जो इतिहास पढ़ते हैं उसमे बताया जाता है कि पलासी के युद्ध में अंग्रेजों और सिराजुदौला के बीच भयंकर लड़ाई हुई और अंग्रेजों ने सिराजुदौला को हराया | लेकिन सच्चाई कुछ और है, मन में हमेशा ये सवाल रहा कि आखिर सिराजुदौला जैसा शासक हार कैसे गया ? और ये भी सवाल मन में था कि आखिर अंग्रेजों के पास कितने सिपाही थे ? और सिराजुदौला के पास कितने सिपाही थे ? भारत में पलासी के युद्ध के ऊपर जितनी भी किताबें हैं उनमे से किसी में भी इस संख्या के बारे में जानकारी नहीं है | इस युद्ध की सारी जानकारी उपलब्ध है लन्दन के इंडिया हाउस लाइब्ररी में | बहुत बड़ी लाइब्ररी है और वहां भारत की गुलामी के समय के 20 हज़ार दस्तावेज उपलब्ध है | वहां उपलब्ध दस्तावेज के हिसाब से अंग्रेजों के पास पलासी के युद्ध के समय मात्र 300 -350 सिपाही थे और सिराजुदौला के पास 18 हजार सिपाही | किसी भी साधारण आदमी से आप ये प्रश्न कीजियेगा कि एक तरफ 300 -350 सिपाही और दूसरी तरफ 18 हजार सिपाही तो युद्ध कौन जीतेगा ? तो जवाब मिलेगा की 18 हजार वाला लेकिन पलासी के युद्ध में 300 -350 सिपाही वाले अंग्रेज जीत गए और 18 हजार सिपाही वाला सिराजुदौला हार गया | और अंग्रेजों के House of Commons में ये कहा जाता था कि अंग्रेजों के 5 सिपाही = भारत का एक सिपाही | तो सवाल ये उठता है कि इतने मज़बूत 18 हजार सिपाही उन कमजोर 300 -350 सिपाहियों से हार कैसे गए ?

अंग्रेजी सेना का सेनापति था रोबर्ट क्लाइव और सिराजुदौला का सेनापति था मीरजाफर | रोबर्ट क्लाइव ये जानता था कि आमने सामने का युद्ध हुआ तो एक घंटा भी नहीं लगेगा और हम युद्ध हार जायेंगे और क्लाइव ने कई बार चिठ्ठी लिख के ब्रिटिश पार्लियामेंट को ये बताया भी था | इन दस्तावेजों में क्लाइव की दो चिठियाँ भी हैं | जिसमे उसने ये प्रार्थना की है कि अगर पलासी का युद्ध जितना है तो मुझे और सिपाही दिए जाएँ | उसके जवाब में ब्रिटिश पार्लियामेंट के तरफ से ये चिठ्ठी भेजी गयी थी कि हम अभी (1757 में) नेपोलियन बोनापार्ट के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं और पलासी से ज्यादा महत्वपूर्ण हमारे लिए ये युद्ध है और इस से ज्यादा सिपाही हम तुम्हे नहीं दे सकते | तुम्हारे पास जो 300 -350 सिपाही हैं उन्ही के साथ युद्ध करो | रोबर्ट क्लाइव ने तब अपने दो जासूस लगाये और उनसे कहा कि जा के पता लगाओ कि सिराजुदौला के फ़ौज में कोई ऐसा आदमी है जिसे हम रिश्वत दे, लालच दे और रिश्वत के लालच में अपने देश से गद्दारी कर सके | उसके जासूसों ने ये पता लगा के बताया की हाँ उसकी सेना में एक आदमी ऐसा है जो रिश्वत के नाम पर बंगाल को बेच सकता है और अगर आप उसे कुर्सी का लालच दे तो वो बंगाल के सात पुश्तों को भी बेच सकता है | और वो आदमी था मीरजाफर, और मीरजाफर ऐसा आदमी था जो दिन रात एक ही सपना देखता था कि वो कब बंगाल का नवाब बनेगा | ये बातें रोबर्ट क्लाइव को पता चली तो उसने मीरजाफर को एक पत्र लिखा | ये पत्र भी उस दस्तावेज में उपलब्ध है | उसने उस पत्र में दो ही बाते लिखी | पहला ये कि “अगर तुम हमारे साथ दोस्ती करो और ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ समझौता करो तो हम युद्ध जीतने के बाद तुम्हे बंगाल का नवाब बना देंगे” और दूसरी बात कि “जब तुम बंगाल के नवाब हो जाओगे तो बंगाल की सारी सम्पति तुम्हारी हो जाएगी और उस सम्पति में से 5% हमें दे देना और बाकि तुम जितना लूटना चाहो लुटते रहना” | मीरजाफर तो दिन रात यही सपना देखा करता था तो उसने तुरत रोबर्ट क्लाइव को एक पत्र लिखा कि “मुझे आपकी दोनों शर्तें मंज़ूर हैं, बताइए करना क्या है ?” तो क्लाइव ने इस सम्बन्ध में अंतिम पत्र लिखा और कहा कि “तुमको बस इतना करना है कि युद्ध जिस दिन शुरू होगा उस दिन तुम अपने 18 हजार सिपाहियों से कहना कि वो मेरे सामने समर्पण कर दे | तो मीरजाफर ने कहा कि ये हो जायेगा लेकिन आप अपने जबान पर कायम रहिएगा | क्लाइव का जवाब था कि हम बिलकुल अपनी जबान पर कायम रहेंगे |

और तथाकथित युद्ध शुरू हुआ 23 जून 1757 को और बंगाल के 18 हजार सिपाहियों ने सेनापति मीरजाफर के कहने पर 40 मिनट के अन्दर समर्पण कर दिया और रोबर्ट क्लाइव के 300 -350 सिपाहियों ने बंगाल के 18 हजार सिपाहियों को बंदी बना लिया और कलकत्ता के फोर्ट विलियम में बंद कर दिया और 10 दिनों तक सबों को भूखा प्यासा रखा और ग्यारहवें दिन सब की हत्या करवा दी | और हत्या करवाने में मीरजाफर क्लाइव के साथ शामिल था | उसके बाद क्लाइव ने मीरजाफर के साथ मिल कर मुर्शिदाबाद में सिराजुदौला की हत्या करवाई | उस समय मुर्शिदाबाद बंगाल की राजधानी हुआ करती थी | और फिर वादे के अनुसार क्लाइव ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया और बाद में क्लाइव ने अपने हाथों से मीरजाफर को छुरा घोंप कर मार दिया | इसके बाद रोबर्ट क्लाइव ने कलकत्ता को जमकर लुटा और 900 पानी के जहाज भरकर सोना, चांदी, हीरा, जवाहरात लन्दन ले गया | वहां के संसद में जब क्लाइव गया तो वहां के प्रधानमंत्री ने उस से पूछा कि “ये भारत से लुट के तुम ले के आये हो ?” तो क्लाइव ने कहा कि “नहीं इसे मैं भारत के एक शहर कलकत्ता से लुट के लाया हूँ” | फिर उससे पूछा गया कि “कितना होगा ये ?” तो क्लाइव ने कहा “मैंने इसकी गणना तो नहीं की है लेकिन Roughly 1000 Million स्टर्लिंग पौंड का ये होगा” | (1 Million = 10 लाख) | उस समय (1757) के स्टर्लिंग पौंड के कीमत में 300 गुना कमी आयी है और आज के हिसाब से उसका मूल्यांकन किया जाये तो ये होगा 1000X1000000X300X80 | Calculator तो फेल हो जायेगा | रोबर्ट क्लाइव ऐसा करने वाला अकेला नहीं था, ऐसे 84 अधिकारी भारत आये और सब ने भारत को बेहिसाब लुटा | वारेन हेस्टिंग्स, कर्जन,लिलिथ्गो, डिकेंस, बेंटिक, कार्नवालिस जैसे लोग आते रहे और भारत को लुटते रहे | तो ये थी पलासी के युद्ध की असली कहानी |

मीरजाफर ने अपनी हार और क्लाइव की जीत के बाद कहा कि “अंग्रेजो आओ तुम्हारा स्वागत है इस देश में, तुम्हे जितना लुटा है लूटो, बस मुझे कुछ पैसा दे दो और कुर्सी दे दो” | 1757 में तो सिर्फ एक मीरजाफर था जिसे कुर्सी और पैसे का लालच था अभी तो हजारों मीरजाफर इस देश में पैदा हो गए हैं जो वही भाषा बोल रहे हैं | जो वैसे ही देश को गुलाम बनाने में लगे हुए हैं जैसे मीरजाफर ने इस देश को गुलाम बनाया था | सब पार्टी के नेता एक ही सोच रखते हैं चाहे वो ABC पार्टी के हों या XYZ पार्टी के | आप किसी को अच्छा मत समझिएगा क्यों कि इन 64 सालों में सब ने चाहे वो राष्ट्रीय पार्टी हो या प्रादेशिक पार्टी, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सत्ता का स्वाद तो सबो ने चखा ही है |

आपने इसे धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए धन्यवाद् और अच्छा लगे तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये (अंग्रेजी छोड़ कर), अपने अपने ब्लॉग पर डालिए, मेरा नाम हटाइए अपना नाम डालिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है | मतलब बस इतना ही है की ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये |