श्री रामानंदाचार्य


 

हमारे जितनी भी आचार्य हुए हैं वे सब दक्षिण भारत के थे ,केवल श्री रामानंदाचार्य जी को छोड़कर | आपका जन्म विक्रम सम्वत् १३५६ में माघ मॉस की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को प्रयाग में कान्यकुब्ज वंश में हुआ था | माता का नाम सुशीला और पिता का नाम पुण्यसदन था | ३ वर्ष तक इनके बाल्यावस्था के साथी थे -१-कर्णिका ,२-कपि ,३-कीर ,४-काक ,

अन्नप्रासन संस्कार किसी कारणवश टाल दिया गया था जो चौथे वर्ष संपन्न हुआ | उस समय इन्होने विविध व्यंजनों में केवल खीर को ही चुना ,और यही इनका जीवन भर एकमात्र आहार थी |–प्रसंगपारिजात-५/३६, अपने पिता की पूजा में रखे दक्षिणावर्ती शंख को इन्होने बजा दिया तो स्वप्न में वेणीमाधाव भगवान् की आज्ञा से उन्होंने इन्हें वह शंख दे दिया ,जो जीवन भर इनके साथ रहा |–प्र.पा..—५/३९, इनकी श्रवण एवं धारणाशक्ति इतनी प्रबल थी कि छठें वर्ष की अवस्था से अपने पिता द्वारा ग्रंथों का पारायण सुनकर मात्र २ ही वर्ष में वाल्मीकि रामायण , भागवत और मनुस्मृति इन्हें कंठस्थ हो गयी |उस समय ये ८ वर्ष के हो गए थे |–प्र.पारि.६/४४, आठवें वर्ष माघ शुक्ल पक्ष द्वादशी को इनका उपनयन संस्कार हुआ | पलाश दण्ड लेकर ये काशी पढने चल दिए और वहां निवास करने वाले अपने मामा उद्भट नैयायिक ओंकारेश्वर त्रिवेदी से न्याय तथा पिता से व्याकरण की शिक्षा ग्रहण करने लगे | प्र.पारि.-६/४६,

विद्या से प्रसिद्धि—

ये कुमारावस्था में ही सकल शास्त्रों के सम्यक ज्ञाता हो गए |इनकी ख्याति सुनकर इनके बुद्धिवैभव की परीक्षा के लिए काली खोह की एक विदुषी वृद्धा ने आकर इनसे ३ प्रश्न संस्कृत में किया | १- वह कौन नारी है जो पुरुष को छिप छिप कर भोग प्रस्तुत करती रहती है ,पर जब पुरुष उसे एक बार भी देख लेता है तो वह सदा के लिए लुप्त हो जाती है |कुमार ने उत्तर दिया –अजा (माया)| वृद्ध –कुमार उससे विवाह करोगे ?|कुमार –नही मातः ! क्योंकि उसमे आनंद का आभाव है | वह रमणी स्वयं अंधी है और जो उससे विवाह की इच्छा रखता है वह लंगड़ा हो जाता है | वृद्धा –क्या तुम आजन्म ब्रह्मचारी रहना चाहते हो ? कुमार –मातः यही आशीष दीजिये | इसका आशय कुछ ही लोग समझ पाए |

इन्होने पञ्चगंगा श्रीमठ के आचार्य स्वामी राघवानंदाचार्य जी से विरक्त दीक्षा ली और षडक्षर राममन्त्र की कठिन साधना आरम्भ की | वैश्वानर संहिता के अनुसार ये भगवान् राम के अवतार माने जाते हैं –“ रामानन्दः स्वयं रामः प्रादुभूतो महीतले ”|

इनके शिष्यों की संख्या बहुत अधिक थी पर उनमे १२ प्रधान थे | सर्वप्रथम इनकी शिष्यता प्राप्त करने वाले अनंतान्न्दाचार्य जी थे |जो राजस्थान के पुष्कर तीर्थ के पुष्करणा विप्र वंश में जन्म लिए थे | इन्हें ब्रह्माजी का अवतार माना जाता हैं |–प्रसंग पारिजात –२३/१७७,

जहाँ स्वामी जी गागरौन गढ़ के महाराज पीपा जी को शिष्य बनाते हैं वहीँ सेन भगत(नाई) ,धन्ना जाट और रैदास जैसे उपेक्षित लोगों को भी स्वामी जी ने भगवान् की शरणागति करायी | इतना ही नही ,इनकी शिष्यमण्डली में पद्मावती देवी और सुरसुरी देवी को भी अन्य लोगों की भाँति दीक्षित करके यह दिखा दिया कि भगवत्शरणागति में सबका अधिकार है |

इनका उद्घोष था –

“ सर्वे प्रपत्तेरधिकारिणो मताः शक्ता अशक्ता पदयोर्जगत्प्रभोः |

नापेक्ष्यते तत्र कुलं बलं च न न चापि कालो नहि शुद्धतापि वै ” ||–वैष्णवमताब्ज्भास्कर -४/५०, अर्थात् शरणागति में सामर्थ्य, कुल, बल, काल और शुद्धि की आवश्यकता नही है |

आप एक समाजसुधारक ,समतावादी आचार्य थे | सर राधाकृष्णन ने लिखा है कि १४वीं शताब्दी में एक ऐसे आचार्य आये जिन्होंने भगवद्भक्ति के दरवाजे मानवमात्र के लिए खोल दिए | इन्ही की परंपरा में कबीर जी एवं गोस्वामी तुलसीदास जी हुए है | जिन्होंने अपने उपदेशॉ से विश्व को शांति का उपदेश दिया है |

कृतियां-—

स्वामी जी ने ब्रह्मसूत्र ,भगवद्गीता और दशों उपनिषदों पर आनंद भाष्य की रचना की | वैष्णवमताब्जभास्कर इनकी एक ऐसी कृति है जिसके अध्ययन से श्री रामानंद सम्प्रदाय ( श्री सम्प्रदाय ) के तथ्यों का सरल रीति से ज्ञान प्राप्त हो सकता है | हिन्दी कृतियों में “ अध्यात्मराम रक्षा ” अत्यधिक प्रसिद्ध है | यदि ग्रहण के समय सामने नारियल रखकर इसका मनोयोग से १०८ पाठ किया जाय तो वह नारियल फट जाता है –यही इसकी सिद्धि का लक्षण है | एक साधक के कथनानुसार तिब्बत के लामा इसका प्रयोग अधिक करते हैं | इसमें योग सम्बन्धी रहस्य भरे पड़े है |

चमत्कार और साधना सम्बन्धी ज्ञान –

इसके लिए साधकों को प्रसंगपारिजात का अध्ययन अत्यावश्यक है |पिशाची भाषा में यह ग्रन्थ स्वामी जी के परधाम गमन के १ वर्ष बाद चेतनदास जी द्वारा लिखा गया था | सारनाथ लाईब्रेरी एवं अन्य जगहों की पांडुलिपियों की सहायता से इसका शुद्ध प्रकाशन “ श्रीस्वामी रामानन्दसंत आश्रम ,मायाकुण्ड ऋषिकेश से हो चुका है | मुझे स्वामी जी के विषय में सबसे अधिक प्रामाणिक जानकारी कराने वाला यही ग्रन्थ लगा |

स्वामी जी का अंतिम उपदेश—

जब स्वामी जी ने इस धराधाम को त्यागने का निश्चय किया तो उस एक वृहद् अनुष्ठान का आयोजन किया गया | चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा शनिवार से श्रीमठ में तारक महामंत्र की कुण्डों में आहुतियाँ पड़ने लगीं | अष्टमी रविवार के दिन अनुष्ठान की समाप्ति पर शिष्यों, संतों और विप्रों को संबोधित करते हुए स्वामी जी ने कहा –

“ सब शास्त्रों का सार भगवत्स्मरण है जो संतों का जीवन आधार है | ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये समाजरुपी देह के क्रमशः मस्तक, भुजा, पेट और पैर रुपी अंग हैं | भाई पैरों को काटकर समाज को पंगु मत बनाना ” |–यह उपदेश कितना उपयोगी है — इसे आज का विचारक अवश्य समझ सकता है | स्वामी जी के परधाम गमन का काल संवत १५५५ है |

प्रसंग पारिजात—

यह स्वामी जी के साधनामय जीवन पर प्रकाश डालने वाला अत्यद्भुत ग्रन्थ है |इसकी रचना पिशाची भाषा ,अदना छंदों में इसलिए की गयी कि इसमें जो घटनाएं भविष्य में घटने वाली हैं,उनका प्रकाशन उनके घटने के पूर्व न किया जाय | यदि कोई करने का प्रयास करेगा तो वह पागल हो जाएगा या मर जाएगा |इसमें गीताचार्य का चैतन्य महाप्रभु और भक्त कबीर की ज्योति मोहनदास के रूप में उतरने की भविष्य वाणी की गयी है |

गांधी जी के जीवित रहते हुए अयोध्या के एक महान पंडित श्रीरूपनारायण मिश्र इस ग्रन्थ पर लिखना आरम्भ किये तो एक्सीडेंट में उनका शिर फूट गया और कई दिन अस्पताल का सेवन किये | ठीक होने पर पुत्र की वाही स्थिति हुई,तब उन्होंने जिन संत से पुस्तक मिली थी,उनसे सब बातें बतलायीं |संत ने कहा अभी इस ग्रन्थ पर लिखना बंद कर दो ,–श्रीरूपनारायण मिश्र जी अत्यंत वृद्ध थे ,मैं उनके पास पढने गया था तब उन्होंने ये चर्चाएँ मुझसे की थीं | उन्ही की प्रेरणा से मई अध्ययन हेतु काशी पुनः गया |

अनुभव—–

प्रसंगपारिजात में १०८ अष्ट पदियाँ है \जिनमे आदि और अंत की अष्टपदी को छोड़कर शेष १०६ अष्टपदियों के भिन्न भिन्न विषय के अनुष्ठान हैं | इसमें १३वीं अष्टपदी ध्यान ,धारणा या समाधि लगाने के पहले और अंत में पाठ करने से अनहद नाद का श्रवण होता है |२०वीं अष्टपदी का मन ही मन पाठ करते हुए प्राणायाम करे तो ब्रह्मलोक का दर्शन हो तथा जीव और शिव का भेद मालूम हो जाय | ७वीं के ३ बार पाठ से तत्त्व ज्ञान का अधिकरी हो | ६२वीं का ११ पाठ रोज करने से दिव्य दर्शन होता है | ९३ वाली अस्त्पादी का पाठ करके सोये तो द्वादश महा भागवतों में किसी का दर्शन अवश्य होता | इसको विना सिद्ध किये ही मैं पाठ करके सोया था तो सोकर उठते ही वीणापाणि नारद जी दिखे और शीघ्र ही अन्तर्हित हो गए

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