कत्लखाने मेँ बेबस खड़ी गऊ मैया की रुदन पुकार को कविता के रुप मेँ व्यक्त कर रहा हूँ
मैया की पुकार
तुम तान रजाई सो जाते हो ,
अपन ऊँचे मकानोँ मेँ ,
घड़ियाँ मौत की मैँ गिनती हूँ पल पल कत्लखानोँ मेँ ,
क्या सीने मेँ तेरे दर्द नहीँ , अपनी माँ के काटे जाने का ,
काट काट के टुकड़े मेरे , थाली मेँ बाँटे जाने का ,
गौ माँ के लिये प्यार नहीँ है क्या देश के दीवानोँ मेँ ,
घड़ियाँ मौत की मैँ गिनती हूँ पल पल कत्लखानोँ मेँ ,
डँडे मार के भगाते हो मुझको , तरस नहीँ आता है क्या ,
प्यार से पुचकारने पर मुझको कुछ मोल लग जाता है क्या ,
रुखी सूखी दे देते हो , खुद खाते बढ़िया पकवानोँ मेँ ,
घड़ियाँ मौत की गिनती हूँ मैँ पल पल कत्लखानोँ मेँ ,
कुछ ना चाहिये बस तुमसे एक छोटी सी अरदास है ,
उसे मत निकालना घर से तुम जो माँ तुम्हारे पास है ,
लगता है नाम ही रह जायेगा बस इन गौभक्ति के तरानोँ मेँ ,
घड़ियाँ मौत की मैँ गिनती हूँ पल पल कत्लखानोँ मेँ ।
दूध पिलाया पूरी ज़िँदगी उसका कर्ज निभा देना ,
काट सर मेरे कातिल का तुम अपना फर्ज़ निभा देना ,
हर बार ही कटती आयी हूँ मैँ राजनीति के पैमानोँ मेँ ,
घड़ियाँ मौत की मैँ गिनती हूँ पल पल कत्लखानोँ में ।
Poet – Gaurav Bava