पुनर्नवा का संस्कृत पर्याय ‘शोथघ्नी’ (सूजन को हरनेवाली) है। पुनर्नवा (साटी) या विषखपरा के नाम से विख्यात यह वनस्पति वर्षा ऋतु में बहुतायत से पायी जाती है। शरीर की आँतरिक एवं बाह्य सूजन को दूर करने के लिए यह अत्यंत उपयोगी है।
यह तीन प्रकार की होती हैः सफेद, लाल, एवं काली। काली पुनर्नवा प्रायः देखने में भी नहीं आती, सफेद ही देखने में आती है। काली प्रजाति बहुत कम स्थलों पर पायी जाती है। जैसे तांदूल तथा पालक की भाजी बनाते हैं, वैसे ही पुनर्नवा की सब्जी बनाकर खायी जाती है। इसकी सब्जी शोथ (सूजन) की नाशक, मूत्रल तथा स्वास्थ्यवर्धक है।
पुनर्नवा कड़वी, उष्ण, तीखी, कसैली, रूच्य, अग्निदीपक, रुक्ष, मधुर, खारी, सारक, मूत्रल एवं हृदय के लिए लाभदायक है। यह वायु, कफ, सूजन, खाँसी, बवासीर, व्रण, पांडुरोग, विषदोष एवं शूल का नाश करती है।
पुनर्नवा में से पुनर्नवादि क्वाथ, पुनर्नवा मंडूर, पुनर्नवामूल धनवटी, पुनर्नवाचूर्ण आदि औषधियाँ बनती हैं।
बड़ी पुनर्नवा को साटोड़ी (वर्षाभू) कहा जाता है। उसके गुण भी पुनर्नवा के जैसे ही हैं।
औषधि-प्रयोगः
नेत्रों की फूलीः पुनर्नवा की जड़ को घी में घिसकर आँखों में आँजें।
नेत्रों की खुजलीः पुनर्नवा की जड़ को शहद अथवा दूध में घिसकर आँजने से लाभ होता है।
नेत्रों से पानी गिरनाः पुनर्नवा की जड़ को शहद में घिसकर आँखों में आँजने से लाभ होता है।
रतौंधीः पुनर्नवा की जड़ को काँजी में घिसकर आँखों में आँजें।
खूनी बवासीरः पुनर्नवा की जड़ को हल्दी के काढ़े में देने से लाभ होता है।
पीलियाः पुनर्नवा के पंचांग (जड़, छाल, पत्ती, फूल और बीज) को शहद एवं मिश्री के साथ लें अथवा उसका रस या काढ़ा पियें।
मस्तक रोग व ज्वर रोगः पुनर्नवा के पंचांग का 2 ग्राम चूर्ण 10 ग्राम घी एवं 20 ग्राम शहद में सुबह-शाम देने से लाभ होता है।
जलोदरः पुनर्नवा की जड़ के चूर्ण को शहद के साथ खायें।
सूजनः पुनर्नवा की जड़ का काढ़ा पिलाने एवं सूजन पर लेप करने से लाभ होता है।
पथरीः पुनर्नवामूल को दूध में उबालकर सुबह-शाम पियें।
विषः
चूहे का विषः सफेद पुनर्नवा के मूल का 2-2 ग्राम चूर्ण 10 ग्राम शहद के साथ दिन में 2 बार दें।
पागल कुत्ते का विषः सफेद पुनर्नवा के मूल का 25 से 50 ग्राम रस, 20 ग्राम घी में मिलाकर रोज पियें।
विद्राधि (फोड़ा)- पुनर्नवा के मूल का काढ़ा पीने से कच्चा अथवा पका हुआ फोड़ा भी मिट जाता है।
अनिद्राः पुनर्नवा के मूल का क्वाथ 100-100 मि.ली. दिन में 2 बार पीने से निद्रा अच्छी आती है।
संधिवातः पुनर्नवा के पत्तों की भाजी सोंठ डालकर खायें।
वातकंटकः वायुप्रकोप से पैर की एड़ी में वेदना होती हो तो पुनर्नवा में सिद्ध किया हुआ तेल पैर की एड़ी पर पिसें एवं सेंक करें।
योनिशूलः पुनर्नवा के हरे पत्तों को पीसकर बनायी गयी उँगली जैसे आकार की सोगटी को योनि में धारण करने से भयंकर योनिशूल भी मिटता है।
विलंबित प्रसव-मूढ़गर्भः पुनर्नवा के मूल के रस में थोड़ा तिल का तेल मिलाकर योनि में लगायें। इससे रुका हुआ बच्चा तुरंत बाहर आ जाता है।
गैसः 2 ग्राम पुनर्नवा के मूल का चूर्ण, आधा ग्राम हींग तथा 1 ग्राम काला नमक गर्म पानी से लें।
स्थूलता-मेदवृद्धिः पुनर्नवा के 5 ग्राम चूर्ण में 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम लें। पुनर्नवा की सब्जी बना कर खायें।
मूत्रावरोधः पुनर्नवा का 40 मि.ली. रस अथवा उतना ही काढ़ा पियें। पुनर्नवा के पान बाफकर पेड़ू पर बाँधें। 1 ग्राम पुनर्नवाक्षार (आयुर्वेदिक औषधियों की दुकान से मिलेगा) गरम पानी के साथ पीने से तुरंत फायदा होता है।
खूनी बवासीरः पुनर्नवा के मूल को पीसकर फीकी छाछ (200 मि.ली.) या बकरी के दूध (200 मि.ली.) के साथ पियें।
पेट के रोगः गोमूत्र एवं पुनर्नवा का रस समान मात्रा में मिलाकर पियें।
श्लीपद(हाथीरोग)- 50 मि.ली. पुनर्नवा का रस और उतना ही गोमूत्र मिलाकर सुबह शाम पियें।
वृषण शोथः पुनर्नवा का मूल दूध में घिसकर लेप करने से वृषण की सूजन मिटती है। यह हाड्रोसील में भी फायदेमंद है।
हृदयरोगः हृदयरोग के कारण सर्वांगसूजन हो गयी हो तो पुनर्नवा के मूल का 10 ग्राम चूर्ण और अर्जुन की छाल का 10 ग्राम चूर्ण 200 मि.ली. पानी में काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पियें।
श्वास (दमा)- 10 ग्राम भारंगमूल चूर्ण और 10 ग्राम पुनर्नवा चूर्ण को 200 मि.ली. पानी में उबालकर काढ़ा बनायें। जब 50 मि.ली. बचे तब उसमें आधा ग्राम श्रृंगभस्म डालकर सुबह-शाम पियें।
रसायन प्रयोगः हमेशा उत्तम स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए रोज सुबह पुनर्नवा के मूल का या पत्ते का 2 चम्मच (10 मि.ली.) रस पियें अथवा पुनर्नवा के मूल का चूर्ण 2 से 4 ग्राम की मात्रा में दूध या पानी से लें या सप्ताह में 2 दिन पुनर्नवा की सब्जी बनाकर खायें।
पुनर्नवा में मूँग व चने की छिलकेवाली दाल मिलाकर इसकी बढ़िया सब्जी बनती है। ऊपर वर्णित तमाम प्रकार के रोग हों ही नहीं, स्वास्थ्य बना रहे इसलिए इसकी सब्जी या ताजे पत्तों का रस काली मिर्च व शहद मिलाकर पीना हितावह है। बीमार तो क्या स्वस्थ व्यक्ति भी अपना स्वास्थ्य अच्छा रखने के लिए इसकी सब्जी खा सकते हैं। भारत में यह सर्वत्र पायी जाती है। संत श्री आसारामजी आश्रम (दिल्ली, अमदावाद, सूरत आदि) में पुनर्नवा का नमूना देखा जा सकता है। आपके इलाकों में भी यह पर्याप्त मात्रा में होती होगी।
Me desi Jadi butiyo me bare me jankari ekttha karne me ruchi rakhata hou .kyoki Jo asadhya rog hote he unhe kebal ayurvedic jadi butiyon se hi door kiya ja sakta hei.
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TejPal Singh s|0 Bhim Sen
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Village & post Shivpuri
Distt. Bareilly
(U.p.)
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