भारतीय गौवंश की शानदार प्रजातियाँ


आइये एक दृष्टी डालते है भारतीय गाय की कुछ प्रमुख नस्लों / प्रजातियों पर,
साहीवाल प्रजाति: पंजाब- साहीवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। इस नस्ल की गायें अफगासितान की गायों से मिलती-जुलती हैं। यह नस्ल गिर नस्ल के समिमश्रण से बनी है। इस नस्ल की गायें मुख्यतया अधिक दूध देने वाली होती हैं। अच्छी देखभाल करने पर ये कहीं भी रह सकती हैं।
हरियाणवी प्रजाति: हरियाणा- हरियाणवी नस्ल की गायें सर्वांगी कहलाती हैं। इस नस्ल के बैल खेती में अच्छा कार्य करते हैं। इस नस्ल के गोवंश सफेद रंग के होते हैं। गाया दुधारू होती है।
राठी प्रजाति: राजस्थान- राठी नस्ल का राठी नाम राठस जनजाति के नाम पर पड़ा जिनकी उत्पत्ति राजपूत मुसलमानों से हुर्इ। राठस जनजाति के लोग खानाबदोश जिंदगी व्यतीत करते थे। भारतीय राठी नस्ल एक महत्वपूर्ण दुधारू नस्ल है।
देवनी प्रजाति: आंध्रप्रदेश, कर्नाटक- देवनी परजाति के गोवंश गिर नस्ल से मिलते- जुलते हैं। इस नस्ल के बैल अधिक भार ढोने की क्षमता रखते हैं। गायें दुधारू होती हैं।
लाल सिंधी प्रजाति: पंजाब- लाल सिंधी प्रजाति के गोवंश में अफगान नस्ल और गिर नस्ल का समिमश्रण पाया जाता है। इस नस्ल की गाय का शरीर पूर्णत: लाल होता है। लाल रंग की सिंधी गाय की गणना सर्वाधिक दूध देने वाली गायों में है। थोड़ी खुराक में भी यह अपना शरीर अच्छा रख लेती है।
गिर प्रजाति: गुजरात- गिर प्रजाति क गोवंश का मूल स्थान काठियावाड़ (गुजरात) के दक्षिण में गिर नामक जंगल है। शुद्ध गिर नस्ल की गायें प्राय: एक रंग की नहीं होती है। इस नस्ल की गायें काफी दुधारू होती हैं तथा नियत समय पर बच्चे देती हैं।
नागौरी प्रजाति: राजस्थान- नागौरी प्रजाति के गोवंश का गृह क्षेत्र राजस्थान प्रदेश का नागौर जिला है। इस नस्ल के बैल भारवाहक क्षमता के विशेष गुण के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध ह ैं। विश्वसनीय ढंग से निशिचत रूप में नागौरी नस्ल के गोवंश के कुल संख्या के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
नीमाड़ी प्रजाति: मध्यप्रदेश नीमाड़ी प्रजाति के गोवंश काफी फुर्तीले होते हैं। इनके मुँह की बनावट गिर जाति की जैसी होती है। गाय के शरीर का रंग लाल होता है, जिस पर जगह-जगह सफेद धब्बे होते हैं। इस नस्ल की अच्छी देखभाल करें तो काफी दूध प्राप्त होता हैं।
सीरी प्रजाति: सिकिकम एवं भूटान- सीरी प्रजाति के गोवंश दार्जिलिंग के पर्वतीय प्रदेश, सिकिकम एवं भूटान में पाये जाते हैंं। इनका मूल स्थान भूटान है। ये प्राय: काले और सफेद अथवा लाल और सफेद रंग के होते हैं। सीरी जाति के पशु देखने में भारी होते हैं। इस जाति के बैल काफी परिश्रम होते हैं।
हल्लीकर प्रजाति: कर्नाटक- हल्लीकर के गोवंश मैसूर (कर्नाटक) में सर्वाधिक पाये जाते हैं। यह एक स्वतंत्र नस्ल है। इस नस्ल की गायें अमृतमहाल जाति की गौओं से अधिक दूध देती हैं।
भगनारी प्रजाति: पंजाब- भगनारी प्रजाति के गोवंश नारी नदी के तटवर्ती इलाके में पाये जाने की वजह से इस नस्ल का नाम ‘भगनारी दिया गया है। इस नस्ल के गोवंश अपना निर्वाह नदी तट पर उगने वाली घास व अनाज की भूसी पर करते हैं। गाये दुधारू होती है।
कांकरेज प्रजाति: गुजरात- कांकरेज प्रजाति के गोवंश का मुँह छोटा किन्तु चौड़ा होता है। गुजरात में काठियावाड़, बड़ौदा, सूरत तक यह नस्ल फैली हुर्इ है। यह नस्ल बढि़यार नस्ल के नाम से भी जानी जाती है। यह नस्ल सर्वांगी नस्ल कहलाती है।
कंगायम प्रजाति: तमिलनाडु- कंगायम प्रजाति के गोवंश अपनी स्फूर्ति और श्रम-सहिष्णुता के लिए विशेष प्रसिद्ध हैं। इस जाति के गोवंश कोयम्बटूर के दक्षिणी इलाकों में पाये जाते हैं। दूध कम देने के बावजूद गाय 10-12 सालों तक दूध देती है।
मालवी प्रजाति: मध्यप्रदेश- मालवी प्रजाति के बैलों का उपयोग खेती तथा सड़कों पर हल्की गाड़ी खींचने के लिए किया जाता है। इनका रंग लाल, खाकी तथा गर्दन काले रंग की होती है। किन्तु बुढ़ापे में इसका रंग सफेद हो जाता है। इस नस्ल की गायें दूध कम देती हैं। मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में यह नस्ल पायी जाती है।
मेवाती प्रजाति: हरियाणा- मेवाती प्रजाति के गोवंश सीधे-सीधे तथा कृषि कार्य हेतु उपयोगी होते हैं। इस नस्ल की गायें काफी दुधारू होती हैं। इनमें गिर जाति के लक्षण पाये जाते हैं तथा पैर कुछ ऊँचे होते हैं। इस नस्ल के गोवंश हरियाणा राज्य में पाये जाते हैं।
गावलाव प्रजाति: मध्यप्रदेश- गावलाव प्रजाति के गोवंश को सर्वोत्तम नस्ल माना गया है। मध्य प्रदेश के सतपुड़ा, सिवनी क्षेत्र व महाराष्ट्र के वर्धा, नागपुर क्षेत्र में इस जाति के गोवंश पाये जाते हैं। गायों का रंग प्राय: सफेद तथा गलंकबल बड़ा होता है। गायें दुधारू मानी जाती हैं।
थारपरकर प्रजाति: राजस्थान- थारपरकर प्रजाति का गोवंश को राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर व कच्छ क्षेत्रों में एक बड़ी संख्या में पाया जाता है। इस नस्ल की गौएं भारत की सर्वश्रेष्ठ दुधारू गायाें में गिनी जाती है। इस जाति के बैल काफी परिश्रमी होते हैं। इनमें कर्इ ऐसे गुण हैं जिनके कारण इनकी कदर की जाती है।
वेचूर प्रजाति: केरल- वेचूर प्रजाति के गोवंश पर रोगों का कम से कम प्रभाव पड़ता है। इस जाति के गोवंश कद में छोटे होते हैं। इस नस्ल की गायों के दूध में सर्वाधिक औषधीय गुण होते हैं। इस जाति के गोवंश को बकरी से भी आधे खर्च में पाला जा सकता है।
बरगूर प्रजाति: तमिलनाडु- बरगूर प्रजाति के गोवंश तमिलनाडु के बरगुर नामक पहाड़ी क्षेत्र में पाये गये थे। इस जाति की गायों का सिर लम्बा, पूँछ छोटी व मस्तक उभरा हुआ होता है। बैल काफी तेज चलते हैं और सहनशील होते हैं। गायों की दूध देने की मात्रा कम होती है।
कृष्णाबेली: महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश- कृष्णा नदी तट की कृष्णाबेली प्रजाति के गोवंश महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में पाये जाते हैं। इनके मुँह का अग्रभाग बड़ा तथा सींग और पूँछ छोटी होती है।
डांगी प्रजाति: महाराष्ट्र- डांगी प्रजाति के गोवंश अहमद नगर, नासिक और अंग्स क्षेत्र में पाये जाते हैं। इस जाति के बैल मजबूत एवं परिश्रमी होते हैं। गायों का रंग लाल, काला व सफेद होता है। गायें कम दूध देती हैं।
पवार प्रजाति: उत्तर प्रदेश पवार प्रजाति के गोवंश उत्तर प्रदेश्ज्ञ के रोहेलखण्ड में पाये जाते हैं। इनके सींगों की लम्बार्इ 12 से 18र्इंच तक हो सकती है। इनकी पूँछ लम्बी होती है। इनके शरीर का रंग काला और सफेद होता है। इस प्रजाति के बैल कृषि योग्य हैं, किंतु गाय कम दूध देती है।
अंगोल प्रजाति: तमिलनाडु- अंगोल प्रजाति तमिलनाडु के अंगोल क्षेत्र में पायी जाती है। इस जाति के बैल भारी बदन के एवं ताकतवर होते हैं। इनका शरीर लम्बा, किन्तु गर्दन छोटी होती है। यह प्रजाति सूखा चारा खाकर भी जीवन निर्वाह कर सकती है।
हासी-हिसार: हरियाणा- हासी-हिसार प्रजाति के गोवंश हरियाणा के हिसार क्षेत्र में पाये जाते हैं। इस नस्ल के गोवंश का रंग सफेद व खाकी होता है। इस प्रजाति के बैल परिश्रमी होते हैं।
बचौर प्रजाति: बिहार- बचौर प्रजाति के गोवंश बिहार प्रांत के तहत सीतामढ़ी जिले के बचौर एवं कोर्इलपुर परगनाें मं पाये जाते हैं। इस जाति के बैल काफी परिश्रमी होते हैं। इनका रंग खाकी, ललाट चौड़ा, आँखें बड़ी-बड़ी और कान लटकते हुए होते हैं। भारतीय गोवंश की अन्य प्रजातियाँ
लोहानी प्रजाति- इस नस्ल का मूल स्थान बलूचिस्तान का लोरालार्इ क्षेत्र है। इस जाति के पशु आकार में छोटे होते हैं। इस जाति के बैल हल चलाने तथा विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में बोझा ढ़ोने में बहुत उपयोगी होते हैं।
आलमवादी प्रजाति- इस प्रजाति के गोवंश कर्नाटक राज्य में पाये जाते हैं। इनका मुँह लम्बा और कम चौड़ा होता है तथा सींग लम्बे होते हैं। इस जाति के बैल तेज एवं परिश्रमी होते हैं
केनवारिया प्रजाति- इस प्रजाति के गोवंश बांदा जिला (म.प्र.) के केन नदी के तट पर पाये जाते हैं। इनके सींग काँकरेज जाति के पशुओं जैसी होती हैं। गायें कम दूध देती हैं। गायों का रंग खाकी होती है।
खेरीगढ़ प्रजाति- इस प्रजाति के गोवंश खेरीगढ़ क्षेत्र(उ.प्र.) में पाये जाते हैं। गायों के शरीर का रंग सफेद तथा मुँह होता है। इनकी सींग बड़ी होती है। सींग की लम्बार्इ 12 से 18इंच तक होती है। इनकी सींग केनवारिया नस्ल के सींग से बहुत मिलती हैं। बैल क्रोधी एवं फुर्तीले होते हैं तथा मैदानों में स्वच्छन्द रूप से चरने से स्वस्थ एवं प्रसन्न रहते हैं। इस नस्ल की गायें कम दूध देती है।
खिल्लारी प्रजाति- इस प्रजाति के गोवंश का रंग खाकी, सिर बड़ा, सींग लम्बी और पूँछ छोटी होती है। इनका गलंकबल काफी बड़ा होत है। खिल्लारी प्रजाति के बैल काफी शकितशाली होते हैं किन्तु गायों में दूध देने की क्षमता कम होती है। यह नस्ल महाराष्ट्र तथा सतपुड़ा(म.प्र.) क्षेत्रों में पायी जाती है।
अमृतमहाल प्रजाति- इस प्रजाति के गोवंश कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले में पाये जाते हैं। इस नस्ल का रंग खाकी, मस्तक तथा गला काले रंग का, सिर और लम्बा, मुँह व नथुने कम चौड़े होते हैं। इस नस्ल के बैल मध्यम कद के और फुर्तीले होते हैं। गायें कम दूध देती है।
दज्जल प्रजाति- भगनारी नस्ल का दूसरा नाम ‘दज्जल नस्ल है। इस नस्ल के पशु पंजाब के ‘दरोगाजी खाँ जिले में बड़ी संख्या में पाले जाते हैं। कहा जाता है कि इस जिले के कुछ भगनारी नस्ल के सांड़ खासतौर पर भेजे गये थे। यही कारण है कि ‘दरोगाजी खाँ में यह नस्ल काफी पायी जाती है। और यहीं से भेजा गया इस नस्ल को पंजाब के अन्य क्षेत्रों में भेजे गये। इस जाति की गौएँ अधिक दूध देने के लिए प्रसिद्ध हैं।
धन्नी प्रजाति- इस प्रजाति को पंजाब की एक स्वतंत्र नस्ल माना जाता हैं इस नस्ल के पशु मध्यम परिमाण के तथा बहुत फुर्तीले होते हैं। इनका रंग विचित्र प्रकार का होता है और पंजाब के अनेक भागों में इन्हें पाला जाता है। गायें दुधारू नहीं होती। इस नस्ल में दुग्धोत्पादन की क्षमता में वृद्धि के लिए विशेष ध्यान दिया ही नहीं गया।
केनकथा प्रजाति- उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश्ज्ञ।
खेरीगढ़ प्रजाति- उत्तरप्रदेश।
रेड कंधारी प्रजाति- मराठवाड़ा (मूलस्थान-कंधार)।
वर्तमान में सिथति: आजादी के पूर्व भारत में गोवंश की करीब 60 प्रजातियाँ आज गोवंश की करीब 27-28 प्रजाति ही है। कत्लखानों में गोवंश इसी तरह कटता रहा तो गोवंश की अनेक नस्लें समाप्त हो जायेंगी

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