वैलेंटाइन डे की कहानी

यूरोप (और अमेरिका) का समाज जो है वो रखैलों (Kept) लिव इन रिलेसनशिप  में विश्वास करता है पत्नियों में नहीं, यूरोप और अमेरिका में आपको शायद ही ऐसा कोई पुरुष या मिहला मिले जिसकी एक शादी हुई हो, जिनका एक पुरुष से या एक स्त्री से सम्बन्ध रहा हो और ये एक दो नहीं हजारों साल की परम्परा है उनके यहाँ | आपने एक शब्द सुना होगा “Live in Relationship” ये शब्द आज कल हमारे देश में भी नव-अिभजात्य वगर् में चल रहा है, इसका मतलब होता है कि “बिना शादी के पती-पत्नी की तरह से रहना” | तो उनके यहाँ, मतलब यूरोप और अमेरिका में ये परंपरा आज भी चलती है,खुद प्लेटो (एक यूरोपीय दार्शनिक) का एक स्त्री से सम्बन्ध नहीं रहा, प्लेटो ने लिखा है कि “मेरा 20-22 स्त्रीयों से सम्बन्ध रहा है” अरस्तु भी यही कहता है, देकातेर् भी यही कहता है, और रूसो ने तो अपनी आत्मकथा में लिखा है कि “एक स्त्री के साथ रहना, ये तो कभी संभव ही नहीं हो सकता, It’s Highly Impossible” | तो वहां एक पत्नि जैसा कुछ होता नहीं | और इन सभी महान दार्शनिकों का तो कहना है कि “स्त्री में तो आत्मा ही नहीं होती” “स्त्री तो मेज और कुर्सी के समान हैं, जब पुराने से मन भर गया तो पुराना हटा के नया ले आये ” | तो बीच-बीच में यूरोप में कुछ-कुछ ऐसे लोग निकले जिन्होंने इन बातों का विरोध किया और इन रहन-सहन की व्यवस्थाओं पर कड़ी टिप्पणी की | उन कुछ लोगों में से एक ऐसे ही यूरोपियन व्यक्ति थे जो आज से लगभग 1500 साल पहले पैदा हुए, उनका नाम था – वैलेंटाइन | और ये कहानी है 478 AD (after death) की, यानि ईशा की मृत्यु के बाद |

उस वैलेंटाइन नाम के महापुरुष का कहना था कि “हम लोग (यूरोप के लोग) जो शारीरिक सम्बन्ध रखते हैं कुत्तों की तरह से, जानवरों की तरह से, ये अच्छा नहीं है, इससे सेक्स-जनित रोग (veneral disease) होते हैं, इनको सुधारो, एक पति-एक पत्नी के साथ रहो, विवाह कर के रहो, शारीरिक संबंधो को उसके बाद ही शुरू करो” ऐसी-ऐसी बातें वो करते थे और वो वैलेंटाइन महाशय उन सभी लोगों को ये सब सिखाते थे, बताते थे, जो उनके पास आते थे, रोज उनका भाषण यही चलता था रोम में घूम-घूम कर | संयोग से वो चर्च के पादरी हो गए तो चर्च में आने वाले हर व्यक्ति को यही बताते थे, तो लोग उनसे पूछते थे कि ये वायरस आप में कहाँ से घुस गया, ये तो हमारे यूरोप में कहीं नहीं है, तो वो कहते थे कि “आजकल मैं भारतीय सभ्यता और दशर्न का अध्ययन कर रहा हूँ, और मुझे लगता है कि वो परफेक्ट है, और इसिलए मैं चाहता हूँ कि आप लोग इसे मानो”, तो कुछ लोग उनकी बात को मानते थे, तो जो लोग उनकी बात को मानते थे, उनकी शादियाँ वो चर्च में कराते थे और एक-दो नहीं उन्होंने सैकड़ों शादियाँ करवाई थी |

जिस समय वैलेंटाइन हुए, उस समय रोम का राजा था क्लौड़ीयस, क्लौड़ीयस ने कहा कि “ये जो आदमी है-वैलेंटाइन, ये हमारे यूरोप की परंपरा को बिगाड़ रहा है, हम बिना शादी के रहने वाले लोग हैं, मौज-मजे में डूबे रहने वाले लोग हैं, और ये शादियाँ करवाता फ़िर रहा है, ये तो अपसंस्कृति फैला रहा है, हमारी संस्कृति को नष्ट कर रहा है”, तो क्लौड़ीयस ने आदेश दिया कि “जाओ वैलेंटाइन को पकड़ के लाओ “, तो उसके सैनिक वैलेंटाइन को पकड़ के ले आये | क्लौड़ीयस नेवैलेंटाइन से कहा कि “ये तुम क्या गलत काम कर रहे हो ? तुम अधमर् फैला रहे हो, अपसंस्कृति ला रहे हो” तो वैलेंटाइन ने कहा कि “मुझे लगता है कि ये ठीक है” , क्लौड़ीयस ने उसकी एक बात न सुनी और उसने वैलेंटाइन को फाँसी की सजा दे दी, आरोप क्या था कि वो बच्चों की शादियाँ कराते थे, मतलब शादी करना जुर्म था | क्लौड़ीयस ने उन सभी बच्चों को बुलाया, जिनकी शादी वैलेंटाइन ने करवाई थी और उन सभी के सामने वैलेंटाइन को 14 फ़रवरी 498 ईःवी को फाँसी दे दिया गया |

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पता नहीं आप में से कितने लोगों को मालूम है कि पूरे यूरोप में 1950 ईःवी तक खुले मैदान में, सावर्जानिक तौर पर फाँसी देने की परंपरा थी | तो जिन बच्चों ने वैलेंटाइन के कहने पर शादी की थी वो बहुत दुखी हुए और उन सब ने उस वैलेंटाइन की दुखद याद में 14 फ़रवरी को वैलेंटाइन डे मनाना शुरू किया तो उस दिन से यूरोप में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है | मतलब ये हुआ कि वैलेंटाइन, जो कि यूरोप में शादियाँ करवाते फ़िरते थे, चूकी राजा ने उनको फाँसी की सजा दे दी, तो उनकी याद में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है | ये था वैलेंटाइन डे का इतिहास और इसके पीछे का आधार |

अब यही वैलेंटाइन डे भारत आ गया है जहाँ शादी होना एकदम सामान्य बात है यहाँ तो कोई बिना शादी के घूमता हो तो अद्भुत या अचरज लगे लेकिन यूरोप में शादी होना ही सबसे असामान्य बात है | अब ये वैलेंटाइन डे हमारे स्कूलों में कॉलजों में आ गया है और बड़े धूम-धाम से मनाया जा रहा है और हमारे यहाँ के लड़के-लड़िकयां बिना सोचे-समझे एक दुसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं | और जो कार्ड होता है उसमे लिखा होता है ” Would You Be My Valentine” जिसका मतलब होता है “क्या आप मुझसे शादी करेंगे” | मतलब तो किसी को मालूम होता नहीं है, वो समझते हैं कि जिससे हम प्यार करते हैं उन्हें ये कार्ड देना चाहिए तो वो इसी कार्ड को अपने मम्मी-पापा को भी दे देते हैं, दादा-दादी को भी दे देते हैं और एक दो नहीं दस-बीस लोगों को ये
ही कार्ड वो दे देते हैं | और इस धंधे में बड़ी-बड़ी कंपिनयाँ लग गयी हैं जिनको कार्ड बेचना है, जिनको गिफ्ट बेचना है, जिनको चाकलेट बेचनी हैं और टेलीविजन चैनल वालों ने इसका धुआधार प्रचार कर दिया | ये सब लिखने के पीछे का उद्देँशय यही है कि नक़ल आप करें तो उसमे अकल भी लगा लिया करें | उनके यहाँ साधारणतया शादियाँ नहीं होती है और जो शादी करते हैं वो वैलेंटाइन डे मनाते हैं लेकिन हम भारत में क्यों ??????

by राजीव भाई दीक्षित

क्यूँ था भारत सोने की चिड़िया…

आज से लगभग 100-150 साल से शुरू करके पिछले हज़ार साल का इतिहास के कुछ तथ्य। भारत के इतिहास/ अतीत पर दुनिया भर के 200 से ज्यादा विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने बहुत शोध किया है। इनमें से कुछ विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूँगा। ये सारे विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञ भारत से बाहर के हैं, कुछ अंग्रेज़ हैं, कुछ स्कॉटिश हैं, कुछ अमेरिकन हैं, कुछ फ्रेंच हैं, कुछ जर्मन हैं। ऐसे दुनिया के अलग अलग देशों के विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने भारत के बारे में जो कुछ कहा और लिखा है उसकी जानकारी मुझे देनी है।
1. सबसे पहले एक अंग्रेज़ जिसका नाम है ‘थॉमस बैबिंगटन मैकाले’, ये भारत में आया और करीब 17 साल रहा। इन 17 वर्षों में उसने भारत का काफी प्रवास किया, पूर्व भारत, पश्चिम भारत, उत्तर भारत, दक्षिण भारत में गया। अपने 17 साल के प्रवास के बाद वो इंग्लैंड गया और इंग्लैंड की पार्लियामेंट ‘हाउस ऑफ कोमेन्स’ में उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद एक लंबा भाषण दिया।
उसने कहा था :: “ I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation. ”
इसी भाषण के अंत में वो एक वाक्य और कहता है : वो कहता है ” भारत में जिस व्यक्ति के घर में भी मैं कभी गया, तो मैंने देखा की वहाँ सोने के सिक्कों का ढेर ऐसे लगा रहता हैं, जैसे की चने का या गेहूं का ढेर किसानों के घरों में रखा जाता है और वो कहता है की भारतवासी इन सिक्को को कभी गिन नहीं पाते क्योंकि गिनने की फुर्सत नही होती है इसलिए वो तराजू में तौलकर रखते हैं। किसी के घर में 100 किलो, इसी के यहा 200 किलो और किसी के यहाँ 500 किलो सोना है, इस तरह भारत के घरों में सोने का भंडार भरा हुआ है।”
2. इससे भी बड़ा एक दूसरा प्रमाण मैं आपको देता हूँ एक अंग्रेज़ इतिहासकर हुआ उसका नाम है “विलियम डिगबी”। ये बहुत बड़ा इतिहासकर था, सभी यूरोपीय देशों में इसको काफी इज्ज़त और सम्मान दिया जाता है। अमेरिका में भी इसको बहुत सम्मान दिया जाता है, कारण ये है की इसके बारे में कहा जाता है की ये बिना के प्रमाण कोई बात नही कहता और बिना दस्तावेज़/ सबूत के वो कुछ लिखता नहीं है। इस डिगबी ने भारत के बारे में एक पुस्तक में लिखा है जिसका कुछ अंश मैं आपको बताता हूँ। ये बात वो 18वीं शताब्दी में कहता है: ” विलियम डिगबी कहता है की अंग्रेजों के पहले का भारत विश्व का सर्वसंपन्न कृषि प्रधान देश ही नहीं बल्कि एक ‘सर्वश्रेष्ठ औद्योगिक और व्यापारिक देश’ भी था। इसके आगे वो लिखता है की भारत की भूमि इतनी उपजाऊ है जितनी दुनिया के किसी देश में नहीं। फिर आगे लिखता है की भारत के व्यापारी इतने होशियार हैं जो दुनिया के किसी देश में नहीं। उसके आगे वो लिखता है की भारत के कारीगर जो हाथ से कपड़ा बनाते हैं उनका बनाया हुआ कपड़ा रेशम का तथा अन्य कई वस्तुएं पूरे विश्व के बाज़ार में बिक रही हैं और इन वस्तुओं को भारत के व्यापारी जब बेचते हैं तो बदले में वो सोना और चाँदी की मांग करते हैं, जो सारी दुनिया के दूसरे व्यापारी आसानी के साथ भारतवासियों को दे देते हैं। इसके बाद वो लिखता है की भारत देश में इन वस्तुओं के उत्पादन के बाद की बिक्री की प्रक्रिया है वो दुनिया के दूसरे बाज़ारों पर निर्भर है और ये वस्तुएं जब दूसरे देशों के बाज़ारों में बिकती हैं तो भारत में सोना और चाँदी ऐसे प्रवाहित होता है जैसे नदियों में पानी प्रवाहित होता है और भारत की नदियों में पानी प्रवाहित होकर जैसे महासागर में गिर जाता है वैसे ही दुनिया की तमाम नदियों का सोना चाँदी भारत में प्रवाहित होकर भारत के महासागर में आकार गिर जाता है। अपनी पुस्तक में वो लिखता है की दुनिया के देशों का सोना चाँदी भारत में आता तो है लेकिन भारत के बाहर 1 ग्राम सोना और चाँदी कभी जाता नहीं है। इसका कारण वो बताता है की भारतवासी दुनिया में सारी वस्तुओं उत्पादन करते हैं लेकिन वो कभी किसी से खरीदते कुछ नहीं हैं।”
इसका मतलब हुआ की आज से 300 साल पहले का भारत निर्यात प्रधान देश था। एक भी वस्तु हम विदेशों से नहीं खरीदते थे।
3. एक और बड़ा इतिहासकार हुआ वो फ़्रांस का था, उसका नाम है “फ़्रांसवा पिराड”। इसने 1711 में भारत के बारे में एक बहुत बड़ा ग्रंथ लिखा है और उसमे उसने सैकड़ों प्रमाण दिये हैं। वो अपनी पुस्तक में लिखता है की “भारत देश में मेरी जानकारी में 36 तरह के ऐसे उद्योग चलते हैं जिनमें उत्पादित होने वाली हर वस्तु विदेशों में निर्यात होती है। फिर वो आगे लिखता है की भारत के सभी शिल्प और उद्योग उत्पादन में सबसे उत्कृष्ट, कला पूर्ण और कीमत में सबसे सस्ते हैं। सोना, चाँदी, लोहा, इस्पात, तांबा, अन्य धातुएं, जवाहरात, लकड़ी के सामान, मूल्यवान, दुर्लभ पदार्थ इतनी ज्यादा विविधता के साथ भारत में बनती हैं जिनके वर्णन का कोई अंत नहीं हो सकता। वो अपनी पुस्तक में लिख रहा है की मुझे जो प्रमाण मिलें हैं उनसे ये पता चलता है की भारत का निर्यात दुनिया के बाज़ारों में पिछले ‘3 हज़ार वर्षों’ से आबादीत रूप से बिना रुके हुए लगातार चल रहा है।”
4. इसके बात एक स्कॉटिश है जिसका नाम है ‘मार्टिन’ वो इतिहास की पुस्तक में भारत के बारे में कहता है: “ब्रिटेन के निवासी जब बार्बर और जंगली जानवरों की तरह से जीवन बिताते रहे तब भारत में दुनिया का सबसे बेहतरीन कपड़ा बनता था और सारी दुनिया के देशों में बिकता था। वो कहता है की मुझे ये स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है की “भारतवासियों ने सारी दुनिया को कपड़ा बनाना और कपड़ा पहनना सिखाया है” और वो कहता है की हम अंग्रेजों ने और अंग्रेजों की सहयोगी जातियों के लोगों ने भारत से ही कपड़ा बनाना सीखा है और पहनना भी सीखा है। फिर वो कहता है की रोमन साम्राज्य में जीतने भी राजा और रानी हुए हैं वो सभी भारत के कपड़े मांगते रहे हैं, पहनते रहे हैं और उन्हीं से उनका जीवन चलता रहा है।”
5. एक फ्रांसीसी इतिहासकार है उसना नाम है ‘टैवरणीय’,1750 में वो कहता है: “भारत के वस्त्र इतने सुंदर और इतने हल्के हैं की हाथ पर रखो तो पता ही नहीं चलता है की उनका वजन कितना है। सूत की महीन कताई मुश्किल से नज़र आती है, भारत में कालीकट, ढाका, सूरत, मालवा में इतना महीन कपड़ा बंता है की पहनने वाले का शरीर ऐसा दिखता है की मानो वो एकदम नग्न है। वो कहता है इतनी अदभूत बुनाई भारत के करीगर जो हाथ से कर सकते हैं वो दुनिया के किसी भी देश में कल्पना करना संभव नहीं है।”
6. इसके बाद एक अंग्रेज़ है ‘विलियम वोर्ड’: वो कहता है की “भारत में मलमल का उत्पादन इतना विलक्षण है, ये भारत के कारीगरों के हाथों का कमाल है, जब इस मलमल को घास पर बिछा दिया जाता है और उस पर ओस की कोई बूंद गिर जाती है तो वो दिखाई नहीं देती है क्योंकि ओस की बूंद में जितना पतला रंग होता है उतना ही हल्का वो कपड़ा होता है, इसलिए ओस की बूंद और कपड़ा आपस में मिल जाते हैं। वो कहता है की भारत का 13 गज का एक लंबा कपड़ा हम चाहें तो एक चोटी सी अंगूठी में से पूरा खींचकर बाहर निकाल सकते हैं, इतनी बारीक और इतनी महीन बुनाई भारत के कपड़ों की होती है। भारत का 15 गज का लंबा थान उसका वजन 100 ग्राम से भी कम होता है। वो कहता है की मैंने बार बार भारत के कई थान का वजन किया है हरेक थान का वजन 100 ग्राम से भी कम निकलता है। हम अंग्रेजों ने कपड़ा बनाना तो सन् 1780 के बाद शुरू किया है भारत में तो पिछले 3,000 साल से कपड़े का उत्पादन होता रहा है और सारी दुनिया में बिकता रहा है।”
7. एक और अंग्रेज़ अधिकारी था ‘थॉमस मुनरो’ वो मद्रास में गवर्नर रहा है। जब वो गवर्नर था तो भारत के किसी राजा ने उसको शॉल भेंट में दे दिया। जब वो नौकरी पूरी करके भारत से वापस गया तो लंदन की संसद में सन् 1813 में उसने अपना बयान दिया। वो कहता है: ” भारत से मैं एक शॉल लेकर के आया उस शॉल को मैं 7 वर्षों से उपयोग कर रहा हूँ, उसको कई बार धोया है और प्रयोग किया है उसके बाद भी उसकी क्वालिटी एकदम बरकरार है और उसमे कहीं कोई सिकुड़न नहीं है। मैंने पूरे यूरोप में प्रवास किया है एक भी देश ऐसा नहीं है जो भारत की ऐसी क्वालिटी की शॉल बनाकर दे सके। भारत ने अपने वस्त्र उद्योग में सारी दुनिया का दिल जीत लिया है और भारत के वस्त्र अतुलित और अनुपमेय मानदंड के हैं जिसमे सारे भारतवासी रोजगार पा रहे हैं। इस तरह से लगभग 200 से अधिक इतिहासकारों ने भारत के बारे में यही कहा है की भारत के उद्योगों का, भारत की कृषि व्यवस्था का, भारत के व्यापार का सारी दुनिया में कोई मुक़ाबला नहीं है।”
8. अंग्रेजों की संसद में भारत के बारे में समय समय पर बहस होती रही है। सन् 1813 में अंग्रेजों की संसद में बहस हो रही थी की भारत की आर्थिक स्थिति क्या है ? उसमें अंग्रेजी सांसद कई सारी रिपोर्ट और सर्वेक्षणों के आधार पर कह रहे हैं की: “सारी दुनिया में जो कुल उत्पादन होता है उसका 43% उत्पादन अकेले भारत में होता है और दुनिया के बाकी 200 देशों में मिलाकर 57% उत्पादन होता है।”ये आंकड़ा अंग्रेजों द्वारा उनकी संसद में 1835 में और 1840 में भी दिया गया। इन आंकड़ों को अगर आज के समय में अगर इसे देखा जाए तो अमेरिका का उत्पादन सारी दुनिया के उत्पादन का 25% है, चीन का 23% है। सोचिए आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले तक चीन और अमेरिका के कुल उत्पादन को मिलाकर लगभग उससे थोड़ा कम उत्पादन भारत अकेले करता था। इतना बड़ा उत्पादक देश था हमारा भारत। इसके बाद अँग्रेजी संसद में एक और आंकड़ा प्रस्तुत किया गया की: “सारी दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा लगभग 33% है।” मतलब पूरी दुनिया में जो निर्यात होता था उसमे 33% अकेले भारत का होता था और ये आंकड़ा अंग्रेजों ने 1840 तक दिया है। इसी तरह से एक और आंकड़ा भारत के बारे में अँग्रेजी संसद में दिया गया की: “सारी दुनिया की जो कुल आमदनी है, उस आमदनी का लगभग 27% हिस्सा अकेले भारत का है।” सोचिए सन् 1840 तक भारत ऐसा अदभूत उत्पादक, निर्यातक और व्यापारी देश रहा है। 1840 तक सारी दुनिया का जो निर्यात था उसमें अमेरिका का निर्यात 1% से भी कम हैं, ब्रिटेन का निर्यात 0.5% से भी कम है और पूरे यूरोप और अमेरिका के सभी देशों को मिलाकर उनका निर्यात दुनिया के निर्यात का 3-4% है। 1840 तक यूरोप और अमेरिका के 27 देश मिलकर 3-4% निर्यात करते थे और भारत अकेले 33% निर्यात करता था। उन सभी 27 देशों का उस समय उत्पादन 10-12% था और भारत का अकेले उत्पादन 43% था और ये 27 देशों को इकट्ठा कर दिया जाए तो 1840 तक उनकी कुल आमदनी दुनिया की आमदनी में 4-4.5% थी और भारत की आमदनी अकेले 27% थी।”
9. अब थोड़ी बात भारत की शिक्षा व्यवस्था, तकनीकी और कृषि व्यवस्था की। उद्योगों के साथ भारत विज्ञान और तकनीक में भी काफी विकसित था। भारत के विज्ञान और तकनीक के बारे में दुनिया भर के अंग्रेजों ने बहुत सारी पुस्तकें लिखी हैं। ऐसा ही अंग्रेज़ हैं ‘जी॰डबल्यू॰लिटनर’ और ‘थॉमस मुनरो’, इन दोनों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर बहुत अध्ययन किया था। एक अंग्रेज़ है ‘पेंडुरकास्ट’ उसने भारत की तकनीक और विज्ञान पर बहुत अध्ययन किया और एक अंग्रेज़ है ‘केंमवेल’ उसने भी भारत की तकनीक और विज्ञान पर बहुत अध्ययन किया था।केंमवेल ने कहा है: “जिस देश में उत्पादन सबसे अधिक होता है ये तभी संभव है जब वहाँ पर कारखाने हो और कारखाने तभी संभव हैं जब वहाँ पर टेक्नालजी हो और टेक्नालजी किसी देश में तभी संभव है जब वहाँ पर विज्ञान हो और विज्ञान किसी देश में मूल रूप से शोध के लिए अगर प्रस्तुत है तभी तकनीकी का निर्माण होता है।” 18वीं शताब्दी तक इस देश में इतनी बेहतरीन टेक्नालॉजी रही है स्टील/लोहा/इस्पात बनाने की वो दुनिया में कोई कल्पना नही कर सकता। केंमवेल कहता है की “भारत का बनाया हुआ लोहा/इस्पात सारी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ये बात वो 1842 में इस तरह कहता है की: “इंग्लैंड या यूरोप में जो अच्छे से अच्छा लोहा या स्टील बनता है वो भारत के घटिया से घटिया लोहे या स्टील का भी मुक़ाबला नही कर सकता।”
उसके बाद एक ‘जेम्स फ़्रेंकलिन’ नाम का अंग्रेज़ है जो धातुकर्मी विशेषज्ञ था वो कहता है की: “भारत का स्टील दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है। भारत के कारीगर स्टील को बनाने के लिए जो भट्टियाँ तैयार करते हैं वो दुनिया में कोई नही बना पाता। वो कहता है इंग्लैंड में लोहा बनाना तो हमने 1825 के बाद शुरू किया भारत में तो लोहा 10वीं शताब्दी से ही हजारों हजारों टन में बनता रहा है और दुनिया के देशों में बिकता रहा है। वो कहता है की मैं 1764 में भारत से स्टील का एक नमूना ले के आया था, मैंने इंग्लैंड के सबसे बड़े विशेषज्ञ डॉ॰ स्कॉट को स्टील दिया था और उनको कहा था की लंदन रॉयल सोसाइटी की तरफ से आप इसकी जांच कराइए। डॉ॰ स्कॉट ने उस स्टील की जांच कराने के बाद कहा की ये भारत का स्टील इतना अच्छा है की सर्जरी के लिए बनाए जाने वाले सारे उपकरण इससे बनाए जा सकते हैं, जो दुनिया में किसी देश के पास उपलब्ध नहीं हैं। अंत में वो कहते हैं की मुझे ऐसा लगता है की भारत का ये स्टील हम पानी में भी डालकर रखे तो इसमे कभी जंग नही लगेगा क्योंकि इसकी क्वालिटी इतनी अच्छी है।”
10. एक अंग्रेज़ है लेफ्टिनेंट कर्नल ए॰ वॉकर उसने भारत की शिपिंग इंडस्ट्री पर सबसे ज्यादा शोध किया है। वो कहता है की “भारत का जो अदभूत लोहा/ स्टील है वो जहाज बनाने के काम में सबसे ज्यादा आता है। दुनिया में जहाज बनाने की सबसे पहली कला और तकनीकी भारत में ही विकसित हुई है और दुनिया के देशों ने पानी के जहाज बनाना भारत से सीखा है। फिर वो कहता है की भारत इतना विशाल देश है जहां दो लाख गाँव हैं जो समुद्र के किनारे स्थापित हुआ माना जाता है इन सभी गाँव में जहाज बनाने का काम पिछले हजारों वर्षों से चलता है। वो कहता है की हम अंग्रेजों को अगर जहाज खरीदना हो तो हम भारत में जाते है और जहाज खरीद कर लाते हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी के जीतने भी पानी के जहाज दुनिया में चल रहे हैं ये सारे के सारे जहाज भारत की स्टील से बने हुए हैं ये बात मुझे कहते हुए शर्म आती है की हम अंग्रेज़ अभी तक इतनी अछि क्वालिटी का स्टील बनाना नही शुरू कर पाये हैं। वो कहता है भारत का कोई पानी का जहाज जो 50 साल चल चुका है उसको हम खरीद कर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में लगाएँ तो 50 साल भारत में चलने के बाद भी वो हमारे यहाँ 20-25 साल और चल जाता है इतनी मजबूत पानी के जहाज बनाने की कला और टेक्नालजी भारत के कारीगरों के हाथ में है। आगे वो कहता है हम जीतने धन में 1 नया पानी का जहाज बनाते हैं उतने ही धन में भारतवासी 4 नए जहाज पानी के बना लेते हैं। फिर वो अंत में कहता है की हम भारत में पुराने पानी के जहाज खरीदें और उसको ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में लगाएँ यही हमारे लिए अच्छा है। इसी तरह से वो कहता है भारत में तकनीक के द्वारा ईंट बनती है, ईंट से ईंट को जोड़ने का चुना बनता है उसके अलावा 36 तरह के दूसरे इंडस्ट्री हैं। इन सभी उद्योगों में भारत दुनिया में सबसे आगे है, इसलिए हमें भारत से व्यापार करके ये सब तकनीकी लेनी है और इन सबको इंग्लैंड में लाकर फिर से पुनउत्पादित करना है।”
11. भारत के विज्ञान के बारे में बीसियों अंग्रेजों ने शोध की है और वो ये कहते हैं की भारत में विज्ञान की 20 से ज्यादा शाखाएँ हैं, जो बहुत ज्यादा पुष्पित और पल्लवित हुई है। उनमें से सबसे बड़ी शाखा है खगोल विज्ञान, दूसरी नक्षत्र विज्ञान, तीसरी बर्फ बनाने का विज्ञान, चौथी धातु विज्ञान, भवन निर्माण का विज्ञान ऐसी 20 तरह की वैज्ञानिक शाखाएँ पूरे भारत में हैं। वॉकर लिखा रहा है की “भारत में ये जो विज्ञान की ऊंचाई है वो इतनी अधिक है इसका अंदाज़ा हम अंग्रेजों को नहीं लगता।” एक यूरोपीय वैज्ञानिक था कॉपरनिकस, उसके बारे में कहा जाता है की उसने पहली बार बताया सूर्य का पृथ्वी के साथ क्या संबंध है, जिसने पहली बार सूर्य से पृथ्वी की दूरी का अनुमान लगाया और जिसने सूर्य से दूसरे उपग्रहों के बारे में जानकारी सारी दुनिया को दी। लेकिन इस कॉपरनिकस की बात को वॉकर ही कह रहा है की ये असत्य है। वॉकर कहता है की अंग्रेजों के हजारों साल पहले भारत में ऐसे विशेषज्ञ वैज्ञानिक हुए हैं जिनहोने पृथ्वी से सूर्य का ठीक ठीक पता लगाया है और भारत के शास्त्रों में उसको दर्ज़ कराया है। यजुर्वेद में ऐसे बहुत सारे श्लोक हैं जिनसे खगोल शास्त्र का ज्ञान मिलता है। कॉपरनिकस का जिस दिन जन्म हुआ था यूरोप में, उससे ठीक एक हज़ार साल पहले एक भारतीय वैज्ञानिक “श्री आर्यभट्ट जी” ने पृथ्वी और सूर्य की दूरी बिलकुल ठीक ठीक बता दी थी और जितनी दूरी आर्यभट्ट जी ने बताई थी उसमे कॉपरनिकस एक इंच भी इधर उधर नही कर पाया। वही दूरी आज अमेरिका और यूरोप में मानी जाती है। भारत में खगोल विज्ञान इतना गहरा था की इसी से नक्षत्र विज्ञान का विकास हुआ। भारतीय वैज्ञानिकों ने ही दिन और रात की लंबाई, समय के आंकड़े निकाले है और सारी दुनिया में उनका प्रचार हुआ है। ये जो दिनों की हम गिनती करते हैं रविवार, सोमवार इन सभी दिनों का नामकरण और अवधि पूरी की पूरी महान महर्षि आर्यभट्ट की निकाली हुई है और उनके द्वारा ही ये दिन तय किए हुए हैं। अंग्रेज़ इस बात को स्वीकार करते हैं की भारत के दिनों को ही उधार लेकर हमने सनडे, मंडे बनाया है। पृथ्वी अपनी अक्ष और सूर्य के चारों ओर घूमती है ये बात सबसे पहले 10वीं शताब्दी में भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रमाणित की थी। पृथ्वी के घूमने से दिन रात होते हैं, मौसम और जलवायु बदलते हैं, ये बात भी भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा प्रमाणित हुई है सारी दुनिया में। सूर्य के कितने उपग्रह हैं और उनका सूर्य के साथ अंतरसंबंध क्या है ये सारी खोज भारत में तीसरी शताब्दी में हुई थी जब दुनिया में कोई पढ़ना लिखना भी नहीं जानता था।
12. एक अंग्रेज़ है ‘डेनियल डिफ़ों’ वो कहता है की “भारत के वैज्ञानिक कितने ज्यादा पक्के हैं गणित में की चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का ठीक ठीक समय बता देते हैं सालों पहले।” 1708 में ये लंदन की संसद में के रहा है की ‘मैंने भारत का पंचांग जब भी पढ़ा है मुझे एक प्रश्न का उत्तर कभी नही मिला की भारत के वैज्ञानिक कई कई साल पहले कैसे पता लगा लेते हैं की आज चन्द्र ग्रहण पड़ेगा, आज सूर्य ग्रहण पड़ेगा और इस समय पर पड़ेगा और सही सही उसी समय पर पड़ता है।’ इसका मतलब भारत के वैज्ञानिकों की खगोल और नक्षत्र विज्ञान में बहुत गहरी शोध है। “
13. भारतीय शिक्षा के बारे में जर्मन दार्शनिक ‘मैक्स मूलर’ ने सबसे ज्यादा शोध किया है और वो ये कहता है की “मैं भारत की शिक्षा व्यवस्था से इतना प्रभावित हूँ शायद ही दुनिया के किसी देश में इतनी सुंदर शिक्षा व्यवस्था होगी जो भारत में है। भारत के बंगाल प्रांत में मेरी जानकारी के अनुसार 80 हज़ार से ज्यादा गुरुकुल पिछले हजारों साल से सफलता के साथ चल रहे हैं।” एक अंग्रेज़ शिक्षाशास्त्री, विद्वान है ‘लुडलो’ वो 18वीं शताब्दी में कह रहा है की “भारत में एक भी गाँव ऐसा नहीं है जहां कम से कम एक गुरुकुल नहीं है और भारत के एक भी बच्चे ऐसे नहीं हैं जो गुरुकुल में न जाते हो पढ़ाई के लिए।” इसके अलावा एक और अंग्रेज़ “जी॰डबल्यू॰ लिटनर”, कहता है की मैंने भारत के उत्तरी इलाके का सर्वेक्षण किया है और मेरी रिपोर्ट कहती है की भारत में 200 लोगों पर एक गुरुकुल चलता है। इसी तरह थॉमस मुनरो कहता है की दक्षिण भारत में 400 लोगों पर कम से कम एक गुरुकुल भारत में है। दोनों के आंकड़े मिलाने पर भारत में औसत 300 लोगों पर एक गुरुकुल चलता था और जिस जमाने के ये आंकड़े है तब भारत की जनसंख्या लगभग 20 करोड़ थी। माने सन् 1822 के आसपास सम्पूर्ण भारत देश में 7,32000 गुरुकल थे। सन् 1822 में भारत में कुल गाँव भी लगभग 7,32000 थे, इस प्रकार लगभग हर गाँव में एक गुरुकुल था। वहीं अंग्रेजों के इतिहास से पता चलता है की सन् 1868 तक पूरे इंग्लैंड में सामान्य बच्चों को पढ़ाने के लिए एक भी स्कूल नहीं था। हमारी शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों से बहुत बहुत आगे थी। सबसे अच्छी बात ये थी की इन गुरुकुलों को चलाने के लिए कभी भी किसी राजा से कोई दान और अनुदान नहीं लिया जाता था, ये सारे गुरुकुल समाज के द्वारा चलाये जाते थे।’जी॰डबल्यू॰ लिटनर’ की रिपोर्ट कहती है की 1822 में सम्पूर्ण भारत में 97% साक्षरता की दर है। हमारे प्राचीन गुरुकुलों में पढ़ाई का समय होता था सूर्योदय से सूर्यास्त तक। इतने समय में वो 18 विषय पढ़ते है जिसमें वो गणित/ वैदिक गणित, खगोल शास्त्र , नक्षत्र विज्ञान, धातु विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, शौर्य विज्ञान जैसे लगभग 18 विषय पढ़ाये जाते थे।
एक अंग्रेज़ अधिकारी ‘पेंडरगास्ट’ लिखाता है की ‘जब कोई बच्चा भारत में 5 साल, 5 महीने और 5 दिन का हो जाता था बस उसी दिन उसका गुरुकुल में प्रवेश हो जाता था और लगातार 14 वर्ष तक वो गुरुकुल में पढ़ता था। इसके बाद जिसको विशेषज्ञता हासिल करनी होती थी उसके लिए उच्च शिक्षा के केंद्र भी थे। भारत में शिक्षा इतनी आसान है की गरीब हो या अमीर सबके लिए शिक्षा समान है और व्यवस्था समान है। उदाहरण: भगवान श्रीकृष्ण जिस गुरुकुल में पढे थे, उसी में सुदामा भी पढे थे, एक करोड़पति का बेटा और एक रोडपति का।’
जबकि 2009 तक भारत में सरकार द्वारा लाखों करोड़ों खर्च करने के बाद 13,500 विद्यालय और 450 विश्वविद्यालय हैं। जबकि 1822 में अकेले मद्रास प्रांत (उस जमाने का कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडू) में 11,575 विद्यालय और 109 विश्वविद्यालय थे। इसके बाद मुंबई प्रांत, पंजाब प्रांत और नॉर्थ वेस्ट फ़्रोंटिएर चारों स्थानों को मिला दिया जाए तो भारत में लगभग 14,000+ विद्यालय और 500-525 विश्वविद्यालय थे। इसने इंजीनियरिंग, सर्जरी, मैडिसिन, आयुर्वेद, प्रबंधन सबके लिए अलग अलग विद्यालय और विश्वविद्यालय थे। तक्षशिला, नालंदा जैसे 500 से ज्यादा विश्वविद्यालय रहे थे।जबकि पूरे यूरोप में ‘सामान्य लोगों के लिए शिक्षा व्यवस्था’ सबसे पहले इंग्लैंड में 1868 में आयी। इससे पहले जो स्कूल थे वो सिर्फ राजाओं के बच्चों के लिए थे जो उनके ही महल में चला करते थे। साधारण लोगों को उनमे प्रवेश नहीं मिलता था। यूरोप के दार्शनिकों का मानना है की आम लोगों को तो गुलाम बनके रहना है उसको शिक्षित होने से कोई फायदा नहीं। अरस्तू और सुकरात दोनों कहते हैं की “सामान्य लोगों को शिक्षा नहीं देनी चाहिए, शिक्षा सिर्फ राजा और अधिकारियों के बच्चों को देनी चाहिए, इसलिए सिर्फ उनके लिए ही विद्यालय होते थे।”
14. भारत में कृषि व्यवस्था के बारे में “लेस्टर” नाम का अंग्रेज़ कहता है की “भारत में कृषि उत्पादन दुनिया में सर्वोच्च है। अंग्रेजों की संसद में भाषण देते समय वो कहता है, भारत में एक एकड़ में सामान्य रूप से 56 कुंटल धान पैदा होता है। ये उत्पादन औसतन है, भारत के कुछ इलाकों में तो 70-75 कुंटल धान होता है और कुछ इलाकों में 45-50 कुंटल धान पैदा होता है। भारत में एक एकड़ में सामान्य रूप से 120 मीट्रिक टन गन्ना पैदा होता है। कपास का उत्पादन सारी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में है।”
जबकि आज भारत में “यूरिया, डीएपी, फॉस्फेट” डालने के बाद औसतन एक एकड़ में 30 कुंटल से ज्यादा धान पैदा नहीं होता है। जबकि 150 साल पहले सिर्फ गाय के गोबर और गौमूत्र की खाद से एक एकड़ में औसतन 56 कुंटल धान पैदा होता था। आज भारत में “यूरिया, डीएपी, फॉस्फेट” के बोरे के बोरे डालने के बाद एक एकड़ में औसतन उत्पादन 30-35 मीट्रिक टन है।
एक अंग्रेज़ कहता है की: ‘भारत में फसलों की विविधता दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत में धान के कम से कम 1 लाख प्रजाति के बीज हैं। भारत में दुनिया में सबसे पहला ‘हल’ बना। जो दुनिया को भारत की अदभूत दें है। इसके अलावा खुरपी, खुरपा, हसिया, हथौड़ा, बेल्ची, कुदाल, फावड़ा आदि सब चीज़ें दुनिया में बाद में आई है भारत में ये सैकड़ों साल पहले ही बन चुकी है। बीज को एक पंक्ति में बोने की परंपरा भी हजारों साल पहले भारत में विकसित हुई है।”
आज भी धान की 50,000 प्रजातियाँ पूरे देश में मौजूद हैं। दुनिया ने सन् 1750 में खेती करना भारत से ही सीखा है। इससे पहले ये यूरोप के लोग जंगली फलों और पशुओं को शिकार करके ही हजारों साल यही खाते रहे हैं। जिस समय इंग्लैंड और यूरोप के लोग दो ही चीज़ें खाते थे या तो जंगली फल या मांस, उस समय भारत में 1 लाख किस्म के चावल होते थे, बाकी चीजों की तो बात ही छोड़ दीजिये। हजारों साल तक भारत ने दुनिया को चावल, गुड, दालें उत्पादित करके खिलाई है। और खाने पीने की हजारों चीज़ें दुनियाभर के देश हमसे खरीदते थे और हमें बदले में सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात देते थे।
15. भारत के लोगों का स्वास्थ्य दुनिया में सबसे अदभूत था क्योंकि यहाँ की चिकित्सा व्यवस्था भी दुनिया में सबसे उत्तम थी। हजारों लाखों जड़ी बूटियाँ और सर्जरी की विद्या पूरी दुनिया को भारत से ही गयी है। भारत में हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू, केरल इन राज्यों में सर्जरी के सबसे बड़े शोध केंद्र चला करते थे। जब दुनिया में कोई नहीं जानता था तब आँख में मोतियाबिंद का पहला ऑपरेशन भारत में ही हुआ है। सर्जरी की सबसे आधुनिकम विद्या ‘राइनोंप्लासी’ का सबसे पहला परीक्षण और प्रयोग भी भारत में ही हुआ है। इंग्लैंड की ‘रॉयल सोसाइटी ऑफ सर्जन’ अपने इतिहास में लिखते हैं की हमने सर्जरी भारत से सीखी है और उसके बाद पूरे यूरोप को हमने ये सर्जरी सिखायी है।
इस प्रकार भारत चिकित्सा, तकनीक, विज्ञान, उद्योग, व्यपार सबसे दुनिया में शीर्ष पर रहा है और इन सबका श्रेय भारत की शिक्षा व्यवस्था को जाता है, जो दुनिया में सबसे ऊंची थी। ऐसा अदभूत ‘हमारा भारत’ देश अंग्रेजों के आने से पहले तक था। अंग्रेजों की नीतियों और क़ानूनों के कारण आज हमारी व्यवस्थाओं में इतनी गिरावट आई है। सबसे पहले उन्होने ‘इंडियन एडुकेशन एक्ट’ बनाकर भारत के गुरुकुल बंद किए गए। उसके बाद उन्होने भारत की वस्तुओं पर ज्यादा से ज्यादा टैक्स लगाकर और विदेशी वस्तुओं को टैक्स फ्री कराकर भारत के कारखाने बंद किए। भारत का निर्यात खत्म हो गया। भारत की कृषि व्यवस्था को खत्म करने के लिए अंग्रेजों ने किसानों पर लगान लगाना शुरू किया। किसानों की ज़मीनें छीनने के लिए ‘Land Acquisition Act’ बनाया। फिर किसानों के काम आने वाली गाय और बैल इनका कत्ल कराओ और सबसे पहला कत्लखाना अंग्रेजों ने ही शुरू किया कलकत्ता में, जो आज भी चल रहा है। अंग्रेज़ उसमें 350 गाय रोज कट्टे थे, लेकिन आज उसमे 14,000 गाय रोज कटती हैं। ये सारी दूर व्यवस्थाएँ अंग्रेजों की देन हैं। अगर अंग्रेज़ नहीं आते तो हम आज भी दुनिया के शीर्ष पर होते। आज भी उनके कानून हटाये जाए तो भारत फिर से दुनिया के शिखर पर बैठेगा।

indian police act की कहानी

लाला लाजपात राय अंग्रेजो के खिलाफ़ लड़ रहे थे ।अंग्रेजी पूलिस ने उनके
सिर में लाठिया मार मार के उनको शहीद कर दिया ।

… आजादी के 64 साल बाद 4 जून को भ्रष्ट सरकार के खिलाफ़ अंदोलन में पुलिस
ने बहन राजबाला को डंडे मार मार शहीद कर दिया ।

आजादी के 64 साल बाद आज भी पुलिस अंदोलन करने वाले भारत वासियो को वैसे
ही डंडे मारे जैसे अंग्रेजो की पुलिस मारती तो थी तो कैसे की हम आजाद हैं


आखिर ये पुलिस बनी कब ? ?
10 मई 1857 को जब देश में क्रांति हो गई । और भारतवासियों ने पूरे देश
में 3 लाख अंग्रेजो को मार डाला । उस समय क्रांतिकारी थे मंगल पांडे,
तांतिया टोपे, नाना साहब पेशवा आदि ।

लेकिन कुछ गद्दार राजाओ के वजह से अंग्रेज दुबारा भारत में वापिस आयें ।
और दुबारा अंग्रेजो को भगाने के लिये 1857 से लेकर 1947 तक पुरे 90 साल लग गये ।

और इसके लिये भगत सिहं,उधम सिहं , चंद्र शेखर आजाद ,राम प्रसाद बिसमिल
जैसे 7 लाख 32 हजार क्रंतिवीरो को अपनी जान देनी पड़ी ।

जब अंग्रेज दुबारा आये तब उन्होने फ़ैसला किया कि अब हम भारतवासियों को
सीधे मारे पीटें गये नहीं । अब हम इनको कानून बना कर गुलाम रखेंगे । उनको
डर था कि 1857 जैसी क्रंति दुबारा न हो जाये । तब अंग्रेजो ने INDIAN
POLICE ACT बनाया । नाम मे indian लिखा है !लेकिन indian कुछ नहीं इसमे
!!

और पुलिस बनायी । उसमे एक धारा बनाई गई right to offence | मतलब पुलिस
वाला आप पर जितनी मर्जी लठिया मारे पर आप कुछ नहीं कर सकते और अगर आपने
लाठी पकड़ने की कोशिश की तो आप मर मुकद्दमा चलेगा ।
इसी कानून के आधार पर सरकार अंदोलन करने वालो पर लठिया बरसाया करती थी ।

फ़िर ऐसी धारा 144 बनाई गई ताकि लोग इकठे न हो सके ।

ऐसी ही कुछ और खतरनाक कानुन बनाने के लिये साईमन कमीशन भारत आने वाला था
। क्रंतिकारी लाला लाजपत राय जी ने उसका शंतिप्रिय विद्रोह कर रहे थे ।
अंग्रेजी पुलिस के एक अफ़सर सांड्र्स ने उन लाठिया बरसानी शुरु कर दी ।
एक लाठी मारी ,दो मारी ,तीन ,चार ,पांच करते करते 14 लाठिया मारी । नतीजा
ये हुआ लाला जी के सर से खून ही खून बहने लगा उनको अस्तपताल लेकर गये
वहां उनकी मौत हो गई ।

अब सांड्र्स को सज़ा मिलनी चाहिए इसके लिये शहीदेआजम भगत सिंह ने आदलत
में मुकद्दमा कर दिया । सुनवाई हुई । अदालत ने फैसला दिया कि लाला पर जी
जो लाठिया मारी गई है वो कानून के आधार पर मारी गई है अब इसमे उनकी मौत
हो गई तो हम क्या करे इसमे कुछ भी गलत नहीं है ।नतीजा सांड्र्स को बाईजत
बरी किया जाता है ।

तब भगत सिंह को गुस्सा आया उसने कहा जिस अंग्रेजी न्याय व्यवस्था ने लाला
जी के हथियारे को बाईज्जत बरी कर दिया । उसको सज़ा मैं दुंगा । और इसे
वहीं पहुँचाउगा जहाँ इसने लाला जी पहुँचाया है । और जैसा आप जानते फ़िर
भगत सिंह ने सांड्र्स को गोली से उड़ा दिया । और फ़िर भगत सिंह को इसके
लिये फ़ांसी की सज़ा हुई ।

जिंदगी के अंतिम दिनो जब भगत सिंह लाहौर जेल में बंद थे तो बहुत से
पत्रकार उनसे मिलने जाया करते थे । और भगत सिंह से पुछा उनकी कोई आखिरी
इच्छा और देश के युवाओ के लिये कोई संदेश ?

शहीदेआजम भगत सिंह ने कहा कि मैं देश के नौजवानो से उम्मीद करता हूँ । कि
जिस indian police act के कारण लाला जी जान गई । जिस indian police act
के आधार मैं फ़ांसी चढ़ रहा हूँ । मै आशा करता हुं इस देश के नौजवान
आजादी मिलने से पहले पहले इस indian police act खत्म करवां देगें ।ये
मेरी भावना है | यही मेरे दिल की इच्छा है ।

लेकिन ये बहुत शर्म की बात है अजादी मिलने के बाद जिन लोगो ने देश कि
सत्ता संभाली । उन्होने अंग्रेजो का भारत को बरबाद करने के लिये बनाये
गये कानुनो में से एक भी कानुन नही बदला ।बहुत शर्म की बात हैआजादी के 64
साल आज भी इस कानून को हम खत्म नहीं करवा पाये ।

आज भी आप देखो indian police act के आधार पर पुलिस देश वासियो पर कितना
जूल्म करती है । कभी अंदोलन करने वाले किसनो को डंडे मारती है । कभी औरत
को डंडे मारती है । सरकार के खिलाफ़ किसी भी तरह का अंदोलन किया जाता है ।
तो पुलिस आकर निर्दोश लोगो को डंडे मारने शुरु कर देती है ।

आज तक किसी भी राजा ने पुलिस नही बनाई सबकी सेना हुआ करती थी ।

अंग्रेजो ने पुलिस और indian police act क्रंतिकारियो को लाठियो से
पीटने और अपना बचाव करने के लिय़े बनाया था ।

आजादी के 64 साल बाद भी ये पुलिस सरकार में बैठे काले अंग्रेजो की रक्षा
करती है ।और सरकार के खिलाफ़ अंदोलनकरने वालो को वैसे ही पीटती है । जैसे
अंग्रेजो कि पुलिस पीटा करती थी ।

और सबसे ताज़ी घटना 4 जून की वो भयानक रात जब काला धन वापिस लाने के लिये
पुलिस रामलीला मैदान में सोये हुए देश भगतो पर आधी रात को लाठिया बर साई
। और सैंक्डो लोग उसमे घायल हो गये । और लाला लाजपत राय की तरह बहन
राजबाला को लाठिया मार मार कर मार डाला ।

आज हर साल 23 मार्च को हम भगत सिंह का शहीदी दिवस मानाते हैं । लाला
लाजपत राय का शहीदी दिवस मानाते हैं । किस मुँह से हम उनको श्रधांजलि
आर्पित करे ।
कि लाला लाजपत राय जी जिस कानून के आधार आपको लाठिया मारी गई और आपकी मौत
हुई उस कानून को हम आजादी के 64 साल बाद भी हम खत्म नहीं करवा पाये । कि
मुँह से हम भगत सिंह को श्रधंजलि दे कि भगत सिंह जी जिस अंग्रेजी कानून
के आधार पर आपको फ़ासी की सज़ा हुई । आजादी के 64 साल बाद भी हम उसको सिर
पर ढो रहे हैं । आज आजादी के 64 साल बाद आज भी पुलिस अंदोलन करने वाले
भारत वासियो को वैसे ही डंडे मारे जैसे अंग्रेजो की पुलिस मारती तो थी तो
कैसे की हम आजाद हैं ।

यह तो थी एक indian police act की कहानी ! अंग्रेज़ो ने ऐसे 34700 कानून
भारत को गुलाम बनाने के लिए बनाए थे ! और बहुत शर्म की बात है !वो सारे
के सारे कानून आज भी वैसे के वैसे देश चल रहे हैं !! एक भी कानून को हम
बादल नहीं पाये ! बस फर्क इतना है पहले गोरे अंग्रेज़ शासन करते थे आज
काले अंग्रेज़ शासन कर रहे हैं !!

भारत मे गाय काटने का इतिहास

इस देश मुगल सीधा गाय का कत्ल करते थे ! और कई बार हमारे राजा मुगलो का इसी बात पर वध करते थे ! जैसे शिवाजी ने गौ माता को बचाने के लिए एक मुगल राजा की बाजू काट दी थी !!

लेकिन उन्होने कोई कत्लखाना नहीं खोला !!पर जब अंग्रेज़ आए ये बहुत चालक थे ! किसी भी गलत काम को करने से पहले उसको कानून बना देते थे फिर करते थे और कहते थे हम तो कानून का पालन कर रहे हैं !!

भारत मे पहला गौ का कत्लखाना 1707 ईस्वी ने रॉबर्ट क्लाएव ने खोला था और उसमे रोज की 32 से 35 हजार गाय काटी जाती थी ! तो कत्लखाने के size का अंदाजा लगा सकते हैं ! और तब हाथ से गाय काटी जाती थे ! तो सोच सकते हैं कितने कसाई उन्होने रखे होंगे !
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आजादी के 5 साल बाद 1952 मे पहली बार संसद मे ये बात उठी कि गौ रक्षा होनी चाहिए ! गाय के सभी कत्लखाने जो भारत मे अंग्रेज़ो ने शुरू किए थे बंद होने चाहिए ! और यही गांधी जी कि आत्मा को यही श्र्द्धांजलि होगी ! क्यूकि ये उनके आजाद भारत के सपनों मे से पहले नंबर पर था !

तो गांधी के परम शिष्य नेहरू खड़ा हुआ और बोला चलो ठीक है अगर गौ रक्षा का कानून बनना चाहिए तो इस पर संसद मे प्रस्ताव आना चाहिए ! तो संसद मे एक सांसद हुआ करते थे महावीर त्यागी वो आर्य समाजी थे और सोनीपत से अकेले चुनाव लड़ा करते थे !सबसे पहला चुनाव 1952 मे हुआ और वो बहुत भयंकर वोटो से जीत कर आए थे !

तो महावीर त्यागी ने कहा ठीक मैं अपने नाम से प्रस्ताव लाता हूँ ! तो प्रस्ताव आया उस पर बहस हुई ! बहस के बाद तय किया कि वोट किया जाय इस पर ! तो वोट करने का दिन आया ! तब पंडित नेहरू ने एक ब्यान दिया !जो लोकसभा के रेकॉर्ड मे है आप चाहे तो पढ़ सकते हैं ! नेहरू ने कहा अगर ये प्रस्ताव पारित हुआ तो मैं शाम को इस्तीफा दे दूंगा !

मतलब ??

गौ रक्षा अगर हो गई इस देश मे! तो मैं प्रधानमंत्री नहीं रहूँगा ! प्रणाम क्या हुआ जो कांग्रेसी नेता संसद मे गौ रक्षा के लिए वोट डालने को तैयार हुए थे नेहरू का ये वाक्य सुनते ही सब पलट गए ! तो उस जमाने मे क्या होता था कि नेहरू जी अगर पद छोड़ दे तो क्या होगा ?? क्यूंकि वल्ब भाई पटेल का स्वर्गवास हो चुका था !

तो कांग्रेसी नेताओ मे चिंता रहती थी कि अगर नेहरू जी भी चलेगे फिर पार्टी का क्या होगा और पता नही अगली बार जीतेंगे या नहीं जीतेंगे ! और उस समय ऐसी बात चलती थी nehru is india india is नेहरू !(और ये कोंग्रेसीओ कि आदत है indra is india india is indra )
तो बाकी कोंग्रेसी पलट गए और संसद मे हगामा कर दिया और गौ रक्षा के कानून पर वोट नहीं हुआ !
और अगले दिन महावीर त्यागी को सब ने मजबूर कर दिया और उनको प्रस्ताव वापिस लेना पड़ा !

महावीर त्यागी ने प्रस्ताव वापिस लेते समय भाषण किया और बहुत ही जबर्दस्त भाषण किया ! उन्होने कहा पंडित नेहरू मैं तुमको याद दिलाता हूँ !कि आप गांधी जी के परम शिष्य है और गांधी जी ने कहा था भारत आजाद होने के बाद जब पहली सरकार बनेगी तो पहला कानून गौ रक्षा का बनेगा ! अब आप ही इस से हट रहे है तो हम कैसे माने कि आप गांधी जी के परम शिष्य है ???

और उन्होने कहा मैं आपको आपके पुराने भाषणो कि याद दिलाता हूँ ! जो आपने कई बार अलग अलग जगह पर दिये है ! और सबमे एक ही बात काही है कि मुझे कत्लखानों से घिन्न आते इन सबको तो एक मिनट मे बंद करना चाहिए ! मेरी आत्मा घबराती है ये आपने कितनी बार कहा लेकिन जब कानून बनाने का समय आया तब आप ही अपनी बात से पलट रहे है ?!

नेहरू ने इन सब बातों को कोई जवाब नहीं दिया ! और चुप बैठा रहा !और बात आई गई हो गई ! फिर एक दिन 1956 मे नेहरू ने सभी मुख्य मंत्रियो को एक चिठी लिखी वो भी संसद के रेकॉर्ड मे है ! अब नेहरू का कौन सा स्वरूप सही था और कौन सा गलत ! ये तय करने का समय आ गया हैं !

जब वे गांधी जी के साथ मंचपर होते थे तब भाषण करते थे कि क्त्ल्खनों के आगे से गुजरता हूँ तो घिन्न आती है आत्मा चीखती है ! ये सभी क्त्ल्खने जल्द बंद होने चाहिए !और जब वे प्र्धानमतरी बनते है तो मुख्य मंत्रियो को चिठी लिखते हैं ! कि गाय का कत्ल बंद मत करो क्यूंकी इससे विदेशी मुद्रा मिलती है !

उस पत्र का अंतिम वाक्य बहुत खतरनाक था उसमे नेहरू लिख रहा है मान लो हमने गाय ह्त्याबंद करवा दी ! और गौ रक्षा होने लगी तो सारी दुनिया हम पर हसे गई कि हम भारत को 18 व शताब्दी मे ले जा रहे हैं ! !

अर्थात नेहरू को ये लगता था कि गाय का कत्ल होने से देश 21 वी शताब्दी मे जा रहा है ! और गौ रक्षा होने से 18 वी शताब्दी कि और जाएगा ! राजीव भाई का हरद्य इस पत्र को पढ़ कर बहुत दुखी हुआ !राजीव भाई के एक बहुत अच्छे मित्र थे उनका नाम था रवि राय लोकसभा के अधक्षय रह चुके थे !उनकी मदद से ये पत्र मिला ! संसद कि लाएब्रेरी मे से ! और उसकी फोटो कॉपी रख ली !!

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तो राजीव भाई ने ये जानने कि कोशिश की आखिर नेहरू जी के जीवन की ऐसे कौन से बात थी जो वो गौ ह्त्या को चालू रखना चाहते थे ! क्यूंकि पत्र मे नेहरू लिखता है कि विदेशी मुद्रा मिलती है तो क्या विदेशी मुद्रा ही एक प्र्शन था या इससे भी कुछ आगे था !

राजीव भाई कहते है कि मेरा ये व्यक्तिगत मानना है ये गलत भी हो सकता है ! वो कहते है कि इंसान अपनी public life (सार्वजनिक जीवन) मे जो करता है ! उसकी जड़े उसकी जड़े उसकी private life मे जरूर होती है ! वो भारत का प्र्धानमतरी हो,राष्ट्रपति हो देश के किसी सेवधानिक पद आर बैठा हुआ हो या कोई आम इंसान हो ! या कोई किसान कोई भी व्यक्ति हो अपनी public life (सार्वजनिक जीवन) मे जो करते है ! उसकी जड़े उसकी जड़े उसकी private life मे जरूर होती है !

मतलब नेहरू कि private life मे क्या था जो वो गाय कि ह्त्या के लिए इतने परेशान थे ! और इसके लिए राजीव भाई ने बहुत प्र्यास किया और नेहरू की नीजी जीवन के private life के बहुत दस्तावेज़ इकठे किए !! कम से कम 500 से ज्यादा उनके पास थे ! तो पता चला नेहरू खुद गाय का मांस खाता था ! राजीव भाई कहते है इससे पहले मुझे इतना तो मालूम था कि नेहरू जी शराब पीते हैं ! और सिगरेट भी पीते है और chain smoker है दिन मे 60 से 70 सिगरेट पी जाते हैं !और भी बहुत कुछ मालूम था उनके चरित्र के बारे मे ! पर ये पहली बार पता चला कि वो गाय का मांस भी खाते हैं !

और उनके लिए गाय मांस के भोजन को बनाकर तेयार करके उनको lunch के रूप मे भेजने का काम दिल्ली का वही होटल करता था जहां अमेरिका का प्रधानमंत्री जार्ज बुश अंतिम बार 2006 मे आया था और वहाँ रुका था ! और नेहरू का एक दिन का खर्चा उस जमाने मे 13 हजार रुपए होता था जिस पर भारत के एक समाजवादी नेता ने बड़ी कडक टिपणी की थी राम मनोहर लोहिया ने !

उन्होने संसद मे एक दिन बहुत जोड़दार भाषण दिया था !कि नेहरू तुम्हारा एक समय के भोजन का खर्च 13 हजार रुपए है और भारत के 14 करोड़ लोगो को खाने के लिए 2 समय की रोटी नहीं है !तुमको शर्म नहीं आती उस समय के जमाने मे लोहिया जी एक व्यक्ति थे जो नेहरू जी को इस तरह से बोल पाते थे बाकी सब नेहरू के आगे पीछे ही घूमते थे !

जब ये दस्तावेज़ मिल गए तो ये बात समझ आती है कि नेहरू के मन मे गाय के लिए प्रेम सिर्फ एक दिखावा था गांधी जी को खुश करने के लिए था और भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए था एक बार प्र्धानमतरी बन अब तो कोई कष्ट नहीं है को रोकने वाला नहीं तो टोकने वाला नहीं और सरदार पटेल कि मृतयु के बाद तो कोई नहीं !

और राजीव भाई कहते है ये जो जितनी बाते मैंने आपको नेहरू के बारे मे कही है सब कि सब लोकसभा के रिकॉर्ड मे है और कभी इतिहास लिखा जाये तो ये सब का सब सामने आए जाये ! और पूरे देश को नेहरू का काला चिठा पता चल जाये !!

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अब आगे कि बात करे नेहरू के बाद से आजतक गाय ह्त्या रोकने का बिल पास क्यूँ नहीं हुआ !???

दस्तावेज़ बताते हैं इसके बाद के दो ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिनहोने पूरी ईमानदारी से गौ ह्त्या रोकने का कानून लाने की कोशिश की ! उनमे से एक का नाम था श्री लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे श्री मुरार जी देसाई !!

श्री मुरार जी भाई ये कानून पास करवा पाते कि उनकी सरकार गिर गई ! या दूसरे शब्दो मे कहे सरकार गिरा दी गई ! क्योंकि वही एक मात्र ऐसे प्रधान मंत्री थे ! जिनहोने बहुत हिम्मत वाला काम किया था अमेरिका कि कंपनी coca cola को 3 दिन का नोटिस दिया और भारत से भागा दिया ! और ऐसा नोटिस केवल coco cola को नहीं बल्कि एक और बड़ी विदेशी कंपनी hul(hindustaan uniliver ) को भी दिया और ऐसे करते करते काफी विदेशी कंपनियो को नोटिस जारी किया कि जल्दी से जल्दी तुम भारत छोड़ दो !

इसके इलवा उन्होने एक और बढ़िया काम किया था गुजरात मे शराब पर प्रतिबंध लगा दिया ! और वो आजतक है वो बात अलग है कि black मे कहीं शराब मिल जाती है पर कानूनी रूप से प्रतिबंध है ! और उनहोने कहा था ऐसा मैं पूरा भारत मे करूंगा और जल्दी से गौ रक्षा का कानून भी लाऊँगा और गौ ह्त्या करने वाले को कम से कम फांसी कि सजा होगी !

तो देश मे शराब बेचने वाले,गौ ह्त्या करने वाले और विदेशी कंपनिया वाले ! ये तीनों l lobby सरकार के खिलाफ थी इन तीनों ने मिल कर कोई शयद्त्र रचा होगा जिससे मुरार जी भाई की सरकार गिर गई !!

लालबहादुर शास्त्री जी ने भी एक बार गौ ह्त्या का कानून बनाना चाहा पर वो ताशबंद गए ! और फिर कभी जीवित वापिस नहीं लोटे !!

और अंत 2003 मे श्री अटल बिहारी वाजपायी की NDA सरकार ने गौ ह्त्या पर सुबह संसद मे बिल पेश किया और शाम को वापिस ले लिया !!

क्यू ??

अटल जी की सरकार को उस समय दो पार्टिया समर्थन कर रही थी एक थी तेलगु देशम और दूसरी त्रिमूल कॉंग्रेस ! दोनों ने लोकसभा मे कहा अगर गौ ह्त्या पर कानून पास हुआ तो समर्थन वापिस !!
बाहर मीडिया वालों ने ममता बेनर्जी से पूछा की आप गौ ह्त्या क्यूँ नहीं बंद होने देना चाहती ???

ममता बेनर्जी ने कहा गाय का मांस खाना मे मौलिक अधिकार है
कोई कैसे रोक सकता है ??
तो किसी ने कहा आप तो ब्राह्मण है तो ममता ने कहा बेशक हूँ !!

तो अंत वाजपाई जी को अपनी सरकार बचाना गौ ह्त्या रोकने से ज्यादा बड़ा लगा ! और उन्होने बिल वापिस ले लिया !

इसके बाद राजीव भाई ने अटल जी को एक चिठी लिखी ! और कहा अटल जी काश आपने गौ ह्त्या रोकने के मुद्दे पर अपनी सरकार गिरा ली होती ! तो मैं गारंटी के साथ कहता हूँ अगली बार आप पूर्ण बहुमत से जीतकर आते !! क्यूँ कि गौ ह्त्या को रोकने का मामला इस देश 80 करोड़ लोगो के दिल से जुड़ा है ! और वो आपको दुबारा जीतवाते ! अगर गौ ह्त्या रोकने के लिए आपने सरकार गिरा ली होती !!
तो खैर अटल जी शायद उस वक्त इतने दूरदर्शी नहीं थे !!

फिर 2003 के बाद कॉंग्रेस आ गई ! इससे तो वैसे कोई अपेक्षा नहीं कि जा सकती ! गाय ह्त्या रोकना तो दूर लूटेरे मनमोहन ने भारत को दुनिया मे गाय का मांस निर्यात करने वाले देशो कि सूची मे तीसरे नंबर पर ला दिया है !!

अब आपको तय करना है की हम सब गौ ह्त्या रोकने का बिल संसद मे कैसे पास करवाएँगे !!

15 अगस्त 1947.. आजादी नहीं धोखा है, देश का समझौता है

15 अगस्त 1947 …. आजादी नहीं धोखा है, देश का समझौता है

आजादी नहीं धोखा है, देश का समझौता है
शासन नहीं शासक बदला है, गोरा नहीं अब काला है

15 अगस्त 1947 को देश आजाद नहीं हुआ तो हर वर्ष क्यों ख़ुशी मनाई जाती है ?
क्यों भारतवासियों के साथ भद्दा मजाक किया जा रहा है l इस सन्दर्भ में निम्नलिखित तथ्यों को जानें …. :

  1. भारत को सत्ता हस्तांतरण 14-15 अगस्त 1947 को गुप्त दस्तावेज के तहत, जो की 1999 तक प्रकाश में नहीं आने थे (50 वर्षों तक ) l
  2. भारत सरकार का संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में संशोधन करने का अधिकार नहीं है l
  3. संविधान के अनुच्छेद 348 के अंतर्गत उच्चतम न्यायलय, उच्च न्यायलय तथा संसद की कार्यवाही अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में होने के बजाय अंग्रेजी भाषा में होगी l
  4. अप्रैल 1947 में लन्दन में उपनिवेश देश के प्रधानमंत्री अथवा अधिकारी उपस्थित हुए, यहाँ के घोषणा पात्र के खंड 3 में भारत वर्ष की इस इच्छा को निश्चयात्मक रूप में बताया है की वह …
    क ) ज्यों का त्यों ब्रिटिश का राज समूह सदस्य बना रहेगा तथा
    ख ) ब्रिटिश राष्ट्र समूह के देशों के स्वेच्छापूर्ण मिलाप का ब्रिटिश सम्राट को चिन्ह (प्रतीक) समझेगा, जिनमे शामिल हैं …..
    (इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, श्री लंका) … तथा
    ग ) सम्राट को ब्रिटिश समूह का अध्यक्ष स्वीकार करेगा l

  5. भारत की विदेश नीति तथा अर्थ नीति, भारत के ब्रिटिश का उपनिवेश होने के कारण स्वतंत्र नहीं है अर्थात उन्हीं के अधीन है l

  6. नौ-सेना के जहाज़ों पर आज भी तथाकथित भारतीय राष्ट्रीय ध्वज नहीं है l

  7. जन गन मन अधिनायक जय हे … हमारा राष्ट्र-गान नहीं है, अपितु जार्ज पंचम के भारत आगमन पर उसके स्वागत में गाया गया गान है, उपनिवेशिक प्रथाओं के कारण दबाव में इसी गीत को राष्ट्र-गान बना दिया गया … जो की हमारी गुलामी का प्रतीक है l

  8. सन 1948 में बने बर्तानिया कानून के अंतर्गत भाग 1 (1) 1948 के बर्तानिया के कानून के अनुसार हर भारतवासी बर्तानिया की रियाया है और यह कानून भारत के गणराज्य प्राप्त कर लेने के पश्चात भी लागू है l

  9. यदि 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ तो प्रथम गवर्नर जनरल माउन्ट-बेटन को क्यों बनाया गया ??

  10. 22 जून 1948 को भारत के दुसरे गवर्नर के रूप में चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने निम्न शपथ ली l
    “मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यथाविधि यह शपथ लेता हूँ की मैं सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी के प्रति कानून के मुताबिक विश्वास के साथ वफादारी निभाऊंगा, एवं
    मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यह शपथ लेता हूँ की मैं गवर्नर जनरल के पद पर होते हुए सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी की यथावत सव्वा करूँगा l “

  11. 14 अगस्त 1947 को भारतीय स्वतन्त्रता विधि से भारत के दो उपनिवेश बनाए गए जिन्हें ब्रिटिश Common-Wealth की …
    धारा नं. 9 (1) – (2) – (3) तथा
    धारा नं. 8 (1) – (2)
    धारा नं. 339 (1)
    धारा नं. 362 (1) – (3) – (5)
    G – 18 के अनुच्छेद 576 और 7 के अंतर्गत ….

इन उपरोक्त कानूनों को तोडना या भंग करना भारत सरकार की सीमाशक्ति से बाहर की बात है तथा प्रत्येक भारतीय नागरिक इन धाराओं के अनुसार ब्रिटिश नागरिक अर्थात गोरी सन्तान है l

  1. भारतीय संविधान की व्याख्या अनुच्छेद 147 के अनुसार गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 तथा indian independence act 1947 के अधीन ही की जा सकती है … यह एक्ट ब्रिटिश सरकार ने लागू किये l
  • भारत सरकार के संविधान के अनुच्छेद नं. 366, 371, 372 एवं 392 को बदलने या रद्द करने की क्षमता भारत सरकार को नहीं है l
  • भारत सरकार के पास ऐसे ठोस प्रमाण अभी तक नहीं हैं, जिनसे नेताजी की वायुयान दुर्घटना में मृत्यु साबित होती है l
    इसके उपरान्त मोहनदास गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और मौलाना अबुल कलाम आजाद ने ब्रिटिश न्यायाधीश के साथ यह समझौता किया कि अगर नेताजी ने भारत में प्रवेश किया, तो वह गिरफ्तार ककर ब्रिटिश हुकूमत को सौंप दिया जाएगाl
    बाद में ब्रिटिश सरकार के कार्यकाल के दौरान उन सभी राष्ट्रभक्तों की गिरफ्तारी और सुपुर्दगी पर मुहर लगाईं गई जिनको ब्रिटिश सरकार पकड़ नहीं पाई थी l

  • डंकल व् गैट, साम्राज्यवाद को भारत में पीछे के दरवाजों से लाने का सुलभ रास्ता बनाया है ताकि भारत की सत्ता फिर से इनके हाथों में आसानी से सौंपी जा सके l

  • उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है की सम्पूर्ण भारतीय जनमानस को आज तक एक धोखे में ही रखा गया है, तथाकथित नेहरु गाँधी परिवार इस सच्चाई से पूर्ण रूप से अवगत थे परन्तु सत्तालोलुभ पृवृत्ति के चलते आज तक उन्होंने भारत की जनता को अँधेरे में रखा और विश्वासघात करने में पूर्ण रूप से सफल हुए l

    सवाल उठता है कि … यह भारतीय थे या …. काले अंग्रेज ?

    नहीं स्वतंत्र अब तक हम, हमे स्वतंत्र होना है
    कुछ झूठे देशभक्तों ने, किये जो पाप, धोना है

    राजीव दीक्षित कि शहादत भी षड्यंत्रकारी प्रतीत होती है, SEZ , परमाणु संधि, विदेशी बाजारों के षड्यंत्र … आदि योजनाओं एवं कानूनी मकडजाल में फंसे भारत को जागृत करने तथा नवयुवकों को इन कार्यों के लिए आगे लाने के कारण l

    यदि राजीव दीक्षित और समय तक जीवित रहते तो परिवर्तन और रहस्यों कि परत और खुल सकती थी l

    भारत इतना गरीब देश है कि 100000,0000000 (1 लाख करोड़) के रोज रोज नए नए घोटाले होते हैं…. ?
    क्या गरीब देश भारत से साड़ी दुनिया के लुटेरे व्यापार के नाम पर 20 लाख करोड़ रूपये प्रतिवर्ष ले जा सकते हैं ?
    विदेशी बेंकों में जमा धन कितना हो सकता है ? एक अनुमान के तहत 280 लाख करोड़ कहा जाता है ?
    पर यह सिर्फ SWISS बेंकों के कुछ बेंकों कि ही report है … समस्त बेंकों कि नहीं, इसके अलावा दुनिया भर के और भी देशों में काला धन जमा करके रखा हुआ है ?

    भारत के युवकों, अपनी संस्कृति को पहचानो, जिसमे शास्त्र और शस्त्र दोनों कि शिक्षा दी जाती थी l आज तुम्हारे पास न शास्त्र हैं न शस्त्र हैं .. क्यों ?? क्या कारण हो सकते हैं ??
    भारत गरीब नहीं है … भारत सोने कि चिड़िया था … है … और सदैव रहेगा l तुम्हें तुम्हारे नेता, पत्रकार और प्रशासक झूठ पढ़ाते रहे हैं l
    वो इतिहास पढ़ा है तुमने जो नेहरु के प्रधानमंत्री निवास में 75 दिनों तक अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और अंग्रेजों के निर्देशों पर बनाया गया l
    जिसमे प्राचीन शिव मन्दिर तेजो महालय को ताज महल, ध्रुव स्तम्भ को क़ुतुब मीनार और शिव मन्दिर को जामा मस्जिद ही पढ़ाया जाता है l

    सारे यूरोप – अमेरिका के लिए लूट का केंद्र बने भारत को गुलामी कि जंजीरों से मुक्त करवाने हेतु आगे आओ l
    उठो…. सत्य और धर्म की संस्थापना कि हुंकार तो भरो एक बार, विश्व के सभी देशों कि बोद्धिक संपदा बने भारत l

    सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकती है चाय

    मित्रो चाय के बारे मे सबसे पहली बात ये कि चाय जो है वो हमारे देश भारत का उत्पादन नहीं है ! अंग्रेज़ जब भारत आए थे तो अपने साथ चाय का पौधा लेकर आए थे ! और भारत के कुछ ऐसे स्थान जो अंग्रेज़ो के लिए अनुकूल (जहां ठंड बहुत होती है) वहाँ पहाड़ियो मे चाय के पोधे लगवाए और उस मे से चाय होने लगी !तो अंग्रेज़ अपने साथ चाय लेकर आए भारत मे कभी चाय हुई नहीं !1750 से पहले भारत मे कहीं भी चाय का नाम और निशान नहीं था ! ब्रिटिशर आए east india company लेकर तो उन्होने चाय के बागान लगाए ! और उन्होने ये अपने लिये  लगाये  !

    क्यूँ लगाये  ???

    चाय एक medicine है इस बात को ध्यान से पढ़िये ! चाय एक medicine है लेकिन सिर्फ उन लोगो के लिए जिनका blood pressure low रहता है ! और जिनका blood pressure normal और high रहता है चाय उनके लिए जहर है !!

    low blood pressure वालों के लिए चाय अमृत है और जिनका high और normal रहता है चाय उनके लिए जहर है !
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    अब अंग्रेज़ो की एक समस्या है वो आज भी है और हजारो साल से है ! सभी अंग्रेज़ो का BP low रहता है ! सिर्फ अंग्रेज़ो का नहीं अमरीकीयों का भी ,कैनेडियन लोगो का भी ,फ्रेंच लोगो भी और जर्मनस का भी, स्वीडिश का भी ! इन सबका BP LOW रहता है !

    कारण क्या है ???

    कारण ये है कि बहुत ठंडे इलाके मे रहते है बहुत ही अधिक ठंडे इलाके मे ! उनकी ठंड का तो हम अंदाजा नहीं लगा सकते ! अंग्रेज़ और उनके आस पास के लोग जिन इलाको मे रहते है वहाँ साल के 6 से 8 महीने तो सूरज ही नहीं निकलता ! और आप उनके तापमान का अनुमान लगाएंगे तो – 40 तो उनकी lowest range है ! मतलब शून्य से भी 40 डिग्री नीचे 30 डिग्री 20 डिग्री ! ये तापमान उनके वहाँ सामान्य  रूप से रहता है क्यूंकि सूर्य निकलता ही नहीं ! 6 महीने धुंध ही धुंध रहती है आसमान मे ! ये इन अंग्रेज़ो की सबसे बड़ी तकलीफ है !!

    ज्यादा ठंडे इलाके मे जो भी रहेगा उनका BP low हो जाएगा ! आप भी करके देख सकते है ! बर्फ की दो सिलियो को खड़ा कर बीच मे लेट जाये 2 से 3 मिनट मे ही BP लो होना शुरू हो जाएगा ! और 5 से 8 मिनट तक तो इतना low हो जाएगा जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी ! फिर आपको शायद समझ आए ये अंग्रेज़ कैसे इतनी ठंड मे रहते है !घरो के ऊपर बर्फ, सड़क पर बर्फ,गड़िया बर्फ मे धस जाती है ! बजट का बड़ा हिस्सा सरकारे बर्फ हटाने मे प्रयोग करती है ! तो वो लोग बहुत बर्फ मे रहते है ठंड बहुत है blood pressure बहुत low रहता है !

    अब तुरंत blood को stimulent चाहिए ! मतलब ठंड से BP बहुत low हो गया ! एक दम BP बढ़ाना है तो चाय उसमे सबसे अच्छी है और दूसरे नमबर पर कॉफी ! तो चाय उन सब लोगो के लिए बहुत अच्छी है जो बहुत ही अधिक ठंडे इलाके मे रहते है ! अगर भारत मे कश्मीर की बात करे तो उन लोगो के लिए चाय,काफी अच्छी क्यूंकि ठंड बहुत ही अधिक है !!
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    लेकिन बाकी भारत के इलाके जहां तापमान सामान्य रहता है ! और मुश्किल से साल के 15 से 20 दिन की ठंड है !वो भी तब जब कोहरा बहुत पड़ता है हाथ पैर कांपने लगते है तापमान 0 से 1 डिग्री के आस पास होता है ! तब आपके यहाँ कुछ दिन ऐसे आते है जब आप चाय पी लो या काफी पी लो !

    लेकिन पूरे साल चाय पीना और everytime is tea time ये बहुत खतरनाक है ! और कुछ लोग तो कहते बिना चाय पीए तो सुबह toilet भी नहीं जा सकते ये तो बहुत ही अधिक खतरनाक है !
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    इसलिए उठते ही अगर चाय पीने की आपकी आदत है तो इसको बदलिये !!
    नहीं तो होने वाला क्या है सुनिए !अगर normal BP आपका है और आप ऐसे ही चाय पीने की आदत जारी रखते है तो धीरे धीरे BP high होना शुरू होगा ! और ये high BP फिर आपको गोलियो तक लेकर जाएगा !तो डाक्टर कहेगा BP low करने के लिए गोलिया खाओ ! और ज़िंदगी भर चाय भी पियो जिंदगी भर गोलिया भी खाओ ! डाक्टर ये नहीं कहेगा चाय छोड़ दो वो कहेगा जिंदगी भर गोलिया खाओ क्यूंकि गोलिया बिकेंगी तो उसको भी कमीशन मिलता रहेगा !

    तो आप अब निर्णय लेलों जिंदगी भर BP की गोलीया खाकर जिंदा रहना है तो चाय पीते रहो ! और अगर नहीं खानी है तो चाय पहले छोड़ दो !
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    एक जानकारी और !
    आप जानते है गर्म देश मे रहने वाले लोगो का पेट पहले से ही अम्लीय (acidic) होता ! और ठंडे देश मे रहने वाले लोगो का पेट पहले से ही क्षारीय (alkaline) होता है ! और गर्म देश मे रहने वाले लोगो का पेट normal acidity से ऊपर होता है और ठंड वाले लोगो का normal acidity से भी बहुत अधिक कम ! मतलब उनके blood की acidity हम मापे और अपने देश के लोगो की मापे तो दोनों मे काफी अंतर रहता है !

    अगर आप ph स्केल को जानते है तो हमारा blood की acidity 7.4 ,7.3 ,7.2 और कभी कभी 6.8 के आस पास तक चला जाता है !! लेकिन यूरोप और अमेरिका के लोगो का +8 और + 8 से भी आगे तक रहता है !

    तो चाय पहले से ही acidic (अम्लीय )है और उनके क्षारीय (alkaline) blood को थोड़ा अम्लीय करने मे चाय कुछ मदद करती है ! लेकिन हम लोगो का blood पहले से ही acidic है और पेट भी acidic है ऊपर हम चाय पी रहे है तो जीवन का सर्वनाश कर रहे हैं !तो चाय हमारे रकत (blood ) मे acidity को और ज्यादा बढ़ायी गई !! और जैसा आपने राजीव भाई की पहली post मे पढ़ा होगा (heart attack का आयुर्वेदिक इलाज मे )!

    आयुर्वेद के अनुसार रक्त (blood ) मे जब अमलता (acidity ) बढ़ती है तो 48 रोग शरीर मे उतपन होते है ! उसमे से सबसे पहला रोग है ! कोलोस्ट्रोल का बढ़ना ! कोलोस्ट्रोल को आम आदमी की भाषा मे बोले तो मतलब रक्त मे कचरा बढ़ना !! और जैसे ही रक्त मे ये कोलोस्ट्रोल बढ़ता है तो हमारा रक्त दिल के वाहिका (नालियो ) मे से निकलता हुआ blockage करना शुरू कर देता है ! और फिर हो blockage धीरे धीरे इतनी बढ़ जाती है कि पूरी वाहिका (नली ) भर जाती है और मनुष्य को heart attack होता है !

    तो सोचिए ये चाय आपको धीरे धीरे कहाँ तक लेकर जा सकती है !!

    इसलिए कृपया इसे छोड़ दे !!!
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    अब आपने इतनी अम्लीय चाय पी पीकर जो आजतक पेट बहुत ज्यादा अम्लीय कर लिया है ! इसकी अम्लता को फिर कम करिए !

    कम कैसे करेंगे ??

    सीधी सी बात पेट अम्लीय (acidic )है तो क्षारीय चीजे अधिक खाओ !
    क्यूकि अमल (acidic) और क्षार (alkaline) दोनों लो मिला दो तो neutral हो जाएगा !!

    तो क्षारीय चीजों मे आप जीरे का पानी पी सकते है पानी मे जीरा डाले बहुत अधिक गर्म करे थोड़ा ठंडा होने पर पिये ! दाल चीनी को ऐसे ही पानी मे डाल कर गर्म करे ठंडा कर पिये !

    और एक बहुत अधिक क्षारीय चीज आती है वो है अर्जुन की छाल का काढ़ा 40 -45 रुपए किलो कहीं भी मिल जाता है इसको आप गर्म दूध मे डाल कर पी सकते है ! बहुत जल्दी heart की blockage और high bp कालोस्ट्रोल आदि को ठीक करता है !!

    एक और बात आप ध्यान दे इंसान को छोड़ कर कोई जानवर चाय नहीं पीता कुत्ते को पिला कर देखो कभी नहीं पियेगा ! सूघ कर इधर उधर हो जाएगा ! दूध पिलाओ एक दम पियेगा ! कुत्ता ,बिल्ली ,गाय ,चिड़िया जिस मर्जी जानवर को पिला कर देखो कभी नहीं पियेगा !!

    और एक बात आपके शरीर के अनुकूल जो चीजे है वो आपके 20 किलो मीटर के दायरे मे ही होंगी ! आपके गर्म इलाके से सैंकड़ों मील दूर ठंडी पहड़ियों मे होने वाली चाय या काफी आपके लिए अनुकूल नहीं है ! वो उनही लोगो के लिए है! आजकल ट्रांसपोटेशन इतना बढ़ गया है कि हमे हर चीज आसानी से मिल जाती है ! वरना शरीर के अनुकूल चीजे प्र्तेक इलाके के आस पास ही पैदा हो पाएँगी !!
    तो आप चाय छोड़े अपने अम्लीय पेट और रक्त को क्षारीय चीजों का अधिक से अधिक सेवन कर शरीर स्व्स्थय रखे

    गौहत्या का समर्थक शरद पवार

    दोस्तो हमारे भारत मे ऐसे कई नेता हैं जो गाय का मांस बेच कर अपना धंधा चला रहे हैं ! और भारत मे जो 3600 क्त्लखाने (registered) चल रहे हैं उनमे से 50 से 60 % इन्ही राजनेताओ के हैं ! जिनकी पूंजी से ये काम चल रहा है !

    और जब भी संसद मे गौ ह्त्या को रोकने का विषय आता तो ये चिला -चिला कर खड़े हो जाते है कहते हैं गौ ह्त्या रुकनी नहीं चाहिए ! और उसके विचित्र विचित्र कुतर्क करते हैं ! उनमे से एक नेता शरद पवार जो कृषि मंत्री है उसने एक दिन कुतर्क किया कि गाय की ह्त्या अगर हमने रोक दी तो गाय की संख्या इतनी बढ़ जाएगी उसे हमे रखेंगे कहाँ ????????ये बयान शरद पवार ने दिया !और मुंबई मे दिया ! और प्रेस कान्फ्रेंस मे दिया ! सौभाग्य की बात थी श्री राजीव दीक्षित जी उस दिन मुंबई मे थे और उस press कान्फ्रेंस मे थे ! अगले दिन राजीव भाई वो बयान की copy लेकर चले गए शरद पवार से मिलने !!राजीव भाई ने पवार से कहा कि आपने बयान दिया है कि अगर गाय को हमने बचा लिया तो इनकी संख्या इतनी बढ़ जाएगी इन्हे रखेंगे कहाँ ?श्री राजीव भाई ने कहा आप क्यूँ परेशान है ? आपके घर मे रखने नहीं आ रहे हम ! इतना तो पक्का है
    और अगर आपकी बुद्धि इतना की काम करती है कि गाय को बचाने से उसकी संख्या बढ़ जाएगी तो ये तर्क मनुष्य पर भी लागू होना चाहिए ! सीधे सीधे से लागू होता है कि मनुष्यो को क्यूँ बचाया जाये ??? इनकी संख्या बढ़ जाएगी ! तो इसका मतलब मनुष्य की संख्या कम करने के लिए कत्ल करवाईये इनका !!
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    फिर पवार ने कहा चारा कहाँ से लाएँगे ?तो राजीव भाई ने कहा भगवान ने इस देश मे व्यवस्था ऐसी की है आप क्यूँ परेशान हैं उसके लिए ???
    भगवान की वयवस्था मे आप क्यूँ दखलअंदाजी कर रहे हैं ???

    भगवान मे इस देश मे जितनी भी फसल दी है जितनी भी फसलों के बीज दिये हैं ! 1400 किसम की फसले भारत मे होती हैं (गेहूं ,चावल ,जवारी ,उरद ,मूंग आदि आदि ! हरेक फसल के तीन हिस्से है !हरेक पोधे के तीन हिस्से है ऊपर का एक हिस्सा है वो मनुष्यो के लिए है पक्षियो के लिए है !
    बीच का एक हिस्सा है वो पशुओ के लिए हैं ! और अंत का जो जड़ वाला हिस्सा है वो धरती माता के लिए है !

    प्रकर्ति की बनाई हुई व्यवस्था है इसमे आप क्यूँ परेशान है ????
    हिंदुस्तान मे 77 कोटी किसान खेती करते हैं और इनमे से लगभग 60 कोटी किसान ज्वारी पैदा करते हैं ! ज्वारी का बहुत थोड़ा सा हिस्सा मनुष्य के काम आता है ! ज्वारी का पूरा पेड़ आप गिने तो मुश्किल से उसका 10 % हिस्सा मनुष्य के काम आता है ! और बाकी नीचे का 80 से 90 % हिस्सा वो गाय के काम है बैल के काम का है ! भैंस के काम है पशु के काम का है !

    तो चारे की कमी कहाँ से आई ????????????

    गेहूं की फसल को देख लो ! गेहूं की फसल का 10 % हिस्सा मनुष्य के काम का है बाकी 70 से 85 % गाय के काम है अन्य पशुओ के काम है !
    तो चारे की समस्या कहाँ से आई ??????????

    गेहूं पैदा हो रहा है ज्वारी पैदा हो रही है ! चावल की फसल का बहुत छोटा सा हिस्सा मनुष्य के काम का है बाकी पशुओ के काम का है
    तो चारे की कहाँ कमी है इस देश मे ???
    आप क्यू परेशान हैं ????
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    फिर पवार का तीसरा कुतर्क !
    गाय बूढ़ी हो जाती है तो क्यूँ पालना  ?????

    तो राजीव भाई ने कहा हमारी माता भी बूढ़ी हो जाती है उसको क्यूँ पालना  ?????

    पवार ने कहा ! माता अलग है गाय अलग है !

    राजीव भाई ने कहा मेरे लिए माता और गाय दोनों एक जैसी है ! क्यूंकि बचपन से हमने यही सुना है गाय हमारी माता है ! देश धर्म का नाता है !! तो मेरे लिए माता और गाय दोनों एक सी है !

    तो गाय बूढ़ी हो गई इसलिए कत्ल होनी चाहिए तो माता भी बूढ़ी हो गई इस लिए कत्ल होनी चाहिए !
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    फिर पवार का आखिरी कुतर्क !!
    कि दूध नही देती है तो फोकट मे क्यूँ खिलाने का उसको ???????

    तो राजीव भाई ने कहा दूध तो थोड़े दिन के बाद हमारी माता भी नहीं देती है ! हमारी माता तो हमे ज्यादा से ज्यादा 1 साल दूध पिलाती है और ये गौ माता तो जीवन पर्यंत हमको दूध पिलाती है ! इसका स्थान माता से भी ऊंचा है !
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    फिर पवार का पूरा दिमाग घूम गया और बोला आपसे बात करना बेकार है !
    तो राजीव भाई ने कहा मुझे भी आपसे बात करना बेकार है !
    जिस आदमी को इतना नहीं समझता कि गाय को भारत मे घास चारे की कमी नहीं है और बूढ़ी होने पर काट देनी चाहिए ये तो बहुत खतरनाक मानसिकता है ! इससे अच्छे तो अंग्रेज़ थे जो खुलकर कहते थे कि हम तो गाय को काटते है अपने भोजन के लिए !!

    लेकिन ये काले अंग्रेज़ तो उनसे भी ज्यादा खतरनाक है जो भारतीयता का लबादा ओढ़े हुये हैं और दिमाग मे पूरी अंग्रेज़ियत भारी हुई है !!

    और अंत राजीव भाई के कहते है कि ये जो कुतर्क है ये शरद पवार का नाम मैंने इसलिए ले लिया क्यूकि वह के प्रतीक व्यक्ति है वरना ये कुतर्क हिंदुस्तान के बहुत सारे पढे लिखे व्यक्तियों के कुतर्क बन चुके हैं !खासकर ऐसे पढे लिखे लोग जिनको कुछ अंग्रेज़ियत की शिक्षा मिली है जो कान्वेंट आदि मे पढे है इंजीनियर डाक्टर आदि बन चुके है उनके भी ये कुतर्क बन चुके हैं ! शरद पवार तो प्रतीक मात्र है वहाँ कोई और भी हो सकता है जो इसी तरह की बात करे !