मोहल्ले की छत पर लड़कियां नही दिखतीं… – आशीष मिश्र


आजकल लड़का रिलेशनशिप में है या नही उसके मोबाइल पर पैटर्न लॉक देखकर जाना जा सकता है,लेकिन कुछ साल पहले ऐसा नही था रिलेशनशिप विरलों का होता था और मोबाइल टाटा-बिडलों का। लेकिन तब भी लड़कों का चक्कर चल रहा है या नही ये पता करना कठिन काम न था लड़के की नजर अगर खिड़की पर टिकी होती तो कमिटेड और छत पर जमी हो तो सिंगल।

फ़ूड प्रोसेसिंग का जमाना न था छत पर घर भर की औरतें अचार-पापड़-बड़ियाँ बनाती दिखतीं,लेकिन असल रंगत लड़कियों से रहती,नहाकर बाल सुखाती लड़कियाँ,कपड़े सुखाती लड़कियां,कभी-कभी रस्सी कूदती लड़कियां,छुपाकर सरस सलिल और सुमन सौरभ पढ़ती लड़कियां,सहेली भी आती तो उसे छत पर लेकर भागती लड़कियां।
सहेलियों से सारी लगाईं-बुझाई और छुपाई हुई बातें छत पर ही होती।

इधर की छत पर अगर इन्ट्रेस्ट भी जगता तो छत पर एक गमला रख पानी डालने के बहाने आतीं,हर शाम छत पर गुजरती और बहाना ये कि सामने के मैदान पर खेलते छोटे भाई पर नजर रखनी है,बेचारे लड़कों का भी मन लगा रहता,अस्सी रूपए वाला वीडियोगेम भी लाते तो छत पर चमकाते,उधारी का वाकमैन सारा मोहल्ला देख डालता,पाँच दिन का टेस्ट मैच छत पर रेडियो रख सुन डालते,सामने से जब ध्यान देना कम हो जाता तो उछल-उछलकर इनस्विंगर डालने का उपक्रम करते,लड़के ऑपटिमिस्टिक होते थे सोचते कि ग्लेन मैक्ग्राथ सी इस अदा पर लड़कियां मर मिटेंगी,रात सपनों में उनके रनअप को याद कर आहेँ भरेंगी।

वक़्त गुजरा और छत पर सिर्फ डिश कनेक्शन की छतरियों का साम्राज्य हो गया,छत पर गमले नही दिखते,बालकनी में शिफ्ट हो गए,गौरैया नही दिखती और कौए नही दिखते,छठे-छ्मासे घरवालों की जासूसी से बचती लड़कियां भी दिख जाएं तो कान में ब्लूटूथ लगा होता है और हवा में बातें करती हैं,सहेलियों को अब छत पर नही लातीं,whatsapp पर जो बतिया लेती हैं,आप उनकी नजरों के गिरने पर मर-मिट भी नही सकते,नजरें मोबाइल स्क्रीन से हटती ही नही हैं और आप इन्तजार करते रह जाते हैं कि कब फिर वो इक नजर डाले और आप अगली नजर के इन्तजार में चाँद निकलते तक मच्छरों से पैर नुचवाते खड़े रहे

-आशीष मिश्रा (कटाक्ष)

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