गो आधारित कृषि के लाभ


भारतीय कृषि में विविधता है । ऐसा कोई कृषि उत्पाद नहीं है जो हम नहीं उगाते । हमारी भूमि पर हर प्रकार के अन्न, दालें, सब्जियाँ, फल, कपास और रेशम पैदा होते हैं । हमारी ८०% से अधिक आबादी का पेशा खेती है । इनमें से अधिकांश का एक या दो एकड़ भूमि वाले छोटे किसान हैं ।
हमारी कृषि भूमि भू-संरचना, मिट्टी के प्रकार और गुणों, सिंचाई के तरिकों और फसलों की संख्या के मामले में विविध और जीवंत है ।
मवेशी इस विशाल कृषि चित्र-पटल के अभिन्न अंग हैं । हम बैलों का जुताई, कटी फसल की ढुलाई, सिंचाई के कामों में, गोबर का खाद के और गोमूत्र का कीट नाशक के रूप में उपयोग करते हैं ।

कृषि में गायों की अनूठी भूमिका :

•छोटी-छोटी जोतों और छोटे पैमाने की खेती के कारण खेती में मवेशियों के उपयोग से बेहतर कोई विकल्प नहीं है ।
•जुताई के समय बैलों की चाल हल्की होती है ।
•जुताई करते समय गिरनेवाले गोबर और गोमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है ।
•पशु खाद : जैविक खाद, हरी पत्तियों की खाद, पशुओं और मिट्टी की खाद, प्रकृति के साथ मिलकर भूमि को उपजाऊ बनाते हैं । ये रासायनिक कूड़े की समस्या भी नहीं पैदा करते हैं ।
•प्रकृति के ९९% कीट प्रणाली के लिये लाभ दायक हैं । गोमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते ।
•एक गाय का गोबर ५ एकड़ भूमि को खाद और मूत्र १०० एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है ।
•सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के अनुसार एक बैल का गोबर एक परिवार का ४ वर्षों तक गुजारा चला सकता है । बैल पर्यावरण को दूषित नहीं करते ।

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