आर्गेनिक खेती आज कृषि व्यवसाय का नया मंत्र बन रहा है


आर्गेनिक खेती आज कृषि व्यवसाय का नया मंत्र बन रहा है। रसायन रहित भोजन की चाहत बढ़ने से किसानों खासकर छोटे उत्पादकों के लिए संभावनाओं के नए दरवाजे खुल रहे हैं। जिससे वे रासायनिक उर्वरकों का खर्च बचाकर शुद्ध खाद्य वस्तुएं उगाकर अच्छा मूल्य पा सकते हैं। उन्हें बस आर्गेनिक खेती के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी होगी। इससे वे अपनी फसल का बेहतर मूल्य पा सकते हैं। आर्गेनिक खाद्य पदार्थ उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए विकसित हो रही चेन में रोजगार या व्यवसाय के नए अवसर भी मिल सकते हैं।

लोगों में बढ़ती स्वास्थ्य जागरूकता के चलते पूरे विश्व में आर्गेनिक खाद्य पदाथरें की मांग तेजी से बढ़ी है। कई देशों ने तो खाद्य पदाथरें की खेती के लिये रासायनिक उर्वरकों के ्रपयोग पर रोक लगा दी है। जिसके चलते आर्गेनिक खेती की ओर लोगों का रुझान बढ़ता जा रहा है। आर्गेनिक खेती में रसायनिक उर्वरकों क ा उपयोग पूरी तरह से ्रपतिबंधित होता है। साथ ही बेहद सूक्ष्य निगरानी के साथ इसकी खेती होती है। आर्गेनिक खेती के आस-पास भी रसायनिक खादों का प्रयोग नहीं होना चाहिये। तभी जाकर इनके उत्पादों को आर्गेनिक पदाथरें का सर्टीफिकेट दिया जाता है।
इससे विकासशील देशों के किसानों को इसका विशेष फायदा मिल सकता है। वहां के किसान अपने खेतों में रासायनिक खादों का उपयोग न करके जैविक खादों का उपयोग करते हैं। ऐसी खेती में अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा समय और मेहनत लगती है। किंतु लागत के मामले में प्रति हैक्टेयर 2000 रुपये से 3000 रुपये तक की कमी आती है। इस लिहाज से भी छोटे किसानों को इससे फायदा है। यही कारण है कि विश्व में उपलब्ध कुल जैविक उत्पादों में बड़ा हिस्सा छोटे और मझोले किसानों से आता है।

पिछले दौर में पारंपरिक तौर पर उत्पादित खाद्य पदार्थ बड़े पैमाने पर पूरी दुनिया में सप्लाई होते थे। ऐसे में बड़ी रिटेल कंपनियों ने खाद्य पदार्थ बड़े पैमाने पर उगाने का पक्ष लिया। जबकि आर्गेनिक खेती छोटे पैमाने पर ज्यादा सफलता मिली। इसमें नए तरीके के मानक, पद्धति और कायदे न सिर्फ उत्पादन के लिए विकसित हुए बल्कि उत्पादन के उपरांत रखरखाव, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, आपूर्ति Ÿृांखला प्रबंधन, रीटेल आदि के लिए भी उपयुक्त नए नियम तय हुए हैं। अब चूंकि आर्गेनिक खेती में छोटे किसान ज्यादा सफल हैं। ऐसे में छोटे कृषि व्यापार ज्यादा उपयोगी और सफल साबित हो सकते हैं। उनके लिए संभावनाएं कहीं ज्यादा हैं। आर्गेनिक खेती को गैर सरकारी संगठनों द्वारा खासा बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसे में एनजीओ और रिटेल बिजनेस में लगी कंपनियों के बीच रिश्तों में एक तरह का संकोच और खिंचाव है। यह बाधा कुछ हद तक वास्तविक या काल्पनिक है। ऐसे में नई किस्म का एग्री बिजनेस मॉडल विकसित किए जाने की जरूरत है। इससे गैर सरकारी संगठनों की भूमिका काफी बढ़ा दी है।

खेतों पर प्रभाव विभिन्न वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों के अनुसार गोमूत्र में करीब 33 तत्व मौजूद होते हैं। इसमें शामिल गंधक एवं तांबा जहां बेहतर कीटनाशक का काम करते हैं। वहीं नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, लोहा, चूना, सोडियम अदि तत्व फसल को निरोगी एवं सशक्त बनाते हैं। इसके अलावा इसमें पाए जाने वाले मैंगनीज तथा काबरेलिक एसिड कीटनाशक एवं कीटों के प्रजननरोधक का काम करते हैं। डा. सुरश मोटवानी कहते हैं कि विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा गोमूत्र के इन गुणों का उल्लेख किताबों में भी किया गया है। इन गुणों के कारण गौमूत्र से बने कीटनाशक का उपयोग करने पर उपज में 10-12 प्रतिशत की वृद्धि भी होती है। इसके अलावा गोमूत्र का कीटनाशक सस्ता पड़ने के कारण किसानों के लिए लाभकारी होता है। वे बताते हैं कि फसल को कीटों से बचाने के लिए रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल पर 400 से 800 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से खर्च करना पड़ता है। वहीं गोमूत्र से कीटनाशक तैयार करने में नाम मुश्किल से एक चौथाई रह जाता है। इसलिए गोमूत्र से बना कीटनाशक खेती की लागत को भी कम करता है। भोपाल के निकटवर्ती गांवों में किसानों को गोमूत्र से बने कीटनाशकों के उपयोग के लिए प्रेरित करने के मकसद से विशेष अभियान चलाया गया था। इन गांवों में खेतों की उपज बढ़ी है।

महंगे रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर गौमूत्र से तैयार कीटनाशक कृषि वैज्ञानिकों को ज्यादा असरकारी साबित हुए हैं। बशर्ते इसे बनाने और इस्तेमाल का सही तरीका अपनाएं। इससे किसानों की लागत घटेगी और पैदावार में बढ़ोतरी भी हो सकती है।

कीटनाशक बनाने की विधि डा. मोटवानी बताते हैं कि गौमूत्र से कीटनाशक तैयार करने के लिए गौमूत्र के अलावा नीम की पत्तियों की जरूरत होती है। इसके लिए देशी गाय के करीब 10 लीटर गो मूत्र से तैयार कीटनाशक करीब दो से ढाई एकड़ खेत में फसल को कीटों से बचाने के लिए पर्याप्त होगा।

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